जब महावीर हनुमान ने सीता,लक्ष्‍मण,भरत के प्राणों की रक्षा की - आत्‍माराम यादव पीव

SHARE:

       गोस्‍वामी तुलसीदास रचित श्रीरामचरित्र मानस रामायण में महावीर हनुमान के अनेक स्‍वरूप के दर्शन होते हैं। जहॉ मारूति, आंजनेय,बजरंगवली, म...

       गोस्‍वामी तुलसीदास रचित श्रीरामचरित्र मानस रामायण में महावीर हनुमान के अनेक स्‍वरूप के दर्शन होते हैं। जहॉ मारूति, आंजनेय,बजरंगवली, महावीर,हनुमान  जैसे अनेक नामों से वे विख्‍यात हुये वही शिवजी के 11 वे रूद्र का अवतार होने से वे सबसे बलवान और बुद्धिमान भी है और उनके पराक्रम एवं चार्तुय से ही सुग्रीव, माता सीता, लक्ष्‍मण एवं भरत के प्राणों पर आये संकट से को दूर कर उन्‍हें जीवनदान हनुमान आज अजर अमर हो गये। हनुमान सुग्रीव के परमहितैषी व सेवापात्र के रूप में दिखाई देते हैं । सीता की खोज में ऋष्‍यमूक पर्वत की ओर कदम बढ़ा रहे प्रभु श्रीराम और लक्ष्‍मण के समक्ष ब्राम्‍हण भेष में पहुंचकर हनुमानजी अपने प्रभ से परिचय मॉगते हैं। जब राम द्वारा कौशलाधीश दशरथ के पुत्र के रूप में अपना नाम राम लक्ष्‍मण तथा दोनों सगे भाई होने का परिचय बताने तथा पिता के वचन से वनगमन एवं सीता को राक्षस द्वारा हरण के बाद उन्‍हें तलाशने निकलने की बात की जाती है तब हनुमान अपना परिचय उनके सेवक के रूप में देकर उनके चरणों में साष्‍टांग दण्‍डवत करते हैं तब प्रभु श्रीराम उन्‍हें अपने कण्‍ठ से लगा लेते हैं। हनुमान उन्‍हें सुग्रीव से मिलाते है और सुग्रीव के बड़े भाई बालि से उनकी शत्रुता को समझ सुग्रीव को अपना मित्र बनाकर बालि को मारकर सुग्रीव को राजपाट दिलाते हैं। इधर वर्षा ऋतु बीतने के बाद शरद ऋतु का आगमन हो जाता है लेकिन सुग्रीव सीता की खोज से बेखबर राजसुख में ढूबा रहता है तब सुन्‍दरकाण्‍ड में गोस्‍वामी जी प्रभु श्रीराम की नाराजगी को यूं व्‍यक्‍त करते हैं -

सुग्रीवहुँ सुधि मोरि बिसारी। पावा राज कोस पुर नारी।।
जेहिं सायक मारा मैं बाली। तेहिं सर हतौं मूढ़ कहँ काली।।

राम कहते है कि सुग्रीव मुझे भूल गया है और राजपाट में खो गया है, पहले विश्‍वास दिलाया था कि सीता को एक पल में खोज लाउंगा पर अपना वचन भूल गया। क्रोध में श्रीराम कहते हैं कि जिस बाण से मैंने बालि को मारा है उसी बाण से क्‍या इस मूर्ख सुग्रीव को मारूं। उनके दुख को समझकर क्रोधित राम की ओर देखकर लक्ष्‍मण ने धनुष चढ़ाकर हाथ में बाण ले लिया’-
लछिमन क्रोधवंत प्रभु जाना। धनुष चढ़ाइ गहे कर बाना।।

तब अनुजहि समुझावा,रघुपति करूणा सींव

भय देखाई लै आवहु, तात सखा सुग्रीव।

रामजी के समझाने पर नाराज लक्ष्‍मण किष्किन्‍धा में जाते है तब हनुमान ही है जो लक्ष्‍मण के क्रोध से बचाने के लिये सुग्रीव के प्राणों पर आये संकट से उबारने पहुंचे हैं जिसे तुलसीदास जी ने अभिव्‍यक्‍त किया है-

