नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020 प्रविष्टि क्र. 13 - हिम्मत - वीना श्रीवास्तव

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रचनाकार.ऑर्ग नाटक / एकांकी / रेडियो नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020

प्रविष्टि क्र. 13 - हिम्मत

वीना श्रीवास्तव

[यह नाटक आज की सबसे अहम् समस्या पर है. ऐसी समस्या जिससे हमारा भविष्य भी अंधकारमय हो रहा है. भविष्य सुधारने के लिए सबसे बड़ी ज़रूरत है कि आज माता – पिता बच्चों को समय दें. अभिभावक सब कुछ देते हैं लेकिन समय ही नहीं देते. रोजमर्रा की जरूरतें और बेहतर जिंदगी देने की चाह में वो उन बच्चों को ही भूल जाते हैं जिनके लिए वो कमाते हैं. आज के बच्चे, खासकर बेटियां खुद को प्रूव करना जानती हैं, आवश्यकता है तो उन्हें समझने की, सपोर्ट करने की. यही संदेश है इस नाटक का.

इस नाटक में चार अंक हैं. पहले अंक में तीन दृश्य हैं. दूसरे अंक में चार दृश्य और तीसरे व चौथे अंक में एक – एक दृश्य हैं. कुल नौ दृश्य हैं. छोटे – बड़े कुल मिलाकर 12 पात्र हैं. दृश्य घर के, कुछ सैकेंड्स के घर के बाहर व कॉलेज के शोर – शराबे के हैं.

समय- 20 से 25 मिनट. ]

पात्र परिचय

1. दीक्षा - बेटी

2. मां दीक्षा की मां

3. विमर्श- दीक्षा का भाई

4. शालीना- दीक्षा की बहन

5. विमल दीक्षा के पिता

6. पायल- दीक्षा की दोस्त

7. राहुल बदमाश लड़का

8. आंटी थोड़ी बुजुर्ग-सी महिला

9. सर- कॉलेज का एक स्टाफ

10. डिप्टी.एसपी- दोस्त के पिता

11. कांस्टेबिल...

रिक्शेवाला...


हिम्मत

अंक- 1

दृश्य- 1

(घर में मां – बेटी का वार्तालाप)

दीक्षा – मम्मा, मेरा हॉस्टल जाने का मन नहीं कर रहा. मैं कुछ दिन बाद चली जाऊंगी.

(दीक्षा ने अपनी मम्मा से रिक्वेस्ट करते हुए कहा.)

मां – नहीं, बेटा मैं तुम्हारी पढ़ाई के साथ कोई रिस्क नहीं लेना चाहती. यहां तुम्हारी पढ़ाई नहीं हो पाएगी. (मां ने समझाते हुए कहा.)

दीक्षा – मम्मा, बस दो दिन और फिर चली जाऊंगी. प्लीज मम्मा. प्लीज मम्मा, मेरी प्यारी मम्मा. (दीक्षा ने छोटी बच्ची की तरह जिद करनी शुरु कर दी थी.)

मां - तुम आखिर जाना क्यों नहीं चाहती ? तुम्हारा भी खेलकूद में मन लगने लगा क्या ? तुम भी शालीना और विमर्श के साथ बच्चा बनने लगी. तुम जानती हो, दोनों की बोर्ड की परीक्षा हैं. तुम यहां रहोगी तो उनका मन भी पढ़ाई में नहीं लगेगा. मैं जानती हूं तुम सब बड़े हो रहे हो, इसलिए आपस की गप-शप ज्यादा होने लगी है. (जोर देते हुए) मां हूं तुम्हारी. मगर इस बार कुछ नहीं. बच्चों के एक्जाम खत्म हो जाएंगे तो मैं खुद ही दोनों को लेकर आ जाऊंगी. तब खूब बातें करना और खूब खेलना. (मां ने हल्का-सा डांटते और फिर प्यार से समझाते हुए कहा)

दीक्षा – मां, ये बात नहीं, मैं अपने भाई-बहन को बहुत प्यार करती हूं और उनके साथ रहना भी चाहती हूं. (फिर एक गहरी सांस लेते हुए, दिल की गहराई से बोलती है) लेकिन इस वक्त.... मैं.... तुम्हारे साथ...रहना चाहती हूं मम्मा. तुमसे लिपटकर सोने को जी चाहता है. तुमसे ढे.....र सारी बातें करने को जी चाहता है. (रुक-रुककर भावुक होकर बोलती है.) (उसकी मां कहती है-

मां - तो किसने मना किया, कर न बातें लेकिन पहले मैं देख आऊं कि शालीन और विमर्श पढ़ रहे हैं या नहीं. (चलने लगती है)

दीक्षा- मां कहां जा रही हो ....? रुको न.... प्लीज (प्यार से रिक्वेस्ट करते हुए)

मां- क्या है दीक्षा ? ( थोड़ा झुंझलाते हुए)

दीक्षा – (गंभीर होकर) मुझे तुमसे जरूरी बात करनी है मां.

मां – क्या बात है बेटा ? ( थोड़ा परेशान होकर पूछती है)

दीक्षा – बैठो मां....

(तभी पीछे से आवाज आती है)

विमर्श - मम्मा... मम्मा... कहां हो ? यहां आओ ना... मुझे ये क्वेश्चन बिलकुल नहीं समझ आ रहा.. (दूसरे कमरे से आवाज आती है)

मां – आ रही हूं ( वहीं से बोलती है, फिर दीक्षा से कहती है) मैं तुझसे रात में बात करती हूं,

दीक्षा - तो तुम नहीं रुकोगी मां. ठीक है. पहले उन्हें पढ़ा लो.. फिर बाद में सही. वैसे भी सुबह तो मुझे चले ही जाना है... (दीक्षा उदासी के साथ कहती है)

मां - तू परेशान मत हो. काम खत्म करके आती हूं.

दीक्षा – ठीक है मां. मैं भी थोड़ा नीचे बैडमिंटन खेलकर आती हूं.

मां- ठीक है बेटा.

दोनों उठकर चली जाती हैं.

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दृश्य– 2

(सीढ़ी से उतरते हुए पैरों की आवाज़ और बाहर की बाहर की आवाज़ें)

दीक्षा नीचे उतरती है.

दीक्षा - नमस्ते आंटी जी, अरे, आप इतना सारा सामान लेकर जा रही हैं. चलिए गेट तक मैं छोड़ देती हूं. फिर रिक्शा मिल जाएगा. लाइए मैं पकड़ लूं. (बड़े प्यार से कहती है)

आंटी – ठीक है, बेटा कोई बात नहीं. मत आदत बिगाड़. तू चली जाएगी तो मुझे खुद ही सामान उठाना पड़ेगा.

