बैगा जनजाति की लोक कथाएँ सभ्य दुनिया की तमाम कृत्रिमताओं से दूर सभ्यताजनित अनेक वर्जनाओं और आड़़ंबरों से परे एक कतई अलग संसार है। जिसकी उ...
बैगा जनजाति की लोक कथाएँ
सभ्य दुनिया की तमाम कृत्रिमताओं से दूर सभ्यताजनित अनेक वर्जनाओं और आड़़ंबरों से परे एक कतई अलग संसार है। जिसकी उन्मुक्त और आधुनिकता के प्रदूषण से रहित स्वच्छ हवा में आदिम गंध से महकते वन फूल खिलते है। झूमते और थिरकते हैं जी हाँ, इसी भारत वर्ष में जहां आज हम इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर चुके है। यहां आये दिन अंतरिक्ष में राकेट भेजने की तैयारियां भी होती हैं। ऐसे लोग भी बसते हैं। जिन्होंने रेलगाड़ी की शक्ल तक नहीं देखी,इनका जीवन, रहन - सहन, खाना - पीना, बोलचाल, आधुनिक मानव से बिलकुल ही भिन्न है। संपूर्ण भारत वर्ष में सबसे ज्यादा आदिवासी मध्यप्रदेश में ही निवास करते हैं तथा संपूर्ण एशिया महाद्वीप में यही एक आदिम जनजाति बची है।वह है -' बैगा '
इस जनजति के लोग जनजाति मंड़ला, ड़िंड़ौरी, शहड़ोल, अनूपपुर, उमरिया, राजनांदगांव एवं बालाघाट के दुर्गम वनों में निवास करते हैं।
बैगा जनजाति के अनेक पहलू अभी भी शेष समाज के लिए अविदित हैं। इनकी प्रथायें, परम्पराऍ, धार्मिक आस्थायें, लोक नृत्य एवं संगीत कला आदि, हममें न केवल कौतूहल उत्पन्न करते हैं, बल्कि हमें आहलादित भी करते हैं। इन कथाओं के साथ - साथ इस जनजाति के पास विशिष्ट लोककथायें,गाथायें,किंवदंतियाँ एवं मिथकों आदि का विपुल भँड़ार है। यह धरोहर पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होते हुए सदियों से अक्षुण्ण बनी हुई है। इनकी कथाओं में जहाँ समाज के स्वरुप,संगठन एवं सामाजिक आस्थाओं के दर्शन होते हैं, वहीं ये व्यक्ति व समाज को सृष्टि के रचयिता के साथ भी जोड़ती हैं।
तथाकथित अशिक्षित समझे जाने वाले इन बैगा आदिवासियों से मेरा विगत पैंतालिस वर्षों से घनिष्ट संपर्क है। मुझे उनके साथ उनके जीवन में सहभागी होने के अनेक अवसर मिले हैं। इसी दौरान उनके किस्से कहानी सुनकर इन लोक कथाओं का संग्रह करने का प्रयास किया है। मैं स्वयं भी श्रोता के रुप में इनसे अभिभूत होकर अवर्णनीय आनंद उठा चुका हूँ। आशा है आप भी इस निराले आनंद का अनुभव कर इनकी चमत्कारिता, घटना प्रवाह की वर्णन शैली, भाव - प्रवणता, चरम परिणति, अनूठेपन आदि विशिष्टताओं से अवश्य प्रभावित होंगे। लोक कथाओं की मौलिक व यर्थाथ प्रस्तुति पर विशेष ध्यान रखते हुए यथा - तथ्य उद्घाटित करने का प्रयास किया है। कहानी की श्रुत परंपरा के शब्दों को ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है, वहाँ भाषा के परिष्कार एवं व्याकरण संबंधी सुधार करने का प्रयास नहीं किया गया है।
इन लोक कथाओं को एकत्रित करने में जिन लोगों ने प्रत्यक्ष व परोक्ष रुप से सहयोग दिया है। उनका ऋण शब्दों में चुका पाना संभव नहीं है तथापि कुछ महानुभावों का उल्लेख न कर पाना भी मेरे ह्नदय को संतोष न दे सकेगा। श्री रतन सिंह बैगा, घिसला सिंह बैगा, फुन्दो बाई बैगा का मैं विशेष रुप से आभारी हूँ।
बैगा जनजाति की लोक कथाओं के भँड़ार में से कुछ रोचक लोक कथाऍ यहाँ प्रस्तुत की जा रही हैं। इसके पूर्व भी मेरा लोक कथाओं का संग्रह गोड़वाना की लोक कथाएँ नाम से राजकमल प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित हो चुका है।
यह कार्य मैंने भरपूर परिश्रम अनन्य आस्था और परिपूर्ण शोधवृति से किया है। आशा है जनजाति संस्कृति में रुचि रखने वालों और सह्नदय पाठकों को बैगा जनजाति की लोक कथाएँ के रुप में मेरा यह प्रयास अवश्य ही पसंद आयेगा।
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01 जनवरी 2020
डाँ.विजय चौरसिया
चौरसिया सदन
पो.गाड़ासरई जिला - ड़िंड़ौरी
मध्यप्रदेश 481882
Email- chourasiadrvijay@gmail.com
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आत्म परिचय - डॉ.विजय चौरसिया
नाम - डॉ. विजय चौरसिया
पिता - स्वः श्री सी. एल. चौरसिया
माता - स्वः श्रीमति ललिता बाई
पत्नि - श्रीमति प्रमोदनी चौरसिया
जन्म स्थान - ग्राम - बंड़ा
जन्म तिथि - 29.12.1952
जिला - कटनी म.प्र.
शिक्षा - बी.एस.सी, बी.ए.एम.एस, ड़ी. एच. बी,
संर्पक-चौरसिया सदन गाड़ासरई जिला-डिण्डौरी म.प्र.
