समीक्षा // उपन्यास - हरिप्रिया // मधु संधु

SHARE:

समीक्षक - मधु संधु हरिप्रिया उपन्यास कृष्णा अग्निहोत्री ‘हरिप्रिया’ कृष्णा अग्निहोत्री का 2018 में आया ऐतिहासिक, जीवनीपरक, नायिकाप्रधान उपन्...

समीक्षक - मधु संधु


हरिप्रिया

उपन्यास

कृष्णा अग्निहोत्री


‘हरिप्रिया’ कृष्णा अग्निहोत्री का 2018 में आया ऐतिहासिक, जीवनीपरक, नायिकाप्रधान उपन्यास है। उपन्यास मध्ययुग की राजकन्या-राजरानी, कवयित्री, कृष्ण भक्त मीरा के जन्म से मृत्यु तक का समय सहेजे है। सुधाकर अदीब का ‘रंगरांची’, महेंद्र मित्तल का ‘ मीराबाई’, अँग्रेजी और मराठी के रचनाकार किरण नागरकर का ‘ककल्ड’ भी मीरा की संघर्ष यात्रा को केन्द्र में रख कर लिखी गई औपन्यासिक रचनाएँ हैं। कृष्णा अग्निहोत्री का ‘हरिप्रिया’ अपने अस्तित्व के लिए स्पेस खोज रही, विसंगतियों- असंगतियों से घिरी उस मध्यकालीन स्त्री की कहानी है, जिसके पास आज के स्त्रीवादी चिंतन जैसा बुद्धि-विवेक, भाव-विचार, लक्ष्य और चेतना है।

यह उपन्यास विशेषत: पठनीय है- क्योंकि यह ऐतिहासिक दस्तावेज़ भी है, भक्ति- दर्शन की व्याख्या भी और शोध ग्रंथ भी। मीरा का समय सामाजिक दृष्टि से सामंत काल, साहित्यिक दृष्टि से भक्तिकाल, राजनैतिक दृष्टि से मुगल- राजपूत काल था। वे भक्ति की दृष्टि से कृष्ण-प्रिया/ उपासिका, सामाजिक दृष्टि से जागरण की संदेश वाहिका और साहित्यिक दृष्टि से गीत-संगीतकार थी। विरोधाभास यह है कि तब सामंत पुरुष शिकार, युद्ध, मदिरा और स्त्रियाँ श्रृंगार, चौसर में व्यस्त रहती थी।

उपन्यास नायिका प्रधान है। मीरा के जन्म से लेकर मृत्यु तक की कथा समेटे है। जबकि इसमें कोई तीन-चार दर्जन पात्र हैं- मीरा, रूप गोस्वामी, गुरु परमानन्द स्वामी, रसिक हरिदास, गौड़ीय सम्प्रदाय के जीव गोस्वामी, पिता रतनसिंह दूदावत, माँ ताकणी कुसुब कॅवर, भाई जयमल (ताए का बेटा), चचेरी बहन कृष्णा, नाना हमीर, बलवीर, रणवीर, सांवरमल पन्ना, मेवाडाधिपति राणा सांगा, मीरा के पति भोजराज, सौतन पासवान, करौती, रेवती, देवर विक्रमजीत, मीरा के जेठ रत्नसिंह सांगावत, सास कुँवरबाई सोलंकी/ करमावती, धनबाई, ननद ऊदा, वीरमदेव, दादा राव दूदा, महारानी रतनकुंवर, सूरजमल, सिसौदिया वंश की रानी जवाहरबाई, रोहणी, जोधाबाई, नौकरानी चंद्रा, कुसुम, मिथिला, ललिता, भक्त अंतो, राजू, भीम सिंह, संग्राम सिंह, प्रियदर्शी कबूतर आदि । पाठक पात्रों की इस भीड़ में उलझ भी सकता है, लेकिन रचना को ऐतिहासिक न्याय दिलाने के लिए यह अनिवारी था।

