अध्ययन सामग्री - कहानी – गणपति गणनायक – सूर्यबाला // डॉ. जयश्री सिंह

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अध्ययन सामग्री कहानी –      गणपति गणनायक – सूर्यबाला ------ डॉ. जयश्री सिंह सहायक प्राध्यापक एवं शोधनिर्देशक, हिन्दी विभाग, जोशी - बेडेकर ...

अध्ययन सामग्री

कहानी –     गणपति गणनायक

– सूर्यबाला

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अध्ययन सामग्री - कहानी – गणपति गणनायक – सूर्यबाला // डॉ. जयश्री सिंह

डॉ. जयश्री सिंह

सहायक प्राध्यापक एवं शोधनिर्देशक, हिन्दी विभाग,

जोशी - बेडेकर महाविद्यालय ठाणे - 400601

महाराष्ट्र

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कहानी –     गणपति गणनायक – सूर्यबाला

लेखिका परिचय :- समकालीन कथा-साहित्य में सूर्यबाला का लेखन विशिष्ट भूमिका और महत्व रखता है। समाज, जीवन परंपरा, आधुनिकता और उससे जुड़ी समस्याओं को सूर्यबाला एक खुली, मुक्त और नितांत दृष्टि से देखने की कोशिश करती हैं। उसमें ना अंधश्रद्धा है ना एकांगी विद्रोह।

सूर्यबाला की पहली कहानी 1972 में ‘सारिका’ में प्रकाशित हुई। डॉ. सूर्यबाला ने अब तक 150 से अधिक कहानियां, उपन्यास व हास्य व्यंग्य लिखे हैं। इनकी प्रमुख रचनाओं में – मेरे संधिपत्र, सुबह के इंतजार तक, अग्निपंखी यामिनी – कथा, दीक्षांत (उपन्यास), एक इन्द्रधनुष, दिशाहीन थाली थर चाँद, मुंडेर पर, गृह प्रवेश, सांझवाती, कात्यायनी संवाद, इक्कीस कहानियां, पांच लम्बी कहानियाँ, सिस्टर प्लीज आप जाना नहीं, मनुश्गंध, वेणु का न्य घर, प्रतिनिधि कहानियाँ,सूर्यबाला की प्रेम्कहानियाँ, इक्कीस श्रेष्ठ कहानियाँ (कहानीसंग्रह) अजगर करे न चाकरी, धृतराष्ट्र टाइम्स, देश सेवा के अखाड़े में, भगवान ने कहा था और झगड़ा निपटारक दफ्तर (व्यंग्य) आदि है।

प्रस्तुत कहानी ‘गणपति गणनायक’ में लेखिका ने यह दर्शाया है कि किस प्रकार से धनाद्य और बड़े लोग गणेश उत्सव के नाम पर अपना मनोरंजन करते हैं। वहीं दूसरी और चाल में रहने वाले छोटे-मोटे गरीब व्यक्ति किस प्रकार अपनी श्रद्धा भक्ति ईश्वर पर लुटाते हैं।

कहानी की कथावस्तु :-गणपति गणनायक’ की कथा मुंबई शहर में व्यापक तौर पर मनाये जाने वाले गणेश उत्सव पर आधारित है। कहानी के प्रारंभ में मुंबई शहर के सड़कों, गलियों, फुटपाथों और सोसाइटी तथा चालों में गणेशोत्सव की तैयारी पूरे धूमधाम हो रही है। गलियों और सड़कों पर हर जगह गणेश प्रतिमाओं की दुकानें लगी हुई है। हर दुकान पर खरीदारों की भीड़ उमड़ी हुई है। एक-से-एक मन को भा जाने वाले गणपति- जरी किनारे वाले गणेश, तो रंग-बिरंगे वस्त्रों वाले गणेश तो कहीं सुनहलें आभूषणों वाले गणेश ही गणेश हर कहीं दिखाई दे रहे हैं।

कलाकार पांडुरंग मोरे की दुकान पर भी गणेश की मूर्तियां सजी हैं। इतने दिनों तक एक साथ रहते-रहते सारे गणपति एक दूसरे के बहुत करीब हो गए थे। हंसी-ठिठोली करते हुए सब का समय एक साथ कट जाता था। कुछ खरीदार मूर्तियां खरीदने पहले से टूट पड़े। इतने दिनों से साथ-साथ रहने वाली गणेश प्रतिमाएँ आपस में बात करती हैं साथ रहते-रहते उनके मन जुड़ गए है, अब जब खरीददार उन्हें लेने आ रहे हैं तो उन गणेश प्रतिमाओं को अलग होना अखरने लगता है दोनों प्रतिमायां सोचती हैं कि क्या जाने कब मिलेंगे? पहला खरीदार छोटी ट्राली लाया था। उसने एक गणेश प्रतिमा खरीद कर अपनी ट्राली पर रखकर शीश नवाया, गुलाल छिड़का और बाकी के 8-10 साथी तुरही-नगाड़े की तड़ातड़ के साथ नाचते-कूदते गणेश जी को ले कर चल दिए।

