अध्ययन सामग्री - कहानी – वापसी – - उषा प्रियंवदा ------ डॉ. जयश्री सिंह सहायक प्राध्यापक एवं शोधनिर्देशक, हिन्दी विभाग, जोशी - बेडेकर महाव...
अध्ययन सामग्री -
कहानी – वापसी –
-उषा प्रियंवदा
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डॉ. जयश्री सिंह
सहायक प्राध्यापक एवं शोधनिर्देशक, हिन्दी विभाग,
जोशी - बेडेकर महाविद्यालय ठाणे - 400601
महाराष्ट्र
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लेखक परिचय :- आधुनिक हिंदी साहित्य में उषा प्रियंवदा जी का विशिष्ट स्थान है। नई कहानी में अपनी उत्कृष्ट रचनाओं के कारण उषा जी बहुचर्चित और बहुप्रशंसित रहीं। अपनी रचनाशीलता के कारण ही वे आज भी हिंदी कहानी की महत्वपूर्ण हस्ताक्षर बनी हुई हैं। उषा प्रियंवदा की कहानियों में आज के व्यक्ति की दशा और दिशा का जीवन्त चित्रण देखने को मिलता है जो पाठकों को सहज रुप में अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। हिंदी कहानियों पर होने वाली कोई भी चर्चा इनकी कहानियों की चर्चा के बिना लगभग अधूरी है।
नई कहानी के बाद हिन्दी कहानी की विषय – वस्तु में जो यथार्थवाद दिखाई देता है, उषाजी की कहानी उसी का प्रतिनिधित्त्व करती है। ‘वापसी’ कहानी में परंपरा और आधुनिकता का द्वंद्व है। आधुनिकता के इस दौर में दो पीढ़ियों के बीच हो रहे बदलाव व टकराव का लेखा जोखा प्रस्तुत है। कहानी में सेवानिवृत्त हो कर घर लौटे गजाधर बाबू को अपने ही घर में पराया कर दिए जाने के कटु अनुभवों को चित्रित किया गया है।
‘जिन्दगी और गुलाब के फूल’, ‘कितना बड़ा झूठ’, ‘कोई एक दूसरा’,’मेरी प्रिय कहानियाँ’ उषा जी के महत्त्वपूर्ण कहानी संग्रह हैं तथा ‘पचपन खम्बे लाल दीवारें’, ‘रुकोगी नहीं राधिका’,’शेष यात्रा’,’अंतर्वंशी’ उनके महत्त्वपूर्ण उपन्यास है।
कथावस्तु :- स्टेशन मास्टर की नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद गजाधर बाबू बड़े उत्साह से अपने परिवार के साथ रहने की इच्छा लिए घर लौटते हैं। रेलवे क्वार्टर में रह कर नौकरी करते हुए गजाधर बाबू को पैंतीस सालों तक परिवार से दूर रहना पड़ा था ताकि उनका परिवार शहर में सुख- सुविधाओं के बीच रह सके। शहर में रहने से उन्हें किसी प्रकार की कमी का बोध न होने पाए। नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने सोचा कि अब जिंदगी के बचे दिन अपने परिजनों के साथ प्यार और आराम से बिताएंगे। एक सुंदर और सुखद घर का सपना संजोए वे घर लौटे तो उन्होंने पाया कि परिवार के लोग अपने - अपने ढंग से जी रहे हैं। बेटा घर का मालिक बना हुआ है। बेटी और बहू घर का कोई काम नहीं करतीं और यदि उन्हें रसोई बनाने को कहा जाए तो वे जानबूझ कर आवश्यकता से अधिक राशन खर्च कर देती हैं इसलिए उनकी पत्नी ने र्षक और रसोई की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली है। घर के अन्य कामों के लिए नौकर रखा गया है, जिसकी