धनुष चढ़ाई कहा तब, जारि करऊ पुर छार

ब्‍याकुल नगर देखि तब, आयउ बालिकुमार। 

सुनि सुग्रीवँ परम भय माना। बिषयँ मोर हरि लीन्हेउ ग्याना।।
अब मारुतसुत दूत समूहा। पठवहु जहँ तहँ बानर जूहा।।

              लक्ष्‍मण द्वारा नगर जलाकर भस्‍म कर देने की बात किये जाने से पुरवासी व्‍याकुल हो जाते हैं जिनके कष्‍ट को समझते हुये अंगद लक्ष्‍मण से विनती करते हैं और हनुमान के आग्रह को मानकर सुग्रीव ने लक्ष्‍मण के प्रकोप से अपने प्राणों की रक्षा के लिये आतुरभाव से कामना की तब लक्ष्‍मण ने उन्‍हें अभय दान दिया । सुग्रीव ने दक्षिण दिशा की ओर नल,नील,अंगद,हनुमान जामवंत जैसे योद्धाओं को कूच किया। अंत में हनुमानजी प्रभु श्रीराम के समक्ष मस्‍तक नवाकर कर आज्ञा लेने पहुंचे तब प्रभु श्रीराम ने निकट बुलाकर अपने करकमल उनके शीश पर रखकर उन्‍हें अंगूठी दी और कहा कि सीता को भली-भॉति समझाकर मेरा विरह और प्रीति को बतलाकर लौट आना। इस प्रसंग में हनुमानजी सेवक-भाव का पालन कर प्रभु के प्रकोप से सुग्रीव के प्राणों की रक्षा करने में सफल होते है और सीता की खोज के लिये रणनीति बनाकर चारों दिशाओं में वानर सेना भेजी जाती है।

हनुमानजी अशोक वाटिका में उस वृक्ष की ओट में छिपकर बैठ जाते है जिसके नीचे सीता विराजमान है तभी रावण मन्‍दोदरि आदि रानियों के साथ सीता को नाना प्रकार से डरा धमकाकर एक माह की अवधि में अपनी बात न मानने पर तलवार से मारने की धमकी देता है। चूंकि माता सीता उससे भयभीत न होकर एक तिनके की ओट लेकर अवधपति राम को याद करके रावण को धिक्‍कारती है कि हे अधम तुझे लाज नहीं आयी और मुझे सूने में हर लाया। रावण त्रिजटा आदि राक्षसियों को आदेश देता है कि सीता को इतने कष्‍ट दो कि वह मेरी बात मान ले-
तेहि अवसर रावनु तहँ आवा। संग नारि बहु किएँ बनावा।।
बहु बिधि खल सीतहि समुझावा। साम दान भय भेद देखावा।।
तृन धरि ओट कहति बैदेही। सुमिरि अवधपति परम सनेही।।
अस मन समुझु कहति जानकी। खल सुधि नहिं रघुबीर बान की।।
सठ सूने हरि आनेहि मोहि। अधम निलज्ज लाज नहिं तोही।।

      रावण सीता के द्वारा अपमानित किये जाने के बाद खिसियाकर क्रोध से भर जाता है और कहता है कि सीता, तूने मेरा अपमान किया है, तेरा सिर इस पैनी तलवार से काटता हूं , नहीं तो जल्‍दी से मेरी बात मान ले ,नहीं मानेगी तो जीवनभर पछतायेंगी-

सीता तैं मम कृत अपमाना। कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना।।
नाहिं त सपदि मानु मम बानी। सुमुखि होति न त जीवन हानी।।
      प्रभु श्रीराम के विरह में डूबी सीता ने रावण के हाथ में रखी हुई चन्‍द्रहास तलवार से कहा कि तू मेरे कष्‍ट दूर कर और मेरे प्राणों को हर ले -

