महाश्वेता देवी : सामाजिक प्रतिबद्धता और लेखकीय प्रतिश्रुति -- डॉ रानू मुखर्जी

SHARE:

महाश्वेता देवी : सामाजिक प्रतिबद्धता और लेखकीय प्रतिश्रुति -- डॉ रानू मुखर्जी o महाश्वेता देवी का नाम ध्यान में आते उनके व्यक्तित्व की अनेक ...

महाश्वेता देवी : सामाजिक प्रतिबद्धता और

लेखकीय प्रतिश्रुति -- डॉ रानू मुखर्जी

o महाश्वेता देवी का नाम ध्यान में आते उनके व्यक्तित्व की अनेक छवियां आंखों के सामने उभरकर आती हैं। उन्होंने मेहनत इमानदारी के आधार पर अपने व्यक्तित्व को निखारा। अपने को एक पत्रकार , लेखक साहित्यकार और आन्दोलनधर्मी के रूप मे विकसित किया। वह उन लेखिकाओं में से थी जिन्होंने लेखन के साथ - साथ सामाजिक कार्य के लिए अपना अधिकांश समय व्यतीत किया। अपने लेखन से अधिक महत्व उन्होंने झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के आदिवासियों और संघर्ष रत लोगों को दिया। अपने लेखन में इन्हीं लोगों को उन्होंने अधिक प्राथमिकता दी है । उनका संघर्ष, उनका सामाजिक अधिकार आदि ही उनके लेखन का माध्यम बना। उनका कहना था, " मैंने हर संघर्ष में हर बार अपने शरीर को झोंका है। और यह संघर्ष यह लडाई केवल मानवीय अस्मिता और मानवाधिकार की रक्षा के लिए नहीं यह तो मनुष्य होने, मनुष्य बने रहने का संग्राम है ।" महाश्वेता जी की अभिव्यक्ति में सादापन , मार्मिकता और मारकता होने के कारण लेखन में निर्भीकता की प्रधानता रही।

नक्सल आन्दोलन की एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रही है। मूलतः वह सामाजिक असमानता से जुडी हुई समस्या थी । किसानों और किसानों से जुड़ी जमीन की समस्या। लगान , कर्ज , सूद ,बेदखली , बंधुआ मजदूरी , बाल मजदूरी , और फिर जमीन पर मालिकाना हक जताने का जमींदारी षड्यंत्र। भूमि कानून को जबरदस्ती लागू करने के विरोध में बंगाल के " तेभागा आन्दोलन " की बहुत बडी भूमिका रही, पर सही रूप से लागू न होने के कारण असफल रही। अत: कृषी जमीन से बेदखल , फसल पर अधिकांश भाग पर जमींदारों का कब्जा , जोतदार और साहूकार के कब्जे और ऋणभार तथा बाढ और सूखे के कारण बेरोजगारी और भुखमरी और काम न मिलने पर की मजबूरी ने किसानों को विद्रोही बनने पर मजबूर कर दिया। समस्या को समझने का व्यवस्था ने कोई प्रयास नहीं किया। धीरे-धीरे यह आग जनाक्रोश में बदल गई । जो इसके शिकार थे वे, उनके मन में पीढियों तक का आक्रोश जमा था। इसकी शुरुआत बंगाल से हुई - - और नक्सल आन्दोलन वहाँ के किसानों को कृषि जमीन से बेदखल और आदिवासियों को उनकी जमीन और जंगलात से बेदखल करने का नतीजा था। यही जनाक्रोश शहर मे भी फैला , क्योंकि शहरी युवकों के पास काम नहीं था । महाश्वेता जी ने अपने उपन्यास " हजार चौरासी माँ " ( कैदी नम्बर 1084 की माँ ) के अन्तर्गत गाँव और शहरों में फैली इसी जनाक्रोश को प्राथमिकता दी है ।इस उपन्यास में उन्होंने 70 वे दशक में उस समय के नौशाद आन्दोलन को आधार बनाया है।

