औषधीय गुणों का भंडार -बेल -: डॉ0 दीपक कोहली :- बेल प्रकृति प्रदत्त एक अतिमहत्वपूर्ण अमृतफल प्रदान करने वाला वृक्ष है। बेल हिंदू संस्कृति ...
औषधीय गुणों का भंडार-बेल
-: डॉ0 दीपक कोहली :-
बेल प्रकृति प्रदत्त एक अतिमहत्वपूर्ण अमृतफल प्रदान करने वाला वृक्ष है। बेल हिंदू संस्कृति का एक धार्मिक महत्व का पवित्र वृक्ष माना जाता है। इसका पत्ता, जिसे बेल-पत्र कहते हैं, खास तौर पर भगवान शिव को चढ़ाया जाता है। बेल का वानस्पतिक नाम एगल मारमेलॉस है, जो 'रूटेसी' कुल का सदस्य है। बेल के वृक्ष का संपूर्ण भाग बहुपयोगी और औषधीय गुणों से परिपूर्ण होता है। यह भारतीय मूल का पर्णपाती और कठोर प्रकृति का पौधा है जो समुद्र सतह से 1200 मीटर तक की ऊँचाई वाले स्थानों में पाया जाता है। बेल के वृक्ष 5 से 6 वर्षों में फूलना-फलना प्रारंभ कर लगभग 40 से 50 वर्षों तक फल देते हैं। पेड़ में मई-जून माह में फूल आता है तथा 8 से 10 महीनों के बाद अप्रैल-मई में फल पक जाता है। फल में प्रोटीन, कैल्शियम और फॉस्फोरस की प्रचुरता होती है। इसके अलावा इसमें विटामिन-'बी' की मात्रा अन्य महत्वपूर्ण फलों जैसे आम, सेब, केला एवं अमरूद से कहीं अधिक पाई जाती है।
बेल की अलग-अलग किस्मों के अनुसार इसके फल का वजन पाँच सौ ग्राम से लेकर चार-पाँच किलोग्राम तक होता है। जिसमें बीज 3-5 प्रतिशत, गूदा 74 से 80 प्रतिशत तथा रेशा 5-7 प्रतिशत तक होता है। बेल के पके फल में विटामिन-'सी' की मात्रा 18 से 22 मिग्रा. प्रति 100 ग्राम होती है। इसका संपूर्ण भाग औषधीय गुणों से परिपूर्ण होता है। विशेषकर बेल के फल के शर्बत का उपयोग सब लोग गर्मी में लू से बचने तथा पेचिश से आराम के लिए सर्दियों में करते आ रहे हैं।
बेल समशीतोष्ण जलवायु में फूलने वाला मध्यम आकार का वृक्ष है। जिसका आकार 6 से 8 मीटर लंबा होता है। यह अधिकतम 46 सेन्टीग्रेड तथा न्यूनतम 1 से 7 सेन्टीग्रेड ताप वाले इलाकों में उगाया जा सकता है। बेल के लिए औसतन 550 से 200 मिमी. वर्षा तथा मृदा का चभ्- मान 5 से 10 रहना चाहिए अर्थात् यह संपूर्ण भारतवर्ष में विशेषकर शुष्क, ऊसर पथरीली भूमि (जहां अन्य वृक्ष नहीं उग सकते) में इसे आसानी से उगाया जा सकता है। बेल की व्यावसायिक कृषि के लिए कलमी जातियों का चयन, संतुलित उर्वरक प्रबंधन एवं फल प्रसंस्करण तकनीकों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए क्योंकि इन्हीं कारणों पर उत्पादकता एवं आय निर्भर होती है।
आमतौर पर बेल का प्रवर्धन बीज द्वारा किया जाता है। किंतु इसे 'टी' कलिकायन द्वारा सफलतापूर्वक तैयार किया जा सकता है। कलमी पौधे तैयार करने के लिए फरवरी-मार्च के महीनों में पौधशाला में बीजों की बुवाई की जाती है। बीजू पौधों के पेन्सिल आकार का होने पर इनमें वांछित गुणों वाले किस्मों की कली से कलिकायन किया जाता है तथा इसके बाद वर्षा ऋतु में तैयार पौधों का उपयोग पौध रोपण के लिए किया जाता है।
