समीक्षा - मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना करती कविताएँ: खोजना होगा अमृत कलश

SHARE:

पुस्तक समीक्षा मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना करती कविताएँ: खोजना होगा अमृत कलश                समीक्षक : माँगन मिश्र “मार्त्तण्ड” ----------...

पुस्तक समीक्षा

मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना करती कविताएँ: खोजना होगा अमृत कलश

               समीक्षक : माँगन मिश्र “मार्त्तण्ड”

------------------------------------------------------------------;

समीक्ष्य कृति: खोजना होगा अमृत कलश (कविता संग्रह)

रचनाकार: राजकुमार जैन राजन

प्रकाशक : अयन प्रकाशन, 1/20- महरौली, नईदिल्ली- 110030

पृष्ठ: 120,      मूल्य: 240/- (हार्ड बाउंड)

------------------------------------------------------------------

राजकुमार जैन राजन  की कविताएं समाज और समय के अहम सवालों से न केवल टकराती है अपितु सोचने को विवश भी करती हैं और परोसती है जीने का नया अंदाज भी ।उनकी कविताएं निरुद्देश्य नहीं है, वे हममें आशा और विश्वास का भरपूर संचार करती हैं। इन कविताओं में ईमानदार अभिव्यक्ति की महक है , जीवन का सौंदर्य बोध है तथा मानवीय मूल्यों का पुनर्स्थापन भी है। यह मरुभूमि में ओएसिस है जो तनहाई में झुलसे लोगों को बसंत की सुखद अनुभूति बांटती है। प्रसिद्ध शायर जावेद अख्तर के शेर “  हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी / फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी” के विचारों के विरुद्ध इनकी कविताएं जीवन- राग गाती है । इनकी कविताएं सामयिक विसंगतियों ,विद्रूपताओं व विसंगतियों के विरुद्ध अंधकार से प्रकाश की यात्रा है, जिसमें निराशा के स्वर आशा और विश्वास के गीत गाते नजर आते हैं ।स्वयं कवि भी स्वीकार करते हैं कि ‘यहां सामाजिक विसंगतियों के प्रति चिंता, पनप रही विद्रूपताओं के प्रति आक्रोश, अंधकार से प्रकाश की यात्रा, हताश- निराश के लिए आशा और विश्वास का सघन- सुखद वातायन तथा जीवन मूल्यों की पुनर्स्थापना है’। मैं कवि राजकुमार जैन राजन की  इस बात से पूरी तरह सहमत हूं।

      राजन जी एक संपूर्ण संवेदनशील तथा सकारात्मक ऊर्जा के सहज कवि हैं । मूलतः आप चर्चित बाल साहित्यकार हैं किंतु बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी भी हैं। एक संपादक, प्रकाशक कई भाषाओं के लेखक तथा साहित्य उन्नायक हैं । अनेक पुरस्कारों तथा सम्मानों से सम्मानित तथा कई आयोजनों के सफल आयोजक भी हैं , अनेक पुरस्कारों- सम्मानों  के संस्थापक वितरक भी हैं वस्तुतः आप साहित्य सेवी हैं, साहित्य को पूरी तन्मयता से जीते हैं ।

     “खोजना होगा अमृत कलश” लीक से हटकर उनका प्रथम काव्य संग्रह है जो हमारा ध्यान पूरी तरह आकर्षित करता है। यह 50 कविताओं का मनोहर संग्रह है। विभिन्न शीर्षकों  में लिखी समभाव की ये कविताएं जीवन- राग से लबालब भरी हैं। कवि ने कल्पना की कलात्मक ऊंचाई को बिंबो, प्रतीकों एवं मुहावरों से सजाकर वास्तविक धरातल पर उकेरा है जो प्रशंसनीय है। उनकी कविताएं सतही वक्तव्यों  से बच गई है तथा उनकी अभिव्यक्ति के औजारों में नई धार है। संग्रह की अधिकांश कविताओं का प्रतिपाद्र्य है- हताशा- निराशा रूपी अंधकार के बादलों के बीच से मुस्कुराते सूरज को निकल लेना। वे आम आदमी की कविताएं लिखते हैं,आम आदमी के बीच से शब्दों को चुनते हैं, उनके भावों का संगुंफन करते हैं और उनकी  ही भाषा में उनके लिए सहज संप्रेषित कर देते हैं। इस प्रकार राजन की कविताएं आम आदमी के जीवन- संघर्ष से विश्वास का रिश्ता संस्था से जोड़ लेती है ।

