नवीन वर्ष की नई शुभकामनाएँ ------------------------------- आगंतुक है। अतिथि सा ही पूज्य। सुस्वागतम। नया जन्मेगा। सूर्य देगा दस्तक। ...
नवीन वर्ष की नई शुभकामनाएँ
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आगंतुक है।
अतिथि सा ही पूज्य।
सुस्वागतम।
नया जन्मेगा।
सूर्य देगा दस्तक।
नया हौसला।
क्या नया सा है?
पुराने राजपथ।
पुरानी प्रजा।
नवीन वर्ष।
नये दुल्हा,दुल्हन।
वही घूँघट।
पीछे देख लो।
बिखरे टूटे पैर।
चेतना नयी।
शुभ,अशुभ।
मंगल-अमंगल।
भूलने ही हैं।
गढ़ने नए।
कल्पनाओं को हमें।
वर्ष है नया ।
नया जो भी हो।
पुराने रिश्ते,रास्ते।
नया सम्मान।
नए संकल्प।
पूजा-थाल सजाये।
आरती करें।
मौसम,हवा।
दुहराएगा फिर।
मैं नया करूँ।
असमंजस।
अनिश्चित माहौल।
नयी दृढ़ता।
सूर्य किरण।
हर ही संघर्ष को।
नयापन दे।
चंद्र किरण।
सोलह शृंगारों से।
श्रम-श्वेद ले।
सारे विषाद।
पथ के नए दोस्त।
हरता रहे।
दर्द बर्फ सा।
पिघल के तरल।
बनता रहे।
तीन छ: पाँच।
वर्ष के पूरे दिन।
स्वच्छ,श्वेत हो।
सारे कदम।
दृढ़,तीव्र,तत्पर।
चलते रहें।
जलता रहे।
दीया जो जले आज।
बछर भर।
बिखरे पल।
जिंदगी के हमारे।
संवर जाँय।
इश्तहार सा।
नहीं बने जीवन।
अगले साल।
रहम-दिल।
जीव-जन्तु के लिए।
बने ये वर्ष।
सुगंध बन।
महकता ही रहे।
सम्पूर्ण वर्ष।
मानव मन।
मानवता के द्वार।
खोलता रहे।
शैतान मन।
परिवर्तित हो,हो।
इंसानियत।
नया कदम।
नयी,स्फूर्ति,ऊर्जा से।
ओत-प्रोत हो।
शृंखलाबद्ध।
वर्षों में यह वर्ष।
अद्भुद होवे।
नए वर्ष की,
शुभकामनाएँ हैं।
हम सबको।
नया वर्ष है।
सम्मान चाहता है।
करोगे नहीं!
नया वर्ष है।
आशीर्वादों से लदा।
पूजित कर।
नया वर्ष है।
किताबों सा गुंफित।
पन्ने-पन्ने में
नया वर्ष है।
रहस्यमय देह।
सजो,सजाओ।
नया वर्ष है।
पिछले जुर्मों पर।
आँखें तरेरे।
नया वर्ष है।
चुनना है तुमको।
दोस्त,दुश्मन।
नया वर्ष है।
शिशु जैसा निर्दोष।
जैसा, लो गढ़ो।
नया वर्ष है।
हँसाओ,बिलखाओ।
तुम्हारा कर्म।
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जो नहीं है
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जो नहीं है
जीवन
उसीके लिए है।
जो है
उसपर होना लट्टू
इर्द-गिर्द घुमना
वैज्ञानिक मौत है।
इससे तो ईश्वर नहीं
ढूँढ सकते।
अनदेखे और अनचाहे
रास्ते पर
चलने से ही
कोई अपना अजनबी मिलेगा।
चलें!
जो नहीं है
उसकी चिंता क्यों?
संसार का चलन है।
जो नहीं है
उसे खोज लेने में
संसार के उद्देश्य का
मन है।
दो लोग साथ रहते हैं,
जन्म के पहचान से।
अचिन्हे लोग
रहते क्यों हैं साथ।
नियम या नियति के कारण?
हर संबंध के
नियम और नियति होते हैं।
सच कहा न?