दूसरे खरीददार आसमानी रंग की मिनी वैन लेकर आये थे। साथ में सफारी और तुरही की जगह लाल सुनहरे डब्बों वाला बैंड। वैन में पहले से कई लोगों की चहल-पहल थी। ड्राईवर तथा अन्य लोगों की सहायता से 3:30 फुट के गणेश को वैन में रखा गया और लोगों से लदी-फंदी वैन अपनी हैसियत और ट्राली की औकात दिखाई और सर्र से निकल गई। लेकिन भीड़ के कारण वाहन वैन हो या ट्राली रुक-रुक कर ही चल पा रहे थे।

तभी बड़े गणपति को वैन से उचकते देख ट्राली वाले गणपति ने पहचान लिया। और हम दोनों साथ-साथ चलते हुए बात करने लगे। वैन वाले गणपति ने जैसे ट्राली वाले गणपति का मन रखने के लिए बात की साथ ही यह भी जताया कि तुम इतनी नीचे ट्राली में और मैं यहां ऊपर वैन में। वैन वाले गणपति पर अपने खरीदारों की हैसियत हावी हो रही थी। जिस प्रकार बड़े लोग केवल अपने बड़प्पन और अमीर होने का दिखावा करते हैं लेकिन असल जिंदगी में अपने कर्मों से बहुत ही तुच्छ होते हैं। और वही ट्राली वाले गणपति के समान मध्यम वर्ग के भक्त या फिर श्रद्धा-भाव रखने वाले लोग जो केवल अपने कर्मों से स्वयं कुछ बनना चाहते हैं। उन्हें इससे कुछ फर्क नही पड़ता कि वे कितने अमीर या पैसे वाले है। उन्हें सिर्फ ईश्वर के समक्ष अपनी भक्ति प्रस्तुत करनी होती है न की दिखावे का झूठा मिथ्याचार। इतनी सी देर में दोनों गणपतियों के संबोधन और लहजे भी बदल गए थे। ट्राली वाले वैन वाले को ‘आप’ और वैन वाले ट्राली वाले को ‘तुम’ कह रहे थे। इसका अर्थ यह हुआ कि इस बड़े शहर में अमीरी और गरीबी के हिसाब से लोगों को सम्मान मिलता है। जिसके जितने ठाट-बाट उसे उतना ही सम्मान मिलता है। ट्रैफिक हटा और गाड़ियां आगे बढ़ी। वैन फिर सर्र से निकल गयी। फिर बड़े गणपति ने चैन की साँस ली। जिस प्रकार से ऊंची शानो-शौकत वाले परिवार में यदि उसमें कोई मध्यम वर्गीय रिश्तेदार आ जाए तो वह लोग उससे पीछा छुड़ाना चाहते हैं। ठीक उसी प्रकार वैन वाले गणपति ट्राली वाले गणपति के साथ वही व्यवहार कर रहे थे। सामने सिग्नल था। वैन ड्राइवर ने जल्दी से निकालना चाहा, लेकिन तभी ट्रैफिक पुलिस को देखकर धच्च से ब्रेक मार दिया सांवरिया और गणपती औंधे मुंह गिरते बचे।

तब खड़खड़ाती ट्राली बगल में आ पहुंची। नीचे वाले गणपति को रहा नहीं गया और बोले “मैंने सोचा आप की वैन निकल गई होगी।“ वैन वाले गणपति ने पूरा रौब झाड़ते हुए कहा कि निकल तो आराम से जाती लेकिन ड्राइवर जरा फुलिश और शिट है।

वैन वाले गणपति तो बड़े लोगों के बीच में अब रहने वाले हैं तो भाई इतनी इंग्लिश तो आती तो बनती है और नीचे वाले ठहरे सीधे-साधे चाल के तो उनको कुछ समझ नहीं आया। नीचे वाले ने उत्साह के साथ बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि यह लोग मुझे चेंबूर की आंगनवाड़ी के सामने वाली चॉल में ले जा रहे हैं। इन लोगों ने मिलाकर ‘गजानन मित्र मंडल’ बनाया है।

