गैब्रियल गार्सिया मार्खेज़ का उपन्यास - उस मौत का रोजनामचा (7)

SHARE:

गैब्रियल गार्सिया मार्खेज़ के उपन्यास Chronicle of a death foretold  का अनुवाद अनुवादक – सूरज प्रकाश mail@surajprakash.com   पिछली...

गैब्रियल गार्सिया मार्खेज़

के उपन्यास

Chronicle of a death foretold 

का अनुवाद

अनुवादक – सूरज प्रकाश

mail@surajprakash.com

 

पिछली किश्तें - 

 

  किश्त 1 | किश्त 2 | किश्त 3 | किश्त 4 | किश्त 5 | किश्त 6 |

 

सने संक्षेप में एक घोषणा कर दी थी, लेकिन यह घोषणा इतनी छोटी और परंपरागत किस्‍म की थी कि लगता था जैसे आख़िरी वक्‍त खाना पूरी करने की नियत से दो लाइनें घसीट दी गयी हों मैंने उससे तेईस बरस के बाद सिर्फ़ एक ही बार बात करने की कोशिश की थी लेकिन वह मुझसे ख़ासे आक्रामक ढंग से मिला था उसने इस पूरे ड्रामे में अपनी हिस्सेदारी के बारे में रत्ती भर भी जानकारी देने से इनकार कर दिया था जो भी हो, हम उसके बारे में जितना जानते थे, उसका परिवार भी उससे ज्‍यादा कुछ नहीं जानता था उन्‍हें भी रत्ती भर भी गुमान नहीं था कि वह आखिर इस शहर में करने ही क्‍या आया था, सिवाय इस अकेले मक़सद के कि एक ऐसी औरत से शादी कर सके, जिसे उसने कभी पहले देखा तक नहीं था

दूसरी तरफ, मुझे एंजेला विकारियो की नियमित ख़बरें लगातार मिलती रहीं जिससे मैं एक आदर्श छवि की प्रेरणा पाता रहा। मेरी नन बहन पिछले कुछ अरसे से आखिरी मूर्तिपूजकों का धर्म परिवर्तन कराने की नियत से अपर गुआज़िरा जाया करती थी और वह अक्‍सर उसके गांव में गप्प बाजी करने के लिए रुक जाया करती। कैरिबियाई नमक से तपते इस गांव में उसकी मां ने उसे जिंदा दफ़न करने की कोशिश की थी। “तुम्हारी कजिन की तरफ से आदाब।” वह हमेशा मुझसे कहा करती। मेरी बहन मार्गोट, जो शुरू-शुरू के बरसों में उसके पास जाया करती थी, ने मुझे बताया था कि उसने एक बहुत बड़े आंगन वाला हवादार और मजबूत मकान खरीद लिया था। इस घर में सिर्फ एक ही दिक्कत थी कि ज्वार की रातों में गुसलखानों में पानी भर जाता और सवेरे सोने के कमरों में मछलियां छटपटाती नज़र आतीं। उस वक्त के दौरान उसे जिस किसी ने भी देखा था, इस बात से सहमत था कि उसने खुद को कशीदाकारी में व्यस्त कर लिया था और उसमें महारत हासिल कर ली थी। अपने इस काम धंधे में उसने सब कुछ भुला देने में सफलता पा ली थी।

काफी दिनों बाद, उस अनिश्चित दौर में जब मैं गुआज़िरा के शहरों में विश्व कोष और डॉक्टरी की किताबें बेच कर खुद को बेहतर तरीके से समझने की कोशिशों में लगा हुआ था, तो एक दिन अचानक यूं ही इंडियन डैथ नाम के गांव तक जा पहुंचा था। एक घर में, जिसकी खिड़की समुद्र की तरफ खुलती थी, दिन के सबसे गर्म समय में स्टील के फ्रेम वाले चश्मे वाली, पीलापन लिये सफेद बालों वाली एक औरत कशीदाकारी करने वाली मशीन पर झुकी हुई थी। उसके कपड़े बता रहे थे कि वह अभी भी आधे मातम में है। उसके सिर पर लटके पिंजरे में बंद कनारी चिड़िया लगातार चिल्लाये जा रही थी। जब मैंने उसे उस तरह खिड़की के खूबसूरत चौखटे में देखा तो मैं यह विश्वास ही नहीं कर सका कि यह वही औरत है, जिसके बारे में मैंने सोचा था। इसकी वजह यह थी कि मैं यह स्वीकार करने के लिए खुद को तैयार ही नहीं कर सका कि ज़िंदगी घटिया साहित्य से मेल खाते हुए इस तरह खत्म होगी। लेकिन यह वही थी: एंजेला विकारियो, उस नौटंकी के तेईस बरस बाद।

