नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020 - प्रविष्टि क्र. 27 - गलियों का राजा - प्रतिभा जोशी

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रचनाकार.ऑर्ग नाटक / एकांकी / रेडियो नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020

प्रविष्टि क्र. 27 - गलियों का राजा

प्रतिभा जोशी

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गलियों का राजा

पात्र परिचय

पात्र : माधवजी ( दादाजी)

विमल (माधवजी का बेटा)

मधु ( माधव की पत्नी )

चेतन ( माधवजी का बेटा)

रोहन (चेतन का दोस्त )


(प्रथम दृश्य )

विमल :“सुनो, चेतन कहाँ है ?” ऑफिस के लिए जाते जाते विमल ने मधु से पूछा।

मधु : “जी, वो स्कूल के लिए तैयार है और वैन आने का इतंजार कर रहा है बाहर गली में खड़ा हो कर।” मधु किचन से हाथ में विमल के लिए टिफिन लेकर निकली।

माधवजी : “विमल, तू ऑफिस जा बेटा। तेरा बेटा तो गलियों का राजा है। स्कूल बैग आँगन में रख अपनी साइकिल ले गया और गली में चला रहा होगा तेज तेज। पांचवीं कक्षा में है लेकिन बुद्धि पांच साल के बच्चे जितनी ही है”, माधव जी अख़बार पढ़ते पढ़ते बोले।

विमल : “आप भी पापा, अभी छोटा है। सीख जायेगा सब।” विमल मधु से टिफिन लेते हुए बोले,

विमल : “मधु, अपने गलियों के राजा बेटा को बुला लो। वैन चली गई तो उसकी छुट्टी हो जाएगी स्कूल की।”

मधु मुस्कुरा दी और गली में चेतन को बुलाने चली गई।

मधु : “चेतन, चेतन जल्दी आ जा बेटा, तेरी वैन आ जाएगीं। देख पापा ऑफिस चले गए है और वैन चली गयी तो तेरी छुट्टी हो जाएगीं।”

चेतन मधु के बुलाने पर तेजी से साइकिल चलाता हुआ आया और साइकिल को आंगन में खड़ी की। तब तक वैन भी आ गई और वो वैन में बैठ स्कूल चला गया।

यही रूटीन रहता सुबह का जो सब का भाग दौड़ में बीत जाता। चेतन के स्कूल से लौटने से रात सोने जाने तक का समय दोनों दादा पोते का होता जिसे मधु कभी मुस्कुरा के तो कभी मन मसोस के चुप रह कर निभा जाती। चेतन की साइकिल और उसकी क्रिक्रेट बॉल ये दोनों ही चेतन जितनी ही नासमझ थीं। साइकिल शरीर पर चोट देती हालांकि लोगों को कम चेतन को ज्यादा। बॉल न घर देखती न अड़ोस-पड़ोस, बस सामान तोड़ कर ही दम लेती थी। बॉल वापस तो मिल जाती लेकिन जो डांट पड़ती उससे चेतन की हिम्मत उस दिन थोड़ा पस्त हो जाती। दादाजी की डांट तो रात सोने तक बार बार कभी तेज तो कभी धीमी हो जाती लेकिन चेतन के पापा को देखते ही वे पुनः उग्र हो उठती। विमल से उसकी तेज वाली डांट पड़वा कर ही वे शांत होते।

(दृश्य दूसरा)

आज फिर साइकिल के टायर में पंचर कर लाने में दादाजी उसे डाटने लगे।

माधवजी : “चेतन, तू फिर पंचर कर लाया साइकिल में। तेरी साइकिल तो मैं छत पर ताला लगा कर रख देता हूँ फ़िर देखता हूँ तेरी शेतानियाँ। मधु, बेटा तू इसे डाटती नहीं हो। बेचारा चेतन रात तो थका मारा आता है और इसके कारनामें सुनकर दुखी हो जाता है।”

माधवजी साइकिल लेकर उसका पंचर बनवाने गए।

चेतन को उदास देख मधु ने उसे एक डायरी दी और बोली :

“चेतन, बेटा शैतानी तो करता है न ? डांट तो पड़ेगी और अगर मैं बीच में बोली तो मेरी भी डांट पड़ जाएगीं। लेकिन बेटा तू वो काम मत करा कर जिससे कुछ बुरा हो और जब कभी तेरी डांट पड़े तो उदास होने की जगह बेडरूम में आकर इस डायरी में लिख दिया करे कि आज तेरी की डांट क्यों पड़ी और वो क्या सोच रहा है इस समय।”