लेखिका ऐतिहासिक मुद्दों की तह तक गई है और उनके गहन अध्ययन के कारण ऐतिहासिक तथ्यों से कोई छेड़-छाड़ नहीं मिलती। 16वीं 17वीं शती के उस काल में राजनैतिक अस्थिरता ऐसी थी कि मुगल और पठान देश में घर कर चुके थे और राजपूत शासक पारस्परिक झगड़ों में उलझे थे। राणा सांगा द्वारा गुजरात पर आक्रमण, विकर्मी संवत 1583 में बाबर के विरुद्ध युद्ध, (जिसमें राणा सांगा तो बच गए, पर मीरा के पिता रत्न सिंह मारे गए) बाबर और इब्राहम लोदी के बीच युद्ध। बहादुर शाह द्वारा गुजरात से चित्तौड़ को घेर वहाँ रसद न पहुँचने देना और राजपूतों द्वारा केसरिया पगड़ी पहन लड़ते-लड़ते प्राण देना और रानियों का जौहर की ज्वाला में जलना- ऐतिहासिक तथ्य हैं। राजपूतों में आपसी वैमनस्य भी बढ़ रहा था। राजस्थान के छोटे- छोटे टुकड़े हो रहे थे। जर- जोरू के इसी झगड़े के कारण उदयपुर की राजकुमारी कृष्णा को विष का प्याला पीना पड़ा। आमेर के राजा ने राजनैतिक कारणों के चलते बेटी जोधा की अकबर से शादी पक्की कर दी। मीरा की आठ पत्नियों की सेना रखने वाले ऐय्याश भोजराज से शादी हुई। राजनीति के लिए, दोनों राज्यों के संबंध पक्के करने के लिए स्त्री को बलि का बकरा बनाया जाता था।

‘हरिप्रिया’ एक स्त्री के, राजकुमारी- राजरानी के जीवन संघर्ष की गाथा और उस युग का दर्पण है। वह पुरुष सत्ताक सामंतीय काल था। सामन्तीय व्यवस्था का वैभव और तिरस्कार दोनों ही मीरा के हिस्से आए। वे नारी विमर्श, नारी मुक्ति, नारी स्वतन्त्रता और नारी सशक्तिकरण की प्रथम नेत्री हैं। उन्होंने बाल विवाह, सती प्रथा, बहु पत्नीत्व, बलात्कार, जाति भेद जैसी कुप्रथाओं, सामाजिक बुराइयों का आज की समाज- सुधारक स्त्री की तरह जमकर विरोध किया। छोटी उम्र में ही माता-पिता के स्वर्ग सिधार जाने के बावजूद मीरा ने बाल विवाह का विरोध किया और अठारह की होने पर ही सहमति दी। जैसे रोज मारने- पीटने वाले पति की मृत्यु होते ही बाजों- गाजों के साथ केतकी को सती करने का उपक्रम किया जाता है, वैसे ही भोजराज की मृत्यु होते ही मीरा पर सती होने के लिए दबाव बनाया जाता है। उपन्यास बताता है कि उस सामंत काल में जो विधवाएँ सती नहीं होती थी, उन्हें अशुभ माना जाता था। वे सफेद वस्त्र पहनती थी। एक समय ही भोजन मिलता था। त्योहारों पर उन्हें कमरे में बंद कर दिया जाता था। सती न होने वाली स्त्री के लिए मानसिक और शारीरिक शोषण की पाश्विक प्रवृतियों से बच पाना असंभव था। मानों औरत होना ही अपराध और पाप था। सती के नाम पर होने वाली हत्याओं का मीरा ने सारे-आम विरोध किया। सैनिक महल की छत पर ले जाकर मिथिला से बलात्कार करते हैं और वह उसी छत से कूदकर आत्महत्या कर लेती है। युगीन राजाओं की अनेक पत्नियाँ थी। मीरा ने जाना कि रानियों के आपसी ईर्षा द्वेष और अपने- अपने बेटे को राजा बनाने के षड्यंत्र राज्यों को कमजोर कर रहे थे। उन्होंने कन्या हत्या का भी विरोध किया।