मेरे प्रति उसका व्यवहार हमेशा की तरह था। दूर के मौसेरे-चचेरे भाई की तरह। उसने मेरे सवालों के जवाब बहुत ही शानदार सूझ बूझ के साथ और विनोद प्रियता के साथ दिये। वह इतनी मैच्योर और हाजिर जवाब थी कि यकीन करना मुश्किल था कि यह वही औरत है। जिस बात से मुझे सबसे ज्यादा हैरानी हुई थी, वह यह थी कि उसने जिस तरीके से अपनी खुद की ज़िंदगी को समझना छोड़ दिया था, वह चकित कर देने वाला था। कुछ ही पलों के बाद, वह पहली नज़र में उतनी उम्र की नहीं लगी, बल्कि उतनी ही जवान लगने लगी, जितनी मेरी स्‍मृतियों में अंकित थी और उसका उस व्यक्ति के साथ कुछ भी मेल नहीं खाता था, जो बीस बरस की उम्र में बिना प्यार-व्यार के शादी के लिए मंडप में बिठा दी गयी थी। उसकी मां ने उस बुड़बुड़ाते बुढ़ापे में भी किसी दुर्धर्ष भूत की तरह मेरी अगवानी की थी। उसने अतीत के बारे में बात करने से कत्‍तई इनकार कर दिया था और इस रोजनामचे के लिए मुझे उसमें और मेरी मां में हुई बातचीत के टूटे-बिखरे सूत्रों पर ही निर्भर रहना पड़ा था। कुछेक बातें मेरी याददाश्त में बनी रह गयी थीं, उन्हीं को खंगाला गया था। उसने तो एंजेला विकारियो को जीते जी मार डालने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी, लेकिन उसकी छोकरी किसी और ही मिट्टी की बनी हुई थी। उसने अपनी बदकिस्मती को कभी भी रहस्यवाद का जामा नहीं पहनाया, इसलिए मां की योजनाएं धरी की धरी रह गयी थीं। इसके विपरीत, होता यह था कि जो भी उसकी बात सुनने में दिलचस्पी दिखाता, एंजेला विकारियो उसे छोटे से छोटे ब्यौरे के साथ पूरा किस्सा सुनाती, बस वह एक ही रहस्य से कभी भी परदा नहीं उठाती थी; उसकी ज़िंदगी तबाह करने वाला आखिर था कौन और क्यों था, क्योंकि सबको विश्वास था कि वह कम से कम सैंतिएगो नासार तो नहीं ही था। सैंतिएगो नासार इतना घमंडी था कि उसकी तरफ देखता तक नहीं था, वह तुम्हारी बोदी कजिन, वह जब भी एंजेला विकारियो का जिक्र करता, इसी रूप में करता। इसके अलावा, जैसा कि हम उस वक्त कहा करते थे, सैंतिएगो नासार पूरा, शकर खोर था। वह ठीक अपने पिता की तरह अकेला घूमता। उन जंगलों में जो भी कुंवारी कन्या इधर उधर मंडराती हुई उसकी निगाह में चढ़ जाती, उसको मसल डालता। लेकिन शहर में फ्लोरा मिगुएल के साथ परम्परागत संबंध और मारिया एलेक्‍जेंद्रीना सर्वांतीस के साथ के तूफानी रिश्ते के अलावा उसका और कोई मामला सुनने में नहीं आया था। मारिया एलेक्‍जेंद्रीना सर्वांतीस के साथ उसके मामले ने उसे चौदह महीने तक आशिक दीवाना बनाये रखा था। सबसे ताजा किस्सा, जो कि शायद सबसे अधिक साक्ष्य विरुद्ध भी था, शायद एंजेला विकारियो से जुड़ा था जो किसी ऐसे आदमी को बचा रही थी जो उसे सचमुच प्यार करता था और उसने सैंतिएगो नासार का नाम सिर्फ यह सोच कर चुन लिया था कि उसके भाई सैंतिएगो नासार के खिलाफ जाने का साहस तो नहीं ही जुटा पायेंगे। जब मैं उससे दूसरी बार मिलने गया था तो मैंने खुद उससे ही सच्चाई उगलवाने की कोशिश की थी। हालांकि मेरे सारे तर्क अपनी जगह पर सही थे, लेकिन उसने अपनी कशीदाकारी से आंखें उठा कर भी नहीं देखा।

“अब गड़े मुर्दे तो मत उखाड़ो, मेरे भाई” उसने मुझसे कहा था।

“यह वही था,” इसके अलावा उसने सब कुछ, राई रत्ती, यहां तक कि अपनी सुहागरात का हंगामा भी बिना किसी लाग लपेट के सुना दिया था। वह याद कर रही थी कि किस तरह उसकी सखियों ने उसे पाठ पढ़ाया था कि अपने मरद को बिस्तर पर इतनी ज्यादा पिलाओ कि उसका पेशाब निकल जाये, वह जितनी परेशानी और असुविधा महसूस कर रही हो, उससे ज्यादा का स्वांग करे ताकि वह, उसका मरद बत्तियां बुझा दे और उसे मौका मिल जाये कि वह खुद को, कुंवारी, अछूत कन्या सिद्ध करने के लिए फिटकारी वाले पानी का डूश ले सके, और चादर पर दाग लगा सके, ताकि अगली सुबह दुल्हन वाले आंगन में मरक्यूरोक्रोम के दागों वाली चादर दिखा कर अपने कौमार्य भंग होने का विश्वास दिला सके। उसकी भोली सखियों ने दो चीज़ों का ध्यान नहीं रखा था। बयार्दो सां रोमां की शराबी के रूप में गज़ब की खुद को रोक सकने की ताकत और एंजेला विकारियो की खुद की शुद्ध शालीनता जो उसकी मां ने उसके भीतर कूट-कूट कर भरी थी,“मुझसे जो कुछ भी कहा गया था, उसमें से मैंने कुछ भी नहीं किया।” उसने मुझे बताया था,“क्योंकि मैं जितना भी इसके बारे में सोचती थी, उतना ही महसूस करती थी कि ये सब गंदी चालें हैं और इन्हें किसी के साथ भी नहीं खेला जाना चाहिए, खासकर उस बेचारे के साथ तो बिल्कुल भी नहीं जो अभागा मुझसे शादी कर रहा है।” इसी वजह से उसने रौशनी भरे बैडरूम में खुद को नंगा हो जाने दिया था। वह अब उन सारे डरों से मुक्त हो गयी थी, जिनसे उसकी ज़िंदगी तबाह हो गयी थी,“यह सब कुछ एकदम, आसान था,” उसने मुझे बताया था,“क्योंकि मैं खुद को मरने के लिए तैयार कर चुकी थी।”