o कथा, ब्रती के जन्म दिन से शुरू होती है। सुजाता, ब्रती की माँ , उसके बचपन के दिनों को याद करती हुई सोचती बैठी रहती है। सुजाता ब्रती के मित्रों से मिलती है और प्रमाण करना चाहती है कि ब्रती के विद्रोही कार्य, समाज हितार्थ था और लोगों की भलाई के लिए ही था। संपूर्ण कथा उसके चारों ओर घुमाती रहती है और उसे एक सशक्त महिला के रूप में प्रतिष्ठित करती है जो समाज विरोधी कार्य के लिए विरोध करती है , अधिकारों के प्रति सजगता और उस का हनन होने पर विद्रोह। वह लोगों से कहती है वो उसके बेटे को भूल जाएँ, क्योंकि उसके पुत्र के जैसे लोग समाज में कैन्सर के जैसे हैं ( अर्थात अन्याय अत्याचार का विरोध करने वाले) जो बहुत जल्दी ही फैल जाते हैं। यह एक ऐसी माँ की कथा है जो बहुत दिनों के पश्चात अपने बेटे की मृत्यु का पर्दाफाश करती है जो कि एक राजनैतिक आन्दोलन है, जिसमें हर घर को साथ देना है। यह उपन्यास बंगाल के युवा वर्ग की असंतुष्टि , असहिष्णुता , राजनैतिक उठा पटक को बहुत स्पष्ट रूप से चित्रित करता है। यह महाश्वेता देवी जी की सामाजिक प्रतिबद्धता का ज्वलंत उदाहरण है। गोविन्द निहलानी जी निर्देशित " हजार - चौरासी की माँ " फिल्म इतिहास में अपना अलग मुकाम बनाती है । निहलानी जी का कथन इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है । " महाश्वेता जी का लेखन सादा , ताकतवर और सीधे हृदय की गहराइयों से आता है जो अनुभव का परिणाम है। उनका लेखन इतना सीधा - सरल है कि सीधा पाठकों के भीतर उतरता है। " हजार चौरासी की माँ " में जो मध्यवर्गीय किरदार है उन्हें मैं पहचान सकता था। उन्हें मैं कलकत्ता में सजीव ढंग से मूर्त कर सकता था। यह मेरे जीवन का महत्वपूर्ण फिल्म है।" कल्पना आजमी निर्देशित " रूदाली " भी कथा की सादगी और अभिव्यक्ति की महत्ता के लिए चर्चित रही। उन्होंने समाज की कुरीतियों, नारी के अधिकार हनन, अनाधिकृत सत्ता का प्रयोग आदि को अपनी लेखनी की विषय वस्तु के लिए चुना ।

o महाश्वेता देवी जी की 20 से अधिक कहानी संग्रह है और रचनाओं की संख्या सौ से अधिक है। उन्होंने बच्चों के लिए भी कलम चलाई। 60 के दशक में " मौचाका " नामक बांगला की बाल पत्रिका में लगातार लिखती रही। 70 के दशक में सत्यजित राय के आमंत्रण पर " संदेश " नामक बाल पत्रिका से भी जुड गई और उस पत्रिका में भी लिखती रही । बच्चों के लिए लिखी उनकी रचनाओं में कुतूहल , कल्पना , रोमांच , फैन्टसी का एक अद्भुत लोक है। जिससे बच्चे कल्पना लोक में विचरण करते थे। उनकी कहानियों मे माता पिता के साथ साथ जंगली जानवरों की भी प्रधानता हैं। एक कहानी में स्वयं महाश्वेता देवी एक छोटी माँ के रूप में रूपांतरित हो जाती है और माँ की तरह व्यवहार और कार्य करती है। इन कहानियों में गुलाब , जल , सूर्य , बागीचा , पिता , गाय , रिक्शा वाले और अति सामान्य चरित्रों को भी जगह-जगह देखा जा सकता है अर्थात बच्चों को एक असीमित दुनिया में ले जाती थी। उन्होंने बाल जगत के लिए भी उनकी अनेक रचनाएँ प्रकाशित की हैं।

