बाल उपन्यास - "मनीष और नर भक्षी" - भाग 5 : लेखिका - आभा यादव

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बाल उपन्यास "मनीष और नर भक्षी" लेखिका - आभा यादव प्रकाशक - विश्वविजय प्रकाशन, देहली. (लेखिका की अनुमति व सहयोग से प्रकाशित) -- पि...

बाल उपन्यास

"मनीष और नर भक्षी"

लेखिका - आभा यादव

प्रकाशक - विश्वविजय प्रकाशन, देहली.

(लेखिका की अनुमति व सहयोग से प्रकाशित)

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पिछले अंक -

भाग 1 / भाग 2 / भाग 3 / भाग 4 /

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पिछले अंक से जारी ...

भाग 5

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6

"आप को विश्वास है कि पुलिस मनीष को ढूंढ लेगी. "रीता ने संशय पृकट किया .

"अवश्य ढूंढ लेगी. फिर इसके अलावा हमारे पास दूसरा कोई रास्ता भी नहीं है. "अजीत सिंह ने बुझे मन से कहा.

रीता ने कुछ नहीं कहा. उसके अंदर एक तेज तूफान सा उठा हुआ था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि मनीष मिलेगा या नहीं?जब वे अपने अंदर के तूफान को न दवा पायीं तो पूछ बैठीं, "मनीष न मिला तब?"

अजीत सिंह के सीने में एक तीर सा चुभ गया. वे मनीष के न मिलने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे. मनीष उनके घर का इकलौता दीपक था. वे अपने घर में अंधेरा कैसे देख सकते थे.

"हमारा मनीष न मिला तो हमारा क्या होगा?"अजीत सिंह को चुप देखकर रीता ने फिर कहा.

"इंस्पेक्टर चौहान ने वायदा किया है. "अजीत सिंह ने दिलासा दी.

"आप आज फिर मिल लीजिए उनसे. "रीता ने आग्रह किया.

अजीत सिंह उठकर कपड़े बदलने लगे. वे रीता का सामना अधिक देर नहीं कर सकते थे. उनके पास रीता के प्रश्नों का कोई संतोष जनक उत्तर नहीं था. वे कुछ समय के लिए उनसे दूर चले जाना चाहते थे. कपड़े बदलकर वे कमरे से बाहर निकल गए.

अभी अजीत सिंह गेट तक पहुंचे ही थे कि इंस्पेक्टर चौहान को देखकर रूक गए.


"आइए, मैं आप ही के पास आ रहा था. "इंस्पेक्टर चौहान अंदर आये तो अजीत सिंह ने अपना हाथ आगे बढा दिया. इंस्पेक्टर को देखकर उनके चेहरे पर आशा की एक किरण आ गई थी.

इंस्पेक्टर ने अजीत सिंह से हल्के से हाथ मिलाया. अजीत सिंह इंस्पेक्टर चौहान को अंदर ड्राईंग रूम में ले गये.

रीता ने इंस्पेक्टर को देख लिया था. उन्होंने अंदर आते हुए इंस्पेक्टर से प्रश्न किया, "मनीष का पता लग गया?"

इंस्पेक्टर चौहान ने कोई उत्तर नहीं दिया. उनका चेहरा बुझा हुआ था.

"बताइए न!हमारा मनीष कहां है?"रीता रो पड़ी. उनके सब्र का बांध टूट गया.

"मुझे अफसोस है. अभी तक मनीष का कोई पता न चल सका. "इंस्पेक्टर चौहान ने धीरे से कहा.

वह मनीष को न ढूंढ पाने के कारण स्वयं को शर्मिंदा महसूस कर रहे थे.

"नहीं!"रीता चीखकर बेहोश हो गई.

यदि अजीत सिंह ने उन्हें संभाल न लिया होता तो वह जमीन पर गिर जाती .

"अजीत सिंह, मनीष को न ढूंढ पाने के लिए मैं शर्मिंदा हूं. "

"आप शर्मिंदा क्यों होते हैं?जिसकी किस्मत में अंधेरा हो उसका चिराग बुझने से कौन रोक सकता है. "कहते हुए अजीत सिंह की आँखें भर आयीं.

