-विनोद सिल्ला 1. दंगों से पहले शांत माहौल था इस शहर का दंगों से पहले नाम निशान नहीँ था वैर का दंगों से पहले अंकुरित नहीँ थ...
-विनोद सिल्ला
1.
दंगों से पहले
शांत माहौल था
इस शहर का
दंगों से पहले
नाम निशान
नहीँ था वैर का
दंगों से पहले
अंकुरित नहीँ था
बीज जहर का
दंगों से पहले
सौहार्द-सदभाव का
हर पहर था
दंगों से पहले
न साम्प्रदायिकता
का कहर था
दंगों से पहले
सियासतदानों से
दूर शहर था
दंगों से पहले
असलम रामलाल से
कहाँ गैर था
दंगों से पहले
चुनाव ने ही
घोला जहर था
दंगों से पहले
-विनोद सिल्ला©
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2.
मैं हूँ साक्षी
बन रहे हैं
वक्त के
नए-नए सांचे
ढल रहा है इंसान
इन नए-नए
सांचों में
गुजर रहा है इंसान
परिवर्तन के दौर से
बदल रही हैं
पुरातन परम्पराएं
आमजन की मान्यताएं
सबकी आकांक्षाएं
हो रहे हैं परिवर्तन
सुखद व दुखद
मैं हूँ साक्षी
इन परिवर्तनों का
-विनोद सिल्ला©
3.
मैं क्या लिखता हूँ
मैं
भूगोल लिखता हूँ
इतिहास लिखता हूँ
आम लिखता हूँ
खास लिखता हूँ
अंधकार लिखता हूँ
उजास लिखता हूँ
भूख लिखता हूँ
प्यास लिखता हूँ
मर्म लिखता हूँ
रंग रास लिखता हूँ
कल्पित लिखता हूँ
अहसास लिखता हूँ
उम्मीद लिखता हूँ
विश्वास लिखता हूँ
दिल को छूने वाले
हसीं प्रयास लिखता हूँ
-विनोद सिल्ला©
4.
"जुदाई"
मैं
कितनी दूर से
उससे मिलने आया
पर वो रो रहा था
उसे गम था
किसी से बिछङने का
वो आँसू बहा रहा था
उसकी पीड़ा को
कोई नहीं समझ रहा था
सभी उसके बहते आँसू
रोमांच से देख रहे थे
और कह रहे थे
क्या खूबसूरत झरना है
पर वास्तव में
नदी से बिछुङने के गम में
पहाङ रो रहा था
-विनोद सिल्ला©
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5.
प्रमाण
वो समझता है
खुद को सर्वश्रेष्ठ
कर रखे हैं उसने
गवाह तैयार
जो दे रहे हैं
उसके पक्ष में
सर्वश्रेष्ठ होने की गवाही
तमाम प्रमाण
हैं उसके पास
जिनसे वह
हो जाएगा साबित
सर्वश्रेष्ठ
परन्तु वास्तव में
कितना आशंकित है वो
अपनी श्रेष्ठता को लेकर
जो किए उसने
तमाम प्रमाण एकत्रित
श्रेष्ठ होने के
क्या श्रेष्ठता को भी
आवश्यकता है
प्रमाण की
-विनोद सिल्ला©
6.
मेरा भारत महान
कोई अपनी जात पे
मेहरबान था
कोई अपनी बात पे
कुर्बान था
किसी का अपने धर्म पे
बलिदान था
किसी को मराठी होने का
गुमान था
किसी को अपनी पंजाबियत
का मान था
तो कोई अपने गुजरात
की शान था
किसी के भाषावाद पे
मैं हैरान था
किसी का अलगाववादी
बयान था
सबका अपना-अपना
अलग जहान था
लाचार उपेक्षित
मेरा भारत महान था
-विनोद सिल्ला©
7.
कह गया अलविदा
हाड़तोड़ मेहनत ने
बेढंग कर दी चाल
पर नहीं जुटा पाया
ढंग के वस्त्र ताउम्र
अपने और परिवार के
नहीं लगवा पाया पैबंद
अपने फटे कमीज पर
जिससे झांकते रहे
लू के नस्तर
शीतलहर के अस्त्र-शस्त्र
वो नहीं करा पाया
बीमार पत्नी का उपचार
नहीं दिला पाया
अपने बच्चों को तालीम
ताउम्र करता रहा
कड़ा परिश्रम
फिर भी रहा अभावग्रस्त
देता रहा दोष
अपने कर्मों को
नहीं ढूंढ पाया
अपनी परेशानियों के
वास्तविक कारण
इसी उहा-पोह में
एक दिन
कह गया अलविदा
जहान को
-विनोद सिल्ला©
8.