Email-chourasiadrvijay3@gmail.com
- सम्प्रति -
- चिकित्सा कार्य, पत्रकारिता, लोक संस्कृति पर लेखन, प्रदेश के लोक नृत्यों एवं लोक संस्कृति तथा आदिवासी शिक्षा के संरक्षण हेतु प्रयासरत।
- म.प्र.तथा देश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं जैसे
कादंबनी, धर्मयुग, हिन्दुस्तान, टाइम्स, दिनमान, स्वस्थयवर्धक, इंड़ियाटूडे, दैनिकभास्कर, नवभारत, नईदुनिया पत्रिका में एक हजार से अधिक लेखों का प्रकाशन।
- मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में करीब 30 लोक नाट्य एवं लोक नर्तक दलों का नेतृत्व एवं देश - विदेशों में लोक नृत्यों का प्रदर्शन।
- विगत तीस वर्षों से मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ राज्य की लोक कलाओं एवं लोक नृत्यों के संरक्षण एवं विकास के लिये प्रयासरत।
-भारतीय रेडक्रास सोसायटी मध्यप्रदेश द्वारा जूनियर रेडक्रास सोसायटी म.प्र. के माध्यम से प्रदेश के बच्चों में रेडक्रास के प्रति जनजाग्रति लाने के लिए प्रयास।
-उप्लब्धियां-
भारत सरकार संस्कृति विभाग का उपक्रम दक्षिण मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र नागपुर में मध्य प्रदेश के लोक नृत्यों के लिए 2011 में गुरु मनोनित,भारतीय रेडक्रास सोसायटी मध्यप्रदेश की राज्य शाखा जूनियर रेडक्रास सोसायटी म.प्र. में 2012 से 2015 तक के लिए चेयरमेन मनोनित.धार जिला के घाटा बिल्लौद ग्राम एवं सतना जिला के मैहर नगर में जूनियर रेडक्रास का राज्य स्तरीय सम्मेलन जनवरी 2013 में कार्यक्रम का संचालन,राज्य स्तरीय प्रतिभाशाली छात्र - छात्राओं के सम्मेलन 22 सितंबर 2013 में म.प्र.महामहिम राज्यपाल रामनरेश यादव द्वारा प्रदेश के प्रतिभाशाली बच्चों का सम्मान एवं कार्यक्रम में आभार प्रदर्शन, इंदिरा गॉधी जनजाति राष्ट्रीय जनजाति विश्वविघालय अमरकंटक में सदस्य मनोनित,म.प्र. की प्रसिद्व समाजसेवी संस्था सावरकर शिक्षा परिषद में अध्यक्ष।सावरकर लोक कला परिषद में निर्देशक। दैनिक भास्कर पत्र समूह के क्षेत्रीय संवाददाता। इंटरनेशनल रोटरी क्लबिंड़ड़ौरी में सदस्य। राजीव गांधी शिक्षा मिशन ड़िड़ौरी में जिला इकाई के सदस्य। पंचायत समाज सेवा संचालनालय म.प्र. द्वारांड़ड़ौरी जिले के वरिष्ट नागरिक समूह के सदस्य। राष्ट्रीय भारत कृषक समाज के अजीवन सदस्य। भारत भवन भोपाल द्वारा एक घंटे की इंटरव्यू फिल्म का निर्माण। संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार द्वारा 45 मिनट की डाक्यूमेंटरी फिल्म जीवन पर आधारित का निर्माण 2013, बैगा जनजाती के लोक नृत्यों एवं लोक गीतों का आड़ियो विड़ियो कैसेट का निर्माण। जबलपुर होमियोपैथिक स्टूड़ेंट एसोशिएशन 1973 में अध्यक्ष। 115. म.प्र. की प्रसिद्व जनजाति गौंड़ में प्रचलित गोंड़ राजाओं के इतिहास का सा़क्ष्य बाना गीत पर आधारित म.प्र. आदिवासी लोक कला अकादमी द्वारा प्रकाशित ग्रंथ ‘आख्यान’ का म.प्र. के मुख्य मंत्री माननीय शिवराज सिंह चौहान जी द्वारा मुख्यमंत्री निवास पर दिनांक 7 फरवरी 2007 को विमोचन।, स्वराज संस्थान संचालनालय संस्कृति विभाग भोपाल द्वारा स्वाधीनता फैलोशिप प्रकाशित ग्रंथ जनजातीय लोक गीतों में राजनैतिक चेतना,का म.प्र. के महामहिम राज्यपाल रामेश्वर ठाकुर एवं मुख्य मंत्री माननीय शिवराज सिंह चौहान जी द्वारा 15 अगस्त 2007 को भोपाल के रविन्द्र भवन में विमोचन।, म.प्र. के मुख्य मंत्री माननीय शिवराज सिंह चौहान, फिल्म अभिनेता आशुतोष राणा,फिल्म अभिनेत्री रामेश्वरी, फिल्म निर्देशक प्रकाश झा एवं मंत्रीमंड़ल के मंत्रीयों द्वारा अंर्तराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल 2008 के अवसर पर मेरे द्वारा लिखित तीन पुस्तकों रामायनी,गोंड़वाना की लोकथायें एवं प्रकृति पुत्र बैगा का रविन्द्र भवन भोपाल में विमोचन,टी.वी.सीरीयल मान रहे तेरा -पिता में मुम्बई की दादा साहब फालके फिल्म सिटी में बैगा लोक नृत्य का प्रदर्शन एवं शुटिंग,बैगा जनजाति के जीवन पर आधारित फिल्म गोदना के निर्माण में सहयोग व फिल्म की स्क्रीप्ट का लेखन,दूरदर्शन भोपाल द्वारा निर्मित फिल्म नगर कथा डिण्डौरी के तीन एपिसोड निर्माण में सहयोग, बंबई की फिल्म कंपनी ड्रीम्स अनलिमिटेड़ द्वारा निर्मित प्रसिद्व फिल्म अभिनेता शाहरुख खान एवं करीना कपूर द्वारा 2002 में अभिनीत फिल्म अशोका में प्रदेश के 35 लोक कलाकारों का अभिनय एवं एक गीत के फिल्मांकन में अभिनय। जिला साक्षरता समिति मंड़ला द्वारा 1998 में तहसील डिण्डौरी का परियाजना समन्वयक मनोनित।
- शोध पत्र -