दीक्षा – अभी तो हूं ना! लाइए, दीजिए मुझे, (अधिकार से कहकर सामान ले लेती हैं) अब आप आराम से चलिये. आराम से आंटी. आइए, रिक्शा... ओ रिक्शा वाले भइया...

रिक्शावाला- हां, बिटिया-

दीक्षा- आंटी को ले जाना है. चौक तक. बैठिये आंटी. ये लीजिए अपना सामान.. (सामान रख देती है)

आंटी – बेटा भला हो तुम्हारा. तुम्हारी सारी मुरादें पूरी हों... (खुश होकर आशीष देती हैं)

दीक्षा - बस आंटी, प्रे कीजिए, मेरी सारी प्रॉब्लम सॉल्व हो जाएं. (रिक्वेस्ट करते हुए कहती है)

आंटी – बेटा, कोई खास बात है क्या....? (वो जिज्ञासा से पूछती हैं)

दीक्षा– (वो तुरंत संभलकर हंसते हुए कहती है) नहीं आंटी, कोई खास बात नहीं. मेरा मतलब कोई परेशानी आए ही क्यूं ? आप बड़ों का आशीर्वाद रहेगा तो कोई परेशानी मेरी तरफ देखेगी भी नहीं. बाय आंटी.

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दृश्य- 3

(सन्नाटा और रेडियो पर विविध भारती कार्यक्रम की हल्की – सी आवाज़)

रात का सन्नाटा विविध भारती पर रात की सभा समाप्ति की घोषणा, दीक्षा एफएम लगा देती है और कुछ देर बाद फिर खुद से कहती है-

दीक्षा - शायद मम्मा नहीं आएंगी. 12 बज गए. देखती हूं जाकर. विमर्श को पढ़ा रही होंगी. (कमरे में सोता देखकर) अरे, मम्मा तो सो गईं. (बहुत उदास होते हुए मायूसी से खुद से ही कहती है) चल दीक्षा, पता नहीं तेरी किस्मत में क्या लिखा है. जो होगा देखा जाएगा. मैं सुबह तो वापस चली जाऊंगी. पापा भी चंडीगढ़ से नहीं आ पाए. उनसे भी नहीं मिल सकी. पता नहीं कब मुलाकात हो, या ना भी हो !!! कोई बात नहीं. ( रेडियो बंद कर देती है )

(फिर कुछ सैकेंड्स के बाद चिड़ियों की चहचहाहट, मुर्गे की बांग, कोयल की कूक)

सुबह का समय

मुर्गे की बांग .. और कोयल की कूक...

मां – (आवाज़ लगाते हुए ) दीक्षा, बेटी तैयारी हो गई है ना ? जल्दी से नाश्ता कर लो, तुम्हारी फ्लाइट का समय हो रहा है. कहीं देर न हो जाए... !!!

दीक्षा – ( खुद से कहती है ) मां, देर तो हो चुकी, ( फिर संभलकर कहती है) हां, मां बस निकल रही हूं.

अपना बैग और सूटकेस बाहर लाती हुई- (पास आकर) (ट्रालर के चलने की आवाज़) (फिर दीक्षा और मां के संवाद)

दीक्षा- बस, पांच मिनट में नाश्ता करके निकलती हूं. बस – बस रहने दो मां.

मां- एक पराठा और ले ले. तुझे तो गोभी के पराठे पसंद हैं न...

दीक्षा- नहीं मां और नहीं. अब चलती हूं. मेरी फ्लाइट का समय हो रहा है.

मां- तूने बेसन के लड्डू रख लिए हैं ना ? भूलकर तो नहीं जा रही ? ( उससे प्यार से पूछती है)

दीक्षा – नहीं मां, नहीं भूली. लिए जा रही हूं. लड्डू खाऊंगी तो तुम्हारी याद आएगी. (बहुत उदास होकर कहती है और उससे लिपट जाती है. उसके गले लगकर भरी आवाज में कहती है) – तुम्हारी बहुत याद आएगी मां...!

मां – ( प्यार से पूछती है) क्या बात है दीक्षा ? क्यूं इतना सैंटी हो रही है ? अरे, तुझे ससुराल थोड़े ही भेज रही हूं. पहले तो बड़ा हॉस्टल का क्रेज था. यही कहती थी- मुझे बाहर पढ़ना है, हॉस्टल में रहना है, छह महीनों में ही घर की याद आने लगी. तू एम.बी.ए. करने गई है ना...? हमारा भी यही सपना है कि तू पढ़कर कहीं सैटल हो जा और फिर तेरे भाई-बहन तेरे पीछे-पीछे चलेंगे, है न ? तेरे एक्जाम के बाद हम सब कुछ दिन कहीं बाहर चलेंगे.

दीक्षा – हां, मां

मां - मुझे बेसब्री से इंतजार रहेगा, उस दिन का. (खुश होते हुए)

दीक्षा- अच्छा मां... चलती हूं. बाय, बाय विमर्श, शालीना

विमर्श, शालीना- बाय दीदी, लव यू दी. (दोनों कहते हैं)

(कार के स्टार्ट होने की आवाज और फिर जाने की... धीरे – धीरे आवाज़ बंद)

शालीना – मम्मा, दीदी के जाने के बाद कितना खाली-खाली लग रहा है न ?

मां – हां, शालीना, बेटियां होती हैं घर की रौनक. तू भी तो घर की रौनक है. (हंसते हुए लाड़ से कहती है)

विमर्श- मां, क्या लड़के घर की रौनक नहीं होते... ? तुम बस बेटियों को प्यार करो. काम मैं ही आऊंगा. दोनों चली जाएंगी तुमको छोड़कर. तब यही बेटा काम देगा. ( मां को सुनाते हुए कहता है)

शालीना – मम्मा, देखा विमर्श को, जलकोकड़ा कहीं का, कैसे सड़ गया ( मुंह बनाते हुए कहती है)

मां – ( समझाते हुए कहती है) नहीं, नहीं बेटा, बेटियां नहीं बेटे भी घर की रौनक होते हैं. इनफैक्ट बच्चे घर की रौनक होते हैं. तुम बच्चे ही तो हमारी जान हो. अब जाकर पढ़ो. आज सुबह से ही तुम्हारी पढ़ाई नहीं हुई. (सभी अंदर आते हैं. दरवाज़ा बंद करने की आवाज़)

तभी मोबाइल की रिंगटोन बजती है..... ट्रिंग...ट्रिंग

मां – हलो.... हां, विमल कैसे हो ?

विमल- ठीक हूं... दीक्षा चली गई क्या...?

मां – हां, जस्ट अभी निकली है. (कहकर वो चुप हो जाती है) कुछ सेकेंड की खामोशी

विमल – हलो क्या हुआ ?. खामोश क्यूं हो गई ?

मां – पता नहीं, कुछ अच्छा नहीं लग रहा. दीक्षा कुछ परेशान थी. कुछ बात करने के लिए भी कह रही थी.

