काव्य संकलन - पहेली - रतनलाल जाट

SHARE:

      (1) कविता- वो भी          यूँ ही अचानक आँखें खुल जाती रात आधी है और बीती आधी जैसे किसी ने आकर जगा दिया कहीं कुछ भी मेरे समझ में ...

     
(1) कविता- वो भी
        
यूँ ही अचानक आँखें खुल जाती
रात आधी है और बीती आधी
जैसे किसी ने आकर जगा दिया कहीं
कुछ भी मेरे समझ में आया नहीं
फिर पता चला कि वो भी जगे हुए थे
कभी हजार खुशी बीच अचानक जी घबराये
दवा-गोली लें कितनी ही पर आराम नहीं आये
क्या करूँ अब कोई जोर नहीं चलता है खुद पे
हाल कहा नहीं जा सकता है हर किसी से
उनसे जाना तो पता चला वो भी बहुत दुखी थे
हँसते हुए लबों पर खामोशी आकर
भिगो देती है पलकें तड़पाकर
दूसरे भी सोचने लगे थे आखिर
इसके दर्द का कारण क्या है फिर
वो मिले और दर्द-रोग सारे नौ-दो ग्यारह हो गए

- रतन लाल जाट

(2) कविता- पहेली
           
मिलना जरूरी है किसी ओर से
और आकर मिलते हैं कोई दूसरे
बातें कहनी-सुननी है उस विशेष से
लोग परेशान करते हैं उन्हें सुनाने के लिए
हम किसी और की राह ताकते
और कोई हमारी राह ताकता है
हमारे लिए वो नहीं है
और हम नहीं उनके लिए
एक बहुत बड़ी पहेली है
दूर पास और पास दूर है
कोई नहीं है ऐसा जो कुछ समझे
एक जानता तो दूसरा अनजाना है

- रतन लाल जाट

(3) कविता- बसंत प्यार का
      
जी बहुत ही हल्का
पतंग-सा उड़ने लगता
हर तरफ बिखरने लगती खुशियाँ
जैसे फूल से आती महकती हवा
दुनिया सारी को स्वर्ग बनाती कल्पना
जहाँ नहीं रहता कोई दुख का निशां
जड़ भी हो चेतन लगने लगे प्यारा
हर कहीं दिखने लगे प्रिय छाया
चेहरे का रंग हसीन हो जाता
जैसे कमल तालाब बीच खिलता
आँखें बन्द करते ही आये सपना
और दिल गुनगुनाये कोई तराना
तो समझो बसंत प्यार का
तन-मन की बगिया में आया

- रतन लाल जाट

(4) कविता-हितैषी
      
आजकल हितैषी कौन है?
जो कमी देखकर भी कुछ नहीं कहे
बुराई को भी हमेशा अच्छाई बताये
और कभी हमारा साथ नहीं निभाये
इनकी आँखों में छिपा हुआ क्या है
इन लोगों का कभी नहीं कोई अपना हैं
बस स्वार्थ पूरा होते ही निश्चित बदलना है
जरा संभलकर रहना इन रंगे सियार का नहीं भरोसा है

- रतन लाल जाट

(5) कविता- दोनों में ज्यादा नहीं फर्क है
          
पता नहीं उनके दिलों में क्या है
कभी लगता अपने तो कभी नहीं है
आँखें कुछ बोले लब कुछ और कहे
याद आये तो लगता वो भी तड़पते हैं
हर रोज मैं मिलूँ तो कभी वो खुद आ जाये
मैं रोज़ मनाऊँ तो कभी वो मुझको मनाये
शिकायतें बहुत है मेरी पर उन्हें भी है
सपने मुझे ही नहीं आते देखते वो भी है
लगता मैंने गलती की है कहते वो गलती उनकी है
हाल अपना बुरा तो वो कहते यहाँ कौन-सी खुशी है
दोनों ओर कुछ तो है दोनों में ज्यादा नहीं फर्क है
सच तो या हम जानते या सबकुछ उसे मालूम है