कोई आवश्यकता ही नहीं है। जिस परिवार के लिए सालों छोटे - मोटे स्टेशन के क्वाटर में अकेले रहकर उन्होंने अपना जीवन गुजार दिया उसी परिवार के किसी सदस्य के मन में उनके प्रति कोई लगाव नहीं है। बच्चों के लिए वे केवल पैसा कमाने के साधन मात्र हैं। गजाधर बाबू की उपस्थिति व किसी कार्य में उनका हस्तक्षेप बेटे बहू को स्वीकार नहीं हो पाती। उनके होने से उन्हें अपने मन से जीने की स्वतंत्रता नहीं मिल पाती। उनकी अपनी बेटी भी एक छोटी सी डांट पर मुँह फुला देती है तथा उसने कटकर रहने लगती है। उनकी पत्नी उन्हें समझने की बजाय उलटे उन्हीं को बच्चों के फैसलों के बीच में न पड़ने की सलाह देती है।
परिवार में गजाधर बाबू की वापसी आधुनिक परिवार में टूटते पारिवारिक संबंधों के साथ परिवार के बूढ़े व्यक्ति की लाचारी की झांकी प्रस्तुत करती है। गजाधर बाबू अपने बच्चों के साथ उनके मनोविनोद में वह शरीक होना चाहते हैं लेकिन बच्चे उन्हें देखते ही गंभीर हो जाते हैं। घर के सभी सदस्य गजाधर बाबू के फैसले का निरादर कर देते हैं। कुछ समय बाद घर में उनकी उपस्थिति बच्चो को अखरने लगती है। घरेलू मामले में उनके किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप को उनकी पत्नी तथा बच्चे स्वीकार नहीं करते उलटे उनके फैसले का विरोध करने लगते हैं। उनके कारण घर में दोस्तों के बीच चलने वाली चाय पार्टी में अवरोध न हो इसलिए बैठक से उनकी चारपाई हटाकर माँ के कमरे में लगा दी जाती है। उनके लिए सबसे दु:खद बात यह होती है कि जिस पत्नी का स्नेह और सौहार्द नौकरी के समय निरंतर उनके स्मरण में रहा करता था, अब वही पत्नी घर की रसोई सम्हालने में ही संतोष का अनुभव करती है तथा पति से अधिक बच्चों के बीच रहने में अपने जीवन की सार्थकता समझती है। कुलमिलाकर गजाधर बाबू अपने परिजनों के बीच पराया हो जाना बर्दाश नहीं कर पाते। अपनी पत्नी और बच्चों से निराश हो कर पुन; चीनी मील को नयी नौकरी खोज कर घर से चले जाने का फैसला ले लेते हैं।
निष्कर्ष :- ‘वापसी’ आधुनिक युग के वास्तविक यथार्थ को प्रस्तुत करती है कहानी यह दर्शाती है कि आधुनिक पीढ़ी के लिए परिवार में पुराने मूल्यों की तरह पिता का भी कोई स्थान नहीं रह गया है। वह पत्नी व बच्चों के लिए केवल धनोपार्जन के निमित्त पात्र मात्र बन गया है। पत्नी भी जिस व्यक्ति के अस्तित्व से पत्नी मांग में सिंदूर डालने की अधिकारिणी है तथा समाज में प्रतिष्ठा पाती है। उसके सामने वह दो वक्त भोजन की थाली रख देने से ही अपने सारे कर्तव्यों से छुट्टी पा जाती है। गजाधर बाबू की परेशानी यह है कि वह जीवन यात्रा के अतीत के पन्नों को पुनः वैसे ही जीना चाहते हैं किन्तु अब ये संभव नहीं है। क्योंकि अब उनके लिए घरौर परिवार में कोई जगह नहीं है। इसप्रकार यह कहानी वर्तमान युग मे बिखरते मध्यवर्गीय परिवार की त्रासदी तथा मूल्यों के विघटन की समस्या पर प्रकाश डालती है।
