सबक - कहानी - प्रियंका कौशल

SHARE:

सबक रघुवर प्रसाद आज बहुत खुश थे। उन्होंने अपने कुछ पुराने मित्रों को भोजन के लिए घर बुलाया था। कितने वर्ष हो गए, घर पर दोस्तों को कोई दावत द...

सबक

रघुवर प्रसाद आज बहुत खुश थे। उन्होंने अपने कुछ पुराने मित्रों को भोजन के लिए घर बुलाया था। कितने वर्ष हो गए, घर पर दोस्तों को कोई दावत दिए। लेकिन 20 वर्षीय पोते सुमेर ने जिद ही पकड़ ली थी कि दादू कभी अपने दोस्तों को भी पार्टी-वार्टी दिया करो। मैंने उसे समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वो नहीं माना। अंततः मैंने भी कुछ खास दोस्तों को खाने की दावत दे ही दी। पर मैंने सुमेर से कह दिया था कि मैं तेरे माता-पिता से नहीं कहूंगा कि मेरे दोस्त आ रहे हैं खाने पर, तू ही बताना उन्हें और भोजन का इंतजाम करवाना। सुमेर ने दावत की पूरी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी।

ख़ैर शाम हुई, खाने का वक्त होते-होते मेरे सभी दोस्त पहुंच गए। उधर रसोई से खाने की बहुत बढ़िया खूशबु आना शुरु हो गई। मैंने सोचा, मैं तो नाहक ही संकोच कर रहा था, बहू तो दावत की बढ़िया तैयारी कर रही है। कभी-कभी हम अपनी सोच का शिकार खुद हो जाते हैं। सामनेवाला उतना भी बुरा नहीं होता, जितनी बुरी तस्वीर हम अपने मन में बना लेते हैं। शायद मैं बहू के बारे में मेरी अपनी ही सोच गलत थी, या वो वक्त के साथ बदल गई थी और उसमें हुए बदलाव को जानने की उत्सुकता मैंने कभी दिखाई ही नहीं। सुमेर पूरी व्यवस्था देखने में जुटा हुआ था, लेकिन बहुत देर से नजर नहीं आ रहा था। हां, याद आया कि वह मिठाई लेने नत्थू हलवाई की दुकान तक गया है। नत्थू हलवाई की दुकान पूरे शहर में प्रसिद्ध है, इसलिए वहां समय लगता ही है, भीड़ ही इतनी ज्यादा होती है। मैं सुमेर के आने की प्रतीक्षा करने लगा। मेरे कुछ दोस्त डायबिटिक हैं (मधुमेह के मरीज)। उन्होंने निवेदन किया कि वे समय पर ही खाना खाते हैं, इसलिए दावत शुरु की जाए ताकि वे समय पर दवाई भी ले सकें। मैंने बहू को आवाज लगाई। बहू तो नहीं आई, लेकिन उसकी सहायिका मंजू बाहर आई, बोली बाबूजी.. भाभी आपको अंदर बुला रही हैं। मुझे लगा कि कुछ पूछने के लिए बुला रही होगी। मैं रसोई में पहुंचा तो वो बड़बड़ा रही थी। क्या हो गया बहू? कुछ पूछना है क्या? बाबूजी पूछना नहीं बताना है कि आपको भी आज ही महफिल जमानी थी, आपको नहीं पता क्या कि आज सुमेर ने अपने कुछ दोस्तों को घर पर खाने के लिए बुलाया है। दोपहर से उसकी तैयारी में खट रही हूं और अब आपके भी इतने सारे दोस्त आ गए हैं, इनके लिए चाय-पानी का इंतजाम नहीं कर पाऊंगी मैं। आप किसी और दिन अपनी महफिल जमा लेना।

