तीर्थोदक पात्र परिचय बजरंगी चौधरी :- घर का मुखिया भगबती :- बजरंगी का पत्नी शंकर :- बजरंगी चौधरी का बड़ा लड़का उम्र सताईस साल, परिवार का कार्यक...
तीर्थोदक
पात्र परिचय
बजरंगी चौधरी :- घर का मुखिया
भगबती :- बजरंगी का पत्नी
शंकर :- बजरंगी चौधरी का बड़ा लड़का उम्र सताईस साल, परिवार का कार्यकारी मालिक, तिजोरी और गोदामघर के चाबियों के गुच्छे इसी के पास रहते हैं
पारबती :- शंकर की पत्नी उम्र पच्चीस साल
संझा :- शंकर की आठ साल की बेटी
भूलोटन :- शंकर का दो साल का बेटा
विष्णु :- बजरंगी चौधरी का मंझला लड़का उम्र बाईस साल
लल्लू :- बजरंगी चौधरी का छोटा लड़का, उम्र सोलह साल
रुनकू :- पालतू तोता
मखनी :- मोतिया की मां, नौकरानी
बोधबाबू :- गांव का वृद्ध, लगभग बजरंगी के उम्र का
खंखड़ ओझा :- देवघर के पंडा का सिपाही
घूटर साह :- गांव का साह परिवार
सुरोती :- घूटर साह की स्त्री
डोमन :- लगभग सोलह साल का लड़का
डिलेश्वरी :- डोमन की सौतेली मां
चन्द्रकांत :- लगभग सोलह साल का लड़का
बुधनी :- चन्द्रकांत की भाभी, शशिकांत की पत्नी
कमल प्रसाद ओझा :- देवघर का मैथिल पंडा
केकती :- मैथिल पंडा की पत्नी, पंडाइन
घिया :- केकती पंडाइन की दाई
भोलाजी :- काशी का पंडा
अन्नपूर्णा :- भोलाजी की बेटी
गांव के और महिला और पुरुष
दृश्य : 01
स्थान : बजरंग चौधरी का घर बैठकखाना समय :- शाम का वक्त
( लल्लू घर से साईकिल पर सवार होकर निकलना चाहता है। बैठकखाना
से बजरंगी चौधरी चिल्लाता है।
बजरंगी चौधरी :- ( वज्र कठोर झिड़की देकर ) लल्लू-उ-उ-उ! एक ही तमाचे में सारी फुटफुटी निकल जाएगी।
( लल्लू साइकिल से उतर पड़ा। आँगन में, रसोईघर के पास मोतिया के माँ से खगड़िया कटोरी गिरकर झनझना उठी।
मखनी :- बूढ़े मालिक आज असली गुस्सा निकाल रहे हैं? दैब रे
बजरंगी चौधरी :- जिसको जाना है, खुद चली जाए! टिकट कटाए। इस घर का एक बच्चा भी किसी की झोली-गठरी में हाथ नहीं लगाएगा, न ही यहाँ का एक पंछी साथ जाएगा।
(शंकर बैठकखाना की ओर लपका। तो उसकी बीबी चेतावनी दी।
पारबती :- ई न्योतकर बुलाया गुस्सा है। कल कलेऊ की बेला से ही बाबूजी के मॅुह पर अँधेरा छाया हुआ है। घर में खटखट-कचकच करके तीरथ जाने का क्या फल मिलेगा? --- आज सोच-समझकर बात करे बाबूजी से कोई। हाँ
शंकर :- हो क्या गया?
( विष्णु अपने कमरा में सो रहा है।
विष्णु :- ( अस्फुट शब्दों में बड़बड़ाया) हा-ह-हस्स-स-बे-रे-स-बे-रे
( आँखें मूँदे ही तकिए के नीचे दियासलाई टटोलने लगा।
बजरंगी चौधरी :- (बैठकखाने से) तुम चुप रहो! बड़ा आया है वहाँ से, हो क्या गया, हो क्या गया, पूछने वाला! मैं पूछता हूँ कि यह घर है या धरमशाला? जिसका जी जब जहाँ चाहा , चला गया! परम स्वतंत्र न सिर पर कोऊ! कल से समझाकर थक गया, लेकिन ---। जैसी माँ, वैसी औलाद। तीनों के तीनों नालायक लड़के मेरे ही घर कैसे हुए? एक वह रात में आया है, पढ़ा लिखा बैल! चिट्ठी में दो दो बार लिखा कि आते समय नौगछिया से उतरकर गीतिया को लिवाते आना, तो साफ साफ जवाब लिखकर भेज दिया, कि दीदी को लिवाने के लिए किसी और को भेज दीजिए, लिवाई जवाई का झमेला मुझे पसंद नहीं। सूअर! साथ! नहीं लाया, बीमार बहन को जरा देखते ही आता। सो भी नहीं, अपनी बहन को साथ लिवा लाने में लाज लगती है और ---
विष्णु :- (कमरे में सो रहा है। मन ही मन) ऐं! कॉलेज से नागा करके भैया की साली को मुँगेर से जमालपुर पहुँचाने की बात यहाँ भी पहुँच चुकी है?
(दरवाजे पर गाँव के कई व्यक्ति आ गए, बजरंगी चौधरी का कंठ-स्वर मद्धिम हुआ, किन्तु क्रोधाग्नि अन्दर ही अन्दर धुधुआती रही। आकर चौकी पर बैठ गए। संझा गाँव की पाठशाला से भागकर आँगन में आई। बस्ता फेंककर दादी के पास ठुनकती हुई गई।
संझा :- दादी! गठरी क्यों बाँध रही है? हाँ-य-य! मैं भी जाऊँगी। लल्लू काका भी जाएगा, क्यों दादी?
भगबती :- (तीरथ-यात्रा की तैयारी में व्यस्त है, उसने झुँझलाते हुए कहा।) जा, जा! कोई नहीं जाएगा मेरे साथ।
(लल्लू मुँह लटकाकर आया और माँ के सामने रुपया रखकर, चुपचाप दीवार के सहारे खड़ा हो गया।
भगबती :- (जगरनाथी लोटे के गले में डोरी की फँसरी लगाती हुई बोली।) बहुत लोग मिल जाएँगे, टिकस कटा देने वाले
विष्णु :- (उठ कर आया, मंजन करते हुए, मंजन के झाग से भरे हुए मॅुह में गुड़गुड़ाई) मैं-वा! (ओसारे के बगल में झाग उगलकर बोला।) दूसरे से कर्ज लेकर तुम्हारी चीज ला दी है। रुपया देती जाओ। आज ही मनीआर्डर से भेज दूँगा। दूसरे का रुपया--।
भगबती :- कैसी चीज? किसका रुपया?
