रहीम के नीति काव्य की प्रासंगिकता // राकेश डबरिया // प्राची - जून 2018

SHARE:

आलेख रहीम के नीति काव्य की प्रासंगिकता राकेश डबरिया शोधार्थी पीएच.डी. (हिन्दी विभाग) राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर नी ति लोक व्यवहार का ढंग ...

आलेख

रहीम के नीति काव्य की प्रासंगिकता

राकेश डबरिया

शोधार्थी

पीएच.डी. (हिन्दी विभाग)

राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर

नीति लोक व्यवहार का ढंग या तरीका है जिसके अनुसार जीवन चर्या का संचालन होता है। डॉ. रामस्वरूप शास्त्री ‘रसिकेश’ ने ‘उचित व्यवहार का नाम नीति कहा है। नीति शब्द से हम भलीभाँति परिचित हैं- चाणक्य नीति, विदुर नीति, राजनीति आदि के विषय में जानते हैं। ‘नीति’ को अनेक विद्वानों ने परिभाषित किया है। डॉ. भोलानाथ तिवारी नीति के विषय में कहते हैं कि- ‘‘समाज को स्वस्थ एवं संतुलित पथ पर अग्रसर करने एवं व्यक्ति को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की उचित रीति से प्राप्ति कराने के लिए जिन विधि या
निषेधमूलक वैयक्तिक और सामाजिक नियमों का विधान देश, काल और परिस्थिति के संदर्भ में किया जाता है, उन्हें नीति शब्द से अभिहित करते हैं।’’

उन्होंने माना है कि नीति कुछ नियम हैं, जिनका पालन प्रत्येक मनुष्य को करना चाहिए। नीति पालन समष्टि के लिए आवश्यक है। नीति व्यष्टि के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। डॉ. बालकृष्ण अकिंचन नीति को परिभाषित करते हुए कहते हैं कि ‘‘जब हम भी नीति को ऐसा ही मार्ग, रीति या कला समझते हैं, जिस पर चलकर दैनिक जीवन में आदर्श सफलता प्राप्त की जा सकती है। आदर्श सफलता से तात्पर्य उस सफलता से है, जो कौशल, चरित्र, अनुभव, योग्यता अथवा दूरदर्शिता के बल पर किसी समाज अथवा व्यक्ति को हानि पहुँचाए बिना प्राप्त की गई हो’’ अर्थात् यह कहा जा सकता है कि नीति मनुष्य जीवन में अपना अहम् स्थान रखती है। समष्टि और व्यष्टि में नीति के पालन के बिना अनाचार, अशांति का बोलबाला है। मुख्य आज के इस बाज़ारवादी, वायवी युग में आगे बढ़ने के लिए, अपने स्वार्थों को परिपूर्ण करने के लिए अनीतिपूर्ण कार्य करने से नहीं हिचकता। दूसरे का अहित करने में वह दिन-रात लगा रहता है। अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति हेतु वह अनीतिपूर्ण मार्ग पर चलता है। ऐसे में वह मनुष्य परिवार, समाज, देश गर्त की ओर ही जाता है। ऐसे में आज मनुष्य को एक बार दोबारा सार्वभौमिक, सार्वकालिक, नीति को समझना चाहिए। हिंदी साहित्य नीति कथनों से ओत-प्रोत है।