रघुवर प्रसाद के पैरों के नीचे से जैसे जमीन ही खिसक गई। सुमेर के दोस्त मतलब? उन्होंने अंदाजा लगाया कि लगता है कि सुमेर ने अपनी मां को पूरा सच नहीं बताया, बल्कि झूठ बोलकर खाना बनवा लिया है। इतने में सुमेर भी पहुंच गया। उसे देखकर दादाजी की जान में जान आई। सुमेर हड़बड़ाता हुआ आया और अपनी मां से बोला, ओह्हो मम्मा सॉरी, मेरे दोस्तों ने आज की पार्टी कैंसिल कर दी है। आपने इतनी मेहनत करके खाना बनाया है, चलो दादाजी के दोस्तों को ही आज खाना खिलाकर विदा करते हैं। आखिर मेरी मास्टर शेफ मम्मी के हाथों के खाने का स्वाद वे भी चखें। देखना आपकी तारीफ करते हुए जाएंगे। दादाजी को सुमेर की झूठी और मनगंढत बातें सुनकर बहुत गुस्सा आ रहा था। लेकिन सुमेर ये सब उन्हीं के लिए तो कर रहा था। ये सोचकर वे कुछ बोल भी नहीं पा रहे थे। वे ड्राइंग रूम की तरफ चले गए, जहां उनके दोस्त बैठे थे। भीतर उनकी बहू ने फरमान सुनाया, क्यों खिला दूं तेरे दादाजी के दोस्तों को खाना। उन्हें आदत लग जाएगी यहां दावत उडाने की। सुमेर ने प्रतिरोध किया, क्या मम्मी आप भी कैसी बातें करती हो। खाना तो बन ही चुका है ना तो क्यों नहीं खिला सकती और वे सब इज्जतदार लोग हैं, बिना बुलाए तो नहीं आ जाएंगे आपके हाथ का बना खाना खाने। प्लीज़ ऐसी बात मत करो। लेकिन सुनंदा यानि कि रघुवर प्रसाद की बहू अपने प्रिय बेटे की बात भी सुनने को राजी नहीं थी। बोली, तुझे पता है आटे-दाल का भाव। तेरे पापा कितनी मेहनत से कमाते हैं, तब जाकर यह घर चलता है। मम्मी, आप ये क्यों भूल रही हैं कि पापा को इस लायक दादाजी ने ही बनाया है। उनके भी कुछ अरमान होंगे, उन्हें क्यों नहीं पूरा करने देती हो। और जिस घर में हम रहते हैं, ये भी दादाजी का है, तो उनका इतना भी हक नहीं है क्या। फिर जो खाना बर्बाद ही होने वाला हो, किसी को खिला देने में क्या हर्ज है। अबकि बार सुनंद चिढ़कर बोली, मुझे तो लगता है कि तेरे दोस्तों की कोई पार्टी यहां थी ही नहीं, ये सारा इंतजाम तुने अपने दादाजी के लिए ही करवाया है। तभी इतना ड्रामा कर रहा है। बहू और सुमेर की बातें इतने ऊंचे सुर में होने लगी थीं, कि वे बाहर बैठक में भी सुनाई दे रही थी।

रघुवर प्रसाद के दोस्त बोले, देख भाई, तू शर्मिंदा ना हो। हम सब समझते हैं। हर दूसरे घर की यही कहानी है। हम कौन से सुखी हैं, अपने बच्चों के साथ। इनके लिए हमने ना दिन देखा ना रात देखी। बस चक्की की तरह चलते रहे। लेकिन इन्हें हमारी मेहनत का मूल्य नहीं मालूम है। खाना हम फिर कभी खा लेंगे, तू चिंता मत कर। हममें से किसी को बुरा नहीं लगेगा। उल्टा हमें तेरी चिंता हो रही है। तू भी कुछ मत सोच। वैसे भी हम सब अपने घर में ये बोलकर नहीं आए हैं कि हम कहीं बाहर खाने जा रहे हैं। हम सबका खाना घर में भी बना ही होगा। चुपचाप जाकर घर में खा लेंगे। रघुवर प्रसाद कुछ नहीं बोल पाए। शर्म और पीड़ा को बस आंखों में रोककर रखा, ताकि दोस्तों के सामने ना बह निकले। जब सारे दोस्त चले गए तो चुपचाप अपने कमरे में जाकर लेट गए। थोड़ी देर में सुमेर की मां ने आखिर बेटे के सामने हथियार डाल ही दिए, बोली जा खिला ले, जिसको खिलाना है ये खाना। लेकिन आइंदा ऐसी गलती की तो तेरे पापा से शिकायत करूंगी। सुमेर खुशी में कूदता हुआ दादाजी को सूचना देने बाहर आया, लेकिन तब तक तो बहुत देर हो चुकी थी।

