हिंदुत्व और हिन्दु राष्ट्र . अनुवाद: प्रो.लता सुमंत

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हिंदुत्व और हिन्दु राष्ट्र . अनुवाद: प्रो.लता सुमंत . ‘सिंधुस्थान ये जिसकी केवल पितृभूमि ही नहीं बल्कि पुण्यभूमि है वह हिंदू’.ये स्वातंत्र्य...


हिंदुत्व और हिन्दु राष्ट्र

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अनुवाद: प्रो.लता सुमंत

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‘सिंधुस्थान ये जिसकी केवल पितृभूमि ही नहीं बल्कि पुण्यभूमि है वह हिंदू’.ये स्वातंत्र्य वीर सावरकर की ‘हिंदू’ शब्द की व्याख्या है. स्वातंत्र्य वीर सावरकर के पूर्व भी ‘हिंदू’ शब्द की कम से कम १०५ विद्वानों द्वारा की गई व्याख्या का समावेश होता है.ऐसा होने पर भी ‘हिंदू’ शब्द की सावरकरी व्याख्या सत्य एवं देश हित के अधिक निकट मानी जाती है .इसके पीछे भी कुछ महत्त्व पूर्ण कारण जुड़े हुए हैं .

पितृभू और पुण्यभू: - सिंधु नद से सिंधु महासागर इस सीमा रेखा से बद्ध भूमि यानि सिंधु स्थान. ये भूमि जिस किसी की ‘पितृ भू’ और ‘पुण्य भू’ है (अवघा) वह समूचा हिंदू. ‘पितृ भू’ इस शब्द में दादा – परदादाओं की भूमि , जहाँ हमारे पूर्वज जन्में, रहे, वह भूमि. ऐसा अर्थ सावरकर को अभिप्रेत था.जबकि ‘पुण्य भू’ इस शब्द का अर्थ जहाँ उस पंथ के महात्मा अवतरित हुए , भगवान ने जहाँ उपदेश दिया, ऐसी भूमि है.इस व्याख्या के अनुसार ‘हिंदू’ इस वर्ग में मुस्लिम, ज्यू ,और क्रिश्चन हैं दूसरी ओर मात्र जैन , बौद्ध एवं सीख इन पंथों को समग्रता से हिंदू कहा जाए ऐसा भी अर्थ स्पष्ट होता है.इस तरह कई सावरकरी उद्धरण भी प्राप्त होते हैं.मूल रूप से इसे व्याख्यायित करने की उनकी दृष्टि व्यापकता की ही है. इसीलिए ‘हिंदू धर्म’ किसी एक विशिष्ट धर्म व पंथ विशेष का नाम न होकर जिन अनेक धर्मों व पंथों की यह भारत भूमि है , यही पितृ भूमि और पुण्य भूमि है.उन समग्र धर्मों व पंथों का नाम न होकर समावेश करनेवाले धर्म संघ का ‘हिंदू धर्म’ ये सामुदायिक अभिधान है – ऐसा वे स्पष्ट रूप से कहते हैं. इतना ही नहीं तो अन्य हिन्दुओं को उनके नामों से अभिहित किया जाता है.जैसे सीख धर्म , आर्य धर्म या जैन धर्म या बौद्ध धर्म नाम से संबोधित किया जाता है.जब इन सब धर्मों को एक नाम देने की आवश्यकता आन पड़ेगी तब ‘हिंदू धर्म’ ऐसा व्यापक नाम देना उचित होगा.इस तरह से अर्थ का अनर्थ भी नहीं होगा. जबकि वह अधिक अर्थपूर्ण होगा. हमारे छोटे समाज का संशय व् विशाल समाज का क्रोध दूर कर हमारा एक वंश, एक संस्कृति दर्शानेवाले हमारे प्राचीन ध्वज के तले फिर से सभी हिन्दुओं को एक करूँगा.’ ऐसा वे स्पष्ट रूप से कहते हैं.एक तरह से उन्होंने कहीं भी जैन ,बौद्ध इत्यादि धर्मों के स्वतन्त्र अस्तित्व का अस्वीकार न करके जिस तरह से एक राष्ट्रसंघ होता है उसी प्रकार से धर्मसंघ की व्यापक संकल्पना की है.