विष्णु :- बाबूजी की तस्वीर बड़ी करवा लाया हूँ। तुमने कहा था न! तीस रूपये लगे हैं। दूसरे से लेकर---
भगबती :- गीतिया को देखते नहीं आए। काठ है सब काठ! जैसा बाप, वैसे बेटे! निदरदों का झुंड
विष्णु :- ( तौलिए से मुँह पोंछते समय विकृत मुद्रा बनाई।) हूँ! देखते नहीं आए! मुझे औरतों का रोना-धोना पसंद नहीं। तिस पर तुम्हारी बेटी का कुरता का खूँट पकड़कर पद जोड़ जोड़कर रोती है
(पारबती अपने ओसारे पर खड़ी घूँघट के नीचे मुस्कराई।)
विष्णु :- रुपया देती जाओ, नही ंतो दोनों बागड़ों को बेच दूँगा। लौटके देखना
( भगबती कुछ कहने को हो रही थी कि बोधबाबू आ जाते हैं। आते ही संझा से दिल्लगी की।
बोधबाबू :- क्यों दुलहिन, तू भी जाएगी?
संझा :- धत्त बुढ़वा बकलोल
(पारबती पीढ़ी दी। बोधबाबू उसमें बैठते हैं, पारबती प्रणाम करती है।
बोधबाबू :- ( भगबती से ) लल्लू की माँ! बात यह है कि पहले मेरी पूरी बात सुन लीजिए। उतावली में काम करके पीछे पछताना पड़ता है। बजरंगी भैया कह रहे हैं, इस बार शिवरात्रि में काशीजी---
भगबती :- बहुत शिवरात सुन चुकी हूँ। अब और नहीं।( शंकर को सुनाकर) मैं किसी की एक कानी कौड़ी लेकर नहीं जा रही।
शंकर :- मैया, तुम्हारी देह छूकर कहता हूँ, इस बार --
भगबती :- फिर मेरी देह की शपत खाता है? लाज नहीं आती? नाती-पोते मेरे गंगा नहा आए और मैं अभागी ऐसी कि गंगा की कौन कहे, पौषी पूर्णिमा में कभी कोसी की किसी गढ़हिया में भी एक डुबकी नहीं लगा पाई
शंकर :- पिछले साल मामले मुकदमों के कितने झंझट झेलने पड़े हैं, सो तो किसी से छिपा नहीं
भगबती :- देख चुकी हूँ मामले मुकदमे का चक्कर! डाक्टर से जाँच कराने के बहाने अपनी बहू को अटना-पटना, इल्ली-डिल्ली दिखला लाए। माँ की बेर मुकदमा का चक्कर सवार हो गया, बाप-पूत दोनों के सिर।
पारबती :- (मद्धिम आवाज में घूँघट के नीचे से बोली।)मैं किसी के पैसे से इल्ली-डिल्ली नहीं घूमी हूँ। सामने तो खड़ा है पूत। पूछ ले कोई, एक पैसे का पान भी खरीदा था किसी के लिए? मेरे काका का कितना रुपया खर्च हुआ है, पूछा है किसी ने भी?
बोधबाबू :- (खंखारकर) लल्लू की माँ, यों तो तीरथ जाने वाले को कोई नहीं रोकता, पाप होता है। लेकिन पुरुख, तो सब तीरथ से बढ़कर है। पुरुख-वचन काटे जो नारी
भगबती :- राखिए अपना पुरुख-वचन! खूब सुन चुकी हूँ पुरुख-वचन। चालीस साल से और किसका वचन सुन रही हूँ? ( आंखों में आँसू आ गए, भरे गले से बोली।) कभी बात से बेबात या चाल से कुचाल नहीं चली। तिस पर रोज तीन कोड़ी गालियाँ, सास-ससुर और इनकी---
बजरंगी चौधरी :- (बैठकखाने से चिल्लाकर) शंकर ! आँगन में बिदेसिया नाच हो रहा है क्या? जाने क्यों नहीं देते? क्यों रोकते हो? कौन रोकता है?
(सन्नाटा, भगबती उठी और चुपचाप गृहदेवता को पायलागी करने गई।
भगबती :- जै बाबा बैदनाथ, जै बाबा विश्वनाथ! बहुत दिनों की लालसा मन की, पूरन करो ठाकुर! ( ओसारे पर आकर मखनी से बोली।) अरी मखनी, चल गठरी उठा। टीशन तक पहुँचा दे। पाव कोस जमीन चलने से मेरी ऐंड़ी नहीं घिस जाएगी। नहीं चाहिए गाड़ी छकड़ा। संग साथ की जरूरत नहीं। गाँव में इतने लोग जा रहे हैं और कितना संग साथ चाहिए? तू टीशन तक पहुँचा दे
संझा :- (रोती हुई) दा-आ-आ-दी
लल्लू :- (रोता है)(मखनी गठरी उठाई।
भगबती :- (लल्लू को झिड़की देकर) जात्रा के समय आँख-नाक मत पोंछो। रोता क्यों है?
(पारबती ने पायलागी की, पिंजड़े में रुनकू तोते ने पुकारा।
रुनकू :- पींपी-पेपे! लल्लू संझा
( भूलोटन आंगन के चौखट पर मिट्टी खा रहा था। मुँह से निकालकर फेंकते हुए कहा।
भूलोटन :- डा-आ-डी-ई। थी-थी! ए-ए
बजरंगी चौधरी :- ललवा को दरवाजे से ले जाओ पकड़कर ! कोई परतीत नहीं उसकी।
(भगबती माया-ममता बिसार कर चली।
मखनी :- (उड़ते हुए नीलकंठ को दिखलाते हुए) मालकिन! लीलकंठ देख लीजिए। जातरा बहुत ठीक है
( भगबती उधर देखती है। परदा गिरता है।
दृश्य : 02
स्थान :- प्लेटफार्म
(तीस पुरुष, दस स्त्री, दो नीमजवान लड़के गांव से वैद्यनाथ धाम यात्रा के लिए जा रहे हैं। साथ में देवघर के पंडा का सिपाही भी है।
खंखड़ ओझा :- एक, दा,े तीन ----- तीस मरदाना, एक, दो, तीन--- दस जनाना, एक, दो नीमजवान लड़के।( भगबती का बुझा हुआ चेहरा देखकर) मायजी! बहुत दुख की बात कि बड़े घर से सिर्फ एक जातरी। मैं तो डर के मारे उधर गया ही नहीं। बूढ़े मालिक चार-चार हाथ कूद रहे थे। लीजिए, मैंने पहले ही काटकर रख लिया था कमीसन-टिकस। बस, एक महीना तक जहाँ-जहाँ जी में आए, घूमिए!( जजमानों को सम्बोधित करते हुए) सुन लीजिए, सब कोय! पहले चलिए भागलपुर में बाबा बूढ़ानाथ और सुलतानगंज में बाबा अजगैबीनाथ पर जल चढ़ाने- देवघर वैद्यनाथ। बाबाधाम में दो दिन अलख जगाकर तब सीधे बड़ी लैन की गाड़ी पकड़कर काशी विश्वनाथ के दरबार--
डोमन और चंद्रकांत :- ( हँसते हैं।) हा हा हा
खंखड़ ओझा :- ई दोनों बबुआन फुच्च-फुच्च कर हँसते क्यों हैं? अजगैबीनाथ नाम सुनकर हँसने की क्या बात
सभी तीर्थयात्री :- लड़कपन ही है। जै हो! जै बाबा
डिलेश्वरी और बुधनी :-(एक साथ कहते हैं।) लड़का है। इसके हँसने का क्या? सिपाही जी
खंखड़ ओझा :- ठीक है, सिपाही जी क्यों? मैं भी ब्राह्मणकुल का हूँ और पंडाजी भी ब्राह्मण। मैं पंडाजी का नौकर थोड़े हूँ? कमीशन पर काम करता हूँ।
सभी तीर्थयात्री :- (अपने टिकट देखकर) कमीसन टिकस
भगबती :- टिकस में कोई गड़बड़ी तो नहीं? अदला-बदली तो नहीं हुई है किसी से?