- रतन लाल जाट

(6) कविता- क्यों नहीं
    
कोई भी दो टूक क्यों किसी को नहीं सुनाता है?
कह बिना रहे नहीं फिर पीठ पीछे क्यों कहता है?
हर कोई हर किसी के आगे क्यों झुकता-दबता है?
आज मानव सत्य और कड़वा पीने से क्यों डरता है?
जबकि देखो हर तरफ किस्से-कहानी है
लोग करते रहते आपस में कानाफूसी है
जो यहाँ-वहाँ गलत हो रहा वो बात बहुत अच्छी है
सब सुधर गये तो फिर खत्म सारी ताकत हमारी है
यही सोच बनाकर खड़ा जमाना है
कोई जीये या मरे कुछ नहीं लेना-देना है

- रतन लाल जाट

(7) कविता-सोच
     
मैं हँसकर उसे कहता हूँ
कि अगर तुम लड़की नहीं होती
तो भी मैं इतना ही प्यार करता
उसने कहा दुनिया यह नहीं समझेगी
आज भी नारी के प्रति सोच नहीं बदली है
शरीर को छोड़कर कभी भीतर देखती नहीं है
हर तरफ माँ-बहन पर इनकी बुरी नजरें टिकी है
पता नहीं क्यों इतनी भ्रम में दुनिया जी रही है
कभी आत्मा तक उतरकर झाँकने का प्रयास करें
आँखों में छिपी बात दिल से पढ़कर ही जुबां खोलें

- रतन लाल जाट

(8) कविता- सबको प्यारी कविता
               
दुनिया की सबसे प्यारी
सबको ही प्यार करने वाली
एक किताब और उसमें बसी कविता
अनमोल मोतियों से बनी हुई माला
विज्ञान कितना ही बढ़ता जाये
किताब का जोड़ नहीं बना पाये
कविता सबसे न्यारी और पहली विधा
जिसकी बराबरी और कोई नहीं करता
जो आत्मा की बातें
बिना किसी कल्पना के
थोड़े में बहुत कुछ कह दे
बिना किसी दिखावे के

यह कविता फूल सी कोमल
और खुशबू सी निर्मल मधुर
चमकती सूर्य की किरण
पूर्णिमा के चाँद की मुस्कान
सृष्टि के कण-कण की कहानी
मौन भाषा है मासूम आँखों की
एक नयी सृष्टि कविता सहजता की
तोता-मैना कोयल-मोर
नदी-सागर पर्वत-छोर
घनघोर घटा एक भोर
आँधी-तूफान युद्ध और
कविता के विविध रूप
लगे सर्दी की सुहानी धूप
और कविता का नाम खूब
जैसे कलाओं में अकेली भूप

- रतन लाल जाट

(9) कविता- क्या तुम

उसने देखते ही
पूछ लिया था उनसे कि
क्या आप शराब पीते हो
क्यों किसने कहा है तुमको
बहुत जनों के मुँह से सुना
बताओ यह सही है या ना
थोड़ी देर रूककर कहा
हाँ, सच है पर तुम्हें तकलीफ क्या
कितनी नुकसानदायक है
मनुष्य को पशु से बदतर बना देती है
क्या आपको यह पता नहीं है
है पता है अच्छी तरह पता है
कहते-कहते आवाज़ काँप गयी
आज पहली बार मुँह पर बोला कोई
वरना छुपकर तो सभी कहते थे रोज ही
दिल रो उठा और आँखें भीग गयी
दो दिन हो गए हैं उसको छुए हुए
पर अब भी उसका मन नहीं कर रहा है

- रतन लाल जाट

(10) कविता- क्योंकि वह एक किसान है
     
वह झूठ नहीं बोलता
छल-कपट नहीं करता
चोरी-बेइमानी नहीं जानता
जीवन उसका सीधा-सादा
क्योंकि वह एक किसान है
रिश्वत का नाम सुना है नहीं
ना ही है कोई ऊपरी आमदनी
गाड़ी-बंगला भी है सरकारी नहीं
फिर भी अपने में है परम सुखी
क्योंकि वह एक किसान है
कभी पराये मर्द से नजर ना मिलाये
कोर्ट और तलाक का नाम ना जाने
वह अनपढ़-देहाती नारी कहवाये
घर-परिवार और रिश्तेदारी निभाये
क्योंकि उसका पति एक किसान है