स्वराज संस्थान संचालनालय संस्कृति विभाग भोपाल द्वारा स्वाधीनता फैलोशिप 2006.07, प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग म.प्र.शोध पत्र का पठन। जवाहर लाल नेहरु कृपि विश्वविघालय जबलपुर शोध पत्र का पठन। स्वराज भवन भोपाल एवं गौंड़ी पब्लिक ट्रस्ट मंड़ला द्वारा मार्च 2006 को मंड़ला में आयोजित म.प्र. के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर शोध पत्र का पठन। शासकीय चंद्र विजय महाविघालयिंड़ड़ौरी शोध पत्र का पठन। गुरु धासीराम विश्व विघालय रायपुर में शोध पत्र का पठन,रानी दुर्गावती महाविघालय मंड़ला में शोध पत्रों का वाचन, भारतीय संस्कृति निधी(इंटेक)राष्ट्रीय सेमिनार 2012 ग्वालियर म.प्र.,उच्च शिक्षा विभाग म.प्र. शासन द्वारा शासकीय चंद्र विजय महाविघालयिंड़ड़ौरी में 25 से 26 फरवरी 2003 को आयोजित समायिक संर्दभों में गोंड़ी संस्कृति का इतिहास विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में जनजातियों में जड़ी - बूटियों से चिकित्सा विषय पर शोध पत्र का पठन, मेरठ बाटनी कालेज मेरठ में आयोजित बैगा जनजाति में प्रचलित जड़ी - बूटियों पर शोध पत्र का पठन। रानी दुर्गावती विश्वविघालय जबलपुर द्वारा आयोजित सेमिनार 2003 में फारेस्ट पिपुल्स एनवायरमेंट पर शोध पत्र का पठन एवं जनजातिय समस्यायों पर चर्चा,रानी दुर्गावती विश्वविघालय जबलपुर द्वारा मंड़ला में आयोजित सेमिनार जनजातियों में मदिरा का प्रचलन विषय पर शोध पत्र का पठन,इॅदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजाती विश्वविघालय अमरकंटक में आयोजित राष्ट्रीय सेमीनार 28 फरवरी 2012शोध पत्र का पठन।म.प्र.सामाजिक विज्ञान शोध संस्थान(भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसन्धान परिषद्, मानव संसाधन विकास मन्त्रालय,भारत सरकार, नई दिल्ली द्वारा आयोजित सेमिनार उज्जैन 8 अक्टूबर 2013 में मध्य प्रदेश के बैगा आदिवासी क्षेत्रों में सामाजिक,आर्थिक एवं तकनीकी विषय पर शोध पत्र का पठन।
-सम्मान -
1. मिनिस्टरी आफ डेवलेपमेंट भारत सरकार द्वारा प्रगति मैदान दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय विश्व व्यापार मेला में प्रदेश की लोक कलाओं को प्रोत्साहन एवं लेखन के लिये नागरिक अभिनंदन, प्रशस्ति पत्र एवं स्मृति चिन्ह से सम्मानित।
2. प्रथम प्रांतिय होमियोपैथी डॉक्टर्स अधिवेशन इंदौर में 20 अक्टूबर 1974 को होमियोपैथिक की विशेष सेवाओं के लिये मान पत्र से सम्मानित।
3. भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री सम्मानीय राजीव गांधी एवं श्रीमति सोनिया गांधी के साथ 24 नवंम्वर 1986 को तीन मूर्ति भवन दिल्ली में दोपहर भोज पर आमंत्रित एवं सम्मलित।
4. भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम रायपुर द्वारा गाड़ासरई में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में नागरिक अभिनंदन एवं प्रश्स्ति पत्र से सम्मानित ।
5. आदिवासी कला एवं संस्कृति केंद्र भोपाल एवं स्वराज संस्थान संचालनालय भोपाल 28 दिसंबर 2000 को भोपाल के स्वराज भवन में आयोजित समारोह में राज्य मंत्री श्री गनपत सिंह उइके द्वारा प्रदेश की लोक कलाओं को प्रोत्साहन एवं लेखन के लिये नागरिक अभिनंदन,प्रशस्ति पत्र एवं स्मृति चिन्ह से सम्मानित।
6. जबलपुर नगर के ऐतिहासिक पर्व दशहरा, मुहर्रम 1984 के चल समारोह में अति उत्तम सेवाओं और सराहनीय कार्य के लिये मुस्लिम बेदार कमेटी जबलपुर द्वारा नागरिक अभिनंदन।
7. अखिल भारतीय चौरसिया समाज द्वारा नागपंचमी पर्व 2001 के अवसर में जबलपुर में नागरिक अभिनंदन एवं समाज रत्न से सम्मानित।
8. बा. पा. जयंती 2002 के अवसर पर ड़िड़ौरी जिले के बोंदर ग्राम में आयोजित समारोह में जिले के सांसद एवं पूर्व शिक्षा मंत्री मोहन लाल झिकराम द्वारा शाल एवं श्री फल से सम्मानित।
9. अखिल भारतीय चौरसिया समाज जबलपुर में आयोजित नागपंचमी पर्व 2003 चौरसिया दिवस के अवसर पर कार्यक्रम में मुख्य अतिथि एवं नागरिक अभिनंदन।
10. गणतंत्र दिवस 2003 के अवसर पर ड़िड़ौरी जिले के मुख्य समारोह में मुख्य अतिथि श्री गनपत सिंह उइके द्वारा नागरिक अभिनंदन।
11. सृजन सांस्कृतिक मंच केवलारी जिला सिवनी द्वारा 22 अक्टूबर 2003 को नागरिक अभिनंदन।
12. नेहरु युवा केंन्द्र मंड़ला द्वारा आयोजित राष्ट्रीय युवा सप्ताह 1998 के अवसर पर 19 जनवरी 98 के अलंकरण समारोह में राष्ट्रीय युवा सम्मान से सम्मानित ।