खंखड़ ओझा :- ( दाँत से जीभ को काटते हुए कान पर हाथ रखा।) मायजी! आप निफिकिर रहिए। मैं आपका बेटा हूँ। कोई शंका मत कीजिए, कोई गड़बड़ी नहीं।
( औरतें एक जगह जमा हो गई।
सुरोती :- (भगबती से) मैं कहती हूँ कि काशी तक ही क्यों? काशीधाम पहुँचकर, तीरथराज परयाग न जाएँ तो करम का ही दोख समझिए
खंखड़ ओझा :- अभी इतने ही धामों का हौसला कीजिए, क्योंकि परदेस की बात है और देह जाँगर सबके साथ है।
घूटर साह :- (अपनी पत्नी को घुड़की देते हुए)ईह! बड़ा हौसला बढ़ गया है, देखता हूँ।
सुरोती :- पांडे का सिपाही लल्लू की माँ से लल्लो-चप्पो करता है। हम किस बात में कम हैं? हम अगले साल केदार-बदरी जाएगी। इस बार परयागजी तक मंसूबा है।
बुधनी :- (भगबती की गठरी सँभालती है।) आखिर हम लोग किस दिन के लिए हैं
खंखड़ ओझा :- गठरी-मोटरी-अपाना-अपाना ठीक कीजिए ए-ए। घबड़ाइए नहीं। गाड़ी आ रही है-ए-ए
(गाड़ी आती है। सब उसमें बैठते हैं।)( परदा गिरता है।
दृश्य : 03
( गाड़ी चल रही है। भगबती को घर की याद आ रही है।
भगबती :- (मन ही मन ) जैसी माँ, वैसी औलाद! (चेहरा उतर गया) लल्लू, संझा, भूलोटन! डा-आ-डी-ई
सुरोती और डिलेश्वरी :- (वैद्यनाथ-महात्म के पद गाते हुए।)चलहू-चलहू रे मनुआँ बैदनाथ के धाम, बाबा बैदनाथ के धाम---
भगबती :- सिपाही
खंखड़ ओझा :- मायजी! मेरा नाम खंखड़ ओझा है। आप नाम लेकर ही बुलाइए
भगबती :- नौगछिया टीशन?
खंखड़ ओझा :- अभी कहाँ? कटिहार में गाड़ी बदलने के बाद, रात में एक बजे नौगछिया
भगबती :- याद करके, नौगछिया टीशन आने से पहले चेता दीजिएगा! वही पास में मेरी बेटी गीतिया का गाँव है।
सुरोती :- (डिलेश्वरी से) ऐसे बेटे-बेटियों से निपूती ही भली। घर-भर लोग रहते हुए भी अकेली तीरथ जा रही है बेचारी
डिलेश्वरी :- (अपने सतबेटा डोमन को सुनाकर) जिस दिन देखूँगी कि मेरा डोमन मेरी बात का जवाब देने के लिए होंठ पटपटा रहा है, तुरंत आँगन के बीचोबीच परदा लगवा दूँगी। मुँह भी नहीं देखूँगी
भगबती :- (मन ही मन)भगवान ने बोलने का मौका दिया है, बोल लें लोग
खंखड़ ओझा :- कटिहार टीसन आ रहा है। सब तैयारी कर लो उतरना है
(परदा गिरता है।
दृश्य : 04
स्थान :- कटिहार स्टेशन का प्लेटफार्म समय :- रात्रि नौ बजे
डिलेश्वरी :- ( चिउड़ा और खुरमा निकालकर भगबती की ओर बढ़ाते हुए ) मेरी पुतोहू के हाथ का बनाया हुआ खुरमा है।
भगबती :- चिउड़ा और खुरमा मेरी गठरी में हैं। मेरा जी अच्छा नहीं है, कुछ नहीं खाऊँगी।
सुरोती :- (पूरी-मिठाई बेचनेवाले से पूछा) दाल पूड़ी है?
घूटरसाह :- दाल पूड़ी कौन खाएगा?
सुरोती :- (ताजा भाजा वाले से) ताजा भाजा देना।
भगबती :- (मन ही मन हँसी) ( भगबती को घूटरसाह के दमे की याद आई। ) दमे के दौरे के समय सुरोती जड़ी लेने के लिए आती और बूढ़े के अपथ कुपथ खाने से लेकर बुढ़ौती में बुढ़भस करने की कोड़ियों कहानियाँ सुना जाती- बहिन बूढ़े का दमा तो दम के साथ ही जाएगा, लेकिन मैं बेदम होकर पहले ही मर जाऊँगी। जो-जो मना है वही खाएगा। लाज की बात क्या बोलूँ
( बुधनी की नजर प्लेटफार्म पर टहलने वाली दो बंगालिन लड़कियों पर थी।
बुधनी :- (मन ही मन) ऐसी ही किसी लड़की ने मेरे पति को शहर में भेड़ बनाकर रख लिया है। पढ़ाई-लिखाई तो चौपट हुई ही, बु़द्धि-ज्ञान भी गँवा आए। बाबा वैद्यनाथ उसके पति की बुद्धि फिर से लौटा दे, यही मनौती करने के लिए जा रही है वह। दुहाई बाबा
दृश्य : 05
(गाड़ी आती है। सब उसमें बैठते हैं।)( गाड़ी चल रही है। भगबती को घर की याद आ रही है।
खंखड़ ओझा :-(भगबती से) मायजी, नौगछिया आ रहा है।
भगबती :- गीता के ससुराल का टीशन!( बुधनी रोई थी, बुधनी से) बहू ! लोटे में पानी है। आँख धो लो, कँकरी पड़ गई है शायद। सभी भाग्य का खेल है, नही ंतो सोने-से लड़के शशिकांत की ऐसी हालत हो? पढ़ने में सबसे तेज, गाने-बजाने में सबसे आगे, कैसा सुन्दर शरीर ! क्या हो गया सब। अब तो निपट मतिशून्य है।
बुधनी :- आपसे क्या छिपाऊँ? कपड़ा-बस्तर भी अब मैं ही पहना देती हूँ। सोच रही हूँ, इस बीच कौन देख-सुन करेगा? कौन दोनों शाम मुँह में कौर डालकर खिलाएगा?
