''घासीदास के पावन चरित सुहावन : गंगाजल जिमि निर्मल पावन।।'' - डॉ.रामायणप्रसाद टण्डन(सतनामी)

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  ''घासीदास के पावन चरित सुहावन : गंगाजल जिमि निर्मल पावन।।'' सतनामियों का पवित्र धाम गिरौधपुरी धाम आज सतनाम धर्म के अनुयायि...

 

''घासीदास के पावन चरित सुहावन : गंगाजल जिमि निर्मल पावन।।''

सतनामियों का पवित्र धाम गिरौधपुरी धाम आज सतनाम धर्म के अनुयायियों के लिए आस्था, विश्वास, श्रद्धा और आकर्षण का केन्द्र बन गया है। यहां प्रतिदिन गुरू घासीदास बाबा जी की तपोस्थली के दर्शन हेतु सैकड़ो-हजारों अनुयायी श्रद्धालुगण नित्य प्रतिदिन आते रहते हैं यह वही जगह है जहां 268 वर्ष पहले गुरू घासीदासजी का जन्म हुआ था। उनके जन्म से यह धरा पवित्र हो गई थी। संपूर्ण छत्तीसगढ़ की धरती ही एक तरह से पवित्र हो गई थी। गुरू घासीदासजी छाता पाहाड़ में औरा-धौरा वृक्ष के नीचे बैठकर अखण्ड सतनाम सतपुरूष की साधना में निरंतर लीन हो गये थे और इन्हीं औरा-धंवरा वृक्ष के नीचे उन्हें सतपुरूष सतनाम का दर्शन हुआ था। गुरू बाबा जी की तपोस्थली गिरौधपुरी धाम में उनकी स्मृति में तपोस्थान पर प्राचीन और पवित्र गुरूद्वारा आज भी स्थित है। जहां गुरू बाबा जी की चरण पादुका (खड़ाउ) आज भी वहां पर रखा हुआ है। और इस गुरूद्वारा में सतनाम की अखण्ड ज्योति भी निरंतर प्रज्वलित होती रहती है। गुरूद्वारा के निकट जोड़ा जैतखाम स्थित है जो निर्गुण निराकार सतनाम धर्म का प्रतीक चिन्ह के रूप में विद्यमान है। जिसमें श्वेत ध्वजा सादगीयता, सदाचरण, सद्भाव, समानता, समरसता, सहिष्णुता, भाईचारा और विश्व मानव समुदाय को सतनाम का संदेश देता हुआ आज भी फहरा रहा है। इस तपोस्थली में चरण कुण्ड और अमृत कुण्ड के जल से बाबाजी ने मरी हुई बछिया और माता सफुराबाई को जीवनदान दिया था। सतनाम धर्मानुयायी श्रद्धालुगण इस अमृत कुण्ड के जल को लेकर घर लौटते हैं, और मान्यतानुसार यह भी कहते हैं कि अमृत कुण्ड का जल कभी भी खराब नहीं होता है। छत्तीसगढ़ शासन द्वारा गुरू घासीदास जी की तपोस्थली गिरौदपुरी धाम में एक भव्य और आकर्षक और सुन्दर गुरूद्वारा का निर्माण करवाया गया है। जो आज अपनी भव्यता को निखार रहा है। सतनाम धर्मानुयायियों को यह समर्पित कर दिया गया है।