13. नेहरु युवा केंन्द्र मंड़ला द्वारा आयोजित नवरंग लोक कला महोत्सव 11 जुलाई 1994 के अवसर पर नुक्कड़ नाटक कार्यशाला में लोक कला निर्देशक एवं मान पत्र से सम्मानित।
14. नेहरु युवा केंन्द्र दिल्ली द्वारा 15 अगस्त 1998 को आयोजित र्स्वण जयंती समारोह में प्रशस्ति पत्र से सम्मानित।
15. राष्ट्रीय महिला आयोग भारत सरकार 1 फरवरी 2002 को जबलपुर में आयोजित रीजनल वर्कशाप आफ नेशनल कमीशन फार वूमेन के समापन समारोह में प्रशस्ति पत्र से सम्मानित।
16. इंटरनेशनल इंट्रीग्रेशन एंड़ ग्रोथ सोसायटी व्हाइट हाउस दिल्ली द्वारा जीवन रत्न अवार्ड से सम्मानित।
17. 26 जनवरी गणतंत्र दिवस समारोह 2004 के अवसर पर ड़िड़ौरी जिला के कलेक्टर श्री के. आर. मंगोदिया जी द्वारा जिला के मुख्य समारोह में प्रशस्ति पत्र एवं नागरिक अभिनंदन से सम्मानित।
18. भोपाल की समाजसेवी संस्था जनपरिषद द्वारा भोपाल के संस्कृति भवन में आयोजित भव्य समारोह में ‘एक्सीलेंट मेन आफ दी ईयर 2004 से सम्मानित।
- प्रकाशित ग्रंथ एवं विमोचन -
1. एशिया महाद्वीप की सबसे पुरानी जनजाति बैगा के जनजीवन पर आधारित भारत वर्ष की प्रथम हिन्दी पुस्तक ‘प्रकृति पुत्र बैगा’ का म.प्र. हिन्दी ग्रंथ अकादमी भोपाल द्वारा प्रकाशन।
2. म.प्र. की प्रसिद्ध जनजाति गौंड़ में प्रचलित बाना गीत पर आधारित ‘आख्यान’ (गोंड राजाओं की गाथा) पुस्तक का म.प्र. आदिवासी लोककला अकादमी द्वारा प्रकाशन।
3. म.प्र. की प्रसिद्ध जनजाति परधान द्वारा गायी जाने वाली गाथा गोंड़वाना की लोक कथाओं का वन्या प्रकाशन भोपाल द्वारा राजकमल प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित।
4. म.प्र. की प्रसिद्ध जनजाति परधान द्वारा गायी जाने वाली गाथा रामायनी का वन्या प्रकाशन भोपाल द्वारा राजकमल प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित।
5. म.प्र. की प्रसिद्ध जनजाति परधान द्वारा गायी जाने वाली गाथा पंडुवानी का वन्या प्रकाशन भोपाल द्वारा राजकमल प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित।
6. जनजातीय लोक गीतों में राजनैतिक एवं सामाजिक चेतना शोध पत्र का ग्रंथ स्वराज भवन संस्कृति संचालनालय भोपाल द्वारा प्रकाशन ।
7. इॅदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजाती विश्वविघालय अमरकंटक द्वारा प्रकाशित गोंड़,बैगा एवं कोल जनजाति का शब्दकोष तैयार कराने में सहयोग भारत के महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुर्कजी द्वारा पुस्तकों का विमोचन।
8. म.प्र. लोक कला परिषद भोपाल द्वारा प्रकाशित मोनोग्राफ बैगा में सहयोग।
9. म.प्र. लोक कला परिषद भोपाल द्वारा प्रकाशित ग्रंथ सुराज 88 में स्वतंत्रता संग्राम के समय गाये जाने वाले लोक गीतों का संग्रह प्रकाशित।
- अप्रकाशित कृतियॉ -
बैगा जनजाति में प्रचलित चिकित्सा पद्धति,फोक टेल्स आफ बैगा का हिन्दी, अंग्रेजी एवं रोमन भाषा में प्रकाशन, सर्प बिष तंत्र - मंत्र चिकित्सा,म.प्र. के आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आदि।
डॉ विजय चौरसिया
(लोकसंस्कृतिकार)
चौरसिया सदन
गाड़ासरई जिला ड़िड़ौ़री मध्यप्रदेश 481882
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1. एक तोता और बूढ़ा बैगा
डाँ.विजय चौरसिया
एक बूढ़ा बैगा अपनी बूढ़ी बैगीन पत्नी के साथ रहता था। उनकी एक भी संतान नहीं थी। उनका परिवार अत्यंत गरीब था। उनके पास खेत - बाड़ी जमीन कुछ भी नहीं था। एक दिन उस बूढ़े बैगा ने सुबह - सुबह अपने हाथ में कुल्हाड़ी रखी और लकड़ी काटने जँगल की ओर गया। जँगल में जाकर उसने दो पेड़ों को काटा! तो वह थक गया और विश्राम करने के लिए उन्हीं पेड़ों की छाया में बैठ गया। उसी समय करीब एक लाख बँदर उस बूढ़े बैगा के पास आकर एकत्र हो गये। बँदरों ने आकर उस बूढ़े से पूँछा - क्यों दादा आप थक गए हो क्या? उस बूढ़े ने कहा हाँ मैं थक गया हूँ। फिर बँदरों ने पूँछाः दादा - आप लकड़ी काट रहे थे क्या? बूढ़े ने कहा हाँ मैं लकड़ी काट रहा था। बँदरों ने पूछा तुम लकड़ी क्यों काट रहे थे? तो बूढ़े ने कहा मेरा विचार खेत की बाड़ी तैयार करने का है।जब बँदरों ने बूढ़े बैगा की यह बात सुनी तो बँदरों ने उस बैगा की कुल्हाड़ी ली और जँगल की ओर भाग गऐ। कुछ समय बाद बँदरों ने ढ़ेर सारी लकड़ी काट कर उस बैगा के पास लाकर रख दी। इसके बाद सभी बँदर जँगल की ओर भाग गये। बूढ़ा बैगा भी लकड़ियों को वहीं छोड़कर अपने घर की ओर चला गया। एक सप्ताह बाद जब सभी लकड़ियाँ सूख गई, तो एक दिन वह बूढ़ा बैगा अपने खेत में आया और उन लकड़ियों को छोटे - छोटे टुकड़ों में काटा और पूरे खेत में फैलाने लगा। काम करते - करते बूढ़ा बैगा थक गया और फिर वह एक पेड़ की छाया में बैठ गया।
