भारतेन्दु हरिशचन्द्र – समसामयिक नाटककार (“अंधेर नगरी” के परिप्रेक्ष में) – डा. रानू मुखर्जी

SHARE:

भारतेन्दुजी अपने ही युग के निर्माता नहीं थे, समकालीन साहित्य के लिए भी एक अप्रतिम उदाहरण और आदर्श है. देश काल की सीमा से परे उनका साहित्य, स...

Ranu photo

भारतेन्दुजी अपने ही युग के निर्माता नहीं थे, समकालीन साहित्य के लिए भी एक अप्रतिम उदाहरण और आदर्श है. देश काल की सीमा से परे उनका साहित्य, साहित्य के द्वारा मनुष्य को जानने, देश के चरित्र और संस्कॄति की पहचान करने – कराने का माध्यम है. आलोचकों ने अगर कबीर को पहला युगप्रवर्तक कहा है तो उन्हें दूसरा, क्योंकि दोनों में ही अपने को मर मिटाने की भावना, क्रान्ति की चेतना और अपने ही वर्ग और वातावरण को, विदेशी सत्ता को भी और उसके साथ साथ स्वयं अपने देशवासियों की मानसिकता को बेबाक ढंग से कह देने की जिन्दादिली और निर्भीकता थी.

इस प्रकार से भरतेन्दुजी के लिए साहित्य एक जरिया था और एक पूरा आन्दोलन था स्वाधीनता आन्दोलन, भाषा आन्दोलन, सांस्कृतिक आन्दोलन, साहित्यिक आन्दोलन, सामाजिक आन्दोलन, धार्मिक आन्दोलन, रंगमंच आन्दोलन.

इसलिए बालमुकुन्द गुप्त जी ने उनके लेखन को तेज, तीखा बेधड़क लेखन कहा और समीक्षक डो. रामविलास शर्मा जी ने उन्हें हिन्दी नवजागरण और प्रगतिशील चेतना से जोड़ा है. वस्तुतः भरतेन्दुजी ने छुआछूत, विधवा-विवाह, अनमेल विवाह, नारी व्यक्तित्व आदी विषयों पर खुलकर लिखा, बल्कि प्रेमचन्द्र और निराला की भाती पुरानी घिसी-पिटी मान्यताओं को सडीगली धारणाओं को और पिछड़ेपान को आलोचनात्मक दृष्टि से देखना सिखाया. जनता के सुखदुःख, उनकी निरक्षरता, निर्धनता और उनके मनोरंजन सभी तत्वों के प्रति वो सजग थे और जनसाधारण में अति लोकप्रिय थे. वह जनता के हितैषी थे और उनके लेखक - अभिनेता रुप को जनता पहचानती थी. साहित्य और जनता का यह निकट का संबंध समकालीन साहित्य को एक दिशा दिखाता है.

[post_ads]

भारतेन्दु जी ने हिन्दी की कई विधाओं में से आलोचना की भी नींव डाली है. उनका “नाटक” एक प्रकार से नाट्यक्षेत्र में हिन्दी-आलोचना का महत्वपूर्ण दस्तावेज कहा जा सकता है. इस रचना में लेखक ने अपने अध्ययन, अनुभव, चिन्तन और अपनी उन्मुक्त विचारधारा को व्यक्त किया है. नाट्यरचना के संदर्भ में उनका कहना है, “मनुष्य की परिवर्तनशील स्वभाव को ध्यान में रखकर नाटक लिखे”.

अपनी बहुमुखी व्यक्तित्व के साथ भरतेन्दुजी ने नाट्यरचना के क्षेत्र में अपनी अद्भुत रचनाशीलता का परिचय दिया, नाटक उनकी प्रमुख विधा लगती थी केवल इसलिए नहीं की वे एक अभिनेता एवं निर्देशक थे बल्कि इसलिए भी कि क्रान्ति और नवजागरण, संस्कार और सुधार की नजर से जनता के लिए वह नाटक को सबसे सशक्त माध्यम समझते थे. दॄश्यकाव्य और साक्षात्कार होने के कारण उसकी प्रभावशीलता बढ जाती है उन्होंने प्रचुर नाट्य साहित्य की रचना की जो मौलिक भी है और अनूदित भी, सामाजिक, ऐतिहासिक, पौराणिक विविध विषयों को लेकर उन्होंने अपनी आधुनिक विचारधारा को ही व्यक्त किया हे.

