ब्रह्माजी द्वारा प्रदत्त “द” का सृष्टि में क्या महत्व? - डॉ. श्रीमती शारदा मेहता

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ब्रह्माजी द्वारा प्रदत्त “द” का सृष्टि में क्या महत्व? एक समय की बात है कि देवता, दानव तथा मनुष्य तीनों के समूह ने पितामह प्रजापति ब्रह्मा ज...

ब्रह्माजी द्वारा प्रदत्त “द” का सृष्टि में क्या महत्व?

एक समय की बात है कि देवता, दानव तथा मनुष्य तीनों के समूह ने पितामह प्रजापति ब्रह्मा जी के पास जाने का निश्चय किया। वे सभी एक साथ बह्मा जी के पास पहुँचे। उन सभी ने ब्रह्मा जी से प्रार्थना की कि वे उनके (ब्रह्मा जी के) शिष्य बनना चाहते हैं। वे शिष्य बनकर ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे और सेवा करते हुए नियमपूर्वक विद्या ग्रहण करेंगे। ब्रह्मा जी ने उन सबकी विनती स्वीकार कर ली।

सर्व प्रथम देवताओं ने प्रजापति ब्रह्माजी से प्रार्थना की कि आप हमें उपदेश दीजिए। प्रजापति ब्रह्मा ने देवताओं को “द” अक्षर दिया और कहा कि अच्छी तरह समझ कर आप इसका अर्थ बतलाइये। स्वर्गलोक देवताओं की निवास भूमि है। इसे भोग विलास की भूमि कहा गया है। वहाँ वृद्धावस्था का अभाव है। देवतागण सुखों में लिप्त है। अपनी इस भोग युक्त जीवन शैली के कारण देवताओं ने “द” का अर्थ दमन समझ लिया अर्थात् इन्द्रिय-दमन (संयम) उन्होंने अपने आपको धन्य मानकर प्रजापति का वन्दन किया। प्रजापति ब्रह्मा जी ने पूछा कि क्या आप लोग मेरे “द” अक्षर का अर्थ समझ गए होंगे। देवताओं ने कहा कि आपने हमें इन्द्रिय-दमन की आज्ञा दी है। प्रजापति ने कहा कि मेरे “द” का यही अर्थ है।

आप लोग जाईये और उपदेशानुसार कार्य कीजिए। आपका कल्याण होगा।

अब कुछ समय पश्चात प्रजापति ब्रह्मा जी के पास मनुष्यगण गये और उनसे उपदेश देने की विनती की। ब्रह्मा जी ने उनसे भी “द” अक्षर देकर उसका अर्थ पूछा। सर्व प्रथम मनुष्यों ने इस बात पर मंथन किया और अन्त में निष्कर्ष निकला कि हम मनुष्यगण कर्मयोनि में हैं। हम लोभ के वशीभूत हैं। सर्वदा अर्थ संचय में लगे रहते हैं। इसलिए निश्चय ही ब्रह्मा जी ने हमें दान करने के लिए ही उपदेशित किया है। मनुष्यों ने अपना मनोरथ पूर्ण होने पर वापस जाने की आज्ञा माँगी। प्रजापति ने उनसे कहा कि आप लोग “द” अक्षर का महत्व समझ गये होंगे। मनुष्यों ने सविनय कहा कि हम लोग संग्रह प्रिय है। आपके कथन का तात्पर्य यह है कि हम अपने संग्रह से दान भी करें। ब्रहा जी ने कहा कि आपका कथन उचित है। ऐसा करने से आपका कल्याण होगा।

अब असुरों को उपदेश ग्रहण करने का समय आ गया। प्रजापति ब्रह्माजी ने उन्हें भी “द” अक्षर का अर्थ पूछा। असुर भी समझ गये कि उनका स्वभाव हिंसक प्रवृत्तियों वाला है। ब्रह्मा जी ने उन्हें “द” अक्षर का ज्ञान दिया है। इसका अर्थ यह है कि हम प्राणिमात्र पर दया करें। ङ्क्षहसा न करें। असुर गणों ने जाने की आज्ञा माँगी तो प्रजापति ने जिज्ञासा वश उनसे पूछा कि आप लोग मेरे कथन का अर्थ समझे या नहीं? असुरों ने कहा कि आपने हमें यह उपदेश दिया है कि हम प्राणिमात्र पर दया करें। प्रजापति ब्रह्मा जी का कथन था कि आप लोंगों ने बिल्कुल सही समझा। इसी से आप सबका कल्याण होगा।