    इस परिप्रेक्ष्य में उनकी कुछ कविताओं से गुजरना समीचीन लगता है ।सब पर दृष्टिकोण रखना यहां संभव ही नहीं है। संग्रह की पहली कविता है” लाखों संकल्प”- प्रतीकों के माध्यम से जीवन के अहम सवालों को से टकराती है यह कविता। आज उत्तराओं का मुक दर्द ,अर्जनों का पराक्रम क्षुब्ध होकर मौन है ,मन से मन का युद्ध जारी है और शर-शैया पर पड़ा विवेक कराह रहा है तथा संकल्प निष्क्रिय हो गए हैं--” अंतरिक्ष में उच्छ्वासों-सी मंडराती / मूक उत्तरांएँ/ और असंख्य अर्जुनों की छायाएं / छटपटा रही है   / मगर क्षुब्ध हृदय का हस्तिनापुर/ क्या बोले ?..........शर- शैया पर पड़ा विवेक कराह रहा है/ और युधिष्ठिर - दुर्योधन जैसे/ लाखों संकल्प / हाथ पर हाथ धरे/ चित्रलिखित से खड़े हैं” …

    यहां शिल्प का सामर्थ्य तो है किंतु कथ्य की अपूर्णता कचोटती है ।अगर यह हमें समाधान तक ले जाती तो सोने पर सुहागा का सौंदर्य- बोध प्राप्त होता । फिर भी काव्य तत्व यहां मौजूद है जो सुकून देता है ।

    हिंसा- नफरत से बदरंग रिश्तो के रेगिस्तान में “जिंदगी का  गीत” लिखने वाले सजग कवि सांस्कृतिक व सामाजिक संकट से चिंतित दिखते हैं पर निराश नहीं। इसलिए वे कहते हैं - “आओ,  मिलकर करें कुछ ऐसा / मौत का सन्नाटा / बुनती अंगुलियों को जिंदगी का गीत लिखना सिखाएं”... ताकि स्वार्थ से संलिप्त मानव - मन में फिर मानवीय रिश्तों का संसार बसे।

   “ तुम कौन हो “का कवि आतंकी माहौल में भी निराश नहीं है अपितु वह विष- बीज बोने वालों का सत्य जानना चाहता है। संबंधों को क्रूर और भयानक बनाने वालों को बेनकाब करना चाहता है। उसे नंगा कर नई किरणों से जिंदगी का नया गीत लिखना चाहता है। बानगी के तौर पर देखिए,” विष- बीज कौन बो गया है /उसे नंगा किया जाए /नये सूर्योदय के साथ/  जिंदगी का एक नया गीत लिखा जाए”..... यहां कवि आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री के विचारों से पूरी तरह सहमत दिखते हैं- “ अगर हाथ में कलम जिंदगी लिख/ नहीं काम है तेरा परचम उड़ाना ।”

    “ हारा भी नहीं हूं मैं “  जिजीविषा की कविता है, उम्मीदों की कविता है, जहां संघर्षों के बीच अपने ही कदमों से राहों को मोड़ देने की ताकत है ।देखिए - “महत्वाकांक्षाओं का सफर/  कटीला भी हो चला है / फिर भी मोड़ दिया है राहों को/ अपने ही कदमों के निशान से।”... यह अपने बाजुओं के भरोसे की कविता है ।इसी भाव को दुष्यंत कुमार निम्न प्रकार अभिव्यक्त करते हैं -” एक दरिया है यहां पर दूर तक फैला हुआ / आज अपने बाजुओं को देख, पतवारें न देख”

