श्रीराम कथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग - ‘‘शिवपुराण’’ में श्रीराम से निषादराज के भेंट का शिवजी द्वारा शिवरात्री को दिये गये आशीर्वाद का कथा प्रसंग - डॉ. नरेन्द्र कुमार मेहता ‘मानसश्री’

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श्रीराम कथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग ‘‘ शिवपुराण ’’ में श्रीराम से निषादराज के भेंट का शिवजी द्वारा शिवरात्री को दिये गये ...

श्रीराम कथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग

‘‘शिवपुराण’’ में श्रीराम से निषादराज के भेंट का शिवजी

द्वारा शिवरात्री को दिये गये आशीर्वाद का कथा प्रसंग


डॉ. नरेन्द्र कुमार मेहता मानसश्री

मानस शिरोमणि, विद्यावाचस्पति

एवं विद्यासागर

शिवपुराण में कोटिरूद्र संहिता के अध्याय 40(गीताप्रेस,गोरखपुर) में गुरूद्रुह नामक भील की कथा वर्णित है। इस कथा में उसे भगवान शिव ने श्रृंगवेरपुर की राजधानी में वंश वृद्धि तथा श्रीराम के एक दिन घर पधारने और मित्रता का आशीर्वाद भी दिया है।

सूतजी ने ऋषियों को एक निषाद का प्राचीन इतिहास सुनाया। उनके अनुसार किसी एक वन में एक भील रहता था। उसका नाम गुरूद्रुह था। वह अपने कुटुम्ब का पेट मृगों को मारकर तथा नानाप्रकार की चोरियाँ कर भरता था। एक दिन शिवरात्रि आयी तथा उसे उस व्रत का कोई ज्ञान न था। उस दिन उसके माता-पिता एवं पत्नी ने भूख से पीड़ित होकर उससे खाने का माँगा। वह धनुष लेकर वन में शिकार करने चल पड़ा। दिनभर में उसे उस दिन कुछ भी हाथ न लगा। अतः वह सूर्यास्त के समय एक जलाशय के निकट पहुँच गया। क्योंकि उसे ज्ञात था कि रात्रि में यहाँ जल पीने कोई न कोई जीव अवश्य आयेगा। ऐसा मन में निश्चय कर वह बेल (बिल्वपत्र) के वृक्ष पर जल साथ लेकर आखेट करने की प्रतीक्षा में बैठ गया।

उस समय उसे एक मृगी दिखी तथा प्रसन्न होकर उसने उसके वध हेतु बाण का संधान किया। उसी समय ऐसा करते समय अनजाने में उसके हाथ के धक्के से थोड़ा सा जल और बिल्वपत्र उस पेड़ के नीचे शिवलिंग पर गिर गये। इस प्रकार जल और बिल्वपत्र से शिवजी की प्रथम प्रहर पूजा सम्पन्न हो गई। अनजाने में शिवजी की पूजा से थोड़ा सा उसका पाप नष्ट हो गया। इधर मृगी ने व्याध को निशाना साधकर देखकर पूछा कि अरे तुम क्या चाहते हो ? व्याध ने कहा कि तुम्हें मारकर मैं अपने कुटुम्ब की भूख मिटाना चाहता हूँ। यह सुनकर मृगी ने कहा कि अनर्थ शरीर के लिये दूसरों के उपकार करने से बड़ा पुण्य क्या हो सकता है? किन्तु मैं, मेरे बच्चे मेरी बहिन अथवा स्वामी को सौंपकर लौट आऊँगी तुम मेरा इतना विश्वास करो। ऐसी सत्य की शपथ लेकर व्याध की स्वीकृति से वह अपने घर चली गई।

उसके जाने के बाद मृगी की बहिन उसे ढँूढती हुई वहाँ पहुँची तब उस भील ने पुनः तरकस से बाण खींचा। ऐसा करते समय पुनः दूसरी बार शिवजी के ऊपर कुछ बिल्वपत्र तथा थोड़ा सा जल गिर गया। इस तरह भील की अनजाने में हुए दूसरे प्रहर की पूजा हो गई।

मृगी ने उसे बाण खींचते हुए पूछा कि तुम यह क्या करते हो? व्याध (भील) ने पूर्ववत उत्तर दिया कि मैं अपने भूखे कुटुम्ब को तृप्त करने के लिये तुम्हें मारूँगा। यह सुनकर मृगी बोली मेरा शरीर आज दूसरे के काम आवे तो इससे बढ़कर उपकार क्या हो सकता है? किन्तु मेरे छोटे छोटे बच्चे घर में हैं। यदि मैं एक बार जाकर उन्हें अपने स्वामी को सौंप दूँ फिर तुम्हारे पास विष्णुजी की शपथ खाकर कहती हूँ और लौटकर आ जाउँगी। व्याध ने उसे उसके घर उसके स्वामी के पास जाने दिया।

उस मृगी के जल पीकर जाने के पश्चात् एक हिरण वहाँ जलाशय के पास आया। उसे देखकर भील(व्याध) धनुष पर बाण रखकर उसे मार डालने को उद्यत (तैयार) हुआ। प्रारब्धवश कुछ जल और बिल्वपत्र शिवलिंग पर गिर पड़े। उसकी तीसरे प्रहर की अनजाने में पूजा सम्पन्न हो गई।

