व्यंग्य/ चमचा अलंकरण समारोह

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(देश- दुनिया के हर तबके के चमचों से मन से क्षमा-याचना के बाद) वैसे तो ऑफिस में रोज जनता के चढ़ावे से कोई न कोई समारोह चलता ही रहता है । प...

(देश- दुनिया के हर तबके के चमचों से मन से क्षमा-याचना के बाद)

वैसे तो ऑफिस में रोज जनता के चढ़ावे से कोई न कोई समारोह चलता ही रहता है । पर अबके साहब ने अपनी रिटयारमेंट से कुछ दिन पहले दूसरे साहबों से सबसे अलग सोचा कि क्यों न जाते- जाते चमचा अलंकरण समारोह आयोजित कर सबको हक्का- बक्का किया जाए। और उन्होंने अविलंब घोषणा कर दी कि अगले से अगले शनिवार को वे ऑफिस में चमचा सम्मान समारोह आयोजित करने जा रहे हैं और उसका सारा खर्चा वे स्वयं वहन कर अपने कार्यकाल में चमचागीरी के मैदान में निसदिन डटे चमचों को सम्मानित करेंगे। पुरस्कारों की संख्या पांच होगी- चमचागीरी का लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड, बेस्ट चमचा ऑफ द ईयर खिताब, अतिविशिष्ट चमचा मेडल, विशिष्ट चमचा पुरस्कार एवं चमचा सांत्वना पुरस्कार।

ज्यों ही यह सकुर्लर ऑफिस में सर्कुलेट हुआ तो वे जो उनके चमचे थे , वे तो हरकत में आए ही पर वे जिनका उनके साथ छत्तीस का आंकड़ा था, वे भी कुछ-कुछ हरकत में आए बिना न रह सके। वे जो चमचे नहीं थे ,वे मन मसोस कर , दिल पर हाथ रख बार- बार बस यही कहते रहे,'काश! साहब की चमचागीरी कर ली होती तो......' पर अब क्या पछताए होत जो चिड़िया चुग गई खेत!

जिधर देखो, उठते- बैठते सारा दिन बस एक ही चर्चा। साहब समारोह में पता नहीं किसको चमचागीरी के लाइफ टाइम अचीवमेंट के अवार्ड से नवाजेंगे? साहब पता नहीं किसको बेस्ट चमचा ऑफ द ईयर का खिताब देंगे? साहब पता नहीं किसको अतिविशिष्ट चमचे के मेडल से विभूषित करेंगे? साहब पता नहीं किसको विशिष्ट चमचा पुरस्कार से अलंकृत करेंगे? खैर ,सांत्वना पुरस्कार तो हुआ न हुआ बराबर होता है। साहब की चमचागीरी के पुरस्कार पाने वालों की लिस्ट को लेकर कभी इसका नाम आगे होता तो कभी उसका। खैर, काम तो ऑफिस में पहले भी नहीं होता था। ऑफिस में केवल एक शर्मा ही हैं जो सदा ओवर बर्डंड रहे हैं बेचारे। वे न होते तो ऑफिस का चक्का जाम हो गया होता कभी का। वे इस दफ्तर की ग्रीस हैं, वे इस दफ्तर के लादा हैं, वे इस दफ्तर के भीत हैं। वे हैड ऑफिस में मिल-मिलाकर हर लैटर अपने को ही जारी करवाते हैं। या कि चुपके से यहां- वहां दूसरों के प्रोग्राम में भी जा आते हैं। इसलिए एक वही हर जगह विद्यमान रहते हैं। बेचारे इस दफ्तर के लिए पता नहीं क्या- क्या सहते हैं। भगवान उनको इस ऑफिस में हमेशा बनाए रखे।

पर इस घोषणा के बाद जब देखो, जहां देखो, जिसे देखो, ऑफिस का सारा काम बंद कर लाइफटाइम चमचागीरी अवार्ड के तथा चमचागीरी के दूसरे अवाडरें को लेकर एग्जिट ओपीनियन एकत्रित करने में जुटा हुआ। सबके अपने- अपने अनुमान। सबके अपने- अपने तीर तो अपनी- अपनी कमान।