नीचे वाले गणपति ने चाल वालों की सामर्थ्य के अनुसार बोला यह लोग मुझे गौरी सहित पांचवें दिन विदा करेंगे। और आप का कुछ पता चला? ऊपर वाले गणपति ने अपने बड़प्पन का दिखावा करते हुए बोला कि यह लोग तो मुझे 10 दिन के पहले छोड़ने वाले नहीं हैं। वह शेखी बघारते हुए कहते हैं कि जाने क्या-क्या फिक्स कर रखा काफी बिजी रहना पड़ेगा। लेखिका ने ट्राली वाले गणपति को ‘गजानन’ और हंसी-ठठोली की सुविधा के लिए वैन वाले गणपति को ‘गणनायक’ का नाम दिया।

गणनायक ने पूरे गंभीर होते हुए कहा- यह लोग प्रोग्राम डिस्कस कर रहे हैं कि क्या करना है कि क्या करना है? इतने में गजानन बोले इसमें करना क्या है- वही भजन-भाव, रंगोली, गायन स्पर्धा और गणपति बप्पा मोरया….। मस्तमौला गजानन हँसे। गणनायक ने बड़े लोगों सा ठाठ-बाट दिखाया और कहा यह लोग बप्पा-शप्पा नहीं चिल्लाते। ये लोग एक दिन मैजिक शो एक दिन डांस कंपटीशन, एक दिन वेराइटी इंटरटेनमेंट, हाउ जी, ब्यूटी कॉन्टेस्ट और न जाने क्या-क्या? रास्ता खुला दोनों गणपति अपने-अपने स्थान पर जाने लगे इस बार गणनायक भी थोड़े भावुक हो गए। फिर क्या था गाजे-बाजे के साथ पंडाल में गणनायक का स्वागत हुआ। बैंड और डांस के शोर-शराबे में मंत्रोच्चार का कहीं अता पता ही नहीं था। गणनायक की गर्दन अलबत्ता मोटी-मोटी मालाओं से लद गई। सिंहासन के सामने प्रसाद, भोग थालों की कतार लग गई थी। कलाकार जी की दुकान में पैदा होने के बाद अब तक गणनायक ने कैसेटों में ही ‘लड्डू को भोग’ सुना था आज सामने व्यंजनों, मिष्ठानों का अंबार देखकर बरबस मुस्कुराए- सोचा महाभोग तो आज लगेगा। प्रमुख आराधक का सम्मान ‘टॉवर’ के सबसे धनाढ्य सेठ और सेठानी को दिया गया था।

सेठ सेठानी द्वारा पूजा-अर्चना संपन्न हुई और पंडित जी दक्षिणा लेकर विदा हो गए और भक्तजन से भरपूर पेपर प्लेटे ले पंडाल के बीच झुंडों में तितर- बितर हो गए थे। तात्पर्य यह है कि ईश्वर (गणेश) की स्थापना तो एक बहाना मात्र था, लोग वहां केवल अपनी स्वार्थ सिद्धि कर रहे थे। अचानक गणनायक का ध्यान उन महिलाओं पर गया, जो उनकी मूर्ति में कमियां निकालने में मशागूल थी। लेखिका कहती है कि- जिसको जिन-जिन चीजों में संतुष्टि मिलती वह अपना मन संतुष्ट कर लेता। गणेशोत्सव मनाना तो केवल एक बहाना था।

गणनायक प्रसाद और व्यंजनों के थाल की प्रतीक्षा करते रहे लेकिन वहां उनके समीप केवल नुचे हुए फूल, अक्ष, हल्दी और दुष बड़े पानी के पात्र के अलावा कुछ नहीं छोड़ा गया। लेखिका कहती है ऐसा लग रहा था मानो वे लोग गणेश पूजा की प्रतीक्षा और होने वाले फास्ट म्यूजिक पर नृत्य की परीक्षा ज्यादा कर रहे हो। अधेड़ और जवान सब अजीबोगरीब तरह से नृत्य कर रहे थे।