o बिरसा मुंडा के जीवन पर केंद्रित उपन्यास " अरण्येर अधिकार " ( जंगल के दावेदार पर) पर महाश्वेता जी को वर्ष 1979 मे साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ। स्वतन्त्रता संग्राम के क्षेत्र में मुंडा जाति का लीडर था विरसा मुंडा जिसने आदिवासी समाज के उत्थान के लिए , अधिकार के लिए आवाज उठाई । उसने सदी की मोड पर ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध जनजातीय विद्रोह का बिगुल बजाया था । मुंडा जनजाति में समानता , न्याय और आजादी के आंदोलन का सूत्रपात बिरसा ने किया था। अंग्रेजों के समय में विहार और झारखंड जिले का सरदार बना ।जिससे उसे भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के क्षेत्र में विशेष स्थान दिया गया। केवल मात्र 25 वर्ष की उम्र उसने यह करामत कर दिखाया। एक मात्र आदिवासी है , विरसा मुंडा, जिसका चित्र पार्लियामेंट मे सम्मान के साथ रखा गया है। " अरण्येर अधिकार " के इस पुरस्कार के लिए आदिवासी समाज बहुत हर्षित हुआ था क्योंकि सरकारी रिकार्ड में " भूमिज" के रूप में दर्ज मुंडा आदिवासियों में इसी उपन्यास से अपने जाति के प्रति आत्मगौरव जागा था और उन्होंने अपनी अस्मिता के लिए संघर्ष किया। इन लोगों ने अंत तक उनका साथ दिया एक आत्मीय की तरह हर मोड पर उनका साथ दिया। यह उपन्यास मानवीय मूल्यों से सराबोर है। महाश्वेता जी ने मुख्य मुद्दे पर ऊँगली रखी अर्थात बिरसा का विद्रोह केवल अंग्रेजी शासन के विरुद्ध नहीं था , अपितु समकालीन सामंती व्यवस्था के विरुद्ध भी था। बिरसा मुंडा के इन पक्षों को सहेज कर साहित्य और इतिहास में प्रकाशित करने का श्रेय महाश्वेता जी को ही जाता है।

o उनकी इस प्रकार की रचनाओं में टेरीडेक्टिल, हजार चौरासी की माँ , सिन्धु कान्हुर डाके , बीश एकुश , चोट्टी मुंडा एवं तार तीर , आदिवासी कथा , नदी , द्रोपदी , स्तोनोदायिनी , झांसी की रानी अग्निशिखा आदि प्रमुख हैं। महाश्वेता देवी जी की 20 से अधिक कहानी संग्रह है और रचनाओं की कुल संख्या सौ से भी अधिक है। इंडियन एक्सप्रेस में दिए गए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था , " My work is my activism. "

o महाश्वेता देवी जी का जन्म चौदह जनवरी , 1926 में ढाका में हुआ । पिता मनीष घटक प्रतिष्ठित कवि और साहित्यकार थे। माँ को भी साहित्य में गहन रूचि थी। पिता उन्हें तुतुल नाम से पुकारते थे। बचपन से ही पढने - लिखने में उनकी गहरी रूचि रही। पिता जब जलपाईगुड़ी में थे तब तिस्ता नदी में ज्वार- भाटा देखा था। बहुत रोमांचक स्थिति थी । सिर तक पानी आ गया था। वही स्मृति बाद में " चोटी मुंडा और उसका तीर " लिखने के उपयोग में आई। " झांसी की रानी " महाश्वेता देवी की प्रथम गद्य रचना है। जो 1956 में प्रकाशित हुआ। उनके शब्दों में ," इसे लिखने के बाद मुझे समझ में आया कि मैं एक कथाकार बनूँगी। " इस पुस्तक को महाश्वेता जीने कोलकाता में बैठकर नहीं बल्कि सागर , जबलपुर , पुणे , इन्दौर ललितपुर के जंगलों , झांसी ग्वालियर, कालपी में घटित तमाम घटनाओं यानी 1857 -58 में इतिहास के मंच पर जो हुआ उस सब के साथ - साथ चलते हुए लिखा। अपनी नायिका के अलावा लेखिका ने क्रांति के तमाम अग्रदूतों और यहाँ तक कि अंग्रेज अफसर तक के साथ न्याय करने का प्रयास किया है।