हर नया दिन जीवन की एक नई उम्मीद लेकर आता है। लेकिन हम अपनी दिनचर्या में इतने गहरे बैठ चुके होते हैं कि हम उस नए अवसर का लाभ उठाने की कोशिश ही नहीं करते, जीवन में कुछ नया करने का प्रयास भी नहीं करते। उस पालतू हाथी की तरह हमारी मनोस्थिति हो जाती है, जिसे महावत कुछ दिनों तक एक मजबूत पेड़ से बांधकर रखता है, हाथी आजादी चाहता है, लेकिन मजबूत पेड़ से बंधा होने के कारण मुक्त नहीं पाता। जब उसे ये अहसास हो जाता है कि अब आजादी संभव नहीं, तो महावत को किसी मजबूत पेड़ की जरूरत नहीं पड़ती, बल्कि वो उसे किसी साधारण फायबर की कुर्सी से भी बांधकर निश्चिंत रहता है। उसे पता है कि हाथी के मन में मजबूत पेड़ की स्मृति है, वह प्रयास भी नहीं करेगा अपनी आजादी के लिए। वह प्रयास करे तो बंधनमुक्ति के लिए, फिर वह जाने की इस बार पेड़ नहीं, एक हल्की सी कुर्सी है, जो उसकी स्वतंत्रता की राह का रोड़ा बनने की औकात नहीं रखती। बस यही हम मनुष्यों की भी परेशानी है, अपने बंधनों से मुक्त होने का प्रयास ही नहीं करते हम। रघुवर प्रसाद सुबह जल्दी उठ जाते हैं। पास ही एक पार्क है, वहां चहलकदमी कर मन्नू की दुकान पर सुबह की चाय पीते हैं। आज मन्नू की दुकान पहुंचे तो देखा सुमेर वहां पहले से मौजूद है। अरे तुम यहां क्या कर रहे हो बेटा। उन्होंने अपने पोते से पूछा। दादाजी मुझे रात भर नींद नहीं आई, आखिर मम्मी आपके साथ ऐसा कैसे कर सकती है और पापा, वो भी कम नहीं है। पता है, मैंने कल उन्हें सारी बात बताई तो वे भी मम्मी का ही पक्ष ले रहे थे। दादाजी मुस्कुरा उठे। बोले, बेटा क्या किया जा सकता है, है तो वो मेरा ही बच्चा। वो मुझसे प्रेम करे या ना करे, मुझे तो उससे आज भी उतना ही प्यार है, जितना उसके जन्म लेते ही हुआ था। नहीं दादा जी, आपको अब अपनी सोच बदलनी होगी। देखिए मैं भी अपने मम्मी-पापा से उतना ही प्यार करता हूं। लेकिन मुझे लगता है कि उनकी हरकतें देखकर मैं उनसे नफरत भी करने लगूंगा। मैं नहीं चाहता उनके जैसा बनना। लेकिन जो वो आपके साथ कर रहे हैं ना, तो मुझे लगता है कि मैं भी कहीं उनके साथ वही व्यवहार ना करने लगूं। सुमेर बोला, तो दादाजी कांप उठे, नहीं-नहीं बेटा..ऐसा मत सोचो। वो तुम्हारे माता-पिता हैं। तो आप भी तो उनके पिता हो और दादी इस दुनिया से कैसे चली गई, वो भी मैंने अपने आंखों से देखा है। देखिए आपके समझाने का मुझपर ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन हां, यदि आप एक योजना में मेरा साथ दें तो सबकुछ ठीक हो सकता है। सुमेर बोला। कैसी योजना? रघुवर प्रसाद ने पूछा। सुमेर ने सबकुछ समझा दिया। पहले तो वे तैयार नहीं हुए, लेकिन सुमेर के प्यार और जिद के आगे उन्होंने सहमति दे दी।