सच तो यह था कि उसने अपनी बदकिस्मती के बारे में बिना किसी शर्म-लिहाज के इसलिए बता दिया था ताकि अपनी दूसरी बदकिस्मती के बारे में, असली मुसीबत के बारे में सच्चाई छुपा सके। यही असलियत उसे भीतर से जलाये जा रही थी। जब तक उसने यह बात मुझे खुद ही बताने का फैसला नहीं कर लिया, किसी को शुबहा भी नहीं हो सकता था कि जिस पल से बयार्दो सां रोमां ने उसे उसके घर की चौखट पर ला छोड़ा था, वह हमेशा के लिए उसकी ज़िंदगी में रहा था। यह आखिरी चोट थी। “जब मेरी मां ने मुझे मारना शुरू किया, अचानक ही मैं उसे याद करने लगी।” उसने मुझे बताया था,“लातों-घूंसों से तकलीफ कम होने लगी थी क्योंकि मैं जानती थी, ये सब उसके लिए हैं।” वह खुद पर एक खास हैरानी के साथ लगातार उसी के बारे में सोचती रही थी। वह तख्तपोश पर बैठी सुबक रही थी,“मैं इसलिए नहीं चिल्ला रही थी कि मुझे लात-घूंसे पड़ रहे थे या इस किस्म की कोई चीज़ हो रही थी,” वह मुझे बता रही थी, “बल्कि मैं तो उसी के लिए रो रही थी।” वह तब भी उसी के बारे में सोच रही थी जब उसकी मां ने उसके चेहरे पर आर्निका का लेप लगाया था और उस समय तो उसकी याद और भी ज्यादा आयी थी जब उसने गली में शोर शराबा सुना था और घंटाघर से आग लगने पर बजाये जाने वाले घंटों की आवाजें सुनी थीं। वह आराम से सो सकती है। हादसा हो चुका है।

वह लम्बे अरसे तक, बिना किसी मोह भ्रम के उसके बारे में सोचती रही थी। तब भी जब उसे अपनी आंखों की जांच कराने के लिए अपनी मां के साथ रिओहाचा के अस्पताल में जाना पड़ा था। रास्ते में वे होटल देल पुएरतों में रुकी थीं। वे होटल के मालिक को जानती थीं। पुरा विकारियो ने बार में एक गिलास पानी मांगा था। पुरा विकारियो अपनी लड़की की तरफ पीठ किये पानी पी रही थी, तभी एंजेला ने कमरे में चारों तरफ लगे दर्पणों में खुद के ख्यालों को प्रतिबिम्बित होते देखा था। एंजेला विकारियो ने एक ठण्डी सांस भरते हुए अपना सिर घुमाया था। वह उस वक्त वहां से गुज़र कर जा रहा था। बयार्दो सां रोमां की निगाह एंजेला पर नहीं पड़ी थी। तब एंजेला ने टूटे दिल से अपनी मां की तरफ देखा था। पुरा विकारियो पानी पी चुकी थी और अब आस्तीन से अपना मुंह पोंछ रही थी। पुरा विकारियो तब अपने नये चश्मे से एंजेला की तरफ देखते हुए बार से ही मुस्‍कुरायी थी, उस मुस्कुराहट में, एंजेला विकारियो को अपने जन्म से लेकर अब तक, पहली बार वह उसी रूप में दिखायी दी थी, जैसी वह थी। एक बेचारी औरत, जो अपनी पराजयों की आराधना में लीन थी।

“छी, वाहियात”। उसने खुद से कहा था। वह इतनी अशांत थी कि घर वापसी की पूरी यात्रा के दौरान वह ज़ोर-ज़ोर से गाती रही थी और बिस्तर पर गिर कर तीन दिन तक लगातार रोती रही थी।

यह उसका पुनर्जन्म था, “मैं दिलों-दिमाग से उसे लेकर पागल थी।” उसने मुझे बताया था। उसे देखने के लिए एंजेला को सिर्फ अपनी आंखें बंद करनी होती थीं। वह समुद्र में उसकी सांसों की आवाज सुन सकती थी। बिस्तर में आधी रात को बयार्दो सां रोमां के शरीर की दहक से एंजेला की नींद उचट जाती, हफ्ता खत्म होते न होते उसकी यह हालत हो गयी थी कि उसे एक पल के लिए भी चैन न मिलता। तब उसने बयार्दो सां रोमां को अपना पहला खत लिखा था। यह एक औपचारिक चिट्ठी थी जिसमें उसने बयार्दो सां रोमां को लिखा था कि उसने, एंजेला ने, उसे होटल से बाहर आते देखा था। उसे और भी अच्छा लगता अगर उस पर बयार्दो सां रोमां का निगाह पड़ी होती। वह फालतू में ही इस खत के जवाब का इंतज़ार करती रही थी। दो महीने तक इंतज़ार करते-करते थक जाने के बाद उसने पहले ही खत की तरह अस्पष्ट सी शैली में एक और खत लिखा था। इस खत का मकसद भी उसे पत्र का जवाब न देने की शिष्टता न दिखाने के लिए उलाहना देना थ। छः महीने बाद उसने छः खत और लिखे थे, जिनमें से किसी का भी जवाब नहीं आया था। जो भी हो, वह यही मान कर चल रही थी और उसके पास इसका सुबूत भी था कि ये खत उस तक पहुंच रहे थे।

पहली बार, अपनी किस्मत की देवी को यह पता चला था कि नफरत और प्यार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक-दूसरे के पूरक मनोभाव। वह जितने अधिक खत भेजती, उसके भीतर की ज्वाला उतनी अधिक धधकती, लेकिन साथ ही अपनी मां के प्रति विद्वेष भावना भी उतनी ही बढ़ती जाती। “उसे देखते ही जैसे मेरे पेट में शूल उठने लगते थे।” उसने मुझे बताया था,“लेकिन मां को देखते ही मुझे बयार्दो सां रोमां की याद हो आती थी।” छोड़ी हुई, परित्यक्त बीवी की तरह उसकी ज़िंदगी घिसटती रही थी। किसी बूढ़ी नौकरानी की ज़िंदगी की तरह वह अब भी अपनी सखियों के साथ बैठकर मशीन पर सीना-पिरोना करती। पहले की तरह कपड़े के फूल बनाती, कागजी चिड़िया बनाती और जब उसकी मां सोने के लिए अपने कमरे में चली जाती तो वह अपने कमरे में पौ फूटने तक जागती रहती और खत लिखती रहती। उसे पता था, इन खतों का कोई भविष्य नहीं है। वह, अपनी मर्जी की मालकिन बहुत कुछ सहन करने लगी थी, शांत चित्त की हो गयी थी और उसके लिए, एक बार फिर कुंवारी कन्या बन गयी थी। वह अपनी मन मर्जी के सिवाय किसी की भी अधीनता स्वीकार करने को तैयार नहीं थी और उसे अपनी धुन के अलावा किसी और की चाकरी मंजूर नहीं थी।