महाश्वेता देवी का कहना है , " दरअसल मुझे मनुष्य ने , आम आदमी के प्रश्नों ने लेखन और फिर आन्दोलन के लिए प्रेरित किया। अनपढ़ आदिवासियों और अभावग्रस लोगों की पीडा ही मेरी शक्ति बनी । मैं उनकी कलम बन गई - - निहत्थे और " वाईएस लेस " ( voiceless) लोगों की । इसने मेरे संकल्प को हथियार थमा दिया। जहाँ बंधुआ मजदूर थे , आदिवासी थे, दलित थे , वहाँ हमने लोगों के सहयोग से और प्राप्त साधनों के द्वारा पिछले पन्द्रह सालों से एक ड्राइव चला रहे हैं - - बंगाल के मिदनापुर, पुरूलिया , खेडिया और आसपास के सूखा ग्रस्त इलाकों में। वहां के लोगों पर लगातार अत्याचार होते रहते हैं। " महाश्वेता जी वहाँ पर जाकर उन लोगों के लिए काम करती थी । उन लोगों के लिए लडती थी। उन लोगों में कपड़े , कम्बल , पुरानी चटाई आदि बांटती थी । इन दिनों वहाँ साल में एक बार बहुत बडा मेला लगता है - - शबर मेला । जहाँ हजारों की संख्या में लोग एक साथ मिल-जुल कर खाना खाते हैं , अपनी समस्याओं पर खुलकर चर्चा करते हैं , अपनी बनाई हुई चीजों को बेचते है । एक वर्ग विशेष के लोगों को उन्होंने समाज में पहचान दी, स्थान दिया। इससे बढ़कर समाज हितार्थ कार्य और क्या हो सकता है। 1979 में " अरण्येर अधिकार " के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिलने पर और आदिवासियों के उत्साह को देखकर उनको लगा कि आदिवासियों के बारे में उनका दायित्व और बढ़ गया है। उनके बारे में यथासंभव जानने की कोशिश जारी रखी। मुंडा विद्रोह , खेडिया विद्रोह पढ़कर चुप नहीं रही उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर लगातार उनके सुख दुख की सहयोगी बनी। उनका लेखन शोषित , वंचित , शासित आदिवासी समाज और उत्पीड़न दलितों में केन्द्रित हो गया। " चोट्टि मुंडा और उसका तीर " में महाश्वेता देवी पूछती हैं , " आदिवासियों के हित में कानून बने पर उसमें से लागू कितने हुए? क्या बंधुआ आदिवासी मुक्त हो गए ? बेगी प्रथा समाप्त हुई ? " आदि -आदि। इस उपन्यास को पढे बीना आदिवासी समाज की हकीकत को समझना मुश्किल है। " अमृत संचय " उपन्यास 1857 से थोडा पहले शुरू होता है । संथालों का अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत , निलकर को लेकर असंतोष और अपेक्षित वेतन न मिलने के कारण सेना भी नाखुश थी । उपन्यास इसी संधि स्थल से शुरु होकर तैतिस साल बाद वहाँ खत्म होता है जहाँ जन मानस में परिवर्तन नजर आने लगता है । देश - विदेश के करीब सौ पात्रों को समेट कर महाश्वेता जी ने इस उपन्यास में अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया है। " अमृत संचय" में प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जीवन के प्रति जो ललक है और प्रतिरोध की जो चेतना है उसपर महाश्वेता जी की बराबर नजर रही। महाश्वेता जी इतिहास , मिथक और वर्तमान राजनैतिक चेतना के ताने- बाने को संजोते हुए मानवीय पीडा को स्वर देती है। इस प्रकार से अपने उपन्यासों के माध्यम से संघर्ष , पीडा और इन सबसे उबरने की ललक प्रतिफलित होती है। " " तारार अंधार " में मध्यवृत लोगों की ट्रेजडी है , थोडी आशा है। " प्रेमतारा " सर्कस की पृष्ठभूमि पर लिखा प्रेम की कथा है पर फिर भी इसकी पृष्ठभूमि में सिपाही विद्रोह रहता है। " अक्लान्त कौरव " की कथा छोटी है पर इसमें अनेक विस्फोटक तथ्य छिपे हुए हैं। आदिम जनजातियों , प्रकृतिजीवियों के जीवन में उथल - पुथल मचाने वाले कपटी सभ्य समाज की जीवन की दूसरी विकृतियों को महाश्वेता जी ने निर्वस्त्र किया है।

o औ उनकी कुछ महत्वपूर्ण कृतियों में " नटी" , " मातृछवि " , " अग्निगर्भ " , " माहेश्वर " , " ग्राम बांगला " है। इन सबके बावजूद उनकी छोटी - छोटी कहानियों के बीस संग्रह प्रकाशित किए जा चुके हैं। और करीब-करीब सौ उपन्यास ( बांगला में) प्रकाशित हो चुके हैं।

