पुस्तक समीक्षा १. पुस्तक का नाम :-सम्राट मिहिर भोज एवं उनका युग २. लेखक :- विजय नाहर ३. प्रकाशक का नाम, प्रकाशन स्थल :- पिंकसिटी प्रकाशन...
पुस्तक समीक्षा
१. पुस्तक का नाम :-सम्राट मिहिर भोज एवं उनका युग
२. लेखक :- विजय नाहर
३. प्रकाशक का नाम, प्रकाशन स्थल :- पिंकसिटी प्रकाशन, जयपुर
४. प्रकाशन वर्ष :-2015
५. आवृत्ति :-प्रथम
६. आई एस बी एन न० :-9789384620431
७. पुस्तक का मूल्य :-300
८. पुस्तक का विषय:- गुर्जर प्रतिहार वंश एवं उनका इतिहास
9. सारांश: गुर्जर प्रतिहार वंश के साम्राज्य की स्थापना मंडोर के राजा हरिश्चंद्र के पोते नागभट्ट प्रथम ने की। उसका राज्य प्रारंभ में भीनमाल रहा जो कि उस काल में गुजरात की राजधानी मानी जाती थी। नागभट्ट प्रथम के परिचय से पूर्व इस ग्रंथ में गुर्जर प्रतिहार वंश के उदय के बारे में जानकारी दी गई है। यह गलत धारणा बताई गई कि गुर्जर प्रतिहार विदेशी थे। वस्तुतः यह विशुद्ध भारतीय थे मूलतः इन की उत्पत्ति इस ग्रंथ के अनुसार ब्राह्मण हरीशचंद्र एवं उनकी क्षत्रिय पत्नी से उत्पन्न को प्रतिहार कहा गया जैसे लक्ष्मण ने जीवन भर भगवान राम और सीता की प्रतिहारिता की उसी प्रकार प्रतिहार वंश ने भारत पर हो रहे अरब इस्लामिक विदेशी आक्रमणों से भारत की रक्षा कर प्रतिहारिता का काम किया। इसीलिए यह प्रतिहार कहलाए ।इस ग्रंथ के अनुसार चुंकी इस राजवंश को स्थापित करने वाला प्रथम शासक नागभट्ट प्रथम भीनमाल का राजा बना जो कि गुर्जर देश की राजधानी थी इसलिए नाम के आगे गुर्जर प्रतिहार वंश लगाया गया। आगे चलकर जब यह कन्नौज के शासक बने गुर्जर प्रतिहार नहीं बल्कि मात्र प्रतिहार राजवंश ही कहलाया। नागभट्ट प्रथम ने उज्जैन तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया उनके पोते वत्सराज ने उसको आगे बढ़ा कर अपनी राजधानी भीनमाल से उज्जैन स्थानांतरित की। उज्जैन से उसने अपने साम्राज्य का विस्तार पूर्व में बंगाल तक किया। इस ग्रंथ के अनुसार इसका उत्तराधिकारी सम्राट नागभट्ट द्वितीय बहुत प्रक्रम शासक हुआ। उसने आगे बढ़ कर अपने साम्राज्य का बहुत विस्तार किया और अपनी राजधानी को कन्नौज स्थानांतरित कर दिया। नागभट्ट के बाद रामभद्र कुछ समय तक शासक रहा रामभद्र के बाद 836 ईस्वी में महान सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार प्रथम का उदय हुआ ।जिसने संपूर्ण उत्तर भारत को एक सूत्र में संगठित किया। एक बहुत बड़ी शक्ति खड़ी की। परिणाम स्वरूप पश्चिम की ओर से आने वाले विधर्मी शासकों को मुस्लिम शासकों को भारत में प्रवेश करने की हिम्मत नहीं पड़ी। भारत की शक्ति की धाक संपूर्ण एशिया मे पड़ने लगी। भोज की ग्वालियर प्रशस्ति एवं उसके अनेक अभिलेख शिलालेख ताम्रपत्र और उस काल के अन्य अभिलेख इस बात के साक्षी हैं इनके अलावा अरब यात्री सुलेमान का यात्रा वर्णन सम्राट मिहिर भोज साम्राज्य की उपलब्धियां खुशहाली वैभव संपन्नता का परिचय प्रस्तुत करता है सम्राट मिहिर भोज को श्रीमद आदिवराह परमेश्वर से भोज देव मिहिर परम भगवती भक्त आदि उपाधियों का उल्लेख यत्र तत्र मिलता है। सम्राट भोज के सोने चांदी तांबे और मिश्र धातु के सिक्के उसके साम्राज्य के वैभव और विस्तार को प्रकट करने के लिए पर्याप्त साक्षी है अरब यात्री सुलेमान के अनुसार जुज्जर नरेश मिहिर भोज के पास विशाल सेना है। किसी भी अन्य भारतीय नरेश के पास मिहिर भोज से अच्छी घुड़सवार सेना नहीं है ।उसकी विशाल सेना में ऊंट और घोड़ों की संख्या अधिक है। वह अरबों का शत्रु है। मुस्लिम इतिहासकार बिल्ला दूरी लिखता है की अरब मुस्लिमों में सम्राट मिहिर भोज का इतना आतंक था। अरबों को प्रतिहारों से अपनी रक्षा के लिए कोई सुरक्षित स्थान मिलना ही कठिन था। उन्होंने एक झील के किनारे अल हिंद सीमा पर अल महफूज नामक एक शहर बसाया था। जिसका अर्थ सुरक्षित होता है। इस ग्रंथ के अनुसार मिहिर भोज से विस्तारित साम्राज्य 942 ईसवी तक सुरक्षित चला। मिहिर भोज के बाद सम्राट महेंद्र पाल प्रथम , सम्राट भोज द्वितीय ,सम्राट महिपाल प्रथम बड़े बड़े शक्तिशाली वैभव संपन्न एवं सुसाशित साम्राज्य चलाया। इस ग्रंथ में विश्वस्त साक्ष्यों के नाम, संदर्भ ग्रंथों के नाम, उसके साम्राज्य विस्तार के नक्शे, उसके साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्थाओं की विशेषताओं का वर्णन किया गया है।