आज गुरू पर्व है। छत्तीसगढ़ सरकार और मध्यप्रदेश सरकार ने शासकीय अवकाश घोषित किया है। इसके अलावा भारत वर्ष के समस्त सतनाम धर्मानुयायी लोग आज 18 दिसम्बर 2019 को गुरू घासीदास जी की जयंती मनाते हुए हर्ष और उल्लास के साथ गुरू बाबा जी के पावन चरित्र का गुणगान करते हुए पंथी नृत्य के साथ-साथ गुरूजी की भव्य और आकर्षक झाकियां और शोभायात्रा जिसमें गुरू वंशज के गुरू लोग सुसज्जित श्वेत हाथी पर सवार होकर तलवार और भाले, अस्त्र और शस्त्र से सज-धज कर अपनी शौर्यता और वीरता तथा साहस का प्रदर्शन करते हुए शोभायात्रा में शामिल होते हैं। इस तरह के दृश्य किसी अन्य प्रांतों में देखने को नहीं मिलता है। जबकि छत्तीसगढ़ के सतनाम धर्मानुयायी सतनामियों में यह आन, बान और शान का प्रदर्शन एक आम बात है। इस तरह की झांकियां और शोभायात्रा भी विभिन्न शहरों और गांवों में प्रदर्शित किए जाते हैं। इस प्रकार सतनाम धर्म के मानने वाले सतनामी नर-नारी श्वेत परिधानों में सुसज्जित होकर सभी सतनाम धर्मी गुरू बाबा जी को याद करते हुए गुरू बाबा जी के पावन चरण कमलों में अपना मस्तक टेकते हुए यह कामना करते हैं कि-'हे सतपुरूष, हे सतनाम, हमें सत मार्ग पर ले चलों तथा विश्व मानव समुदाय के लोगों को सद्ज्ञान प्रदान करते हुए, उन्हें भी सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दीजिए। ता कि सम्पूर्ण विश्व मानव समुदाय वैमनस्य भावों का परित्याग कर सद्भाव और निश्चल मन से शांति और सद्भाव के मार्ग पर निरंतर चल सके।''कहीं-कहीं पर सतनाम धर्मी गुरू घासीदास बाबा जी की भक्ति करते हुए सतनाम महामंत्र का अखण्ड जाप करते हुए बाबा जी के पावन चरित्र का बखान कर रहे होते हैं-दोहा-''भक्ति करती कर जोरिके, साहेब बिनती तोरि। घासीदास पावन चरित, आगे कहो बहोरिं।। सतनाम की महिमा का गुणगान करते हुए सतनाम धर्म के अनुयायी जन गुरू घासीदास जी की वंदना को सर्वोपरि मानते हुए कहते हैं कि-चौपाई-''सुनि सत पुरू परम सुख माना, भक्ति सन इमि करत बखाना। सुनहु कथा संय भर हरनी, भक्त चरित भव सागर तरनी। महा मोह विढपबन खरनी, ज्ञान प्रखर पावन ते जरनी। जहां लागि पाप समूह श्रुतिबरनी। ते सब जरत अनल जिमि अरनी। पन्नग विय डंकहित भरनी, भव नदी पार करत वैतरनी। विविध ज्ञान प्रसंगहि बरनी, करही संत जन पावन धरनी। बरनउ मैं सोई संत के करनी, सत संदे कहा घर-घरनी। हरहिं सुनत संत की करनी, माया जाल ते हंस उबरनी।'' दोहा-''श्रद्धा भक्ति युत्त सुनही कोउ, मानि सत्य विश्वास। पूर्ण मनोरथ होहिं सब, कहै मनोहर दास।।

(अर्थात् जो सतनाम सतपुरूष की कथा सुनते हैं वे परम सुख की प्राप्ति करते हैं। सतनाम की कथा सुनकर हृदय के संशय और भ्रम मिट जाते हैं। और भक्त जन गुरू घासीदास जी के पावन चरित्रों का गुणगान कर इस संसार रूपी सागर को पार कर जाते हैं। हृदय के मोह माया सब कुछ सतनाम सद्ज्ञान के तेज अग्नि से जलकर भस्म हो जाते हैं। पाप के समूह भी सतनाम की आग से नष्ट हो जाते हैं। विषय वासना से भरा हुआ हृदय सतनाम की भक्ति से सतनाम मय हो जाता है। संसार सागर से वैतरनी नदी नदी से भी पार हो जाता है। अतः इस प्रकार से मैं सतगुरू सतनाम के विविध ज्ञान के प्रसंगों का वर्णन करते हुए संत गुरू घासीदास जी के पावन सतज्ञान को हृदय में धारण करता हूं। सतनाम को हृदय में धारण कर सतनाम का संदेश मैं घर-घर में पहुंचा रहा हूं। सब लोग संत के सतकर्म को जानकर अत्यंत हर्षित होते हैं। तथा माया जाल से अपनी जीव आत्मा रूपी हंसा को सतनाम के भक्त जन उद्धार करते हैं।