- रतन लाल जाट

(11) कविता- मोबाइल
           
आज मन कुछ भारी था
पूरा दिन मोबाइल पर ही गुजर गया
फिर एक मैंने फैसला किया
जेब से बाहर निकाल मोबाइल को रख दिया
तब बड़ा सुकून मिला था
मानो कोई साँप-बिच्छू था
उससे अब निजात है मिला
कि वो मुझे नहीं डसेगा
क्योंकि उसको घर ही छोड़ आ गया
मैं दूर कहीं बाहर वन प्रकृति थी जहाँ
उस वक्त मैंने खुद को बहुत हल्का
कई दिनों के बाद महसूस किया था

- रतन लाल जाट

(12) कविता- नयी सुहानी सुबह
         
कई गिले और शिकवे
बहुत दिनों से मेरे भीतर थे
किसी जमी हुई बर्फ के जैसे
मैं सोच रहा था
कभी वक्त तो आने दे
फिर बता दूंगा उसे कि
वो कितना निर्दयी है
लेकिन जब मैं मिला
तो बड़ा ताज्जुब हुआ
उसके कुछ प्यार भरे लफ़्ज मात्र से
मेरे सारे गिले-शिकवे दूर हो गये
जैसे घनी अँधेरी रात में छाये
बादल बरस गये हो
और एक नयी सुहानी सुबह हो आयी है

- रतन लाल जाट

(13) कविता- दोराहे पर
            
कहीं मर्डर-रेप का
तांडव मच रहा
हर कोई लड़ने से
डर रहा और बच रहा
चुपचाप सब कुछ देख रहा
कहीं बाढ रूपी तांडव के बीच
दया-प्रेम नजर आ रहा
अपना-पराया भूलकर
चन्दा जुटाया जा रहा
दोनों दृश्य एक ही पटल पर
एक साथ देखे जा रहे हैं
वो कौन है
जो हैवानियत दिखा रहे
और वो कौन है
जो इनसानियत के लिए
बाजी जान की लगा रहे
वही लोग हैं और देश वही है
फिर क्यों खड़े दोराहे पर
मानव अंधकार में जाकर
पशु से भी बदतर बन रहे हैं

- रतन लाल जाट

(14) कविता- एक किताब
    
एक कमरे में
कुर्सी-टेबल पर
बैठे हुए मैं
एक किताब में
कुछ कहानियाँ
और कविताएँ
पढ़ते हुए
घूम-फिर आता हूँ
देश-विदेश में
वहाँ रहने वाले
लोगों के साथ
कई दिलों की
पीड़ा और खुशी
महसूस करता हूँ
पता ही नहीं चलता कि
वो देश भारत है
या कोई दूसरा
वो मानव पुरूष है या स्त्री
बच्चा हिन्दू है या मुसलमान
कुछ भी पता नहीं है
पर वे सब मुझे
जैसे अपने बनकर
अपने ही आसपास की बातें
सच्चे दिल से बताते हैं

- रतन लाल जाट



(15) कविता- इस दुनिया में
          
नहीं होनी चाहिए थी दुनिया
जहाँ पर हर कोई है दुश्मन
प्रेम के कातिल
नफरत के पुजारी
दीवार बनकर
खड़े हैं दिलों के मध्य
जबकि दूरी केवल बाहरी है
दिलों में रत्ती भर भी नहीं
आग लगे इस दुनिया में
जो आग लगाती खुशियों में
क्यों बनी थी धरती
क्यों हुआ था जन्म
इससे तो अच्छा
केवल शून्य में रहती
अपनी आत्माएँ
ना शरीर ना स्वार्थ
सिवा प्रेम के
नहीं चाहती है वो जन्म
प्रकाश पूंज बन साथ
हमेशा टिमटिमाती
इस दुनिया से
कई गुना ज्यादा बेहतर
क्यों नहीं लगी आग
इस दुनिया में

