" बढती वनाग्नि की घटनाएँ " -डॉ दीपक कोहली- सितंबर, 2019 में शुरू हुई ऑस्ट्रेलिया की भीषण वनाग्नि ने देश में काफी बड़े पैमाने पर वि...
"बढती वनाग्नि की घटनाएँ"
-डॉ दीपक कोहली-
सितंबर, 2019 में शुरू हुई ऑस्ट्रेलिया की भीषण वनाग्नि ने देश में काफी बड़े पैमाने पर विनाश किया है, इस वनाग्नि में मुख्य रूप से ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स और क्वींसलैंड जैसे क्षेत्र प्रभावित हुए हैं। हालाँकि इन क्षेत्रों के लिये वनाग्नि कोई नई बात नहीं है, क्योंकि यहाँ प्रत्येक वर्ष इस अवधि में जंगलों में आग की घटनाएँ देखी जाती हैं, किंतु इस वर्ष वनाग्नि ने काफी विराट रूप धारण कर लगभग 10 लाख हेक्टेयर भूमि को तबाह कर दिया है।
ऑस्ट्रेलिया के अतिरिक्त विश्व के कई अन्य हिस्सों में भी बीते कुछ समय में वनाग्नि की घटनाएँ देखने को मिली हैं, मसलन बीते वर्ष ही ब्राज़ील के अमेज़न जंगलों में काफी भीषण आग लगी थी। मई 2019 में उत्तराखंड (भारत) के अल्मोड़ा एवं नैनीताल ज़िलों में भी बड़े पैमाने पर वनाग्नि देखी गई थी। विश्व भर में लगातार बढती वनाग्नि की घटनाएँ वैश्विक समाज के समक्ष बड़ी चिंता के रूप में उभर रही हैं।
विश्व भर में देखे जानी वाली वनाग्नि की अधिकांश घटनाएँ मानव निर्मित होती हैं। वनाग्नि के मानव निर्मित कारकों में कृषि हेतु नए खेत तैयार करने के लिये वन क्षेत्र की सफाई, वन क्षेत्र के निकट जलती हुई सिगरेट या कोई अन्य ज्वलनशील वस्तु छोड़ देना आदि शामिल हैं। ब्राज़ील के अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र के अनुसार, अमेज़न के वर्षा वनों में दर्ज की जाने वाली 99 प्रतिशत आग की घटनाएँ मानवीय हस्तक्षेप के कारण या आकस्मिक रूप से या किसी विशेष उद्देश्य से होती हैं।
वनाग्नि के कुछ प्राकृतिक कारण भी गिनाए जाते हैं जिनमें बिजली गिरना, पेड़ की सूखी पत्तियों के मध्य घर्षण, तापमान की अधिकता, पेड़-पौधों में शुष्कता आदि शामिल हैं। वर्तमान में वनों में अतिशय मानवीय अतिक्रमण/हस्तक्षेप के कारण इस प्रकार की घटनाओं में बारंबरता देखी जा रही है। विभिन्न प्रकार के मानवीय क्रियाकलायों जैसे-पशुओं को चराना, झूम खेती, बिजली के तारों का वनों से होकर गुज़रना तथा वनों में लोगों का धूम्रपान करना आदि से भी ऐसी घटनाओं में वृद्धि हुई है। झूम खेती के तहत पहले वृक्षों तथा वनस्पतियों को काटकर उन्हें जला दिया जाता है। इसके बाद साफ की गई भूमि पर पुराने उपकरणों से जुताई करके बीज बो दिये जाते हैं। फसल पूर्णतः प्रकृति पर निर्भर होती है और उत्पादन बहुत कम हो पाता है।
ऑस्ट्रेलिया की भौगोलिक स्थिति उष्णकटिबंधीय है जिसके कारण यहाँ पर सूर्यातप की पर्याप्त मात्रा वर्ष भर मिलती रहती है। इसके अतिरिक्त इसका क्षेत्रफल विस्तृत है जिसके कारण यहाँ पर महाद्वीपीय प्रभाव देखा जाता है। भौगोलिक स्तर पर यह वनाग्नि न्यू साउथ वेल्स राज्य को बुरी तरह प्रभावित कर रही है। क्योंकि इसकी एक तरफ ग्रेट डिवाइडिंग पर्वत श्रेणी है, तो दूसरी तरफ से विशाल मरुस्थल है। ग्रेट डिवाइडिंग पर्वत श्रेणी ऑस्ट्रेलिया में वर्षा विभाजक का कार्य करती है, इसके पूर्वी भाग में पश्चिमी भाग की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है तथा पश्चिमी भाग वर्षा भू-वृष्टि क्षेत्र के अंतर्गत आता है। यही भाग इस समय वनाग्नि से प्रभावित है, वर्षा की सीमित मात्रा और मरुस्थलीय क्षेत्र से आने वाली तीव्र हवाओं के कारण वनाग्नि की स्थिति और गंभीर हो जाती है। वनाग्नि से प्रभावित इस क्षेत्र में सवाना जलवायु पाई जाती है जहाँ की वनस्पति शुष्क और अधिक ज्वलनशील होती है। इसके कारण वनाग्नि तेज़ी से विस्तृत क्षेत्र में फैल जाती है।