अगले दिन सुमेर ने अपने माता-पिता और खुद के लिए मनाली ट्रिप बुक कर दी। वह चहकता हुआ घर पहुंचा। रविवार का दिन था, सब घर में ही थे। पापा-मम्मा सुनो, हम सब मनाली जा रहे हैं। सुनंदा ने चौंककर पूछा, भई कैसे? कब? जा रहे हैं मनाली। सुमेर ने कहा कि उसका एक जैकपॉट खुला है। उसमें तीन लोगों के लिए मनाली ट्रिप फ्री है। चलिए सामान पैक कर लीजिए, एक हफ्ते का टूर है। कल ही निकलना है हमें। सुमेर ने मां-पिता को मना लिया और वे मनाली के लिए निकल गए। सुनंदा या उसके पति ने, यानि रघुवर प्रसाद के बेटे ने एक बार भी नहीं सोचा कि पिताजी एक हफ्ते किसके भरोसे रहेंगे। ये देखकर रघुवर प्रसाद को गहरा धक्का पहुंचा। बहरहाल, एक हफ्ता कब निकल गया, पता ही नहीं चला। जब वे तीनों मनाली से लौटे तो घर के बाहर एक चौकीदार बैठा था। उसने उन तीनों को घर में घुसने ही नहीं दिया। रमेश यानि सुमेर के पिता ने उसे धमकी भरे अंदाज में कहा, सुनो ये मेरी ही घर है, मुझे मेरे ही घर में घुसने से रोक रहे हो। अंदर जाकर मेरे पिताजी को बुलाकर लाओ, वे तुम्हें बताएंगे कि हम ही इस घर के मालिक हैं। चौकीदार बोला, अंदर कोई नहीं रहता है। ये सुनकर सुनंदा और रमेशा चौंक गए, क्या मतलब है तुम्हारा कि अंदर कोई नहीं रहता। सुनंदा चिल्लाई। हल्ला सुनकर पड़ोस में रहने वाला गुलशन बाहर निकला। अरे रमेश भाई, यहां आईए आप लोग। उसने आवाज दी। रमेश, सुनंदा और सुमेर..गुलशन के घर चले गए। गुलशन ने कहा कि आइए पहले चाय वगैरह पी लीजिए, इतनी दूर से आ रहे हैं आप लोग। वो बोला। नहीं गुलशन चाय रहने दो, ये बताओ कि ये चल क्या रहा है हमारे घर पर। रमेश ने पूछा। गुलशन बोला यार, चाचाजी यानि तुम्हारे पिता ने ये मकान बेच दिया है और वे कहीं और रहने चले गए हैं। तुम्हारा सामान उन्होंने वो सामने वाले मकान में रखवा दिया है, मकान का सालभर का किराया भी दे दिया है। ये है उस मकान की चाबी और किराए की रसीद। ये क्या कह रहे हो गुलशन, मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है। रमेश ने कहा। तुम्हारे मनाली जाने के बाद चाचाजी की तबीयत अचानक बिगड़ गई थी। उनके पास इलाज के पैसे नहीं थे और कोई हालचाल पूछने वाला भी नहीं था। वे कितने खुद्दार हैं, ये तो तुम्हें पता ही होगा, आखिर तुम्हारी पिता हैं। तो उन्होंने मजबूरी में ये मकान बेच दिया और एक छोटा मकान खरीदकर उसमें रहने चले गए, बाकी पैसों से अपना इलाज करवा रहे हैं। पूरे तीन करोड़ में बिका तुम्हारा ये मकान। सही भी तो है चाचाजी भी तो करोड़पति ही थे, बस उसपर हक नहीं जमा रहे थे। मकान बेचकर अब अपनी संपत्ति के सही मालिक बन गए हैं। गांव से उनकी कोई विधवा बहन को बुला लिया है अपने पास। वही उनकी भरपूर सेवा भी कर रही है। गुलशन ने कहा। अब तुम ठहरे जवान आदमी, कुछ साल किराए के मकान में रहो और फिर अपनी मेहनत के बल पर खुद का मकान भी एक ना एक दिन खरीद ही लोगे। गुलशन ने सहानुभूति दिखाई।

क्यों, पिता जी ने जो मकान खरीदा है, वह भी तो हमारा ही हुआ ना। सुनंदा ने कहा। नहीं भाभी, वो आपका नहीं होगा, क्योंकि चाचा जी ने अभी से वो मकान अपनी विधवा बहन के नाम कर दिया है। उनके नहीं रहने के बाद वही उस मकान की मालिक होंगी। चाचाजी का कहना है कि सगे संबंधी होने से कुछ नहीं होता, जो उनकी सेवा करेगा, मान-सम्मान देगा, वहीं उनकी वसीयत का असली हकदार होना चाहिए। ये बात सुनकर जैसे रमेश और सुनंदा के होश ही उड़ गए। वे लगभग गिड़गिड़ाते हुए बोले, यार गुलशन हमसे बहुत बड़ी गलती हो गई। बाबूजी का नया पता दे दो, कम से कम हम उनसे माफी ही मांग लेंगे। गुलशन ने पता देने से इंकार कर दिया। रमेश और सुनंदा हिचकियां ले-लेकर रोने लगे। उन्हें प्रयाश्चित होने लगा। लेकिन गुलशन पता बताने को तैयार ही नहीं हो रहा था। आखिर दोनों उसके पैरों पर गिर पड़े। रमेश बोला, गुलशन हम बचपन के दोस्त हैं, भाईयों की तरह रहे हैं। तू समझ, हमें अपनी गलती सचमुच में समझ आ गई है। कम से कम प्रायश्चित करने का मौका तो हमें मिलना ही चाहिए। हम पिता जी को बिलकुल परेशान नहीं करेंगे, लेकिन एक बार उनके पैरों पर गिरकर अपनी गलतियों की माफी मांगने का मौके से हमें वंचित मत कर दोस्त। सुनंदा ने भी प्रार्थना की।

