अरे अजय,जल्दी कर जाने के लिए लेट हो रहा है, 5 बज गया है,सिर्फ आधे घंटे के अंदर मुझे स्टेशन पर पहुंचना होगा" मैं ने कहा। अजय मेरा रूम म...
अरे अजय,जल्दी कर जाने के लिए लेट हो रहा है, 5 बज गया है,सिर्फ आधे घंटे के अंदर मुझे स्टेशन पर पहुंचना होगा" मैं ने कहा।
अजय मेरा रूम मेट था
हम दोनों पिछले एक साल से पटना रह कर जेनरल की तैयारी करते है।
वैसे मैं कभी एक महीने में एक बार और कभी 2 -3 बार भी गांव से घूम आता हूं।
मैं इस महीने 10 तारीख को ही गांव से आया हूं।
फिर से गांव जा रहा था।
सुबह ही भाभी का कॉल आया उन्होंने कहा कि
" बाबू,मेरी बहन आई हुई,उसका एग्जाम चल रहा है, एग्जाम दिलवाने ले जाना है।
मैं सोया और सोया ही रह गया,जब उठा तब 5 बज गया था, अजय बाथ रूम में था।
अब आगे...
मैं अपने रूम से बाहर आया ,वहीं माहौल था,इधर से उधर आती जाती गाडियां,उनका हॉर्न
पैदल चलते लोग,
कोचिंग सेंटर से लौटकर आते जाते लड़के लड़कियां,
यहीं नजारा होता है बाहर का
जब मैं नया नया शहर में रहने आया था,तब मुझे इस माहौल से थोड़ी प्रॉब्लम हो रही थी।
अब धीरे धीरे इन सब का आदत पड़ गया।
मैंने एक ऑटो को रुकाया और बैठ गया।
उसे रेलवे स्टेशन जाने को कह दिया।
ऑटो में पहले से ही अंकल टाइप के दो लोग बैठे थे,
उनके बातचीत से लगा कि जैसे वो किसी सरकारी
दफ्तर में काम करते हो।
मैं अपना मोबाइल और हीडफोन कान में लगाया...
और मैं ऐसे ही इक सोंग चला दिया...
" थोड़ी थोड़ी कथई सी उसकी आंखें
थोड़ी सुरमे भरी
उसके होठों पे मुस्कुराए हाए दुनिया मेरी
"
बस खो गया अपने दुनिया में....
जब मैं अकेले होता था तब इसी गाने को सुन कर खुश हो जाता था।
लेकिन आज कल इस गाने को सुनने का एक ख़ास वजह था....
*** *** ***
कहते है न भगवान जब देता है एक साथ सब कुछ दे देता है।
उन दिनों पटना रहते रहते मैं अपना पहला क्रश से मिला था...
वो पहली लड़की जिस दिल आया था...
आज वो भी मेरे साथ गांव जाने वाली थी।
भाभी के फोन आने के तुरंत बाद उसका भी फोन आया था,
मैं अभी उसके नंबर को किसी भी नाम से नहीं सेव किया था...
क्यूंकि मुझे लगता था हमारे बीच ऐसा वैसा कुछ है ही नहीं तब इस को नाम क्यों देना?
*** **** ****
इक दिन छुट्टी था हैं , मैं और अजय घूमने गए ।
भले मैं पटना में रहता हूं।
लेकिन अभी तक मैंने पटना देखा नहीं था।
मुझे जाने का भी मन नहीं करता और कभी टाइम नहीं मिलता।
तो उस दिन घूमने का प्लान अजय का था।
घूमने के दौरान इतिफाक से हमारी मुलाकात हुई।
मैं तो देखते ही पहचान गया।
वहीं लड़की है,डिज़ाइनर आई ब्रो,नाक में उसी डिजाइन का थोप,
बाल बांधने का वहीं पुराना स्टाइल,
पूरी दुनिया के लिए उसका वह पुराना स्टाइल मगर उस की पहचान उसी से थी।
ढेर सारा सामान खरीदी थी...
दोनों हाथ फूल था.... उस दिन सालों बाद उसको वहां पे देखा। एक हल्की नजर उसने भी मुझ पे डाली थी,
नैनो सेकंड के लिए हमारा आई कॉन्टेक भी बना था।
मैंने उस दिन उसे सीरियसली नहीं लिया ।
बस घूम कर रूम पे आ गए।अजय भी उसे पहचान आ रहा था। अजय ने उसका नाम लेकर मेरी खिंचाई भी की थी।
" अमित की,एक्स उसे पहचानती भी नहीं है,
अमित की एक्स उसे पहचानत भी नहीं है"
मैंने कहा ऐसा वैसा कुछ नहीं था। उस टाइम उसे भी कुछ मालूम नहीं होगा मुझे भी मालूम नहीं होगा"
अगले दिन फिर से मिली।
तीसरे दिन भी मिल गई। जब चौथे दिन दिखी तो मैंने अंदाज़ लगा लिया था...वह भी अगली गली रहती है।
मुझे ताज्जुब हुआ लड़की है,
शहर में अकेली कैसे रह लेती होगी।
मुझे ठीक से याद है,5वे दिन जब बाजार में मिला तो उसने खुद मुझे बुला पूछा
" अमित,यही पे रहते हो?"