उनकी नांट्य रचनाए -

वैदिकी हिंसा – हिंसा न भवति , प्रेमजोगिनी, विषम्य विषमौषधम , चन्द्रावली, भारत- दुदर्शा, नीलदेवी, अंधेर-नगरी, सती-प्रताप, विद्यासुन्दर (बांग्ला से रुपंतरित), सत्य हरिश्चन्द्र (संस्क्रृत से रुपान्तरित) इसके साथ ही अनूदित नाटकों की भी एक लंबी माला है.

भारतेन्दुजी ने बडी तीव्रता के साथ नाट्य की कलागत विशेषताओं को पुरी तरह समझा ही नहीं, उसके लिए सामूहिक और योजनाबद्ध ढंग से एक संपूर्ण आन्दोलन की तरह काम किया. मंडली की स्थापना करके अभिनेता और निर्देशक के रुप में उनकी सक्रियता इसे प्रमाण करती है. भारतेन्दुजी अपने युग की भारतीयता और आधुनिकता -दोनों संदर्भों में नाटक और रंगमंच की प्रकृति, नाट्य भाषा, लोक जीवन और लोकगीतों की सरसता के प्रति जागरूक थे हिन्दी के अपने नाट्यशास्त्र, नाट्य समीक्षक के मानदंडो के प्रति वे सतर्क थे. उनके सामने बहुत से प्रश्न एक साथ थे- नाट्यलेखन, अनुवाद, प्रदर्शन, राष्ट्रीय चेतना का विकास, लोक रुचि का परिष्कार फारसी थियेटर के विरुद्ध लडाई. वह निरंतर थियेटराना जगत से अलग नई नाट्य-परंपरा, भिन्न नाट्यशिल्प और हिन्दी रंगमंच की स्वतंत्र विकास परंपरा के प्रति संघर्षशील रहे. जनजीवन में गहरी पैंठ, सतर्क दृष्टि और संवेदनशीलता ने भारतेन्दु के नाटकों में ऐसी नाट्यभाषा और तिलमिला देनेवाले व्यंग्य को जन्म दिया जो लोकमानस से टकराने की शक्ति रखती थी. भारतेन्दुजी के पास विलक्षण रंग व्यक्तित्व, अद्भुत संवेदनशीलता और संगठनशक्ति थी. संकेतिकता, प्रतीक, लोकतत्व, संगीत, लय, व्यंग्य -आज के नाटक के सारे पक्ष उनके नाटक में मौजूद है.

अपने युग में भी नाट्यविधा और उसकी रंगमंचीयता को जितनी दृढ़ता के साथ भारतेन्दुजी ने पहचाना और उसे उदाहरण के रुप में प्रस्तुत किया वैसा शायद ही किसी अन्य नाटककार ने किया है. वह मानते थे कि “कला वास्तविक उन्नति का आधार है.” लेकिन इससे भी चिंतित थे कि हिन्दी का कोई रंगमंच नहीं है. अभिनेता, निर्देशक, अनुवादक, नाट्य समीक्षक के रुप में उन्होंने अपने प्रतिनिधि मंडल के साथ संगठित कार्य आरम्भ किया. उनके अभिनय रुप से उनके व्यक्तित्व की नाटकीयता से जनसमूह परिचित था.

“जानकी मंगल” नाटक में १८६८ ई. में बनारस में अभिनय किया और उस थियेटर में लक्ष्मण की भूमिका मे अभिनीत करके अपनी अभिनय प्रतिमा का प्रदर्शन किया. “नीलदेवी” नाटक में उन्होने पागल की चुनौतीपूर्ण भूमिका की थी. “सत्य-हरिश्चन्द्र” नाटक में हरिश्चन्द्र के रुप में स्वयं उनको देखकर जनता गदगद हो उठी थी वे प्रायः “स्वांग” भी किया करते थे.