झूठ की चकाचौंध
चीखते हैं
टी. वी. चैनल
एक सुर में
मिला रहे हैं ताल
सभी समाचार-पत्र
इनके मालिक हैं
सरकार में साझेदार
या हैं नतमस्तक
विज्ञापन के नाम पर
मिले धन के समक्ष
बोला जाता है
एक ही झूठ
हजार चैनल पर
हजार बार
बना दिया जाता है
सच को झूठ
बड़ी कलाकारी से
सत्य नहीं दे पाता
विज्ञापनों का शुल्क
हो जाता है शिकार
उपेक्षा का
झूठ की
चकाचौंध में
जो दिखता है
वही बिकता है
-विनोद सिल्ला©
9.
सफाई अभियान
आज मलीन बस्ती में
थी गहमागहमी
जो बड़े वाले नेता
उठा के झाड़ू
आए थे शुरु करने
सफाई अभियान
बस्ती का रामू
जो हमेशा से
सफाई कार्य
करता रहा है
उसके पूर्वज भी
करते रहे सफाई
मन ही मन
रहा था सोच
कभी क्यों नहीं मिली
इतनी इज्जत उन्हें
कभी क्यों नहीं
अख़बार में छपी फोटो
खूब जोर दिया दिमाग पर
लेकिन उसे समझ न
आया ढकोसला
-विनोद सिल्ला©
10.
----15 अगस्त----
उपमंडल प्रशासन द्वारा
झंडा फहराया गया
बच्चों द्वारा राष्ट्रगान
गाया गया
हर एक हाथ तिरंगा
लिए हुए था
हर एक देशभक्ति का
ढोंग किए हुए था
वो व्यापारी भी जो
टैक्स चोरी करता है
वो भी जो अखबार में
झूठी तहरीर लिखता है
वो भी जो कार्यालय में
रोज बिकता है
वो स्कूल संचालक भी
जो अभिभावकों को ठगता है
हर शोषित उपेक्षित था
जो हर रोज नपता है
ये कैसी स्वतंत्रता है
-विनोद सिल्ला
11.
स्वतंत्रता दिवस
पन्द्रह अगस्त
आ रही है
मना लेना
स्वतंत्रता दिवस पर
घोषणा कर देना
अपनी आजादी की
तोड़ देना
जाति-धर्म की
गुलामी की
जंजीरों को
मिटा देना
साम्प्रदायिकता की
लकीरों को
घोषणा कर देना
कि मैं मात्र इंसान हूँ
-विनोद सिल्ला©
12.
करके तो देखिए
उनकी दाढ़ी
ऐसे क्यूं
उनकी मूंछें
ऐसी क्यूं
उनकी चोटी
उनकी टोपी
ऐसे क्यूं
उनका ये क्यों
उनका वो क्यों
इनके अलावा भी
अनेकों हैं गंभीर मुद्दे
संसद में जिन पर
हो सकती है चर्चा
हो सकता है विकास
नेता जी
सांप्रदायिकता ही नहीं
विकास भी
दिलवा सकता है वोट
करके तो देखिए
-विनोद सिल्ला©
13.
पास-पास रहते भी
मिट्टी
वैसी ही
अटारी की है
वैसी ही बाघा की है
वैसी ही जलवायु
अटारी की है
वैसी ही बाघा की है
अनेकों बार
इकट्ठे झेला दोनों ने
सूखा, ओलावृष्टि, अतिवृष्टि
और भी अनेकों प्रकार की
प्राकृतिक आपदाएं
आज भी
अटारी की
गुरबाणी की आवाजें
गूंजती हैं बाघा में
बाघा की अजान
सुनती है अटारी में
दोनों गांवों के नागरिक
होते थे शामिल
एक-दूसरे की
गमी-खुशी में
लेकिन कांटेदार तारों की
बाड़ ने
कर दिया बहुत दूर
पास-पास रहते भी
-विनोद सिल्ला©
14.
देशभक्ति
छब्बीस जनवरी के बाद
आज स्वतंत्रता दिवस पर
पूरे यौवन पर थी देशभक्ति
खूब बजे
देशभक्ति के गीत
जो आज शाम को
रख दिए गए
संभाल कर
छब्बीस जनवरी तक
खूब दिए गए भाषण
देशभक्ति से ओत-प्रोत
तमाम वक्ता
कल फिर खो जाएंगे
रोजमर्रा के
कार्यकलापों में
छब्बीस जनवरी तक
देशभक्ति भी करेगी
विश्राम
-विनोद सिल्ला©
15.
