डॉ कन्हैया लाल गुप्त किशन' की कविताएँ

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उजाला/ रौशनी जीवन में रौशनी, उजाला बड़ा मायने रखती है, उजाला जीवंतता, सुख, समृद्धि का प्रतीक है तो अंधेरा मरण, विनाश, अनिष्ट का प्रतीक है. ...

उजाला/ रौशनी
जीवन में रौशनी, उजाला बड़ा मायने रखती है, उजाला जीवंतता, सुख, समृद्धि का प्रतीक है तो अंधेरा मरण, विनाश, अनिष्ट का प्रतीक है.
वेदों में कहा गया है 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' अर्थात हे परमात्मा हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो.
आज, अभी ही क्यों यह सनातन से चला आ रहा है, हम पूरब के वासी उदित होते सूर्य के अनुयायी हैं.
उजले और मलिन वस्त्रों को ही ले लीजिए, उजले वस्त्र सौम्य, शुचिता के प्रतीक है तो मलिन रुग्ण, अज्ञान और अशौच के प्रतीक है.
सत्य को प्रकाश और असत्य को अंधकार कहा गया है तथा कहा गया है कि असतो मा सद्गमय अर्थात असत्य से सत्य के मार्ग पर ले चलो.

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189.इश्क
उम्र छोटी या बड़ी नहीं होती,
कर्म तुच्छ और महान होते हैं,
  इश्क़ करना कोई गुनाह नहीं,
ये तो सबके मन मे होते हैं,
शर्त ये है कि इश्क़ के माशूका के गालों का तील न बन जाये,
ये धरा बह्मण्ड से होना चाहिए, माशूकायें तो रोज नयी नयी मिल जाएगी, जो रोज दिलोजान से खेलेगी और निकल जाएगी,
इश्क़ उस बंदे से करो कि जां निकल जाए पर उसकी बंदगी न जाए,
ऐसी ऋतु रोज कहाँ आएगी.
ऐसी ऋतु रोज कहाँ आयेगी.
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उम्मीद
जीवन में उम्मीद का बहुत ही महत्व है।
उम्मीद पर ही सारा जहाँ टिका हुआ है।
उम्मीद जीवन में जीने की एक आस है।
उम्मीद पर ही तो यह जहाँ बरकरार है।
उम्मीद टूटने पर आदमी जिन्दा नहीं रहता।
वह चलती फिरती लाश में तबदील होता है
उम्मीद है तो आस है, जीवन में प्यास है।
एहसास है विश्वास है, जीवन का साथ है।
उम्मीद एक साथी है, उम्मीद एक माँझी है।
उम्मीद एक पूजा है,ईश्वर नहीं दूजा कोई है
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" जगमगाया हिन्दुस्तान "
जगमगाया हिन्दुस्तान, देवलोक है परेशान, ये ये जगमग ज्योति कैसी है, ये जगमग ज्योति कैसी है!!
क्या विश्वगुरु भारत अब जाग गया है,
कोरोना जैसा रोग क्या भाग गया है,
कैसी ये शंख ध्वनि, कैसा नाद है,
सारा विश्व देख रहा कैसी फरियाद है,
जीवन को जगाने का आह्लाद है,
देवराज आओं, ग्रह, नक्षत्र आओं रे,
भारत यूँ सज रहा आखिर क्या बात है,
ईद न दिवाली है, बात ये निराली है,
एकसाथ कर रहे प्रार्थना दिवाली है,
बात सुझती नहीं, मार्ग दिखता नहीं,
महादेव भी कैलाश लखे, भीड़ ये तो
भारी है, शेषशयन कर रहे, दृष्टि नमन
कर रहे, भोला भण्डारी है, ब्रह्मा जी भी देखते, नारद से पूछते कैसी दिवाली है.

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वो सुहाना सफर
वो सुहाना सफर, किसे थी ये खबर, ये भी दिन आएंगें.
हम चले थे कहाँ, आ गये हैं कहाँ, ये भी दिन आयेंगे.
भागमभाग जीवन, मन में था कुछ लगन, ठहर जायेंगे.
अब दिल डरता है, मन मचलता है, जीवन गया है ठहर.
राह सूझे ना, मन तो बूझे ना, क्या करूं अब किधर.
कभी टीवी देखूँ, कभी मुखपोथी पढ़े, अब जाऊं किधर.
अब ईश्वर का संग, मन में जागे उमंग, वही कर दे रहम.
आयी विपदा है जो, जायेगी भी तो वो अब काहे का गम.
हम तो लड़ेंगे उससे, और जीतेंगे उससे, है काहे का भरम.
हमने संयम धरा, मन में भक्ति भरा, ये दिन जाऐंगे गुजर.
अब तो शहर शहर है कोरोना का कहर, बचना मुश्किल हुआ.