विमल – अरे कुछ नहीं, पढ़ाई को लेकर परेशान होगी ( कुछ सोचते हुए) कहीं कोई प्यार-व्यार का तो चक्कर नहीं ? (थोड़ा हंसते हुए कहता है) भई, बच्चे जवान हो गए. बाहर पढ़ रही है, हो सकता है कोई साथ का लड़का पसंद आ गया हो...

मां – पता नहीं, पर मैं उससे बात नहीं कर पाई लेकिन वो परेशान लग रही थी. विमर्श को पढ़ाना जो था. एक्जाम के बाद मैं जाऊंगी दोनों को लेकर, तभी उससे बात करूंगी.

विमल – आके बाय

मां - बाय

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अंक 2

दृश्य - 1

नोएडा में (दरवाजा नॉक करने की आवाज़, फिर खुलने की और देखकर ही - )

पायल - अरे दीक्षा, तू आ गई, जल्दी क्यों आ गई ...? तुझे कुछ दिन वहीं रुकना था ना !! तूने दो टिकट कराए थे न ? एक परसों का था. तो परसों आती आराम से.

दीक्षा- कैसे रुकती ? किसके लिए रुकती ? मम्मा के पास समय ही नहीं था. मैंने भी नहीं बताया कि एक और टिकट है. पायल... (रोते हुए उसका नाम लेकर उससे लिपटकर कहती है.) पायल, मैं अब क्या करूंगी... ? बता, अब क्या होगा मेरा... ? जब सबको पता चलेगा कि... ? कब तक मैं ये सब बर्दाश्त करूंगी ?

पायल- अब जो होगा देखा जाएगा. आते ही रोने लगी. चल चुप हो जा. तूने क्या सोचा है... ? क्या करेगी... ?

दीक्षा – (रोते हुए) मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा क्या करूं मैं... !! यहां से भागकर घर गई थी. सोचा था मम्मा से बात करूंगी लेकिन विमर्श और शालीना के एक्जाम थे, उन्हें पढ़ाना भी था. उसके भी तो बोर्ड के एक्जाम हैं ना... !!

पायल – ( कुछ गुस्सा होते हुए कहती है) पर तेरा क्या... ? तू जो यहां झेल रही है, उसका क्या... ? (डांटते हुए) पागल है. हमारे पेरेंट्स बड़े हैं. एक्सपीरियंस्ड हैं, वो बड़ी से बड़ी समस्या का हल बता सकते हैं. वो सही सजेशन दे सकते हैं. तुझे उनसे बात करनी चाहिए थी. उनको बताती तो सही.

दीक्षा – (झुंझलाकर) क्या बताती और किससे बताती... ? जब उनके पास समय ही नहीं था मेरे लिए. पापा भी नहीं आए मिलने मुझसे. पहले यही कहा था ना जब तुम नोएडा से आओगी तो मैं किसी काम से कहीं भी गया होऊंगा पर तुमसे मिलने जरूर आऊंगा. सबको अपने काम हैं. पापा को रुपया कमाना है, मां को दूसरे बच्चों को देखना है. मैंने कितने दुखी मन से, कितनी हिम्मत करके उनसे कहा था कि मुझे आपसे बात करनी है. मगर नहीं. उन्हें तो विमर्श को पढ़ाना था, वो भी कह सकती थीं ना कि थोड़ी देर मैं पढ़ाती हूं, तब तक जो आता है उसको रिवाइज कर लो. रात के बारह बज गए थे. पहले तो वो उसे पढ़ाती रही और जब मैं उन्हें देखने गई तो वो सो चुकी थीं. क्या मेरे लिए उनके पास आधा घंटे का भी समय नहीं था...! ( कुछ दृढ़ता के साथ) तभी मैंने डिसाइड कर लिया था कि मैं वापस चली जाऊंगी. जो होगा देखा जाएगा. सब फेस करूंगी. प्रॉब्लम मेरी है ना...! मैं ही आई थी यहां पढ़ने, यहां जो होगा. आई विल फेस, आई विल टैकल, ( और पागलों की तरह चिल्लाकर रोते हुए कहती है) बेयर दीक्षा, बेयर विद मी, आय एम अलोन, नो बडी केयर्स फॉर यू. यू हेव टू बेयर विद यू ओनली दीक्षा. नोबडी केयर्स फॉर मी पायल... नो बड़ी केयर्स फॉर मी... (और जोर-जोर से रोती है)

पायल – मत रो दीक्षा. प्लीज चुप हो जा. मैं हूं न तेरे साथ. चुप हो जा. कुछ सोचते हैं मिलके. अब शांत हो जा. प्लीज मेरी बहन चुप हो जा, शांत हो जा (समझाती है, चुप कराती है)

दीक्षा – मेरा मन तो होता है हमेशा के लिए शांत हो जाऊं !!! ( भरे मन से रोते हुए)

पायल - मत बोल ऐसे दीक्षा. ( उसे समझाते हुए, धीरे से कहती है) मेरी बात मान. कुछ दिन के लिए शीमा के घर चली जा. उससे बोल दे, यार मेरा मन नहीं लग रहा. होमसिकनेस लग रही है. कुछ दिन उसके घरवालों के साथ रहेगी तो तुझे अच्छा लगेगा.

दीक्षा – नहीं यार, मैं कहीं नहीं जा सकती. ( आवाज में भारीपन)

पायल - क्यों नहीं जा सकती ... ?

दीक्षा – (खींझकर) बस नहीं जा सकती...

पायल - ( वो भी गुस्से से पूछती है) आखिर क्यों... ?

दीक्षा – (परेशान होते हुए कहती है) वो मुझे मार डालेगा पायल, मुझे मरने का डर नहीं है मेरी बहन, मगर जो तमाशा होगा; उससे मेरी, घरवालों की क्या इज्जत बचेगी ? मुझे तो अब सहना ही है, चाहे जैसे सहूं. इस नरक में जलना है. (फिर उससे घबराते हुए कहती है) तू...तू....तू तो मुझे छोड़कर नहीं जाएगी न पायल... ? प्लीज मुझे अकेले छोड़के मत जाना...

पायल – नहीं जाऊंगी दीक्षा. रिलेक्स. तू चुप हो जा, प्लीज यार, बात मान. अब हमें ही कुछ करना पड़ेगा. हम ऐसे हार नहीं मान सकते. तूने बहुत सह लिया. अब नहीं. मुझे लग रहा था कि घर में आंटी- अंकल से बात करेगी तो समस्या का हल निकलेगा. कोई बात नहीं. मैं कुछ सोचती हूं. वैसे भी तू बहुत थकी होगी. आराम कर. फिर ये तनाव, चल लेट जा, सोजा... ( दीक्षा की सिसकियां और पायल की दर्द भरी आवाज) सो जा दीक्षा, मत रो, सब ठीक होगा....