‘हिंदू’ ये शब्द परदेसियों (अन्य लोगों) ने हमें दिया है इस तरह के मतों का प्रवाद आज भी पाया जाता है.वास्तव में इस तरह के बौद्धिक मतभेद हमें सावरकर के समय से ही प्राप्त होते हैं.सावरकर मात्र तटस्थ रूप से इसका प्रचार करते रहे.प्राचीनकाल से ही हमारी संस्कृति ‘सिंधु संस्कृति’ के नाम से जानी जाती है. ‘सप्तसिंधु’ का ही भाषिक अपभ्रंश होकर ‘हप्त हिंदु’ इस भाषाशास्त्रीय पहलू के आधार पर हुआ .अवेस्ता तथा ‘भविष्यपुराण’ इन प्राचीन ग्रंथों का उल्लेख करते हुए सावरकर तर्कनिष्ठ रूप से कहते हैं ‘हिंदू’ शब्द परकीय नहीं है’.हिंदुत्व की सावरकरी व्याख्या को तत्कालीन राजकीय और सामाजिक परिस्थितियों की पार्श्वभूमि पर देखना युक्तिसंगत रहेगा.१९२३ से १९४७ इस कालावधि में सावरकर के वैयक्तिक जीवन में तथा हिंदुस्थान के राजकीय पटल पर भी बड़े – बड़े बदलाव देखने को मिलते हैं.सावरकर को दो उम्रकैद की सजा सुनाने के पश्चात् अंदमान भेजा गया. डोगरी से पोर्टब्लेयर इस संपूर्ण यात्रा में तथा सेल्युलर जेल में भी उन्होंने जबरदस्ती धर्मांतरण की दाहकता को अपने इसी देह तथा आँखों से अनुभव किया. ‘दार उल हरब’ का ‘दार उल इस्लाम ‘ में रूपांतर करने का आसुरी ध्येय से काम करनेवाले के समक्ष भी संख्या बढ़ाना ही उनका ध्येय था.सावरकर की दूरदृष्टि ने यह बेध लिया था.इसके लिए ही अखिल हिंदू एक हों . अतः ‘संख्या बल भी बल ही है.ऐसा सावरकर स्पष्ट रूप से कहते थे. अंदमान से ही उन्होंने जात्युचछेदन तथा शुद्धिकरण पर जोर देकर अपने प्रिय धर्म से उपेक्षित हुए बंधुओं को वापिस लेने का प्रयत्न भी यशस्वी रूप से किया.

१९२० के बाद भारतीय राजनितिक पटल पर गांधीजी का उदय हुआ . हिंदू मुसलमानों का मसीहा होने के प्रयत्न में गांधीजी ने अभूतपूर्व गड़बड़ कर दी. खिलाफत आन्दोलन को सहयोग देने के कारण भारतीय मुसलमानों की स्वाधीनता संग्राम में सहभागी होने की संभावना बढ़ेगी.ऐसा कारण दिखा कर खिलाफत आंदोलन की आफत अपने देश पर ओढ़ ली गई .उनका निर्णय आत्मघाती है. यह बात उस समय के स्वामी श्रद्धानंद जैसे कितने ही सामाजिक कार्यकर्त्ताओं द्वारा सचेत करने पर भी एक ओर मुसलमानों को अधिक कट्टर बनाते हुए महंमद अली, शौकत अली, जैसे चरमपंथियों का राजकीय स्थान गांधीजी ने मजबूत किया. तो दूसरी ओरइस चिंगारी से भड़का दावानल हिन्दुओं पर ही उल्टा . ऐसा मोपला मुस्लिमों द्वारा होता दिखाई दिया.आगे चलकर गांधीजी ने ‘हिंदू – मुस्लिम प्रश्न ये मानवीय प्रयासों से परे होकर अब वह केवल ईश्वर के हाथ में है’ ऐसा कहते हुए अपने आपको अलग कर लिया.गांधीजी के हठाग्रह के कारण भारतीय राष्ट्रीय कोंग्रेस मुसलमानों का तुष्टिकरण चलने दिया.तथा मुस्लिम लीग जैसे कट्टरवादी और ‘तोड़ो भारत’ वादी पक्ष को अधिक सक्रीय देखकर आनेवाले समय में देश को एक संघ बनाए रखने के लिए.सावरकर की हिंदुत्व की व्याख्या का विस्तृत रूप अधिक लगता है