कृति चरित्र प्रधान, नायिका प्रधान है। मीरा राजकुल से थी। राठौर वंश की बेटी और राणा सिसौदिया वंश की बहू। शास्त्रीय संगीत, नृत्य, तलवार, घुड़ सवारी में पारंगत थी। मुँह दिखाई में ही ससुर ने तीन हजार आमदन वाले तीन परगने उसके नाम कर दिये थे और पति ने कक्ष के समीप कृष्ण मंदिर बनवा दिया था। राजपाट था उनके पास। फिर भी मीरा उच्च कुल की होते हुए भी निम्नवर्ग एवं दलितों के बीच रही । अपनी जागीर की आय से किसानों को भोजन करवाती थी। मीरा के आराध्य कृष्ण की प्रेयसी राधा राजा वृषभानु की बेटी थी और कृष्ण ग्वाले, ऐसे में मीरा जाति भेद कैसे मानती। जातिभेद छोड़ उन्होंने दास- दासियों के लिए मंदिर के पट खोले, उनके यहाँ भोजन किया। कृष्ण ग्वाल थे और मीरा को भी ग्वालों से खूब सम्मान और स्नेह मिला। समाज सुधार की बातें तो भक्तिकालीन कबीर, नानक, रैदास, दादू भी कर चुके थे, लेकिन सामन्तीय राजपरिवार, उच्चकुल का हिस्सा होकर, स्त्री होकर जाति पांति न मानना मीरा की आत्मशक्ति का पर्याय है। मीरा ने भारत के दीन- दुखी समाज को कृष्ण संकीर्तन द्वारा एक सूत्र में पिरोने का असम्भव काम किया। मीरा की कविता को कृष्णा अग्निहोत्री ने गहराई से समझा है।

मीरा के मायके की पूरी आस्था वैष्णव धर्म पर थी, जबकि ससुराल में शिव पूजन होता है। वह तो मानों भोजराज से विवाह से पहले ही कृष्ण मूर्ति के संग फेरे ले चुकी थी। बालपन में ही उसे रूप गोस्वामी और सालिग्राम की मूर्ति से प्यार हो गया था। मीरा की भक्ति परकीया नहीं, स्वकीया भाव की थी। राजकुमारी मीरा के सांसारिक विराग, कृष्णानुराग, निर्गुण भक्ति को उपन्यासकार ने योगी रूप गोस्वामी की ओर मोड़ दिया है। बचपन से ही( बारह वर्षीय) मीरा के मन में माधुर्य का यह भाव- अनुराग पल रहा था। “जोगी न जा न जा”, “सखी मेरी नींद नसानी” जैसे गीत उसी विरह की अभिव्यक्ति हैं, जो कालान्तर में कृष्ण प्रेम में परिणित हो गया। “मैं तो साँवले रंग राती।” पंडितों ने भी उनके भजन-कीर्तन का बहिष्कार किया, लोगों को उनके पास आने से रोका। आश्चर्य कि लोगों को मीरा के कीर्तन नृत्य पर चिंता थी, लेकिन महावीर की नग्नता पर उन्हें कोई चिंता नहीं थी। निंबार्क, विष्णु स्वामी, वल्लभ सम्प्रदाओं में सम्मिलित करने हेतु आमन्त्रित किया गया। जबकि मीरा ने न किसी सम्प्रदाय में दीक्षा की, न कोई साधना पद्धति अपनाई। मीरा का सम्प्रदाय मानवता था। वे न बाल कृष्ण की उपासिका थी और न राधा थी। वे योगिराज कृष्ण की उपासिका थी। योग में भी उनकी पूरी रूचि थी। धर्म और धर्मांधता का अंतर वे समझती थी।