"आप ऐसा न सोचें. हम कोशिश कर रहे हैं. मनीष मिल जायेगा. "इंस्पेक्टर ने सांत्वना दी. वैसे उन्हें आशा नहीं थी. उन्हें लग रहा था कि मनीष किसी जंगली जानवर का निवाला बन गया है. उन्होंने ने मनीष को ढूढ़ेंगे की पूरी कोशिश की थी.


"अब ईश्वर का ही सहारा है. "कहकर अजीत सिंह ने गहरी सांस ली. फिर वह डाक्टर को फोन करने लगे.

इंस्पेक्टर चौहान की निगाहें अजीत सिंह के चेहरे पर टिकी थीं. अजीत सिंह कहीं खोये हुए थे. इंस्पेक्टर चौहान समझ रहे थे कि अजीत सिंह मनीष के बारे में ही सोच रहे हैं. लेकिन वह सांत्वना का एक शब्द भी नहीं बोल पा रहे थे. उन्होंने जंगल का चप्पा-चप्पा छान मारा था. उन्हें यह विश्वास हो गया था कि मनीष अब इस दुनिया में नहीं है. अन्यथा मनीष को ढूंढने में उन्होंने कोई कसर न छोड़ी थी.

रीता अभी भी बेहोश थी. अजीत सिंह रीता के पास बैठे थे. उनकी निगाह शून्य में टिकी थी. एकबार के लिए इंस्पेक्टर की इच्छा हुई कि मनीष के बारे में अजीत सिंह से बात करें. लेकिन कुछ सोचकर वे चुप रहे.

इंस्पेक्टर अजीत सिंह को इस स्थिति में अकेला छ़ोड़कर नहीं जाना चाहते थे. वह चुपचाप डाक्टर का इंतजार करने लगे.

कुछ समय पश्चात डाक्टर ने गगन के साथ ड्राईंग रुम म़े प्रवेश किया . डाक्टर को देखकर अजीत सिंह उठ खड़े हुए. उनका दाहिना हाथ डाक्टर मुखर्जी की ओर बढ़ गया.

अजीत सिंह से हाथ मिला कर डाक्टर मुकर्जी रीता का निरीक्षण करने लगे.

उन्होंने रीता को एक इंजेक्शन दिया. फिर उठते हुए बोले, "चिंता की कोई बात नहीं है. आराम करने दीजिए. "

"दवाई. "अजीत सिंह ने पूछा.

"गगन को भेज दीजिए. दवाई दे देगें. "डाक्टर मुकर्जी ने कहा.

गगन ने डाक्टर मुखर्जी का बैग उठाया और बाहर चल दिया.


अजीत सिंह डाक्टर छोड़ने बाहर तक आये.

"चिंता मत कीजिए. सब ठीक हो जायेगा. "अजीत सिंह का कंधा थपथपा ते हुए डाक्टर मुकर्जी ने कहा और गेट से बाहर निकल गए।

"अच्छा, अजीत सिंह मैं भी चलता हूँ. जल्दी मिलूँगा. "कहकर इंस्पेक्टर चौहान भी चल दिए.

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7

"बच्चे!सारे पत्थर तैयार हो गए. "तान्या ने आकर मनीष को सूचना दी.

"भेंगा यह सारी लकड़ी ले चलो. "भीकू द्वारा तैयार की गई लकडी की मूठों की ओर इशारा करते हुए मनीष ने कहा.

भेंगा ने सारी मूठें उठा ली.

"नीके और जेतू को भी साथ ले लो. "कहकर मनीष तान्या के साथ चल दिया.

दस पन्द्रह मिनट चल कर तान्या दाहिनी ओर मुड़ गया. सामने पीपल के पेड़ के नीचे आठ -दस जंगली बैठे थे. पास ही गोल पत्थरों के दो ढेर लगे थे. इन जंगलियों के चारों ओर जंगली बच्चे खड़े तमाशा देख रहे थे. मनीष को पास आते देखा तो बच्चे कुछ दूर हट गए. परंतु भागे नहीं. अब वे मनीष से डरते नहीं थे. मनीष भी जंगलियों के निकट आने की कोशिश कर रहा था.