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स्वास्थ्य है अनमोल धन
स्वास्थ्य है अनमोल धन, इसको समझो भाई.
बिना स्वास्थ्य के जग सुना, मत करो ढिलाई.
नित्य कर्मों पर ध्यान दो, रखों संयमित आहार.
ताजे फल सेवन करो, प्राकृतिक करो उपचार.
योग करो, टहला करो, शाक सब्जी का व्यवहार.
बासी मत खाना कभी, पड़ जाओगे  बीमार.
स्वच्छ जल ग्रहण करो, स्वच्छता पर दो ध्यान.
रोज नहाना भी दवा का, करता है वह  काम.
तन की खूब सफाई हो, वातावरण भी हो शुद्ध.
स्वास्थ्य की बातें जाना करो, हो जाओगे प्रबुद्ध.
सुबह समय से जागरण, रात्रि भरपूर विश्राम.
मन होता है स्वस्थ तब, तन मन को मिलता आराम.
प्रकृति निरीक्षण से भी तो मन मानस होता स्वस्थ.
स्वास्थ्य है अनमोल धन, तुम कर लो इसे कण्ठस्थ.
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198. संकट हरेगें हनुमान
संकट हरेगें हनुमान, जो है बल बुद्धि के निधान.
द्रुति कार्यकर्ता सब बिघ्नहर्ता, मंगल कारक है कपि हनुमान.
शंकर सुवन केशरी नंदन, हम सब करते आपका वंदन.
तीनों लोको मे डंका बाजत, जो सुमिरे हनुमत गुण आगर.
राम कार्य में सबसे आगे, आप को देख भूत प्रेत सब भागें.
अंजनी के ये लाल बड़ो है, करते ये तो कमाल बड़ो बड़ो है.
आप तो है गुण ज्ञान के सागर, सबके मनोकामना के भरते गागर.
अतुलित बल वाले राम दूत है, आप तो केशरी अंजनी सूत है.
प्रभु चरित्र सुनने में मन लगावें, राम भक्ति बड़े मन से गावै.
श्रीराम ने बहुत बड़ाई किया है, भरत जैसा आपको भाई कहा है.
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सत्संग
सत्संग मूलाधार है, जीवन को समुन्नत बनाने का, जीवन को सुधारने का.
सत्संग की भूमिका, जीवन की उद्देश्य प्राप्ति में, होती है अत्यंत महत्वपूर्ण.
ईश्वर, जीव, प्रकृति है, सत्संग के अंग महत्वपूर्ण, सत्य हो जिसमें सम्पूर्ण.
जहाँ इसकी बात हो वही सत्संग निवास,
वही तो करता है मानो सत्संग मिठास.
श्रेष्ठ और सात्विक जनों का हो सदा संग,
धार्मिक पवित्र वातावरण व पुस्तक है अंग.
जितना भोजन शरीर के लिए आवश्यक,
उतना जीवन के महत्वपूर्ण है सत्संग.
भोजनादि जरूरी है मानव तन के लिए,
किन्तु आत्मा के संतुष्टि के लिए सत्संग.
सत्संग, स्वाध्याय, प्रार्थना है आत्मा का भोजन, होता पवित्र और निर्मल जीवन.
करता दूर पाप और मन के कुविचारों को.
सत्संग मूर्खता हर लेता इसे भर्तहरि ने लिखा, जीवन में सत्यता करे संचार.
चहूँमुखी होता है मान सम्मान विस्तार
चित्त में प्रसन्नता उमड़ता है अपार,
चारों दिशाओं में यश का होता प्रसार.
सत्संगति करता जन का चतुर्दिक कल्याण
जैसे दुग्ध करता चासनी मैल का परिष्कार
सत्संग जीवन कलुष को कर देता है दूर,
मानव सत्संग से सुधरता,बिगड़ता कुसंग से
कथन  जैसा है संग वैसा ही चढ़ेगा रंग ढंग
मानसिक चिकित्सा श्रेष्ठ लोगों का सत्संग
जब उठे आँधियाँ वासनाओं की, मन में क्रोध, काम, लोभ, मत्सर हो रहा हो हावी.
बुझने लगे दीपक ज्ञान, प्रेम, सद्भावना का
औषधि का उत्तम कार्य करता है सत्संग.
सत्संग जगाता है विवेक, भला बुरा का हो भेद, सत्य असत्य ज्ञान पहचान करवाता.
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हममें है दम नहीं हारेंगे हम
गवाह है चाँद तारे गवाह है, ये धरती गवाह है ये दुनिया गवाह है.
नारी ने जना नर को, वह घर भी संभालती है, वह दुष्टों को मारती है.
बच्चों का पालन पोषण करती, गृह सज्जा कर गृह को सँवारती है.
मातृत्व में निपुण होती है नारी, पाक कला में अन्नपूर्णा होती है नारी.
इतना ही नहीं आफिस संभालती, आतंरिक्ष वैज्ञानिक बन ग्रह-नक्षत्रों पर विचरती.
सैनिक बन सीमा की रक्षा करती,मोबाइल, कम्प्यूटर,रडार चलाती.
आज की नारी चूल्हे चौके तक ही उसकी देहरी टिकी नहीं है.
वह बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न विश्वव्यापिनी नारी बन गयी है.
अब उस जगतजननी दुर्गा दुर्ग विनाशिनी का साक्षात् स्वरूप दिखता है.
इसलिए आज की नारी कहती है, हम में है दम, नहीं हारेंगे हम.