बेल वृक्षारोपण के लिए उपयुक्त समय जुलाई-अगस्त माना जाता है। यदि सिंचाई की व्यवस्था हो तो फरवरी-मार्च के महीनों में भी रोपण किया जा सकता है। बेल के कलमी पौधों से चौथे वर्ष से फल उत्पादन शुरू हो जाता है। इसमें मई-जून माह में फूल आना प्रारंभ होते हैं तथा फल 8-10 महीनों बाद अप्रैल-मई के महीनों में पककर तैयार हो जाता है। इस अवस्था में बेल के फल की ऊपरी कठोर परत गहरे रंग से हल्की भूरी हो जाती है तथा अंदर का गूदा गहरा पीलापन लिए होता है। बेल के विभिन्न प्रसंस्कृत उत्पादों के लिए इस अवस्था में फल की तुड़ाई की जाती है, जबकि पेड़ पर फल पकाने के लिए 11 माह का लंबा समय लग जाता है। फल एक-एक करके 2-3 सेमी. डंठल सहित तोड़े जाते हैं। सामान्य भंडारण के लिए केवल 7 से 10 दिन तक फलों को 330 सेल्सियस ताप पर रखा जा सकता है। फलों का शीत गृह में 90 सेल्सियस ताप पर लगभग 03 महीनों तक सुरक्षित भंडारण संभव है।
बेल का पका फल मीठा, स्वादिष्ट, पोषक एवं सुपाच्य होता है। फलों से मुरब्बा, स्क्वेश, टॉफी एवं कैंडी आदि उत्पाद बनाए जाते हैं। बेल के पके फलों को परिरक्षित कर लंबे समय तक भंडारित किया जाता है। इसके लिए पके फलों को साफ पानी से धोकर काट लेते हैं फिर हल्का उबालकर गूदा व बीज को अलग कर लेते हैं। फिर साइट्रिक अम्ल डालकर इसे 24 घंटों के लिए डुबाकर रखते हैं। फिर क्रमशः 60 प्रतिशत एवं 72 प्रतिशत शक्कर की चाशनी में रखा जाता है। अंत में इसे चौड़े मुह वाले बर्तन में भंडारित कर लेते हैं।
बेल का हर भाग औषधीय गुणों का भंडार है तथा इसका संपूर्ण भाग किसी न किसी रूप में प्रयोग किया जाता है। इसका कच्चा फल बलवर्धक, पाचक और पेट के रोगों को दूर करता है। दस्त एवं पेचिश में विशेष लाभदायी होता है। पुरानी आंव में कच्चे बेल फल के टुकड़ों को सेककर चूर्ण डालकर प्रतिदिन सेवन करने से लाभ होता है। जबकि पका फल बलवर्धक, पुष्टिकारक, दस्त निवारक, कब्जहारी, ज्वरनाशक तथा मस्तिष्क को आराम पहुंचाने वाला होता है। यह हृदय के लिए उपयोगी तथा वात एवं कफ रोगों को भगाता है।
बेल में विटामिन 'बी' (राइबोफ्लेविन) अन्य फलों की तुलना में सर्वाधिक होता है। बेल के बीज में 62 प्रतिशत प्रोटीन, 3 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 32 प्रतिशत तेल तथा 3 प्रतिशत भस्म (राख) होती है। इसके अधपके फल के सेवन से खूनी पेचिश व अतिसार लाभ होता है। जबकि कच्चे फल का सौंफ तथा अदरख के साथ सेवन करने से बवासीर की रोकथाम हो जाती है।
बेल की पत्तियां कब्ज व पीलिया रोग में उपयोग होती हैं तथा वात एवं कफ दूर करती हैं। हरी पत्तियों को नमक के साथ पीसकर शर्बत पीने से पेट की गर्मी व जलन मिटती है। पत्तियों के चूर्ण को खून साफ करने हेतु प्रयोग किया जाता है। मधुमेह रोग में बेल की कुछ पत्तियों के रस को शहद के साथ सेवन करने से लाभ होता है। बेल की पत्तियों को घी में भूनकर मिश्री के साथ सेवन करने से स्मरण शक्ति तेज होती है। बेल की पत्तियों का उपयोग, पशुओं के लिए पौष्टिक आहार के रूप में भी किया जाता है। बेल फूल आंत के लिए लाभदायी तथा प्यास शांत करने में सहायक हैं व वमन रोकते हैं। इनमें दुर्गंधनाशक गुण भी होता है। फूलों को पीसकर उसमें काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से प्यास, अतिसार व उल्टी में राहत मिलती है। बेल की जड़ व तने का छिलका मीठा होता है तथा त्रिदोष से उत्पन्न ज्वर, पेट - दर्द, हृदय तथा गुर्दे की तकलीफ में लाभदायक है। जड़ तथा तने की छाल के काढ़े का प्रयोग आंत्र-ज्वर में किया जाता है। इसे दशमूल में से एक माना जाता है एवं दशमूलारिष्ट औषधि बनाई जाती है। इसके कच्चे फलों से पीला पेन्ट तैयार किया जाता है। बीज से सुगंधित तेल भी प्राप्त होता है जिससे कई औषधियां बनाई जाती हैं।