- रतन लाल जाट

(16) कविता- आत्मा के धागे

जब कभी समझा नहीं जाता
आत्मा के धागों से बना रिश्ता
उठायी जाती उंगली लोगों के द्वारा
कई आरोपों की भी होती कल्पना
उस वक्त उन पर गुजरती क्या
नहीं कभी किसी ने सोचा
वो एक पल भी दूर होना
सपने में भी चाहते है ना
तभी एक क्षण भर ही नहीं लगता
लोगों को उन्हें अलग करना देना
कितना आसान है खेल के जैसा
कौन पढ़ता है आँखों की भाषा
उन्हें तो बस काम है इतना
कि कोई खुश रह कैसे जी रहा

- रतन लाल जाट

(17) कविता- कवि-सम्मेलन
             
आज मनोरंजन ही कवि का कर्म क्यों बन गया
सम्मेलन में मात्र हास्य है करूणा-भाव कहाँ गया
अब ना कोई युद्ध जीतकर चाहिए हमको स्वतंत्रता
ना ही धर्म के नाम पर फैलानी है साम्प्रदायिक-हिंसा
आज कवि-सम्मेलन की है कुछ अलग ही आवश्यकता
बहू-बेटी, मजदूर-किसान के साथ वृद्ध माँ-बाप पर हो कविता
या जो अनाथ आश्रम में जाकर छोड़कर आये हैं जन्मदाता
या जो छेड़छाड़ और बुरी नजर रखकर करते हैं बड़ा कारनामा
या जो गर्भ में ही बेटी को अपने हाथों दिखा देते हैं द्वार यमलोक का
इसके अलावा और जगाना होगा दया-प्रेम और भाव मानवता का
यही आज के ज्वलंत विषय सामने अपने खड़े दिखा रहे हैं सच का आइना
अब कवि इन सबको पाथेय अपना बनाकर ही कविता करना होगा
बहुत हो गया है खेल थोथी हँसी हँसना और हँसाना
अब हँसा सको तो हर जन को खुलकर दिल से हँसाना
खिल उठे यहाँ से वहाँ गाँव-शहर, घर-पड़ोस का हर कोना
और रहने वाले हर बच्चे-बूढ़े-जवान का मुस्कुराये चेहरा
तभी सार्थक होगा तुम्हारा कवि होना और कविता करना
लानत है यदि कवि देख द्रवित ना हो आसपास की दुनिया
स्वर्ग के देव और मंगल के रोबोट पर जरूरी नहीं है लिखना
केवल घर-परिवार और खुद अपने में ही ढूँढनी होगी कविता

- रतन लाल जाट

(18) कविता- प्यार में   
       

किसी के प्यार में जीना
तपस्या से कम नहीं होता
सारी कायनात देखने लगता
उसमें ही खुदा मान बैठता

वह कितना मगन हो जाता है
जब उसे देख टकटकी लगाता है
बातें करता ही रहे जी चाहता है
समय थम क्यों ना जाये सोचता है

आँखों में दिखायी देती है हजार बातें
चाहती क्या है वो लबों से ही समझ जाये
जो भी हो चेहरा कम लगता नहीं हसीना से
सब कुछ सामने उसके लगता फीका-फीका है

दूर होकर भी हर वक्त साथ रहता
हर पल याद कर कभी ना भूलता
बात-बात पर चर्चा उसी की करता
जागते-सोते उसे सोचता और देखता

अकेले में पूछ लेता है अपने दिल से ही
वो अभी खाना बनाती या खा रही होगी
अभी तक नींद उसे शायद आयी है या नहीं
यह बात वो मुझे कहने को सोच रही होगी

आज सब कुछ सूना-सूना लग रहा है क्यों
पूछा तो पता चला कि यहाँ नहीं आयी है वो
कल बसंत था और अब आ गया बवंडर क्यों
बरसात तो तभी होगी जब आयेगी यहाँ वो

ऐसा लगता कि दूर से ही वो देख रही है
अकेले होने पर भी सदा वो साथ खड़ी है
खाना खा लिया फिर भी पेट क्यों खाली है
भीषण गर्मी में भी बहार किधर से आयी है