पत्थरों के निकट आकर मनीष रूक गया. उसने चारों ओर निगाह दौड़ाई. पास खड़े छोटे बच्चे को उसने ऊपर उछाला और चूम लिया. बच्चा खिलखिला कर हँस पड़ा. सभी बच्चे पंजों के बल कूद कूदकर हँसने लगे. सभी जंगलियों के चेहरे खिले हुए थे. पास खड़े सरदार और मनका भी खुश थे.

"भेंगा लम्बी मूठें एक तरफ कर लो. "मनीष ने पास खड़े भेंगा को आज्ञा दी.

भेंगा लकड़ी की लम्बी मूठें निकाल कर एक ओर रखने लगा. मनीष ने एक लम्बी मूंठ उठाई और गोल पत्थर की ओर बढ़ गया.

जंगलियों ने मनीष के निर्देश के अनुसार पत्थरों को गोल चाकी का रूप दे दिया था. चाकी के दोनों पाटों के अलग -अलग ढ़ेर लगे थे. मनीष ने चाकी के ऊपर वाले पाट में लकडी की मूंठ लगा दी. "तान्या सारी मूठें ऊपर वाले पाटों में मजबूती से लगा दो. "ऊपर वाले पाटों की ओर इशारा करते हुए मनीष ने कहा.


तान्या मूठें चक्की के ऊपर वाले पाटों में लगाने लगा . अब मनीष ने तिरछी कटी हुई लकड़ी उठा कर ऊपर वाले पाट में अनाज डालने के स्थान पर लगा दी.

चक्की के ऊपर वाले पाट बनकर तैयार हो गए थे. अब मनीष ने नीचे वाला पाट सीधा किया. उसपर ऊपर वाला पाट रख दिया.

"तैयार हो गया?"सरदार ने उतावले पन से कहा.

"तान्या, यह पत्थर के जोडें इन पत्तों पर रख दो. "सरदार की बात का जवाब न देकर मनीष ने तान्या से कहा.

तान्या ने तैयार चाकी को उठाकर केले के पत्तों पर रख दिया. "पत्थर के सारे जोड़े पत्तों पर इसी तरह रख दो. "कहकर मनीष मनका की ओर बढ़ गया.

मनीष ने मनका के हाथ से कुछ चावल लेकर चाकी के छेद में डाले और चाकी गोलाई में घुमाने लगा.

जंगली स्त्री'पुरूष और बच्चे पास आकर खड़े हो गये. उनकी आँखों में कौतूहल था.

कुछ समय बाद चक्की से चावल का आटा निकलने लगा था.

"लो, सारी चाकी तैयार हैं. एक -एक चाकी पर एक -एक स्त्री बैठकर चावल का आटा तैयार करे. "मनीष ने कहा.

जंगली स्त्रियां अपने अपने चावल का आटा बनाने लगीं.


मनीष कुछ समय तक अपनी देखरेख में चावल का आटा बनवाता रहा. जब वह इन लोगों के कार्य से संतुष्ट हो गया तो तान्या से बोला, "तान्या मेरे साथ चलो. "

तान्या ने कोई प्रश्न नहीं किया. वह चुपचाप मनीष के पीछे चल दिया

अब मनीष और तान्या बस्ती से बाहर आम के पेड़ों के पास पहुंच कर रुक गए.

तान्या ने प्रश्न सूचक दृष्टि से मनीष की ओर देखा. मनीष ने कुछ कहा नहीं. वह चुपचाप आम के पेड़ पर चढ़ गया.

तान्या की दृष्टि मनीष पर टिकी हुई थी. स्थिति उसकी समझ से बाहर थी.

"तान्या, इन्हें एक जगह रखते जाओ. "पेड़ से पके आम तोड़कर नीचे फेंकते हुए मनीष ने कहा.

तान्या आम उठाकर एक जगह एकत्र करने लगा. जल्दी ही आम का बड़ा ढेर लग गया. वह पेड़ से नीचे उतर आया. "यह सब बस्ती में पीपल के पेड के नीचे पहुंचा दो, "आम के ढेर की ओर इशारा करते हुए मनीष ने कहा.

मनीष पाँच आम लेकर बस्ती की ओर चल दिया.

चलते-चलते जब वह पीपल के पेड के नीचे पहुंचा तो चावल के आटे के ढ़ेर लग चुके थे.