दीक्षा – (रोते - रोते बोलती है) कुछ ठीक नहीं होगा, तू बता मेरी क्या गलती है ? मुझे क्यूं ईश्वर इतनी सजा दे रहा है. क्या गुनाह किया है मैंने ? बता पायल, बता ना ? क्या गलती है मेरी ? बोल पायल बोल...

पायल – जानती हूं, तूने कुछ नहीं किया. सब ठीक हो जाएगा. तू सो जा. थोड़ा आराम मिलेगा. अब बस कर, चुप हो जा और सो जा, आंखे बंदकर.

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दृश्य – 2

(अगली सुबह कॉलेज में स्टूडेंट्स की आवाजें, शोरगुल )

तभी दीक्षा के फोन की घंटी बजती है...

नम्बर देखकर वो सहम जाती है....(एक तरफ आकर शोरगुल की आवाजें कम)

दीक्षा – हलो (धीरे से)

राहुल – ( फोन पर दूसरी तरफ से) हलो स्वीट हार्ट, कैसी रही छुट्टियां ? कब तक और कहां तक भागोगी मुझसे... न न... तुम कहीं नहीं भाग पाओगी... मैं तो तुमसे कल ही मिलने वाला था लेकिन सोचा फुर्सत से आऊंगा तुम्हारे पास... ( बड़े टीज़ करने के ढंग से बोलता है.)

दीक्षा – नहीं, नहीं तुम मत आना, प्लीज, तुम मत आना. आओगे तो मैं दरवाजा नहीं खोलूंगी. देखो, मैं मम्मा-पापा को बता दूंगी और पायल के पेरेंट्स को भी बता दूंगी. (घबराते हुए दीक्षा ने कहा)

राहुल - ( बड़े इत्मिनान से कहता है) क्या बताओगी ? इधर तुमने मुंह खोला कि तुम्हारा वीडियो सोशल साइट पर अपलोड हुआ. बस, बात तो इतनी-सी है. अब तुम समझदार हो. सोच लो... क्या चाहती हो... ? मुझे कोई एतराज नहीं... (फिर सख्त होते हुए) अब पायल को भी बोलो रूम खाली करे.

दीक्षा- नहीं, पायल कहीं नहीं जाएगी. (घबराते हुए कहती है)

राहुल – पायल को तो जाना होगा वर्ना उसका भी वही हाल होगा जो तुम्हारा हुआ.

दीक्षा- (ये सुनते ही दीक्षा ने फोन काट दिया और घबराते हुए पायल से कहती है) मुझे एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक जाकर कॉलेज के हॉस्टल के लिए फिर से रिक्वेस्ट करनी होगी. सर ने कहा था कि पांच-छह महीने में कोई रूम खाली होगा तो मिल जाएगा.

पायल- राहुल का फोन था न.... रुक जा, मैं भी चलती हूं तेरे साथ.

दीक्षा- (परेशान होकर) हां, उसी का था...तू क्लास में जा. मैं सर से मिलकर आती हूं..

पायल- ओके, लेकिन घबरा मत....

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दृश्य – 3

(शोर –शराबा कम, शांत सा वातावरण)

दीक्षा – सर, मैं आइ कम इन सर,

सर – यस, कम इन

दीक्षा – सर, मैं दीक्षा... न्यू बैच. आपने कहा था 5-6 महीनों में मुझे कॉलेज के हॉस्टल में जगह मिल जाएगी. क्या मुझे अब हॉस्टल मिल जाएगा सर... ? (घबराते हुए)

सर- सॉरी, अभी तो नहीं हो पाएगा. ( सीधा- सा जवाब)

दीक्षा – सर प्लीज, मुझे कोई भी रूम अलॉट कर दीजिए. सर, मुझे मेरी किसी बैचमेट के साथ शिफ्ट कर दीजिए. हम तीन लोग भी एडजस्ट कर लेंगे. प्लीज सर

सर – जो रूल्स हैं, वही फॉलो होंगे. यू मे गो नाओ .....

दीक्षा – सर, प्लीज सर. (रिक्वेस्ट करती है)

सर- मैंने कहा ना, अभी कुछ नहीं होगा. तुम जा सकती हो.

दीक्षा – (गुस्से से) आप जानते हैं लड़कियों को बाहर कितनी परेशानी होती है ? जब आपके पास हॉस्टल नहीं तो क्यूं इतनी सीट बढ़ाते हैं कि लड़कियों को बाहर रहना पड़े ? शायद आपकी कोई बेटी नहीं होगी सर. इसलिए आप नहीं समझ रहे !!

सर- दिस इज नन ऑफ माई बिजनेस. तुम जा सकती हो ( आवाज में तेजी)

दीक्षा – जा रही हूं. कल को मेरे साथ कुछ गलत होगा उसके लिए तो इस कॉलेज के साथ आप भी जिम्मेवार होंगे सर... (गुस्से से कहती है और चली जाती है)

(कॉलेज का शोरशराबा जारी. कदमों की आवाजें. और पायल की मन में बुदबुदाने की आवाज़ हल्की – हल्की, दे भगवान. दीक्षा को रूम अलॉट करा देना. उसका साथ दे दो भगवान. उसे रूम मिल जाए, उसे रूम मिल जाए, तभी पायल के माबाइल की रिंगटोन)

पायल – हलो

राहुल – पायल डियर. मैं राहुल. तुम्हारे पास तीन दिन का समय है. दूसरा रूम तलाश करो. दीक्षा का रूम खाली करो.

पायल – (व्यंग से) ओह, तो तुम हो राहुल..... (सख्त होते हुए) मैं दीक्षा को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी. समझे.

राहुल – आवाज नीची. (भारी-सी आवाज में कहता है) तुम नहीं चाहोगी कि तुम्हारा भी वही हश्र हो. जो दीक्षा का है. बेहतर है कि रूम छोड़ दो. वर्ना तुम भी तैयार हो जाओ. समझी... लड़की.

पायल- ये धमकी किसी और को देना. मैं पायल हूं, दीक्षा नहीं हूं. समझे..... (फोन काट देती है)

दीक्षा क्लास नहीं अटैंड करती है और रूम पर आ जाती है. तेज कदमों की आहट के साथ शोर – शराबा और सड़क की आवाजें, उसके बाद शांत, ताला खोलने की आवाज)

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दृश्य- 4. (शांत सा वातावरण)

(क्लास में पायल को न पाकर, खुद से कहती है- दीक्षा क्लास में नहीं आई... जाकर देखती हूं. रूम पर ही होगी. पायल क्लास अटैंड किये बिना रूम पर जाती है तो दीक्षा वहीं मिलती है. नॉक करने का आवाज, दरवाजा खुलने का आवाज)

दीक्षा दरवाजा खोलती है. पायल को देखकर

दीक्षा – ( घबराकर आश्चर्य से) पायल तू, तूने क्लास अटैंड नहीं किये.. ? (घबराते हुए पूछती है) क्या हुआ पायल ?