कभी अचानक मुलाकात हो जाती
कभी चाहकर भी मुलाकात नहीं होती
कभी बेवजह नाराजगी में बात नहीं होती
कभी सपने में नाराजगी भूल बात हो जाती

प्यार में खुशी और गम साथ ही रहते
रोने के कुछ समय बाद ही हँस पड़ते
सौ-सौ शिकवे पलभर में दूर हो जाते
छोटी-सी बात भी कह बिना नहीं रहते

कब हम आये और गये पता सबकुछ है
कहाँ थे और कैसे थे दिल को मालूम है
कई दिनों की जुदाई खत्म एक मिलन से
फिर भी जुदाई से बड़ा ना कोई दर्द है

- रतन लाल जाट

(19) कविता- वश नहीं चलता

अच्छा हुआ कि
यादों और सपनों पर
ख्वाबों और उम्मीदों पर
दुनियावालों का वश नहीं
वरना लोग कैसे जीते?
न प्यार में याद कर पाता कोई
न विरह में सपना संजोता कोई
न गरीब सिर उठाने की उम्मीद रखता
न कभी इन्सान ख्वाब कोई देखता
बस, एक यही इनके वश में नहीं है
बेचारे क्या करे कुछ भी पता नहीं है
दूरी-मजबूरी और बंधन सारे
धरे के धरे रह जाते हैं
और इन सबसे अनजान दुनियावाले
केवल देखते ही रह जाते हैं

- रतन लाल जाट

(20) कविता- बहुत याद आ रही है

वो कहते हैं
मैं उसको भूल गया
अब कभी याद नहीं करता
लेकिन देखता हूँ
अनायास ही वो
बोल देते हैं नाम उसका
फिर मुस्कुराने लगते
इसी तरह राह में जाते हुए
उसको टकटकी लगाये देखते
जब भी कहीं दिखायी देता है
नाम उसका दीवार या किताब में
तो अचानक चौंक पड़ते हैं
जैसे कोई सपना टूटने पर
नींद जाग गयी हो
और देखता हूँ उनको
चेहरे पर उदासी,
आँखों में नमी
और दिल में दर्द लिए
जैसे अभी-अभी
प्यार करना सीखा है
और शायद किसी की
बहुत याद आ रही है

- रतन लाल जाट

---

गजल- रिश्ता, दोस्ती और प्यार
                      
रिश्ता एक बंधन निभाओ या निभाना पड़ता है।
रिश्ता जो अटल है नहीं, बनता और खोता है॥

दो यारों की दोस्ती ने कुछ अलग ही फरमाया कि -
अब तक हमको यार दुनिया ने अनमोल तोला है॥

प्यार का सौदा देखा नहीं, ना कभी होता है।
वो चाहे या ना चाहे, पर हमने दिल में घोला है॥

प्यार अटल है, बिन प्यार तो जग सारा सूना है।
दिन-रात इसी आगी में जलता, दिल मेरा सोना है॥

रिश्ते फिर से जोड़ लेंगे, मगर प्यार कब होगा?
दोस्ती अपनी-अपनी जरूरत है, क्या प्यार भी कोई खिलौना है?

आज तक दीवानों ने कभी कोई रिश्ता नहीं जोड़ा है।
बस, दिल देकर खुद अपनों को ही तोड़ा है॥

मेरे प्यारों! समझ लो, इनमें कौन छोटा या बड़ा है।
फिर बोलो और कुछ सोचो, क्या प्यार खोटा है?


खुदा ने भी तो प्यार के खातिर जन्नत तक छोड़ा।
तो फिर इन्सान को क्यों ना किसी से प्यार होता है॥

प्यार जीवन है और जीवन-समर में एक शोला-सा।
उस दिन बगिया जल जाती, जब प्यार तड़प-तड़प रोता है॥

रिश्ता मजबूरी, दोस्ती को जरूरत अपनी सबने कहा है।
प्यार खुदा, खुदा के लिए भी वो बेजोड़ ‘रतन’ होता है॥