रजवाड़ों की शौर्य गाथाएँ और षड्यंत्र यहाँ एक साथ चित्रित हैं। मीरा ने सशक्त सामंतीय युग से टक्कर ली थी। पारिवारिक यातनाएं भी कम नहीं थी। कड़क सास को न मीरा की कृष्ण भक्ति पसंद थी, न शाकाहारी होना और न गीत गाना, न दासियों से मित्रवत व्यवहार करना। वह उससे सामिष भोजन बनवाती है, अपनी कुलदेवी की पूजा के लिए कहती है, ताने-व्यंग्य से पीड़ित करती है। ऐसी स्त्री की उस काल में क्या नियति थी ? महलों को छोड़ मंदिरों को आवास बनाया। बार बार मीरा को अग्नि परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। उसे गंवार, कुल कलंकिनी, ऐय्याश, घुम्मकड़, रास क्रीड़ा में संलिप्त रहने वाली कहा जाता है। बचपन में माँ बाप गए, फिर पति गया। मीरा: मध्यकाल की एक स्त्री, जिस के विरूद्ध अपनों ने ही बलात्कार और हत्या की साजिशें रची। साधु वेश में राजपूत सैनिकों, अंग्रेज़ गुप्तचरों, पंडितों, गोरखपंथियों, ग्रामीणों को शीलहरण के लिए भेजा गया। देवर विक्रमादित्य ने वृन्दावन के संपेरों द्वारा फूलों की डलिया में साँप भेज कर डसवाने की कोशिश की। एक ग्वाले के हाथ विष का प्याला भेजा। मीरा के घोड़ों को विष देकर मार दिया गया। उनके लिए कृष्ण की मूर्ति बनाने वाले शिल्पकार का हाथ काट दिया गया।

मीरा को देवावतार बताने, अलौकिकता से जोड़ने के लिए उपन्यासकार ने कुछ परामनोवैज्ञानिकता प्रसंग भी लिए हैं। जैसे मीरा के जन्म से पहले ही उसकी माँ को स्वप्न में कमल और सिंह, त्रिशूल आर घट हाथी दिखने लगे थे। मीरा को स्वप्न में लगातार हरि का कृष्ण रूप दिखता है। वे हँसते और मुरली बजा कर मीरा को पास बुलाते हैं। मीरा के चारों ओर एक दिव्य चक्र सा रहता था, जिसे पार करने में भोजराज असमर्थ थे। समाधि और योग में भी मीरा व्यस्त रहती थी। मीरा मूल नक्षत्र में पैदा हुई थी, इसलिए पिता पर भारी थी।

उपन्यासकार ने मीरा को पर्यावरण सजग स्त्री बताया है। कुड़की के मंदिर में मीरा ने तुलसी के अनेक पौधों का रोपण किया। तुलसी पर्यावरण संतुलित करती है, इसीलिए मीरा भक्तों एवं संतों को तुलसी के पौधे वितरित किया करती थी। उसे अपनी घोड़ी से अत्याधिक प्रेम था। लिखवाया था कि इसकी संतान कहीं न बेची जाये।

यहाँ वहाँ बिखरे सूत्र वाक्य उपन्यास के विचार सौन्दर्य को पुष्ट करते हैं। जैसे –

1. जब हम भावनाओं से पराजित होते हैं तो सच्ची भावनाओं से जुडते हैं।

2. अभाव से ही भाव का जन्म होता है और अमंगल से ही मंगल फूटता है।

3. गर्मी में सावन मनभावन होता है और शिशिर में धूप की किरणें सुखदायक होती हैं।

4. राजनीति और रणनीति दोनों के अपने अपने धर्म हैं।

5. शासक जाति –पाति एवं धर्म को ही नहीं, ईश्वर तक को भी देखेगा

6. लाज, शर्म, लिहाज, अनुशासन- ये सब मानसिक चेतना हैं।

7. आस्था का सम्बन्ध मन से है। मन को कोई राजा न शौर्य, न तलवार से जीत सकता है।

8. मनुष्य में यदि विवेक, सोच, ज्ञान हो, तो वह सम्पूर्ण मानव बन सकता है।

9. स्त्री को कमजोर, निरीह बनाना हो तो उसे कुलटा, चरीत्रहीन सिद्ध कर इन्हीं अलंकारों से विभूषित कर दो, बेचारी जीते-जी इस झूठ को असत्य सिद्ध करने में ही मर खप जाएगी।