पायल – तुझे क्लास में नहीं देखा, इसलिए आ गई. राहुल का फोन आया था ( गंभीर होकर)

दीक्षा - क्या कहा उस गुंडे ने ?

पायल – तीन दिन के अंदर रूम बदलने को कहा है...

दीक्षा- व्हॉट, तीन दिन के अंदर, मतलब तू ये रूम छोड़ देगी...?

पायल- क्या करूंगी, मजबूरी है... (थोड़ा नाटक करते हुए)

दीक्षा – तूने तो कहा था कि मेरा साथ नहीं छोड़ेगी.

पायल – ठीक है नहीं छोड़ूंगी. फिर हम दोनों के साथ सब कुछ एक जैसा होगा. जहां आज तू है, वहां कल मैं होऊंगी. मंजूर है ना तुझे... ?

दीक्षा – नहीं पायल, मैं नहीं चाहती, तू मेरी तरह रोज मरे. मेरा जीना-मरना तो अब उसके हाथों में हैं. तू ढ़ूंढ ले नया रूम. मैं हूं अपनी किस्मत के साथ. पता नहीं मुझे कब तक सहना होगा ये सब.

पायल- (मुंह बनाकर उसकी नकल करते हुए) तू ढूंढ ले नया रूम, मैं हूं अपनी किस्मत के साथ, ये रोना-धोना छोड़. बी अ ब्रेव गर्ल. मैं कहीं नहीं जा रही. मैं यहीं रहूंगी. मगर अब हमें प्लॉन बनाकर चलना होगा और तुझे साथ देना होगा...

दीक्षा- (पूछती है) प्लान... कैसा प्लान ?

पायल- हम पुलिस को खबर कर सकते हैं. महिला आयोग से सहायता ले सकते हैं और हम वूमेन पॉवर लाइन पर भी कांनटेक्ट कर सकते हैं. हमें यहां की पुलिस और सरकार की मदद लेनी होगी.

दीक्षा- (घबराकर) नहीं...नहीं... तू ऐसा कुछ नहीं करेगी. अगर उसे जरा भी भनक लगी तो तेरे वहां पहुंचने से पहले मेरा वीडियो पोस्ट हो जाएगा.

पायल- तू इतना टेंशन मत ले. कुछ नहीं होगा और अपनी डे स्कॉलर फ्रैंड शैफाली के पापा डिप्टी एसपी हैं. हम उनसे हैल्प लेंगे. आखिर वो किस दिन काम आएंगे... ?

दीक्षा- प्लीज, ऐसा कुछ मत करना कि मैं जी भी न पाऊं... (उदास और परेशानी में कहती है)

पायल- (गुस्से से) तू क्या चाहती है वो यूं ही खुला घूमता रहे और मासूम लड़कियों की जिंदगी से खेलता रहे. आज तू है, कल कोई और होगी, परसों कोई और, फिर कोई और, फिर कोई और... कभी नहीं थमेगा ये सिलसिला. क्या तू यही चाहती है कि वो सबको निशाना बनाता रहे. अरे, मरना भी है तो उसको मारकर मर. अगर बदनामी मिलनी होगी तो मिलेगी लेकिन बदनामी देने वाले को भी ठिकाने लगाना ज़रूरी है. तुझे साथ देना होगा और मुझ पर विश्वास भी रखना होगा. ( थोड़ा रुककर) अब मेरी बात ध्यान से सुन. मैं परसों यहां से शैफाली के घर चली जाऊंगी लेकिन कल ही उसको साथ लेकर महिला आयोग में शिकायत करूंगी. पुलिस में भी कंप्लेंट दर्ज कराऊंगी, साथ ही वूमेन पॉवर लाइन 1090 पर फोन करके सारी बात बताऊंगी, हम हैं तो यू.पी से ही. अंकल से सारी बात बताकर उनसे हैल्प लूंगी. मैं चाहती हूं वो रंगे हाथों पकड़ा जाए. जब वो परसों आएगा तो दरवाजा खोलने से पहले तू मुझे मैसेज कर देना. बस उसके बाद मैं देख लूंगी. हम लड़कियों को क्या इतना कमजोर समझा है उसने ? अब मैं बताऊंगी कि आजकल के लड़कियां सहती नहीं हैं, बल्कि करारा जवाब देती हैं. थप्पड़ मारती हैं. आज के लड़के हम लड़कियों को अबला नारी और कमजोर समझना छोड़ दें. मैं कल ही जाकर सबसे मिलूंगी और परसों रात ही उसे रंगे हाथों पकड़ने के लिए तैयारी करूंगी. हम हार नहीं मान सकते. अब और जरा – सी भी देरी नहीं करनी.

दीक्षा – (खोई हुई-सी आवाज में ) पता नहीं, किस घड़ी यहां आई थी मैं. मेरी ही किस्मत खराब है, वर्ना यहां आती ही क्यूं ? मैंने ही जिद की थी यहां रहने की. जानती थी बगल में ब्व़ॉएज हॉस्टल है. मगर इतना बुरा होगा यो तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था. (एक हताश, हारी हुई आवाज में उसने कहा) बहुत मनहूस था वो दिन जब हमारा गीजर खराब हो गया था और गीजर ठीक करने के बहाने राहुल ने बाथरूम में कैमरा लगवा दिया था. मेरा नहाते हुए पूरा वीडियो बन गया और उसके बाद उसके हाथ की कठपुलती बन गई. उसके 15 पन्द्रह दिन बाद तूने मेरे साथ रूम शेयर किया था. इसलिए तू बच गई. अच्छा ही हुआ.

पायल – हां, बताया था तूने. मगर बात यहां तक पहुंच जाएगी, नहीं सोचा था. हमें ये बात तुरंत ही अपने पेरेंट्स से बतानी चाहिए थी. हमसे गलती तो हुई है. तभी बताना चाहिए था. हम लड़कियां, महिलाएं पता नहीं क्यूं इतना डर जाती हैं. अपनी इज्जत को लेकर लेकिन इसमें हमारा तो कोई कुसूर नहीं.

दीक्षा- बताए तो कोई तब, जब कोई सुनना चाहे. कितनी हिम्मत करके इस बार मैंने मम्मा से कहा था कि मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूं. जबकि उन्हें पता था मैं नेक्स्ट डे चली जाऊंगी फिर भी वो आधा घंटा मेरे लिए नहीं निकाल पाईं. मेरा दिल बहुत बुरी तरह टूटा है. पापा ने भी कॉलेज भेजते वक्त कहा था कि जब भी तू आएगी मैं कहीं भी रहूं पर तुझसे मिलने जरूर आऊंगा, लेकिन क्या हुआ ? वो नहीं आए और मैं फिर इस नरक में आ गई. (फिर रो पड़ती है) मुझे मम्मा की जरूरत थी पायल. पापा मेरी हिम्म्त थे मगर उन्होंने ही साथ नहीं दिया.