"बच्चे!चावल महीन हो गए. "मनीष को देखकर मनका ने बताया. उसका चेहरा खुशी से चमक रहा था.

"इस चावल को इकट्ठा कर लो. "मनीष ने कहा.


"सारा चावल इकट्ठा हो गया. "मनका ने जल्दी ही सारा चावल इकट्ठा कर लिया था.

"पानी लाओ. "कहते हुए मनीष आटे के ढेर के पास बैठ गया.

मनका ने पानी का लोटा मनीष की ओर बढा दिया.

मनीष आटे में थोड़ा -थोड़ा पानी डालकर आटा गूंथ ने लगा .

सभी जंगली उत्सुकता और आश्चर्य से मनीष के कार्य को देख रहे थे.

"अब आग जलाओ. "आटा गूंथ कर मनीष ने कहा।

मनीष के कहते ही जमीन खोदकर बनाए गये चूल्हों में आग जला दी गई.

"मिट्टी का थाल लाओ. "आग जल गई तो मनीष ने कहा. उसने तवे की समस्या दूर करने के लिए मिट्टी के तवे बनवा लिए थे.

मनीष ने जलते हुए चूल्हे पर मिट्टी के तवे को रख दिया.

"आटा लाओ. "चूल्हे के पास बैठते हुए मनीष ने कहा.


मनका ने गूंथा हुआ आटा मनीष के आगे रख दिया. "पानी"उसने हाथ में थोडा सा आटा लेकर लोई बनाते हुए कहा.

तुरंत पानी का लोटा मनीष के आगे आ गया.

मनीष पानी के सहारे आटे को रोटी का रूप देने लगा . जब रोटी काफी बडी हो गई तो उसने उसे तबे पर डाल दिया. तबा गरम हो चुका था. उसने रोटी को पलटा और दूसरी रोटी बनाने लगा. उसने तबे की रोटी चूल्हे मे रख दी और हाथ वाली रोटी तबे पर डाल दी.

सभी स्त्रियां मनीष के इस कार्य को तन्मयता से देख रही थी.

"लो मनका, मेरी तरह बना़ओ. "थोडा सा आटा मनका के हाथ में देते हुए मनीष ने कहा.

मनका रोटी बनाने लगी . उसकी रोटी गोल तो नहीं थी फिर भी काम चलाऊ ठीक थी.

मनका के काम से संतुष्ट होकर मनीष उठ खडा हुआ.

जंगली स्त्रियां अभी भी मनका को रोटी बनाते देख रही थीं.

"तुम लोग भी आग जलाकर मनका की तरह रोटियां बनाओ. "स्त्रियों को खड़ी देखकर मनीष ने कहा .

देखते ही देखते मैदान में कई चूल्हे जल गये. प्रत्येक चूल्हे पर एक एक स्त्री रोटी बना रही थी. जंगली बच्चे उत्सुकता से तमाशा देख रहे थे.

"बच्चे! तुम्हारी भेजी हुई लाल चीज पेड़ के नीचे रखी है. "तान्या ने कहा तो मनीष चौंक गया. रोटी बनवाने में वह इतना व्यस्त हो गया कि उसे तान्या का ध्यान ही न रहा.

"मनका से सात रोटी ले आओ. "मनीष ने आम के ढेर की ओर बढ़ते हुए कहा.


तान्या सात रोटी पत्तल पर रख कर मनीष को थमा दी.

"अब प्रत्येक चूल्हे से एक-एक रोटी और ले आओ. "रोटी की पत्तल आम के ढेर पर रखते हुए कहा.

शीघ्र ही प्रत्येक चूल्हे से एक एक रोटी मनीष के पास आ गई. पानी का लोटा हाथ में लेकर मनीष ने आँखें मूंद लीं. फिर आँखें खोलकर लोटे का थोड़ा सा पानी आम के ढेर पर छिड़क दिया.

सारे जंगली अभी भी मनीष को उत्सुकता से देख रहे थे.

मनीष ने चार रोटी और सात आम अपने लिए रख लिए. दो रोटी और दो आम सरदार को दे दिए. दो आम और दो रोटी तान्या को थमा कर मनीष तान्या से बोला, "यह सब बचा हुआ सामान बस्ती के लोगों में बांट दो.