इस प्रकार हम देखते हैं कि बेल का संपूर्ण भाग बहुपयोगी एवं मानवोपयोगी है। अतः बेल का अधिक से अधिक वृक्षारोपण प्रत्येक दृष्टि से लाभकारी है।
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लेखक परिचय
*नाम - डॉ दीपक कोहली
*जन्मतिथि - 17 जून, 1969
*जन्म स्थान- पिथौरागढ़ ( उत्तरांचल )
*प्रारंभिक जीवन तथा शिक्षा - हाई स्कूल एवं इंटरमीडिएट की शिक्षा जी.आई.सी. ,पिथौरागढ़ में हुई।
*स्नातक - राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, पिथौरागढ़, कुमायूं विश्वविद्यालय, नैनीताल ।
*स्नातकोत्तर ( एम.एससी. वनस्पति विज्ञान)- गोल्ड मेडलिस्ट, बरेली कॉलेज, बरेली, रुहेलखंड विश्वविद्यालय ( उत्तर प्रदेश )
*पीएच.डी. - वनस्पति विज्ञान ( बीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान, लखनऊ, उत्तर प्रदेश)
*संप्रति - उत्तर प्रदेश सचिवालय, लखनऊ में उप सचिव के पद पर कार्यरत।
*लेखन - विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लगभग 1000 से अधिक वैज्ञानिक लेख /शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं।
*विज्ञान वार्ताएं- आकाशवाणी, लखनऊ से प्रसारित विभिन्न कार्यक्रमों में 50 से अधिक विज्ञान वार्ताएं प्रसारित हो चुकी हैं।
*पुरस्कार-
1.केंद्रीय सचिवालय हिंदी परिषद नई दिल्ली द्वारा आयोजित 15वें अखिल भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार, 1994
2. विज्ञान परिषद प्रयाग, इलाहाबाद द्वारा उत्कृष्ट विज्ञान लेख का "डॉ .गोरखनाथ विज्ञान पुरस्कार" क्रमशः वर्ष 1997 एवं 2005
3. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ,उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा आयोजित "हिंदी निबंध लेख प्रतियोगिता पुरस्कार", क्रमशः वर्ष 2013, 2014 एवं 2015
4. पर्यावरण भारती, मुरादाबाद द्वारा एनवायरमेंटल जर्नलिज्म अवॉर्ड्, 2014
5. सचिवालय सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजन समिति, उत्तर प्रदेश ,लखनऊ द्वारा "सचिवालय दर्पण निष्ठा सम्मान", 2015
6. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा "साहित्य गौरव पुरस्कार", 2016
7.राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ,उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा "तुलसी साहित्य सम्मान", 2016
8. पर्यावरण भारती, मुरादाबाद द्वारा "सोशल एनवायरमेंट अवॉर्ड", 2017
9. पर्यावरण भारती ,मुरादाबाद द्वारा "पर्यावरण रत्न सम्मान", 2018
10. अखिल भारती काव्य कथा एवं कला परिषद, इंदौर ,मध्य प्रदेश द्वारा "विज्ञान साहित्य रत्न पुरस्कार",2018
11. पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा वृक्षारोपण महाकुंभ में सराहनीय योगदान हेतु प्रशस्ति पत्र / पुरस्कार, 2019
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डॉ दीपक कोहली, पर्यावरण , वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग उत्तर प्रदेश शासन,5/104, विपुल खंड, गोमती नगर लखनऊ - 226010 (उत्तर प्रदेश )
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