यह कैसा चलन हो गया है जहां अब व्यक्ति ईश्वर की भक्ति को भी एक जरिया बनाकर मनोरंजन करने के अलग-अलग उपाय ढूंढता है।यह सब दृश्य देख फिर वह स्वयं को समझाते कि यह नृत्य या चाहे जो हो यह मेरे ही उपलक्ष्य में तो कर रहे हैं। अगली सुबह देखा कि कितनी देर हो गई लेकिन पूजा आरती की कोई संभावना नहीं दिखाई दे रही है। सब एक दूसरे पर आरोप लगाते दिखाई दे रहे हैं। पंडित का कहना था कि वह आया था, लेकिन किसी ने भी दरवाजा नहीं खोला और अब वह दूसरी जगह है।अंततः सर्व सम्मति से तय हुआ कि पंडित को मारो गोली और ले आओ आरती की कैसेट। किसी प्रकार से आरती संपन्न हो गई। देखते ही देखते सब अपने-अपने काम धंधे पर चले गए। अब गणनायक अकेले। लेखिका कहती है कि अब समय कितना बदल गया। किसी को समय नहीं है ईश्वर की पूजा आराधना के लिए। अपराहन में धमाचौकड़ी मचाते छोटे बच्चे जमा हो गये। बच्चे भी आपस में गणनायक की कमियां निकालते। कोई कहता वहां गणपति इससे अच्छा है, कोई कहता मेरे पापा के ऑफिस के सामने इससे ऊंचा गणपति है।

फिर उनमें एक्ने मैकडोनाल्ड जाने की बात की तो दूसरी लड़की ने ‘पिज़्ज़ा हट’। उसमें से तीसरे ने बोला क्यों नहीं हम मैकडोनाल्ड फेस्टिवल भी सेलिब्रेट करते? ….रबिश! “तीसरा बोला गणपति इज गॉड? “सो व्हाट?..... इधर भी हाउजी, उधर भी हाउजी, इधर भी डांस, उधर भी डांस। गॉड होने ना होने से क्या फर्क पड़ता है?

सही भी तो है जैसा संस्कार मां-बाप देंगे बच्चे वही तो सीखेंगे। कैसा समय आ गया है ईश्वर के होने ना होने से किसी को फर्क नहीं पड़ता। अंधेरा होने के बाद पूजा आरती हुई और जमकर नाच गाना हुआ। फिर रात को गणनायक के पास सोने को लेकर लोगों में झिकझिक होनी शुरू हुई। काफी झिकझिक के बाद समाधान निकला की सोसाइटी हेड सौ रुपए ओवरटाइम और रात के खाने की शर्त पर गणपति के पास सोएगा। हर दिन का पैसा वह पहले ही ले लेगा।

मनुष्य कैसा हो गया है ईश्वर की शरण में रहने के लिए बहुत पैसे वसूलता है और उसी पैसे से वह दारू पीता है और वही उनकी बगल में खर्राटे मारता है। इधर गणनायक को नींद नहीं आ रही थी। उनका मन, मान-अपमान, प्रतिष्ठा और अवहेलना आदि बातों पर अशांत था कि वह यह सब सही समझे या फिर गलत। सिक्योरिटी हेड के बगल में पढ़े मोबाइल की घंटी बजी। गणनायक ने थोड़ी देर तो बजने दिया फिर उठा लिया। उधर से गजानन की चहकती हुई आवाज आई - “अभिवादन महाराज! कैसे हैं?”गणनायक थोड़ा अटके- “ठीक हूं अचानक तुम कैसे?”....दोनों गणपति में अपने-अपने तरफ के लोगों के बारे में बातचीत हुई।

गजानन ने अपने चाल वाले लोगों का बखान करते हुए बताया कि यह लोग जितने सामान्य साधन हीन लोग प्रसाद में इतना चिवड़ा, उपमा, नारियल वड़ी, मोदक आदि चढ़ाते हैं। तो आप वाले- ”गजानन का तात्पर्य जब सामान्य लोग इतनी सेवा करते हैं तो धन-धान्य से पूर्ण लोग तो और अधिक सेवा सत्कार करते होंगे लेकिन इसका विपरीत था, उन्हें स्वयं से ही फुर्सत नहीं मिलती है। लेकिन गणनायक सच बोलते कैसे?