पायल- ( टालते हुए) छोड़ ना ! उन्हें कोई काम होगा.

दीक्षा- काम ? कौन-सा काम... ? क्या बच्चों से बड़ा काम माता-पिता के लिए कुछ और होगा ? वो किसके लिए कमा रहे हैं ? हमारे लिए ना ? फिर हम ही उपेक्षित, क्यों ? जब मैंने मम्मा से कहा कि आपसे जरूरी बात करनी है तो क्या वो थोड़ा समय नहीं निकाल सकती थीं. उन्होंने नहीं सोचा कि दीक्षा कल चली जाएगी, पता नहीं क्या बात है और वो भाई को पढ़ाकर सो गईं और फिर से लड्डू बनाकर दिये. कौन खाएगा ये लड्डू... ? बचूंगी तभी खा पाऊंगी ना ? वो लड्ड़ू न बनाती लेकिन मेरी बात तो सुन लेतीं. नहीं चाहिए ये रुपया-पैसा. वो हमें समझें, हमें समय दे, यही चाहिए. जब हमें जरूरत हो वो हमारे पास, हमारे साथ खड़ी हों, ये चाहिए हमें, न कि रुपया-पैसा, क्या करूंगी, रुपए का ? किस परेशानी में जी रहीं हूं, नहीं जानती वों, और जानने की कोशिश भी नहीं की.

पायल- रिलेक्स दीक्षा (समझाते हुए)

दीक्षा- क्या रिलेक्स यार ?

पायल- तू घर पर फोन कर उन्हें भी यहां बुला ले

दीक्षा- तेरा दिमाग तो ठीक है ना ?

पायल- हां, ठीक है, उन्हें बोल वो वो तुरंत आएं.

दीक्षा- किसको बोलूं, जिन्हें मेरी परवाह ही नहीं...

पायल- ( उसे समझाते हुए) देख दीक्षा, जो भी हुआ अब उसमें तो कुछ नहीं कर सकते. उन्होंने बचपन से हमारी न जाने कितनी गलतियां माफ कीं. एक बार उन्होंने नहीं सुना तो इसमें हमें गुस्सा नहीं होना चाहिए. आखिर वो हमारे माता-पिता हैं. हम उन्हें नहीं बताएंगे तो किसे बताएंगे. तू आज नहीं, परसों सुबह ही उन्हें फोनकर आने के लिए बोल. आज फोन करेगी तो वो पहले आ जाएंगे और सारा खेल बिगड़ जाएगा. वो सतर्क हो जाएगा. कहीं भाग सकता है या गुस्से में तेरा वीडियो भी पोस्ट कर सकता है. इसलिए तू परसों सुबह फोन करना. तू बस इतना कहना कि हो सके तो रात तक आ जाएं, वर्ना इसके बाद कभी बात नहीं करूंगी. वो रात वाली फ्लाइट से आ जाएंगे और यहां पहुंचते-पहुंचते उन्हें करीब 11 बज ही जाएंगे. जब राहुल आए तो एक कॉल वूमेन पॉवर लाइन पर कर देना. मैं कल ही उन्हें कॉल करके सारी बात बता दूंगी. परसों का दिन बहुत खास होने वाला है.

दीक्षा- हां, शायद मेरे जीवन का आखिरी दिन... (निराश-सा स्वर )

पायल- ( चिढ़कर) अरे यार, फिर वहीं बात करने लगी. कुछ नहीं होगा. एक बात बता. अभी भी तू भुगत रही है और आगे भी तुझे भुगतना ही है, यही मानकर चल रही है ना... ? हम कोशिश करेंगे तो कुछ उम्मीद तो बंधेगी अच्छा होने की. ये तो सोच. मुझे विश्वास है अच्छा ही होगा...

दीक्षा- ठीक है जैसा तू कहेगी, वैसा ही करूंगी.

पायल- परसों सुबह ही फोन करना. कल मैं महिला आयोग जाकर सारी बात बताकर परसों की तैयारी करके आऊंगी. हमें रात को अलर्ट रहना होगा. मुझे पूरा विश्वास है कि वो तुझे परसों रात मिलने जरूर आएगा. अक्सर वो 9 या 10 के बीच ही आता है ना... ? मैं उस वक्त तक तैयार रहूंगी. मैं, शैफाली, उसकी दीदी और उसके भाई को लेकर यहां आऊंगी. अंकल से भी तो हैल्प ले रहे हैं ना... ? वो हमारी पूरी हैल्प करेंगे...

दीक्षा- ठीक है.

पायल- चल शाम को बाहर कुछ खाकर आते हैं. मुझे भी कुछ सोचने दे कि कैसे क्या बात करूंगी, क्या-क्या हो सकता है...

दीक्षा- ओके... ( कमरे का ताला बंद करने की आवाज)

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अंक -3

दृश्य – 1 (कमरे के अंदर शांत – माहौल)

पायल – आज का दिन बहुत खास है

दीक्षा- मुझे बहुत डर लग रहा है

पायल- क्यूं डर रही है ? मेरी सबसे बात हो गई है.

दीक्षा- क्यों का क्या मतलब... ? ईश्वर न करे तुझे कभी झेलना पड़े लेकिन मैंने सहा है सब...

पायल- बस, अब और नहीं परेशान होगी तू. आज का दिन मिस्टर राहुल का आखिरी दिन होगा. आज के बाद वो लड़कियों को ब्लैकमेल करना भूल जाएगा. ये कैमरा वहां सामने रखकर सैट कर देती हूं. बस दरवाजा खोलने से पहले इसे ऑन कर देना... और कैमरे की तरफ देखना भी नहीं. कहीं उसे कोई शक न हो. समझी... चल पहले आंटी को फोन कर...

दीक्षा- ठीक है मां को फोन करती हूं...

मां- हलो,

दीक्षा – हलो मम्मा

मां - हां बेटा, कैसी है तू... ?

दीक्षा – तुम तुरंत यहां आ जाओ. (थोड़ी सख्त आवाज में )

मां – क्या हुआ बेटा ?

दीक्षा – तुम आ रही हो या नहीं ? (बड़े उखड़े ढंग से कहती है)

मां - क्या हुआ बता तो सही ? अगले हफ्ते दोनों के एक्जाम खत्म हो रहे हैं. मैं उसी दिन का टिकट करा लेती हूं.

दीक्षा – नहीं, आज की फ्लाइट बुक करो. कितनी भी महंगी हो.

मां – कैसी बातें कर रही है. क्या हुआ? बता तो सही.

