पर्यावरण बचाने के लिये दुनियाभर में आकर्षण का केंद्र बन चुकी स्वीडन की 16 वर्षीय ग्रेटा थुनबर्ग अपने आंदोलन से महात्मा गांधी के सत्याग्रह की...
पर्यावरण बचाने के लिये दुनियाभर में आकर्षण का केंद्र बन चुकी स्वीडन की 16 वर्षीय ग्रेटा थुनबर्ग अपने आंदोलन से महात्मा गांधी के सत्याग्रह की याद ताज़ा कर रही हैं। इसी वर्ष नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित ग्रेटा थुनबर्ग द्वारा चलाए गए आंदोलन को वैश्विक समर्थन मिल रहा है। नोबेल शांति पुरस्कार अगर ग्रेटा थुनबर्ग को मिलता है, तो इस सम्मान को पाने वाली वे अब तक की सबसे युवा होंगी। यह पुरस्कार दिसम्बर में दिया जाना है। ग्रेटा थुनबर्ग द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन का नाम ’स्कूल स्ट्राइक फॉर क्लाइमेंट’ है, जिसे दुनियाभर के लाखों बच्चों का खुला समर्थन मिल रहा है।
ग्रेटा थुनबर्ग पर्यावरण बचाने के लिए किए जा रहे अपने आंदोलन ’स्कूल स्ट्राइक फॉर क्लाइमेट’ के सिलसिले में हर शनिवार स्कूल के बाहर हड़ताल करती हैं। इसके लिए उन्होंने इसी बरस 15 मार्च को अपील की थी, जिससे प्रेरित होकर 125 देशों के 15 लाख स्कूली बच्चे हड़ताल पर चले गए थे। इस संदर्भ में ग्रेटा थुनबर्ग के इंस्टाग्राम पर 24 लाख, फेसबुक पर 11 लाख और ट्विटर पर 9 लाख फॉलोअर्स देखे जा सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र की क्लाइमेट समिट इसी माह अर्थात् 23 सितम्बर को न्यूयॉर्क में होने जा रही है, जिसमें ग्रेटा थुनबर्ग भी हिस्सा लेंगी।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित की जा रही ’क्लाइमेट समिट’ में न्यूयॉर्क पहुँचने के लिए ग्रेटा ने विमान की बजाय याट का इस्तेमाल किया है और इसके लिए वे 60 फीट लंबी याट में लंदन से न्यूयॉर्क पहुँच भी चुकी हैं। याट से सफ़र करने के पीछे ग्रेटा की मंशा यही रही है कि वे अपने हिस्से का कार्बन उत्सर्जन रोक सकें। इसके आगे की ख़बर बहुत ही मजे़दार है।
ख़बर ये है कि ग्रेटा थुनबर्ग जिस रेसिंग याट मेलिजिया-2 से अटलांटिक होते हुए लंदन से न्यूयॉर्क पहुँची है। उस याट को वापस लाने के निमित्त दो लोग विमान से न्यूयॉर्क जाएंगे और विमान से ही याट वापस लाएंगे। इसका सीधा सा मतलब यही हुआ कि ग्रेटा विमान की बजाय याट से सफर करके जितना कार्बन उत्सर्जन रोकेंगी, उनकी याट वापस लाने में उससे दोगुना कार्बन उत्सर्जन हो जाएगा। क्या इस विरोधाभासी हरक़त से बचा नहीं जा सकता था? मेलिजिया टीम के प्रवक्ता का कहना है कि ग्रेटा की न्यूयॉर्क यात्रा के लिए उन्हें बहुत ही कम समय मिला था। यही वज़ह रही कि याट-चालक दल के दो सदस्यों को विमान से न्यूयॉर्क भेजना पड़ा। क्या ग्रेटा की न्यूयॉर्क से लंदन और याट की वापसी भी, विमान से ही की जाना, तर्क संगत ठहराया जा सकता है? हालांकि मेलिजिया की टीम ’फ्राइडे फॉर फ्यूचर’ कैंपेन के लिए ग्रेटा थुनबर्ग को लंदन से न्यूयॉर्क तक बिलकुल मुफ़्त में ही ले गई है।