बस फ़िर क्या था जब चेतन से कुछ नुकसान होता और उसकी डांट पड़ती तो वो दौड़ कर बेडरूम में आता और डायरी खोल कर लिख देता। घर में अब सब यह जान गए कि चेतन डायरी लिखता है लेकिन क्या लिखता है यह कोई नहीं जानता था।

तीसरा दृश्य

कांच का गिलास टूटने की आवाज़ आते ही विमल अख़बार पढना बंद करके ज़ोर से बोला,

: “चेतन ! फ़िर कुछ तोड़ दिया ! कितनी बार कहा है कि बाहर आँगन में खेला कर रविवार के दिन। मेरी पूरी छुट्टी ख़राब कर देता है।”

चेतन एक हाथ में बॉल थामे दूसरे हाथ से टूटे गिलास के टुकड़ों को उठाने के लिए झुक ही रहा था कि विमल ने उसका हाथ थाम लिया।

विमल : “मधु ! मधु झाड़ू लेकर आओ, तुम्हारे लाल ने गिलास तोड़ दिया। मेरा मूड ख़राब कर दिया सुबह सुबह।” विमल बोल ही रहा था कि माधव जी मॉर्निंग वॉक से लौटे थे और अपने जूते खोल ही रहे थे। उन्हें विमल की यह बात सुनाई दी बस फ़िर उन्होंने बोलना शुरू किया,

माधवजी : “विमल, तेरा बेटा चैन से नहीं बैठ सकता। वो नहीं जानता कि तुझे सिर्फ़ रविवार ही आराम के लिए मिलता है और बस इसका खेलना जारी रहता है। मैं कैसे इसके स्कूल के लौटने पर इसके साथ दिन बिताता हूँ मैं ही जनता हूँ।”

विमल ने माधव जी की बात सुनते ही चेतन को गुस्से में जोर से डांटा और एक थप्पड़ भी उसके गाल पर लगा दिया। चेतन की आँखों में आंसू आ गए क्योंकि अब तक उसके पापा सिर्फ डांटते थे लेकिन आज उसे थप्पड़ मार दिया। मधु टूटे ग्लास के टुकड़ो को उठाने के लिए हाथ में झाड़ू लेकर आई और चेतन को रोते हुए बेडरूम में जाता देख वो मौन होकर सफाई करने लगी।

चेतन बेडरूम में रोते हुए आया और स्कूल बैग में से अपनी डायरी निकली और आज पहली बार उसने डायरी में लिखा, “मेरे दादा राक्षस हैं।” अब तक तो वो डांट पड़ने पर डायरी में लिख देता था कि आज दादा ने उसकी डांट पड़वा दी और तारीख भी लिख देता था लेकिन आज वो थोड़ा ज्यादा ही गुस्से में था।

शाम को गली में क्रिकेट खेल कर आने के बाद चेतन का गुस्सा भी काफूर हो गया और रोज की तरह दादा से मस्ती करने लगा। मधु जानती है कि उसके दादा उसे कितना चाहते हैं। तभी तो वो गर्मियों की छुट्टियों में तीन चार दिन के लिए ही जाती वर्ना पांचवे दिन तो उसके दादा उसे लेने ही आ जाते।

रोज की तरह चेतन स्कूल वैन का इतंजार करते हुए अपनी साइकल गली में तेज़ी से चला रहा था कि सामने से आ रही कार से टकरा गया। उसे जमीन पर गिरा और हाथ पैरों से खून निकलता देख उसका दोस्त रोहन दौड़ कर विमल को बुलाने चला गया।

रोहन : “अंकल, अंकल ! जल्दी चलो। चेतन का एक्सीडेंट हो गया है कार से।” हांफते हांफते बोल कर वो विमल का बाहर आने इंतजार करने लगा। मम्मी, पापा और दादा तीनों ही भाग कर बाहर आ गए और उसके साथ चेतन के देखने दौड़ पड़े। खून से सना चेतन लोगों से घिरा हुआ था। चोट काफी थी लेकिन भगवान का शुक्र था कि गहरी नहीं थी लेकिन था तो बच्चा ही न, इसलिए डर गया और सहम गया।

विमल मधु और अपने पड़ोसी मित्रों के साथ चेतन को गोद में लिए हॉस्पिटल चला गया और माधव जी उसकी टूटी साइकिल लिए उदास मन से घर आ गए।