o उपन्यासों की तरह कहानियों में भी इन जंगल के अधिकारियों के दर्द को प्रधानता दी है। अपनी कहानियों में समाज को शोषण , दोहन और उत्पीड़न से मुक्त कराते संघर्षशील नायकों का संधान करती हैं। इन संघर्षशील आदिवासी नायकों का संधान महाश्वेता जी की कहानी "बाढ " में बागदी के रूप में , "बायेन" में डोम , " शाम सबेरे की माँ " में पाखमारा , " शिकार" में ओरांव , , " बीज " में गंजू , " मूल अधिकार और भिखारी दुसाध " में दुसाध , " बेहुला में माल या ओझा और " द्रौपदी " में संथाल के रूप में सहज ही हो जाता है । यहाँ पर मै मेरी पसंदीदा कहानी " बांयेन " के विषय में बात करूंगी। इस कहानी में महाश्वेता जी अत्यंत मार्मिकता के साथ स्पष्ट करती हैं कि जो मुख्यधार से निर्वासित हैं, स्वयं अपने में से किसी व्यक्ति को समाज में से निर्वासित करते हैं तो वह निर्वासित स्री मनुष्येत्तर श्रेणी में पहुँच जाती है। उसे वह भी अपनी नियति मानकर कबुल भी करती है। चंडी बांयेन बन जाती है तो मलिंदर अपने बेटे भगीरथ से कहता है कि पहले वह मनुष्य थी तेरी माँ थी । भागीरथ को अपने पिता की बात समझ में नहीं आती है । वह अपनी माँ को मनुष्य ही मानता है बांयेन नहीं। जब वह बांयेन स्त्री अपनी आहुति देकर एक बडी रेल दुर्घटना को घटने से रोकती है तो आदिवासी समाज ठगा रह जाता है और भागीरथ जब देश और शासन के सामने अपना परिचय चंडी बांयेन के पुत्र के रूप में देता है तो कहानी अत्यंत मार्मिक हो जाती है। इस प्रकार की अनेक कहानियों के माध्यम से महाश्वेता जी बताती हैं कि संस्कार असामर्थ्य और डर आदिवासियों के मन और चरित्र पर भी असर डालते हैं।

o 1984 में प्रकाशित अपने श्रेष्ठ गल्प की भूमिका में लिखती हैं -- साहित्य को केवल भाषा शैली और शिल्प की कसौटी पर रखकर देखने के मापदंड गलत हैं। साहित्य का मूल्याकंन इतिहास के परिप्रेक्ष्य में होना चाहिये। किसी भी लेखक के लेखन को उसके समय और इतिहास के परिप्रेक्ष्य में रखकर न देखने से उसका वास्तविक मूल्यांकन नहीं किया जा सकता है। " बांयेन " कहानी में अपनी पत्नी को बांयेन घोषित कर समाज से बहिष्कृत करने में मलिदंर को जरा भी संकोच नहीं होता है। इस कहानी में यह बताया गया है कि हंसिए पर के लोग जब अपने समाज से किसी को बहिष्कृत करते हैं तो निर्वासित व्यक्ति उसे अपनी नियति मानकर कबुल कर लेता है और वही बहिष्कृत बांयेन आत्माहुति देकर एक बडी रेलदुर्घटना को रोकती है। " द्रौपदी " कहानी में द्रौपदी मेंझेन को पुलिस प्रशासन विश्वसघाती मजदूरों के साथ साजिश कर जंगल से पकड कर सेनापति के कैम्प में ले जाता है , द्रौपदी अपने दोनों घायल स्तनों से सेनापति को धक्का देती है और तब पहली बार सेनापति को नि:शस्त्र टारगेट के सामने खडा होने से डर लगता है , भयंकर डर। द्रौपदी की कहानी में जंगल और प्रशासन का संघर्ष है , उसी तरह " शिकार " कहानी कीपृष्ठभूमि भी जंगल ही है। " द्रौपदी " और " शिकार " एक ही कथा के दो पहलू हैं। द्रौपदी का रक्त विशुद्ध है उसमें कोई मिलावट नहीं । " शिकार " कहानी में मेरी उरांव का रक्त साहबी रक्त है। तहसीलदार सिंह द्वारा लगातार पीछा किए जाने से मेरी का धैर्य खत्म होने लगा था। रास्ते में एकबार तहसीलदार ने मेरी का हाथ जोर से पकड लिया और बोला " आज तुझे नहीं छोडूंगा " । मेरी को उसदिन तहसीलदार एक जानवर जैसा लगा। " खड्ड के पास होली के दिन" कह कर उसने उस दिन उससे अपना पिंड छुडाया। तहसीलदार मान गया और होली के दिन उसने तहसीलदार को खड्ड में धकेल दिया । सबसे बडे जानवर का शिकार करने के बाद अन्य चौपायों के बारे में जो डर मेरी उरांव के रक्त में समाया था , वह अब पूरी तरह गायब था।