वह अपनी ज़िंदगी के आधे से भी अधिक समय तक उसे हर हफ्ते खत लिखती रही थी। कई बार मुझे समझता ही नहीं था कि क्या लिखूं। हंसते-हंसते लोट-पोट होते हुए उसने मुझे बताया था,“लेकिन मेरे लिए इतना जान लेना ही काफी होता था कि ये खत उसे मिल रहे थे। शुरू-शुरू में ये खत एक वाग्दत्ता के, सगाई हो चुकी लड़की के से अहसासों वाले सुकोमल खत होते। फिर ये खत गुप्त प्रेमिका की तरफ से छोटी-छोटी सूचनाओं के संदेशों के माध्यम बने, इनमें लुका छिपी खेल रही दिल की रानी की तरफ से खुशबूदार, इत्र सने कार्ड होते। ये खत कारोबारी पलों में भी बदले, प्रेम के दस्तावेज बने और एक ऐसा वक्त भी आया कि ये पत्र एक छोड़ी हुई, परित्यक्ता बीवी की तरफ से रोष पूर्ण उलाहने बन गये। एक ऐसी बीवी की तरफ से जिसने एक क्रूर बीमारी सी ईजाद कर ली थी कि जैसे भी हो, अपने मरद को वापिस आने पर मजबूर करना है। एक रात जब वह अच्छे मूड में थी तो उसने पूरे लिखे गये खत पर दवात से स्याही उडेल दी और नीचे एक पंक्ति जोड़ दी, “अपने प्रेम के सुबूत के रूप में मैं तुम्हें अपने आंसू भेज रही हूँ।” कई बार रोते रोते थक जाने के बाद वह खुद अपने पागलपन का मज़ाक उड़ाती। इस बीच छः बार डाकघर की इंचार्ज बदली थी और छ: बार उसे उसकी मदद मिली। बस, उसे एक ही बात कभी नहीं सूझी कि ये सब कुछ छोड़-छाड़ क्यों नहीं देती। इतना सब होते हुए भी वह उसके इस पागलपन के प्रति निष्ठुर बना रहा। यह सब किसी गैर मौजूद व्यक्ति को लिखने जैसा था।

दसवें बरस के दौरान एक सुबह, जब हवाएं चल रही थीं। वह अचानक उठ बैठी। उसे पक्का यकीन था कि बयार्दो सां रोमां उसके बिस्तर में नंगा लेटा था। तब एंजेला विकारियो ने उसे बीस पेज लम्बा उत्तेजनापूर्ण पत्र लिखा। इसमें उसने सारी शर्म हया छोड़ कर वे सारी कड़वी सच्चाइयां उंड़ेल कर रख दी थीं जो वह उस अशुभ रात से अपने सीने में यह दफन किये हुए थी। उसने उस खत में उन शाश्वत घावों की बात की थी जिसे उसने उस रात उसके शरीर पर लगाये थे। एंजेला विकारियो ने उसकी जीभ के नमकीन होने और उत्तेजक अफ्रीकी लिंग की खड़ी उठान का जिक्र किया था। शुक्रवार के दिन उसने यह खत डाक घर की इन्‍चार्ज को थमा दिया था। डाकघर की इन्‍चार्ज दोपहर के वक्त कशीदाकारी करने और चिट्ठियां इकट्ठे करने आती थीं। उसे पूरा यकीन था कि वह इस तरह खुद को हलका करने से ही वह अपनी तकलीफों का अंत कर सकेगी। लेकिन इसका भी कोई जवाब नहीं आया था। उस दिन से उसने इस बात की तरफ भी ध्यान देना छोड़ दिया था कि वह क्या लिख रही है यह लिख ही किसे रही है, लेकिन फिर भी वह बिना किसी रुकावट के सत्रह बरस तक लिखती रही थीं।

इसी बीच, अगस्त के एक दिन, जब वह अपनी सखियों के साथ बैठी कशीदाकारी कर रही थी तो उसे दरवाजे पर किसी के आने की आहट मिली। कौन आया है, यह देखने के लिए उसे सिर उठाने की ज़रूरत नहीं थी। “वह मोटा हो गया था, उसके सिर के बाल झड़ने लगे थे और नजदीक की चीज़ें देखने के लिए उसे चश्मे की ज़रूरत पड़ने लगी थी।” वह मुझे बता रही थी, “लेकिन, खुदा गारत करे, यह वही था।” वह डर गयी थी, क्योंकि वह जानती थी कि वह उसे उसी तरह खत्म हुआ देख रहा था, जिस तरह वह उसे देख रही थी, और वह यह नहीं सोचती थी कि वह उसे अब भी उतना ही प्यार करता होगा, जितना प्यार वह उसके लिए सहन कर पायेगी। उसकी कमीज़ अब भी पसीने से उतनी ही भीगी हुई थी जितनी उसने उसे पहली बार मेले में पहनी भीगी कमीज़ में देखा था। वह अभी भी वही बेल्ट लगाये हुए था। चांदी मढ़े उसके बिनसिये झोले भी वही थे।

बयार्दो सां रोमां ने एक कदम आगे बढ़ाया। उसने इस बात की परवाह नहीं की कि कशीदाकारी करने वाली लड़कियां हैरानी से उसे देख रही हैं। उसने अपने झोले सिलाई मशीन पर रख दिये।

“लो,” उसने कहा था, “आ गया हूँ मैं।” उसके पास कपड़ों से भरा हुआ एक सूटकेस था। वह रहने की नीयत से आया था। दूसरा सूटकेस यूं ही था। उसमें लगभग दो हजार चिट्ठियां थीं जो एंजेला विकारियो ने उसे लिखी थीं। उन्हें तारीख वार बंडलों में रंगीन रिबनों से बांध कर करीने से रखा गया था। इनमें से एक भी चिट्ठी खोली नहीं गयी थी।