नाटक के उद्देश्य की चर्चा करते हुए उन्होने पांच उद्देश्य बताए है – (१) हास्य, (२) श्रृंगार, (३) कौतुक, (४) समाज संस्कार और (५) देशवत्सलता. उस युग के बालकृश्ण भट्टजी का भी विश्वास था कि नाटक में केवल क्षणिक मनोरंजन ही नहीं देशोन्नति का भी कुछ उपदेश होना चाहिये. सामाजिक सुधार के साथ साथ किशोरीलाल गोस्वामी, अम्बिकादत्त व्यास, काशीनाथ खत्री ने भी मनोरंजन और उपदेश दोनों पक्षों को महत्व दिया. भारतेन्दुजी के “सत्य हरिश्चंद्र” नाटक में सत्यवादिता, कर्तव्यपरायणता, चारित्रिक दृढ़ता जैसे मूल्यों के साथ साथ युवा वर्ग के लिये उपयोगी आदर्श भी थे. “वैदिकी हिंसा हिंसा न भवती” में सामाजिक, धार्मिक विकृतियों पर क्रूर व्यंग्य है,” विषम्य विषमौसधम” में अंग्रेजों की चतुर शोषण प्रणाली और भारतीयों की मोहाशक्त स्थिति का चित्रण है. “कोउ नृप होउ हमें का होनी” “नीलदेवी” में जहां राजपूतानी आन बान है वहीं नारी व्यक्तित्व की प्रतिष्ठा भी है. “भारत दुर्दशा” और “भारत-जननी” नाटक नवजागरण सजगता समसामयिक परिस्थितियों का चित्रण और विदेशी शासन की दासता के चुंगल में फंसे भारतीयता और राष्ट्रियता की भावना को जगाने वाले नाटक है. “प्रेमजोगिनी” में काशी के धर्माड्म्बर का चित्र है तो “चन्द्रवली” उनकी वैष्णव भक्ति और प्रेम तत्व की प्रतीक है. “मुद्राराक्षस” का अनुवाद इसलिये किया क्योंकि इसमें चाणक्य जैसा एक ऐसा पात्र है जो कि झूठी नैतिकता को नहीं दोहराता है मनुष्यता को ही आधार बनाता है. “विषस्य विषमौषधम” केवल मात्र- एक पात्रीय नाटक है लेकिन उसमें भावों, के स्वर के इतने उतार-चढाव हैं, मुहावरे, किस्सागोई, चुटकुले, संस्कृत- उर्दू के रोचक प्रयोग, दोहे चौपाई की आर्कषक व्यंजना और अभिनय की लयात्मकता, रवानी इतनी अधिक है कि एक पात्रीय नाटक भी दर्शकगण को चमत्कृत कर देता है. “हमहुं कहब अब ठकुर सुहाती” “हमें तो गद्दी से काम है- कोई तडपे होउ हमैं का हानी” जैसे बेधड़क, सांकेतिक खरी आलोचना से भरे रोचक प्रसंगों से नाटक भरा पडा है. “अंधेर नगरी” इसी प्रकार के जीवंत रचना कौशल का प्रमाण है.

कुछ रचनाएं समय के साथ साथ कभी पुरानी नहीं होती है. अपितु बदलते परिवेश बदलती परिस्थितियों में नए-नए अर्थों में प्रतिबिम्बित होती है. “अंधेर नगरी” नाटक हर काल, हर स्थान से जुड़ता है और जुड़कर अपना नया सौंदर्य प्रदर्शित करता है. कहने को तो “अंधेर नगरी” एक प्रहसन है लेकिन इसमें समसामयिकता और आधुनिक रंग चेतना का इतना गहरा समावेश है कि इसने विख्यात नाटकों में अपना स्थान बना लिया है.

[post_ads_2]

१८८१ ई. में लिखा गया यह नाटक किसी जमींदार को आधार बनाकर नेशनल थियेटर के एक ही बैठक में लिखा गया था. एक ही रात में भारतेन्दुजी ने एक लोकोक्ति “अंधेर नगरी चौपट्ट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा” को इतना व्यंग्यात्मक, सार्वजनीन, सार्वलोकिक और सृजनात्मक अर्थ दे दिया. आरंभ मे इसकी प्रस्तुति को भले ही प्रहसन के रुप में लिया गया है परंतु बाद की प्रस्तुतिओं में आधुनिक रंगकर्मियों ने इसे अपने देश की बदलती परिस्थितियों, क्रियाओं, चरित्रों, मूल्यहीनता और खोखलेपन को देखना शुरु किया और तब इस नाटक की महत्ता और अधिक बढ गई.

