जीवन के सागर में - - नाथ गोरखपुरी

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01- "चंद शे'र" किस काम के हैं  हम , बस यही आजमाते रहे। हजारों जख्म थे सीने पर , मगर मुस्कुराते रहे।। मैंने देखा है जिम्मे...

01-
"चंद शे'र"

किस काम के हैं  हम , बस यही आजमाते रहे।
हजारों जख्म थे सीने पर , मगर मुस्कुराते रहे।।

मैंने देखा है जिम्मेदारियों को, हादसे में बदलते हुए।
ये  भूख  ना   होती   तो , ये  हादसे  भी  कम  होते ।।

जिंदा है तो बहुत कुछ, पाने की उम्मीद ना कर।
मौत   का   हादसा  ,  सब  कुछ  समेट   लेगा ।।

मत   कर   बात   ,  हमसे   उसूलों  की।
मैंने तुझको और तेरे उसूलों को देखा है।।
☺️☺️
किस  किस  ने  जख़्म , दिया  है  मुझको।
बता दूँ तो कुछ अपने ही रुसवा हो जायेंगे।।

अब तो दिन भी, खामोशी का वार करता है।
पहले ये हरकतें, काली रातों की निशानी थी।।

चलो  आज , इश्क - ऐ - हिसाब  कर  दूँ मैं।
तुम्हारी नजर में, जो वाज़िब दाम है बताओ।।

जब    मिलने   का   नाम   ही ,  नहीं   है   मोहब्बत।
तो तुम्हारी नजर में मिलने की, तड़प क्यों दिखती है।।

छोड़ना चाहता हूँ , मैं मोहब्बत का शहर।
तुम्हारी नजर में कोई शहर है तो बताओ।।

मै क्यों दूँ अपनी  मोहब्बत  की  सफाई।
जब तुम्हारे नजर में , मैं बावफ़ा ही नहीं।।

आप तो ऐसे ना थे , फिर अचानक क्या हुआ।
महफिलों को  छोड़कर ही,  बीच में जाने लगे।।

कुछ  तो ऐसी बात है  , तेरे दिल के गर्त में।
यूं किसी से रूठ जाना, आप तो ऐसे ना थे।।
❤️❤️
जख्म गहरे लाख थे , हँसकर सहा था आपने।
पाँव  के  कांटे  पर  चीखे , आप तो ऐसे न थे।।

हम  दोनों  ने  किया   था  , गुनाह -ऐ- इश्क।
पर इश्क- ऐ-मुज़रिम ,मुझी को ही कहा गया।।

तो मैंने भी ले लिया , अदालत का सहारा।
पर वहाँ भी उनकी ही, गवाही मंजूर हुई।।

मैंने भी  कब  चाहा , कि  उनको  सज़ा  मिले।
मुकदमा तो तारीखों पे, मिलने का बहाना था।।
❤️❤️
मैंने  देखा  है  यहाँ , फौलादों  को  पिघलते ।
शायद तुझे, शहर की गर्मी का अंदाजा नहीं।।
️️
तुम करीब हो , फिर  भी  मुझे  डर  है।
मोहब्बत का क़ातिल, हर इक शहर है।।

जिंदगी जी कर तो देखो, तुम  अपने उसूलों  पर ।
भला भौंरो ने जान दी क्या, कागज के फूलों पर ।।

छल फरेब धोखों से, सजा हर किरदार है ।
बस इसी तरह चलता, इश्क का व्यापार है।।

इश्क में वफा करना, मुझे वह सिखाती है।
जो हर किसी को हमसफ़र, बना लेती  है।।

यह  कहां आइनें  में , अपना किरदार देखती है।
मतलबी दुनिया रिश्तों में भी ,व्यापार देखती है।।
️️
कौन कहता है वह जिया है।
  जिसने  इश्क  ना  किया है।।

बहुत तवज्जो दी आखिर, जिंदगी में खाक निकला ।
शक़ तो था समंदर पर् , मगर कश्ती में सुराख निकला।।

तुम साथ थे  जब, कश्ती  की  तरह।
समंदर का सफर,आसान लगता था।।

अंधेरे में जीने वाले , उजाले से डरते हैं ।
सुनो रक्त पीने वाले ,निवाले से डरते हैं।।

मन  की    निश्छलता    का   कोई  रंग  नहीं,
बेईमानी  का  कोई  आकार  कोई   ढंग नहीं।
अपना कहकर ही लूटते हैं इश्क के बाजार में,
फ़रेबी मन ही होता है , ग़द्दार  कोई रंग  नहीं ।।

