गर्भ-शिक्षा के बढ़ते प्रचलन का औचित्य // प्रमोद भार्गव

SHARE:

संदर्भः कोख में पल रहे शिशु को शिक्षा देने की पहल के निहितार्थः- गर्भ-शिक्षा के बढ़ते प्रचलन का औचित्य प्रमोद भार्गव पिछले कुछ दिनों से म...

संदर्भः कोख में पल रहे शिशु को शिक्षा देने की पहल के निहितार्थः-
गर्भ-शिक्षा के बढ़ते प्रचलन का औचित्य


प्रमोद भार्गव
पिछले कुछ दिनों से मां के गर्भ में विकसित हो रहे शिशु को शिक्षा देने की खबरे आ रही हैं। ये प्रयोग जमशेदपुर के 'फेडरेशन आफ आब्स्टेट्रिक एंड गाइनेकोलॉजिकल सोसाइटी' इंदौर में अभिभावक प्रशिक्षण संस्थान में गर्भस्थ शिशु को तकनीक के जरिए गणित और विज्ञान जैसे जटिल विषयों में दक्ष किए जाने के उद्देश्य से किए जा रहे हैं। इसे 'अद्भुत मातृत्व' की संज्ञा दी गई है। कोख में पल रहे शिशु से ये संवाद बुद्धिमान बालक पैदा करने के उपाय हैं। इस प्रयोग को क्रियान्वित करने के दौरान महाभारतकालीन अर्जुन पुत्र अभिमन्यु द्वारा गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदने की कला सीख लेने के उदाहरण दिए जा रहे हैं। लेकिन इसी उदाहरण के परिप्रेक्ष्य में प्रशिक्षक संस्थाओं को महाभारत के लेखक वेद व्यास की दूरदृष्टि को समझने की जरूरत है। मां की कोख में अभिमन्यु का चक्रव्यूह में प्रवेश के तरीके को सुनना और चक्रव्यूह भेदने की सफलता के बाद, बाहर निकलने की विधि सुनने के समय मां का सो जाना, ऐसा दूरदर्शी संदेश है, जिसका दिया जाना कालजयी लेखक से ही संभव है। इसका तात्पर्य है कि मां की कोख से कोई संपूर्ण ज्ञान प्राप्त करके नहीं आता। सारा ज्ञान जीवन की जटिलताओं से जूझते हुए ही सीखा जा सकता है। तय है, ऐसे उपाय अंततः शिक्षा के बाजारीकरण को बढ़ावा देने वाले ही साबित होते हैं। क्योंकि शिक्षा को रूढ़ प्रतीकों और तकनीक आधारित उपकरणों से संपूर्णता में हासिल नहीं किया जा सकता है। यह विद्या स्व-विवेक और आत्मनिर्णय लेने की क्षमता विकसित नहीं करती है, इसलिए कृत्रिम उपायों से बुद्धि विकसित करना,व्यक्ति का यांत्रिकीकरण करना है। लिहाजा यह बौद्धिकता न तो स्थापित विचारों से आगे बढ़ पाएगी और न ही इससे मौलिक सोच का सहज प्रगटीकरण होगा ?


     यह सही है कि महाभारतकाल में अर्जुन ने सुभद्रा को गर्भवस्था के दौरान चक्रव्यूह में प्रवेश करने की प्रक्रिया सुनाई थी, जिसे अभिमन्यू ने गर्भ में ही सीख लिया था। तभी से यह अवधारणा चली आ रही है कि गर्भस्थ शिशु को शिक्षा दी जा सकती है। लेकिन सच्चाई यह है कि महाभारत युद्ध के बाद से लेकर अब तक कोई दूसरा अभिमन्यू पैदा नहीं हुआ। प्रकृति की यही वह विलक्षणता है कि वह मनुष्य की हुबहु प्रतिकृति पैदा नहीं करती। अन्यथा मानव क्लोन पैदा करके पूरी मनुष्य जाति को एकरूपता में ढाल देने के उपाय चल निकलेंगे। इसके विपरीत उपनिषदों में एक अन्य कथा भी गर्भ शिक्षा से जुड़ी है। इस कथा के अनुसार ऋषि उद्दालक की पुत्री सुजाता का विवाह पिता के शिष्य कहोड़ से हुआ था। सुजाता के गर्भवती होने के बाद कहोड़ वेदों के श्लोकों का गलत पाठ कर रहे थे। तब गर्भस्थ शिशु ने कहा, 'पिताजी आप गलत वेद् पाठ कर रहे हैं।' पिता क्रोधित हो गए। बोले ' तू गर्भ से ही मेरा अपमान कर रहा है, इसलिए तू आठ स्थानों से वक्रीय (टेढ़ा) पैदा होगा।' पैदा होने पर अष्टावक्र आठ स्थान से टेढ़े थे, इसलिए उनका नाम अष्टावक्र पड़ा। इस कथा से यह निष्कर्ष निकलता है कि यदि गर्भ में पल रहे शिशु को गलत शिक्षा दी गई तो वह विकारग्रस्त भी पैदा हो सकता है।