उठो बेटा, मैंने तुम्हें माफ कर दिया है। रमेश और सुनंदा चौंककर पलटे। देखा तो पीछे रघुवर प्रसाद खड़े थे। दोनों दौड़कर उनके पैरों में गिर पड़े। अपनी गलतियों की माफी मांगने लगे। रघुवर प्रसाद ने दोनों को उठाया और गले से लगाकर बोले कि मैंने कहा तो कि माफ कर दिया है तुम्हें। नहीं पिता जी, मुझे तो आप एक जोरदार थप्पड़ मारिए। मैं अपने स्वार्थ में कितना अंधा हो गया था कि कभी आपके बारे में सोचा ही नहीं। सुनंदा भी लगातार रोए जा रही थी। रघुवर प्रसाद बोले कि गुलशन ने तुम्हें जो भी कहानी सुनाई है, वैसा कुछ भी नहीं है। मैंने केवल तुम्हारे अच्छे भविष्य के लिए ये पूरे ड्रामे में एक रोल भर किया है। ड्रामा, रोल, हमारा अच्छा भविष्य...ये सुनकर रमेश और सुनंदा चौंके। रघुवर प्रसाद ने उन्हें पूरी बात बताई कि सुमेर चाहता था कि मैं ये सब करुं। गुलशन को भी उनसे ही इस योजना में शामिल किया था। दरअसल सुमेर को लगता था कि तुम जो मेरे साथ व्यवहार करते हो, उसे देखकर वैसा ही व्यवहार वो तुम्हारे साथ करने को प्रेरित हो रहा था। उसे रातों में नहीं आ रही थी। उसने अपनी परेशानी को दूर करने का यही हल निकाला। हमने तो बस डायरेक्टर सुमेर की फिल्म में अभिनय भर किया है। इतना सुनते ही सुमेर दादाजी के गले लगकर रोने लगा। रमेश और सुनंदा को पहले ही रो रहे थे, अब गुलशन और दादाजी की आंखे भी गीली हो गईं। सुमेर को संतोष था कि उसने अपने माता-पिता को अच्छा सबक सिखा दिया था। अब दादाजी पूरे सम्मान के साथ घर में रह सकेंगे। अभी सुमेर यह सोच ही रहा था कि उसकी मां बोली, बेटा आज शाम को दादाजी के दोस्तों को घर पर दावत के लिए बुला लेना। मैं उन सबकी पसंद का खाना तैयार करूंगी। सुमेर सहसा बोल पड़ा, इसे कहते हैं हैप्पी एंडिंग।


--

प्रियंका कौशल
संक्षिप्त लेखक परिचय -लेखिका पिछले 15 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। नईदुनिया, दैनिक जागरण, लोकमत समाचार, जी न्यूज़, तहलका जैसे संस्थानों में सेवाएं दे चुकी हैं। वर्तमान में भास्कर न्यूज़ (प्रादेशिक हिंदी न्यूज़ चैनल) में छत्तीसगढ़ में स्थानीय संपादक के रूप में कार्यरत् हैं। मानव तस्करी विषय पर एक किताब "नरक" भी प्रकाशित हो चुकी है।

ईमेल आई.डी-priyankajournlist@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: सबक - कहानी - प्रियंका कौशल
सबक - कहानी - प्रियंका कौशल
https://1.bp.blogspot.com/-To2Ui-zSot0/XRr7WxBhZ0I/AAAAAAABPWY/2lEnHsthjZUcVAFH9sJHS22QsQPuu1TdgCK4BGAYYCw/s320/priyanka-769584.jpg
https://1.bp.blogspot.com/-To2Ui-zSot0/XRr7WxBhZ0I/AAAAAAABPWY/2lEnHsthjZUcVAFH9sJHS22QsQPuu1TdgCK4BGAYYCw/s72-c/priyanka-769584.jpg
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2019/07/blog-post_82.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2019/07/blog-post_82.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content