देखते ही देखते सारे आम और रोटियां जंगली परिवार में बंट गये.

मनीष के खाना शुरू करते ही सारे जंगली भी रोटी और आम खाने लगे. सभी खुश थे. उन्होंने ने इतना स्वादिष्ट खाना पहले कभी नहीं खाया था.

"बहुत बढ़िया चीज है. "सरदार खुश होकर बोला.

"पंसद आया?"मनीष ने पूछा. उसे भी आम से रोटियां अच्छी लगीं थी. इतने दिन से चावल खाते हुए ऊब गया था.

"बहुत जायदा. "आम चूसते हुए सरदार ने कहा.

"अब देवता खुश है. बीमारी दूर हो गई और बढ़िया चीजें खाने को मिल रही हैं. "तान्या खुश होकर बोला.

"हम बच्चे के आभारी हैं. "सरदार ने गम्भीरता से कहा.


"अब हम आराम करेंगे. "कहकर मनीष अपनी झोंपड़ी की ओर बढ़ गया.

पूरी बस्ती में स्वस्थ वातावरण व्याप्त था. खुशी और उत्साह की लहर चारों ओर फेली हुई थी. बस्ती में फैली महामारी सपना हो चुकी थी. गंदगी का स्थान स्वच्छता ने ले लिया था.

इसके साथ ही जंगलियों के जीवन में काफी बदलाव आ गया था. वे अब केवल मीठे चावल खाकर संतोष नहीं करना चाहते थे. स्वादिष्ट भोजन की ओर उनका झुकाव हो गया था. वे मनीष से स्वादिष्ट भोजन के तरीके पूछते. फिर उन्हें बनाने में जुट जाते. मनीष ने उन्हें गन्ने के रस से गुड़ बनाना सिखा दिया था. बे कई तरह के पकवान बनाने लगे थे.

अब मनीष को भी जंगलियों के बीच रहने में ज्यादा असुविधा नहीं हो रही थी. जो खाने का मन होता मनका को बता देता. सभी लोग मनीष से प्रसन्न थे. मनीष जंगली बच्चों का चहेता बन गया था. सारे लोग उसे देवता बच्चा कहकर पुकारते थे. मनीष बच्चों के साथ नये नये खेल खेलता. उन्हें फलों के पेड़ों पर चढ़ा कर फल तुड़बाता. फिर सब मिलकर खाते.

बस्ती के सभी लोग मनीष से हिलमिल गये थे . मनीष को अब इनसे कोई भय नहीं था. रात को आराम से सो जाता.

लेकिन इन सबके बीच भी वह अपना घर नहीं भूल पाया था. अपने पिताजी और मां को याद करते हुए उसकी आंखें गीली हो जातीं. फिर न जाने उसे कब नींद घेर लेती.

**


8

आज बस्ती में घूमता हुए मनीष को बड़ा आश्चर्य हो रहा था. देखते ही खुश हो जाने वाले जंगलियों के चेहरे मुरझाए हुए थे. जंगली स्त्रियों की आँखें मनीष को देखकर डबडबा रही थीं. जो जंगली बच्चे, मनीष को देखते ही घेर रहते थे, अब घरों में छिपे बैठे थे. कभी कभी कोई बच्चा दरवाजे से बाहर गर्दन निकालता. किन्तु मनीष से नजर मिलते ही अंदर छुप जाता. हर कोई मनीष से नजरें बचाने की कोशिश कर रहा था। मनीष ने कुछ लोगों से बात करने की कोशिश की लेकिन कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला.

झोंपड़ी की सीढ़ियां चढ़कर मनीष ऊपर पहुंचा. सामने तान्या खड़ा था. तान्या को देखकर मनीष का चेहरा खिल उठा. वह हँसते हुए बोला'"कैसे हो तान्या?"

तान्या ने एक बार पलकें उठाकर मनीष की ओर देखा. फिर पलकें झुका लीं. उसकी आँखें गीली और चेहरा मुरझा या हुआ था.

मनीष तान्या की स्थिति को देखकर असमंजस में पड़ गया . उससे रहा न गया . उसने तान्या से पूछ ही लिया, "तान्या क्या बात है. सारी बस्ती में उदासी क्यों फैली हुई है?सब चुप क्यों हैं?"