महाभारत के इस प्रसंग में खास बात यह भी है कि अर्जुन गर्भस्थ शिशु को बलपूर्वक शिक्षा नहीं दे रहे हैं,बल्कि पत्नी सुभ्रद्रा के हठ के चलते चक्रव्यूह भेदने की गोपनीय विधि सुना रहे हैं। यदि सुभ्रदा को यह भान होता कि गर्भस्थ शिशु चक्रव्यूह भेदने के गुर सीख रहा है तो वे सोती नहीं और अर्जुन भी उन्हें सोने नहीं देते। गोया, अनजाने में दी जा रही शिक्षा अधूरी नहीं रहती। यदि जन्मने के बाद चक्रव्यूह भेदने के अधूरे ज्ञान को अभिमन्यु गुरु या पिता से पूरा ज्ञान ले लेते तो शायद वे चक्रव्यूह में प्रवेश के बाद उलझकर काल की गति को प्राप्त नहीं हुए होते। दरअसल द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना इतनी जटिल की है की इसमें एक चक्र जिस दिशा में गोल घूमता है, उसके भीतर वाला चक्र विपरीत दिशा में गोल घूमता है। अतः व्यूह तोड़ने को उद्धत योद्धा विपरीत दिशा के लड़ाकों से घिर जाता है और मारा जाता है। गोया, अभिमन्यु तो इसे संयोगवश सुनता है और सुनाए हिस्से को स्मृति से विलोपित नहीं होने देता और अंततः धर्म आधारित मूल्यों की रक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त होता है। इस प्रसंग से यह संदेश मिलता है कि सहजता से दी गई सीख बच्चों की स्मृति में आसानी से जगह बना लेती है। क्योंकि सहज शिक्षा से बच्चों का मन खुलता व खिलता है। लेकिन गुस्से के आवेग में या कुटिल मन से दी गई सीख का परिणाम अष्टावक्र की तरह भी निकल सकता है।


     देश के कई पेरेंटस ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में गर्भवती महिलाओं को यह शिक्षा कंप्युटर आधारित तकनीक के जरिए दी जा रही है। वैज्ञानिक अनुसंधान ऐसा दावा करते हैं कि गर्भ के तीसरे महीने से शिशु में शिक्षा या संस्कार आत्मसात करने की क्षमता विकसित होने लगती है। क्योंकि इस समय तक शिशु की मस्तिष्क कोशिकाएं, आंखे और श्रवण-इंद्रियां विकसित हो जाती हैं। मां के हाथ का स्पर्श भी शिशु अनुभव करने लगता है। मसलन उसकी संवेदनशाीलता भी जीवंत होने लगती है। इसलिए शिक्षा देने की तकनीक के जरिए शिशु के मस्तिष्क और आंख के बीच की जो रक्त-शिराएं होती हैं, उनमें परस्पर अल्पविकसित अवस्था में समन्वय बिठाने का काम यह तकनीक करती है। इन सुप्त पड़ी शिराओं पर लेजर किरणों के जरिए वाष्पित ऊर्जा का संचार किया जाता है। जो दिमाग,आंख और कान के मार्ग में आने वाली सुप्त पड़ी कोशिकाओं को जागृत करती है। यह जागृति आते ही शिशु दृश्यों को समझने लगता है। तकनीकी शिक्षा की भाषा में इस प्रक्रिया को 'विजुअल आई पाथ वे स्टीम्युलेट'कहते हैं। इसके बाद शिशु को मां पेट पर हाथ रखकर लिखे हुए शब्द और अंक फ्लैश व डॉट कार्ड के जरिए पढ़कर जोर-जोर से सुनाती है, जैसे कोई पाठ बोल कर रटा रही हो। लेकिन यहां खतरा यह भी है कि इस पथ की कोशिकाओं को कहीं गलती से ज्यादा ऊर्जा मिल गई तो ये जलकर खाक हो सकती हैं और फिर इन्हें जीवित नहीं किया जा सकता है। यह स्थिति शिशु के दिमाग,दृष्टि और सुनने की क्षमता, तीनों को समान रुप से प्रभावित कर सकती है।
    