कुछ समय बाद फिर से एक लाख बँदरों की फौज उस बूढ़े के पास आ गई और उसकी कुल्हाड़ी लेकर उन लकड़ियों के छोटे - छोटे टुकड़े कर दिये और उन लकड़ियों को पूरे खेत में फैला दिया।
उस बूढ़े बैगा ने अपने खेत के पास उन पेड़ों से एक नागर बनाया। फिर वह कटी हुई लकड़ियों को पूरे खेत में फैलाने लगा। बूढ़े बैगा को ऐसा करते देख बँदरों ने भी लकड़ियाँ उठाई और पूरे खेत में फैलाने लगे। एक लाख बँदरों ने एक ही दिन में पूरे खेत को तैयार कर दिया। इसके बाद उस बूढ़े बैगा ने पूरे खेत में पड़ी सूखी लकड़ियों में आग लगा दी। इसके बाद सभी बँदर जँगल की ओर भाग गये और वह बूढ़ा बैगा अपने घर आ गया। जब बरसात आई तब पूरे खेत में पानी आ गया। फिर एक दिन वह बूढ़ा बैगा एक टोकनी में धान के बीज रखकर अपने खेत में आया और उसने पूरे खेत की राख में धान के बीज बो दिये। कुछ दिनों बाद उसके खेत में पड़े धान के बीजों में अँकुर निकल आये । तब एक दिन बूढ़ा बैगा अपने खेत में आया और उसने अपने खेत के चारों ओर ऊपर नीचे कटीले काँटों की बाड़ी बना दी। बूढ़े बैगा ने अपने खेत को चारों तरफ से ऐसा घेरा कि कहीं से भी एक चूहा या चिड़िया खेत के अंदर न प्रवेश कर सके। इतना करके वह अपने घर वापस आ गया।
कुछ दिनों बाद जब धान की फसल तैयार हो गई। तब एक दिन बूढ़ा बैगा अपने खेत से खरपतवार निकालने के लिये गया। वह जैसे ही खेत में पहुँचा! तो उसने देखा कि उसके खेत में धान का एक भी दाना नहीं है। एक दिन उसके खेत में करीब दो लाख तोतों का झुँड़ आया और उसके खेत के छप्पर में एक छेदा बनाया और सभी तोता खेत के अंदर प्रवेश कर गये और उसके खेत की पूरी धान को कुतर ड़ाला और धान के अँदर के चाँवल को खा कर भाग गये। जब उस बूढ़े बैगा ने अपने खेत की यह दशा देखी तो वह रोने लगा। उसने अपने खेत के चारों ओर घूम कर देखा की तोता कैसे उसकी धान को ले उड़े। तब उसने देखा की तोतों का एक बड़ा झुँड़ उसकी धान को लेकर उड़ गये थे! जिसके कारण रास्ते भर में उस धान का भूसा बिखरा पड़ा था। बूढ़ा बैगा उसी रास्ते पर चल दिया जिस रास्ते से तोतों का झुंड गया था। कुछ देर बाद बूढ़ा बैगा उस स्थान पर पहुँच गया जहाँ पर तोतों का झुँड़ निवास करता था। बूढ़े बैगा ने देखा की तोतों का झुँड़ जँगल में बहुत बड़े बरगद के पेड़ पर निवास कर रहा था। ऐसा देखकर बूढ़ा बैगा अपने घर की ओर चला गया,घर पहुँचकर बूढ़े बैगा ने अपनी पत्नी बूढ़ी बैगीन को अपने खेत के समाचार बताए। यह सुनकर बूढ़ी बैगीन रोने लगी। तब उस बूढ़े बैगा ने अपनी पत्नी से एक बहुत बड़ी पाँच हाथ लम्बी और पाँच हाथ चौड़ी रोटी बनाने को कहा तथा एक मिट्टी के मटके में दस - पंद्रह किलो रमतिला का तेल भरने को कहा ? बूढ़ा बैगा बहुत ही शक्तिशाली था। उसकी जो कुल्हाड़ी थी उसको उठाने के लिये हमारे तुम्हारे जैसे करीब बीस लोगों की जरुरत पड़ेगी और उसका हँसिया इतना वजनदार था कि उसको पकड़ने में हमारे तुम्हारे जैसे बीस आदमी लगते थे। उसने उस रोटी को और तेल वाले मटके को एक चादर के सहारे अपनी कमर में लपेट कर गठान बाँध ली।
इसके बाद वह बूढ़ा बैगा जँगल की ओर गया। वहाँ पर उसने थुआ के अनेकों पेड़ों को काटकर उसका ढ़ेर सारा दूध निकाला और उस थुआ के दूध को अपने साथ में लाए रमतिला के तेल में मिला दिया। जिससे उस बूढ़े बैगा ने पक्षियों को पकड़ने के लिए चोप तैयार कर लिया। इसके बाद बूढ़ा बैगा उसी विशाल बरगद के पेड़ के पास गया! जहाँ पर तोतों का बसेरा था। उस समय उस बरगद पर एक भी तोता नहीं था। सभी तोते आसपास के खेतों में आनाज चुगने गए थे। बूढ़े बैगा ने यह अच्छा अवसर देखा और वह उस बरगद के पेड़ पर चढ़ गया और बरगद की टहनियों में चौप लगा दिया। बूढ़ा बैगा पेड़ से उतरकर नीचे आया और पास के पेड़ों में जाकर छुपकर बैठ गया। शाम के समय तोतों का झुँड़ दाना चुगकर अपने बसेरा में लौटने लगे । सभी तोता बरगद के पेड़ के ऊपर आकर बैठने लगे। वे जैसे ही पेड़ की ड़गालों पर बैठते उसी समय उनके पँख और पैर उन ड़गालों से चिपक जाते। थोड़ी ही देर में दो लाख तोते उस बरगद के पेड़ पर बैठे और चिपक कर लटक गये और कुछ देर बाद वे जमीन पर आ कर गिर गये।