आगे हमारे आदि कवि मनोहरदास नृसिंह जी कहते हैं कि यदि कोई सतनाम भक्त श्रद्धा और भक्ति के साथ संत गुरू घासीदास जी के सतनाम पर विश्वास करता है तो उसकी संपूर्ण मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है।)

सोरठाः-''सत्य पुरू सतनाम : सकल विश्व के कारण। सत् सत् कोटि प्रणाम : अन्तस दृग पट खोलिये। ध्यान पटल के माही : चरित चित्र दर्शाईये। गुप्त प्रकट जहां आही : कर गहि कलम लिखाईये।

(अर्थात् हे सतपुरूष ! हे सतनाम ! इस संसार में जो भी घटनाएं घट रही है, हलचल हो रही है उन सब का हेतु तुम ही हो। हे सतपुरूष! हे सतनाम! तुमको मेरा सौ सौ प्रणाम! आप मेरे अन्तसतल के असंख्य ज्ञान चक्षु को खोल दीजिए। मेरे हृद्य पटल में तुम्हारे ही सुन्दर छवि दृश्यमान हो रहे हैं। हे सतपुरूष! हे सतनाम! हे सतगुरू! आपकी कृपा से सतनाम के गुप्त भेद को प्रकट कर सकूँ। हे सतपुरूष! आप मेरे हाथ पकड़ कर गुरू घासीदास जी के पावन चरित्र को लिखने में मेरी मदद कीजिए।)

दोहाः-सत पृथ्वी सत ही गगन : सत ही सृष्टि के सार। ऐसे सतगुरू के चरण : बन्दौं बारम बार। गदगद हो भक्ति कही : सतगुरू मोहि सुनाव। घासीदास पुनि कवन तप : का सिद्धि बर पाव।

(अर्थात् सतनाम की महिमा का वर्णन करते हुए आदि कवि मनोहरदास जी कहते हैं कि सत्य से पृथ्वी तथा सत्य से ही आकाश टिका हुआ है क्योंकि सत्य ही इस सृष्टि का मूल है। ऐसे सदगुरू सतनाम के चरणों की वंदना मैं बार-बार करता हूँ। मैं गदगद मन से सद्गुरू की भक्ति में लीन होकर सतगुरू बाबा घासीदास जी के पावन चरित्र का वर्णन कर रहा हूँ। गुरू घासीदास जी ने जंगल में तपस्या करते हुए सतनाम की सिद्धि को प्राप्त किया था।)

चौपाईः-'' घासीदास के पावन चरित सुहावन : गंगा जल जिमि निर्मल पावन। सुनि-सुनि भक्ति पुलकित अंगा : भक्ति विभोर कथा रस रंगा।''

( अर्थात् श्री सत्यनाम महापुराण के वैराग्य काण्ड में आदि कवि मनोहरदास जी नृसिंह जी ने गुरू घासीदास जी के पावन चरित्र का वर्णन करते हुए कहते हैं कि-गुरू घासीदास जी का चरित्र गंगा जल के समान निर्मल एवं पवित्र है। तथा बहुत ही सुन्दर एवं सुहावना है। गुरू जी की भक्ति करते हुए भक्तों के रोंम-रोंम पुलकित हो उठते हैं। भक्त आपको कथा रस के रंग में रंग कर डूबकर भाव विभोर हो उठते हैं।)

सतनाम धर्म के अनुयायी सतनामी जन समदर्शी गुरू घासीदास जी की जयंती मनाते हुए गुरूजी के पावन सत चरित्रों का सुन्दर गान एवं सद् चरित्रों का सुन्दर वर्णन करते हुए गुरू घासीदास जी की अमृतवाणी ''मनखे मनखे एक बरोबर'' के सत सिद्धांत को सद्भाव के साथ हृद्य में धारण कर संकल्प कर रहे हैं कि संसार के समस्त मानव समुदाय और समग्र जाति धर्म सम्प्रदाय और धर्मान्धता से उपर उठकर गुरू घासीदास जी के बताये हुए सतनाम के मार्ग पर चलने का उद्घोषणा कर रहे हैं कि हे सतपुरूष! हे सतनाम! आप इस संसार के सारे मानव समूह को सतनाम की राह पर चलने के लिए प्रेरित करें और सभी मानव समुदाय को अपने हृद्य में बसाकर उनका उद्धार करें।