     “ सभ्यता के सफर में “ नकली चेहरा, छद्म हंसी की कपट, रिश्तों के मुखौटे, झूठ का साम्राज्य विवश होकर मुस्कुरा रहा है । सम सामयिक  विडंबनाओं पर प्रहार करते हुए कवि को उम्मीद है कि वह पुरुषार्थ के बल अपने सपनों को अवश्य सजा लेगा -” सच झुठलाया जाता है/ और झूठ सभ्य व्यक्ति की तरह/ हाथ बांधे खड़ा मुस्कुराता है”……” मुझे विश्वास है /आज नहीं तो कल/ फिर चलूंगा अपनी संपूर्ण ऊर्जा से /अब नहीं टूटेगा कोई सपना ।”

      “खोजना होगा अमृत कलश” की कविता-” संबंधों पर पहरा “    बहरी इंसानियत तथा खुले आम छले जा रहे जीवन- मूल्यों के विरुद्ध उस अमृत - कलश की मुकम्मल तलाश है जिसमें प्यार की खुशबू , मानवता व सद्भाव का रस लबालब भरा हो  - “खोजना होगा उस अमृत कलश को/ भर दे धरा पर जो प्यार की खुशबू / मानवता के घर आंगन को जो / रोशन करें आज फिर/ सद्भाव के वो दीपक जलाएं ।”

  यही कविता काव्य संग्रह का शीर्षक भी है जो पूरी तरह से ठीक है ।क्योंकि संग्रह की अधिकांश कविताओं की तरह यह कविता सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण उम्मीद और हौसले की कविता है। आशा और विश्वास की कविता है। वस्तुतः यह कविता कबीर की निम्न वाणी को ही प्रकारांतर से स्थापित करती नजर आती है - “कबिरा- कबिरा क्या कहे, जा जमुना के तीर / एक गोपी के प्रेम में, बह गएकोटि कबीर” । यही प्रेम-औषधि मानवीय संतों का इलाज है जो आज हमसे दूर बहुत दूर हो गई है। यहां अपनी जड़ों से जुड़े रहने तथा मनुष्य बने रहने का आग्रह है ।

    “सूखे पत्तों की गंध”  कविता निराशा के गहन अंधकार के बीच उम्मीदों की रोशनी बिखेरती है। यह संघर्षों के बीच मुस्कुराने का हौसला देती है , संघर्ष का माद्दा देती है ।देखिए- “ रात्रि के अंधकार में / जगमगाते हुए जुगनूओं  की तरह/ क्यों नहीं छेड़ देते तुम/ अंधेरे के खिलाफ जंग / उम्मीदों की रोशनी टूट नहीं सकती/ चलते हुए क्षितिज के सामने/ खिलो, मुस्कुराओ “ देखिए, यह कविता ग़ज़लकार पुरु मालव के निम्न खयालों से कितनी समानता रखती है ,”और इक आसमान बाकी है / पर खुले रख उड़ान बाकी है।”...

    “ निराश नहीं है वह आदमी” एक सशक्त जनवादी कविता है । यहां संघर्ष नये सपनों के बीच जीता है । भूख और रोटी की जंग में वह अपना जोश वह होश नहीं खोता अपितु नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ता है... उम्मीदों की दुनिया बनाए रखता है - “भूख और रोटी की जंग में / निराश नहीं है वह आदमी / जिंदगी से …..

फिर पूरे जोश से ढोता है / फिर एक नई बोरी /कुछ नए सपनों के साथ “ यहां कवि प्रसिद्ध शायर बशीर बशीर बद्र के भावों के अति निकट दिखते हैं - “सोने के फूल- पत्ते गिरेंगे जमीन पर / मैं जर्र - जर्र शाखों से जब  गुनगुनाऊंगा”.... वस्तुतः कर्मों के संगीत से ही सोने के फूल पत्ते जमीन पर गिरते हैं। फकत हौसलों की धुन की आवश्यक होती है। इसी को अमेरिकी बिजनेस मैन मार्क बी हर्ड इस प्रकार कहते हैं-” सोचते रहना पर काम न करना ,वैचारिक भ्रम के अलावा कुछ नहीं है”