बरसों तक हम किसी और चीज के बारे में बात ही नहीं कर सके। हमारी दिनचर्या, जिसमें आलतू-फालतू की आदतों का शुमार रहता था, अब सिर्फ इकलौती परेशानी के इर्द गिर्द घूमने लगी थी। सुबह मुर्गे की बांग होते ही हम सिर जोड़ कर बैठ जाते और किसी संयोग से घटी कई घटनाओं के सिरों को तरतीब देने की कोशिश करते। हम जानना चाहते कि आखिर ये बेतुका हादसा हुआ तो कैसे हुआ। यह तो तय था कि हम ये सब किन्हीं रहस्यों से पर्दा उठाने की नीयत से या इच्छा से तो नहीं ही कर रहे थे, लेकिन हमारी मंशा इतनी ही थी कि हमें किस्मत ने जो काम सौंपा था, उसे पूरा किये बगैर और स्थान की सही जानकारी के बगैर हम में से कोई भी यूं ही जीवन गुज़ारता नहीं रह सकता था।

कई लोग तो कभी भी ये चीज़ें जान ही नहीं पाये। क्रिस्‍तो बेदोया, जो आगे चल कर विख्यात सर्जन बना, खुद को कभी भी इस बात से आश्वस्त नहीं कर पाया कि वह अपने माता-पिता, जो सुबह से उसे चेताने के लिए उसका इंतज़ार कर रहे थे, के घर जाकर वहां आराम करने के बजाये दादा-दादी के घर जा कर दो घंटे गुज़ारने की अंतः प्रेरणा के आगे कैसे झुक गया। लेकिन, अधिकतर लोग, जो इस हादसे को रोकने के लिए कुछ कर सकते थे, और फिर भी कुछ नहीं किया था, वे खुद को यही सोच कर दिलासा देते रहे कि मान-सम्मान के मामले पवित्र एकाधिकारों के मामले होते हैं और उनमें सिर्फ उन्हीं लोगों की पहुंच होती है जो ड्रामे का हिस्सा होते हैं। “सम्मान ही प्यार है।” मैं अपनी मां को कहते सुनता, होर्तेन्‍सिया बाउते, जिसकी हिस्सेदारी इतनी भर थी कि उसने दो खून सने चाकू देख लिये थे, जिन पर उस वक्त तक खून लगा भी नहीं था, इतनी अधिक दृष्टि भ्रम में पड़ गयी थी कि वह प्रायश्चित के संकट में फंस गयी थी, और एक दिन, जब सब कुछ उसकी बरदाश्त से बाहर हो गया तो निपट नंगी गली में दौड़ गयी थी। सैंतिएगो नासार की मंगेतर फ्लोरा मिगुएल परेशानी की हालत में बार्डर सुरक्षा के एक लेफ्टिनेंट के साथ घर छोड़ कर भाग गयी थी और उस लेफ्टिनेंट ने विचाडा के रबड़ कामगारों के बीच उसे वेश्यावृत्ति में झोंक दिया था और विलेरॉस नाम की दाई, जिसके हाथों तीन-तीन पीढ़ियों की जचगियां हुई थीं, यह समाचार सुन कर मूत्राशय के सिकुड़ने का रोग लगा बैठी थी और अपनी मौत के दिन तक उसे पेशाब करने के लिए नली का सहारा लेना पड़ा था। क्‍लोतिल्‍दे आर्मेंता का पति, डॉन रोगेलियो दे ला फ्लोर, जो कि बहुत भला आदमी था, और छियासी बरस की उम्र में भी ऊर्जा से भरा हुआ था, आखिरी बार सिर्फ यह देखने के लिए उठा था कि उसके अपने घर के बंद दरवाजे के आगे किस तरह सैंतिएगो के टुकड़े-टुकड़े काट कर उसका कत्ल कर डाला गया था। वह भी इस सदमे को बरदाश्त नहीं कर पाया था और चल बसा था। प्लेसिडा लिनेरो ने आखिरी क्षणों में उस दरवाजे पर ताला लगाया था, लेकिन वक्त बीतने के साथ-साथ उसने खुद को इस इल्जाम से मुक्त कर लिया था। “मैंने ताला इसलिए लगाया था, क्योंकि दिविना फ्लोर ने कसम खा कर बताया था कि उसने मेरे लड़के को भीतर आते देखा था,” उसने मुझे बताया था,“और यह बात सच नहीं थी।” दूसरी तरफ, वह इस बात के लिए खुद को कभी भी माफ़ नहीं कर सकी कि उसने पक्षियों वाले अभागे पेड़ और दूसरे पेड़ों की शानदार शकुन विद्या में घालमेल कर दिया था। नतीजा यह हुआ कि वह हर समय मिर्च के बीज चबाने की घातक लत लगा बैठी थी।

अपराध के बारह दिन के बाद जांचकर्ता मजिस्ट्रेट शहर में आया था। शहर उस वक्त भी एक खुले घाव की तरह था। टाउन हाल में लकड़ी के खस्ता हाल दफ्तर में, जब धूप मृग तृष्णा के खेल कर रही होती, गन्ने की शराब डाली पॉट कॉफी पीते हुए मजिस्ट्रेट को मज़बूरन भीड़ पर काबू पाने के लिए और फौजी दस्ता बुलवाना पड़ा था। हुजूम के हुजूम बिन बुलाये ही गवाही देने के लिए बढ़े चले आ रहे थे। हर आदमी खुद को ड्रामे में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका के बारे में बताने के लिए जैसे मरा जा रहा था। मजिस्ट्रेट नया नया ग्रैजुएट था और वह अभी भी मामून के स्कूल का सूती काला सूट पहने हुए था। अपनी डिग्री की मुहर वाली सोने की अंगूठी उसने पहन रखी थी। उसके चेहरे पर नया नया पिता बनने का खुशगवार अहसास था। मैं कभी भी उसका नाम नहीं जान पाया था। उसके चरित्र के बारे में हम जो कुछ भी जानते हैं, वह हमें उस सारांश से मिला था, जिसे मैं बीस बरस बाद रिओहाचा के न्याय महल - पैलेस ऑफ जस्टिस में कई आदमियों की मदद से देख पाया था। वहां फाइलों का किसी भी तरह का वर्गीकरण नहीं था और उस जर्जर औपनिवेशिक इमारत के फर्श पर सैकड़ों मामलों की फाइलों के अम्बार लगे थे। यह इमारत ज्वार के वक्त तल मंजिल तक ऊंची लहरों की वजह से पानी से भर जाती और उस उजाड़ दफ्तर में फाइलों की खुली जिल्दें इधर उधर तैरती नजर आतीं। मैंने खुद कई बार खोये हुए कार्य कारण के उस टापू में से एड़ी एड़ी पानी में से फाइलों की तलाश की और पांच साल बाद तलाश का मुझे एक ही मौका हाथ लगा था और मैं उस सारांश के 322 पन्ने सुरक्षित निकाल पाया था। इसके पांच सौ पन्ने तो ज़रूर ही रहे होंगे।