इसी प्रकार सतनाम धर्म ग्रंथ महाकाव्य के रचयिता सुप्रसिद्ध महाकवि श्री नंकेशरलाल टण्डन जी संत गुरू घासीदास जी के पावन चरित्र का वर्णन अपने महाकाव्य में लिखते हैं कि संत गुरू घासीदास जी सतनाम की प्राप्ति हेतु तपस्या और धुनी के लिए उचित स्थान की तलाश करते हुए उनका (गुरूजी बाबा जी) का मन उदास हो जाता है। चारों दिशाओं में उचित स्थान की तलाश हेतु अपनी दृष्टि चहुं दिशाओं में निहारते हैं। तब भी कोई पावन स्थल नहीं दिखाई देता। तभी अचानक गुरू जी की दृष्टि गिरौधपुरी के जंगल के छाता पाहाड़ और औरा-धौरा वृक्ष की छांव दिखाई पड़ती है, जहां पर विशाल पावन शिला दिख पड़ता है। गुरू घासीदास बाबा को यह स्थान सतनाम ध्यान के लिए अति उत्तम और अति उचित लगता है और वहीं हमारे परम श्रद्धेय गुरू घासीदासजी बैठकर सतनाम की धुनी लगाकर सतनाम की खोज हेतु ध्यान मग्न होकर बैठ जाते हैं। इस तरह गुरू घासीदास जी को सतनाम की प्राप्ति होती है। और वही सतनाम को जन-जन के उद्धार के लिए सत के मार्ग बताने के लिए अपने जीवन में उपयोग कर सर्व मानव समाज को सतनाम का संदेश देते हुए सतनाम ज्ञान जागरण का अभियान संपूर्ण भारत भूमि में चलाया जो आज सर्व मानव समाज के लिए अति उपयोगी साबित हो रहा है। इसी का वर्णन नंकेशरलाल टण्डन जी ने अपने महाकाव्य के इस दोहा में लिखते हैं किः-दोहा-त्यागी तपस्वी ज्ञानी गुरू, बज्र कठोर समान। हृद्य पुष्ट बल ाली, सत्य गति समान।। तीन चार दिवस बीत गयो, खोजत फिरत बनवासी। धुनि स्थल मिलत नाही, बैरागी गुरू हैं उदासी।। (अर्थात् बज्र के समान कठोर हृद्य वाले त्यागी, तपस्वी और ज्ञानी गुरू जिनका शरीर हष्ट-पुष्ट और बलशाली है। तथा सत्य की गतिशीलता से भरा हुआ एक सच्चे इंसान हैं। जो कि तीन चार दिनो तक धुनि के लिए उत्तम और पावन स्थल खोजते गिरौधपुरी के जंगल में ढ़ूढ़ते फिर रहे थे। कहीं भी धुनि हेतु यथोचित स्थल नहीं मिल पा रहा था, गुरू बाबा का बैरागी मन उदास हो जाता है।) चौपाई-चारों ओर परखत गोसाई। बाग बगईचा मन हृद्य जुड़ाई।। औरा-धौरा नीचे समतल शिला। वर्णन न जाई सतनाम के लीला।। (महाकवि नंकेशरलाल टण्डन जी ने इस पंक्ति में उस दृश्य का बहुत सुंदर वर्णन चित्रांकन किया है अर्थात् गुरू घासीदास जी चारों दिशाओं में स्थल की परख कर रहे हैं। बाग-बगीचा को देखकर गुरूजी का हृद्य शीतलता का अनुभव करते हैं। तभी गुरू घासीदासजी को औरा-धौरा वृक्ष दिखाई पड़ता है जिसके नीचे विशाल समतल चट्टान दिखाई देता है। कवि ने कहा है कि जगह का वर्णन नही किया जा सकता यह अवर्णनीय है। यह कैसी सतनाम की लीला है जो गिरौधपुरी के जगल कितना सुंदर है। ये सब देख कर गुरू घासीदास जी का मन प्रफुल्लित हो उठता है।) दोहा-''औरा-धौरा के छांव में, पवित्र शिला को पाय। ांत हृद्य मन भरे, तपो स्थल धुनि बनाय।। करि परिक्रमा घुम के, हृद्य सत मनाय। जप तप योग सफल करो, माथ टेकी सिर नाय।।( अर्थात् गुरू बाबा जी औरा-धौरा वृक्ष की छाया के नीचे पावन समतल विशाल चट्टान को पाकर अत्यंत खुश होते हैं। हृद्य और मन शांत और गदगद हो जाता है। उसी स्थल पर गुरू बाबा जी अपने धुनि सजाते हैं। और अपने हृद्य में सतनाम को धारण कर सजाये गये धुनि के चारों ओर सात बार परिक्रमा करते हैं। और उस सतपुरूष सतनाम को स्मरण करते हुए कहते हैं कि हे सतपुरूष ! हे सतनाम ! मेरा योग जप-तप को सफल बनाना मैं आपके चरणों में अपना मस्तक टेक कर सिर झुकाते हुए प्रणाम करता हूँ।) दूसरी बार गुरू घासीदास बाबा जी ने औरा-धौरा पेड़ और वहां पर स्थित विशाल समतल शिला के चारो ओर गोल सात धुनि के बीच में समाधि लगाकर बैठ गये। दूसरी बार तपस्या प्रारंभ करते हैं-दोहा-''सात फेरा परिक्रमा करे, सतनाम हृद्य रमाय।। माथ टेकी सिर नाय कर, बीच शिला बैठ जाए।। आाढ़ सुदी के पंचमी, सोमवार प्रातःकाल। औरा-धौरा तरी धुनि रमे, महंगू जी के लाल।। (अर्थात् गुरू घासीदास बाबा जी धुनि के सात फेरा लगाते हैं और सतनाम को अपने हृद्य मे धारण करते हैं, अपना माथा सतगुरू के चरणों में टेकते हैं और अपना मस्तक विनयी भाव से झुका देते हैं। विशाल श्वेत शिला के बीचों-बीच धुनि हेतु बैठ जाते हैं। यह आषाढ़ पंचमी के सुहावना दिवस था। और सोमवार का प्रातः काल का सुखद समय था। इस प्रकार महंगूदासजी के लाल गुरू घासीदास जी सतनाम ज्ञान की प्राप्ति हेतु औरा-धौरा वृक्ष के नीचे धुनि रमाकर बैठ जाते हैं।)