यह सही है कि वर्तमान परिदृश्य में शिक्षा प्रत्येक क्षेत्र की बुनियाद है। शिक्षा के बिना न तो व्यक्त्वि का संपूर्ण विकास संभव है और न ही बिना शिक्षा के व्यक्ति व्यवस्था में आवश्यक हस्तक्षेप कर सकता है। लेकिन क्या शिक्षा की ऐसी होड़ आवश्यक है कि प्राकृतिक रूप से विकसित हो रहे गर्भस्थ शिशु को भी शिक्षा ग्रहण करने के लिए विवश कर दिया जाए ? दरअसल यह सब तकनीकी उपकरण खपाने के लिए शिक्षा का नया व्यावसायिक ढांचा खड़ा करने के उपाय लगते हैं। क्योंकि तकनीक द्वारा सिखाई सीख को मनुष्य द्वारा सिखाई जाने वाली सीख से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण माना जा रहा है। जबकि अर्जुन किसी तकनीक का सहारा नहीं लेते, हैं। यह नहीं भूलना चाहिए कि मशीन प्रशिक्षु को उतना ही सिखाएगी जितनी उसमें डाटा की फीडिंग की गई है। मशीन द्वारा सिखाई जाने वाली कृत्रिम बौद्धिकता उससे आगे नहीं जा सकती ? बल्कि ऐसे कथित प्रयासों से विद्यार्थी में जो वास्तविक अथवा मौलिक बौद्धिक सोच है,उसके कुंठित या पंगु हो जाने के खतरे बढ़ जाते हैं। वैसे भी विचार हृदयहीन मशीन से उत्सर्जित नहीं होते हैं, उनके प्रगटीकरण के लिए संवेदनशील भावभूमि की उर्वरता जरूरी है।


     कंप्युटर आधारित तकनीकी शिक्षा के परिप्रेक्ष्य में हम बिल गेट्स का उदाहरण ले सकते हैं। बिल उच्च शिक्षित नहीं थे। गणित और विज्ञान विषयों में वे कमजोर थे। लेकिन वे बिल गेट्स ही थे, जिन्होंने कंप्युटर के माइक्रोशॉप्ट यानी कृत्रिम बुद्धि का विकास किया। बिल की जीवन गाथा पढ़ने से पता चलता है कि वे जब कॉलेज से घर आते थे तो अपनी किताबें टेबिल पर पटककर गैराज में चले जया करते थे। घंटों ध्यानमग्न ,वहीं बैठे रहते थे। एक दिन जब मां ने गेट्स को भोजन के लिए पुकारा तो गेट्स ने कुछ सुना नहीं। तब मां ने बगल में जाकर पूछा ' बिल तुम ऐसे शांत क्यों बैठे हो ?' बिल ने उत्तर दिया, 'मां मैं कुछ विचार कर रहा हूं।' यही एकाग्रता विचारों की वह संचित सोच थी, जिसने कंप्युटर की बुद्धि को विकसित किया। जबकि गैराज में न कंप्युटर था और न ही पुस्तकालय। मसलन मनुष्य की स्वाभाविक मानवीय बौद्धिकता ही कृत्रिम बौद्धिक यंत्र को गढ़ने में सहायक बनी। जाहिर है, यदि बिल भिन्न-भिन्न शिक्षा पद्धतियों से महज गणित और विज्ञान सीखने में लगे रहते तो न तो माइ्रक्रोशॉफ्ट बनाने में सफल हो पाते और न ही आज विश्व के अमीर लोगों में से एक होते।


     कृत्रिम बौद्धिकता के ऐसे खतरों को हमारे शिक्षाविद् डॉ राधाकृष्णन और पंडित मदनमोहन मालवीय ने बींसवी सदी की शुरूआत में ही भांप लिया था। इसलिए डॉ राधाकृणन ने सरकारी नौकरियों में उपाधियां मसलन डिग्रियों के महत्व को नकारा था। उनका मानना था कि डिग्री के बजाय अभ्यर्थी से विषय की परीक्षा लेनी चाहिए। यदि कोई व्यक्ति संबंधित विषय में पारंगत है,तो नौकरी में ले लेना चाहिए। मालवीय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा की डिग्री नहीं होने के बावजूद रामचंद्र शुक्ल (इंटर),बाबू श्यामसुंदर दास (बीए) और अयोध्या सिंह उपाघ्याय'हरिऔध' (मिडिल) को उनकी विषयजन्य योगयता के आधार पर ही विवि में प्राध्यापक बनाया था। इसी तरह देवेंद्र सत्यार्थी को 'आजकल' का संपादक बना दिया गया था। इंडियन एक्प्रेस समूह के मालिक रामनाथ गोयनका ने महज योग्यता के बूते ही दसवीं पास प्रभाष जोशी को पहले 'इंडियन एक्सप्रेस' और फिर 'जनसत्ता' का संपादक बनाया था। वे प्रभाष जोशी ही थे, जिन्होंने हिंदी पत्रकारिता को नए तेवर दिए और दिल्ली में बहिष्कृत पड़ी हिंदी पत्रकारिता को अंग्रेजी पत्रकारिता के समतुल्य स्थान दिलाया।