गणनायक सोचते थे वह चाहे जिस स्थिति में हो, लेकिन गजानन की आंखें तो उन्हें प्रतिष्ठा और सम्मान के शिखर पर ही देख रही है। सच भी है यही हर किसी को चाहिए होता है चाहे वह मनुष्य हो या फिर देवता। एक शाम बाहर की सारी दुकानें टॉवर के अहाते में बुला ली गई जहां चाट, गोलगप्पे, डोसे, समोसे और चायनीज आदि खाने की चीजें थी। खाना पकाने खिलाने की तकलीफ से बचने के लिए लोग अपने-अपने घरों से नीचे उतर खाने के लिए और देखते थे यहां-वहां पेपर प्लेटों का ढेर लग गया। वहां के चड्डा साहब को यह कहने में हिचक तक नहीं हुई कि हम खाने-पीने के लिए ऐसे अवसरों का इंतजार क्यों करते हैं? सब खाने-पीने में इतने मस्त की आरती-पूजा की किसी को सुध ही नहीं थी और अंतिम दिन बच्चों ने अलग-अलग प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लिया। किसी ने गीत में तो किसी ने नृत्य, ब्यूटी कॉन्टेस्ट, फैंसी ड्रेस आदि में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। एक-एक करके सभी बच्चों ने अपनी प्रतिभाएं प्रदर्शित की। कुछ समय बाद नृत्य की स्पर्धा प्रारंभ हुई तेज लाउडस्पीकरों आते संगीत की आवाज पर एक लड़की इतना उच्छृंखल नृत्य कर रही थी। इतना अभद्र दृश्य की उसे देखकर रंभा भी लज्जित हो उठे। एक दूसरी लड़की पारदर्शी कपड़े पहन कर और उसके ऊपर से पहनी थी जिसे उतार कर उछाल मारी। पूरा पंडाल सीटियों से गूंज उठा। उसकी वह जैकेट गणनायक के पैरों के पास आ कर गिरी उन्हें वह विषैले सांप के समान प्रतीत हो रही थी। गणनायक का पूरा शरीर क्रुध्द और घृणा से गिनगिना उठा।

गणपति विसर्जन का अंतिम दिन आ गया। सड़कों पर हजारों लाखों की संख्या में भीड़ उमड़ पड़ी। विसर्जन के समय भी गजानन और गणनायक की वैन और ट्राली मिल गयी दोनों में फिर बातें प्रारंभ हुईं। गजानन अपनी चाल वाले भक्तों से बहुत प्रसन्न थे। उन्होंने गणनायक से बताया कि उनके ही समान उनकी छोटी-छोटी इच्छाएं भी थी जिन्हें वह मुझसे मांग रहे थे।

देखते देखते भीड़ हटी ट्राली आगे निकल गयी। गजानन को आंगनवाडी की चाल वालों ने पूरे सम्मान के साथ सिर पर उठा लिया और उन्हें गहरे समुंद्र में उतार कर विसर्जित किया जबकि वैन वाले आपस में लड़ने लगे तथा अपना समय बचने के लिए गणनायक को बिना भक्तिभाव के किनारे ही छोड़ कर चले गये।

निष्कर्ष : - लेखिका सूर्यबाला गणपति गणनायक कहानी द्वारा यह बताने का प्रयास किया है कि है कि आज लोगों के पास ईश्वर की पूजा आराधना के लिए समय नहीं है। धनी लोग भगवान के नाम पर खुद के लिए मनोरंजन की व्यवस्था करते हैं। ईश्वर की पूजा अर्चना कम तथा एंजॉय ज्यादा हैं। आज व्यक्ति जितना अमीर और धनवान होता जा रहा है वह अपने संस्कार और रीति रिवाज भूलता जा रहा हैं।

वहीं एक ओर सामान्य और साधनहीन सामान्य मुंबईकर दिन भर भूखे प्यासे रह कर पूरी श्रद्धा से गणेश जी की पूजा अर्चना करता है और यह अपेक्षा करता है कि गणेश जी उनकी छोटी-छोटी इच्छाएं को अवश्य पूर्ण करेंगे।

सन्दर्भ सहित व्याख्या :-

“नहीं, स्वास्थ्य के प्रति बहुत सतर्क रहते हैं वे लोग... और लड्डू वड्डू तो बिलकुल नहीं खाते तभी तो फ़ूड इन्फेक्शन वगैरह से जुड़ी सारी ख़बरें तुम्हारे जैसे चाल वालों की ही होती है।

‘सो बात नहीं महाराज, इन बेचारों को भी इलाज की सुविधा होती तो खबर बनने की नौबत ही नहीं आती‘ ”

संदर्भ :- प्रस्तुत गद्यांश बी.ए.प्रथम वर्ष की पाठ्यपुस्तक में रचित “गणपति गणनायक” कहानी से लिया गया है। इसकी लेखिका “सूर्यबाला जी’ हैं। लेखिका ने इस कहानी द्वारा समाज में रहने वाले एक उच्च वर्ग और दूसरे मध्यम वर्ग के लोगों के बारे में वर्णन किया है। दोनों वर्गों द्वारा ईश्वर के प्रति श्रद्धा भाव का दृष्टिकोण अंकित किया गया है।