सतनाम सतपुरूष साहेब जी की प्रार्थनाः-आदिनाम सतनाम, आदिपुरूष सतपुरूष, आदि गुरू सतगुरू, साहेब गुरू सतनाम! सतनाम! सतनाम! सतनाम!

हे सतपुरूष ! हे सतनाम !

सारा जगत में है तेरा नाम, हे सतपुरूष, हे सतनाम।

जल में तुम्ही थल में तुम्ही, नभ, गगन, ग्रह, तारा तुम्ही।

कण कण में आठो धाम, हे सतपुरूष, हे सतनाम।

जड़ में तुम्ही, फल में तुम्ही, डाल-डाल, हर पात में तुम्ही।

जीव प्राणी के आठो याम, हे सतपुरूष, हे सतनाम।

प्रेरणा, रचना, प्रलय तुम्ही, एक भाव जग आत्मा तुम्ही।

तेरी कृपा से जग में शान, हे सतपुरूष, हे सतनाम।

पांच तत्व तीन योग कर्ता, भरण पोषण अहार के भर्ता।

जीवन मरण यह सब का काम, हे सतपुरूष, हे सतनाम।

इसी तरह से हमारे तीसरे महाकवि जो बहुमुखी प्रतिभा के धनी और सुप्रसिद्ध रचनाकार डॉ. मंगत रवीन्द्र जी हैं जिन्होनें अपने महाकाव्य ''श्री प्रभात सागर'' के पंचम् प्रभात में श्री गुरू धासीदास जी की तपस्या एवं उनकी सिद्धि के बारे में सुन्दर वर्णन करते हुए लिखते हैं-चौपाई-''घासी सुधाधर ज्ञान प्रकाश। चरित चांदनी चमकि आकाा।। मम मति लघु खद्योत सम। करत अल्प द्युति क्षण क्षुप पाना।। (अर्थात् श्री गुरू घासीदास जी स्वयं चन्द्रमा के समान हैं, तथा ज्ञान, प्रकाश तुल्य है उनकी लीला (चरित्र) चांदनी के समान पूरी दुनियां को आलोकित करने के लिए आसमान में चमक रही है। मेरी बुद्धि छोटे से जुगनू के समान है, जो रात्रि के अंधेरे में कहीं-कहीं, छोटे-छोटे पौधों की पत्तियों के बीच धीमा प्रकाश दे रहा है।)