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खतरे से दूरी, मास्क जरुरी.

खतरे से दूरी मास्क जरूरी, नहीं ये मजबूरी, जीवन के लिए जरूरी.

नहीं मिलती दवाई, संयम से इसकी विदाई.
अब तो समझो भाई, बिमारी ने रफ्तार बढाई.

घर में रहों सुरक्षित रहों, खूद बचों, परिवार को बचाओं.

जीवन दो चार माह की नहीं, मानों यह बात सबकी सही.

जीवन की धारा कभी सीधी तो कभी उल्टी है बहती, धैर्य, संयम से रहे यही कहती.
कभी गले मिलना था शिष्टाचार और अब है सिर्फ दूर रहने का उत्तम विचार.

सामाजिक दूरी बनाए, बीमारी दूर भगाए.
खतरे से दूरी मास्क है बहुत जरूरी.
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200. ये सिरफिरे..
कोरोना रक्षक के हौसलों को तोड़ते ये सिरफिरे.
देश के लिए नासूर बनते जाते ये सिरफिरे,
इनकी कोई जाति नहीं, इनका कोई धर्म नहीं, जाति धर्म के नाम पर धब्बा लगाते ये सिरफिरे.
दवा इलाज का बचाव का ईनाम ईट पत्थरों से देते ये सिरफिरे.
किसी देश के नाम पर बदनुमा दाग है ये सिरफिरे.
इन्हें तहज़ीब, शिक्षा, धर्म की कोई परवाह नहीं, देश काल परिस्थितियों का कोई वास्ता नहीं रखते ये सिरफिरे.
कैसे बचेगी मानवता, कैसे बचेगा धर्मों ईमान, इन्हें तार तार करते, ये सिरफिरे.


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दिल के किसी कोने में.

दिल के किसी कोने में तेरी तस्वीर बना रखी है.
दुनिया का कोई गम पहुँच न पाये ऐसे छिपा रखी है.
ये दुनिया अब बाहर नहीं जाने देती, अंदर ही घर बना रखी है.
तेरी यादों का सिलसिला टूट न जाये, इसलिए भस्म लगा रखी है.
सुनते हैं जख्म सहेजने से मन हल्का हो जाता है इसलिए मरहम लगा रखी है.
शीशा हो या दिल हो टूट ही जाता है इसलिए बड़ी संभाल कर रखी है.
  लोग उनको दुआ देते हैं जो चोट खाये और गीला न करें जुँबा खामोश रखी है.
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  खिड़की
दिल की खिड़की तुम खुला रखना, मैं आउगाँ जरूर एक बार.
याद रखना वो प्रथम निमंत्रण, याद रखना वो मेरा एतबार.
जब हृदय के तारों को तुमने प्रथम बार झंकृत किया था.
प्रथम बार इन युगल नेत्रों ने तृप्ति का अनुभव प्राप्त किया था.
हृदय ने जब प्रथम बार  तेरे दर्शन प्राप्त कर धड़कना भूल गया था.
याद है वो पहली अनुभूति तुम्हें जब तेरा सौन्दर्य मेरे प्रीति का पाश बना.
फिर पथ पर सहस्त्रों प्रेम गीत बिखर पड़े थे जो सब तेरे प्रेम में उपहार दे आया था.
आज उन प्रेम गीतों को पुनः गुंजायमान कर दो, मेरे प्रेम पथ को जगमग कर दो.
तेरे नयनों की झील में मै तब का डूबा अब तक उबर नहीं पाया हूँ न उबरना चाहता हूँ.