"कल बिना चांद की रात है. "तान्या भरे गले से बोला.

"तो इसमें परेशानी की क्या बात हो गई?"मनीष ने सहजता से कहा. उसे मालूम था कि यह लोग अमावस्या की रात को बिना चांद की रात कहते हैं.

"कल देवता अपना चढ़ावा मांगेगा. "कहते तान्या की आँखों में भरे आँसू उसके गालों पर लुठक गये.

"कैसा चढ़ावा?"मनीष ने उत्सुकता से पूछा.

"बच्चे, तुम यहां से भाग जाओ. यह बस्ती छोड़ दो. "तान्या मनीष की बात अनसुनी करते हुए फुसफुसाया.

"क्यों?"मनीष ने पूछा.


"तुम्हारी जान को खतरा है. आज रात तुम कहीं भी चले जाओ. "तान्या फिर फुसफुसाया . उसकी आवाज में घबराहट थी.

"क्या कह रहे हो?"उसे तान्या की बात समझ नहीं आ रही थी. इतने दिन आराम से गुजर गये थे. जंगलियों ने उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचा या था. अब क्या बात हो गई.

"सही कह रहा हूँ. तुम्हारी जान को खतरा है. "कहते हुए तान्या की सांस फूलने लगी. माथे पर पसीना आ गया.

"कैसे?"मनीष ने तान्या के चेहरे पर नजर गड़ाते हुए पूछा. उसे तान्या की बात में सच्चाई नजर आ रही थी.

तान्या ने एक बार इधर -उधर देखा. फिर धीरे से बोला, "अंदर चलो. "

मनीष अंदर झोपड़ी में आ गया. तान्या भी उसके साथ भीतर आ गया. मनीष ने दरवाजा बंद कर लिया, "अब बताओ. "

"जब देवता तुम्हारे कहने से चांद खा सकता है तो तुम्हें बचा भी सकता है. तान्या ने मनीष की बात का जवाब न देकर कहा. उसके चेहरे पर एक आशा की किरण थी.

"पहले तुम मुझे सारी बात साफ साफ बताओ. "मनीष ने झल्ला कर कहा.


@तुम्हें मालूम है पूरी बस्ती में महामारी फैली थी. देवता नाराज था . तुम्हें देवता पर चढ़ाने के लिए लाए थे. "तान्या स्थिति स्पष्ट की.

"अब तो देवता नाराज नहीं है. बीमारी भी दूर हो गई है . "सच्चाई सामने देख मनीष ने समझाने की कोशिश की.

"लेकिन जिसे चढ़ावा मान लिया जाये उसे चढ़ाते अवश्य हैं. "तान्या ने परेशानी पृकट की .

"चढ़ावा कैसे चढ़ाते हैं?"मनीष ने पूरी जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से पूछा.

"चढ़ावे का सिर अलग कर देते हैं. उसके खून से देवता को स्नान करा देते हैं. "तान्या ने बताया.

"नहीं. "मनीष सिर से पांव तक कांप गया. एक दर्दनाक मौत उसके आगे घूम गई.

"देवता तुम्हारा कहना मानता है. तुम्हें बचा नहीं सकता?"तान्या ने भोलेपन से पूछा. वह मनीष की मौत नहीं चाहता था.

"मैं किसी भी देवता को नहीं जानता. न ही कोई देवता मेरा कहना मानता है. "मनीष ने बुझे मन से कहा. वह तान्या से कुछ भी नहीं छिपाना चाहता था.

--


"फिर बस्ती में फैली बीमारी कैसे ठीक हो गई?" तान्या ने आश्चर्य से पूछा.

"तुम लोग बस्ती में गंदगी रखते थे. दूषित नदी का पानी पीते थे. गंदगी साफ करके नीम के पत्ते जलाने से कीटाणु मर गये थे. इसलिए बीमारी दूर हो गई थी. "मनीष ने स्पष्ट किया.

"मटके में से देवता का प्रसाद भी तो देते थे?"तान्या ने फिर कहा.

"वह प्याज का अर्क था. उसके पीने से उल्टी आनी बंद हो जाती हैं. "मनीष ने समझाया।.

"देवता चांद कैसे खा गया?"तान्या ने उत्सुकता से पूछा.