बेपरवाह
हम
प्राकृतिक आपदाओं से
हो कर बेपरवाह
करते हैं प्रकृति का
अंधाधुंध दोहन
झेलते हैं उसका
दुष्परिणाम
सबसे पहले इंसान ने
किया खिलवाड़
खुद के साथ
हो कर बेपरवाह
बांट लिया
असंख्य जातियों में
अनेक धर्मों में
उन जातियों-धर्मों ने
कर लिया
विकराल आपदा का
रूप धारण
आज झेल रहा है इंसान
भेदभाव के रूप में
या दंगों के रूप में
-विनोद सिल्ला©
16.
आज का द्रोण
एकलव्य को
कटवाना पड़ा
अपना अंगूठा
क्योंकि
कुटिल द्रोण ने
कर रखा था
अनुबंध
राजघराने से
उनके राजकुमार को
सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर
बनाने का
आज द्रोण
हो चुका है
और अधिक खूंखार
अब वह
अंगूठा नहीं
गला काटता है
-विनोद सिल्ला©
17.
छूवन
नहीं लिखा जाता
रक्त की थैलियों पर
रक्तदाता का जाति-धर्म
लिखा जाता है
रक्त का समूह
सकारात्मक व नकारात्मक
नहीं की जाती
जानने की कोशिश
रक्तदाता का जाति-धर्म
ले ली जाती है किडनी
निम्न वर्ग के गरीब की
नहीं होती घृणा
निम्न वर्ग की
किडनी से
जो रहेगी ताउम्र
उसके शरीर में
जीवन का
आवश्यक अंग बनकर
लेकिन उसी
निम्न वर्ग का
बाह्य छूवन
देता है झटके
ग्यारह हज़ार वॉट के
जाने क्यों?
-विनोद सिल्ला©
18.
ताजा खबर
बिलकुल
ताजा खबर है
जो अखबार में भी
नहीं आई
किसी चैनल ने भी
नहीं बताई
आकाशवाणी ने भी
नहीं सुनाई
चौपालों में भी जिसकी चर्चा नहीं चली
यह खबर
सोशल मीडिया पर भी
नहीं आई
किसी वैब चैनल
पर भी नहीं
खबर यह है कि
गुम हो गया भाईचारा
इस नवदौर में
-विनोद सिल्ला©
19.
समझ से परे
मरने के बाद
स्वर्ग से
या फिर
नर्क से
कोई नहीं आया
वापस लौट कर
फिर
स्वर्ग का मजा
और
नर्क की सजा
का वर्णन
किसने किया
ग्रंथों में
समझ से परे है
-विनोद सिल्ला©
20.
चुप्पी
मेरा फक्कड़पन
कर देता है नाराज
कई बार
मेरी जीवन-संगीनी को
वो हो जाती हैं उदास
कर देती हैं
बोलना कम
तरस जाते हैं मेरे कान
सुनने को
मेरी अपनी शिकायत
लगती है कचोटने
उसकी चुप्पी
कर देती है बेचैन
उसके क्रोध भरे शब्द भी
शायद इतना बेचैन
नहीं कर सकते
जितनी बेचैनी
उसकी चुप्पी से होती है
-विनोद सिल्ला©
21.
बैंक मूर्छित हैं
सरकार संग
आती थी
हर रोज
उनकी फोटो
संचार के माध्यम से
बैंक हिम्मत न
जुटा पाया
कर्ज देने से
इंकार करने की
आज सभी बैंक
मूर्छित हैं
उनके विदेश गमन से
थोड़ी-थोड़ी संजीवनी
चोरी-छुपे
ली जा रही है
आम-जन के
खातों से
ताकि होंस में
लाए जा सकें बैंक
-विनोद सिल्ला©
22.
तब अवतार नहीं लिया
असुर व राक्षस
थे यहीं के वासी
समय-समयपर
आते रहे भगवान
लेकर अवतार
असुरों का
राक्षसों का
करते रहे संहार
बताते रहे
उसे धर्मयुद्ध
लेकिन यहीं पर आए
मुगल, फिरंगी,
गुण, शक, डच
फ्रांसीसी, पुर्तगाली व
अन्य विदेशी आक्रमणकारी
तब नहीं लिया
किसी ने अवतार
तब नहीं किया
धर्मयुद्ध का ऐलान
होने दिया
देश गुलाम
जाने क्यों?
-विनोद सिल्ला©
23.