दीक्षा – (भर्राई आवाज में) घर में तुमने मेरी बात नहीं सुनी. मैं तुम्हें कुछ बताना चाह रही थी मगर तुम... तुम्हें मेरी परवाह कहां है... ? अब अगर तुम मुझे जिंदा देखना चाहती हो तो आज ही रात तक आओ. नहीं तो मेरा मरा मुंह देखोगी...

मां – (घबरा जाती है) बेटा क्या हुआ, बता मुझे, मैं आज ही आ रही हूं... प्लीज बता मुझे, मेरा दिल बैठा जा रहा है. तेरे पापा भी यहीं हैं... उनसे बात कर.

विमल- हलो दीक्षा, क्या हुआ ?

दीक्षा – ओह पापा... बस आप टिकट करवाइए. आज रात तक पहुंचिये. मैं कल सुबह तक इंतजार नहीं कर सकती. आज ही आइए, नहीं तो फिर कभी नहीं देख पाएंगे मुझे. ( मायूस से स्वर में) फोन काट देती है.

विमल- हलो...हलो...दीक्षा...बेटा हलो...लगता है फोन काट दिया...

दीक्षा- (पायल से कहती है) कर दिया घर फोन... अब क्या करना है ?

पायल- अब तुझे नहीं हमें मिलकर करना है. ठीक है, चलती हूं दीक्षा. संभलकर रहना.

दीक्षा – अब क्या संभलना ? जो होना था हो चुका.

पायल- फिर वही बात... स्माइल कर, मैं चलती हूं लेकिन जो बताया है वो याद रखना... जैसे ही वो दरवाजा खटखटाए, मैजिक आई से देख लेना और तुंरत मुझे मिस्ड कॉल देना. फिर हैल्प लाइन पर कॉल करके सिर्फ यह कहना धीरे से– ‘वो आ गया.’ हां, कैमरा जरूर ऑन कर देना. तीन काम करने हैं तुझे. याद रखना. मुझे और हैल्प लाइन को कॉल करनी है और कैमरा ऑन करना है. हम सब इंतजार कर रहे होंगे. शैफाली का घर ज्यादा दूर नहीं हैं. हम तुरंत पहुंचेंगे. इसके बाद तू दरवाजा खोलना और फिर बातों में लगाए रखना. जिससे टाइम पास हो. तू शादी की बात करना उससे... तू कहियो कि वो तुझसे शादी कर ले, वगैरह – वगैरह. जो मन में आए बोलना. बस तुझ तक न आने पाए वो. हमारे आने तक तुझे उसे बातों में उलझाकर रखना है. हम जल्दी ही पहुंचेंगे और हां, तू दरवाजे की तरफ ही रहना. जिससे तुरंत दरवाजा खोल सके. चल बाय...

दीक्षा- ओके... बाय पायल. (दरवाजे के खुलने और बंद होने की आवाज)

जैसे ही पायल गई दीक्षा ने दरवाजा बंद कर लिया. तभी उसके मोबाइल की रिंगटोन बजती है...

(कमरे का सन्नाटा और सन्नाटे में गूंजती रिंगटोन--- ट्रिंग-ट्रिंग... ट्रिंग-ट्रिंग... ट्रिंग-ट्रिंग... ट्रिंग-ट्रिंग...)

(वो ईश्वर से प्रार्थना करती है) मुझे बचा लो भगवान, मुझे बचा लो, मुझे बचा लो भगवान, मुझे बचा लो... प्लीज भगवान, प्लीज मुझे बचा लो...

घंटी बंद हो जाती है... फिर बजती है

ट्रिंग-ट्रिंग... ट्रिंग-ट्रिंग... ट्रिंग-ट्रिंग... ट्रिंग-ट्रिंग...

दीक्षा फोन उठाती है

दीक्षा- (सहमी सी आवाज में) हलो...

राहुल- फोन क्यों नहीं उठा रही थी ? आऊं क्या अभी... ?

दीक्षा- नहीं, नहीं तुम मत आना...

राहुल- (हंसता है...हाहाहा....) अभी नहीं आ रहा. रात में आऊंगा ना... हंसता है और फोन काट देता है.

दीक्षा- (तुरंत पायल को फोन लगाती है, घबराकर कहती है) हलो, पायल

पायल- क्या हुआ दीक्षा ?

दीक्षा- पायल, उसका फोन आया था, वो रात में आएगा...

पायल- यही तो हम चाहते हैं, तू परेशान मत हो. मैं समय पर पहुंच जाऊंगी... लेकिन जैसे ही दरवाजा खटखटाए, पहले मुझे मिस कॉल देना फिर वूमेन हैल्प लाइन पर कॉल करके बताना कि वो आ गया है..., कैमरा ऑन करना है. ओके ? उसे बातों में लगाए रखना... और हां, याद रखना, तुझे दरवाजे की तरफ ही रहना है जिससे तू तुरंत दरवाजा खोल सके...

दीक्षा- ओके.

पायल- बाय...

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अंक - 4

दृश्य – 1. ( रात... झींगुर की आवाजें... सन्नाटा... एक - दो बार कुत्तों के भौंकने का आवाजें, दरवाजे के खटखट की आवाज) दीक्षा कांप जाती है...

दीक्षा - कौन... क्क्कौन... (घबराई-डरी आवाज में पूछती है और मैजिक आई से देखती है. फिर खुद से कहती हुई) पहले पायल को मिस्ड कॉल देती हूं, अब वूमेन पॉवर लाइन पर कॉल करती हूं... फुसफुसाते हुए- वो आ गया. कॉल काट देती है.

राहुल – इस समय मेरे सिवाय कौन होगा बेबी, अब खोलो भी...

दीक्षा- प्लीज, चले जाओ यहां से (डरते हुए कहती है फिर खुद से याद करते हुए) हां... कैमरा ऑन कर देती हूं. यही बोला था ना, पायल ने... मैं कुछ भूली तो नहीं... ? फिर प्रार्थना करती है - भगवान मुझे बचा लेना... प्लीज भगवान...

राहुल- खोलती हो या मैं आस-पास वालों को जगाऊं... ?

दीक्षा ने दरवाजा खोल दिया... (दरवाजा खुलने की आवाज)

अंदर आकर राहुल ने दरवाजा बंद कर दिया और उसको कसके जकड़ लिया...

दीक्षा – छोड़ो मुझे, छोड़ो मुझे

राहुल – अरे छोड़ू? कैसे छोड़ू तुम्हें? तुम पर तो फिदा हूं मैं.

दीक्षा – मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं, पैर पड़ती हूं, छोड़ दो मुझे. क्या बिगाड़ा है मैंने तुम्हारा... ?

राहुल – न..न.. डियर. तुमने नहीं तुम्हारे रूप ने छीना है... मेरा चैन.