ऐसा नहीं कि उन्होंने अपने चमचों को किसी भी जगह छूट न दी हो। उन्होंने अपने टेन्योर में किसीको ऑफिस में छूट दी हो या न, पर ऑफिस में चमचों को उनकी चमचागीरी के हिसाब से पूरी छूट दे रखी थी। ये जानते थे कि जो चमचों को छूट और विशेष छूट उनकी चमचागीरी के स्तर के अनुरूप न दी जाए तो वे हंगामा बरपा सकते हैं। साहब को पलक झपकते ही सूखने पा सकते हैं।

वैसे ये साहब पहले वालों से कुछ अधिक व्यावहारिक साहब साबित हुए। ये भले ही धूप में हुए सफेद बालों को कलर करते रहे हों पर ये चमचों की मानसिकता से भलीभांति परिचित। इसलिए ये कुछ मैनेज कर पाते या नहीं, पर चमचों को भलीभांति मैनेज करते रहे। उनके नजदीकी कहते हैं कि चमचों को मैनेज करने की उनके पास पीएच.डी हैं। इसके बाद भी चमचों को पालने पर शोध का लंबा अनुभव इनके पास है। एक यह भी वहज रही कि इनके कार्यकाल में हमारे ऑफिस के चमचों को कभी इनसे कोई शिकायत न रही। इन्होंने हर चमचे को असल में पूरी ईमानदारी से उसकी चमचागीरी के हिसाब से देखा- परखा। इनके हाथों से ऑफिस के सभी चमचे अपनी-अपनी चमचागीरी के स्तर के अनुरूप इनसे अपना-अपना पुरस्कार पा प्रसन्न रहे। इनसे शिकायत थी तो बस उन्हें जिनको चमचागीरी से अलर्जी थी। उनकी इस अलर्जी को लेकर साहब ने कई बार उनको स्टाफ मीटिंग में इनडायरेक्टली सलाह भी दी कि वे अपनी इस जान लेवा अलर्जी का इलाज किसी अच्छे डॉक्टर से समय रहते करवा लें ताकि ऑफिस में वे स्वस्थ रहें , मस्त रहें। इसके लिए उन्हें ऑफिस से जितने दिन गायब रहना हो, रहें। वे उन्हें कुछ नहीं कहेंगे। वे उनसे पूछेंगे भी नहीं कि वे इतने दिन कहां रहे। पर वे जब ऑफिस आएं तो इस अलर्जी से मुक्त होकर ही आएं।

साहब की चमचागीरी से अलर्जी दूसरी सब अलर्जियों में सबसे अधिक जानलेवा अलर्जी होती है। इस अलर्जी के चलते ऑफिस में बंदा न घर का रहता है न घाट का। पर उन चमचागीरी से अलर्जी वालों को न जाने क्यों इस अलर्जी से इतना प्यार था कि....वे ऑफिस छोड़ सकते थे पर अलर्जी नहीं। इलाज के लिए तरह-तरह के इंसेंटिवों का लालच देने के बाद भी वे अपनी अलर्जी का इलाज पता नहीं क्यों करवाना नहीं चाहते थे?

.................आखिर वह रोज आ ही गया जब ऑफिस के बाहर एक पांडाल लगाया गया। उसे एक प्रोजेक्ट के जाली बिल बनवा यों सजाया गया कि...... उसकी साज- सज्जा देख कोई अप्सरा भी उस वक्त उसे देखा लेती तो ईर्ष्या से जलकर राख तो नहीं पर कोयला अवश्य हो जाती।

पांडाल में आईसीटी देख रहे वर्मा ने दस बजे ही साहब भक्ति के गीत बजाने शुरू कर दिए थे। कम्बख्त ने क्या गजब का साहब भक्ति के गीतों का चयन किया हुआ था? हर गीत ऐसा कि सुनकर कलेजा मन को आ जाए, मरता हुआ बंदा भी भगवान के चरण ढूंढने के बदले साहब के चरण ढूंढने को हाथ-पांव मारने लग जाए।