किसी भी काग़ज़ पर जज का नाम नहीं आया था, लेकिन एक बात तो तय थी कि उसे साहित्य से गहरा लगाव रहा होगा। वह साहित्य की भूख रखने वाला प्रतीत होता था। उसने इस्‍पानी प्राचीन उच्च साहित्य और कुछेक लातिनी पुस्तकें तो ज़रूर ही पढ़ रखी होंगी। नित्शे का नाम बहुत परिचित रहा होगा। उस वक्त जजों में नित्शे को पढ़ने का बहुत चाव रहा था। हाशिये पर जो टिप्पणियां दर्ज की गयी थीं, सिर्फ स्याही के रंग की वजह से नहीं, बल्कि सचमुच खून से लिखी गयी लगती थीं। स्थितियों ने उसे जिस रहस्यमय पहेली में उलझा दिया था, उससे वह इतना हैरान-परेशान लगता था। यह उसके व्यवसाय की प्रकृति के बिल्कुल उलटा था।

उसे सबसे अधिक यही लगता था कि वास्तविक जीवन और नीति विरुद्ध साहित्य में बतायी जाने वाली घटनाओं में इतनी अधिक समानता नहीं होनी चाहिए कि इस तरह से ढिंढोरा पीट कर की गयी हत्या को भी कोई रोक नहीं पाया। इसके बावजूद, अपनी इतनी अधिक मेहनत के आखिर में जिस बात ने उसे सबसे अधिक सतर्क किया था, वो ये थी कि वह कोई अकेला संकेत, बेशक असम्भव सा ही क्यों नहीं हो, नहीं खोज पाया था जो बता सकता कि सैंतिएगो नासार गलती का शिकार हो गया था। एंजेला विकारियो की सखियां, जो रहस्य में, धोखेबाजी में उसकी भागीदार रही थीं, लम्बे अरसे तक यहीं कहती रहीं कि उसने राज़ में तो शरीक किया था, लेकिन उसने उन्हें किसी का नाम नहीं बताया था। कुल मिला कर उन्होंने यही बताया था, “उसने हमें चमत्कार के बारे में बताया था, लेकिन संत के बारे में नहीं।” जहां तक एंजेला विकारियो का सवाल था, वह टस से मस नहीं हुई थी।

जब जांचकर्ता अधिकारी ने उससे अपनी आड़ी तिरछी स्टाइल में पूछा था कि क्या वो जानती हैं कि सैंतिएगो नासार कौन था तो उसने भाव शून्य होकर जवाब दिया था।

“वह मेरा अपराधी था।”

और इस तरह से उसने खुलासे में यही हलफनामा दिया था। इसके अलावा न तो उसने यह ही बताया था कि कैसे और न ही कहां का ही संकेत दिया था। सिर्फ तीन दिन तक चले इस ट्रायल में जनता के प्रतिनिधि ने इस आरोप के कमज़ोर होने के पीछे अपनी सारी ताकत लगा दी थी। सैंतिएगो नासार के खिलाफ़ सुबूत की कमी की वजह से जांचकर्ता मजिस्ट्रेट की परेशानी का यह आलम था कि कई बार उसका अच्छा काम भी मोह भंग होने के कारण बरबाद हो गया लगता था। फोलियो संख्या 416 पर उसकी खुद की राइटिंग में और ड्रगिस्‍ट की लाल स्याही में, उसने एक हाशिये वाली टिप्पणी दर्ज की थी - मुझे एक पूर्वाग्रह दीजिए और मैं दुनिया को हिला दूंगा।

हतोत्साह की इस पाद टिप्पणी के नीचे उसी रक्तिम स्याही से एक मज़ाकिया स्कैच भी बना रखा था - दिल को चीरता हुआ एक तीर। उसके लिए और इसी तरह सैंतिएगो नासार के नज़दीकी दोस्तों के लिए भी हादसे के शिकार का अपनी ज़िंदगी के आखिरी घंटों के दौरान व्यवहार ही सबसे बड़ा सुबूत था कि वह निर्दोष था।

दरअसल, अपनी मौत की सुबह सैंतिएगो नासार को एक पल के लिए भी शक नहीं हुआ था, हालांकि वह इस बात को अच्छी तरह जानता था कि उस पर लगाये गये अपमान के आरोप की कीमत क्या थी, वह दुनिया की कुटिल व्यवस्था के बारे में अच्छी तरह से जानता था। उसे यह भी पता रहा होगा कि जुड़वां भाइयों का सादगी भरा व्यवहार अपमान झेल पाने की हिम्मत नहीं रखता होगा।

कोई भी बयार्दो सां रोमां को अच्छी तरह से नहीं जानता था, लेकिन सैंतिएगो नासार उसे इतनी अच्छी तरह से जानता था कि जान सके कि अपनी सांसारिक अकड़ फूं के नीचे वह भी अपने जन्मजात पूर्वाग्रहों के कारण वही प्रतिक्रिया व्यक्त करेगा जो और कोई करता। इसीलिए चिंता को जानबूझ कर पास न फटकने देना ही आत्मघाती रहा होगा। इसके अलावा, जब उसे आखिरी पलों में यह पता चल ही गया कि विकारियो बंधु उसे मारने के लिए तलाशते फिर रहे हैं तो भी उसकी प्रतिक्रिया आतंकित होने वाली नहीं थी, जैसा कि अक्‍सर कहा जाता है, बल्कि निर्दोष होने की वजह से वह हक्का बक्का रह गया था।