कुछ समय बात उन तोतों का राजा बुद्वसेन उस बरगद के पास उड़ते - उड़ते आया और जैसे ही वह अपने घौसले में जाकर बैठा उसी समय उसके पँख और पैर उस चोप में चिपक गये। अब तोतों का राजा बुद्वसेन जोर - जोर से चिल्लाने लगा, वह रो-रोकर तड़फने लगा। जिससे उसके सभी तोता साथियों को पता चल गया की उसका राजा भी चोप में फँस गया है। जिससे सभी तोते सर्तक हो गये और धीरे - धीरे वे जमीन में लुड़कते हुए वहाँ से भाग गये। कुछ देर बाद राजा बुद्वसेन फड़फड़ाता हुआ जमीन पर गिर गया। बूढ़े बैगा ने तोतों के राजा बुद्वसेन को जमीन में फड़फड़ाते देखा तो उसने अपनी कुल्हाड़ी उठाई और उसके पीछे भागा और उसको पकड़ लिया। इसके बाद उस बूढ़े बैगा ने राजा बुद्वसेन से पूछा : तुमने अपने साथियों के साथ मेरे धान के खेत की पूरी धान क्यों खा ली। इसकी सजा यह है कि मैं तुमको मृत्यु दंड़ दूँगा। तब बुद्वसेन ने कहा - बैगा बाबा तुम मुझे मत मारो मैं तुम्हारे घर की रखवाली करुँगा।
बूढ़े बैगा ने उस तोते के राजा की बात मान ली और उसे अपने घर लेकर आ गया। जब बूढ़ा बैगा घर में आया तो उसकी पत्नी ने उससे पूँछा - क्या तुमने एक ही तोता को मारा है, दूसरे तोता कहाँ गये? बूढ़े बैगा ने कहा : हाँ एक ही तोता पकड़ पाया दूसरे तोता उड़ गये। बूढ़ी बैगीन बोली मैं इस तोता को मार ड़ालूँगी। इसने हमारे खेतों को बरबाद कर दिया है। इसके कारण हम लोग दाना - दाना को मोहताज हो गये हैं।
तोतों का राजा बुद्वसेन उस बूढ़ी बैगीन से क्षमा याचना करके कहा दादी मुझे मत मारो मैं तुम्हारे घर की रखवाली करुँगा। तब उस बूढ़ी बैगीन ने सोचा मेरे तो बाल - बच्चे नहीं हैं क्यों ना मैं इसको अपने बच्चे की तरह पालन पोषण करुँ। फिर बूढ़े बैगा ने तोतों के राजा बुद्वसेन के लिए एक पिंजरा बनवाया और उसमें तांता को रख दिया बूढ़ी बैगीन रोज उस तोते को सुबह - शाम खाने के लिए चना की दाल और अच्छा - अच्छा खाना देने लगी। तोतों का राजा बुद्वसेन सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगा।
इस प्रकार तोतों का राजा बुद्वसेन को बूढ़े बैगा के पास रहते हुए दस वर्ष व्यतीत हो गये। एक दिन तोता ने अपने मालिक बूढ़े बैगा से कहा : बाबा मुझे इस प्रकार से पिंजरा में रखने से आपको कोई फायदा नहीं। आप मुझे किसी शहर में ले जाकर बेच दो! जिससे आपको धन प्राप्त होगा। तब बूढ़े बैगा ने कहा बुद्वसेन तुमने तो बहुत अच्छी बात कही है। उसी समय बूढ़े बैगा ने अपनी पत्नी से पाँच हाथ लंबी और पाँच हाथ मोटी एक रोटी बनाने को कहा। उसकी पत्नी ने एक बड़ी रोटी तैयार कर दी। इसके बाद बूढ़े बैगा ने उस रोटी को एक कँबल में रखकर अपनी कमर में लपेट लिया तथा तोता के पिंजरा को अपने हाथ में रखकर शहर की ओर चला गया। रास्ते में उसको एक गाय चराने वाला अहीर मिला। जब उसने बूढ़े बैगा को सुआ ले लो, सुआ ले लो कहते सुना तो उसने बूढ़े बैगा को अपने पास बुलाया और कहा : बैगा बाबा यहाँ आना मुझको तुम्हारा सुआ खरीदना है। बूढा बैगा तुरंत उस गाय चराने वाले अहीर के पास चला गया। अहीर ने कहा : बाबा इस तोता की कीमत क्या है,तुम इसको कितने में बेचोगे? तब बूढ़े बैगा ने कहा : मैं मोल - भाव करना नहीं जानता, तुम तोता से ही पूँछ लो उसकी कीमत? अहीर ने तोता से पूँछा - क्यों तोता जी आपकी कीमत क्या है? तो तोता ने कहा : मेरी कीमत पूरे एक लाख रुपया है। तब अहीर ने कहा : मेरे पशुगृह में दरियाई घोड़े, गाय, बैल, भैंस और हजारों बकरियाँ हैं। उन सभी की कीमत भी जोड़ी जाये तो एक लाख रुपया नहीं होंगे। इसलिए मैं तुमको नहीं खरीद सकता। ऐसा सुनते ही बूढ़ा बैगा सुआ ले लो सुआ, बोलने वाला सुआ ले लो कहते हुये आगे बढ़ गया।
बूढ़ा बैगा शाम के समय उस राज्य के राजमहल के सामने से गुजरा। उस राज्य के राजा ने बैगा की आवाज सुनी तो उसने बैगा को अपने पास बुलाया और उस बैगा से पूछाः बैगा बाबा आपने इस पिंजरा में तोता रखा है क्या ? बूढ़े बैगा ने कहा : हाँ महाराज जी इसमें तोता ही है। तब राजा ने उस तोता की कीमत पूछी तो बूढ़े बैगा ने कहा राजा जी मैं इसकी कीमत नहीं जानता आप इस तोते से ही उसकी कीमत पूँछ लें। राजा ने तोता से पूछा : तोता राम आपकी कितनी कीमत है ? तो तोता ने कहा : राजा जी मेरी कीमत पूरे एक लाख रुपया है। राजा जी ने उस बूढ़े बैगा को तुरंत एक लाख रुपया दे दिया। तब बूढ़े बैगा ने एक लाख रुपया अपनी कमर में लपेटने के लिए कंबल को खोला तो उसमें से रोटी गायब हो गई थी। क्योंकी बूढ़े बैगा ने उस रोटी को रास्ते में ही खा लिया था। तब उसने कंबल को खोला और उसमें रुपयों को रखकर उस कंबल को अपनी पीठ में बाँध लिया और अपने घर की ओर चल दिया। बूढ़े बैगा ने उन एक लाख रुपयों से गाय, बैल, भैंस, बकरियाँ और घोड़े सहित बहुत सारा समान खरीदा और अपने घर वापस आ गया। अब वह बूढ़ा बैगा बड़ा आदमी बन गया था। पहले गाँव के लोग उसे भूमिया बैगा कहकर बुलाते थे पर उसके पास पैसा आने के बाद गाँव के लोग उसे पटैल और गाँव का मुकद्दम कहकर बुलाने लगे।