आज के संदर्भ में :आज के परिप्रेक्ष्य में सावरकर व्दारा की गई व्याख्या भी उतनी ही युक्तिसंगत है इसमें कोई दो राय नहीं फिर भी इस व्याख्या का स्पष्टीकरण देते समय श्रुतिपुरानोक्त को अवहेलना करने के सावरकर के आवाहन पर जरुर पुनर्विचार होना चाहिए.इसका कारण यह है कि श्रुतिपुरानोक्त यानि समग्र हिंदू धर्म न होते हुए भी उसके बगैर हिंदू धर्म के अस्तित्व से संबंधित प्रश्न चिन्ह निर्माण होगा.पिछले पञ्च दशकों में देश विरोधी विघातक शक्तियों ने जानबुझकर इसमें दखल देना शुरू किया किसी भी बात के लिए standardization होना महत्वपूर्ण होता है.धर्म ग्रंथों में निरुपित कुछ आचरण संबंधी नियम , व्रतकोशल्य त्योहार इत्यादि धार्मिक रूप से हमारी पहचान को मजबूत बनाते हैं . इसके अलावा देश को संघटित करने का कार्य भी करते हैं. उदा. स्वरूप –गुड़ीपाडवा ये त्योहार समग्र देश में मनाया न जाता हो फिर भी युगादि, नववर्ष, बैसाखी इत्यादि नववर्ष के हिंदू त्योहार ये चैत्र महीने की कालावधि में ही देश के अनेक हिस्सों में हिंदू बांधव मनाते हैं .धर्म को जोड़कर रखनेवाले ये सूत्र standardization की दृष्टिसे महत्वपूर्ण है. ‘श्रुतिपुरानोक्त’ के अलावा ऐसा उल्लेख न करके ‘श्रुतिपुरानोक्तासह’ अन्य भी जो जो हिंदू परंपरा पलते हैं वे भी हिंदू ही हैं.ये आकलनीय बदलाव कालानुरूप आवश्यक हैं.

हिन्दुराष्ट्र :

तत्कालीन प्रधानमंत्रीश्रीमती इंदिरागांधी ने संविधानकर्ताओं कऐ लिए अपेक्षित न होने पर भी बल्कि आपत्तिजनक होते हुए भी socialist और secular इन शब्दों को संविधान में घुसाया.परिणाम स्वरूप आज भी ‘हिंदू राष्ट्र’ऐसा लोगों की भवें तन जाती हैं. ऐसा कहनेवाला व्यक्ति कट्टरपंथी है ऐसी डाट – फटकार शुरू हो जाती है.ऐसे समय में सावरकर के हिंदू राष्ट्र दर्शन महत्वपूर्ण लगते हें .’हिंदू’ इस शब्द की व्याख्या करते समय सावरकर व्द्वारा की गई Hinduism, HIndunes, Hindupolity इन संज्ञाओ की चर्चा की गई है. ‘हिंदुत्व’ इस शब्द की उनकी व्याख्या Hinduness व Hindu Polity के अधिक निकट है, अंत में इस व्याख्या में राष्ट्र ध्येय समाया हुआ है. इसलिए वे ‘हिन्दुपदपातशाही’ ये शब्द भी दर्ज करके और छत्रपति शिवाजी महाराज, गुरु गोविन्दसिंग, बाजीराव पेशवा (प्रथम), इत्यादि के उदाहरण देते हुए अपना मत विस्तार से प्रस्तुत करते हैं. रक्त से एकत्व समान संस्कृति, समानविधि विधान और समान संस्कार विधि इन सबसे बंधा समग्र हिंदू समाज यह एक है और अपने आप में एक राष्ट्र है, ऐसा सिद्धांत सावरकर प्रस्तुत करते हैं . हिन्दुओं की सुरक्षा के लिए तथा उनकी न्यायिक मांगों के प्रति गंभीर होगा ऐसा राष्ट्र यानि हिंदू राष्ट्र.हिंदू राष्ट्र ये किसी एक इकाई के तुष्टिकरण ( जी हुजूरी ) के लिए नहीं होगा. यहाँ सबको समान मौके होंगे ऐसा भी उनका कहना था.संक्षेप में सावरकर का हिंदू राष्ट्र का विचार ये कट्टरपंथी तथा पूर्णतया धार्मिकता के बल पर भी आधारित नहीं.जिस तरह इंग्लैंड के लोग इंग्लिश, पोलेंड में पोलिश वैसे हिंदुस्तान में हिंदू है .हालाँकि इसे हिंदुत्व की व्याख्या में ढालने के लिए शर्त भी है. हिंदुस्तान में मुसलमानों को स्वयं ‘जातिविशेष’ बनकर जरुर रहना चाहिए, उनके प्रति कोई भेदभाव न हो ऐसा भी उनका मत है. फिर भी ‘हिन्दी राज्य,के नाम पर हिन्दुओं के प्रति सौतेला व्यवहार करने पर भी उनका स्पष्ट विरोध दिखाई देता है. इसीलिए ‘ हिन्दी राज्य ‘ केवल विशुद्ध रूप से हिन्दी ही रहने दें . उस राज्य में मताधिकार , नौकरियाँ,अधिकारों के लाभ, करके धर्म और जाति के आधार पर किसी भी प्रकार का द्वेष फैलानेवाले भेदभाव को किसी भी प्रकार का स्थान न दें. कोई भी मनुष्य वह हिंदू हो या मुसलमान, ईसाई हो या यहूदी हो, इस ओर ध्यान न दिया जाए.ऐसा वे स्पष्ट रूप से कहते है. भगिनी निवेदिता, जमशेदजी टाटा जैसे व्यक्तियों ने जो महान कार्य किया. ये हिंदुत्व की व्याख्या में शामिल न होते हुए भी सावरकर उनके प्रति आभार व्यक्त करते है. इसीलिए सावरकरी हिंदू राष्ट्र की संकल्पना संकुचित नहीं. जबकि वह आज के तथाकथित धर्मनिरपेक्षता से भी कई गुना अधिक लोक कल्याणकारी और धर्मनिरपेक्ष है ऐसा कहने में कोई हर्ज नहीं.