चंद्रहास हरु मम परितापं। रघुपति बिरह अनल संजातं।।
सीतल निसित बहसि बर धारा। कह सीता हरु मम दुख भारा।।
मास दिवस महुँ कहा न माना। तौ मैं मारबि काढ़ि कृपाना।।

रावण के घर चले जाने के बाद सीता के मन में विचार आया कि एक माह बाद यह नीच रावण मुझे मार डालेगा तब वह त्रिजटा से बोली कि हे माता तुम दुख में मेरा साथ देने वाली हो, ऐसा कोई उपाय करो जिससे मैं अपना शरीर छोड़ दूं। यह दुसह विरह अब सहा नहीं जाता है। रावण के शूल समान वचनों से आहत सीता त्रिजटा से लकडि़यों की चिता बनाने का आग्रह करती है लेकिन त्रिजटा रात में अग्नि न मिलने की बात कहकर अपने घर चली जाती है-

तजौं देह करु बेगि उपाई। दुसहु बिरहु अब नहिं सहि जाई।।
आनि काठ रचु चिता बनाई। मातु अनल पुनि देहि लगाई।।
सत्य करहि मम प्रीति सयानी। सुनै को श्रवन सूल सम बानी।।
सुनत बचन पद गहि समुझाएसि। प्रभु प्रताप बल सुजसु सुनाएसि।।
निसि न अनल मिल सुनु सुकुमारी। अस कहि सो निज भवन सिधारी।।

सीता तब आकाश में चन्‍द्रमा को अग्निमय जानकर आग बरसाने की विनती करती है, अशोक से अपने शोक दूर करने के लिये प्रार्थना करती है और कहती है कि अशोक के पत्‍ते आग समान लाल है, अग्नि देकर मेरे दुख दूर कर सकते है। सीता को अत्‍यन्‍त व्‍याकुल देख तब हनुमानजी अशोक वृक्ष से अंगूठी  गिरा देते है सीता जी प्रसन्‍न हो उठती है कि अशोक ने अंगार के रूप में उनकी बात सुन ली, लेकिन जैसे ही उसमें रामनाम अंकित देखती है तब पहचान कर हर्षित और चकित होकर व्‍याकुल हो उठती है कि प्रभु श्रीराम तो अजय है और ऐसी अंगूठी माया से बनायी नहीं जा सकती तब किसने उसे भेजा  तभी हनुमान जी प्रभु श्रीराम का गुणगान करने लगे जिससे सीता के दुख दूर हो गये-
देखि परम बिरहाकुल सीता। सो छन कपिहि कलप सम बीता।।
तब देखी मुद्रिका मनोहर। राम नाम अंकित अति सुंदर।।
चकित चितव मुदरी पहिचानी। हरष बिषाद हृदयँ अकुलानी।।
जीति को सकइ अजय रघुराई। माया तें असि रचि नहिं जाई।।
सीता मन बिचार कर नाना। मधुर बचन बोलेउ हनुमाना।।
रामचंद्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दुख भागा।।

रावण द्वारा दिये जाने वाले संताप से जब सीता ने मृत्‍यु का आलिंगन करने की तीव्र इच्‍छा की तब ऐसे नाजुक समय में हनुमान ने उनके प्राणों की रक्षा कर उन्‍हें प्रभु श्रीराम से वानरों की मित्रता होने कि कथा सुनाई और विश्‍वास व्‍यक्‍त किया कि जल्‍द ही रावण वध कर आपको ससम्‍मान ले जायेंगे। हनुमान की बात सुनकर सीताजी जो अपने प्राण त्‍यागने को तत्‍पर थी,उनके सारे दुख भाग गये, इस प्रकार सीता से वात्‍सल्‍य पाकर हनुमानजी ने उनके प्राणों की रक्षा की।