ग्रेटा थुनबर्ग को अपने ’फ्राइडे फॉर फ़्यूचर’ अभियान के लिए न्यूयॉर्क से लंदन तक छः हज़ार किलोमीटर दूरी तय करने में एक हफ़्ते का वक़्त लगा है। इस अभियान की यात्रा में ग्रेटा थुनबर्ग के फ़िल्ममेकर पिता स्वेंत नाथन गा्रॅसमेन भी उनके साथ हैं। निश्चित ही यह एक चुनौतीपूर्ण यात्रा है। याद रखा जा सकता है कि याट मेलिजिया-2 में सौर-पैनल और अंडरवाटर टर्बाइन लगे हैं, जिनसे पर्यावरण को ज़रा भी नुकसान नहीं होता है। याट टीम के प्रमुख बोरिस हरमैन कहते हैं कि उन्होंने ग्रेटा थुनबर्ग को पहली बार इसी बरस मार्च में एक प्रदर्शन में जर्मनी के हैम्बर्ग में एक प्रदर्शन के दौरान देखा था। तब हरमैन की गर्लफ्रेंड ने हरमैन से कहा था कि अगर इस लड़की को कभी कहीं जाने की ज़रूरत हुई तो उसे अपने याट से लेकर जाना, ताकि कार्बन उत्सर्जन रोकने के संदेश को विस्तार दिया जा सके। अब वही ग्रेटा संयुक्त राष्ट्र की ’क्लाइमेट समिट’ में हिस्सा लेने के लिए याट से पहुँचकर दुनिया को पर्यावरण सुरक्षा का संदेश दे रहीं हैं।
विश्व प्रसिद्ध टाइम पत्रिका द्वारा जारी की गई दुनिया के सौ सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल ग्रेटा थुनबर्ग ने पिछले बरस अगस्त में ही स्कूल से निकलकर, बेहतर पर्यावरणीय भविष्य की माँग करते हुए, स्वीडिश संसद की सीढ़ियों पर बैठने का फै़सला कर लिया था। ग्रेटा ने अपने हाथों में ’सुरक्षित जलवायु के लिए स्कूल से हड़ताल’ शीर्षक की तख़्ती ले रखी थी। उसे दुनियाभर से 15 लाख युवाओं और 3000 से अधिक वैज्ञानिकों का समर्थन मिला। यह एक अचंभित कर देने वाला कारनामा था, जिसका विभिन्न देशों के 3000 से अधिक वैज्ञानिकों ने, न सिर्फ़ समर्थन किया, बल्कि ग्रेटा थुनबर्ग के समर्थन में एक बयान भी जारी किया। बयान में कहा गया है कि ’अगर मानव सभ्यता तत्काल क़दम बढ़ाकर ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित नहीं करती है, अगर जीव-जंतुओं सहित वनस्पतियों का आसन्न महाविनाश नहीं रोकती है, अगर भोजन की आपूर्ति का प्राकृतिक आधार नहीं बचाती है और अगर मौज़ूदा तथा आगामी पीढियों का जीवन सुरक्षित नहीं करती है, तो साफ़-साफ़ यह मान लेना होगा कि हमने अपने सामाजिक, नैतिक और ज्ञान आधारित दायित्वों का निर्वहन नहीं किया है।’ ’तीन हज़ार वैज्ञानिकों द्वारा ’फ्राइडे फॉर फ्यूचर’ कैंपेन के समर्थन में जारी किया गया, यह वक्तव्य क्या मानव सभ्यता के प्रति वैराग्य से अधिक हमारी पराजय ही प्रेषित नहीं करता है?