हिंदी साहित्य के पूर्वमध्यकाल (संवत् 1050 से 1375 संवत्) को ‘भक्तिकाल’ की संज्ञा दी गई है। भक्तिकाल के नीतिकाव्यधारा के अनन्य कवि रहीम हैं। भक्तिकाल के नीतिकाव्यधारा के आधार स्तम्भ उनके नीति विषयक दोहे हैं जो अपनी सरलता, भावप्रवणता के कारण मनुष्य के हृदय में अपना एक विशेष स्थान रखते हैं। रहीम के व्यक्तित्व के संदर्भ में रहीम दोहावली में अभिव्यक्त है- ‘‘एक ऐसा व्यक्तित्व जो अनुभव का भरा हुआ प्याला हो और छलकने के लिए लालायित हो, मूल के कुल के हिसाब से विदेशी पर हिन्दुस्तान की मिट्टी का ऐसा नमकहलाल कि उसने अपना मस्तिष्क चाहे अरबी, फारसी, तुर्की को दिखा हो, पर हृदय ब्रजभाषा, अवधी, खड़ी बोली और संस्कृत को ही दिया। सारा जीवन राजकाल में बीता और बात उसने की आम आदमी के जीवन की’’। रहीम की रचनाओं में दोहावली, नगर-शोभा, बरवै नायिका भेद, बरवै, शृंगार सोरठा, मदनाष्टक, फुटकर पद संस्कृत श्लोक, खेल कौतुक जातकम् हैं। इसके अतिरिक्त फारसी में बाकेआट बाबरी, फारसी दीवान है जो आज अप्राप्य है। नीतिकाव्य की दृष्टि, दोहावली उनकी प्रमुख रचना है जिसके अन्तर्गत नीति अनुभवों से पिरोये हुए नीति कथन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं।

मित्रता एक विश्वास की डोर से बंधी होती है। मित्रता के बल पर ही मनुष्य बड़ी से बड़ी बाधाओं को पार कर सकता है। जीवन में मित्रता अमूल्य धन है। हर मनुष्य के जीवन में अनेक मित्र होते हैं, वे हमारे सच्चे मित्र हैं, इस बात की परीक्षा विपत्ति के समय हो जाती है। रहीम भी मित्रता के महत्त्व से अनभिज्ञ नहीं थे। वे मानते हैं विपत्ति ही मित्रों की कसौटी है। वह थोड़े दिनों के लिए आती हैं, परन्तु यह बता जाती है कि कौन मित्र है और कौन शत्रु-

‘‘रहिमन बिपदा हूँ भली, जो थोड़े दिन होय।

हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय’’।।

रहीम अन्यत्र् कहते हैं कि जब मनुष्य के पास धान-सम्पत्ति होती है, तब उसके अनेक सगे-सम्बन्धा बन जाते हैं। प्रकृति का तो यह नियम है कि उगते हुए सूरज को सलाम करते हैं। उन सगे-संबंधियों, मित्रों की परीक्षा तो विपत्ति में भी साथ बनाए रखने पर ही होती है, वे ही जीवन के सच्चे मित्र् होते हैं।

‘‘कहि रहीम सम्पत्ति सगे, बनत बहुत बहुत रीति।

बिपत्ति कसौटी जे कसे, ते ही साँचे मीत।।’’

दुष्ट व्यक्ति से सदैव दूर रहना चाहिए। दुष्ट व्यक्ति अपना स्वभाव कभी नहीं छोड़ता। रहीम दुष्ट व्यक्ति के स्वभाव का वर्णन करते हुए कहते हैं कि चाहे लाख भलाई कर लो, परन्तु दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता। रहीम आगे कहते हैं कि राग सुनते हुए और दूध पीते हुए भी साँप राग सुनाने वाले को और दूध पिलाने वाले को अपने दुष्ट स्वभाव के कारण डस ही लेता है-

‘‘रहिमन लाख भली करो, अगुनी अगुन न जाय।

राग सुनत पय पियत हूँ, साँप सहज धार खाय।।’’

दुष्ट व्यक्ति के संबंध में वृन्द भी इसी भाव की अभिव्यक्ति करते हुए कहते हैं कि दुष्ट व्यक्ति कभी अपना स्वभाव नहीं छोड़ता। काजल को सौ बार धोने पर भी वह सफेद नहीं हो सकता-

‘‘दुष्ट न छाड़े दुष्टता, कैसेहूँ सुख देत।

धोये हूँ सौ बेर के, काजर होय न सेत।।’’