देखते ही देखते पांडाल सज धज कर आए ऑफिस के कर्मचारियों से भरने लगा। पहली बार आज ऑफिस के सारे कर्मचारी एक साथ उपस्थित हुए थे। हर चमचा दूसरे से अधिक सजा हुआ, चमचागीरी के भार से इतना लदा हुआ कि बेचारे से चला भी न जाए। हर चमचा एक दूसरे को घूरता हुआ। एक दूसरे पर सड़ता हुआ। यह तो लगभग सबको पता था कि लाइफ टाइम चमचगीरी अवार्ड तो बस उन्हें ही मिलेगा पर फिर भी....... दूसरे अवार्डों को लेकर अभी भी स्थिति स्पष्ट नहीं थी।

तय समय पर साहब सरकारी गाड़ी से मुस्कुराते हुए सपत्नीक, पत्नी के ब्रितानी कुत्ते सहित उतरे तो उनका स्वागत करते उनके चमचे उनके गले में माला डालने के लिए , उन्हें अपना बुका देने के लिए एक दूसरे को पीछे धकेलने लगे। चमचों में यही होड़ कि किसका बुका साहब के हाथों में पहले सजे, किसकीे माला सबसे पहले साहब की गरदन में फंसे। जिनको चमचागीरी से अलर्जी थी वे भी आज हाथ में बुका लिए साहब के स्वागत के लिए लाइन में खड़े दिखे तो मंद- मंद मुस्कुराते साहब को विश्वास हो गया कि अब कलियुग खत्म और चमचायुग शुरू। चमचायुग को आने से अब कोई माई का लाल नहीं रोक सकता।

साहब ने अपने खासों से सबसे बुके ग्रहण कर अपनी पत्नी व पत्नी के डियर कुत्ते सहित कुर्सी ग्रहण की तो स्टाफ सेक्रेटरी ने मंच संभाला,' हे मेरे ऑफिस के साहब भक्तो! आज वह घड़ी आ ही गई जिस घड़ी का हमें बेकरारी से पिछले पंद्रह दिनों से इंतजार था। हम आभारी हैं अपने साहब के कि जिन्होंने इस ऑफिस में एक नई परंपरा की शुरूआत की। उन जैसा युग पुरूष कोई नहीं। वे साक्षात् युग पुरूष हैं......' इससे पहले की मंच के नीचे बैठे तालियां बजाते साहब ने खुद ही तालियां बजानी शुरू कीं तो पांडाल में बैठा हर चमचा दूसरे चमचे से ज्यादा जोर से अपनी हथेलियां पीटने लगा।

साहब ने अपना कोट ठीक किया और रंग बिरंगी प्लास्टिक के फूलों की मालाओं से लदी गरदन लिए माइक के पास तनकर खड़े हुए। कुछ देर तक अपना खराब गला साफ करने के बाद बोले,' मित्रो! आज आप सबको यहां एक साथ पहली बार देख मन को बड़ी तसल्ली हो रही है। साहब होकर ऑफिस में काम तो सब करते हैं पर कुछ खास कर रिटायर हुआ जाए तो रिटायर होने का मजा ही कुछ और है। सो मैंने सोचा कि कुछ खास करके ही रिटायर हुआ जाए। और उसी पॉजिटिव सोच का परिणाम है कि आज हम सब यहां.......

निर्विवादित है कि चमचे हर युग में रहे हैं। चमचे हर काल में रहे हैं। चमचे हर दरबार में रहे हैं। चमचे हर सरकार में रहे हैं। चमचे हर दफ्तर में रहे हैं। चमचे हर अफसर के रहे हैं। भले ही वेदों,उपनिषदों, संहिताओं, आरण्यकों, में चमचों के बारे में सैद्धांतिक रूप से कुछ लिखा गया हो या न, पर इनमें भी शोधार्थियों को प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष चमचागीरी के पुख्ता सबूत मिले हैं। असल में जिनके कोई सिद्धांत नहीं होते, उनका सैद्धांतिक पक्ष भी नहीं हो सकता। ऐसे में चमचागीरी का कोई पुख्ता सैद्धांतिक - दार्शनिक पक्ष हो या न, पर इसका व्यावहारिक पक्ष अनादिकाल से बड़ा मजबूत रहा है।