सन्दर्भ सहित स्पष्टीकरण: -
“उन्होंने अनुभव किया कि वह पत्नी और बच्चों के लिए केवल धनोपार्जन के निमित्त मात्र हैं जिस व्यक्ति के अस्तित्व से पत्नी माँग से सिन्दूर डालने की अधिकारिणी है, समाज में उसकी प्रतिष्ठा है, उसके सामने वह दो वक़्त भोजन की थाली रख देने से सारे कर्तव्यों से छुट्टी पा जाती है।“
संदर्भ:- प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रथम वर्ष कला हिन्दी के पाठ्यपुस्तक ‘श्रेष्ठ हिंदी कहानियां’ में निर्धारित कहानी ‘वापसी’ से ली गयी हैं। इस कहानी की लेखिका ‘उषा प्रियंवदा’ जी हैं। लेखिका ने इस कहानी में गजाधर बाबू के रूप में नौकरी से सेवानिवृत्त हो कर घर लौटे पुरुष मन की व्यथा का चित्रण किया है।
प्रसंग:- प्रस्तुत अवतरण द्वारा लेखिका यह दर्शाती हैं कि गजाधर बाबू घर के अव्यवस्था के संदर्भ में अपनी पत्नी से बात करना चाहते हैं, लेकिन उनकी पत्नी अपने पति की बातों को समझने की बजाय उन्हें बच्चों के मामले में हस्तक्षेप न करने की बात करती है। जिससे गजाधर बाबू का मन बहुत दुखी हो जाता है।
व्याख्या:- लेखिका गजाधर बाबू के घर की बिगड़ी हुई स्थिति का वर्णन करते हुए बताती हैं कि गजाधर बाबू परिवार के लोगों के लिए धन पाने का जरिया रह गए हैं। उन्होंने अपने जीवन के पैंतीस साल नौकरी करते हुए अपने घर से दूर रह कर बिताये और आज उसी नौकरी से सेवानिवृत्त होकर जब वह अपने घर आते हैं तो देखते है कि परिवार में लौटने पर उन्होंने अपने लोगों से जो अपेक्षा की थी वैसा यहाँ कुछ भी नहीं है। वे समझ जाते हैं कि यहां पर ऐसा कोई भी नहीं है जो उनकी मन की स्थिति को समझे अथवा उनका साथी बने। गजाधर बाबू यह अनुभव करते हैं, कि अब उनकी पत्नी का लगाव भी उनके प्रति उतना नहीं रहा जितना कि पहले हुआ करता था। पत्नी की इस व्यवहार से गजाधर बाबू अत्यंत दुखी हो जाते हैं। पत्नी उनके सामने दो वक्त के भोजन की थाली रख कर अपने सारे कर्तव्य से छुट्टी पा जाती है। यह देख कर पत्नी और बच्चों के साथ रहने की इच्छा समाप्त हो जाती है गजाधर बाबू को इस बात का आघात लगता है कि उनके अपने ही घर में उनके लिए कोई स्थान नहीं है। इसलिए वे परिवार में हस्तक्षेप करना बंद कर देते हैं और एकांत एक चारपाई पर पड़े रहकर अपने स्थिति को सुधारने के लिए उपाय खोजते रहते हैं।
विशेष:- ‘वापसी’ कहानी पुरुष पर केन्द्रित कहानी है। गजाधर बाबू कहानी के मुख्य पात्र होने के साथ परिवार के मुखिया भी हैं किन्तु अपने ही परिवार में वे उपेक्षित हो कर जीने पर विवश हैं। स्नेही स्वभाव के व्यक्ति होने पर भी वे परिवार के स्नेह से वंचित हैं। परिवार से जुड़ कर जीने की इच्छा को मन में लिए घर लौटे तो हैं फिर भी परिवार के बीच अकेले जीने पर विवश हैं।
बोध प्रश्न : -
१) ‘वापसी’ कहानी के माध्यम से गजाधर बाबू का चरित्र – चित्रण कीजिये।
२) ‘वापसी’ कहानी के माध्यम से मध्यमवर्गीय परिवार की विवशताओं पर प्रकाश डालिए।