- रतन लाल जाट

गजल- प्यार के खातिर मैं
            
मैं प्यार करने से कभी ना डरूँगा।
प्यार के खातिर गोली भी मैं खाऊँगा॥

अपने दिल को इतना मजबूत मैं कर लूँ।
तब ही प्यार के रस्ते पर मैं चलूँगा॥

कभी ना मैं एक मंजिल पर ठहरूँ।
बस, आगे ही आगे मैं बढ़ता रहूँगा॥

प्यार में जीना भी जीना है नहीं, इतना मैं कहूँगा।
मरके भी अंत प्यार का होगा नहीं, सबको मैं बताऊँगा॥

दिलवालों! अपने दिलों को नेक-राह मैं बतलाऊँ।
डर ना जाना एक दिन जीत सबको मैं दिलाऊँगा॥

फिर भी मैं दिल किसी का कभी ना टूटने दूँ।
टूटे हुए दिलों की माला में मोती पिरोऊँगा॥

मेरे रब्बा! तुझसे मैं सिर्फ प्यार ही मागूँगा।
सिवाय इसके दुनिया में कभी ना जी पाऊँगा॥


जिसने भी प्यार किया और प्यार दिया, उसी को चाहूँ मैं।
मरके भी कभी ना दामन अपना उससे छोड़ूँगा॥

दुनिया की इस महफिल से खोटे सिक्कों को मैं भुनाऊँगा।
बदले में हजारों हीरे-मोती और ‘रतन’ तुमको दिखाऊँगा॥

- रतन लाल जाट

गजल- विरह गीत
                   
मेरे लबों से निकला हर शब्द,
दिल की तड़प वो साहित्य बन उभरता है।
लोग कहते कि- विरह गीत,
मैंने उसको अपने अश्कों से सींचा है॥

फिर भी गम को हँसकर भूलाता,
रोता भी तो बस चुपचाप यहाँ मैं।
जुदाई के दिन दुखी होकर नहीं,
खुश रहके ही सुख में बीताना है॥

अपने साथ की है दुआ तुम्हारी,
हर दुख-दर्द से रब बचाना रे।
मेरे हाल से भी हो हालत उनकी प्यारी,
बस, तुमको अच्छे से भी और अच्छा बनाना है॥

मेरी याद! उनको तू जितना हो कम,
रूलाना-सताना, ना कभी तड़पा ए!
जी लूँगा मैं हर गम उठाकर,
कभी ना उनको मेरा गम दिलाना है॥

भोली-भाली उदास सूरत,
हमको कभी अच्छी लगती ना है।
बड़ी-बड़ी आँखों से बरसात,
हमारे दिल को और बनाती अंगारा है॥

यदि उनके दिल में हलचल होगी,
तो तूफान उठ जायेगा मेरे जीवन में।
इसीलिए पहरेदार बनकर दिन-रात,
मैंने उनको सीने से लगाया है॥

धूप-छाँव में अन्दर और बाहर,
कभी दिन कभी रात अंधेरे में।
उसको सर्दी-गर्मी से बचाकर,
हमेशा ही फूल-सा सजाया है॥

जीना-मरना संग उनके,
यही मैंने रब से माँगा है।
वरना दुनिया में ‘रतन’ अकेले,
जिन्दगी को भी मौत जैसा पाया है॥

- रतन लाल जाट

गजल- प्यारी कलम
              
प्यारी कलम! तू दिन-रात संग रहती है
हँसी-खुशी में मुझको नया राग देती है॥

साथ छोड़ूँ ना कभी तेरा
जब तक ना आ पहुँचे अंत घड़ी है।
दिल से लगाकर रग-रग में बसाकर
अपने को तुझमें ही साकार करने की ठानी है॥

कलम खींचती तीनों लोक के चित्र नये
खुदा को भी कुछ नया सिखलाती है।
आँखों के अन्दर छुपी हर पुकार
कलम पलभर में साकार कर देती है॥

माँ शारदे का आधार और मेरा हथियार
तलवार से भी तीखी धार इसकी है।
जड़ में नव चेतन भर निर्माण कर
जग को और सुन्दर जग बनाती है॥