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आशा ही जीवन है
आशा ही जीवन है निराशा मरण, जीवन को चुनों उसका करों रक्षण.
उम्मीद को त्यागना मरण का द्वार खोलता है, जीने की आशा रख प्यारे.
घने अंधियारे के बाद आती है, चमचमाता स्वर्णिम उजियारा, लगता प्यारा.
बहती धारा में तिनके के सहारे में नन्ही चींटी नदी पार कर जाती है.
वट वृक्ष से गिरा गोदा, मिट्टी में बिखर कर वृहद नव वट वृक्ष को जन्म देता है.
पंक्षी भी अपने पंखों पर उम्मीद विश्वास कर ऊँची उड़ान भरते है.
जीत ही जीत नहीं है जीत का जज्बा, उत्साह, विश्वास, आशा ही जीत है.
सबरी की एक आशा ही उसे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम से मिलाती है.
आशा रखकर ही सिकन्दर विश्व विजेता बनता है मेरे प्यारे.
तू भी रख आशा कर प्रयत्न, कर ईश्वर में विश्वास, सफल हो जाओगे प्यारे.


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209. भारत जाग....चीनी वस्तु परित्याग

अब वक्त की है यही पुकार, भारत जाग, भारत जाग.
लोभ लिप्सा में आकर जिसने विश्व को कर दिया बीमार.
जिसकी धन लिप्सा ने इतने जख्म दिये धरती पर यार.
जो कर रहा मानव जीवन का सौदा और अपना बढ़ाये व्यापार.
बूढ़े मरते, बच्चे मरते, तड़प रहा है सारा जहान.
अब यह समय आ गया है यारों, इस दुष्ट से हो जाओ सावधान.
विदेशी छोड़ स्वदेशी अपनाओ, अपने देश, राष्ट्र का करो सम्मान.
कमर तोड़ो उस चीनी दुष्ट राष्ट्र का, विश्व पाए अब समाधान.
भारत जाग अब भारत जाग, चीनी वस्तुओं का अब कर परित्याग.
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210. बहुत दिन हुए.
आपसे मिले बहुत दिन हुए, जीवन रहा तो हम सदा की तरह मिलते रहेंगे.
अभी कोरोना संकट काल चल रहा है, मिलना जुलना मुहाल हुआ है.
हमें वो सब बातें याद है, भूला कुछ नहीं, जब मिलेंगे तो सारे शिकवे गिले दूर होंगे.
बहुत दिन हुए विद्यालय गये,साथी शिक्षकों से मिले, राष्ट्र निर्माण में एकजुट हुए.
बहुत दिन हुए घर से विद्यालय की सड़कों पर चले हुए जैसे बाँहें फैलाये बुलाती हो.
बहुत दिन हुए मित्रों से गलबाहियाँ मिलें अब तो कोरोना से इस पर पाबंदियां है.
बहुत दिन हुए घर की देहरी को लाने हुए
मानवता, राष्ट्र, समाज, परिवार खातिर.
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तो क्या
माना विद्यालय बंद है तो क्या अध्ययन, अध्यापन सब बंद रहेगा.
माना सड़क पर नहीं जाना है तो क्या हम ऐसे ही घूमते रहेंगे.
माना कि कुछ राष्ट्र द्रोही पत्थर फेंक रहे हैं तो क्या हम राष्ट्र धर्म छोड़ देंगे.
माना कि आवागमन बंद है तो क्या पैदल भूखे प्यासे चल देना ठीक है.
माना कि विश्व विपदा बहुत ही बड़ी है तो क्या संयम की लक्ष्मण रेखा तोड़ देंगे.
माना घर में जी नहीं लगता तो क्या घूम घूम के कोरोना फैलाते रहेंगे.