ध्यातव्य है कि पिछले तीन वर्षों से ऑस्ट्रेलिया भीषण सूखे का सामना कर रहा है, मौसम विज्ञान विभाग के अधिकारियों ने वर्ष 2019 को वर्ष 1900 के बाद सबसे गर्म वर्ष बताया है। इस दौरान तापमान औसत से 2°C अधिक था, जबकि वर्षा में सामान्य से 40 प्रतिशत की कमी देखी गई। इस वर्ष ऑस्ट्रेलिया के असामान्य मौसम में हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD) की भूमिका भी है। इस वर्ष पूर्वी हिंद महासागर क्षेत्र में सामान्य से अधिक ठंड देखी गई, जो ऑस्ट्रेलिया में हुई कम वर्षा के कारणों में से एक है।
एयरक्राफ्ट, हेलीकॉप्टर, फिक्स्ड विंग एयरक्राफ्ट और बड़े एयर टैंकर इस वनाग्नि को बुझाने के लिये प्रयोग में लाए जा रहे हैं। इनमें से ज़्यादातर पानी की तेज़ बौछार करने में सक्षम हैं। सेना के वायुयान और नेवी के क्रूज़र का प्रयोग भी वनाग्नि को बुझाने के लिये किया जा रहा है। अमरीका, कनाडा और न्यूज़ीलैंड भी इस कार्य में ऑस्ट्रेलिया की सहायता कर रहे हैं। इन देशों की ओर से ऑस्ट्रेलिया को अतिरिक्त मदद और सुविधाएँ मुहैया कराई गई हैं।
वनाग्नि से क्षेत्र विशेष की प्राकृतिक संपदा को काफी नुकसान पहुँचता है, भारतीय वन सर्वेक्षण ने वनाग्नि से हुई वार्षिक वन हानि 440 करोड़ रुपए आँकी है। जंगलों में लगी आग से कई जानवर बेघर हो जाते हैं और नए स्थान की तलाश में वे शहरों की ओर आते हैं। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के वनों में लगी आग के कारण वहां के रहने वाले 50 करोड़ जीव - जंतु मारे गए। प्रभावित होने वाले जंतुओं में मुख्यतः कोआला और कंगारू थे। वनों की मिट्टी में मौजूद पोषक तत्त्वों में भी भारी कमी आती है और उन्हें वापस प्राप्त करने में भी लंबा समय लगता है। वनाग्नि के परिणामस्वरूप मिट्टी की ऊपरी परत में रासायनिक और भौतिक परिवर्तन होते हैं, जिसके कारण भू-जल स्तर भी प्रभावित होता है।
इससे आदिवासियों और ग्रामीण गरीबों की आजीविका को भी नुकसान पहुँचता है। आँकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग 300 मिलियन लोग अपनी आजीविका के लिये वन उत्पादों के संग्रह पर प्रत्यक्ष रूप से निर्भर हैं। वनों में लगी आग को बुझाने के लिये काफी अधिक आर्थिक और मानवीय संसाधनों की ज़रूरत होती है, जिसके कारण सरकार को काफी अधिक नुकसान का सामना करना पड़ता है।
वनाग्नि से वनों पर आधारित उद्योगों एवं रोज़गार की हानि होती है और कई लोगों की आजीविका का साधन प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है। इसके अलावा वनों पर आधारित पर्यटन उद्योग को भी खासा नुकसान होता है। पिछले कुछ वर्षों में कैलिफोर्निया, ऑस्ट्रेलिया और भूमध्य के क्षेत्र में वनाग्नि के कई मामले देखे गए हैं। ऐतिहासिक रूप से ये क्षेत्र गर्म एवं शुष्क वातावरण के लिये जाने जाते हैं परंतु जलवायु परिवर्तन के कारण ये क्षेत्र और अधिक गर्म तथा शुष्क हुए हैं। जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप इन क्षेत्रों में तापमान बढ़ने के साथ-साथ वर्षा में कमी आई है।
विश्व के विभिन्न देशों खासकर भारत में वनाग्नि से निपटने के लिये उपयुक्त नीतियों का अभाव है, वनाग्नि प्रबंधन से संबंधित स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं हैं। ज्ञात हो कि वर्ष 2017 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) ने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से इस संदर्भ में राष्ट्रीय स्तर पर एक नीति के निर्माण के लिये कहा था, किंतु अब तक इस दिशा में कोई कार्य नहीं किया गया है। वनाग्नि से निपटने के लिये फंड की कमी भी एक बड़ी चुनौती है।
