हीरालाल गुरुजी "समय" की 6 लघुकथाएँ

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1.  पड़ोसी के बच्चे            नये मकान में शिफ्ट करने के बाद पड़ोसियों के बच्चों में बड़ा कौतुक नजर आने लगा। मेरे बच्चों की तुलना में पड़ोसी के...

हीरालाल गुरुजी "समय" की 6 लघुकथाएँ

1.  पड़ोसी के बच्चे

           नये मकान में शिफ्ट करने के बाद पड़ोसियों के बच्चों में बड़ा कौतुक नजर आने लगा। मेरे बच्चों की तुलना में पड़ोसी के बच्चे बहुत छोटे थे। दोस्ती का कहीं सवाल ही नहीं। मेरे दोनों बच्चों को भी कंपनी चाहिए पर संभव नहीं था। मेरी दाढ़ी बढ़ी होने से बच्चों का झिझकना लाजमी था। बीस दिन हो गये किसी से कोई मेल जोल नहीं। पुराने पड़ोसियों के बच्चे एक दो बार आए पर दूरी ज्यादा होने से अब मना करते। हमारे घर टीवी होने का फायदा मिला। छोटे बच्चों में कार्टून चैनल देखने की ललक होती है। आने से पहले तसल्ली कर लेते की मैं हूं या नहीं। एक दिन मैं बीच में ही आ गया जब ये सभी घर में बैठकर टीवी देखते कुछ खा रहे थे जिसे हमारी श्रीमती ने दिया था। मैं दरवाजे पर ही बाईक रोका मुझे देखते ही सब सहम गये। श्रीमती ने उन सबको ढाढस बंधाया। मैंने डेढ़ साल के सबसे छोटे बच्चे को पुचकारते हुए उसके साथ बात करते खेलना चालू किया। सभी बच्चों का ध्यान अब मेरी ओर था। कुछ देर में सभी हिलमिल गये ।उन्हें मेरी दाढ़ी का डर भी नहीं रहा। अब रोज मेरी गाड़ी में घूमने के लिए मेरा इंतजार करते हैं।

               2.   आंवले का पेड़

          पचपन से ही मुझे पेड़ो से लगाव था। परीक्षा के दिनों में पेड़ के नीचे एकांत में पढ़ाई का अपना ही आनंद था। जब से मैंने सुना आंवले में बहुत से औषधीय गुण है तब से मुझे आंवले के फल में विशेष रुची हो गई है। अब तो जब भी बाजार जाता हूं आंवले का फल जरुर खोजता हूं। वैसे घर में आचार, मुरब्बा,पाचन आंवला, त्रिफला आदि है पर ताजे फल से मुरब्बा या नूनचरा बनाकर खाने का मजा अलग होता है। पिछली बार हम सपरिवार दीवाली मनाने अपने गृहग्राम गये। पांच दिनों का त्योहार मजे से निपट गया। छटवें दिन सुबह ब्रश करते समय कुंए से लगभग 40 फीट दूर मेरा मंझला भाई अपने बड़े बेटे के साथ थैले में कुछ बीन रहा था। पास जाकर देखा तो मेरी आंखें पथरा गई। बहुत सुंदर आंवले का फल। ऊपर देखा पेड़ पर हर डालियों में गुच्छे में फल लगे थे। मैं थोड़ी देर उसकी छांह में बैठ गया। बड़ा सुकून मिला। मां ने बताया जब मैं पहली बार निजी स्कूल में शिक्षक बना उसी समय वृक्षारोपण के समय यह पेड़ लाकर  लगाया था। अपने लगाये आंवले के पेड़ के फलों का स्वाद .....आह।

                   3.    अनपढ़

            बलदेव 6 भाई बहनों में तीसरे नम्बर पर का था। उसे पिताजी ने पढ़ाने लिए दूर गांव के स्कूल में दाखिला कराया। परन्तु बलदेव की किस्मत में विद्या नहीं थी। वह गांव में पेटपोसा लगकर काम करने लग गया। पर वहां भी दुत्कार ही मिलती। 14 वर्ष की आयु में परदेश (दूसरे राज्य) जाने का मौका मिला । वहां भी दो वर्ष ही रह पाया। अनपढ़ के लिए वहां भी काम नहीं था। वापस आने पर विवाह बंधन में बांध दिया गया। पत्नी भी अनपढ़ मिली। पता चला दूर गांव में पत्थर खदान में काम मिल रहा है। पति पत्नी दोनों काम करने चले गये। आठ वर्ष के भीतर उनके चार पुत्र हुए। जिस गांव में पत्थर खदान था वह अब शहर हो चुका था। कंपनी के स्कूल में बच्चों की पढ़ाई प्रारंभ हुई। आर्थिक स्थिति अब भी कमजोर , बलदेव ने घर पर पान की दुकान खोल दी। जहां सुबह खदान जाने वाले पान , बीड़ी लेकर जाते। बलदेव को इससे आमदनी भी होने लगी। वह सुबह शाम पान दुकान पर भी बैठता। पांच वर्ष बाद उसने पत्थर खदान की एक ट्रक खरीद ली। घर में सम्पन्नता आने लगी। अनपढ़ बलदेव के बच्चे उच्च कक्षाओं में जाने लगे। अभावों में दिन काटे बलदेव अपने बच्चों को किसी चीज की कमी नहीं होने दिया। सभी पढ़ लिखकर तैयार हो गये। पोस्ट ग्रेजुएट परन्तु चारों में से कोई अब खेती नहीं करना चाहते,पान दुकान में नहीं बैठना चाहते, ट्रक में ड्रायवरी नहीं करना चाहते। सभी आज भीन बेरोजगार हैं।