"देवता ने चांद नहीं खाया था. "मनीष ने सही जानकारी दी.

"तब चांद कैसे कट गया था?"तान्या ने आश्चर्य से पूछा.

"जब चांद और सूर्य के बीच पृथ्वी आ जाती है तब चांद कटा हुआ दिखाई देता है, इसे चन्द्र ग्रहण कहते हैं. "मनीष ने बताया.

"ऐसा नहीं हो सकता कि कल भी चन्द्र ग्रहण पड़ जाए?"तान्या जल्दी से बोला.

"इससे क्या होगा?'मनीष ने बुझे मन से कहा.


"देवता का विश्वास दिला कर तुम बच जाओगे. "तान्या ने सुझाया.

"ऐसा सम्भव नहीं है. "

"क्यों?"

"ऐसा पूरे चांद की रात को होता है. "मनीष ने बताया.

"यह तो मुश्किल है. "तान्या गम्भीरता से बोला. उसके चेहरे पर फिर उदासी छा गई.

"क्या मुश्किल है?"

"तुम्हारा बचना. "

"क्या तुम्हारा सरदार हमें छोड़ नहीं सकता?"मनीष ने पूछा.

"चढा़वे को छोड़ा नहीं जाता . "तान्या ने बताया.

"और कोई रास्ता बचने का?"मनीष ने पूछा. इस समय उसका दिमाग कार्य नहीं कर रहा था.

"तुम बस्ती छोड़कर भाग जाओ. "तान्या ने सुझाया.

"लेकिन बस्ती से बाहर निकल ते ही नरभक्षी मार डालेंगे. "मनीष ने अपनी परेशानी बताई.

"तुम मेरे साथ चलो. मैं तुम्हें नरभक्षी से बचाकर सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दूंगा. "तान्या ने कहा.


"यदि यह बात सरदार को पता चल गया तो तुम्हें सजा मिलेगी?"मनीष ने चिंता प्रकट की.

"सरदार के पास एक ही सजा है-मौत. वह मिल जायेगी. "तान्या ने सहजता से कहा.

"लेकिन, मैं अपनी जिंदगी के लिए तुम्हें मौत के मुँह में नहीं ढ़केल सकता. "मनीष ने स्पष्ट मना कर दिया.

"लेकिन, मैं तुम्हें हर हाल में बचाकर रहूंगा. "तान्या ने दृढ़ता से कहा.

"आखिर तुम मुझे क्यों बचाना चाहते हो?"तान्या को अपनी बात पर अड़े देखकर मनीष ने कहा. वह नहीं चाहता था कि उसके कारण तान्या की जान जाए.

"मैं तुम्हारे एहसान का ऋण चुकाना चाहता हूँ. "

"कौन सा एहसान?"मनीष ने चौंक कर पूछा.

"एक बार में सिर दर्द से तड़प रहा था, तुमने मेरी सारी तकलीफ पलभर में दूर कर दी थी. "तान्या ने बताया . उसका स्वर एहसान में डूबा हुआ था.

"वह एहसान नहीं मेरा कर्तव्य था. "मनीष ने समझाया.


"मुझे भी अपना फर्ज निभाने दो. "तान्या ने जिद की.

मनीष गहरी चिंता में डूब गया. न तो वह स्वयं मरना चाहता था और न ही तान्या को मौत के मुँह में डालना चाहता था. वह कोई ऐसा उपाय करना चाहता था जिससे बिना किसी मुसीबत में पड़े जीवन बचाया जा सके. लेकिन, उसे ऐसा कोई उपाय सूझ नहीं रहा था.

"अंधेरा होते ही तुम बस्ती के बाहर पहुंच जाना . मैं तुम्हें गन्ने के खेत में मिलूंगा. "तान्या ने धीरे से समझाया.

"ऐसा कोई उपाय सोचो जिससे मैं भी बच जाऊं और तुम्हें भी सजा न मिले. "तान्या की बात पर ध्यान न देते हुए मनीष ने कहा.

(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)

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फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: बाल उपन्यास - "मनीष और नर भक्षी" - भाग 5 : लेखिका - आभा यादव
बाल उपन्यास - "मनीष और नर भक्षी" - भाग 5 : लेखिका - आभा यादव
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