रोज सवेरे मैं जल्दी उठ जाता हूँ लेकिन जब आज मैं जल्दी नहीं उठा तो श्रीमती जी ने मुझे उठाते हुए कहा `कब तक सोते रहोगे? आज बैंक नहीं जाना है क...
रोज सवेरे मैं जल्दी उठ जाता हूँ लेकिन जब आज मैं जल्दी नहीं उठा तो श्रीमती जी ने मुझे उठाते हुए कहा `कब तक सोते रहोगे? आज बैंक नहीं जाना है क्या? कहीं बुखार वुखार तो नहीं हैं?` जैसे ही उसने मेरे हाथ को छुआ और बोली `आपको तो बहुत तेज फीवर है. आप आज बैंक मत जाओ.` मैं बिस्तर से उठते हुए बोला `पहले डॉक्टर को बता देता हूँ, फिर छुट्टी के बारे में विचार करूंगा.` मैंने शाखा प्रबंधक को मैसेज कर दिया `स्वास्थ्य ठीक नहीं है. तेज बुखार है. डॉक्टर के पास जा रहा हूँ. आज मैं छुट्टी पर रह सकता हूँ.` मेरी धर्मपत्नी ने पडोसी रमेश बाबू के बेटे को बुला लिया था. मैं उसके साथ शहर के अधिकांश डॉक्टर के क्लिनिक पर गया. सभी क्लिनिक पर जबरदस्त भीड़ थी. किसी भी क्लिनिक पर डॉक्टर नहीं आये थे. हम वापस अपने घर की ओर आने लगे तो हमारी कॉलोनी के कोने पर एक झोलाछाप डॉक्टर का क्लिनिक खुल चुका था. इस क्लिनिक में अपेक्षाकृत कम भीड़ थी और डॉक्टर भी आ चुका था. मैं भी उन मरीजों की लाइन में लग गया. शीघ्र ही मेरी नंबर आ गया. डॉक्टर ने मेरी जांच कर दवाइयां भी अपनी तरफ से दे दी. मैंने डॉक्टर से पूछा `मुझे कौनसा बुखार है?` डॉक्टर पहले अपने मुंह की तम्बाकू बाहर थूकने गए और फिर बोले `घबराने की बात नहीं है, वायरल है वायरल.`
घर पर आने पर श्रीमती जी ने अधीरतापूर्वक पूछा क्या हुआ? रमेश बाबू के बेटे ने कहा `आंटी, घबराने की बात नहीं है, अंकल को वायरल है वायरल.` धर्मपत्नी ने रिलैक्स महसूस करते हुए कहा `अरे, आपको भी वायरल हो गया है. आपको वायरल नहीं होगा तो क्या होगा? आप दिन-रात व्हाट्सएप्प और फेसबुक पर वीडियो और मैसेज वायरल करते रहते हो. और तो और जैसे ही आपको कोई मैसेज या वीडियो मिलता है आप उसे पढ़े, देखे बिना उन्हें दूसरे ग्रुप या व्यक्ति को फॉरवर्ड कर देते हो.` मैने नाश्ता करके दवाइयां ली ही थी कि बैंक से शाखा प्रबंधक का फ़ोन आ गया `कैसी तबीयत है? डॉक्टर को बताया या नहीं. मैने डॉक्टर को बता दिया और मेडिसिन भी ले ली है. लेकिन सर, मैं आज छुट्टी पर ही रहूंगा.` डॉक्टर ने क्या बोला `सर, डॉक्टर ने बोला है कि मुझे वायरल है वायरल.` `अरे गिरकर जी, चिंता की कोई बात नहीं. तुम्हें वायरल है वायरल. वायरल कोई बीमारी नहीं है. यह ऐसी बीमारी है जो ज़्यादा समय तक टिकती नहीं है. यह तो खो-खो के खेल जैसी बीमारी है. तुमको आज बैंक आना ज़रूरी है. आज अपनी शाखा में अचानक ऑडिटर आ गये है. अभी तो पिछले ऑडिट को हुए साल भर भी नहीं हुआ है. ऑडिटर को बताने के लिए जो रजिस्टर हम हर ऑडिट के आने के पूर्व बनाते है, उन रजिस्टर को तुम ही बना सकते हो. इसलिए आज बैंक आकर उन सभी रजिस्टरों को बना दो और तुम बैंक आ जाओगे तो तुम्हारी बीमारी भी बैंक में वायरल हो जाएगी और तुम जल्दी ठीक हो जाओगे. मैं तुम्हें लेने के लिए बैंक की गाड़ी भिजवा रहा हूँ.`
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मैंने धर्मपत्नी से कहा `जल्दी से मेरा टिफिन पैक कर दो. मुझे बैंक जाना अत्यंत आवश्यक है. आज ऑडिटर आ गये है.` श्रीमतीजी मेरी बात सुनकर तिलमिलाई `क्या ऑडिटर भगवान है? आप छुट्टी लेने में वैसे ही कंजूस हो. क्या आप बैंक नहीं जाओगे तो बैंक नहीं चलेगी? हर ब्रांच मैनेजर आपसे मीठा-मीठा बोलकर अपना काम निकलवाकर पदोन्नति लेकर दूसरी बड़ी शाखा में चले जाते है और आप, क्या आप जिंदगी भर कलम घिसते रहोगे कि कुछ तरक्की भी करोगे?` मैंने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी. बैंक की गाड़ी आ चुकी थी. मैं उसमें बैठकर बैंक पहुंच चुका था. शाखा प्रबंधक मुझे देखकर प्रसन्न हो गए. मुझे वायरल है वायरल इसकी खबर बैंक के पूरे स्टाफ को लग चुकी थी. क्योंकि मैं प्रतिदिन बैंक में सवेरे 10 बजे ही पहुंच जाता हूँ और बैंक का समय 10.15 से शुरू होता है.