भगबती :- बाबा बैदनाथ का नाम जपा करो बहू! (मन ही मन) बैदनाथ। बहू तो तम्बाकू छूती नहीं। लल्लू का बाप हुक्के के बिना एक घड़ी भी नहीं रह सकता। कौन तैयार कर देता होगा? रोज पाँच बार हुक्का पटककर लल्लू पर गुस्सा उतारा जाएगा- तम्बाकू का डिब्बा भी ले गई है अपने साथ! यह कौन सड़ा हुआ तम्बाकू चिलम में डालकर ले आया है? तम्बाकू और कौन होगा? चिलम में डालने के पहले जरा सा गुड़ कौन मिला देगा?गीता की माँ! सचमुच तुम तम्बाकू में कुछ मिलाती हो। हुक्के में दम लगाने के बाद मन बादशाह हो जाता है
सुरोती :- (चीखकर) हाय रे दैब! मेरा लोटा? लोटा कोई ले गया। --गया लोटा
घूटर साह :- अच्छा हुआ। हर टीशन पर लोटा बढ़ाकर पानी-पांडे को बुलाओ अब। घुच-घुच
सुरोती :- प्यास लगने पर पानी नही ंतो क्या पिए आदमी? पानी में भी दाम लगता है?
घूटर साह :- पसेरी भर ताजा-भाजा और---।
सुरोती :- ताजा-भाजा, ताजा-भाजा! चुटकी-भर ताजा-भाजा क्या खाया कि इनकी सम्पत चबा गई। जिसके दाँत हैं वह एक बार नहीं हजार बार खाएगी ताजा-भाजा
भगबती :- (मन ही मन) लल्लू का बाप ऐसा नहीं। खाने-पीने को लेकर झगड़ा करेगा लल्लू का बाप?इतना ओछा नहीं। और वह भी क्या सहुआइन की तरह ताजा-भाजा या दाल-पूरी खाती? कभी नहीं।
खंखड़ ओझा :- ( कान पर से जनेऊ उतारते टट्टी से निकला) लोटा मेरे पास है। झगड़ा मत कीजिए कोई। खंखड़ ओझा जिस कोठरी में रहेगा, उसमें चोर-चुहाड़ झाँकी मारने आएगा? आप लागे निश्चिन्त होकर अपाना-अपाना जगह के मुताबिक आराम कीजिए।
सुरोती :- कल लौटकर जा रही हूँ। नहीं जाती तीरथ करने मरकट-किरपन्नी आदमी के साथ
खंखड़ ओझा :- वैद्यनाथ, वैद्यनाथ! यात्रा में झगड़ा-तकरार और मुँह-फुलौवल करके अपने साथ-साथ दूसरों का भी पुण्य चौपट क्यों करते हैं? (भगबती को दिखाकर) देखिए तो, मायजी क्या शांति से बैठी है।
सुरोती :- (मन ही मन) लल्लो-चप्पो और आयजी-मायजी करे लल्लू की माँ के पास और ले जाने के समय लोटा सहुआइन का। सभी झगड़े की जड़ है यह खंखड़ ओझा । (प्रकट) सभी जातरी बराबर है तुम्हारे लिए। फिर कटरिया टीशन पर गरम दूधवाले का पच्छ लेकर क्यों बोलने लगे?
खंखड़ ओझा :- सहुआइन! मैं तुम्हारा कर्जदार नहीं। आँखें लाल करके मत बात कीजिए पर-परदेश में। दूधवाले का पच्छ? घंटा-भर, दूधवाले को रोककर दर-भाव करेंगे, असली दूध है या पानी मिलाया हुआ, परखेंगे और तब जाकर एक छटाँक दूध लेंगे साहजी। सो इतनी देर तक तो इसपरेस गाड़ी छोटे टीशन पर नहीं रुकेगी। (यात्रियों से) आप ही लोग बताइए जरा, रुकेगी?
बुधनी :- ( जगकर बैठ गई, मन ही मन) यात्रा में झगड़ा करके सारी मंडली की यात्रा अशुभ कर रही है सहुआइन। यात्रा अशुभ होने से पुण्य मिलने में झंझट होगा। एक तो विधाता ने उसको जन्म न जाने किस अशुभ नच्छत्तर में दिया कि मिली हुई पुण्य की गठरी भी हाथ से निकल गई। सोना छूती है तो माटी हो जाता है।(रोती है
भगबती :- (बुधनी की कलाई में हाथ रखा और कान के पास मुँह लाकर धीरे से बोली।) रोओ मत बेटी
बुधनी :- बेटी( अपने आँखें पोंछ ली।
(गाड़ी किसी बड़े पुल को पार कर रही थी।
सुरोती :- ( घूटर साह से) कलेजे की धुकधुकी बढ़ गई क्या?
(गाड़ी पुल से गुजर गया।
घूटरसाह :- (पैर की ओर इशारा करके दबाने को कहा
खंखड़ ओझा :- बिहपुर! थाना बिहपुर आ रहा है। यहाँ गाड़ी बदलैया होगी। आप लोग अपाना अपाना गठरी झोला सम्हालते जाइए।
( सुरोती घूटरसाह की पैर टीपती है। फिर सारे उतरते हैं।)(परदा गिरता है।
दृश्य : 06
स्थान :- बाबा बूढ़ानाथ का मंदिर के पास
घूटर साह :- हम लोगों के दूसरे पंडाजी हैं, कानकुबुज बाभन
खंखड़ ओझा :- (मन ही मन)ठीक है, यात्रियों को लेकर वे आपस में लड़ते हैं, झगड़ते हैं, लेकिन ऐसे यात्रियों को लेकर नहीं। वह मैंथिल पंडे का कारपरदाज-एजेंट है। वह कान्यकुब्ज पंडे के कारपरदाज-एजेंट का हक नहीं मारेगा। ( बाकी जजमानों से आँख टीपकर कहा)जाने दीजिए, हमेशा का खटखट दूर हुआ
भगबती :- (मन ही मन) बूढ़ानाथ के मैथिल पांडे ने ये क्या कहा, बजरंग चौधरी की बेवा आई है, मन बहुत दुखित हुआ, आँख रहते अन्धा और किसे कहते हैं! नः नः तीर्थ के पंडे को भला बुरा नहीं कहना चाहिए। लेकिन सिन्दूर देखकर भी जो बेवा कहे उसको क्या कहा जाए? जै बाबा बूढ़ानाथ! उसका भी कोई दूसरा पंडा क्यों नहीं हुआ। अजगैबीनाथ के पंडाजी ने ऐसी गलती नहीं की, देखते ही उसने कोई दोहा कहा - सदा सुहागिन सेवती अजगैबी के पाँव।
(परदा गिरता है।
दृश्य : 07
स्थान :- अजगैबीनाथ मंदिर के सीढ़ी चढ़ते हुए
चन्द्रकांत :- अब आगे नहीं ऐ बाप--- भौजी गे-ए-ए
बुधनी :- (रुककर रोते हुए) चन्दरबाबू, कलेजा बाँधिए। बैठिए मत
भगबती :- ( दोनों को मीठी झिड़की दी) लाज नहीं आती रे चनदरा! औरतों से भी गया-गुजरा है क्या रे? और तू क्यों रो रही है?
खंखड़ ओझा :- (चन्द्रकांत को सहारा देकर सीधा किया) अब कहिए बाबूसाहब! है न सचमुच अजगैबीनाथ?