दोस्तो! चमचे अपने को हर बार शुभचिंतक कहलवाने की भरपूर कोशिश करते हैं। पर चमचे चमचे ही होते हैं, शुभचिंतक नहीं। चमचा जब भी अवसर मिले अपनी चमचाई को प्रदर्शित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ता। वह मुंह सामने कुछ और होता है और पीठ पीछे कुछ और। उसके पास चमचाई प्रदर्शित करने को शब्दों का भरा पूरा शब्दकोश होता है। जबकि शुभचिंतक को अपनी शुभचिंतकी के प्रदर्शन से कोई लेना-देना नहीं होता। उसकी जुबान शब्दकोशों के शब्दों से बहुत ऊपर होती है। शुद्ध हवा की तरह, शुद्ध जल की तरह। चमचा तन से समर्पित होता है तो शुभचिंतक मन से। यही दोनों को एक दूसरे से जुदा करते हैं।

मित्रो! चमचा लाख अपना होने के स्वांगों के बावूजद भी चमचा ही होता है और शुभचिंतक बिना दावों , दिखावों के भी शुभचिंतक ही होता है। चमचा प्रशंसा करने में हद से अधिक चापलूस होता है तो शुभचिंतक हमारी तारीफ करने में पूरा कंजूस होता है। चमचे और शुभचिंतक के बीच दिनरात का अंतर होता है। शुभचिंतक जीने का मंत्र होता है तो चमचा झूठमूठ में बंदे को लुभाने का यंत्र होता है। चमचा भ्रम में जीना सीखाता है तो शुभचिंतक भ्रम से दूर रखता है। चमचा होमली दिखने के बाद भी होमली फीलिंग नहीं देता। शुभचिंतक सदा होमली ही होता है। अपनी जेब में सदैव डाले छोटे -बड़े निहित स्वाथरें के चलते शुभचिंतकों सी कूलिंग नहीं देता। पर हम आज सब शुभचिंतकों को नहीं, चमचों को ही बहुधा गले लगाते हैं। क्योंकि वे हमें जो हम होते नहीं, वह बनाते हैं, जो हममें है नहीं, हमें अपने भीतर वह सब बड़ी सहजता से दिखाते हैं, अस्तु!

बस इसीलिए चमचा होना गौरव की बात है। चमचा होना साहस का काम है। चमचा होना दुस्साहस का काम है। नौकरी तो सब कर लेते हैं। पर चमचागीरी सबके बस की बात नहीं। भले ही चमचागीरी का भाव जन्मजात सबमें हो तो होता रहे। तिल -तिल कर जीते हैं वे जो अपने पास इस भाव के होते हुए भी इसे दबा तिल- तिल मरते रहते हैं। ऐसी हर रोज, हर जगह दिवंगत होती और हो चुकी आत्माओं को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि! भगवान ऐसी आत्माओं की सुधारने की कोशिश करें,' कह साहब ने सिर झुका दो मिनट का मौन रखा और उसके बाद बोले,' तो दोस्तो! कुछ जुबान से चमचे होते हैं तो कुछ काम के। कुछ कान के चमचे होते हैं तो कुछ नाम के। कुछ पार्ट टाइम चमचागीरी करते हैं तो कुछ फुल टाइम। कुछ सखा भाव के चमचे होते हैं तो कुछ दास्य भाव के। अपना सबकुछ अपने आराध्य के चरणों में न्यौछावर कर उसके दिमाग में जगह बनाना आसान नहीं। चमचागीरी बेहद कमीनोपन का काम है। मिमियाते हुए , खिसियाते हुए किसीके आगे बलखाते हुए, जूते खाने के बाद भी मंद- मंद मुस्कुराते हुए ,हद से पार जाना ही चमचागीरी है। जो अपने साहब के दिमाग में जगह बना गया मानों वही चमचागीरी का अमृत पा गया।