10. मोक्ष किसी कर्मकांड से नहीं, मन की चेतना से मिलता है।

चुनौतियों ने मीरा को आंतरिक शक्ति दी। स्त्री होने की सज़ा वे जीवन भर भुगतती रही। अपने विद्रोही आंदोलन की मीरा जनक भी थी और संचालिका भी। उन्होंने सशक्त सामंती युग से टक्कर ली थी। राष्ट्र निर्माण में स्त्री की भूमिका देते, शोषक व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष करते, संघर्षचेता स्त्री का चित्रण करते मानों इस युग के नज़रिये से कृष्णा अग्निहोत्री ने उस युग की बात की है। मीरा ने सामाजिक रूढ़ियों से अहिंसात्मक लड़ाई लड़ी। न गौरी पूजन किया, न परदा प्रथा मानी, न सती हुई। परंपरा रूपी इन असुरों को नष्ट करने के प्रयास किए। उस सामंत काल में भी राजाज्ञा न मान अपने सिद्धांतों पर अडिग रही। शिव भक्त परिवार में शादी होने पर भी कृष्ण प्रेम के प्रति पूर्णत: समर्पित रही। विवाहिता होते हुए भी दाम्पत्य धर्म के प्रति अनासक्त रही। राजमहलों का ऐश्वर्य पाकर भी वैरागिन रही, आतंक में भी संत्रासमुक्त रही। उपन्यास में अनेक ऐसे प्रसंग आते हैं कि मानवता की पुजारिन मीरा हमें असत्य, रूढ़िवादिता, अत्याचार, जीवनघाती रूढ परम्पराओं का खुलकर विरोध करती दिखाई देती है। वह स्त्री जिसके नाम से उसके पति की पहचान होती है- भक्तिकाल की श्रेष्ठ कवयित्री और निर्बल राजा की पत्नी। उपन्यास में परिच्छेद वितरण का कोई विधान नहीं है। एक सहज तारतम्य से कथा चलती जाती है। उपन्यास मीरा के गीतों से भरा पड़ा है। वे इकतारे के साथ गीत गाती थी। इन गीतों की भाषा राजस्थानी है। इस उपन्यास को लिखते समय इतिहास के साथ न्याय किया गया है। उपन्यासकार के गंभीर अध्ययन से पाठक पल-पल परिचित होता है। ऐतिहासिक उपन्यास लिखना दूसरे उपन्यासों से कहीं कठिन है। बातचीत में कृष्णा अग्निहोत्री जी ने बताया कि उपन्यास का लेखन काल कोई डेढ़ वर्ष लंबा रहा।

पुस्तक: हरिप्रिया

लेखिका: कृष्णा अग्निहोत्री

प्रकाशक: विद्या विहार, नई दिल्ली

पृष्ठ: 166

मूल्य: 300/-

-------

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: समीक्षा // उपन्यास - हरिप्रिया // मधु संधु
समीक्षा // उपन्यास - हरिप्रिया // मधु संधु
https://lh3.googleusercontent.com/-NxU1onGSEIY/Vy4eE4B2z-I/AAAAAAAAtfw/XW-P4mpqpVM/image_thumb.png?imgmax=200
https://lh3.googleusercontent.com/-NxU1onGSEIY/Vy4eE4B2z-I/AAAAAAAAtfw/XW-P4mpqpVM/s72-c/image_thumb.png?imgmax=200
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/09/blog-post_79.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/09/blog-post_79.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content