( खंखड़ ओझा ने बुधनी की ओ देखा। वह लजाती हुई आँसू पोंछ रही थी।
(परदा गिरता है।
दृश्य : 08
स्थान :- कमल प्रसाद ओझा का घर समय :- रात का समय
खंखड़ ओझा :- बम वैद्यनाथ ! ओझाजी! खोलिए किवाड़ी! कुल जमा बयालीस में से दो घचपच। बाकी बचे उनतीस मर्दाना, नौ जनाना, दो नीमजवान
कमल प्रसाद ओझा :- बम वैद्यनाथ ! जै हो! जै हो! खंखड़! हिसाब-किताब बाद में, पहले यात्रियों का जुगुत लगा दो। पानीकल, पैखाना, नाली सबको दिखला दो। भोजन-छाजन---?
(ऊपर की माला से झुककर केकती भी देख रही थी।
केकती :- खंखड़! आय-माय लोग कितनी है?
खंखड़ ओझा :- नौ
केकती :- नीचे जगह न हो तो ऊपर ले अइयो बरंडा पर, यहाँ भी बहुत जगह है।
खंखड़ ओझा :- (दांत निपोरकर देखते हुए) जैसी मर्जी आप लोगों की। सबके साथ नीचे रहिए, यह भी अच्छा। चाहे, नवो जनि ऊपर जाइए, यह भी अच्छा। लेकिन बाहर-भीतर जाने के लिए-याने लघुशंका, दिसा-टट्टी सबको नीचे ही आना होगा।
केकती :- खंखड़! राह घाट की बुद्धि अपनी राह घाट तक ही रखो, घर पर नहीं। समझे! यहाँ पहुँचकर जजमानों का हुकुम मत चलाओ। बाहर भीतर और ऊपर नीचे की जिम्मेवारी तुम्हारे सिर नहीं
कमल प्रसाद ओझा :- क्या बात है, खंखड़?
खंखड़ ओझा :- होगा क्या? पूछिए ऊपर जाकर। पैर की धूल भी नहीं धो पाया हूँ अभी कि ऊपर से खट-मंगल सुना रही है। राह घाट की बुद्धि कैसी होती है?
केकती :- ( हाँक लगाकर) मायजी! ए, दुलहिन-बेट। आइए आप लोग ऊपर। इतने मर्दो के बीच क्यों रहिएगा, जगह रहते?
खंखड़ ओझा :-(बड़बड़ता हुआ) अच्छी बात! एक ही माघ में जाड़ा खत्म नहीं होता।
कमल प्रसाद ओझा :-( उसके पीछे जाते हुए)खंखड़! सुन लो। जल्दी लौटना खंखड़
(कमल प्रसाद ओझा और खंखड़ ओझा जाते हैं।
(भगबती के साथ सभी औरतें ऊपरवाली माला पर गई। बुधनी चढ़ते समय बोली।
बुधनी :- चन्दर बाबू! डर तो नहीं लगेगा?
भगबती :- डरेगा क्यों? लल्लू से तीन साल बड़ा है। इतने लोगों के बीच डरेगा?
बुधनी :- (सीढ़ी से उतरकर) पहली बार परदेस आया है। जरा समझा-बुझा दें
(केकती ने बातों ही बातों में सभी औरतों के मन से लेकर गठरी तक की थाह ले ली।
केकती :- (भगबती के कपाल पर बम बैदनाथ बाम मलते हुए।) दवा नहीं, जादू है जादू! अभी तुरत सिर का दर्द कहाँ जाता है, सो देखिए
(डिलश्वरी हाथ फैलाई) बेकार लगाने से सिर में दर्द हो जाए। ऐसी दवा है यह
(डिलेश्वरी ने हाथ समेट ली)
केकती :- (मन ही मन)उसने मुझको सिर्फ चिउड़ा दिया, खंखड़ को खुरमा देने नीचे गई थी
डिलेश्वरी :- (सिरहाने झोला लेती हुई बुधनी से बोली) बहू, जरा पैर टीप दो लल्लू की माँ का
भगबती :- मैं पैर नहीं टिपवाती
डिलेश्वरी :- (सतरंजी पर लुढ़कती हुई ) मेरी बहू ने तो मुझे ऐसी आदत लगा दी है कि ---। टैन में डोपन ने टीप दिया तो थोड़ी-सी नींद आई
(बुधनी ने डिलेश्वरी के पैर पर हाथ दिया, न जाने किसका आशीर्वाद फल जाए, तीर्थस्थान में!
डिलेश्वरी :- ( पैर समेटने की चेष्टा की) क्या करती है बहू?
भगबती :- नींद आ जाएगी, जल्दी। बहू टीप रही है, टिपवा लो
केकती :- (जाते हुए) या बुला दूँ तुम्हारे बेटे को? जवान बेटे से पैर टिपवाती है, सो भी सतबेटे से, ऐसी बात पहली बार सुन रही हूँ
घिया :- (बर्तन धोते हुए) भिन्न देश के भिन्न रिवाज
डिलेश्वरी :- (मन ही मन) पर-परदेश, पर-भूमि में कौन लड़ाई झगड़ा करे?
( अन्य स्त्रियाँ सो रही है। बुधनी रो रही है।
भगबती :- मत रोओ बे--टी--! हा-य-हा---।
(परदा गिरता है।
दृश्य : 09
स्थान :- कमल प्रसाद ओझा का घर समय :- दिन का समय
डिलेश्वरी :- बारह घंटे पहले पहुँचने से क्या होता है? घूटर साह, बारह घंटे बाद पहुँचकर भी पहले दर्शन कर आया। खंखड़ का पंडा बहुत ठंडे पानी का आदमी है। घरवाली के डर से घर में ही जो चूँ नहीं बोलता, बाहर कैसे फूटेगी उसकी बोली? घरघुसरा पंडा ! दिन-भर घर में घुसा रहता है। हाय पैसा कि हाय पैसा! बीबी, बाल बच्चे के हाथ हमेशा पसरे रहते हैं। पंडा और पंडाइन की नजर बस एक ही जजमान पर रहती है, हमेशा। देखना है लल्लू की माँ कितनी अशर्फियाँ लुटाती है, दच्छिना में। शिवगंगा में मुँह धो ले! एकनजरा पंडा, दूसरी बार से हम लोग भी कानकुबुज पंडा रखेंगे। मैं और डोमन तो घूटर साह का बासा भी देख आए हैं। बासा है सहुआइन का! हाँ जिसको बासा कहते हैं। तीन तीन कलेटरी है। तीनों से दिन भर छुर-छुर गिरता रहता है पानी। नया पोख्ता मकान है। सहुआइन पलँग पर सोई थी। पंडा की घरवाली पूरी छान रही थी, साह-सहुआइन के लिए। सहुआइन का कानकुबुज पंडा देखने में भी असली पंडा लगता है। कहता थ, जजमान तो भगवान दाखिल है
(खंखड़ को आते देख चुप हो गई। यह बुधनी को अघोरी बाबा के अखाड़े पर ले गया था। सो अभी लौटा है।
डिलेश्वरी :- क्या कहा अघोरी बाबा ने? कितना गाँजा लिया? कुछ उम्मेद---
बुधनी :- (दाँत पर दाँत पीसती हुई कर्कश कंठ से कलकला उठी।) चुप हरजाई छिनाल! हर काम में टोकेगी, उठते बैठते छींकेगी, हर बात में आगे बढ़कर लुब-लुबकर रोकेगी। रे! सतबेटा-घिनौनी! जाते समय टोककर कलेजा ठंडा नहीं हुआ, तो आते ही--
डिलेश्वरी :- सुनते जाइए ! सुन लो सब कोय! जरा सा भी लगाम इस खलीफा के
रखेलिन के? मारे मुक्का के अभी नाक की हड्डी तोड़ती हूँ। नथियावाली पतुरिया?