तोतों का राजा बुद्वसेन राजमहल में एक लोहे के पिंजरे में रहने लगा। उस राजा की सात रानियाँ थी। राजा ने अपनी सातों रानियों को आदेश दिया कि प्रतिदिन एक रानी तोता को खाना देंगी। उस राजा की सातों रानियों में से छह रानियों का स्वभाव अच्छा नहीं था, मात्र सबसे छोटी रानी का स्वभाव सबसे अच्छा था। तोता सभी रानियों के स्वभाव से परिचित हो गया था। इसलिये वह मात्र सबसे छोटी रानी के हाथ से ही खाना खाता था। वह खराब स्वभाव वाली छहों रानियों के हाथ से खाना नहीं खाता था। जब छयों रानियों ने देखा कि तोता सिर्फ छोटी रानी के ही हाथ से खाना खाता है और बाकी रानियों के हाथ से रखा हुआ खाना को छूता भी नहीं है। तो रानियाँ उस तोता के ऊपर नाराज हो गई और छोटी रानी से जलने लगीं।
राजा की छह रानियों ने नाराज होकर खाना - पीना छोड़ दिया और बीमारी का बहाना बनाकर अपने - अपने बिस्तरों में जाकर सो गई। रानियों ने राजा से अपना इलाज कराने के लिये गुनिया, पँड़ा और वैघ बुलाने के लिए कहा, परंतु राजा यह जानता था कि तोता उन रानियों के हाथ से खाना - पीना नहीं करता इसलिये वे नाराज होकर सो गई हैं। इसलिये राजा ने किसी गुनिया या वैघ को नहीं बुलाया। रात को सभी छह रानियों ने तोता को मार ड़ालने का विचार किया। जब सुबह हुई तो वे रानियाँ राजा के पास अपना इलाज कराने के लिये कहने गई। तब राजा ने उन रानियों से पूँछा तुम लोग किस प्रकार की दवा से ठीक होगी। तब उन रानियों ने कहा : राजा जी यदि हम लोगों को उस तोता का कलेजा और उसकी दो ऑखें मिल जायेंगी तो हम लोग स्वस्थय हो जायेंगी और हम लोग खाना भी खाने लगेंगी। तब राजा ने तुरंत एक सिपाही को बुलाया और उसे आदेश दिया की तुम अभी जाओ और तोता को मारकर उसका कलेजा और दोनों ऑखें लाकर रानियों को दे दो। सिपाही ने तोता का पिंजरा उठाया और उनकी आज्ञा का पालन करने के उसके पिंजरा को बगीचा में लाया और तोता को बाहर निकालकर उसकी गर्दन दबाने लगा। उसी समय तोता ने सिपाही से अपने जीवन की रक्षा के लिए विनती की और कहा : सिपाही जी आप मुझे जान से मत मारो, कभी राजा को फिर से मेरी जरुरत पड़ी तो तुम मुझे कहाँ से लाओगे। मैं तोतों का राजा हूँ, यदि तुमने मुझे मार दिया तो संसार के सभी तोते मर जायेंगे। तब सिपाही ने कहा आप भी राजा हो और वो भी राजा हैं! मैं किसका कहना मानूँ, अब आप ही बताइये मैं क्या करुँ। मैं अपने राजा की की आज्ञा को कैसे पूरा करुँ? तब तोता ने कहा : यह तो सबसे सरल बात है तुम शहर में जाओ और वहाँ की जनता से कहो कि राजा ने प्रजा से पाँच मुर्गो का इंतजाम करने के लिए कहा है। इसके बाद तुम पाँच मुर्गें का शिकार करके खा लेना और एक मुर्गा की दो ऑखें और उसका कलेजा निकालकर राजा को दे देना । राजा समझेगा की वह तोता का कलेजा और ऑखें हैं। राजा उस कलेजा और ऑखों को रानियों को खिला देगा। तोता का सुझाव सिपाही के समझ में आ गया।
उस सिपाही ने बगीचा के एक बड़े पेड़ के ऊपर चढ़कर पिंजरा को एक ड़गाल में लटका दिया और पिंजरा का दरवाजा खोल दिया जिससे तोता निकलकर पेड़ की एक ड़गाल पर बैठ गया। तब सिपाही ने तोता से पूँछा : क्यों तोता राम जी जब राजा तुमको बुलायेंगे तब तुम वापस आ जाओगे की नहीं। तब तोता ने कसम खाकर कहा सिपाही जी जिस दिन भी राजा मेरे को बुलायेंगे, उसी दिन मैं लौटकर आ जाऊँगा। इतना कहकर तोता उस पेड़ के ऊपर से उड़ कर आकाश की सैर करने लगा।
वह सिपाही महल से निकलकर शहर में आया और उसने अपने दो साथियों को अपने साथ ले लिया और शहर में आ गये। शहर में आकर उन सिपाहियों ने प्रजा के लोगों को एकत्र किया और कहा - राजा जी को पाँच मुर्गों की जरुरत है आप लोग तुरंत पाँच मुर्गा लाकर दे दो। प्रजा ने जैसे ही यह आदेश सुना उन्होंने उन सिपाहियों को पाँच मुर्गा लाकर दे दिया।
सिपाहियों ने अपने घर जाकर चार मुर्गों को पकाया और छक कर भोजन किया। इसके बाद पाँचवें मुर्गे का कलेजा और दो ऑखें निकालकर एक पत्ता में रखकर राजमहल की ओर चल दिये।