आँकड़ों के मुताबिक, अधिकांश वनाग्नि की घटनाएँ मानव निर्मित होती हैं, जिनका पूर्वानुमान लगाना अपेक्षाकृत कठिन होता है। वनाग्नि को जलवायु परिवर्तन का एक महत्त्वपूर्ण आयाम मानते हुए इससे निपटने के लिये हमें वैश्विक स्तर पर नीति निर्माण की आवश्यकता है, जो वनाग्नि और उससे संबंधित विभिन्न महत्त्वपूर्ण पहलुओं को संबोधित करती हो। वनाग्नि प्रबंधन के संबंध में कई देशों द्वारा कुछ विशेष मॉडल प्रयोग किये जा रहे हैं, आवश्यक है कि अन्य देश भी इन्हें अपने अनुसार परिवर्तित कर प्रयोग में लाएँ। वनाग्नि का पता लगाने के लिये रेडियो-ध्वनिक साउंड सिस्टम (Radio-Acoustic Sound System) और डॉप्लर रडार (Doppler Radar) जैसी आधुनिक तकनीकों को अपनाया जाना चाहिये। ताकि वनाग्नि से होने वाले नुकसान से बचा जा सके।
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लेखक परिचय
*नाम - डॉ दीपक कोहली
*जन्मतिथि - 17 जून, 1969
*जन्म स्थान- पिथौरागढ़ ( उत्तरांचल )
*प्रारंभिक जीवन तथा शिक्षा - हाई स्कूल एवं इंटरमीडिएट की शिक्षा जी.आई.सी. ,पिथौरागढ़ में हुई।
*स्नातक - राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, पिथौरागढ़, कुमायूं विश्वविद्यालय, नैनीताल ।
*स्नातकोत्तर ( एम.एससी. वनस्पति विज्ञान)- गोल्ड मेडलिस्ट, बरेली कॉलेज, बरेली, रुहेलखंड विश्वविद्यालय ( उत्तर प्रदेश )
*पीएच.डी. - वनस्पति विज्ञान ( बीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान, लखनऊ, उत्तर प्रदेश)
*संप्रति - उत्तर प्रदेश सचिवालय, लखनऊ में उप सचिव के पद पर कार्यरत।
*लेखन - विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लगभग 1000 से अधिक वैज्ञानिक लेख /शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं।
*विज्ञान वार्ताएं- आकाशवाणी, लखनऊ से प्रसारित विभिन्न कार्यक्रमों में 50 से अधिक विज्ञान वार्ताएं प्रसारित हो चुकी हैं।
*पुरस्कार-
1.केंद्रीय सचिवालय हिंदी परिषद नई दिल्ली द्वारा आयोजित 15वें अखिल भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार, 1994
2. विज्ञान परिषद प्रयाग, इलाहाबाद द्वारा उत्कृष्ट विज्ञान लेख का "डॉ .गोरखनाथ विज्ञान पुरस्कार" क्रमशः वर्ष 1997 एवं 2005
3. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ,उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा आयोजित "हिंदी निबंध लेख प्रतियोगिता पुरस्कार", क्रमशः वर्ष 2013, 2014 एवं 2015
4. पर्यावरण भारती, मुरादाबाद द्वारा एनवायरमेंटल जर्नलिज्म अवॉर्ड्, 2014
5. सचिवालय सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजन समिति, उत्तर प्रदेश ,लखनऊ द्वारा "सचिवालय दर्पण निष्ठा सम्मान", 2015
6. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा "साहित्य गौरव पुरस्कार", 2016
7.राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान ,उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा "तुलसी साहित्य सम्मान", 2016
8. पर्यावरण भारती, मुरादाबाद द्वारा "सोशल एनवायरमेंट अवॉर्ड", 2017
9. पर्यावरण भारती ,मुरादाबाद द्वारा "पर्यावरण रत्न सम्मान", 2018
10. अखिल भारती काव्य कथा एवं कला परिषद, इंदौर ,मध्य प्रदेश द्वारा "विज्ञान साहित्य रत्न पुरस्कार",2018
11. पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, उत्तर प्रदेश, लखनऊ द्वारा वृक्षारोपण महाकुंभ में सराहनीय योगदान हेतु प्रशस्ति पत्र / पुरस्कार, 2019
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डॉ दीपक कोहली, पर्यावरण , वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग उत्तर प्रदेश शासन,5/104, विपुल खंड, गोमती नगर लखनऊ - 226010 (उत्तर प्रदेश )
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