मुझे कहती है सतबेटा घिनौनी! नैहर के खलीफा से बूटेदार चोलिया मशीन पर
सिलाकर पहनो जाकर। देवता पित्तर को क्या मनाने आई है? तू फीता लेकर सीना
नपवाएगी, खलीफा की दाढ़ी में मेंहदी लगाएगी और घरवाला अपने चसम से
देखकर होश में रहेगा, तेरा?ऐं? पूछूँगी नहीं? गाँव का नाम हँसाएगी पर-परदेश में
आकर, टोकूँगी नहीं? रास्ता भर आँख लड़ाती आई है, खंखड़वा से
खंखड़ ओझा :- ए! ए! देखिए, हमको मत लपेटिए। मुँह सम्हालके।
भगबती :- (सीढ़ी से लुढ़कते हुए) आगे-माँ
(सुलगते हुए झगड़े पर एक घड़ा पानी पड़ गया मानो। सभी दौड़कर भगबती के पास आ गए।
खंखड़ ओझा :- चोट तो नहीं लगी,ज्यादे?
डिलेश्वरी :- (डोमन को धिक्कारते हुए रोने लगी) रे! दुर-दुर! तू मरद है रे? तेरे सामने मुझे बेपर्द करके गाली देती है और तू इसकी नाक के नकबेसर में आँख खोंसकर खड़ा है?
केकती :- ए छिःछिः ! कहाँ कि ललबेगिया सब आई है तीरथ करने, बाबाधाम! जिसको लड़ाई -झगड़ा करना है, जाकर बाहर मोड़ पर कुँजड़ियों के साथ बैठे
(खंखड़ ओझा मौका पाकर बाहर चला गया, झगड़े के सिलसिले में न जाने क्या क्या खुले
भगबती :- (डिलेश्वरी का हाथ पकड़कर ) डोमन की माँ, सुनो, तुम चुप रहो।
डिलेश्वरी :- (झटककर हाथ छुड़ा लिया) तिस पर पच्छ लेने आई है, यह उपर से
भगबती :- तू चुप क्यों नहीं रहती बहू? क्या हुआ? बात क्या है? पगली हो गई क्या?
बुधनी :- अघोरी बाबा ने गाँजा पीकर आँखें बंद कर ली, उसके बाद फटाफट सब कुछ बता गए- "तुम्हारे साथ एक बेवा आई है। वही तुम्हारे दुःख का असल कारन है। यहाँ डोमन की माँ ही एक बेवा है। हाथों-हाथ पकड़ी गई है यहाँ आकर। बाबा-धाम में।
भगबती :- तू अकेली क्यों गई? जानती है, यह तीरथ है। कितने ठग-ठगेरे भी साधू-बाबा बनकर ठगते हैं! उनकी बातों की परतीत करती है? लगता है, तुम्हारी बुद्धि भी लोप हो रही है, अब
बुधनी :- खंखड़--।
डिलेश्वरी :- फिर खंखड़ का नाम लेती है।( रोती हुई, आँख नाक पोंछते समय बोली बोलकर कोसती एक एक यात्री को) कोई नहीं, कोई नहीं, अपना कोई नहीं, बेटे ने भी कह दिया, तुम दूसरों की बात में बेकार पड़ने जाती हो। ठीक ही हुआ है! हे राम! उठा लो बाबा, अपने धाम में ही
(परदा गिरता है।
दृश्य : 10
स्थान :- कमल प्रसाद ओझा का घर समय :- दिन का समय
भगबती :- समूह से सिर्फ दस जन काशी जा रहे हैं, सात मर्दाना, तीन जनाना। समूह के बाहर के साह और सहुआइन को जोड़कर बारह
(डिलेश्वरी आती है।
डिलेश्वरी :- साह को हँफनी शुरू हो गई है। सहुआइन का पेट मुँह दोनों जारी है। डाक्टर पर डाक्टर, जकशैन पर जकशैन पड़ रहा है। अब कैसे जाऊँगी काशीजी! सब तकदीर का फेर
भगबती :- बारह से भी चार घट जाएँगे। आठ? आठ काठ, मुर्दाघाट? (गठरी बाँधतें हुए) तकदीर का फेर नहीं, बुद्धि का फेर। टिकस तो कटाना नहीं है। रह गया खेवा खर्चा? आधा खर्चा मैं दूँगी। चलो, डोमन से कहो गठरी बाँधे।
( काशी जाने वाले यात्री घर लौटनेवालों के हाथ अपने अपने घरवालों को चिट्ठी भेज रहे हैं। डोमन और चन्द्रकांत चिट्ठी का मजमून लिख रहे हैं
डोमन :- (चिट्ठी लिखते हुए) मालूम हो कि बाबा बैदनाथ जो बाबा विश्वनाथ ओ गंगा माई की दया से हम लोग बाबा धाम में अलख जगाकर काशीधाम--
डिलेश्वरी :- (भगबती से) लल्लू की माँ , दो कलम लिखा दो। डोमन लिख देगा। कागद कलम लेकर बैठा है तभी से। (मन ही मन)बड़ी दराजदिल है लल्लू की माँ आधा खर्चा नहीं, मेरा पूरा खेवा-खर्चा देगी? डोमन का खर्चा सभी यात्री मिलकर देंगे। मंडली में डोमन ही पढ़वा रह जाएगा। चन्द्रकांत तो वापस जा रहा है अपनी भाभी के साथ
भगबती :- चलो डोमन, मोतिया की माँ के नाम एक खत लिखो
डोमन :- (हँसता है।) हा हा हा
भगबती :- लिखना है तो लिखो। उन लोगों के जाने का समय हो गया। मैं मोतिया की माँ को ही दूँगी चिट्ठी बस
डोमन :- (चिट्ठी लिखते हुए) आगे मखनी को मालूम हो कि हम लोग आज काशी की गाड़ी पकड़ रहे हैं। आगे समाचार जो बागड़ यदि नहीं बेचा है बिश्नू ने, तो बागड़ बेच देने को कहना बिश्नू से। लल्लू बदमाशी नहीं करे। संझा को उसकी माँ आजकल बहुत मारती पिटती है। काम कराती है उत्ती जरा लड़की से। बहू से कहियो, मंगल को नहाकर अरवाइन करे। भूलोटन के माथे में दो जट छोड़ दे, केश कटाते समय। मेरे काठ के बक्स के पीछे में जो पीपा है, उसमें तम्बाकू है। चिलम में डालने से पहले गुड़ जरूर मिला देना, जरा। बाबा बैदनाथ और बाबा विश्वनाथ और गंगा माई से तुम लोगों का भला मानती हूँ, जो सुनकर दिल आनंद होय
(घर लौटनेवाले यात्रियों की टोली ने बम बैदनाथ की टेर लगाई। खंखड़ ओझा भी साथ जा रहा है। हर जजमान के घर सात सात दिन का सत्संग करेगा। बुधनी भगबती की पैर छूने के लिए झुकी।
भगबती :- (उसे दोनों हाथों से पकड़कर) बहू! बाबा बैदनाथ के दरबार में हम लोगों का पैर मत छुओ, जाओ, सबका कल्यान हो। जै बाबा विश्वनाथ
(परदा गिरता है।
दृश्य : 11