कोई माने या न माने, पर चमचे होते बड़े कुत्ती चीज हैं। इनके पास ऐसी गीदड़ सींगी होती है कि जिसे ये एकबार सूंघा दें वह इनके वश में हो जाए। इनके पास किसीको भी वश में करने के ऐसे- ऐसे सिद्ध मंत्र होते हैं कि.......पहले तो ये किसीके इशारों पर नाचते हैं और फिर पता ही नहीं चलता कि कोई कब इनके इशारों पर नाचने लग जाए। फिर ये साहब का नहाना- खाना- पाखाना सब तय करते हैं। इनसे कोई नहीं बच सकता । न इंसान , न भगवान और न ही शैतान।

खैर! जो साहब के लिए दिनरात मरते -खपते रहते हैं , इतना कि तो उनका हक बनता ही है कि वे...... सम्मानित हों, पुरस्कृत हों, अलंकृत हों। तिरस्कृत तो वे हर जगह अकसर होते ही रहते हैं। इसलिए मैंने बहुत सोचा, सोए- सोए भी बस यही सोचा, जागे हुए भी बस यही सोचा, ऑफिस के सारे काम छोड़ बस यही सोचा! और उसी सोच का नतीजा आज आपके सामने फलीभूत हुआ है।

तो अधिक न कहता हुआ इसलिए कि चाय- समोसे ठंडे हो जाएं ,साहब भक्ति का सांत्वना पुरस्कार दिया जाता है...... यह अवार्ड उसके लिए है जिसने साहब के चरण दबाए तो सही पर मन मसोस कर। ...........तो यह सम्मान जाता है मिस्टर एके को ! वे आएं और......' एके उठे और सिर नीचा किए मंच पर गए, तो साहब ने इन्हें पुराने घर में बेकार हो चुके चमचों का एक सेट पुरस्कार रूप में भेंट किया। साहब से चमचागीरी का सांत्वना पुरस्कार प्राप्त किया और सिर नीचा किए ही मंच से उतर कर अपनी सीट पर आ गए। कम्बख्त एक भी ताली न बजी।

अब बारी है विशिष्ट चमचा पुरस्कार की। यह वह पुरस्कार है जो जरा हटकर साहब की चमचागीरी करने वाले को दिया जाना है। इसके लिए मैं मंच पर आमंत्रित करना चाहूंगा....' एक पल के लिए पांडाल में सन्नाटा सा छा गया,' तो इस पुरस्कार के सही हकदार हैं मिस्टर बीके। कृप्या वे मंच पर आएं और....' बीके अपना कोट ठीक करते हुए मुस्कुराते हुए मंच पर आए तो उनके स्वागत के लिए कुछ तालियां बजीं। बीके ने साहब को आधा झुक प्रणाम करते अपना पुरस्कार लिया- एल्मूनियम के दो नए चमचे।

मंद- मंद मुस्कुराते बीके अपनी कुर्सी पर बैठे तो साहब ने अगले पुरस्कार की घोषणा करते कहा,' अब चमचागीरी में अतिविशिष्ट पुरस्कार की बारी है। और यह पुरस्कार जाता है...... जाता है....... मिस्टर केपी को। उनके लिए इस उपलब्धि पर जोरदार तालियां?' और देखते ही देखते तालियों से पांडाल गूंज उठा। मिस्टर बीके ने सबको नमस्कार किया और उसके बाद मंच पर आधे झुके चढ़ गए। साहब ने इनको स्टील के दो चमचमाते चमचे दे सम्मानित किया तो एक बार फिर पांडाल में तालियां गूंजी।

' ..... और अब बारी है चमचा ऑफ द ईयर के सम्मान की,' साहब ने ज्यों ही आखों पर से चश्मा उठा पांडाल की ओर देखा .....कि चार जने एक साथ उठने को हुए। यह देख उन्हें हंसी भी आई। आखिर उन्होंने इस पुरस्कार पर से सस्पेंस खत्म करते कहा,' माफ कीजिएगा! यह अवार्ड जाता है मिस्टर जीके को! इनको इनकी इस शानदार उपलब्धि के जोरदार- शोरदार तालियां!' पांडाल एकबार फिर तालियों- गालियों की गड़गड़ाहट से गूंजा।