02-

हड्डियों में सौ दो सौ ग्राम
सफेद मांस के लोथड़ों के वज़ह से
अपने खानदानी रईसी रुआबों के वजह से
ज्यादा बुद्धिमान, समझदार, होशियार
एवं हुनरमंद होने की वजह से
कुछ लोग हो जाते हैं संस्कार विहीन
नहीं रह जाती है उनमें संवेदनशीलता, इंसानियत
जीने लगते हैं वह अपनी बनावटी दुनिया में
कोरी कल्पनाओं में
अंततः देखते ही देखते समाज से कब कट गए
कब सामने वाले की नजरों में गिर गए
उन्हें पता ही नहीं चलता
इसलिए हम दुआ करते हैं कि ,
कभी भी तुममें ऐसी अकड़ ना आए

03

जीवन के सागर में


उतार-चढ़ाव लेकर चलते हुए
रिश्तों में गलतफहमियां भी आ जाती हैं
लाज़मी है उनका आना
पर जरा सा मोहलत देकर
दूर कर लेना उन गलतफहमियों को
ये आदत ही उम्मीदों पर कायम रहना सिखाता है
उम्मीद और भरोसा ही
मोहब्बत के आलिंगन को मज़बूती देते हैं
इसलिए लाख गिले-शिकवे हों
ज़रा सा मोहलत देके
सुलझा लेना ही जिंदगी है...!

04
जब सत्ता को पाने के लिये
बोटियाँ की जातीं हैं,
इंसानियत की।
तो उन कुर्सियों से महक आती है
निर्दोष जीवों की,
सियासतदां मिसाल देता है
अपने ख्याति का
मगर उसके किरदार से महक आती है...
ये कभी अलग हो ही नही सकता,
फूल से उसकी सुगन्ध की तरह।
क्योंकि किरदार की
ख़ुशबू और बदबू
आचरण पर निर्भर होता है।

05
ग़ज़ल

तू मिल जाए तो खुशियों  के,  बाग लगा देंगे
इश्क  भी  गज़ल बन जाये , वो राग लगा देंगे

हम ऐसे मजनू नहीं जिसे दुनिया तबाह कर दे
हम तो  पूरी  दुनिया  को  ही  आग  लगा  देंगे

तेरे  सिवा  दुनिया   में ,  कोई  खूबसूरत  नहीं
कोई  चांद  कहा, तो  उसमें भी, दाग बता देंगे

तुझे देखकर ही  मना लूं, मैं  ईद  और दिवाली
तुझसे ही  अपनी  दुनिया के , साज़ बना लेंगे

तू जो साथ रहे तो , मुझे रंगों की जरूरत नहीं
तेरे  शबनमी  होठों  से ,  ही  फाग  मना  लेंगे

06-
दोहा


पद पावत मद होत है, पद जावत बदहोश।
नाथ कहे समझाइके , मन ना हो मदहोश।।

नाथ तू बलशील है, समझौ ना दूजा हीन।
जंगल में गज है बड़ो,जल में बड़ो है मीन।।

काज करत को काँपता , काहें मनवाँ मोर।
बिन किये कुछ ना मिलो, नाहक करत है शोर।।

माटी है तन तोर सुन, व्यर्थ ना कारज ठान।
जेहिं खातिर जन्म लियो,ऊ कारज पहिचान।।

सुगम समागम ईश से, अगम चाह ना ठानि।
ईश रीझि सब सुगम है,खीझि गयो तो हानि।।

मन तो बेपरवाह है, तन भी आलसखोर।
हरि पद कइसे पाइबो, जौ मन बासे चोर।।

आपन आपन निक है, दूजा दुर्गुन देखि।
चाहत मनमा अउर है, ऊपर दूजा लेखि।।

जिन्ही खातिर दुइ बिता,तिजपन हवे उरात।
नारी लक्ष्मी एक  हैं , कबहुँ  नाहि  समात।।

धन दौलत को देखि के,कबहुँ ना करिहो आस।
मोहि   कारज  तु  सवांर  दे, धन है तोरा पास।।

                     - नाथ गोरखपुरी

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मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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रचनाकार: जीवन के सागर में - - नाथ गोरखपुरी
जीवन के सागर में - - नाथ गोरखपुरी
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रचनाकार
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