( गाड़ी में काशी जाने वाले सभी यात्री बैठ गए हैं। गाड़ी चल रही है। किउल जंकशन पर एक लड़का बिश्नू की तरह हू-ब-हू बिश्नू जैसा दिखई पड़ा। भगबती को घर की याद आ रही है।
भगबती :- आते समय यह भी नहीं देखा कि कैसी तसवीर बनवाकर लाया है बिश्नू। एक दिन कह रहा था बिश्नू कि दोनों को एक साथ बैठाकर फोटो लूँगा। माँ-बाप से भी हँसी-खिलवाड़ करते हैं, पढ़वा लड़के। उसका बाप भी तो वैसा ही है। सुनके बोला कि ठीक ही तो कहता है। कहो भला, इस बुढ़ापे में जोड़ीवाली तसवीर छपाने का शौक। ( भगबती ऊँघने लगी। सपना में देखती है - जोड़ीवाली, बड़ी सी -- स्टेशन की दीवार पर चिपकी हुई तसवीर। )लल्लू का बाप ! जोड़ा छापी। ऐं। (चिहुँककर उठ बैठी) यह कैसा सपना? लल्लू का बाप छापी में बैठा बैठा ही गिर पड़ा, बेजार! जै बाबा बिश्नाथ! मुगलसराय! खाँय-खाँय बन्दर खिड़की पर-- डोमन बंदर, बन्दर डोमन। डोमन की माँ की मूँछें! ऐं-य?
डिलेश्वरी :- लल्लू की माँ--- कैसा जी है? अरे बाप! देह तो भट्ठी की तरह जल रही है। रे डोमन! काकी को तो बहुत तेज बुखार है।
(सिर पर पानी देने से जी कुछ हल्का हुआ। गाड़ी की खिड़की से झांकी दर्शन किया काशी-बिश्नाथ का!
भगबती :- जै गंगा महारानी की , जै जै काशी बिश्नाथ।
( काशी स्टेशन पर गाड़ी रूकती है, भोलाजी ठीक भगबती को देखते हैं।
भोलाजी :- अरे जजमानिन? चौधरी भाई कहाँ?
भगबती :- जै बाबा बिश्नाथ! सब तुम्हारी दया, सब तुम्हारी माया। नही ंतो भोला पंडा को किसने भेज दिया, समय पर?
( परदा गिरता है।
दृश्य : 12
स्थान :- भोलाजी पंडा का घर
डिलेश्वरी :- पंडाजी के दो जवान बेटे हैं। दोनों पढ़े लिखे कमाऊ पूत हैं। दोनों बहुएँ भी पढ़ी लिखी हैं। इनकी घरवाली नहीं रही अब। एक प्यारी बेटी छोड़ गई है अन्नू। अपना सभी गुन दे गई है। अन्नपूर्णा बहुत सेवा जतन करना जानती है। सभी को पूछकर हाजमा गोली बाँटती है। कटे जले की दवा देती है। बोली कैसी मीठी है! फुर्ती कितनी है देह में! ल्ेकिन बहुओं के मन में काफी गरब-गुमान है
( डिलेश्वरी चली जाती है। भगबती की तीन दिन से अन्नपूर्णा सेवा कर रही है।
अन्नपूर्णा :- माँजी! आज जी कैसा है? (भगबती के कपाल पर हाथ रखती है) आज तो बुखार नहीं है। परवल का जूस बना दूँ? आज देह पोंछ दूँगी।
भगबती :- (मन ही मन)देह पोंछ देगी, अन्नपूर्णा? हाय रे, तकदीर! काशीजी आकर, गंगा की एक झलक देखकर रह गई, लल्लू की माँ। गंगा नहाने के बदले देहपोंछन ? आज तीसरा दिन है। यात्री लोग लल्लू की माँ के लिए बैठे रहेंगे क्या? तकदीर का फेर! सब कुछ समझती है लल्लू की माँ। डोमन को, डोमन की माँ को, सबको पहचान गई है। दैव रे! अन्नपूर्णा नहीं रहती तो इसी यात्रा में काशी लाभ।
(भोलाजी पंडा चौखट के पास खड़ा है। भगबती ने कपड़ा सरका लिया।
भोलाजी :- आज तो जी अच्छा है, क्यों जजमानिन? घबड़ाइए मत, कल गंगा स्नान, बाबा विश्वनाथ का दर्शन सब हो जाएगा।
(अन्नपूर्णा कठौते में पानी ले आई। पानी नहीं गंगोत्री!
भगबती :- जै गंगा मैया! जी जुड़ गया। परवल के जूस में इतना स्वाद होता है? बेटी अन्नपूर्णा नींद आ रही है।( भगबती सोच रही है।) डोमन ने बीस रुपया वापस नहीं किया? क्या माँ बेटे के मन में? लगता है, सभी यात्री लल्लू की माँ के भरोसे ही आए थे। कल पाँच-दस के हिसाब से हर आदमी ने माँग की, बारी बारी बुखार में भी। मैंने एक नंबरी नोट निकालकर दिया, कागज पर सभी का नाम लिखकर अस्सी रुपए बाँट दो, बाकी बीस वापस कर देना मुझे। लेकिन डोमन ? अब तो एक बार झाँककर हाल पूछ जाता है। बस काकी क्या हाल है?डोमन की माँ अब जी चुराकर आती जाती है। धन है बेटी अन्नपूर्णा। गीतिया की तरह निरघिन होकर सेवा करती है। इतनी उलटी कभी नहीं हुई किसी बीमारी में! लगता है यात्री लोग लौट आए। अभी ही डोमन की माँ एक बार झाँककर पूछने आएगी। मैं किसी से बात करना नहीं चाहती। वाह री बेटी अन्नपूर्णा सभी को मना कर रही है- शोरगुल मत कीजिए। माँ जी सो रही है।
भगबती :- ऐं? कौन? रात है या दिन, अन्नू बेटी? रात? भोर? हर हर महादेव शम्भो, काशी विश्वनाथ शंकर! ठिठुरती हुई आवाजें -- बगल में कब आकर सो गई अन्नपूर्णा ? गाँव घर की बात कितने चाव से सुनती है! मुझसे परिवार के एक एक आदमी के बारे में सुन चुकी है। रुनकू तोते के लिए क्या ले जाओगी खरीदकर माँजी?डोमन झाँकी मारकर देखने नहीं आया। पुण्य कोई नहीं बाँट देता किसी को। लेकिन बीमारी की छूत लग जाती है। दूर रहो! दूर रहें लल्लू की माँ से सभी, बीमारी लग जाएगी। लाल बोखार-फुलू
अन्नपूर्णा :- माँजी! माँजी
भगबती :- अन्नू , तुमको अपने साथ ले जाऊँगी
अन्नपूर्णा :- माँजी! अभी मैं सपने में तुम्हारे साथ रेलगाड़ी पर चढ़कर बहुत दूर चली गई थी। हाँ, माँजी! तुम्हारे देश में बड़े-बड़े साँप हैं? साँप मेरे सामने फन काढ़े खड़ा हो गया। एक भले आदमी ने साँप को डोरी की तरह उठाकर गले में पहन लिया।
(अन्नू हँसती है, भगबती भी हँसती है।
भगबती :- शिवजी ने दर्शन दिया है।
अन्नपूर्णा :- नहीं, शिवजी नहीं, उसने अपना नाम बताया-विष्णु
भगबती :- ऐं? सच?