" द्रौपदी " , " बीज " और " शिकार " कहानियों में विद्रोह के भाव , आत्मसम्मान की चेतना जागती दिखाई देती है। " गहरायी घटाएँ " और " ईंट के उपर ईंट " जैसे कहानी संकलन की कहानियों में वर्तमान समाज व्यवस्था में मनुष्य के संघर्ष का बहुत ही सार्थक चित्र खींचा है लेखिका ने। इनमें संघर्ष का स्वर कहीं मार्मिक है तो कहीं तीखा। " जगमोहन की मृत्यु कहानी" की कुछ पंक्तियाँ महत्वपूर्ण है - - पुलिस ने हमारी बेटियों की इज्जत ले ली। कहने से कोई मानता नहीं । महाजन बेगारी लेता है , कानून नहीं मानता। जंगल में गाय चराता हूँ, ईंधन बटोरता हूँ हमारा हक है। महाजन पानी नहीं देता। कुआं पंचायती है ।" महाश्वेता जी की कहानियों में सामंत ताकतों के शोषण , उत्पीड़न, छल - कपट के विरुद्ध पीढियों के शोषितों का संघर्ष अनवरत जारी रहता है। संघर्ष में मार खाने पर भी मार खाने वाला थक कर बैठता नहीं ।

पलामू के बंधुआ मजदूरों के बीच काम करते हुए महास्वेता जी ने कई तथ्य एकत्रित किए थे । उसी के आधार पर निर्मल घोष के साथ मिलकर उन्होंने " भारत के बंधुआ मजदूर " नामक पुस्तक लिखी । विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आदिवासी अंचलों के सुख - दुःख के बारे में उन्होंने समय समय पर जो लिखा है वो भी संकलित होकर पुस्तक रूप में छप चुकी है - - " डस्ट आन रोड " । उनकी टिप्पणियों के इस संकलन को उनके छोटे भाई मैत्रेयी घटक ने संपादित किया।

1980 में उन्होंने " वर्तिका " नामक पत्रिका का संपादन शुरु किया । इससे पहले उनके पिता मनीष घटक इसका संपादन करते थे। 1979 में पिता के निधन के पश्चात् महाश्वेता जी ने इस पत्रिका का चरित्र ही बदल डाला। इसमें छोटे छोटे किसान , खेत मजदूर , आदिवासी , कल कारखानों में काम करने वाले मजदूर , रिक्शा चालक अपनी समस्याओं और जीवन के बारे में लिखते थे । उन्होंने बंधुआ मजदूर , किसान , फेक्टरी मजदूर , ईंट - भट्ठा मजदूर , आदिवासियों को जमीन से बेदखल किए जाने और बंगाल के हरेक आदिवासी समुदाय पर " वर्तिका " के विशेष अंक निकाले। उन्होंने बंगला देश और अमेरिका के आदिवासियों पर भी विशेष अंक निकाले।

अपने जीवनकाल में ज्ञानपीठ , पद्मभूषण , साहित्य अकादमी , मैग्सेसे एवं अन्य अनेक सम्माननीय पुरस्कारों से सम्मानित महाश्वेता जी ने अपने जीवन में कई अलग-अलग लेकिन महत्वपूर्ण किरदार निभाएँ हैं। उन्होंने पत्रकारिता से लेखन , साहित्य , समाज सेवा एवं अन्य कई समाज हित से जुडे किरदारों को बखूबी निभाया।