दुष्ट व्यक्ति का बुरा स्वभाव कभी नहीं बदलता। कवि गंग भी इसी भाव की अभिव्यक्ति करते हुए कहते हैं कि यदि लहसुन की डली को कपूर के पानी में पचासों बार धोया जाए, फिर केसर के लेप में डुबोकर चंदन के वृक्ष के नीचे सुखाया जाए, तब भी लहसुन की डली की गंधा समाप्त नहीं होती-

लहसुन गांठ कपूर के नीर में, बार पचासक धोई मंगाई।

केसर के पुट दै दै के फेरि, सु चंदन वृच्छ की छाँह सुखाई।

मोगरे मांहि लपेटि धारी गंग, बास सुबास न अल न आई।

ऐसीह नीच को ऊँच की संगति, कोटि करौ बैं कुटेन न जाई।।

रहीम मधार बचनों के महत्त्व और कटु वचनों के त्याग पर बल देते हैं। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने स्वयं अपने जीवन पर कभी क्रोधा नहीं किया। वे मानते हैं कि खीरे की कड़वाहट को दूर करने के लिए उसे सिरे से काटकर, उस पर नमक मलते हैं। इसी प्रकार कड़वा वचन बोलने वाले व्यक्ति की भी यही सजा होनी चाहिए-

‘‘खीरा सिर ते काटिए, मलियत नमक लगाय।

रहिमन करुए मुखन को, चहिअत इहै सजाय।।’’

कटु वचन बोलने वाले क्या परिणाम होता है, इस विषय में रहीम कहते हैं कि पागल जीभ तो अनाप-सनाप कहकर भीतर चली गई, परन्तु इसी अनाप-शनाप, बकवास बोलने के कारण सिर को जूते खाने पड़ते हैं-

‘‘रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गई सरग-पाताल।

आयु तौ कही भीतर रही, जूती खात कपाल।।’’

प्रेम का मनुष्य जीवन में अहम स्थान है। प्रेम के बिना मनुष्य का जीवन नीरस है। टकराव के कारण मनुष्य अपने संबंधियों को छोड़ नहीं देता। अतः मनुष्य को टूटे सम्बन्धों को जोड़ने का प्रयास करते रहना चाहिए। रहीम कहते हैं कि जिस प्रकार मोतियों के हार के टूटने पर, उसे बार-बार पिरो दिया जाता है, उसी प्रकार रूठे हुए संबंधा को, मित्र् को भी मना लेना चाहिए-

‘‘टूटे सजन मनाइये, जो टूटे सौ बार।

रहिमन फिरि-फिरि पोहिये, टूटे मुक्ताहार।।’’

प्रेम के विषय में रहीम अन्यत्र् कहते हैं कि प्रेम को बनाए रखने के लिए संबंधियों से दूरी बनाए रखने में ही समझदारी है। ज्यादा निकट बने रहने से प्रेम का उसी प्रकार निरादर होता है, जैसे जिस प्रकार छोटे गड्ढे के पानी को निकट होने पर कोई आदर नहीं देता, पानी नहीं पीता-

‘‘नात नेह दूरी भली, लो रहीम जिय जाति।

निकट निरादर होता है, ज्यौं गड्ही को पानि।।’’

दान का अर्थ है देना। हर धार्म में दान का महत्त्व वर्णित है। दान सदैव सुपात्र् को देना चाहिए। रहीम स्वयं दानी थे। रहीम की दृष्टि में माँगना मौत के बराबर है, परन्तु जो मनुष्य होते हुए भी दान नहीं करता, वह सबसे बड़ा पापी है। जिन दानियों के मुख से नहीं निकलता है, वे माँगने वाले से पहले मर गए हैं-

‘‘रहिमन वे नर मर चुके, जे कहुँ मांगन जाहिं।

उनते पहले वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं।।’’

रहीम आगे कहते हैं कि माँगने से मनुष्य का सम्मान समाप्त हो जाता है, बड़ा व्यक्ति छोटा हो जाता है। जैसे- बलि से तीन डग पृथ्वी का दान माँगने पर भगवान विष्णु को भी बामन अवतार लेना पड़ा था-

‘‘रहिमन याचकता गहे, बड़ो छोट हुँ जात।

नारायन हूँ को भयो, बावन अंगुर गात।।’’