10. प्रमुख अंश:-एक ऐसा गुर्जर सम्राट जिसने अरब तुर्क मुस्लिम आक्रमणकारियों को भागने पर विवश कर दिया और जिसके युग में भारत सोने की चिड़िया कहलाया।
नवमी शताब्दी में सम्राट मिहिर भोज भारत का सबसे महान शासक था। उसका साम्राज्य आकार, व्यवस्था , प्रशासन और नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता के लिए चक्रवर्ती गुप्त सम्राटों के समकक्ष सर्वोत्कृष्ट था। भारतीय संस्कृति के शत्रु म्लेछों यानि मुस्लिम तुर्कों -अरबों को पराजित ही नहीं किया अपितु उन्हें इतना भयाक्रांत कर दिया था की वे आगे आने वाली एक शताब्दी तक भारत की और आँख उठाकर देखने का भी साहस नहीं कर सके।
चुम्बकीय व्यक्तित्व संपन्न सम्राट मिहिर भोज की बड़ी बड़ी भुजायें एवं विशाल नेत्र लोगों में सहज ही प्रभाव एवं आकर्षण पैदा करते थे। वह महान धार्मिक , प्रबल पराक्रमी , प्रतापी , राजनीति निपुण , महान कूटनीतिज्ञ , उच्च संगठक सुयोग्य प्रशासक , लोककल्याणरंजक तथा भारतीय संस्कृति का निष्ठावान शासक था।
ऐसा राजा जिसका साम्राज्य संसार में सबसे शक्तिशाली था। इनके साम्राज्य में चोर डाकुओं का कोई भय नहीं था। सुदृढ़ व्यवस्था व आर्थिक सम्पन्नता इतनी थी कि विदेशियों ने भारत को सोने की चिड़िया कहा। यह जानकार अफ़सोस होता हे की ऐसे अतुलित शक्ति , शौर्य एवं समानता के धनी मिहिर भोज को भारतीय इतिहास की किताबों में स्थान नहीं मिला।
सम्राट मिहिर भोज के शासनकाल में सर्वाधिक अरबी मुस्लिम लेखक भारत भ्रमण के लिए आये और लौटकर उन्होंने भारतीय संस्कृति सभ्यता आध्यात्मिक-दार्शनिक ज्ञान विज्ञान , आयुर्वेद , सहिष्णु , सार्वभौमिक समरस जीवन दर्शन को अरब जगत सहित यूनान और यूरोप तक प्रचारित किया।
सम्राट मिहिर भोज ऐसा शासक था जिसने आधे से अधिक विश्व को अपनी तलवार के जोर पर अधिकृत कर लेने वाले ऐसे अरब तुर्क मुस्लिम आक्रमणकारियों को भारत की धरती पर पाँव नहीं रखने दिया , उनके सम्मुख सुदृढ़ दीवार बनकर खड़े हो गए। उसकी शक्ति और प्रतिरोध से इतने भयाक्रांत हो गए की उन्हें छिपाने के लिए जगह ढूंढना कठिन हो गया था। ऐसा किसी भारतीय लेखक ने नहीं बल्कि मुस्लिम इतिहासकारों बिलादुरी सलमान एवं अलमसूदी ने लिखा है। ऐसे महान सम्राट मिहिरभोज ने ८३६ ई से ८८५ ई तक लगभग ५० वर्षों के सुदीर्घ काल तक शासन किया।
प्रस्तुत पुस्तक में गुर्जर सम्राट मिहिर भोज एवं उनके युग को विस्तृतता से वर्णित किया गया है..
11. निष्कर्ष :- सम्राट मिहिर भोज पर इतनी विशाल और तथ्यात्मक साक्ष्यों से भरपूर प्रथम विशाल ग्रंथ है जो इस बात को नकारने के लिए स्पष्ट प्रमाण है की 647 से 1200 ई तक का काल अंधकार युग था।
12. सुझाव :– लेखक विजय नाहर भारतीय इतिहास संकलन योजना के राजस्थान क्षेत्र के महामंत्री रह चुके हैं उन्होंने बहुत परिश्रम और अध्ययन से यह खोज निकाला की विदेशी इतिहासकारों द्वारा जिसे अंधकार का काल कहा गया उस काल में ऐसे ओजस्वी और वीर शासक भारत में उत्पन्न हुए जिन्होंने संपूर्ण उत्तर भारत को एक जुट शासन शक्ति में संगठित कर ऐसी स्थिति खड़ी की कि मुस्लिम आक्रांओं भयभीत कर भारतीय सीमाओं की रक्षा की व् उन्हें बाहर खदेड़ दिया व् उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए स्थान खोजना कठिन हो गया। लेखक की भाषा शैली प्रवाहमान एवं प्रभावी है। हर घटना का विश्लेषण पुष्ट साक्ष्यों के साथ किया है। इतिहास के विद्यार्थियों, व्याख्याताओं एवं पाठकों के लिए यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी साबित होगी।
लेखक परिचय-https://en.m.wikipedia.org/wiki/Vijay_Nahar