मैंने कहा, हां ,हाथ से इशारा करते हुए बोला
" यहां से दो कदम जाने पे जो चाय की दुकान नहीं उसके बाद वाला 10 वाला मेरा है."
उसने कुछ मजाकिया लहजे हंसते हुए ,रहने दो
इतना मत घुमाओ।
मैं ने कहा भी यही पे रहती हो।
उसने कहा," अभी 5 दिन ही तो हुए है"
उस दिन जब तुम मार्केट में मिले थे उस दिन आए और खरीदारी के लिए गए।
" तुमने मुझे उस दिन पहचाना नहीं क्यू"
उसके कहने के अंदाज़ से ऐसा लगा वो मुझ पे हक जता रही थी। लेकिन अच्छा लगा
" पहचान लिया था,पर?"
" पर ,पर क्या होता है?"
" मुझे लगा तुम कहीं गलत ना समझ जाओ"
"हा छोड़ो ऐसा कुछ नहीं है" उसने कहा
"आज भी मैं नहीं बात करती तो तुम मुझसे बात नहीं करते "
"करता ,पर"
"फिर, पर पे अटक गए "
तुम्हे पर पे अटकने की बीमारी अभी नहीं गई।
*** *** ****
हाई स्कूल में हमारे प्यार के चर्चे सबके जुबान पे रहते।
सारे दोस्त मुझे उसका ताना दे कर चिढ़ाते थे।
रात में वो अपनी मम्मी के मोबाइल से चुपके से फोन करती तो दिन के सारे काले, सफेद , हरे,पीले चिट्ठे उसके सामने खोल देता था।
उस समय भी मैं बात करते करते *पर पर आ कर रुक जाता था।
वो फिर मुझे टोक देती थी।
जब उसको बताया कि दोस्त मुझे ताना मार चिढ़ाते है तुम्हारे नाम का ताना देकर।
तब उसने भी बताया कि जब वह ही अकेले जाती है....तब मेरा सबसे बेलुरा दोस्त राज उसको सुना कर अमित कह के चिल्लाता और सर अपना घुमा लेता है।।
उस दिन और यकीन हो गया कि " हर एक फ्रेंड कमीना होता है"
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लेकिन इस सब को बीते हुए एक अरसा हो गया।
उसे अभी भी वो बात याद है.....
इस प्रकार लगातार उसे एक महीने तक मिलना जुलना चालू रहा।
वो किसी और के साथ रिलेशनशिप में थी और मैं अपनी नई सैटिंग के साथ खुश था।
नॉर्मल बाते होती रही। एक बात और हम दोनों के पास एक दूसरे का नंबर था।
बस बात नहीं होती थी।
उसी मिलने के दौरान एक जब मैं अपना फोन अपनी हाथ में लिए हुए था..
अजय का फोन और मैंने उठाया..
उसने वॉल पेपर देख कर बोला
" यह कौन है?"
"मेरी छोटी भाभी की बहन है"
"इससे बात करते हो"
"हा,अभी महीने से बात रही हो,
भाभी कहती उसी से शादी करा देगी"
"अच्छी तो शादी कर लेना,उससे प्यार करते हो?"
उसने जब प्यार कहा तो मैं सहम गया।
मैं प्यार करता हू ।
मैं हां में सर हिलाया।
तब उसने भी अपना मोबाइल निकाला
" यह डीजे है,दिल्ली में यूपीएससी की तैयारी करता है, और हम 2 साल से रिलेशनशिप में है।
मैं सिर दूसरी साइड में कर के हंस रहा था
उसने मुझसे हंसने का कारण पूछा, मैं अपना मुंह बनाते हुए कहा ," डीजे ,कैसा नाम है,"
" ओ सोरी ,डीजे का मतलब है धनंजय"
हमलोगों के बीच में जो था वो कब का खत्म हो गया था।
फिर एक बेनाम रिश्ता बन गया।
हम दोस्त भी थे और नहीं भी....
उससे बातें कर के मुझे समझ में आ गया..
हर रिश्ते के लिए जरूरी नहीं है कि प्यार ही होना चाहिए...दोस्ती होनी चाहिए...
प्यार और दोस्ती के परे भी कई सारे रिश्ते ऐसे होते हो...
जिनको हम चाह कर भी कोई नाम नहीं दे सकते..
वो रिश्ते पाक और पवित्र होते है......
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मेरे मोबाइल वाइब्रेट करने लगा।
मोबाइल निकाला तो देखा वहीं है...
ऑटो रेलवे स्टेशन के पास पहुंच गई। मैं सीधे इंटर गेट पे गया तो देखा वो वहीं खड़ी है।
बस इतनी सी है ये कहानी
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Writer - Raj
From - Gopalganj (Bihar)
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