सिपाही जैसे ही राजमहल पहुँचा राजा ने पूछा : तुमने उस तोते को मार ड़ाला कि नहीं? तब सिपाही ने कहा जी महराज मैंने उस तोते को मार ड़ाला है, यह रहीं उसकी दोनों ऑखें और कलेजा! राजा ने दोनों ऑखें और कलेजा ले जाकर उन छयों रानी को दे दिया। छोटी रानी ने जैसे ही सुना की छयों दुष्ट रानियों ने तोता की हत्या करवा दी है। तो उसे बहुत दुख हुआ और दुख के कारण वह रोने लगी।परंतु छयों रानियाँ बहुत खुशी मना रहीं थीं। जबसे राजा ने तोता को महल से बाहर किया था । तबसे राजा के ऊपर मुसीबतें आने लगीं। कुछ दिनों में राजा बहुत गरीब हो गया। राजमहल के बाग - बगीचा सूख गये। उसके राजमहल का तालाब सूख गया। राजा ने अपनी रानियों की सुख सुविधा के लिए हीरा - जवाहरात, सोना - चाँदी राज्य के सेठों को बेच दिये। एक दिन जब राजा बिलकुल गरीब हो गया था और उसके पास खाने तक को आनाज नहीं था। तब एक दिन एक ब्राम्हण उसके पास आया और राजा से भिक्षा माँगने लगा, तो राजा ने कहाः महराज मेरे पास तो खुद ही खाने का एक दाना नहीं है। मैं आपको भिक्षा कहाँ से दूँ? तब उस ब्राम्हण ने कहा : ऐसा कैसे हो सकता है आप इतने बड़े राजा हो और आपके यहाँ खाने को नहीं है। यह सब कैसे हो गया? राजा ने कहा : मुझे खुद नहीं मालूम कि मैं अचानक इतना गरीब कैसे हो गया। उस ब्राम्हण ने अपनी पोथी निकाली जिसमें भूत - भविष्य की जानकारी थी। ब्राम्हण उस पोथी को पढ़ने लगा। कुछ देर बाद ब्राम्हण ने बताया की राजा जी आपके घर में एक तोता था ,जिस दिन से वह घर से बाहर गया है। उस दिन से आपकों गरीबी ने आकर घेर लिया है। आप अपने उस तोता को फिर से बुला लो तो आपके दिन फिर से पहले जैसे हो जायेंगे। परंतु आपकी रानियों का स्वभाव बहुत खराब है सिर्फ आपकी सबसे छोटी रानी का स्वभाव भर सबसे अच्छा है।
राजा ने तुरंत अपने उसी सिपाही को बुलाया और कहा तुम कहीं से भी उस तोता को लेकर आओ जिस को महल से ले गये। सिपाही ने कहाः महाराज मैं तोता को कहाँ से वापस लेकर आऊँ। आपने तो उसे मरवा ड़ाला है? तब राजा ने कहा : मैं कुछ नहीं जानता तुम कहीं से भी उस तोते को वापस लेकर आओ। मुझे उस तोते की बहुत जरुरत है,यदि तुमने उस तोते को वापस नहीं लाया तो मैं दंड़ स्वरुप तुमको फाँसी में चढ़वाकर अंधे कुँआ में फिकवा दूँगा। सिपाही ने जब राजा के यह वचन सुने तो वह घबड़ा गया और राजमहल के बगीचा के उस पेड़ के पास गया जहाँ पर उसने तोता का पिंजरा रखा था। जब सिपाही उस पिंजरा के पास गया तो उसने देखा कि वह पिंजरा तो खाली था। तोता खेतों में दाना चुगने कहीं चला गया था। सिपाही उसी पेड़ के नीचे बैठ गया और तोता की राह देखने लगा। वह एक माह तक तोता की राह देखता रहा। पूरे एक माह बाद तोता उस पिंजरे के पास आया। सिपाही ने तोता को देखा और कहा तोता राम जी आपको हमारे राजा जी ने याद किया है। तुम अभी इस पिंजरा में आ जाओ! जैसा तुमने मुझसे वायदा किया था। तोता ने कहा मैं पिंजरा में नहीं आता राजा मुझे मार ड़ालेगा। तब सिपाही ने कहा : तुम पिंजरा में आ जाओ मैं वायदा करता हूँ कि तुमको कोई भी नहीं मारेगा। सिपाही ने बड़ी मुश्किल से तोता को पिंजरा में आने के लिए राजी किया। सिपाही पेड़ के ऊपर चढ़ा और जैसे ही तोता ने पिंजरा के अंदर प्रवेश किया सिपाही ने पिंजरा का दरवाजा बंद कर दिया और उस पिंजरा को पेड़ से नीचे उतार लिया। सिपाही तोता को लेकर जिस रास्ते से जा रहा था। उस रास्ते के तालाब में पानी भर गया, उस राज्य के कुँआ पानी से लबालब भर गये। बगीचा में आम के वृक्ष हरे हो गये। सिपाही जब राजा के महल के पास पहुँचा उसके पहले ही रानियों के हीरा जवाहरात, सोना, चाँदी, रुपया -पैसा जो राजा ने खाना - पानी के लिये बेच दिये थे। सभी राजमहल में आ गया। सिपाही ने तोता वाले पिंजरा को लाकर राजा के सामने रख दिया। राजा तोता को देखकर बहुत खुश हो गया। उसने तोता को अपने महल में जीवन भर के लिये रख लिया। राजा ने राजा ने छहों दुष्ट रानियों को मरवा दिया। केवल सबसे छोटी रानी को जीवन दान मिला ,क्योंकि उसका स्वभाव सबसे अच्छा था।
कहानी अब समाप्त हो गई। कहानी बतलाने वाला झूठा है। इस कहानी पर विश्वास करने वाला गँवार। जिस प्रकार से राजा के जीवन में खुशी आई उसी प्रकार सबके जीवन में खुशी आये।
Sushma Gupta Good, WE need such books now. Folktales are our heritage. WE should preserve it. Congrats. Keep it up. Sushma Gupta
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Sushma Gupta
Sushma Gupta To pursue this further I have tried to translated many folktales, more than 2,000 tales, from many countries of the world. If they are kept together it will constitute a fair size corpus of Hindi literature. I feel proud that I could contribute to Hindi literature in some way. I ma still continuing it and perhaps will continue till....
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