दीक्षा - नहीं, छोड़ दो मुझे, छोड़ दो मुझे... प्लीज लीव मी... ( फिर उसको बातों में लगाते हुए) क्या तुम सब लड़कियों के साथ ऐसे ही करते हो...?

राहुल- सबके साथ तो नहीं... जो मुझे भा जाती है, उसको तो मैं पाकर ही रहता हूं...

दीक्षा- तो फिर तुम मुझे बाद में छोड़ दोगे ?

राहुल- क्या बात है, बड़े प्रश्न हो रहे हैं... ?

दीक्षा- तो मुझसे शादी कर लो...

राहुल- अब ये शादी कहां से आ गई बीच में.

दीक्षा- देखो, मैं कोई ऐसी-वैसी लड़की नहीं हूं. मैं तुमसे शादी करने को तैयार हूं. (उसमें थोड़ी हिम्मत आ गई थी )

राहुल- अरे यार, ये शादी वाला मामला बड़ा बेकार है. एक के साथ सारा जीवन ? नहीं ये बड़ा मुश्किल है. ये उम्र तो मौज-मस्ती के लिए है और तुम शादी की बात कर रही हो... छोड़ो भी ये नखरे.

दीक्षा- नखरे नहीं, सही तो कह रही हूं. मैं शादी के लिए तैयार हूं.

राहुल- लो, छोड़ दिया, मैं अब तुम्हारे बैड पर बैठ जाता हूं. ( कुछ कदम चलने का आवाज़ ) जब शादी के लिए तैयार हो तो दुल्हनिया रानी अब तुम आओ मेरे पास. आओ. आओ ना...

दीक्षा- पहले शादी का वादा करो...

राहुल- तुम पहली लड़की हो जिसने शादी की बात की... सोचूंगा... अभी तो आओ मेरे पास...

दीक्षा- नहीं, अब पहले शादी होगी तब मैं खुद तुम्हारे पास आऊंगी.

राहुल- अरे, ये नाटक क्यों ? और क्या शादी – शादी की रट लगा रखी है? चुपचाप खुद आती है कि मैं आऊं. अभी मैं आराम से तेरे बिस्तर पर हूं. अब तू खुद आ. नहीं तो मैं तुझे खींचते हुए लाऊंगा यहां. ये दरवाजे के पास क्यों खड़ी है ? भागने का इरादा तो नहीं ? भाग नहीं पाएगी. फिर कहता है देख में शराफत से बैठा हूं. अब आजा. अगर मैं उठा तो जो चाहूंगा वो तो करूंगा ही, पीटूंगा भी. समझी?

(तभी दरवाजा खटखटाने की आवाज)...

राहुल- इस समय कौन होगा... ?

खटखटखट...खटखटखट

दीक्षा जल्दी से दरवाजा खोलती है और पायल से लिपट जाती है. पुलिस अंदर आकर राहुल को पकड़ लेती है.

राहुल- क्या है ये... ? क्या है ये सब... ?

डिप्टी एसपी- मैं बताता हूं तुझे साले. ( उसे कसकर थप्पड़ मारता है, फिर कहता है) डाल दो इसके हाथ में हथकड़ी और ले जाओ इसे. दीक्षा बेटी घबराने की जरूरत नहीं. अब कोई तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएगा.

दीक्षा- रुकिए अंकल, (वो राहुल को तड़ातड़ कई थप्पड़ मारती है, थप्पड़ मारने का आवाज़) वूमेन पॉवर लाइन वाले भी मौजूद होते हैं. राहुल पकड़ा जा चुका था.

कुछ देर में दीक्षा के मम्मी – पापा भी पहुंचते हैं. बाहर पुलिस को देखकर पूछते हैं-

विमल- सर, आप यहां किसलिए आए हैं. कुछ हुआ है क्या ? मेरी बच्ची भी यहीं रहती है.

कांस्टेबिल- सर, ये सड़कछाप लड़के हैं मगर हमारी बेटियों ने इनके दिमाग ठिकाने लगा दिये. ये ब्लैकमेल कर रहा था एक लड़की को.

विमल- किसको ?

कास्टेबिल- एक है दीक्षा.

विमल- क्या, वो भौंचक रह जाता है. अंदर भागता है.

दीक्षा पिता से लिपट जाती है

दीक्षा- पापा

विमल- क्या हुआ? ये क्या मामला है ?

डीएसपी- मैं बताता हूं. एक लड़के ने दीक्षा को परेशान कर रखा था. मगर इसकी दोस्त पायल की हिम्मत की दाद देनी होगी. आज उसकी वजह से ये बदमाश हमारी गिरफ्त में आया है. लेकिन एक बात कहूंगा अगर आपने अपनी बेटी की बात सुनी होती तो जितना मानसिक कष्ट इसे हुआ, वो नहीं होता.

मां - (घबराकर) तू ठीक है ना मेरी बेटी.

दीक्षा- हां, अब ठीक हूं... ( फिर पायल के गले लगकर) थैंक्यू पायल.... आज तुम नहीं होती तो पता नहीं क्या होता. मेरी मां ने तो मेरी बात सुनी नहीं.

मां- मुझे माफ कर दे दीक्षा. मुझे बहुत खुशी है कि आज की बेटियां हिम्मती हैं, बहादुर हैं. मैंने अपनी बेटी का दर्द नहीं सुना. फिर भी उसने संघर्ष किया और खुद ही समस्या का समाधान किया. थैक्यू पायल बेटी. दीक्षा घर में मुझसे कुछ कहना चाहती थी. बताना चाहती थी. अगर मैंने सुन लिया होता तो उसे इतना कष्ट न होता. मैं अपनी बेटी की गुनहगार हूं. अरे, कैसी मां हूं मैं.... जो बेटी के आंसू, उसका दुख नहीं देख पाई. मां होती तो बेटी का दर्द दिखाई देता. मेरा मां होना किस काम का... ? मैं नहीं बन सकी एक अच्छी मां... मगर मेरी सभी माता-पिता से विनती है कि अपने बच्चों की बातें ध्यान से सुनें. उनकी तकलीफ समझें. काश ! काश ! उस वक्त मैंने उसकी बात सुन ली होती... तो इतनी मानसिक वेदना उसे न सहनी पड़ती लेकिन खुश हूं कि आज के बच्चे पढ़-लिखकर समझदार हो गए हैं. आज का नारी अबला नहीं है. अगर वो साहस करे तो समाज-सरकार और दोस्त सभी साथ देते हैं... जरूरत है तो बस हमारी हिम्म्त की, पहल की, पहले कदम की.


वीना श्रीवास्तव

रांची- 834008,

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020 प्रविष्टि क्र. 13 - हिम्मत - वीना श्रीवास्तव
नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020 प्रविष्टि क्र. 13 - हिम्मत - वीना श्रीवास्तव
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