मेरी व्यक्तिगत राय यह है कि वह अपनी मौत को समझे बगैर ही मर गया था। मेरी बहन मार्गोट से यह वादा करने के बाद कि वह वापिस आयेगा और हमारे घर नाश्ता करेगा, क्रिस्‍तो बेदोया उसे बांह से पकड़ कर घाट पर ले गया था। दोनों ही इतने निश्चिंत लग रहे थे कि इससे गलत भ्रम पैदा हो गये,“वे दोनों इतने सन्तुष्ट भाव से चले जा रहे थे, मेमे लोइजा ने मुझे बताया था,“कि मामले को रफा-दफा कर दिया गया है।” यह सच था कि हर कोई सैंतिएगो नासार को इतना प्यार नहीं करता था। पोलो कैटिल्लो, जो बिजली प्लांट का मालिक था, यह मानकर चल रहा था कि उसका शांत बने रहना, उसका निर्दोष होना नहीं, बल्कि नकचढ़ापन था,“वह सोचता था कि उसके रुपये पैसे ने उसे अछूत बना दिया है।” उसने मुझे बताया था। उसकी बीवी फॉउस्ता लोपेजे की राय थी,“दूसरे तुर्कों की तरह वह भी, वैसा ही था।” इंडालेसियो पार्डो तभी क्‍लोतिल्‍दे आर्मेंता के स्‍टोर के आगे से गुज़रा ही था और जुड़वां बंधुओं ने उसे बताया था कि ज्यों ही पादरी चला जायेगा, वे सैंतिएगो नासार को मार डालेंगे। दूसरे कई लोगों की तरह उसने भी यही सोचा था कि ये किस्सा जल्दी उठ जाने वालों का दिवा स्वप्न ही है, लेकिन क्‍लोतिल्‍दे आर्मेंता ने उसे विश्वास दिला दिया था कि यह सच है। आर्मेंता ने उससे कहा था कि वह सैंतिएगो नासार के पास जाये और उसे आगाह कर दे।

“चिंता मत करो,” पैड्रो विकारियो ने उससे कहा था, “भले ही जो भी हो, तुम उसे अभी से मरा हुआ ही समझो।”

यह खुले आम चुनौती थी। जुड़वां बंधु जानते थे कि इंडालेसियो पार्डो और सैंतिएगो नासार के बीच दाँत काटी रोटी वाली दोस्ती है और उन्होंने यह भी सोचा होगा कि यह सही आदमी है जो उन्हें शर्म में डाले बगैर अपराध को होने से रोक सकता है। लेकिन इंडालेसियो ने सैंतिएगो नासार को क्रिस्‍तो बेदोया की बाहों में बाहें डाले घाट से निकलते देखा तो उसकी हिम्मत ही नहीं हुई कि उसे आगाह कर सके,“मैं हिम्मत हार बैठा था।” उसने मुझे बताया था। उसने उन दोनों की पीठ थपथपायी और उन्हें उनकी राह चले जाने दिया। उन्होंने इस पर रत्ती भर भी ध्यान नहीं दिया, क्योंकि वे अभी भी शादी के खर्चों का हिसाब लगाने में व्यस्त थे।

लोग तितर-बितर हो रहे थे और उन दोनों की तरह सब लोग चौराहे की तरफ बढ़े चले जा रहे थे। भीड़ काफी घनी थी, लेकिन एस्कोलॉस्टिका सिस्नेरोज को लगा, उसने दोनों दोस्तों को बिना किसी तकलीफ़ के चौराहे के बीच की तरफ जाते देखा था, क्योंकि लोग जानते थे कि सैंतिएगो नासार मरने वाला है और किसी भी आदमी की उसे छूने तक की हिम्मत नहीं हुई। क्रिस्‍तो बेदोया को भी लोगों के विचित्र व्यवहार की याद आयी थी, “लोग हमें यूं देख रहे थे, मानो हमने अपने चेहरे रंग रखे हों।” उसने मुझे बताया था। इसके अलावा, सारा नोरिएगा उस वक्त जूते की अपनी दुकान खोल रही थी जब वे दोनों वहां से गुज़रे। वह सैंतिएगो नासार का पीलापन देखकर डर गयी थी। लेकिन सैंतिएगो नासार ने ही उसे दिलासा दी थी।

“तुम कल्पना कर सकती हो, मिती सारा,” बिना रुके उसने कहा था,“ये सब क्या कोलाहल है?”

सेलेस्ते डेन्गॉण्ड पाजामा पहने अपने घर के दरवाजे पर बैठा उन लोगों का मज़ाक उड़ा रहा था जो बिशप को दुआ-सलाम करने गये थे। उसने सैंतिएगो नासार को कॉफी पीने के लिए आमन्त्रित किया था। “दरअसल, मैं सोचने के लिए थोड़ा समय पाना चाहता था।” सेलेस्ते डेन्गॉण्ड ने मुझे बताया था। लेकिन सैंतिएगो नासार ने जवाब दिया था कि वह कुछ जल्दी में है। वह मेरी बहन के साथ नाश्ता करने से पहले कपड़े बदलने के लिए लपक कर जा रहा था।

“मैं सब कुछ गड़बड़ समझ बैठा।” उसने मुझे बताया था,“क्योंकि अचानक मुझे लगा कि जब सैंतिएगो नासार जो कुछ करने जा रहा है उसके बारे में वह इतना अधिक निश्चित है तो विकारियो बंधु उसे नहीं ही मार सके होंगे।”

सिर्फ यामिल शाइयुम ही ऐसा शख्स था जिसने वही किया जो वह करना चाहता था। जैसे ही उसने अफवाह के बारे में सुना, वह अपने सूखे मेवे की दुकान से बाहर निकला और सैंतिएगो नासार का इंतज़ार करने लगा ताकि उसे आगाह कर सके। वह उन आखिरी अरब लोगों में से था जो इब्राहिम नासार के साथ आये थे। वह इब्राहिम नासार की मृत्यु तक ताश के खेलों में उसका भागीदार रहा था और अभी भी परिवार का खानदानी सलाहकार था। सैंतिएगो नासार से बात करने का उस जैसा अधिकार किसी के पास भी नहीं था। इसके बावजूद उसने सोचा कि अगर अफवाह बेबुनियाद निकली तो वह उसे बेकार में ही सतर्क कर बैठेगा। इसलिए वह पहले क्रिस्‍तो बेदोया से सलाह मशविरा कर लेना चाहता था। शायद उसे ज्यादा पता हो। जैसे ही क्रिस्‍तो बेदोया वहां से गुजरा, उसने उसे रोका। क्रिस्‍तो बेदोया ने सैंतिएगो नासार की पीठ पर थपकी दी, वह पहले ही चौराहे के सिरे तक पहुंच चुका था, और उसने आवाज दी, “तो फिर शनिवार को मिलते है।“ क्रिस्‍तो बेदोया ने तब यामिल शाइयुम की पुकार का जवाब दिया।