“अंधेर नगरी” का कथानक बहुत बडा या गम्भीर नहीं है जो है वो एक दृष्टान्त की तरह सामने आया है. महन्त अपने दो शिष्यों – गोवर्धन और नारायणदास – के साथ भजन गाते हुए प्रवेश करते है और लोभी बृत्ति से बचे रहने का उपदेश देकर बडे दिखनेवाले सुन्दर नगर में दोनों को भिक्षा लेने भेजते हैं. इसके बाद ही अगला दृश्य बाजार का आता है. जहां हर दुकानदार अपने अपने सामान की आवाज लगाता सामान बेच रहा है. यह दृश्य ही इस नाटक का प्राण है, क्योंकि यहां पूरा विश्व है, पूरा देश है, पूरा इतिहास है, अंग्रेजियत और भारतीयता तो है ही. इस बाजार के मोह जाल में जब गोवर्धन प्रवेश करता है तो हर चिज टके सेर दिखती है. उसे लगता है “बडा आनंद है, हर चीज टके सेर है.” और भरपूर मिठाई खाता है. और गाता नाचता जंगल पहुंचता है. मंहतजी उसे समझाते हैं कि “ऐसी नगरी में रहना उचित नहीं”. पर वह लोभवश वह वहीं रहना चाहता है. चौथा दृश्य राजा मंत्री और उनके दरबार का है जहां राजा का मदिरा-पान, मूर्खता, मंत्री की चमचागीरी, नौकरों का सेवाभाव, फरियादी का आकर अपनी फरियाद सुनाना और फिर राजा द्वारा एक एक अपराधी को दरबार में बुलाकर मूर्खता भरे प्रश्न करना और कोतवाल को फांसी की सजा देकर दरबार बरखास्त करने का चित्रण है. सब चले जाते है फरियादी कि फरियाद वही की वही रह जाती है कि मेरी बकरी दीवार के नीचे दबकर मर गई. पांचवा दृश्य जंगल में गाते आते गोवर्धनदास का है जो लोभवश मोटा हो गया है. इतने में फांसी के फंदे के आकार के अनुसार किसी मोटे आदमी को तलाश के आदेश में राजा के सिपाही उसे जबरदस्ती पकड़कर ले जाते हैं. वो रोता चिल्लाता और गुरुजी के आदेश को न मानते पर पश्चाताप करता रह जाता है. अंतिम दृश्य श्मशान का है जहां फांसी पर चढाये जाने की तैयारी है लेकिन महंतजी की इस उक्ति से कि “इस समय ऐसा शुभ समय है कि जो मरेगा सीधा बैकुंठ में जाएगा.” लोगों में प्रतियोगिता सी होने लगती है कि हम फांसी पर चढ़ेंगे. अंततः राजा स्वयं अपने को फांसी पर चढाये जाने का आदेश देता है और महंत कहते हैं.

“जहां न धर्म न बुधी नाही, नीति ना सुजान समाज.

ते ऐस हिं आपुहिं नसे, जैसे चोपट राज”.

यह ऊपर से हास्य प्रधान दिखने वाला नाटक वस्तुतः तीखी व्यंग्यपूर्ण रचना है. मुख्य बात तो यह है कि भारतेन्दुजी का व्यंग्य बहुत कटु, और उतना प्रत्यक्ष नहीं है, जो हंसता है वह तिलमिलाता है. इस नाटक में सामंती व्यवस्था, राजनीतिक व्यवस्था की भ्रष्टाचारिता, सत्ता के विवेकहीनता, शिथिलता जड़ता, सत्ताधारी मानसिकता, उसकी निरंकुशता, निरीह जनता को लम्बे समय तक उलझाते और ठगने की प्रवृत्ति आज के युग में मूल्यों की विकृति और विसंगति को चित्रित किया गया है. इसके केन्द्र बिन्दु लोभवृत्ति और चौपट राजा की परिणति. लेकिन नाटक का मुल स्वर प्रचलित अराजकता, मूल्यहीनता अमानवीय व्यवस्था प्रणाली का है जिसमें अन्याय है, झूठ है, लोभ स्वार्थ, शोषण जैसी प्रवृत्तियां पनप रही है और प्रवाहमान है. “अंधेर नगरी” अन्ध व्यवस्था का प्रतीक है. चौपटराजा विवेकहीनता और न्यायदृष्टि के न होने का प्रतीक है. उनके न्याय पर अन्धता का प्रभाव है. अविवेकी प्रमादी राजा के मूल्यहीनता को तो भारतेन्दुजी ने दिखाई ही है साथ ही उन्होंने गोवर्धन के द्वारा मनुष्य के लोभ वृत्ति पर भी व्यंग्य किया है. “अंधेर नगरी” व्यंग्य ही है पर यह अंधेर नगरी विश्व के किसी भी कोने में हो सकती है क्योंकि ये प्रवॄत्तियां आधुनिक युग की देन है.

--


परिचय

डॉ. रानू मुखर्जी

जन्म - कलकता

मातृभाषा - बंगला

शिक्षा - एम.ए. (हिंदी), पी.एच.डी.(महाराजा सयाजी राव युनिवर्सिटी,वडोदरा), बी.एड. (भारतीय शिक्षा परिषद, यु.पी.)