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अधूरे ख्वाब
घबड़ाओं मत अधूरे तेरे ख्वाब भी पूरे होगे, धैर्य रखे, संयम रख और ईश्वर को मत भूल
गर तेरे इरादों में जान है, इरादे भी पूरे होगे.
वक्त सबका इम्तहान लेता है,सबको जांचता
जो शर्तों पर पूरा उतरता, उनको भी मापता
इरादे नेक तो राह मिलेगी रास्ता भी दिखेगा
वह इंसान क्या इंसान  जिसके ख्वाब नहीं
आँखे देखती है जज्बात नहीं ख्वाब नहीं
जो इन्हें पूरा करे, असल में है वही इंसान.
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जख्मों को सहलाते रहना.

बड़ा कड़ा है सफर न उब जाना,
हरे जख्मों को सहलाते रहना.
आँधी आये चाहे तूफाँ आ जाये,
चाहे घिरे प्रबल घटाये, मत घबड़ाना
साथी मेरे, जीवन की पथरीली राहें,
कंकड़ हो चाहे पत्थर हो या चट्टानी
दुष्कर बाधाएं, धैर्य, संयम से रोके रहना
दैहिक, दैविक, भौतिक बाधाएं,
कभी तो राह सुगम यूँ बनेगी,
कट जाएगी ये सारी बाधाएं,
ईश्वर आस बनाये रखना,
प्रेम का दीया जलाये रखना
खत्म होगी ये सारी बाधाएं.
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217. विश्व पुस्तक दिवस
आज विश्व पुस्तक दिवस है, इसकी महत्ता सनातन युगों से चली आ रही है.
आज भी प्रासंगिक है और अनंत युगों तक प्रासंगिक रहेगी.
पुस्तके ज्ञान पुंज है, ये जहाँ रहेगी, स्वत: ही स्वर्ग वह स्थान बन जाएगा.
पुस्तकों में युगों युगों की ज्ञान राशि संचित पड़ी है, तभी तो वेदों में कहा है.
आ नो भद्रा: ऋतवो यन्तु विश्वत: अर्थात विश्व के प्रत्येक कोने से शुभ विचार हमें प्राप्त हो.
इन्ही पुस्तकों से हम आदिकवि बाल्मीकि, भास, पाणिनि, बाणभट्ट आदि के विषय एवं रचनाओं को जानते हैं.
इन्ही से हम सुकरात, अरस्तू, प्लेटो आदि को जानते हैं.
इन्ही से हम शेक्सपीयर, मिल्टन, कीट्स, मैथ्यू रोनाल्ड आदि को हम जानते हैं.
इन्ही से हम सूर, तुलसी, रहीम, रसखान, मीरा, जायसी, कबीर, नानक, केशव, बिहारी, मतिराम, घनानन्द को जानते हैं.
किताबों का सदैव आदर होना चाहिए, अनादर की स्थिति में देश, समाज, सभ्यता, संस्कृति सब कुछ विनष्ट हो जाएगा.
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218. युग
हम तुम युग युग से ये गीत मिलन के गाते रहे हैं.
हम तुम हर युग में अपनी प्रेम प्रीत को निभाते रहे हैं.
हम तुम सतयुग में मनु शतरूपा बन के अवतरित हुए थे.
हम तुम त्रेतायुग में राम सिया बनकर आये हुए थे.
हम तुम द्वापरयुग में राधा कृष्ण बन रास रचाते रहे हैं.
हम तुम कलयुग में भी विभिन्न रूपों में तो आते रहे हैं.
हम तुम कभी सोहनी तो महिवाल बनकर आते रहे हैं.
हम तुम कभी राँझा तो कभी हीर बनकर आते रहे हैं.
हम तुम कभी रोमियो तो कभी जूलियट बनकर आते रहे हैं.
चाँद चकोरी की प्रेम कहानी प्रेम जगत में है सबसे पुरानी.
उससे पुरानी भी अपनी कहानी प्रेम जगत में है जानी पहचानी.
युगों युगों से चलता आया तेरी मेरी रीति सुहानी.
अब इस युग में आ भी जा तू बनके मेरी प्रीत रे.


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220. धन्यवाद/ आभार

धन्यवाद हम जताते, आभार है हम देते,
भावों के मोती को उपहार हम है देते,
हृदय की पोथी में जो भावना छिपी थी,
सुंदर सा शीर्षक देकर भावना वो जगाते,
नव छंद भाव मिलकर दीपक सा जला है,
हृदय सोपान से वह कागज पर आ जड़ा है
कितने प्रफुल्लित है , कुछ कह नहीं सकते,
अपने सृजन को हम यूँ भावना सा लखते,
शाबाशियों को देकर, आप और पुष्ट करते,
यूँ ही आपसब का स्नेह प्रेम बना रहे बराबर
माँ शारदे से बस यही आशीष माँगते है
तेरी साधना निशिदिन हम यूँ ही लगे रहे हैं,
कर दे इसे सफल तू वरदान माँगते है
आभार मानते हैं, धन्यवाद कर रहे हैं.
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222. मन की डोर को बाँधे रखना.