एक बार फिर साहब ने अपना गला साफ किया और आगे कहा,' तो अब.......,' अभी साहब ने अपना वाक्य पूरी भी नहीं किया था कि दो जने आरके और एसके एक दूसरे को घूरते खड़े हो गए। इससे पहले कि वे दोनों एक दूसरे को पछाड़ मंच पर जा पहुंचते साहब ने कहा,' तो इस अवार्ड के असली हकदार हैं मिस्टर आरके,' उनके कहने भर की देर थी कि आरके अपनी कुर्सी से ही झुके हुए उठे और दोनों हाथ जोड़े, एक अपनी तो एक आज के आयोजन के लिए विशेष रूप से किराए पर लाई पूंछ को अदब से हिलाते मंच पर जा पहुंचे। मंच पर पूंछ हिलाते पहुंच उन्होंने सबसे पहले साहब के कुत्ते से हाथ मिलाया। फिर उनकी पत्नी के पूरी आस्था से पांव छुए। साहब की पत्नी के पांव छूने के बाद उन्होंने साहब को दस बार साष्टांग प्रणाम किया तो साहब की आंखें नम हो आईं। बड़ी मुश्किल से साहब ने उनकी झुकी कमर सीधी की तो पांडाल में एकबार फिर तालियों का शोर गूंजा। आरके को पुरस्कार में साहब ने चांदी के दो चमच दिए तो वे बिन पंख ही आसामान से बातें करने लगे। उस वक्त वे थे कि साहब के पैर छोड़ ही नहीं रहे थे। तब साहब ने बड़ी मुश्किल से अपने चमचमाते जूतों पर सिर रखे को उठाया और अपने गले लगाते हुए भाव विभोर हो कहा,' ऐसे होते हैं विशुद्ध साहब के चमचे,' फिर भावातिरेकी आरके के आंसू पोंछते बोले,' असल में इस अवार्ड के चयन के लिए मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ी। पिछले कई साहबों से जानकारी जुटानी पड़ी। तब कहीं जाकर ये कठिन काम हो पाया। पर हो गया। इस अवार्ड में पूरी तरह ट्रांसपेरेंसी बरती गई है। मैं इस अवार्ड हेतु इन्हें बहुत- बहुत बधाई देता हूं। मेरी भगवान से यही प्रार्थना है कि वे इस काम में यों ही निरंतर आगे बढ़ते रहें और औरों का भी कुशल मार्ग दर्शन करें,' एकबार फिर आरके ने पूरी निष्ठा से साहब के चमचमाते जूते चूमे और मंच से मस्त हाथी की चाल में अपनी जगह पर आ गए।

कुछ देर तक पांडाल में उनके ग्रुप के आरके को गले लगाते रहे , आरके को बंधाई देते रहे, आरके के गले में कागजी फूलों की मालाएं डालते रहे। जब माहौल कुछ शांत हुआ तो साहब ने आगे कहा,' तो आज का यह चमचा सम्मान समारोह यहीं समाप्त होता है। सम्मानितों को मेरी ओर से एक बार फिर बधाई। और वे जो इस काम में पीछे रह गए हैं , उनसे एक निवदेन जरूर करना चाहूंगा, वे अभी भी मुझे गालियां देते हों तो देते रहें, इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। और वह निवेदन यह कि......ऑफिस के काम तो होते रहते हैं। कभी साहब के काम आकर भी देखो तो......साहब की चमचागीरी में जो मजा है वह ऑफिस के काम दिनरात करने में कहां! पर जो कोई समझे तो??? ज्यादा न कहता हुआ अब जय हिंद!' पुरस्कृत मंच पर तो अन्य अपनी- अपनी जगह राष्ट्रगान के लिए आड़े -तिरछे खड़े हो गए। राष्ट्रगान भले ही गाया कैसेट ने हो।

अशोक गौतम

गौतम निवास, अप्पर सेरी रोड़

नजदीक मेन वाटर टैंक, सोलन-173212 हि.प्र.

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: व्यंग्य/ चमचा अलंकरण समारोह
व्यंग्य/ चमचा अलंकरण समारोह
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