भाग्य की प्रबलता का महत्व संपूर्ण विश्व में असंदिग्धा है। मनुष्य केवल कर्म कर सकता है, कर्मफल उसके हाथ में नहीं है। जिस प्रकार कठपुतली अदृश्य हाथों द्वारा संचालित होती है, उसी प्रकार मनुष्य का भी भाग्य है, वशीभूत होकर कार्य करता है-

‘‘ज्यों नाचत कठपुतरी, करम नचावत गात।

अपने हाथ रहीम ज्यों, नहीं आपुने हाथ।।’’

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि रहीम के नीति विषयक दोहे समष्टि और व्यष्टि को ज्ञान का मार्ग, न्याय का मार्ग दिखलाते हैं। वे दोनों नीति मार्ग पर चलकर एक आदर्श सफलता प्राप्त कर सकते हैं। आज इन दोहों की उपादेयता और बढ़ गई है, क्योंकि हर मनुष्य आज अपने जीवन की समस्याओं से घिरा हुआ है और उनके समाधान हेतु वह अनैतिक मार्ग पर चलने से भी नहीं हिचक रहा। वो नीति विषयक दोहे उसका मार्ग प्रदर्शन करते हैं। रहीम के नीति काव्य में प्रेम, मित्रता, दुर्जन, कटुवचन, भाग्य, चिंता, महानता, स्वार्थ आदि अनेक विषयों पर दोहे मिलते हैं। ये दोहे अपनी सादगी, प्रभावमयता, भावप्रवणता के कारण मनुष्य को कंठस्थ भी हैं। शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने रहीम का एक भी नीति-राग न सुना हो।

संदर्भः

1. हिन्दी में नीतिकाव्य का विकास- डॉ. राजस्वरूप शास्त्री, रसिकेश, पृ. 15

2. हिंदी नीतिकाव्य का भोलानाथ तिवारी, पृ. 4

3. भारतीय नीतिकाव्य परम्परा और रहीम- डॉ. बालकृष्ण अकिंचन, पृष्ठ.5

4. रहीम ग्रंथावली- राजा विद्यानिवास मिश्र, पृ.13

5. वही, पृ. 95, छंद सं. 249

6. वही, पृ. 72, छंद सं. 33

7. वही. पृ. 94, छंद सं. 2458

8. वृहद ग्रंथावली- संपा. जनार्दन राव चेलेर, पृ. 64

9. गंग-कीबत पीयूश- संपा. रामप्रकाश, पृ. 106

10. वही, पृ. 73, छंद सं. 47

11. वही., पृ. 90, छंद सं. 201

12. वही, पृ. 78, छंद सं. 93

13. वही, पृ. 81, छंद सं. 119

14. वही. पृ. 95, छंद सं. 250

15. वही, पृ. 93, छंद सं. 234

16. वही., पृ. 75, छंद सं. 63

सम्पर्क : शोधार्थी, पीएच.डी. (हिन्दी विभाग)

राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर,

COMMENTS

BLOGGER: 1
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: रहीम के नीति काव्य की प्रासंगिकता // राकेश डबरिया // प्राची - जून 2018
रहीम के नीति काव्य की प्रासंगिकता // राकेश डबरिया // प्राची - जून 2018
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg4F77b8q6zbQNwDtlRc67jK7jCaSSfIZyPdasyW4PnsuXaLrY3pa5jGsZZiY2jBQgI_mu8NnEuxGWXH-3NxqxThf5k_uMP-PBN9TjCrXtKc9uVrOQVeZELoOyb5SRt1Z-vzp3i/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg4F77b8q6zbQNwDtlRc67jK7jCaSSfIZyPdasyW4PnsuXaLrY3pa5jGsZZiY2jBQgI_mu8NnEuxGWXH-3NxqxThf5k_uMP-PBN9TjCrXtKc9uVrOQVeZELoOyb5SRt1Z-vzp3i/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/07/blog-post_30.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/07/blog-post_30.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content