तू सतरंगे पँखोंवाली
रोम-रोम में हलचल करती है।
गहन विचारों की उलझन से
पलभर में मुक्त विजय मुझको बनाती है॥
तेरी जरूरत विधि के ज्ञाता को
हर कागज सजाने में होती है।
इस भव-सागर के किनारे खुले पत्तों पर
मुझको कलम बनके नव-रचना करनी है॥

मेरा जीवन, मेरा राग तू अनमोल ‘रतन’ जैसी है।
कलम! बड़ी अजब-गजब तेरी यही कहानी है॥

- रतन लाल जाट


कव्वाली गीत - टूटने दो ना दिल
                                     
तेरी रहमत से ही दिल अपने मिलते हैं
जब तू चाहे तब ही रब्बा मिलन होता है
यही पुकार तुझसे अब मैं भी करता हूँ                          
दिल के धागों को मजबूत तू ही बनाता है

टूटने दो ना दिल मोरे अल्लाह
टूटकर ना मैं जी पाऊँगा कभी - 4

हर इक राह पर बिछे हैं शूल
चल दिया मैं तो फूल समझके  - 2
जब तलक मिलायेगा ना तू कहीं
हारकर मैं यहाँ ना बैठूँगा कभी
टूटने दो ना दिल मोरे अल्लाह
टूटकर ना मैं जी पाऊँगा कभी

टूटने दो ना सपना कहीं
टूटने दो ना विश्वास कभी
टूटने दो ना हमको भी
टूटने दो ना डोर मोरे मौल्लाह
टूटकर ना मैं जी पाऊँगा कभी


प्रेम-पथ पर चलते हुए तो
मैं दर्द-औ-गम में डूब गया हूँ -2
फिर भी ना मैं इनसे डर रहा हूँ
दीवानों बीच इक बेगाना हो गया हूँ -2
मिला दे मुझको आज तू दिलरुब्बा
मिलने को अब तलक हूँ मैं रूका -2
नसीब मिलन मेरे भी लिख पल भर का
जब तलक मैं जब तलक मैं
मिला नहीं तो जाऊँगा भी नहीं
हारकर मैं यहाँ ना बैठूँगा कभी
टूटने दो ना दिल मोरे अल्लाह
टूटकर ना मैं जी पाऊँगा कभी
टूटने दो ना लड़ी मोरे बागबान
टूटकर ना मैं जी पाऊँगा कभी
टूटने दो ना दिल मोरे अल्लाह
टूटकर ना मैं जी पाऊँगा कभी

मालुम है तुझको क्या कब तलक होना है
एक तेरे ही ईशारे से सब कुछ तो होता है -2
प्रेम सच्चा है तो मिलन होगा ही
एकदिन खुद तू ही तो मिलायेगा कभी -2
ऐ खुदा कभी वो घड़ी भी आयेगी
जब तलक तू ऐसा चाहेगा नहीं
हारकर मैं यहाँ ना बैठूँगा कभी

टूटने दो ना दिल मोरे अल्लाह
टूटकर ना मैं जी पाऊँगा कभी

कर दे मुराद तू पूरी अब दाता
अब मिला दे मुझको प्रियतम से -2
जब तलक मिला दे ना तू सजनी
हारकर मैं यहाँ ना बैठूँगा कभी
टूटने दो ना दिल मोरे अल्लाह
टूटकर ना मैं जी पाऊँगा कभी

टूटने दो ना सपना कहीं
टूटने दो ना विश्वास कभी
टूटने दो ना हमको भी
टूटने दो ना डोर मोरे मौला
टूटकर ना मैं जी पाऊँगा कभी

सुनो सुनो दयानिधि, सुनो दयानिधि-दयानिधि
सुनो दयानिधि-दयानिधि सुनो दयानिधि-दयानिधि

- रतन लाल जाट

                  दोहे
खरी बात मन में चुभे, मगर करे उपकार।
जो नहीं बड़ों की सुने, उसकी होये हार॥1

वृक्ष बोया है नीम का, बबूल तू मत जान।
चाहे जड़-मूल कड़वा, फिर भी रोग-निदान॥2

जंगल ना नष्ट करना, बगिया है दिन चार।
फल-फूल पौधा देगा, कई हजारों साल॥3

रंग एक है सभी का, पुकारो हरे नाम।
सात रंग सिर्फ सपना, कैसे हो पहचान॥4

करना कोशिश हमेशा, रहिए सदाबहार।
भूले ना काम अपना, कोई भी अनजान॥5

प्रेम की बातें दिल में, नहीं किसी को काम।
दिल में ही रखिये इन्हें, यही प्रेम-पहचान॥6