मधु ने माधव जी को हॉस्पिटल से फ़ोन किया तो इसी इन्तजार में बैठे माधवजी ने झट से फ़ोन उठाया।

मधु : “पापाजी, चेतन ठीक है। आप चिंता मत करना। हम बस कुछ देर में आ ही जायेंगे। आप तो चेतन के स्कूल बैग में से उसकी स्कूल डायरी निकाल कर उस पर लिखे स्कूल के फ़ोन नंबर पर चेतन के एक्सीडेंट के बारे में बता दीजिए। स्कूल में परीक्षाएं चल रही हैं तो वो मैनेज करेंगे आगे के लिए। अच्छा पापाजी, मैं फ़ोन रखती हूँ।”

माधव जी सोफ़े पर रखे स्कूल बैग में डायरी देखने लगे तो पहले उसका टिफिन निकला और उदास हो कर उन्होंने उसे टेबल पर रख दिया। डायरी ढूंढते हुए उन्हें वो डायरी हाथ आई जिसमें चेतन डांट पड़ने पर अपना गुस्सा जाहिर करता था। डायरी खोल माधव जी पढने लगे।

“आज मेरे दादाजी ने मेरी मम्मी से डांट पड़वा दी।”

“आज मेरे दादाजी ने मेरे पापा को उकसाया कि वे मुझे डांटें।”

हर पेज पर चेतन ने तारीखें डालते हुए दादाजी के बारे में लिखा हुआ था और एक पेज पर तो लिखा देखा “मेरे दादा राक्षस हैं।” माधवजी यह देख कर फफक पड़े और उन्हें टूटी साइकल के पास खून से सना चेतन का चेहरा याद आया। उन्होंने मधु को फ़ोन किया और बोले

माधवजी : मैं भी एक बार हॉस्पिटल आ रहा हूँ बेटा।


दृश्य चौथा

अब माधव जी चेतन की शैतानियों पर विमल के डाँटते समय चुप रहने लगे। एक दिन चेतन घर के अन्दर क्रिकेट बॉल से खेल रहा था और बॉल नए टीवी की स्क्रीन पर लगी। रात विमल के आने तक घर में सन्नाटा रहा। विमल ने न्यूज़ के लिए जैसे ही टीवी चलाया तो टीवी की दुर्दशा देख जोर से बोला,

विमल : ”चेतन ! हद कर दी। आज तो टीवी तोड़ दिया। अभी तो इसकी किश्ते भी पूरी नहीं हुई हैं।”

माधवजी ने दूर सहमे खड़े चेतन को देखा तो बोल पड़े,

माधवजी : “विमल, टीवी तो बेटा मुझसे ही टूट गया। मैं अपना चश्मा टीवी की टेबल पर रखने जा रहा था तभी मेरा पैर थोड़ा स्लिप हुआ और मेरा हाथ जोर से टीवी की स्क्रीन पर पड़ गया।”

विमल : “कोई बात नहीं पापा, लेकिन आप के चोट तो नहीं लगी”, कहते हुए विमल माधव जी के पास आ कर उनके पैर दबाने लगा। दादा जी मुस्कुरा दिए और यहाँ दोनों माँ बेटों के उदास चहेरों पर मुस्कान आ गई।

रात चेतन विमल से बोला,

चेतन : ” पापा, मेरे दादा दुनिया के सबसे अच्छे दादा हैं, बस मुझे उनकी एक बात अच्छी नहीं लगती, वो मुझे हमेशा गलियों का राजा कहकर चिढ़ाते हैं। पापा, मैं अब दादा के साथ ही सो जाया करूँगा। अब मैं बड़ा हो गया हूँ।” कहते हुए बैड पर रखा अपना तकिया और चादर लिए चेतन दादा के कमरे की ओर चला ही था कि विमल बोला

विमल :” रुक चेतन, तू बड़ा तो हो गया है लेकिन मैं तो बड़ा ही हूँ ना। गलियों के राजा बेटा, टीवी की स्क्रीन तूने ही तोड़ी है न।” विमल मुस्कुराया तो चेतन भी सर नीचा किये मुस्कुराने लगा।

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रचनाकार: नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020 - प्रविष्टि क्र. 27 - गलियों का राजा - प्रतिभा जोशी
नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020 - प्रविष्टि क्र. 27 - गलियों का राजा - प्रतिभा जोशी
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