ग्रेटा थुनबर्ग की ख़ास चिंता यह है कि दुनियाभर की पर्यावरण नीतियाँ दूरगामी न होकर सिर्फ़ 2050 तक के बारे में ही सोच-विचार कर रही हैं। पर्यावरण की रक्षार्थ वर्ष 2050 से आगे न सोच पाना बेहद चिंताजनक है। ग्रेटा का दुःख यह भी है कि वर्ष 2050 तक तो वह अपनी आधी जिंदगी ही जी पाएगी और तब तक दुनिया की आबादी आज के मुक़ाबले तक़रीबन दोगुना हो जाएगी, तब तक के लिए न तो पीने का पानी होगा और न ही खाने को रोटी। एक तरफ़ कुपोषण होगा, तो दूसरी तरफ़ भूखमरी। दुनिया की तमाम अर्थ-व्यवस्थाएं छिन्न-भिन्न हो चुकी होंगी। तमाम राजनीतिक तंत्र अपने-अपने दृष्टिकोण की वज़ह से न सिर्फ़ अपनी-अपनी विश्वसनीयता खो चुके होंगे, बल्कि जीवन के हर किसी क्षेत्र में अराजकता ही अधिक बढ़ा रहे होंगे। दिक़्क़त यह भी होगी कि एक-दूसरे को समझना-समझाना मुश्किल होता जाएगा। चारों तरफ़ शक़ का आलम होगा और शांति कहीं नहीं होगी।
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़ वर्ष 2050 में दुनिया की आबादी न सिर्फ़ एक त्रासदपूर्ण स्थिति तक पहुँच जाएगी, बल्कि बूढ़ों की संख्या भी बच्चों से दोगुना होगी। आज का हर 10 वाँ शख़्स बूढ़ा है, जबकि 2050 मे हर छठा शख़्स बूढ़ा होगा। पर्यावरण-वैज्ञानिकों ने इसके लिए पर्यावरण-प्रदूषण को ही ज़िम्मेदार माना है। कई पर्यावरण-प्रदूषक तत्वों का निर्माण ’ग्लोबल वार्मिंग’ के कारण ही होता है, जो कि जन-जीवन के लिए एक बड़ा ख़तरा बनता जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटानियो गुटेरेस ने बिगड़ते पर्यावरण और जलवायु-संकट के बीच पर्याप्त संतुलन बनाने पर ज़ोर दिया है। महासचिव गुटेरेस अभी कुछ ही अर्सा पहले दक्षिणी प्रशांत द्वीप के देशों की यात्रा पर गए थे। पर्यावरण परिवर्तन के कारण बुरी तरह से प्रभावित लोगों के अनुभव साझा करते हुए गुटेरेस कहते हैं कि उन्होंने वहाँ वैश्विक जलवायु आपात्काल के गंभीर और बिगड़ते हालातों को पहली बार देखा था। मानवीय गतिविधियों के कारण आज की दुनिया ’पर्यावरण के अभूतपूर्व संकट’ से जूझ रही है। जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए ’हमारे जीवन की लड़ाई’ महत्वपूर्ण है। पर्यावरण प्रदूषण से प्रत्येक वर्ष तक़रीबन 70 लाख लोगों की जान जाती है और इससे बच्चों के विकास में भी बाधा पहुँचती है।
पर्यावरण बचाने के लिए हमें कार्बन उत्सर्जन को सीमित व संतुलित करने की अनिवार्यता पर ध्यान देना होगा। इसके लिए प्रदूषण पर लगाम लगाने, जीवाश्म इंर्धन-सब्सिडी समाप्त करने और नए कोयला संयंत्रों का निर्माण रोकने की ज़रूरत है। इसके साथ ही साथ अक्षय-ऊर्जा और हरित प्रौधोगिकियों का भी पता लगाना होगा। दुनिया के प्रत्येक शहरी क्षेत्र में वायु-गुणवत्ता सुधारने पर भी गंभीरता दिखाना होगी। तभी पृथ्वी, जीवन और भविष्य ’ग्लोबल वार्मिंग’ के संकट से पार पा सकते हैं। अगर पर्यावरण बचाने के लिए एक तरफ ग्रेटा थुनबर्ग ’फ्राइडे फॉर फ्यूचर’ अभियान चला रही हैं और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस जन-जागरूकता के लिए चिंता व्यक्त रहे हैं, तो दूसरी तरफ़ दुनिया के एक बडे़ धनपति बिल गेट्स भी पर्यावरण प्रदूषण से निपटने की विज्ञान सम्मत योजना बना रहे हैं।
बिल गेट्स और हार्वर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की योजनानुसार एक दशक तक प्रतिदिन 800 से अधिक विशालकाय विमान, पृथ्वी सतह से 25-50 किलोमीटर ऊँचाई पर जाकर समताप मंडल में कैलशियम कार्बोनेट युक्त चूना-धूल का छिड़काव करेंगे। आसमान में बिछाई-उड़ाई गई धूल की यह चादर एक विशालकाय परदे की तरह काम करेगी। इससे टकराकर सूर्य-किरणें अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाएंगी, जो पृथ्वी को ’ग्लोबल वार्मिंग’ के दुष्प्रभावों से बचाएगी। समस्त मानवता को समर्पित इस महान् परियोजना का संपूर्ण खर्च बिल गेट्स वहन करेंगे और हार्वर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक उक्त परियोजना को अमली जामा पहनाएंगे ताकि पृथ्वी, पृथ्वी का पर्यावरण और पर्यावरण का भविष्य बचाया जा सके। ग्रेटा, गुटेरेस और बिल गेट्स की प्रशंसा की जाना चाहिए, जो पृथ्वी को पर्यावरण-प्रदूषण से बचाना चाहते हैं।
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