इस तरह भगवान् ने उस पर अपनी दया दिखायी। पत्तों के गिरने आदि का शब्द सुनकर उस मृग ने व्याध की ओर देखा तथा पूछा-तुम क्या करते हो? व्याध ने उत्तर दिया कि मैं अपने कुटुम्ब को भोजन देने के लिये तुम्हारा वध करूँगा। यह सुनकर व्याध ने प्रसन्न होकर कहा कि मेरे हृष्ट-पुष्ट शरीर से आपका तथा आपके कुटुम्ब की तृप्ति होती है तो यह बड़ा परोपकारी कार्य है अन्यथा मेरा शरीर व्यर्थ ही चला जाता किन्तु एक बार मुझे जाने दो। मैं अपने बालकों को उनकी माता के हाथों में सौंपकर शपथपूर्वक कहता हूँ कि लौट आऊँगा।

मृग की यह बात सुनकर व्याध ने कहा, कि जो जो यहाँ आये सबने यही कहा तथा अभी तक कोई भी इनमें से लौटकर न आया। फिर भी मैं तुम्हें लौटकर आने हेतु आज्ञा देता हूँ। जब वे दोनों अपने आश्रम पर पहुँचे तो उस वृत्तान्त की चर्चा हुई तथा मृगी ने अपने स्वामी को बच्चे छोड़कर जाने को कहा, तब मृगी की बहिन ने कहा कि तुम मत जाओ मैं ही व्याघ के पास जाऊँगी।

यह सुनकर उसका स्वामी बोला कि माता ही शिशुओं की रक्षा करती हैं। अतः मैं अकेला ही जा सकता हूँ। अन्त में तीनों अपने बच्चों को सान्त्वना देकर मृग-मृगियों को सौंपकर व्याघ के समीप जाने लगे। तब उनके बच्चे भी माता-पिता के पीछे-पीछे चल दिये। इन सबको एक साथ देखकर व्याघ ने धनुष पर बाण चढ़ाया इतने में पुनः कुछ जल तथा बिल्वपत्र से शिवजी की चैथे प्रहर की पूजा सम्पन्न हो गई। इससे उस व्याघ के सम्पूर्ण पाप भस्म हो गये। दोनों मृगियों एवं मृग ने कहा कि हे व्याघ तुम शीघ्र हमारे शरीर को शिवजी की पूजा के प्रभाव से दुर्लभ ज्ञान प्राप्त हो गया। उसने बाण का संधान रोककर कहा कि श्रेष्ठ मृगों! तुम जाओ तुम्हारा जन्म-जीवन धन्य है।

इतना सुनकरर भगवान शंकरजी तत्काल प्रसन्न हो गये और उसे सम्मानित करके दर्शन दिये। शंकरजी ने उसके शरीर का स्पर्श करके प्रेमपूर्वक कहा-भील मैं तुम्हारे व्रत से प्रसन्न हूँ। वर मांगो व्याध भी शिवजी के उस रूप को देखकर तत्काल जीवमुक्त हो गया। और कहा कि-मैंने सब कुछ पा लिया। इस प्रकार कहता हुआ उनके चरणों में गिर पड़ा। उसके इस भाव को देखकर भगवान शिवजी भी मन ही मन बड़े प्रसन्न हुए और उसे ‘‘गुह’’ नाम देकर कृपादृष्टि से देखते हुए उन्होंने दिव्य वर दिये। शिवजी बोले व्याध! सुनो आज से तुम श्रृंगवेरपुर में उत्तम राजधानी का आश्रय लेकर दिव्य भोगों का उपभोग करो। तुम्हारे वंश की वृद्धि निर्विघ्नरूप से होती रहेगी। देवता भी तुम्हारी प्रशंसा करेंगे। व्याध मेरे भक्तों पर स्नेह रखने वाले भगवान श्रीराम एक दिन निश्चय ही तुम्हारे घर पधारेंगे और तुम्हारे साथ मित्रता करेंगे।

कर्म का फल मनुष्य को अवश्य प्राप्त होता है। वह इस तथ्य को भूल जाता है किन्तु कर्मफल उसको अनजाने कार्य करने पर प्राप्त हो ही जाता है। यथा-

अवशेनापि यत्कर्म कृतं तु सुमहत्फलम्।

वा.रा. महा. 3.58

विवश होकर भी किया गया सत्कर्म महान् फल देता है।

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डॉ. नरेन्द्र कुमार मेहता मानसश्री

मानस शिरोमणि, विद्यावाचस्पति

एवं विद्यासागर

सीनि. एमआईजी - 103, व्यासनगर,

ऋषिनगर विस्तार उज्जैन, (म.प्र.)

पिनकोड 456010

Email:drnarendrakmehta@gmail.com

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रचनाकार: श्रीराम कथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग - ‘‘शिवपुराण’’ में श्रीराम से निषादराज के भेंट का शिवजी द्वारा शिवरात्री को दिये गये आशीर्वाद का कथा प्रसंग - डॉ. नरेन्द्र कुमार मेहता ‘मानसश्री’
श्रीराम कथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग - ‘‘शिवपुराण’’ में श्रीराम से निषादराज के भेंट का शिवजी द्वारा शिवरात्री को दिये गये आशीर्वाद का कथा प्रसंग - डॉ. नरेन्द्र कुमार मेहता ‘मानसश्री’
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