किसी विद्वान कवि का कथन है कि-

देव दनुज मानव सभी लहै परम कल्याण

फलै जो “द” अर्थ को दमन दया अरु दान

(आलेख वृहदारण्यक उपनिषद के आधार पर)

आलेख से तात्पर्य है कि प्रजापिता ब्रह्मा जी ने मनुष्य की संग्रह-प्रवृत्ति के कारण संग्रह की गई वस्तुओं में से दान देने का उपदेश दिया। अतरू मानव समाज के हर वर्ग को अपनी आय और व्यय को ध्यान में रखकर दान देना चाहिए।

दान ऐसे वर्ग को दिया जाय जो वास्तव में दान लेने का पात्र हो जैसे अपंग, अन्धे, लाचार वृद्ध जिनका समाज ने तथा परिवार के लोगों ने परित्याग कर दिया हो। वे दूसरों के सामने हाथ फैलाने को विवश हैं। मेहनत मजदूरी करने में असमर्थ हैं। वे मूक बनकर अपनी बेबसी पर आँसू बहाते हैं।

वैदिक काल से ही दान के महत्व को मानव के लिए कल्याणकारी बताया गया है। मूक प्राणी पक्षी जगत और समाज के असहाय वर्ग को उस समय भी दान दिया जाता था। पक्षियों को दाना डाला जाता था, चीटियों को ग्राम के बाहर गुड़-आटा डाला जाता था। गुरु के आश्रमों में गो-धन का दान किया जाता था। दान के ये सभी प्रकार सर्व सुलभ थे और आसान भी। समाज का हर वर्ग ऐसा दान कर सकते थे-

सुपात्रेषु तथा दत्तं दानं सुफलंद भवेत्।

वर्तमान समय में दान का स्वरूप बदल चुका है। औषधालय, अनाथालय, सुधार गृह, धर्मशालाएँ बनवाई जाती हैं। भूकम्प पीडि़त, बाढ़ पीडि़त तथा सूखा पीडि़त क्षेत्र में श्रेष्ठी वर्ग दान के रूप में सहायता करते हैं। समाज के कई सम्माननीय सदस्य भीषण गर्मी के समय प्याऊ लगाते हैं। अधिकांश धार्मिक स्थानों पर लंगर की व्यवस्था की जाती है, जिससे पर्यटकों को भोजन संबंधी कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता है। आधुनिक समय में घरों की छत पर मिट्टी के सकोरों में दाना पानी भर कर पक्षियों के लिए रखा जाता है। यह दान का ही एक छोटा सा प्रकार है। लुप्त होते पक्षियों को बचाने का एक अभिनव प्रयोग है। इससे पर्यावरण के सन्तुलन को बनाए रखने में भी सहायता होती है। अपने जन्मदिवस, विवाह की वर्षगाँठ या कोई अन्य स्मरणीय दिवस पर पाँच-पाँच फलदार वृक्षों के पौधे दान दिये जाए और सम्पूर्ण वर्ष भर उनकी देखरेख की जाए। इससे भी फलदार वृक्षों की संख्या में वृद्धि होगी और हरियाली के साथ ही क्लीन इंडिया ग्रीन इंडिया को सहायता मिलेगी। हमें प्राणवायु प्राप्त होगी और पर्यावरण सन्तुलन बना रहेगा.

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डॉ. श्रीमती शारदा मेहता

सीनि. एमआईजी-१०३, व्यास नगर,

ऋषिनगर विस्तार, उज्जैन (म.प्र.)

पिनकोड- ४५६ ०१०

Email : drnarendrakmehta@gmail.com

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