लंका में युद्ध के दौरान लक्ष्‍मण का रावण के पुत्र मेघनाथ से सामना होता है और पहली बार मेघनाथ शिकस्‍त खाकर लौट जाता है लेकिन दूसरी बार पूरी ताकत जुटाकर युद्ध के लिये लक्ष्‍मण को ललकारता है और लक्ष्‍मण पर वीरघातिनी शक्ति का प्रयोग करता है और लक्ष्‍मण अचेत हो जाते हैं-
बीरघातिनी छाड़िसि साँगी। तेज पुंज लछिमन उर लागी।।
मुरुछा भई सक्ति के लागें। तब चलि गयउ निकट भय त्यागें।।

लक्ष्‍मण को वीरघातिनी शक्ति से मूर्छित हुआ देख राम दुखी हो जाते हैं और जामवंत के बताने पर लंका के वैद्य सुषेन को भवन सहित उठा लाते हैं। वैद्य के बताने पर हनुमानजी हिमालय की ओर म़ृतसंजीवनी वूटी लेने पहुंचते है जो सूर्योदय से पूर्व लाने से ही लक्ष्‍मण के प्राण बचाये जा सकते हैं। रावण कालनेमि से हनुमान का रास्‍ता रूकवाता है फिर बूटी की समझ न आने पर पहाड़ सहित राम का नाम लेकर चलते हैं। इधर अयोध्‍या में भरत की सजगता का उदाहरण मिलता है और वे रात मे आकाश से हनुमान को पहाड़ ले जाते देख किसी आशंका से बिना फर के बाण मारते हैं और हनुमान अयोध्‍या में मूछित होकर गिर जाते हैं-
गहि गिरि निसि नभ धावत भयऊ। अवधपुरी उपर कपि गयऊ।।
दो0-देखा भरत बिसाल अति निसिचर मन अनुमानि।
बिनु फर सायक मारेउ चाप श्रवन लगि तानि।।58।।
       हनुमान मूर्छा से जागने के बाद भरत को पूरा दृष्‍टांत सुनाते हैं और भरत दुखी होकर पछतावा कर हनुमान से कहते हैं कि तुम मेरे बाण पर पहाड़ सहित चढ़ जाओ मैं प्रात: होने से पहले तुम्‍हें लंका पहुंचा दूंगा। हनुमान भरत के प्रस्ताव की वंदना कर इजाजत मॉगते हैं।

यहॉ लंका में हनुमान की प्रतीक्षा में राम मूर्छित लक्ष्‍मण के मुख को बार बार देखकर अपने ह़दय से लगाकर दुख व्‍यक्‍त करते हैं और कहते हैं अगर मुझे पता होता कि हमारा विछोह होना है तो मैं पिता की आज्ञा का पालन नहीं करता’—

उहाँ राम लछिमनहिं निहारी। बोले बचन मनुज अनुसारी।।
अर्ध राति गइ कपि नहिं आयउ। राम उठाइ अनुज उर लायउ।।
सो अनुराग कहाँ अब भाई। उठहु न सुनि मम बच बिकलाई।।
जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। पिता बचन मनतेउँ नहिं ओहू।।
सुत बित नारि भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारहिं बारा।।
अस बिचारि जियँ जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता।।

राम के लिये यह रात्रि सबसे भयाभय रही जिसमें उन्‍होंने अपने भ्राता लक्ष्‍मण के प्रति जो प्रेम प्रगट किया है जगत में ऐसा उदाहरण दूसरा नहीं है। राम के लिये यह भीषण दुख असहनीय रहा वही लक्ष्‍मण के प्राणों का संकट बरकरार था ऐसे में राम के समक्ष हनुमान मृत-संजीवनी बूटी के रूप में लक्ष्‍मण के प्राणों को बचाकर राम सहित पूरी सेना को हर्षित करते हैं वहीं  राम हनुमान के कृतज्ञता से ऋणी हो जाते हैं –