                         4.  मां

           सात वर्ष के बालक नितिन को  तीन दिन से बुखार था। पिता ने सरकारी व निजी अस्पताल के सभी डाक्टरों को दिखाया किन्तु उसका बुखार कम नहीं हो रहा था। उसकी मां शोक कार्यक्रम में शामिल होने   मायके गई थी। बच्चों की पढ़ाई प्रभावित न हो इसलिए उन्हें छोड़कर गई थी। अब नितिन की निगाहें मां को ढूंढ रही थी। पहले भी जब बीमार हुआ मां ही उसकी देखभाल करती। फल, जूस, बिस्कुट, के साथ साथ दवाई भी खिलाती थी। वह दो दिन में भला चंगा हो जाता। रात को नितिन सोते से उठ बैठा और मां.... मां  पुकारने लगा। बहन और पिता जाग गये व ढाढस बंधाया। उसकी मां के लिए खबर भेजी गई। दूसरे दिन दोपहर तक उसकी मां आ गई। नितिन मां को देखते ही लिपट गया। बुखार अभी भी था। मां ने खीर बनाकर नितिन को खिलाई फिर दवाई पिलाई। थोड़ी देर उसके साथ लेट गई। दो घंटे बाद नितिन का बुखार छूमंतर। वह आंगन में खेलने लगा। मां ऐसी ही होती है।

                5.  एक गिलास पानी

         मोनी एक गिलास पानी दे...बेटी एक गिलास पानी दे.... खांसते हुए बूढ़े दादा ने 13 बरस की नातिन को कई बार पुकारा किन्तु वह अनसुना करते हुए मोबाइल गेम खेलती रही। उसकी मां को यह बात अच्छी नहीं लगी। मोबाइल झटकर डांटते हुए नहाने भेज ससुर को एक गिलास पानी देकर नाश्ता बनाने लगी। एक कटोरी सब्जी अलग रख मिर्ची पावडर छिड़क दी। नाश्ते के समय वही सब्जी मोनी को परोस दी। रोटी के साथ सब्जी खाते ही मिर्ची की जलन से मोनी तिलमिला गई। वहाँ पर पानी का गिलास नहीं था। इधर उधर देखने लगी, बरतन को फेंकने लगी। मां को जोर जोर से चिल्लाने लगी...मम्मी एक गिलास पानी। दरवाजे के पीछे से निकलकर एक गिलास पानी देते हुए मां ने मोनी को सुबह की बात याद दिलायी। एक गिलास पानी की कीमत मोनी को अब समझ आ चुकी थी।

                 6.   बड़की बहू

            कमला का विवाह हुए  27 वर्ष  हो चुका।वह अपनी बड़ी बेटी का  विवाह भी  कर चुकी है। जिसकी छोटी सी बिटिया भी है। फिर भी आज कमला की दादी सास और सास , कमला को बड़की बहू नहीं मानते । वह कम पढ़ी लिखी भी नहीं है। अपने मायके की पहली लड़की थी, जो 16 किमी रोज साइकिल चलाकर दूसरे गांव जाकर 10वीं पास हुई थी । पोस्ट मास्टर रमेश के साथ विवाह हुआ था । चार भाईयों में सबसे बड़े थे, पोस्ट मास्टर। तनखा कम थी परन्तु लक्ष्मी जैसी पत्नी पाकर घर का खरचा चला लेते थे। रमेश का बाहरी इन्कम नहीं था। इधर बड़की बहू कमला विवाह के दूसरे  दिन से  सुबह से उठकर चाय पानी से लेकर रात के भोजन तक ,बिना आराम किये सब काम करती थी। सास, दादीसास की सेवा अलग। फिर भी दोनों को संतुष्ट नहीं कर पाती। दो साल ही बीते थे कि उनकी बड़ी बेटी का जन्म हो गया वो मां बन गयी। अगले वर्ष उनके दो देवरों का विवाह हो गया व देवरानियां आ गयीं। तीनों देवरानी जेठानियों में एका होने से सास व दादीसास को बड़ी बहू से ईर्ष्या होने लगी। सब्जी पकाना ,नाश्ता बनाने कोई भी काम हो बड़ी दीदी को पूछतीं । मेहमानों का मान सम्मान, पड़ोसियों के यहां आना जाना ये सभी कार्य में बड़ी बहू को ही पूछते थे। जिसके कारण उनकी  सास व दादीसास मुंह फुलाने लगी। हर बात में ताना मारने लगी। तीन साल के भीतर एन केन प्रकारेण उन्हें झगड़ा झंझट करके घर से अलग रहने पर मजबूर कर दिया गया। पोस्ट मास्टर अपने परिवार को लेकर अलग रहने लगे। अब दोनों बहुओं को ऐसा लगा कि वे अनाथ हो गये। हर काम करते समय उन्हें अधूरापन महसूस होता। पर वे भी मजबूर थे। 27 बरस बाद भी सास के प्रेम का अमृत नहीं बरसा।

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हीरालाल गुरुजी "समय"
छुरा,जिला-गरियाबंद
छत्तीसगढ़

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फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: हीरालाल गुरुजी "समय" की 6 लघुकथाएँ
हीरालाल गुरुजी "समय" की 6 लघुकथाएँ
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रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/07/6_21.html
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