अयोग्य रूप से मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण देश को तोड़ने की स्थिति निर्माण हुई थी तब हिंदू राष्ट्र की गर्जना आवश्यक थी. धार्मिक, सांस्कृतिक ,ऐतिहासिक,वांशिक ,भाषिक बंधनों से युक्त ये हिंदू ये शक्तिशाली राष्ट्र बनकर इकठ्ठा हो यही लगन उसके पीछे थी .इस छटपटाहट के पीछे निश्चय भी था.इसीलिए ‘आए तो आपके साथ , नहीं आए तो आपके बिना और विरोध करोगे तो विरोध की धज्जियाँ उड़ाकर भी हिंदू राष्ट्र का आंदोलन आगे ले जाएँगे .’ऐसा वे स्पष्ट रूप से कहते हैं.

कुछ मूलभूत संकल्पनाए :हिंदू राष्ट्र का उद्घोष करते समय सावरकर ने केवल संकल्पना करते हुए उसे मूर्त रूप में लाने के लिए अनेक छोटी – मोटी बातों पर भी गहन चिंतन किया है. इस हिंदू राष्ट्र को हिंदुस्तान ऐसा ही संबोधन किया जाए, उसमें नगरी लिपि ही अधिकृत लिपि हो. संस्कृत प्रधान हिन्दी ही राष्ट्रभाषा हो और कृपाण – ॐ – स्वस्तिक चिन्हांकित भगवा ध्वज ही राष्ट्र हो, इस तरह विस्तृत और विद्वत्तापूर्ण गहनचिंतन सावरकर ने प्रस्तुत किया है. हिंदू धर्म वैज्ञानिक और बुद्धिवाद के निकट होने के कारण वह हमारे लिए महत्वपूर्ण लगता है. सावरकर के अनुसार “वैश्विकता यह भावना जब सर्वव्यापी निर्माण होगी तब हम सभी ‘हिंदू’ न कहलाकर ‘मानव’ के रूप में अपनी पहचान स्थापित करने में समर्थ हो पाएँगे.तब तक अन्य पंथीय जिस तरह से अपनी पहचान बनाए हुए हैं उसी तरह से हमारा भी हिंदू बने रहना आवश्यक है. ‘हिंदू राष्ट्र’ इस संकल्पना के बारे में उनका यही मत है. जब वैश्विकता की भावना अन्य सर्व बंधन पर करेगी उस समय हमारा भी उसमें शामिल होना उचित है फिर भी,तब तक अपनी पहचान बनाए रखने का स्वाभिमान होना आवश्यक है. सावरकर ऐसा कहने से भी नहीं चुकते कि – जातिवाद का आरोप करने वालों को ‘हिन्दी राष्ट्र’ ये संकल्पना भी जातिवादी है.इस ओर भी ध्यान दिया जाए. सर्वव्यापी और दूरदृष्टि से गहन कैसे किया जाता है इसका उत्तम उदाहरण हैं सावरकर .यह हमारा दुर्भाग्य है कि उनकी जीवित अवस्था में तथा उसके पश्चात् भी हम भारतीयों ने उनके विचारों पर गहन चिंतन और अध्ययन तो दूर, उसे ठीक से जाना भी नहीं.

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रचनाकार: हिंदुत्व और हिन्दु राष्ट्र . अनुवाद: प्रो.लता सुमंत
हिंदुत्व और हिन्दु राष्ट्र . अनुवाद: प्रो.लता सुमंत
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