   “बचपन की बरसात” दूसरी जनवादी रचना है जिसकी सहजता एवम प्रभविष्णुता हमें आकर्षित करती है ।यहां आम लोगों की चिंता है, पिता का बेचैन चेहरा है ,माँ की बदहवासी है तथा जिंदा बच पाने के उल्लास का उच्छृंकल बचपन है ।वस्तुत: कविता इन्ही पंक्तियों में जीती है।

     “नर बीज खो गया है” कविता में सटीक प्रतीकों और बिंबो के धारदार औजार से कवि ने सामाजिक विद्रूपताओं  व विडम्बनाओं पर बड़ी सहजता से हाथ रखा है। द्रौपदी का चीर हरण, शकुनि के दांव से सत्य को छलपूर्वक लूटना ,पुलिस द्वारा संरक्षित चौराहे पर से सीता को उठाकर ले जा रहे रावण तथा स्वार्थ के तपते रेगिस्तान में झुलस रहे रिश्ते….. जैसी संवेदना संपृक्त पंक्तियां मानवीय मूल्यों की सद्य व्यथा कथा है जो हमें सोचने को विवश करती हैं। यहां  भाषा का प्रवाह तथा कहन का शिल्प प्रशंसनीय है। मुक्त छंद के बावजूद संगीत मुखरित हो रहा है ।

     “एक नया संघर्ष”  जिजीविषा की कविता है जहां पुरानी पत्तियों के गिरने से पेड़ मरता नहीं है । नए संघर्ष के बल पर परिस्थितियों से मुठभेड़ कर वह बाजी जीत लेता है - “ पर पुरानी पत्तियों से गिरने/ से मरता नहीं कोई पेड़/…... शुरू होगा फिर वही/ नया संघर्ष  /हारता नहीं जो परिस्थितियों से/ जीतता है फिर वही पाता है उत्कर्ष”

       “एक सूरज फिर उगाना होगा”  की कविता हमारी नकारात्मक सोच पर प्रहार करती है- “ रोशनी की कोख में/  अंधेरों को मत उगाओ “ आगे यह भी कि यही नकारात्मक सोच, सकारात्मक ऊर्जा में बदल जाती है, बस जरूरत है - “एक मुट्ठी हौसलों की रोशनी से/  बंद झरोखों को सजा लो / जग में भर जाएगा आलोक “

    “हाथ में बसंत”, “अस्तित्व बोध”,”आशा की लौ जलती रहेगी”, “स्मृतियों के पांव”,”खंड खंड अस्तित्व”, “ सपनों की पगडंडी”, “बसंत जरूर आता है”, “ अर्थ खोते रिश्ते”, “भागे ना कोई हार के”,  “रोशनी के पहरुओं”, “ संदर्भ हीन संदर्भ”, “ सूरज की इजाजत”, “एक नई सुबह”, “ प्रतीक्षा सूर्योदय की” तथा “जीवन का चक्रव्यूह” जैसी सुकून देने वाली कविताएं भी है यहाँ।

    इसके अतिरिक्त भी विभिन्न तेवरों की कविताएं यहां संकलित है  । “पीड़ा के दुर्गम पथ “ जहां मनुष्य होने के अर्थ की तलाश है वहीं “अर्थ युग का चमत्कार” एवं “स्मृति पटल पर”  कविताएं समसामयिक विसंगतियों पर प्रहार है । यहां इन विसंगतियों को नदी की धार में बहा देने की कामना है ताकि सुंदर संसार बस सके। “व्यथा कथा की” दहेज  संत्रास की मर्मान्तक पीड़ा का करुण बयान है। “एक सवाल” कविता प्रजातन्त्र पर सवालों की कविता है जहाँ हर बार मनुष्य इसके मकड़जाल में उलझ कर विवश हो जाता है। इस कविता में साहसिक चेतना है जो विसंगतियों की नब्ज पर अंगुली रखकर प्रश्न पूछने का साहस करती है। “ दुनिया ऐसी क्यों है?” यह भी एक अच्छी कविता है ।

