सुनील एक शातिर चोर था .चोरों की बिरादरी में उसकी खासी इज्जत थी. वो लोग कहते थे कि अगर सुनील का दिल आ जाये तो वो किसी आदमी की आँखों से काजल ...
टूंडला जंक्शन से मुगलसराय जंक्शन के बीच चलने वाली ट्रेनों में अक्सर उसे देखा जाता था और यह इलाका उसका माना जाता था.
आज वो कानपुर सेंट्रल स्टेशन पर खड़ी फ्रोंटियर मेल डिब्बे के पास चाय की चुस्कियां ले रहा था। उसकी तेज निगाहें किसी मोटे आसामी की तलाश में इधर उधर भटक रही थीं। ट्रेन बस चलने को ही थी. सामने की खिड़की से उसे एक भला नौजवान बैठा दिखाई दिया जिसको छोड़ने आया हुआ बुजुर्ग अब उससे विदा ले रहा था. नौजवान ने बुजुर्ग के पैर छुए और उसने उसे आर्शीवाद दिया। साथ ही बोले समझाइश के ये वचन,‘बेटा ,पोटली का ख्याल रखना।' इन शब्दों को सुनते ही सुनील के दिमाग में एक बिजली सी चमकी और वह ताबड़तोड़ चाय का कुल्हड़ फेंक कर उस डिब्बे में लपककर सवार हो गया। अगला स्टेशन आने से पहले वह उस नौजवान से खूब बेतकल्लुफ हो चुका था और यह भी जान चुका था कि अजय नाम का वह नौजवान अपनी मैं की बीमारी के इलाज के लिए जरूरी सामान लेने एक बड़े शहर जा रहा था जहाँ उसके एक दूर के रिश्तेदार रहते थे जो किसी सुनार की दुकान में काम करते थे. सुनील को इन सब बातों को जोड़ते हुए यह समझने में देर नहीं लगी कि उसकी पोटली में गहने रखे हुए थे. वह अब सोचने लगा कि अजय को उसकी पोटली से अलग कैसे किया जाय .
गर्मी का मौसम था और बिना पानी पिए रहना मुश्किल था. अजय के पास पानी की एक बड़ी बोतल थी जिसे सुनील ने लगभग खाली कर दिया जब अजय बाथ रूम गया था. थोड़ी देर बाद जब उसका पानी ख़त्म हो गया अजय ने अपने बैग से पानी की बोतल निकली और पानी पिया. बड़ी सहजता से उसने अजय की तरफ बोतल बढ़ायी. अजय उस बोतल से सुनील को पानी पीते देख चुका था पर उसकी भोली आंखे सुनील की वो हाथ की सफाई नहीं देख पाईं जिससे उसने पानी पीने के बाद नींद की दवा मिला दी थी. बस यहीं वो फंस गया और पानी पीकर बेसुध होकर सो गया. सुनील ने बड़ी सफाई से उसकी पोटली निकाल कर अपने बैग में रख ली थी और वह चल पड़ा अपने नए शिकार की तलाश में.
दो डिब्बे चलने के बाद उसे एक मोटा आदमी सोता दिखाई दिया जिसके आस पास की सभी सीट खाली थीं. सुनील की पारखी आंखे ताड चुकी थीं की वह एक मोटा और मालदार असामी था. पर कहाँ रखा था उसने माल? अब सुनील को यह पता करना था. इसके लिए उसने एक माचिस की तीली ली और उस आदमी के कान में डाल दिया. इस पर वह आदमी एक पल के लिए सकपकाया और फिर उसका हाथ अपनी पेंट की बेल्ट के पास गया जहाँ हाथ लगा कर उसने अपने माल के महफूज़ होने की तसल्ली कर ली और फिर से खर्राटे भरना शुरू कर दिया. पर सुनील अब जान चुका था कि मालदार असामी का माल उसकी पेंट की किस चोर पॉकेट में था. उसने अपनी जेब से एक कटा हुआ ब्लेड निकला और बड़ी सफाई से मोटे की चोर पॉकेट को उसकी पेंट से निकल कर अलग कर लिया की उसे जरा भी भनक न लगी. माल को अपने बैग में डाल कर वह फिर नए शिकार को देखने निकल पड़ा.