लेखन - हिंदी, बंगला, गुजराती, ओडीया, अँग्रेजी भाषाओं के ज्ञान के कारण आनुवाद कार्य में संलग्न। स्वरचित कहानी, आलोचना, कविता, लेख आदि हंस (दिल्ली), वागर्थ (कलकता), समकालीन भारतीय साहित्य (दिल्ली), कथाक्रम (दिल्ली), नव भारत (भोपाल), शैली (बिहार), संदर्भ माजरा (जयपुर), शिवानंद वाणी (बनारस), दैनिक जागरण (कानपुर), दक्षिण समाचार (हैदराबाद), नारी अस्मिता (बडौदा), पहचान (दिल्ली), भाषासेतु (अहमदाबाद) आदि प्रतिष्ठित पत्र – पत्रिकाओं में प्रकशित। “गुजरात में हिन्दी साहित्य का इतिहास” के लेखन में सहायक।

प्रकाशन - “मध्यकालीन हिंदी गुजराती साखी साहित्य” (शोध ग्रंथ-1998), “किसे पुकारुँ?”(कहानी संग्रह – 2000), “मोड पर” (कहानी संग्रह – 2001), “नारी चेतना” (आलोचना – 2001), “अबके बिछ्डे ना मिलै” (कहानी संग्रह – 2004), “किसे पुकारुँ?” (गुजराती भाषा में आनुवाद -2008), “बाहर वाला चेहरा” (कहानी संग्रह-2013), “सुरभी” बांग्ला कहानियों का हिन्दी अनुवाद – प्रकाशित, “स्वप्न दुःस्वप्न” तथा “मेमरी लेन” (चिनु मोदी के गुजराती नाटकों का अनुवाद 2017), “गुजराती लेखिकाओं नी प्रतिनिधि वार्ताओं” का हिन्दी में अनुवाद (शीघ्र प्रकाश्य), “बांग्ला नाटय साहित्य तथा रंगमंच का संक्षिप्त इति.” (शीघ्र प्रकाश्य)।

उपलब्धियाँ - हिंदी साहित्य अकादमी गुजरात द्वारा वर्ष 2000 में शोध ग्रंथ “साखी साहित्य” प्रथम पुरस्कृत, गुजरात साहित्य परिषद द्वारा 2000 में स्वरचित कहानी “मुखौटा” द्वितीय पुरस्कृत, हिंदी साहित्य अकादमी गुजरात द्वारा वर्ष 2002 में स्वरचित कहानी संग्रह “किसे पुकारुँ?” को कहानी विधा के अंतर्गत प्रथम पुरस्कृत, केन्द्रिय हिंदी निदेशालय द्वारा कहानी संग्रह “किसे पुकारुँ?” को अहिंदी भाषी लेखकों को पुरस्कृत करने की योजना के अंतर्गत माननीय प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयीजी के हाथों प्रधान मंत्री निवास में प्र्शस्ति पत्र, शाल, मोमेंटो तथा पचास हजार रु. प्रदान कर 30-04-2003 को सम्मानित किया। वर्ष 2003 में साहित्य अकादमि गुजरात द्वारा पुस्तक “मोड पर” को कहानी विधा के अंतर्गत द्वितीय पुरस्कृत।

अन्य उपलब्धियाँ - आकशवाणी (अहमदाबाद-वडोदरा) को वार्ताकार। टी.वी. पर साहित्यिक पुस्तकों क परिचय कराना।

संपर्क - डॉ. रानू मुखर्जी

17, जे.एम.के. अपार्ट्मेन्ट,

एच. टी. रोड, सुभानपुरा, वडोदरा – 390023.


Email – ranumukharji@yahoo.co.in.

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: भारतेन्दु हरिशचन्द्र – समसामयिक नाटककार (“अंधेर नगरी” के परिप्रेक्ष में) – डा. रानू मुखर्जी
भारतेन्दु हरिशचन्द्र – समसामयिक नाटककार (“अंधेर नगरी” के परिप्रेक्ष में) – डा. रानू मुखर्जी
https://lh3.googleusercontent.com/-XUJ0WuyavZ0/W5ij6rqAqII/AAAAAAABELk/i54CiFLFDoUgBiuATw9Uj5hzYZ8Au9vygCHMYCw/Ranu%2Bphoto_thumb?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-XUJ0WuyavZ0/W5ij6rqAqII/AAAAAAABELk/i54CiFLFDoUgBiuATw9Uj5hzYZ8Au9vygCHMYCw/s72-c/Ranu%2Bphoto_thumb?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/09/blog-post_97.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/09/blog-post_97.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content