    अंतत मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है राजकुमार जैन राजन जी की कविताएं हमें आश्वस्त करती हैं। उनके पास दृष्टि भी है और दृष्टिकोण भी ।”खोजना होगा अमृत कलश” कविता संग्रह की  महत्ता इसलिए भी बढ़ जाती है कि यहां कवि की दृष्टि व्यापक है । दार्शनिक सिसरो कहते हैं,”जहाँ जिंदगी है, वहां उम्मीद है । यदि आप उम्मीद नहीं रखते तो इस जीवन का क्या अर्थ है?” निसंदेह इस संग्रह की कविताएं उम्मीदों को बचाए रखती हैं।

कविता का राग पूरी तरह जीवन से जुड़ा हुआ है।

    संग्रह की कविताओं में सादगी और  सहजता इसे बनावटी नहीं होने देते । इसी कारण अपनी बात पाठकों तक पहुंचाने में कविता समर्थ हुई है ।मुझे विश्वास है कि  कवि राजकुमार जैन राजन की काव्य- यात्रा और भी सघन होगी... और यह धीरे-धीरे होगी अनुभव की भट्टी तपकर। हिंदी जगत इस संग्रह का भरपूर स्वागत करेगा इसी मंगल कामना के साथ…

■खोजना होगा अमृत कलश के गुजराती, पंजाबी, मराठी, नेपाली, चीनी एवम सिंहली भाषा में अनुदित संस्करण भी प्रकाशित हो चुके है।

समीक्षक-

मांगन मिश्र मार्तंड

प्रधान संपादक: “संवदिया” त्रैमासिक

“ साकेत”, बंगाली टोला,

फारबिसगंज, जिला -अररिया  (बिहार)

पिन- 854318

COMMENTS

BLOGGER: 6
  1. बहुत सुन्दर समीक्षा , बारीकी से किताब के सभी पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए पाठकों के मन में किताब पढ़ने की उत्सुकता जगा रही है ये समीक्षा

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत आकर्षक समीक्षा। समीक्षा पढ़ते ही पुस्तक पर पसंदीदा और बढ़ गई। Rajkumar Jain Rajan जी, हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।

    जवाब देंहटाएं
  3. पुस्तक रचक राजकुमार जैन राजन जी, समीक्षक मांगन मिश्र मार्तंड जी आप दोनों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ ।

    जवाब देंहटाएं
  4. राजकुमार राजन जैन जी के प्रथम काव्य संग्रह पर "मांगन मिश्र मार्तंड" जी ये खूबसूरत समीक्षा काब्य संग्रह की तरफ ध्यान आकर्षित करने में पूरी तरह सक्षम है । राजन जी की कविताओं की जिस तरह से उन्होंने विवेचना की है, हर एक कविता के प्रति उत्सुकता जगाती है। मार्तंड जी का कथन, "राजन जी की कविताएँ जीवन राग गाती हैं....अंधकार से प्रकाश की यात्रा है" काब्य संग्रह का परिचय दे जाता है । राजन जी बाल साहित्यकार, कवि ,संपादक कई भाषाओं के लेखक,..राजन जी अदभुत है आपका यह बहुआयामी व्यक्तित्व । आपके प्रथम काव्य संग्रह "खोजना होगा अमृत कलश" के लिए हार्दिक बधाई व अनन्त शुभकामनाएँ ।

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर समीक्षा। आप दोनों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: समीक्षा - मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना करती कविताएँ: खोजना होगा अमृत कलश
समीक्षा - मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना करती कविताएँ: खोजना होगा अमृत कलश
https://4.bp.blogspot.com/--nCJNNIvl58/XKWmuTxr5WI/AAAAAAABOwU/nn1zdFG78hkhPXkLIZoqLgYAf_q6OBSswCK4BGAYYCw/s320/amrit-790865.jpg
https://4.bp.blogspot.com/--nCJNNIvl58/XKWmuTxr5WI/AAAAAAABOwU/nn1zdFG78hkhPXkLIZoqLgYAf_q6OBSswCK4BGAYYCw/s72-c/amrit-790865.jpg
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2019/04/blog-post_4.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2019/04/blog-post_4.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content