ट्रेन में घूमते हुए उसे एक जगह पर एक परिवार यात्रा करता दिखाई दिया. बातों बातों में पता लगा कि वे लोग किसी जमीन का सौदा करने जा रहे थे. उनके पास एक बड़ा सा सूट केस था जिसे उन्होंने जंजीर से सीट के साथ बंधा हुआ था और हर पांच मिनट में कोई न कोई सदस्य यह देख कर तसल्ली कर लेता था की उसका ताला सही सलामत है.
सुनील जब बाथ रूम गया तो उसे एक खास बात समझ में आयी. उस परिवार के पीछे की तरफ ट्रेन के डिब्बे का जो हिस्सा था वो बिलकुल खाली था ,वहां कोई भी मुसाफिर नहीं था. बस फिर क्या था सुनील उठकर उस खाली सीट पर बैठ गया और अपने बैग से एक छोटी आरी निकाल कर उसने सीट के नीचे झुककर पीछे की तरफ से उस सूटकेस को काटना शुरू कर दिया. आधे घंटे की मेहनत के बाद वह सूटकेस से माल निकल कर अपने बैग में रख चूका था और मासूम परिवार वाले सूटकेस के सामने ताले को यथावत देख कर इत्मीनान कर रहे थे, बिना ये जाने की उनका मॉल तो पीछे के रास्ते से कब का लुट चूका था.
कुछ देर बाद एक स्टेशन आया और गाड़ी रुकी तो सुनील चुपके से अपना बैग लेकर ट्रेन से उतर लिया। आज काफी काम कर लिया था और अच्छी कमाई भी हो गयी थी। उसकी आज की दिहाड़ी पूरी हो चुकी थी. अब उसे आराम भी तो करना था.
दीपक दीक्षित
लेखक परिचय
रुड़की विश्विद्यालय (अब आई आई टी रुड़की) से इंजीयरिंग की और २२ साल तक भारतीय सेना की ई.ऍम.ई. कोर में कार्य करने के बाद ले. कर्नल के रैंक से रिटायरमेंट लिया . चार निजी क्षेत्र की कंपनियों में भी कुछ समय के लिए काम किया।
पढने के शौक ने धीरे धीरे लिखने की आदत लगा दी । कुछ रचनायें ‘पराग’, ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’, ‘अमर उजाला’, ‘नवनीत’ आदि पत्रिकाओं में छपी हैं।
भाल्व पब्लिशिंग, भोपाल द्वारा 2016 में "योग मत करो,योगी बनो' नामक पुस्तक तथा एक साँझा संकलन ‘हिंदी की दुनिया,दुनियां में हिंदी’ (मिलिंद प्रकाशन ,हैदराबाद) प्रकाशित हुयी है।
कादम्बिनी शिक्षा एवं समाज कल्याण सेवा समिति , भोपाल तथा नई लक्ष्य सोशल एवं एन्वायरोमेन्टल सोसाइटी द्वारा वर्ष २०१६ में 'साहित्य सेवा सम्मान' से सम्मानित किया गया।
वर्ष 2009 से ‘मेरे घर आना जिंदगी’ (http://meregharanajindagi.blogspot.in/ ) ब्लॉग के माध्यम से लेख, कहानी , कविता का प्रकाशन। कई रचनाएँ प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं तथा वेबसाइट (प्रतिलिपि.कॉम, रचनाकार.ऑर्ग आदि) में प्रकाशित हुई हैं।
साहित्य के अनेको संस्थान में सक्रिय सहभागिता है । राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कई गोष्ठियों में भाग लिया है। अंग्रेजी में भी कुछ पुस्तक और लेख प्रकाशित हुए हैं।
निवास : सिकंदराबाद (तेलंगाना)
सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन
संपर्क : coldeepakdixit@gmail.com
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