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1. स्त्री
2. सोच भूख की
3. प्रार्थना
4. समर्थन
5. आम आदमी
6. गाँधी महान-
7. विकाश के ‘वायरस’
8. चिड़िया का सोना
9. दूध का दूध पानी का पानी
10. बाढ़ आ गई
1—स्त्री
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माएँ
होती हैं पूजनीया।
पुरूष का बड़प्पन।
बहन लज्जा का प्रतीक,
मरने–मारने को उतारू
रक्षक पुरूष।
रक्षाबंधन की मर्यादा का
अक्षरशः पालन।
बेटियाँ
आँखों के तारे।
दुलार‚प्यार की बौछार
पुरूष के मन की आर्द्रता
वात्सल्य सुख।
रिश्तेदार औरतें
सुख–दुःख की साथिनों की तरह
पुरूष को मान्य।
यानि कि स्त्री मान्य।
फिर स्त्री–पत्नी
पुरूष के द्वारा ही
बना दी जाती हैं
अबला‚पददलित‚शोषित‚
बेबस और मूक,
तबला और ढ़ोलक,
पैर की जूती की संज्ञा,
दाँव पर लगा दी जानेवाली
एक जिन्स।
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2--सोच भूख की
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भूख से जब
बिलबिला गया
तो
मन में एक ख्याल आया
काश पौधे से न मिलता
पेड़ से मिलता
भोजन।
हमें मिल जाती
विराट की छाया
भुखमरी नहीं होती।
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3---प्रार्थना
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भाग्यविधाता,
पिघलते कर्म से, -
हिलते और डुलते हैं,
भाग्य बदलते हैं।
प्रार्थना से नहीं।
रहो मत अर्कमण्य।
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4-समर्थन
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कौरवों के संग–साथ भीष्म‚द्रोण हों यदि।
होती क्यों नहीं रहेंगी यहाँ द्रौपदियाँ नग्न?
5--आम आदमी
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महाभारत की द्रौपदी
है आज का
आम आदमी।
किया जाता है इसलिए
इन्हें
बार–बार न जानें
कहाँ–कहाँ से
तार–तार नग्न।
दौपदी होने की
यही तो नियति है।
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6--गाँधी महान-
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आश्चर्य है कि
हर बदलाव
अनन्त सदियों से
चाहता रहा है खून।
चाहे वह रावण का सिर हो
या कौरवों का कटे हाथों से
छिटका हुआ नाखून।
या फिर सम्राट अशोक का
विजय अभियान।
इतने तेजस्वी युगों में भी
पुरूषोत्तम हों या योगिराज
मनोबल से ला न पाये
कोई बदलाव।
रचना पड़ा रण।
ईश्वर को भी ।
युद्ध का कलिंग–क्षेत्र।
कोई बदल न पाया
परिवर्तन के लिए विध्वंस का
आदिम सोच।
यह तो गाँधी थे जिन्होंने
कर दिया मजबूर
पराजित होने को
एक महान साम्राज्य के
सम्राट का अनास्त सूर्य वाला
कठोर जिद्दी सोच।
गाँधी जी थे महान
हैं महान
रहेंगे महान।
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7--विकाश के ‘वायरस’
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प्रजातंत्र द्वारा नवोदित
लाठीधारी।
लाठी द्वारा
हथियाये नेतृत्व के दरबारियों में
लाठी–संस्कृति के लिए
अखाड़ा–सभ्यता हेतु
बहुत मोह है।
और आह!
कितनी भरी है लिप्सा‚लालसा व लोभ
सम्राटों की तरह व्यवहार करने की
और सामंतवादों के सोच
अपनाकर
सामंतों के कतार में
शीघ्रातिशीघ्र खड़े होने की।
रईस जैसे शब्द सुनने की।
शुरू हो गया है ,
प्रजा का कर्तव्य
कि प्रजा करे
अपने अधिकारों का
खुलकर निडर प्रयोग।
ईश्वर शैतानों को
नकारता आया है
ईश्वर प्रजा है।
8--चिड़िया का सोना
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थकते नहीं कहते-कहते हम
था कल
देश
हमारा सोने की चिड़िया ।
अब आज
अनुत्तरित यह प्रश्न कि
क्या हुआ कि सहसा चिड़िये से खो गया स्वर्ण।
पाषाण युग का शहर,
तब नग्नता मजबूरी थी
अब सभ्यता है।
जीवन एकाकी था-
अब भीड़ में एकान्तता।
सामूहिकता थी तब बचाव के लिए
हिंस्र पशुओं से।
अब है हमले के लिए।
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9--दूध का दूध पानी का पानी
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दूध की नदी
हो गया पानी–पानी
स्वार्थ के वास्ते जब
उतरा
मनुष्य के तन–मन से सारा पानी।
हो गया था उजागर
दूध का दूध पानी का पानी।
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10 - बाढ़ आ गई
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गली बदल लेते थे
मुँह मोड़ लेते थे
सामना होने से जो घबराते थे
अजाने रिश्ते कह
ओठ बिचका लेते थे
सहसा मिला धन
रिश्ते निभाने
बाढ़ आ गई।
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अरुण कुमार प्रसाद
शिक्षा--- ग्रेजुएट (मेकैनिकल इंजीनियरिंग)/स्नातक,यांत्रिक अभियांत्रिकी
सेवा- कोल इण्डिया लिमिटेड में प्राय: ३४ वर्षों तक विभिन्न पदों पर कार्यरत रहा हूँ.
वर्तमान-सेवा निवृत
साहित्यिक गतिविधि- लिखता हूँ जितना, प्रकाशित नहीं हूँ.१९६० से जब मैं सातवीं का छात्र था तब से लिखने की प्रक्रिया है. मेरे पास सैकड़ों रचनाएँ हैं. यदा कदा विभिन्न पत्र, पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ हूँ.
अरुण कुमार प्रसाद जी बहुत अच्छी रचनाएँ पढ़वाने हेतु धन्यवाद!
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