श्रृंगार
मेरी मां
नहीं देखीं मैंने
कभी भी
श्रृंगार किए
मैंने देखा
सदैव उनको
ममता, मैत्री,
करूणा के
श्रृंगार लिए
बहुएं नहीं
आईं उसके घर
आई हैं दो बेटियाँ
जिन्हें मां ने
मां के ही
स्नेह-दुलार दिए
सासु नहीं
बनी कभी भी
रही तत्पर
मां का
प्यार लिए
मेरी मां
नहीं देखीं मैंने
कभी भी
श्रृंगार किए
-विनोद सिल्ला©
24.
मुस्कान
मुझे बाजार में
एक आदमी मिला
जिसके चेहरे पर
न था कोई गिला
जो लगातार
मुस्करा रहा था
बङा ही खुश
नजर आ रहा था
मैंने उससे पूछा कि
कमाल है आज
जिसको भी देखो
मुंह लटकाए फिरता है
तनावग्रस्त-सा दिखता है
आपकी मुस्कान का
क्या राज है
मुस्करा रहे हो
कुछ तो खास है
उन्होंने कहा
मुझपे भी
महंगाई की मार है
मुझपे भी
गम सवार है
यहाँ दुखदाई
भ्रष्टाचार है
ऐसे में
खुश रहना कैसा
मुस्कराता नहीं
मेरा मुंह ही है
ऐसा
-विनोद सिल्ला
25.
जन्नत
ऊँचे-ऊँचे पेड़
छोटे-छोटे पौधे
अलबेली हवा में
हिल-हिल कर
रहे हैं झूम
एक-दूसरे को
रहे हैं चूम
आवाजें हैं सांय-सांस
टकरा रहे हैं पत्ते
आपस में
कितना मनोरम है दृश्य
इससे अलग
कोई और जन्नत
नहीं हो सकती
-विनोद सिल्ला©
26.
मैं हूँ पहाड़
मैं हूँ पहाड़
तुम्हारे आकर्षण का
हूँ केन्द्र
शक्ति का
विशालता का
हूँ परिचायक
नदियाँ हैं
मेरी सुता
जो हैं पराया धन
हो जाती हैं
मुझसे जुदा
होती हैं बेताब
समुद्र से मिलने को
समुद्र में
विलीन होने को
होती हैं
मुझसे जुदा
नई दुनिया
बसाने को
-विनोद सिल्ला©
27.
बहुरूपी प्रकृति
जिस प्रकार
बहरूपिया
बदल लेता है नित
अपना रूप
इसी प्रकार
प्रकृति भी
लेती है बदल
नित नया रूप
कभी हवा सुहावनी
कभी धूल भरी आंधी
कभी शीत-लहर
कभी झुलसाती लू
कभी धुंध
कभी बरसात
कभी ओलावृष्टि
कितने रूप
बदलती है प्रकृति
-विनोद सिल्ला©
परिचय
नाम - विनोद सिल्ला
शिक्षा - एम. ए. (इतिहास) , बी. एड.
जन्मतिथि - 24/05/1977
संप्रति - राजकीय विद्यालय में शिक्षक
प्रकाशित पुस्तकें-
1. जाने कब होएगी भोर (काव्यसंग्रह)
2. खो गया है आदमी (काव्यसंग्रह)
3. मैं पीड़ा हूँ (काव्यसंग्रह)
4. यह कैसा सूर्योदय (काव्यसंग्रह)
संपादित पुस्तकें
1. प्रकृति के शब्द शिल्पी : रूप देवगुण (काव्यसंग्रह)
2. मीलों जाना है (काव्यसंग्रह)
3. दुखिया का दुख (काव्यसंग्रह)
सम्मान
1. डॉ. भीम राव अम्बेडकर राष्ट्रीय फैलोशिप अवार्ड 2011
2. लॉर्ड बुद्धा राष्ट्रीय फैलोशिप अवार्ड 2012
3. ज्योति बा फुले राष्ट्रीय फैलोशिप अवार्ड 2013
4. ऑल इंडिया समता सैनिक दल द्वारा जून 2014 को ऊना हि. प्र. में
5. अम्बेडकरवादी लेखक संघ द्वारा 06 जुलाई 2014
6. लाला कली राम स्मृति साहित्य सम्मान 2015
7. प्रजातंत्र का स्तंभ गौरव सम्मान 2018
8. रक्तदान के क्षेत्र में अमर उजाला समाचार पत्र द्वारा जून 2018 को
पता :-
विनोद सिल्ला
गीता कॉलोनी, नजदीक धर्मशाला
डांगरा रोड़, टोहाना
जिला फतेहाबाद (हरियाणा)
पिन कोड-125120
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