साहित्यकार का फर्ज - खान मनजीत भावडिया मजीद

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किसी भी तरह की लेखकीय रचना करने वाला एक समाज का अभिन्न अंग होता है । वह किस तरह के समाज में रहता है । किस तरह के काम करता है उन कामों के प्र...

किसी भी तरह की लेखकीय रचना करने वाला एक समाज का अभिन्न अंग होता है । वह किस तरह के समाज में रहता है । किस तरह के काम करता है उन कामों के प्रति साहित्यकार की विशेष रूचि होती है और उसने रूचि रखनी भी चाहिए ताकि साहित्यकार अपनी रचना के माध्यम से अपने समाज मे हो रही घटनाओं को अपनी कलम के द्वारा उजागर कर सके । अपने विचारों की अभिव्यक्ति प्रदान करता है । वह अपने असंतोष के हिसाब से भी रचनाकार का उसके शब्दों के प्रभाव से पता चल जाता है कि वह रचनाकार कैसा है उसकी लेखनी से भी पता चल जाता है । साहित्यकार की रचनाओं से ही उसके साहित्यिक व्यवहार का पता चल जाता है । 


          देश के उत्थान के प्रयास काफी सालों से चले आ रहे है इस उत्थान में कवि की भी अहम भूमिका रहती है । वह अपनी भूमिका को अलग कर पाना नामुमकिन समझता है  । अगर ऐसा साहित्यकार सोचने का प्रयास करता है कि मेरा इसमें कुछ लेना देना नहीं होगा । वह देश का उत्थान देश के सभी नागरिकों का मिला जुला प्रयास होगा उस प्रयास का साहित्यकार भी उसका अहम हिस्सा है । कवि भी समाज का अभिन्न अंग है । उसे भी देश के उत्थान के लिए अपनी भूमिका का निर्वहन करना होता है ।


            साहित्यकार चाहे वह कवि हो, कहानीकार हो  और चाहे वह अन्य तरह की रचना करने वाला हो वह अपनी रचनाओं के माध्यम से भी लोगों में उत्साह का संचार करने का कार्य करता है । वह अपने छिपे हुए प्रतिभा को उजागर करता है । और अपनी रचनाओं में वह लोगों को जगाने का काम करता है । उनकी रचनाओं में बहुत बडी शक्ति होती है । दिनकर जी चांद और कवि की कल्पना इस तरह करते हैं ।

         

मैं न वह,

           जो स्वप्न पर केवल सही करते ,

           आग में उसको गला,

           लोहा बनाती हूं

           और उस पर नींव रखती हूं

           नए घर की

           इस तरह दीवार फौलादी

           उठाती हूं ।


कवि की कविता में अनेक तरह की शक्ति होती है वह का्रंति की आग जला सकता है। कवि अपने मन चाहे ढंग से समाज का परिवर्तन कर सकता है । कवि अपने कवित्व में समाज की नई बुनियाद खडी कर सकता है कवि का काम मात्र कल्पना करने तक ही सीमित नहीं होता बल्कि देश के निर्माण में उसकी अहम भूमिका होती है । उसमें अनेक प्रकार की लेखन शक्ति होने के साथ साथ उसमें समाज को समझने की क्षमता होती है । कवि स्वप्न तो लेता है परन्तु हर बार स्वप्न में नहीं डूबा होता है । कवि की भूमिका एक बड़ी क्रांतिकारी जैसी भूमिका होती है

     समाज पर युगों की भावधाराओं का प्रभाव रहा है । प्रत्येक युग में अनेक तरह के साहित्यिक भाव उत्पन्न हुए है और उन भावों को साहित्यकारों ने अपने अलग-2 नजरिये से देखा है । प्रत्येक भाव धारा का प्रभाव समाज पर पड़ा है किसी युग में कम तो किसी में ज्यादा रहा है । उन भावों का बहना और उसको लेखनी के द्वारा उजागर करना मुख्य काम कवियों का रहा है । कवि साहित्य के द्वारा समाज के लोगों को नई प्ररेणा या दिशा देने का काम करता है । समाज में परिवर्तन लाने की शक्ति केवल साहित्यकार में ही छिपी होती है । उसकी शक्ति तोप,गोले,तलवार,भाले,बम में भी नहीं होती है । यूरोप और रूस इसके तरोताजा उदाहरण देखने को मिलते है जिनमें क्रांति लाने का श्रेय केवल ओर केवल साहित्यकार को ही जाता है और इस श्रेय से धार्मिक रूढियों को जड से उखाड़ फैंकने का काम किया है । इसमें केवल राज क्रांति और स्वतन्त्रता के बीज बोए है साहित्य ने केवल मरे हुए राष्ट्रों को जीवित करने का काम किया है और देश के उत्थान के लिए केवल साहित्यकारों ने काम किया है साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं के जरिये लोगों में मशाल जलाने का काम किया है और उस मशाल ने पूरे देश को रोशन किया है । जिसकी रोशनी आज हर घर तक जा रही है लेकिन उस रोशनी की रूकावट आज के राजनेता कर रहे है जो कि वह रोशनी गरीब तक नहीं जा रही है उस रोशनी का नाम स्वतन्त्रता है उस गरीब को दोबारा रोशनी देने का काम भी साहित्यकार ही करेगा  क्योंकि साहित्यकार अपनी लेखनी के माध्यम से समाज को जगाने का काम कर रहा है उस समाज का हिस्सा वो गरीब तबका भी है ।