बडौदा में प्रो. देवी ने महाश्वेता देवी जी के मार्गदर्शन में " भाषा " नामक एक संस्था की स्थापना की। जहाँ आदिवासियों की शिक्षा - दीक्षा स्वास्थ और रोजगार की विशेष तालीम के साथ साथ उनके भाषा संरक्षण पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। तेजगढ में स्थित इस संस्था में आजकल देश विदेश से विद्यार्थी आदिवासी भाषा पर शोधकार्य करने के लिए यहाँ आकर रहते हैं। आदिवासी संस्कृति के साथ-साथ इनके कलाकारी की संरक्षण व्यवस्था , रहन सहन , खान पान आदि पर भी शोध कार्य हो रहा है। उन दिनो जब महाश्वेता देवी जी बडौदा आती थी तब उनसे मिलने का सौभाग्य मिला था। इतनी गुणी, सम्मानित पुरस्कृत महिला ने मुझे ऐसे लिपटा लिया जैसे बरसों से हमारी पहचान हो। दो एकबार और भी मिलना हुआ । मैंने उनकी बांगला कहानियों का अनुवाद भी किया। लगातार फोन पर बातें होती। परिवार के बारे में ऐसे पूछती जैसे परिवार का एक हिस्सा हो। आत्मीयता उनके व्यवहार का अंग था। इनके लेखन के विषय में जितना लिखा जाय कम है। साहित्य इनसान को अमर बना देता है। वो आज हमारे बीच नहीं हैं पर लेखन के माध्यम से वह आज भी हमारे साथ है और आजीवन रहेगीं। अन्याय के विरुद्ध आवाज में वो हैं । पीडित शोषित वर्ग की पीडा में वो हैं। ज्ञानपीठ पुरस्कार लेते समय अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा, अधिकांश लोगों ने पत्र के माध्यम से यह संदेश दिया है , " यह आप नहीं हैं, हम हैं ।हमें ऐसा लग रहा है यह पुरस्कार हमें मिला है।" अपने अंतर की बात करते हुए उन्होंने कहा, " कब तक मै लोगों की प्रशंसा बटोरती रहूंगी जबकि अन्य किसी भी व्यक्ति से अधिक मै इस बात को जानती हूँ कि मुझे न केवल एक लेखक के नाते बल्कि ऐसे समाज का हिस्सा होने के नाते , जिसमें अभी भी बहुत कुछ बदला जाना है , कहीं अधिक काम करना चाहिए। " दक्षिण अफ्रीका गणराज्य के राष्ट्रपति महामहिम डॉ नेलसन मंडेला के हाथों पुरस्कार लेती हुई अभिभूत हुई थी। महाश्वेता जी के वक्तव्य से नेलसन मंडेला काफी प्रभावित थे। महाश्वेता जैसी शक्सियत कभी-कभार जन्म लेती हैं। उनके न रहने पर साहित्य की अपूरणीय क्षति हुई। उनको नमन।

Dr. Ranu Mukharji

A 303 Darshanam Central Park

Parasuramnagar , Sayajigaunj,

Baroda - 390020 . Gujarat.

Email - ranumukharji@ yahoo.co .in

--

परिचय – पत्र

नाम - डॉ. रानू मुखर्जी

जन्म - कलकता

मातृभाषा - बंगला

शिक्षा - एम.ए. (हिंदी), पी.एच.डी.(महाराजा सयाजी राव युनिवर्सिटी,वडोदरा), बी.एड. (भारतीय

शिक्षा परिषद, यु.पी.)

लेखन - हिंदी, बंगला, गुजराती, ओडीया, अँग्रेजी भाषाओं के ज्ञान के कारण आनुवाद कार्य में

संलग्न। स्वरचित कहानी, आलोचना, कविता, लेख आदि हंस (दिल्ली), वागर्थ (कलकता), समकालीन भारतीय साहित्य (दिल्ली), कथाक्रम (दिल्ली), नव भारत (भोपाल), शैली (बिहार), संदर्भ माजरा (जयपुर), शिवानंद वाणी (बनारस), दैनिक जागरण (कानपुर), दक्षिण समाचार (हैदराबाद), नारी अस्मिता (बडौदा),नेपथ्य (भोपाल), भाषासेतु (अहमदाबाद) आदि प्रतिष्ठित पत्र – पत्रिकाओं में प्रकशित। “गुजरात में हिन्दी साहित्य का इतिहास” के लेखन में सहायक।