सो0-प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।
आइ गयउ हनुमान जिमि करुना महँ बीर रस।।61।।
हरषि राम भेंटेउ हनुमाना। अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना।।
तुरत बैद तब कीन्ह उपाई। उठि बैठे लछिमन हरषाई।।
हृदयँ लाइ प्रभु भेंटेउ भ्राता। हरषे सकल भालु कपि ब्राता।।

राम रावण का वध करके विभीषण को राजपाट सौंप चौदह साल की वनवअधि पूरा करते हैं। इधर भरत ने प्रतिज्ञा ले रखी थी कि प्रभु अगर एक दिन भी अयोध्‍या आने में विलम्‍ब करेंगे तो वह अपने प्राण त्‍याग देगा, यह बात प्रभु श्रीराम जानते थे–

दो0-तोर कोस गृह मोर सब सत्य बचन सुनु भ्रात।
भरत दसा सुमिरत मोहि निमिष कल्प सम जात।।116(क)।।
तापस बेष गात कृस जपत निरंतर मोहि।
देखौं बेगि सो जतनु करु सखा निहोरउँ तोहि।।116(ख)।।
बीतें अवधि जाउँ जौं जिअत न पावउँ बीर।
सुमिरत अनुज प्रीति प्रभु पुनि पुनि पुलक सरीर।।116(ग)।।

      इधर अयोध्‍या में चौदह वर्ष की अवधि पूर्ण होने के अंतिम दिन भरत अपने प्राण त्‍यागने के लिये तत्‍पर है तभी प्रभुश्रीराम की आज्ञा पाकर अयोध्‍या में हनुमानजी भेष बदलकर भरत से मिलते है और प्रभु की कुशलता के समाचार सुनाकर राम,लक्ष्‍मण, सीता सहित अयोध्‍या लौटने की बात बताते है जिसे सुनकर भरतजी अपने प्राण त्‍यागने को स्‍थगित करते हुये हर्षित मन से प्रभु का इंतजार करते है। प्रभु पुष्‍पक विमान से अयोध्‍या आकर भरत, शत्रुघन, सहित माता कैकयी, सुमित्रा एवं कौशल्‍या से भेट कर गुरू वसिष्‍ठ सहित सभी सभासदों,नगरपुरवासियों से भेंट करते है। इस प्रकार हनुमान जी अपने प्रभु श्रीराम के वनगमन उपरांत लक्ष्‍मण,सीता,भरत पर आये मृत्‍युतुल्‍य कष्‍ट को दूर कर सुग्रीव के प्राणों की भी रक्षा करने में सफल होते है और प्रभु श्रीराम सहित सभी के अनन्‍य प्रेम को पाकर अजर अमर हो जाते है।

आत्‍माराम यादव पीव ( वरिष्‍ठ पत्रकार)

सिटीपोस्‍ट आफिस के पास, उर्मिल किराना गली,

मोरछली चौक, होशंगाबाद मध्‍यपदेश

COMMENTS

BLOGGER: 1
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: जब महावीर हनुमान ने सीता,लक्ष्‍मण,भरत के प्राणों की रक्षा की - आत्‍माराम यादव पीव
जब महावीर हनुमान ने सीता,लक्ष्‍मण,भरत के प्राणों की रक्षा की - आत्‍माराम यादव पीव
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg8-6ZPt6sD7F9K0OcFFFSY3_IRQFFHXzE2zepVZLus_CiHYLb14nef0L0DDlTTBHrHaeDvaEQI_8A1su7nlIlWDjTwxROW-GvmJzO5vOUNWVm6-Zvrn2TJZdpaen3yJJL-IyrC/s320/jmefofomacgleepc-793526.png
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg8-6ZPt6sD7F9K0OcFFFSY3_IRQFFHXzE2zepVZLus_CiHYLb14nef0L0DDlTTBHrHaeDvaEQI_8A1su7nlIlWDjTwxROW-GvmJzO5vOUNWVm6-Zvrn2TJZdpaen3yJJL-IyrC/s72-c/jmefofomacgleepc-793526.png
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2019/04/blog-post_26.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2019/04/blog-post_26.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content