              

साहित्यकार मानव संबंधों में परिवर्तन लाता है साहित्य मानव संबंधों से परे नहीं होता है साहित्यकार केवल भगवान पर ही नहीं लिखता वह मानव को अपनी और भी खींच लेता है । साहित्यकार का यह भी दायित्व बनता है कि  वह बहुसंख्यक लोग जो दिन रात मेहनत कर रहे है उनकी मेहनत को वो अपनी कविता कहानी में आवाज देकर उस बहुसंख्यक के जीवन में बदलाव कर सकता है । ताकि वह अन्याय, अत्याचार के विरूद्ध संघर्ष करने को तैयार हो सके साहित्यकार लोगों को लोगों की उदासीनता को समझना और अपनी लेखनी के माध्यम से उस उदासीनता को दूर करने का प्रयास करना ही मुख्य काम है । समाज में रह रहे लोगों के बीच में कवि के उनके चेहरों को पहचान करके उन चेहरों को भी अपनी लेखनी के अन्दर ढाल सकता है । लोगों के अन्दर सामाजिक चेतना का  उत्पादन का काम केवल कवि या लेखक अपनी रचनाओं के माध्यम से कर सकता है । क्रांति रूपी लावा और ज्वार भाटे का काम भी एक साहित्यकार ही कर सकता है । लोगों के अन्दर सामाजिक चेतना का विकास भी लेखक  के माध्यम से होता है ।

              

जब तक लेखक किसी मानव की बड़ाई में अपने आलेख लिखता है तो वह लेखक ज्यादा दिन तक धरातल पर नहीं टीक पाता है उसे केवल ओर केवल समुदाय या व्यक्तित्व की नजर से आंकने लग जाएंगे । उसे केवल राजनैतिक कवि का ठप्पा लग जाएगा । वह समाज में रह रहे लोगों की समस्या की रग को नहीं पकड़ पायेंगे । कवि चाहे थोड़ा लिखता हो लेकिन उसके लेखन मे वह हर व्यक्ति हो जो सुबह से लेकर शाम तक मेहनत करता है उस मेहनत के कई रूप हो सकते है चाहे वह चिनाई मजदूर हो, चाहे वह भटठा मजदूर हो, चाहे वह रिक्शा चलाने वाला हो, चाहे वह खेत मे काम करने वाला हो, चाहे वह किसान हो या अनेक प्रकार के कार्य करने वाला हो और जो धरातल से जुड़ा हो ऐसे व्यक्तियों के लिए अपने कलम को उठाना है और इन की समस्याओं को लिखना है आम जन को बतलाना है वही असली लेखनकार है ।


           जैसा कि पहले भी बताया था कि साहित्यकार समाज में अन्दर एक पथ पदर्शक का काम भी करता है । तब उस साहित्यकार की बड़ाई अपने आप होने लग जाएगी जब वह जन जन के भीतर समग्र रूप से परिवर्तन करने वाला पुरोहित की तरह आगे बढ़ता रहेगा । इस तरह वह अपने साहित्य को उन्नत पैदा कर सकता है और एक समृद्ध  समाज की स्थापना कर सकता है ।

            साहित्यकार को केवल अपने सुख के लिए रचना नहीं करनी चाहिए बल्कि उसने पूरे समाज को ध्यान में रखकर अपनी लेखनी को उमेड़ना घुमेड़ना चाहिए अपना सामाजिक दायित्व को पूरा करते हुए अपनी रचना का कार्य करना चाहिए लेखक एक बुद्धिजीवी वर्ग से अपने ताल्लुकात रखता है और समाज के हित में, सुख की बात भी सोचे । जब समाज से वह बहुत कुछ पाता है तो उसका फर्ज भी बन जाता है कि समाज को कुछ वह प्रदान करे प्रत्येक साहित्यकार ने  उत्कृष्ट  समाज के प्रति निर्णय में अपना योगदान देना चाहिए ।  कलमकार भी इसे अछूता नहीं है साहित्य का भी आदर्श समाज को बनाने में अपनी विशेष भूमिका अदा करता है । इस तरह साहित्यकार की विशिष्ट भूमिका को अदा करने में कभी पीछे नहीं हटता और हमेशा आगे के पथ पर चलता रहता है । साहित्यकार ने समाज के हित के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए । यही साहित्यकार का फर्ज है ।


                                           -लेखक-

                                 खान मनजीत भावडिया मजीद

                                 शैक्षणिक नाम मनजीत सिंह

                   गांव भावड तह गोहाना जिला सोनीपत-131302

   छात्र पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला एम ए उर्दू

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