अन्नपूर्णा :- हाँ, देखो न! अभी तो कलेजा धड़क रहा है साँप के डर से।
(भगबती अन्नपूर्णा को छाती से चिपका लिया।
भगबती :- ठीक, गीतिया-जैसी देह
भोलाजी :- ( अपने कमरे से चिल्लाकर) बेटी
( अन्नपूर्णा अपने बाप के लिए पान लगाने दौड़ी।
अन्नपूर्णा :- आई
भगबती :- (मन ही मन) आज भी यदि गंगा स्नान और विश्वनाथ दर्शन नहीं कर सकी , तब तो हुआ। कल ही लौट रहे हैं सभी! अन्नपूर्णा ने सपने में बिश्नू को साँप लपेटते देखा है। उसने लल्लू के बाप की तस्वीर लुढ़कते देखा था। क्या चाहते हैं बाबा विश्वनाथ? अन्नू से पूछना भूल गई, सपने में देखे हुए बिश्नू का नाक-नक्शा कैसा था? आज भोलाजी पंडा गंगा स्नान करने जाएँगे, तो--। छिः-छिः काशीजी आकर भी लोग चोरी चमारी करते हैं। डोमन की माँ की गठरी से, कुर्माटोली की दासिन की खोई हुई रुद्राक्ष की माला निकली। माला? लल्लू के बाप के लिए क्या खरीदे शंख, आसनी, माला, चंदन, गोपीचंदन, पनडब्बा, जर्दा? लल्लू के लिए! संझा के लिए? भूलोटन के लिए? रुनकू तोता के लिए? अन्नू ने कुछ नहीं पूछा, लल्लू के बाप के बारे में! कितनी समझदार लड़की है
( अन्नपूर्णा लल्लू को लेकर आती है।
अन्नपूर्णा :- माँजी! माँजी! इधर देखिए, पहचानिए तो कौन है?
भगबती :- अरे! लल्लू? अकेला? कैसे? अन्नू किसको देखकर हँस रही है, और?
(बजरंगी चौधरी बरामदे में हँस रहे हैं। प्रसन्न-लज्जा से भगबती का चेहरा लाल-सुर्ख हो गया। सिर पर कपड़ा सरका लिया।
(अन्नपूर्णा लल्लू को कमरे में ले आई।
अन्नपूर्णा :- ( लल्लू से) पैर छूकर प्रणाम करो
( लल्लू ने लजाकर पाँवलागी की।
भगबती :- ( लल्लू से) अन्नू दीदी के पैर छुओ
( अन्नू भागी।)( भगबती बार बार आँख मलकर खोलती है। लल्लू को देखती है। आँखों में आँसू टलमला रहे हैं। उधर बरामदे में पंडा- जजमान का मिलन हो रहा है।
बजरंगी चौधरी :- जै हो ! जै हो! बाबा विश्वनाथ की दया! कुशल समाचार?
भोलाजी :- बेटी अन्नू, एक दँतुअन ला दो चौधरी काका को। कैसे पहचान गई देखते ही
( अन्नू दौड़कर दँतुअन ले आई
भोलाजी :- क्यों बेटी, लेडी डाक्टर? तुम्हारी माँ जी आज गंगा स्नान करेंगी तो?
अन्नपूर्णा :- हूँ-उ
( अन्नपूर्णा गंगा स्नान की तैयारी करने लगी। अंदर जाकर भगबती की गठरी से साड़ी निकालने लगी।
( परदा गिरता है।
दृश्य : 13
(बाजे-गाजे के साथ सभी गंगा स्नान करने जा रहे हैं। भोलाजी पंडा और बजरंगी चौधरी आगे आगे चल रहे हैं। पीछे लल्लू, और अन्नपूर्णा बीच में भगबती चल रही है, अन्नू सहारा देती है। लल्लू हाथ पकड़ लेता है, गली से बाहर निकलते ही। सभी दशाश्वमेध घाट पहुँचते हैं।
भगबती :- ( गंगाजी करे प्रणाम करते हुए) श्री गंगा जी! जै जै गंगे! बेचारी सहुआइन न जाने कैसी है! भगवान कल्याण करें। बुधनी ने कहा था - गंगाजी से, बाबा विश्वनाथ से मेरी भी अरजी सुनाइगा! अरजी सुनो। सभी का भला हो, शंकर, विष्णु, संझा, बहू, भूलोटन, गीता आई है, ससुराल से। बिश्नू ही जाकर लिवा आया है। रुनकू तोता चित्रकूट के घाट में भई सन्तन की भीर। चंदन, रेल, धूप, दीप, बेलपत्र, फूल! फूल की चँगेरी लेकर चल रही है अन्नू।
( आखिरी सीढ़ी पर रखते ही तलुवों में गगन-माटी का परस लगा। भगवती के मन की उमड़ती हुई गंगा आँखों की राह धार बनकर बह चली। लल्लू के सिर पर दो बूँद तीर्थोदक गिरा-टप-टप। सिर सहलाने लगी, लल्लू का। बजरंगी चौधरी गंगा वंदना कर रहा है। उँगली में जनेऊ लपेटकर
अन्नपूर्णा :- (जनानाघाट पर पानी में उतरती हुई) माँजी, खड़ी क्यों हैं। आओ लल्लू
( अन्नपूर्णा ने आकर भगबती का हाथ पकड़ा। भगबती का भाग्य! खुद माँ अन्नपूर्णा उसे नहला रही है।
भगबती :- गंगे! गंगे! जै हो
( पहली डुबकी लेने के एक क्षण पहले भगबती को अपनी माँ की सूरत याद आई।
भगबती :- माँ
(परदा गिरता है।)
(फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी - तीर्थोदक से। एकांकी रूपान्तरण - सीताराम पटेल "सीतेश"
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