प्रकाशन - “मध्यकालीन हिंदी गुजराती साखी साहित्य” (शोध ग्रंथ-1998), “किसे पुकारुँ?”(कहानी

संग्रह – 2000), “मोड पर” (कहानी संग्रह – 2001), “नारी चेतना” (आलोचना – 2001), “अबके बिछ्डे ना मिलै” (कहानी संग्रह – 2004), “किसे पुकारुँ?” (गुजराती भाषा में आनुवाद -2008), “बाहर वाला चेहरा” (कहानी संग्रह-2013), “सुरभी” बांग्ला कहानियों का हिन्दी अनुवाद – प्रकाशित, “स्वप्न दुःस्वप्न” तथा “मेमरी लेन” (चिनु मोदी के गुजराती नाटकों का अनुवाद 2017), “बांग्ला नाटय साहित्य तथा रंगमंच का संक्षिप्त इति.” (शिघ्र प्रकाश्य)।

उपलब्धियाँ - हिंदी साहित्य अकादमी गुजरात द्वारा वर्ष 2000 में शोध ग्रंथ “साखी साहित्य” प्रथम

पुरस्कृत, गुजरात साहित्य परिषद द्वारा 2000 में स्वरचित कहानी “मुखौटा” द्वितीय पुरस्कृत, हिंदी साहित्य अकादमी गुजरात द्वारा वर्ष 2002 में स्वरचित कहानी संग्रह “किसे पुकारुँ?” को कहानी विधा के अंतर्गत प्रथम पुरस्कृत, केन्द्रिय हिंदी निदेशालय द्वारा कहानी संग्रह “किसे पुकारुँ?” को अहिंदी भाषी लेखकों को पुरस्कृत करने की योजना के अंतर्गत माननीय प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयीजी के हाथों प्रधान मंत्री निवास में प्र्शस्ति पत्र, शाल, मोमेंटो तथा पचास हजार रु. प्रदान कर 30-04-2003 को सम्मानित किया। वर्ष 2003 में साहित्य अकादमि गुजरात द्वारा पुस्तक “मोड पर” को कहानी विधा के अंतर्गत द्वितीय पुरस्कृत। 2019 में बिहार हिन्दी- साहित्य सम्मेलन द्वारा स्रजनात्मक साहित्य के लिए “ साहित्य सम्मेलन शताब्दी सम्मान “ से सम्मानित किया गया। 2019 में स्रजनलोक प्रकाशन द्वारा गुजराती से हिन्दी में अनुवादित पुस्तक “स्वप्न दुस्वप्न” को “ स्रजनलोक अनुवाद सम्मान” से सम्मनित किया गया।

अन्य उपलब्धियाँ - आकशवाणी (अहमदाबाद-वडोदरा) को वार्ताकार। टी.वी. पर साहित्यिक

पुस्तकों क परिचय कराना।

संपर्क - डॉ. रानू मुखर्जी

A.303.Darshanam Central Park.Parashuramnagar.

Sayajigaunj.BARODA-390020. GUJARAT. .EMAIL-ranumukharji@yahoo.co.in

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: महाश्वेता देवी : सामाजिक प्रतिबद्धता और लेखकीय प्रतिश्रुति -- डॉ रानू मुखर्जी
महाश्वेता देवी : सामाजिक प्रतिबद्धता और लेखकीय प्रतिश्रुति -- डॉ रानू मुखर्जी
http://3.bp.blogspot.com/-ndWh31l0zrk/XqexuPYdRzI/AAAAAAABSYg/DFLbRkR2YIsKNsvc6PGy_R9yLuosSkvzACK4BGAYYCw/s320/IMG-20190415-WA0000-709601.jpg
http://3.bp.blogspot.com/-ndWh31l0zrk/XqexuPYdRzI/AAAAAAABSYg/DFLbRkR2YIsKNsvc6PGy_R9yLuosSkvzACK4BGAYYCw/s72-c/IMG-20190415-WA0000-709601.jpg
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2020/04/blog-post_797.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2020/04/blog-post_797.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content