शाखा प्रबंधक ने मेरा औपचारिक परिचय ऑडिटर से करवा दिया. ऑडिटर ने मेरे से हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ मेरी ओर बढ़ाया, मैंने हाथ मिलाने की जगह हाथ जोड़कर नमस्कार बोल दिया. बैंक में हाथ मिलाने की एक अच्छी परंपरा है. बड़े से बड़े अधिकारी शाखा में अपनी विज़िट के दौरान प्रत्येक कर्मचारी से हाथ मिलाते है. फिर मैं अपनी डेस्क पर आ गया. दफ्तरी ने कोरे रजिस्टर्स लाकर मेरी टेबल पर रख दिए थे. मैंने एक-एक करके लंच समय तक सारे रजिस्टरों को बना लिए. लंच के बाद मेरी तबीयत में सुधार होने लगा था. फिर मैंने सारे रजिस्टर्स में शाखा के अकाउंटेंट साहब से चिड़िया बिठवा ली थी. तत्पश्चात उन सभी रजिस्टर्स पर शाखा प्रबंधक के हस्ताक्षर करवा लिए थे. शाखा प्रबंधक बोले `गिरकर जी मुझे ऐसा लग रहा है कि अब तुम्हारी तबीयत पहले से बेहतर है और सभी रजिस्टर्स बन जाने से मैं भी रिलैक्स महसूस कर रहा हूँ.` शाम को 5 बजे ही शाखा प्रबंधक ने मुझे बैंक की गाड़ी से मुझे मेरे घर पहुँचा दिया था. अगले दिन मैं सवेरे 10 बजे शाखा में पहुंचा. शाखा प्रबंधक अपने केबिन में बैठे हुए शाखा का काम कर रहे थे. उन्होंने मेरे से पूछा और `अब कैसी तबीयत है गिरकर जी?` `अब ठीक हूँ सर. कल के बाद अभी तक फिर से बुखार नहीं आया है.` `गिरकर जी अब तुम्हें बुखार आएगा भी नहीं. क्योंकि तुम्हारा `वायरल` वायरल होकर ऑडिटर साहब के शरीर में प्रवेश कर गया है.
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जिस होटल में ऑडिटर साहब रुके हुए है, उस होटल से रात में फ़ोन आया था कि बैंक वाले साहब को तेज बुखार है. रात में तो होटल से ही ऑडिटर साहब को बुखार उतरने की मेडिसिन दे दी थी. अभी मैं होटल में उनके पास जा रहा हूँ. उनको लेकर डॉक्टर के पास जाता हूँ. तुम ऐसा करना सारे लोन के दस्तावेज़, जो की साल भर के भीतर स्वीकृत किए गये है उन्हें एक बार चेक कर लेना और कुछ कमी-पेशी हो तो उन्हें ठीक करवा लेना. अच्छा मैं निकलता हूँ.` ब्रांच मैनेजर को शाखा से निकले हुए दो मिनट ही हुए थे कि फ़ोन की घंटी बज उठी, मैंने रिसीवर उठाया, दूसरी ओर से एक मैडम की आवाज़ थी `कितना गंदा है तुम्हारा इंदौर. साहब पहले दिन ही बीमार हो गये.` मैंने कहा ` मैडम, इंदौर गंदा नहीं है. हमारे शहर तो पूरे देश में लगातार दो साल से स्वच्छता में नंबर वन आया है.` मुझे सब मालूम है कि नंबर वन कैसे आते है? मैं ऑडिटर की पत्नी हूँ.` मैंने कहा `प्लीज़ ` मैडम, मेरी बात सुनिए, हमारे ब्रांच मैनेजर ऑडिटर साहब को लेकर डॉक्टर के पास ही जा रहे है. आप चिंता मत कीजिए. यहां हम सब है. और साहब को वायरल होगा तो वह एक दो दिन में वायरल होकर चला जाएगा और साहब पूरी तरह से ठीक हो जाएंगे.` दूसरी ओर से फोन कट चुका था. 10 बजकर 15 मिनट हो चुके थे. धीरे-धीरे स्टाफ शाखा में आ रहा था लेकिन कल की तरह आज भी मेरे से कोई हाथ नहीं मिला रहा था.
दीपक गिरकर
व्यंग्यकार
28-सी, वैभव नगर, कनाडिया रोड,
इंदौर- 452016
मेल आईडी : deepakgirkar2016@gmail.com
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