''घासीदास कुल इक गिरही। सत सुविज्ञ सुहृद मन धीरही।। हृद्य सिंधु बहई नेह नीरा। परम उदार सोच गंभीरा।।( अर्थात् गुरू घासीदास जी एक कुशल गृहस्थ हैं, सत्य के ज्ञानी (पारख अनुभवी) हृद्यवान (दयालु) और मन के धैर्यशील हैं। उनके हृद्य समुद्र में प्रेम रूपी जल की अविरल धारा है। वे परम उदार और विचार के उच्चआकांक्षी भी हैं।) ''कहुँ अवसर गुरू घासी सुजाना। ज्ञान योग निज प्रिय समझाना।।सरस जानि श्रवण चितलाई। महा ज्ञान सफुरा हरषाई।। (अर्थात् कभी-कभी गुरू घासीदास जी अवसर मिलने पर प्रिये को ज्ञान योग के रहस्य को समझाते हैं। इसे उत्तम ज्ञान समझ कर सफुरा ध्यान लगाकर सुनती एवं परम आनंद प्राप्त करती हैं।)

कुल मिलाकर सतनामध`िर्मियों के लिए इन तीनों महाकाव्य में विस्तार पूर्वक गुरू घासीदास जी के सत चरित्र के विभिन्न पहलुओ को बारीकी से लिखा गया है। किंतु मैंने यहां पर संक्षिप्त उनके चुनिंदा अंश को ही प्रसतुत किया है। महाकाव्यकारों ने अपनी अप्रतिम गुढ़तम् प्रतिभाओं से गुरू घासीदास जी के सुन्दर चरित्र का वर्णन अपने-अपने महाकाव्य में अति उत्तम तरीके से गुरू घासीदास जी के सुचरित्र का अत्यंत सुहावने ढंग से बखान किया है। मैंने इनकी सुप्रसिद्ध ग्रंथो रचनाओं से प्रभावित होकर यह लेख तैयार किया है जो आप सभी पाठको को अच्छा भी लगेगा। मैं तो यही कहूंगा कि ये तीनों ही महाकाव्य हमारे सतनाम धर्म ग्रंथ के लिए अति उपयुक्त है। इन्हें सतनाम धर्म ग्रंथ के रूप में सतनाम धर्मानुयायियों को सर्वसम्मति से बेहिचक समर्पित कर देना चाहिए।

''सतनाम धर्म'' !! सतनाम धर्म के सात सिद्धांत !!

1.सतनाम पर विश्वास करो। 2.मूर्ति पूजा मत करो। 3. जाति-पांति के प्रपंच में मत पड़ो।

4. नशा सेवन मत करो। 5. चोरी और जुआ से दूर रहो। 6. व्यभिचार मत करो।

7. पर स्त्री को माता समान देखो।

(सतनाम का मूल महामंत्रः-''आदिनाम सतनाम ! आदिपुरू सतपुरू ! आदिगुरू सतगुरू ! साहेब गुरू सतनाम ! सहेब गुरू सतनाम !! सतनाम !! सतनाम ! सतनाम !!)

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प्रस्तुतकर्ता/लेखक

डॉ.रामायणप्रसाद टण्डन(सतनामी)

प्लॉट नं. 90, आदर्श नगर कांकेर (छत्तीसगढ़)

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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: ''घासीदास के पावन चरित सुहावन : गंगाजल जिमि निर्मल पावन।।'' - डॉ.रामायणप्रसाद टण्डन(सतनामी)
''घासीदास के पावन चरित सुहावन : गंगाजल जिमि निर्मल पावन।।'' - डॉ.रामायणप्रसाद टण्डन(सतनामी)
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