लाख जी घबराये मन की डोर बाँधे रखना,
नैया मझधार डगमगाये धीरज बाँधे रखना,
आँधी आये तूफाँ आये अडिग अचल रहना
अँधकार में भी प्रकाश दीप जलाये रखना,
जीवन में राह न सूझे गुरुवर को याद रखना
सुख में कभी भी अपने मित्रों को न भूलना,
ईश्वर की सदैव प्रार्थना स्मरण करते रहना,
समस्त प्रकृति मानवता  प्रेम बनाये रखना,
अपने से बड़े लोगों को आदर करते रहना,
गरीबों जरूरत मंदो की मदद करते रहना.
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223.सच बतलाओ कब आओगे.

सच बतलाओ कब आओगे, जीते जी या मेरे मरने के बाद.
ये अँधियारा कब छँटेगा, जीते जी या मेरे मरने के बाद.
अनिश्चितता, अविश्वास क्या खत्म होगी मेरे मरने के बाद.
ऐसा न हो कि जीने की आशा हो और प्राण पखेरू उड़ जाए.
इसलिए तुम्हारा आना लाजमी है मेरे जीते जी ही मेरे स्वामी.
आ जाओ अब बहुत हो चुका, यह सिद्ध हो चुका मेरी नादानी.
संसार अब निराशा में डूब रहा है, हताशा में डूब रहा मेरे स्वामी.
आ जाओ तुमने वचन दिया था,आउँगा जरूर तुमने कहा था स्वामी.
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224. आज कितना अजीब पाता हूँ.

आज वातावरण को कितना अजीब पाता हूँ.
आज  पर्यावरण को कितना अजीब पाता हूँ.
आज नदियों-झरनों को कितना अजीब पाता हूँ.
आज  मौसम    को  कितना अजीब पाता हूं.
आज संबंधों   को   कितना अजीब पाता हूँ.
अब के शिष्टाचारों को कितना अजीब पाता हूँ.
आज के व्यवहारों को कितना अजीब पाता हूँ.
आज के संस्कारों को कितना अजीब पाता हूँ.
आज के प्रेम  को   कितना   अजीब पाता हूँ.
आज के इंसानों को कितना अजीब पाता हूँ.
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227. भूख
सियासतदार सियासत खेल करते रह गये, गरीबों के बच्चे भूख से बिलबिलाते रह गये
भारत के असंख्य नौनिहालों की कहानी है
सड़क पर खाना, सड़क पर सोना, खेलना
राजनीतिक भारत की गरीबी को झेलना,
सियासतदार आते,सियासत कर चले जाते,
देश का भविष्य सड़कों पर है धूल फाँकते,
धूप, धूल, गर्मी, सर्दी, आँधी सहते बड़े होते
बड़े हुए बेरोजगारी का आजन्म दंश झेलते
या राजनेताओं के झंडे या चाटुकारी करते
इन नौनिहालों को देश भूख से आजादी दे,
शिक्षा दे, स्वास्थ्य दे, जीने का अधिकार दे.


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229. तस्वीर तेरी दिल में
तस्वीर तेरी दिल में बड़े दिल से उतारी है,
जिसमें मन का हंस बसता उसमें सँवारी है
आजा मेरे दिलवर तुम्हें दिल ने पुकारी है,
मैं आहें भरु तेरी राह तँकू दर्शन की बारी है तेरे लिए श्रृंगार सूना,मनवीणा का तार सूना
किशन भीअब याद करता मीरा की बारी है
पल छिन छिन तो ऐसे बीते बरसों गुजारी है
मन न लगे अब चैन न आवें रात गुजारी है
इस दिल को समझाऊँ कैसे साथ गुजारी है
अबतो आजा दरश दिखा प्राणों पर भारी है
तस्वीर तेरी दिल में उसी दिन से उतारी है
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डॉ कन्हैया लाल गुप्त किशन' उत्क्रमित उच्च विद्यालय सह इण्टर कालेज ताली सिवान बिहार 841239

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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: डॉ कन्हैया लाल गुप्त किशन' की कविताएँ
डॉ कन्हैया लाल गुप्त किशन' की कविताएँ
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