प्रसंग :- इस गद्यांश में उच्च वर्ग और मध्यम वर्ग की स्थितियों के बारे में वर्णन किया गया है। उच्च वर्ग के पास स्वास्थ्य से संबंधित हर सुख सुविधाएं उपलब्ध होती है और वही मध्यम वर्ग के पास इन सारी चीजों का अभाव होता है, जिससे उन्हें स्वास्थ्य संबंधित परेशानियां होती है-

व्याख्या :- लेखिका कहती है कि गजानन को तो पता था ही गणनायक सोसाइटी में स्थापित है, और वहां तो बड़े अमीर लोग होंगे, तो चढ़ावा भी उन्हें खूब भर-भरकर चढ़ता होगा। यही सोचकर जब गजानन उनसे (गणनायक) से पूछते हैं कि महाराज तब तो आपके भक्त भोग में रोज लड्डू चढ़ाते होंगे।गणनायक ने टॉवर में रहने वालों सा ही मुंह बिचकाया- कहां, वहाँ ऐसे-ऐसे मिष्ठान होते हैं कि लड्डुओं को तो कोई पूछता ही नहीं।फिर गजानन बड़ी उत्सुकता से बोले फिर तो वे लोग प्रतिदिन वहीं खाते होंगे न।गणनायक अपने आत्मसम्मान की रक्षा करते हुए बोले- नहीं, स्वास्थ्य के प्रति बहुत सतर्क रहते हैं वे लोग…..और लड्डू-वड्डू तो बिल्कुल नहीं खाते। गणनायक कहते हैं तभी तो (भोजन) फूड इन्फेक्शन आदि से जुड़ी बीमारियां तुम्हारे चॉल वाले जैसे लोगों को होती है। गजानन अपने चॉल वालों के पक्ष में बोलते हैं कि महाराज, ऐसी बात नहीं। यदि स्वास्थ्य से संबंधित सारी सुख सुविधाएं और इलाज के साधन यहां भी उपलब्ध हो, तो ऐसी खबरें बनने की नौबत नहीं आती।

लेखिका बताना चाहती हैं कि खान-पान, रहन-सहन और आधी सुख-सुविधाएं यह निश्चित नहीं करती के इंसान का स्वाभाव या ईश्वर के प्रति उसका श्रद्धा-भाव कैसा है? बल्कि मनुष्य की अच्छी सोच और ईश्वर के प्रति उसका श्रद्धा-भाव से ऊंचा और बड़ा बनाता है। ईश्वर के प्रति अपनी आस्था और भावना व्यक्त करने के लिए बड़े-बड़े दिखावे करने की आवश्यकता नहीं है। कहानी में इस बात पर भी बल दिया गया है कि आज मनुष्य ईश्वर की पूजा-अर्चना के नाम पर बड़े-बड़े उत्सव आदि रखता है, और उनके समक्ष ही बिल्कुल अभद्र तरीके से नृत्य आदि करेंगे। ईश्वर के समीप ही बैठकर शराब पिएंगे, जुए-ताश खेलेंगे। अपने मनोरंजन के हर तरीके ढूंढ लेंगे और उसका प्रबंध करेंगे। कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य आज आगे निकलते-निकलते इतना आगे निकल गया है कि अपने संस्कार और सभ्यता भूलते जा रहा है।

विशेष :- इस कथा में गणपति मूर्तियों को सजीव कर उनके आपसी संवादों के माध्यम से शहर के भिन्न – भिन्न वर्गों के लोगों तथा उनके विचारों पर व्यंग्य किया गया है। भाषा-बोलचाल की हिंदी भाषा है। कहानी का परिप्रेक्ष्य मुम्बई है इसलिए भाषा में एकाध स्थान पर अंग्रेजी और मराठी शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। कहीं-कहीं पर मुहावरेदार शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। जैसे- ठहाके मारना।

बोधप्रश्न :-

१) ‘गणपति – गणनायक’ रचना के व्यंग्य को अपने शब्दों में लिखिए।

२) गजानन और गणनायक के मध्य हुए संवादों की चर्चा कीजिये।

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जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: अध्ययन सामग्री - कहानी – गणपति गणनायक – सूर्यबाला // डॉ. जयश्री सिंह
अध्ययन सामग्री - कहानी – गणपति गणनायक – सूर्यबाला // डॉ. जयश्री सिंह
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