सैंतिएगो नासार ने जवाब तो नहीं दिया लेकिन यामिल शाइयुम से अरबी भाषा में कुछ कहा। यामिल ने हंसी से दोहरे होते हुए उसे भी अरबी में ही जवाब दिया। “यह शब्दों का एक खेल था जिसमें हमें हमेशा आनन्द आता था।” यामिल शाइयुम ने मुझे बताया था। बिना रुके ही सैंतिएगो नासार दोनों की तरफ विदाई का हाथ हिलाते हुए चौराहे के कोने की तरफ चला गया था। दोनों ने तभी उसे आखिरी बार देखा था।

क्रिस्‍तो बेदोया ने यामिल शाइयुम की सूचना सुनने भर का वक्त लिया और फिर लपक कर दुकान से बाहर भागा था ताकि सैंतिएगो नासार तक पहुंच सके। उसने उसे मोड़ पर मुड़ते हुए देखा था, लेकिन वह अब उसे चौराहे पर बढ़ती आ रही भीड़ के बीच कहीं भी देख नहीं पाया। उसने कई लोगों से पूछा लेकिन सबने एक ही जवाब दिया।

“अभी-अभी तो उसे हमने तुम्हारे साथ ही देखा था।” यह असम्भव ही लग रहा था कि वह इतने कम समय में घर पहुंच गया होगा, लेकिन जो भी हो, उसने चूंकि सामने वाला दरवाजा खुला और सिर्फ भिड़ा हुआ देखा तो उसे पूछने की नीयत से वह भीतर चला गया। उसने भीतर जाते समय दरवाजे के पास फर्श पर पड़े कागज को नहीं देखा। वह अंधियारे ड्राइंग रूम से गुजरा। उसने कोशिश की कि कोई आवाज़ न हो। अभी इतना समय नहीं हुआ था कि मेहमानों की आवाजाही शुरू हो, लेकिन घर के पिछवाड़े की तरफ कुत्ते जग गये और उससे मिलने चले आये। उसने कुत्तों को अपनी चाबियों से शांत किया। यह ट्रिक उसने कुत्तों के मालिक सैंतिएगो नासार से सीखी थी। वह रसोई की तरफ बढ़ चला। कुत्ते उसके पीछे-पीछे चले आये। वरांडे में उसे दिविना फ्लोर मिली जो बाल्टी और पोचा लिये जा रही थी ताकि ड्राइंग रूम की सफाई कर सके। उसने क्रिस्‍तो बेदोया को आश्वस्त किया कि सैंतिएगो नासार अभी तक वापिस नहीं लौटा है। विक्‍टोरिया गुज़मां, ठीक उसी वक्‍त जब वह रसोईघर में घुसा था, भट्टी पर खरगोश का दमपुख्त (स्ट्यू) तैयार करने में लगी थी। वह तत्काल ही समझ गयी थी। “उसका कलेजा मुंह में आने को था।” विक्‍टोरिया गुज़मां ने मुझे बताया था। क्रिस्‍तो बेदोया ने उससे पूछा कि क्या सैंतिएगो नासार घर लौट आया है, इसके जवाब में उसने भयातुर अज्ञानता के साथ जवाब दिया था कि सैंतिएगो नासार अब तक सोने के लिए घर नहीं लौटा था।

“मामला गम्भीर है,” क्रिस्‍तो बेदोया ने उसे बताया था, “वे लोग उसे मारने के लिए तलाशते फिर रहे हैं।”

“वे शनिवार से लगातार पीये जा रहे हैं।” क्रिस्‍तो बेदोया ने कहा था।

“इसमें कोई खास बात नहीं है,” वह बोली थी,“दुनिया में कोई भी ऐसा शराबी नहीं है जो अपने दोस्त को ही खा जाये।”

क्रिस्‍तो बेदोया ड्राइंग रूम में लौटा। वहां दिविना फ्लोर ने उसी वक्त खिड़कियां खोली थीं। “यह सच है कि उस वक्त बरसात नहीं हो रही थी,” क्रिस्‍तो बेदोया ने मुझे बताया था, “अभी सात भी नहीं बजे थे और सूर्य की सुनहरी किरणें खिड़कियों से भीतर आने लगी थीं।” उसने दिविना फ्लोर से एक बार फिर पूछा था कि क्या सैंतिएगो नासार वाकई ड्राइंग रूम से गुज़र कर नहीं गया था। अब की बार वह इतने पक्के तौर पर नहीं कह पा रही थी जितने यकीन के साथ उसने पहली बार बताया था। तब उसने प्लेसिडा लिनेरो के बारे में पूछा था। इसके जवाब में दिविना फ्लोर ने बताया था कि पल भर पहले ही वह उनकी कॉफी तिपाई पर रख कर आयी है, लेकिन उसने उन्हें जगाया नहीं है। हमेशा ऐसा ही होता था।

 

(क्रमशः अगली किश्तों में जारी…)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: गैब्रियल गार्सिया मार्खेज़ का उपन्यास - उस मौत का रोजनामचा (7)
गैब्रियल गार्सिया मार्खेज़ का उपन्यास - उस मौत का रोजनामचा (7)
http://lh4.ggpht.com/-FhQVW4towiw/U7-F3hDK3aI/AAAAAAAAZdc/LrGowgMiFac/image_thumb2_thumb_thumb.png?imgmax=800
http://lh4.ggpht.com/-FhQVW4towiw/U7-F3hDK3aI/AAAAAAAAZdc/LrGowgMiFac/s72-c/image_thumb2_thumb_thumb.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2014/07/7.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2014/07/7.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content