सुख-दुख जीवन लहर है, यह आँधी-तूफान।
हँसी और गम दोनों, एक वस्तु दो नाम॥7

कहे नहीं करे कोई, ना कुछ ऐसा काम।
पहले करके दिखाये, तो बनती है बात॥8

धर्म नहीं बढ़ कर्म से, बड़ा है कर्म नाम।
धर्म विनाश संभव है, नहीं कर्म की हार॥9

नित रहिये बचकर सभी, घृणित है तीन काम।
चरित्रहीनता संग है, पाप व चोरी नाम॥10

पंच लक्षण उत्तम नारी, देख करो पहचान।
पतिव्रता, पढ़ी-लिखी जो सुन्दर-सुशील काम॥11

मन में छुपा बैठा है, राक्षस अनेक रूप।
जगने का अवसर नहीं पाप कराये खूब॥12

मर्यादा न टूटे कभी, तो बनता है काम।
बिना मर्यादा कुछ नहीं, होये सबका नाश॥13

पाप पौधा अफीम का, उगने का ना ज्ञान।
फल आने पर थमे ना, चोरों कोना बास॥14

नारी कभी मिटे नहीं, मिटाये वो दुर्भाव।
शक्ति है पावन ऐसी जो ना माने हार॥15

रूचि अनुरूप काम में, तन-मन लगन लगाय।
तो मिलेगी हमें खुशी, संग सफलता आय॥16

नकल की नकल सब करे, नकल ना कलाकार।
कोई मौलिक काम हो, तब बने सृजनहार॥17

नित-नित सुबह पाप बढ़े, शाम हो मिले हार।
पहले सत्य कर्म करें, फिर जीते उस पार॥18

गुप्त भेद सारे पल में, आँखें देती खोल।
कितना तू छिपायेगा, पागल कुछ तो बोल॥19

जो भी माँ-बाप ने घर, छोड़ आश्रम बताय।
शाम ढले तू देख ले, पथ वही नजर आय॥ 20

- रतन लाल जाट

---

  कवि-परिचय 
रतन लाल जाट S/O रामेश्वर लाल जाट
जन्म दिनांक- 10-07-1989
गाँव- लाखों का खेड़ा, पोस्ट- भट्टों का बामनिया
तहसील- कपासन, जिला- चित्तौड़गढ़ (राज.)
पदनाम- व्याख्याता (हिंदी)
कार्यालय- रा. उ. मा. वि. डिण्डोली
प्रकाशन- मंडाण, शिविरा और रचनाकार आदि में
शिक्षा- बी. ए., बी. एड. और एम. ए. (हिंदी) के साथ नेट-स्लेट (हिंदी)
मोबाइल नं.- 9636961409
ईमेल- ratanlaljathindi3@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. सभी प्रेमीजन इस संकलन को पढ़ने के बाद अपनी राय जरूर दें

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: काव्य संकलन - पहेली - रतनलाल जाट
काव्य संकलन - पहेली - रतनलाल जाट
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEglytwGPz-6fSV92BE7IHbcZ_VwqStCkun7jOiKNEIOq4uwYLR72TKxfigMA6sisvxoWIGWucfsm2RcbeiI185HAPUucDB_Z5DeI6KAGGbdkeN97zgyZdZheVuyrk3u1xm6FlOL/s200/ratan+lal+jat.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEglytwGPz-6fSV92BE7IHbcZ_VwqStCkun7jOiKNEIOq4uwYLR72TKxfigMA6sisvxoWIGWucfsm2RcbeiI185HAPUucDB_Z5DeI6KAGGbdkeN97zgyZdZheVuyrk3u1xm6FlOL/s72-c/ratan+lal+jat.jpg
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2019/02/blog-post_4.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2019/02/blog-post_4.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content