     अमेरिका के प्रसिद्ध शिक्षाविद् निकोलस कार अपनी पुस्तक 'द श्लोज' में कहते हैं कि 'हम चीजों को टुकड़ों में देखने,खानों में बांटने और रूढ़ प्रतीकों को समझने में तो दक्षता प्राप्त कर रहे हैं लेकिन स्मरण शक्ति, शब्द भंडार, सामान्य ज्ञान और मामूली गणित में काफी पिछड़ गए हैं। इन क्षेत्रों में हम आज वहीं है जहां सौ साल पहले थे।' हमारे यहां भी रामानुजम जैसे गणितज्ञ, जगदीश चंद्र बसु एवं चंद्रशेखर वेंकटरमण जैसे वैज्ञानिक 85-90 साल पहले ही हुए थे। प्रसिद्ध शिक्षाविद् और कांग्रेस नेता जनार्दन द्विवेदी इन्हीं चिंताओं की व्याख्या करते हुए कहते हैं,'टेक्नोलॉजी के तमाम उपकरण और कंप्युटर दिमाग को मशीन की तरह प्रयोग में लाने वाली वस्तु बना देते हैं। इसमें आंकड़े, प्रतीक और खांचे होते हैं। आप मशीन की तरह,एक छोटे पुर्जे के रुप में उससे जुड़ जाते है। सवाल उठता है कि क्या नई प्रोद्यौगिकी मसलन इंटरनेट हमारे पढ़ने और सोचने की क्षमता को प्रभावित कर रहा है। कभी-कभार ऐसा भी लगता है कि हम बहुत तेजी के साथ नईदुनिया में जाने के चक्कर में रास्ता भटक रहे हैं, क्योंकि आशंका यह भी हैं कि अतिमशीनीकरण, सोचने-समझने, विचार करने और गहराई में उतरकर चीजों को देखने की हमारी क्षमता को लगातार शिथिल करते हुए कहीं हमें पंगु न बना दे।' इसी आशंका के चलते निकोलस कार ने आगाह किया है कि 'यदि ऐसा चलता रहता है तो कृत्रिम बौद्धिकता मशाीन में नहीं, मनुष्य में होगी।' गर्भ में अल्प विकसित शिशु को हठपूर्वक ज्ञानी बनाने की दी जा रही शिक्षा, बालक की प्रकृति प्रदत्त मेधा को नष्ट करने के उपायों के अलावा कुछ नहीं है। लिहाजा बौद्धिकता बढ़ाने वाली इस कथित तकनीकी शिक्षा से बचने की जरूरत है।



प्रमोद भार्गव
लेखक@पत्रकार
शब्दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी म.प्र.
मो. 09425488224,09981061100

   
लेखक प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार हैं।

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: गर्भ-शिक्षा के बढ़ते प्रचलन का औचित्य // प्रमोद भार्गव
गर्भ-शिक्षा के बढ़ते प्रचलन का औचित्य // प्रमोद भार्गव
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjIe3oT5WjoP0JnOibeL4SpJ-1hVXIC6bwAi1Y6mYog0OUJjPS_KEig00QycGYUdUJmKQCJhwrrx5k5FTyzL6FOf0wuZmbRek_UykJbqTWXhqw072meQLiUUNUJvj4XaZ4Sa3sD/?imgmax=200
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjIe3oT5WjoP0JnOibeL4SpJ-1hVXIC6bwAi1Y6mYog0OUJjPS_KEig00QycGYUdUJmKQCJhwrrx5k5FTyzL6FOf0wuZmbRek_UykJbqTWXhqw072meQLiUUNUJvj4XaZ4Sa3sD/s72-c/?imgmax=200
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/07/blog-post_87.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/07/blog-post_87.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content