कहानी - एक लड़की पहेली सी

SHARE:

- ओमप्रकाश तिवारी टाइपिंग कोचिंग सेंटर में विजय का पहला दिन था। वह अपनी सीट पर बैठा टाइप सीखने के लिए नियमावली पुस्तिका पढ़ रहा था। तभी...



- ओमप्रकाश तिवारी

टाइपिंग कोचिंग सेंटर में विजय का पहला दिन था। वह अपनी सीट पर बैठा टाइप सीखने के लिए नियमावली पुस्तिका पढ़ रहा था। तभी उसकी निगाह अपने केबिन के गेट की तरफ गई। गाय की आंख जैसी कजरारे नयनों वाली एक सांवली उसी केबिन में आ रही थी। वह देखता ही रह गया। लड़की उसकी बगल वाली सीट पर आ कर बैठ गई। टाइप राइटर को ठीक किया और टाइप करने में मशगूल हो गई। लेकिन विजय का मन टाइप करने में नहीं लगा। वह किसी भी हालत में लड़की से बातें करना चाह रहा था। वह टाइप राइटर पर कागज लगाकर बैठ गया और लड़की को निहारने लगा। लड़की की अंगुलियां टाइप राइटर के की-बोर्ड पर ऐसे पड़ रही थीं जैसे वह हारमोनियम बजा रही हो। थोड़ी देर बाद लड़की को विजय की इस हरकत का एहसास हुआ तो वह गुस्से में बोली।
- क्या देख रहे हो?
- आपको टाइप करते हुए देख रहा हूं।
- यहां क्या करने आए हो? उसका स्वर तल्ख था।
- टाइप सीखने। बिल्कुल सहज जवाब था विजय का।
- ऐसे सीखोगे? लड़की के स्वर में तल्खी बरकरार
- मेरा आज पहला दिन है न, इसलिए मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा है। आप टाइप कर रहीं थीं तो मैं देखने लगा कि आपकी अंगुलियां कैसे पड़ती हैं की-बोर्ड पर।
- कैसे पड़ती हैं?
- लगता है जैसे आप हारमोनियम बजा रही हों। आपको टाइप करते देखकर लगा कि मैं भी सीख जाऊंगा।
- यदि इसी तरह मुझे ही देखते रहे तो आपकी यह मनोकामना कभी पूरी नहीं होगी।

लड़की फिर टाइप करने में जुट गई। विजय भी की-बोर्ड देखकर टाइप करने लगा। टाइप करने में उसका मन नहीं लग रहा था। वह बेचैनी महसूस कर रहा था। उसका मन लड़की को निहारने को ही कह रहा था। वह चोर निगाहों से उसे देख भी लेता। दस मिनट बाद ही उसने टाइप राइटर का रिबन फंसा दिया। वह उसे ठीक करने लगा पर ठीक नहीं कर पाया। हार कर बैठ गया
- क्या हुआ?
- रिबन फंस गया। ए
- रिबन तो फंसेगा ही जब ध्यान कहीं और हाथ कहीं और होगा तो।
- मैं तो टाइप ही कर रहा

लड़की उसके टाइप राइटर को थोड़ा अपनी ओर खींचकर रिबन ठीक करने लगी। इसी बीच रिबन नीचे गिर गया। वह उसे उठाने के लिए झुकी तो उसके गले से चुन्नी गिर गई। रिबन उठाने के लिए विजय भी झुका था। उसकी निगाह अकस्मात ही लड़की के उरोजों पर चली गई। लड़की ने भी विजय की इस हरकत को देखा और उठकर फिर से रिबन ठीक करने लगी। विजय के चेहरे पर पसीना चुहचुहा आया।

- लो, ठीक हो गया। लड़की ने कहा तो उसकी चेतना लौटी।

लड़की फिर टाइप करने में लग गई। लेकिन विजय का मन टाइप में बिल्कुल भी नहीं लगा। वह लड़की से बात करने की ताक में ही लगा रहा।

- मन नहीं लग रहा है? अचानक लड़की ने उससे पूछा तो उसकी बांछें खिल गईं। उसने सोचा कि आप जैसी खूबसूरत लड़की बगल में बैठी हो तो टाइप करने में किसका मन लगेगा, लेकिन वह सोचकर ही रह गया।

- नहीं और लगता है कि सीख भी नहीं पाऊंगा।
- आसार तो कुछ ऐसे ही दिखते हैं।
- आपका नाम?
- सरिता।
- अच्छा नाम है।
- लेकिन मुझे इस नाम से नफरत है।
- क्यों?
- कोई एक कारण हो तो बताएं। यह कहते हुए सरिता अपनी सीट से उठी और पर्स कंधे पर टांगते हुए केबिन से बाहर निकल गई। विजय उसे जाते हुए देखता रहा। सरिता के जाने के बाद उसने एक निगाह उसके टाइप राइटर पर डाली। टाइप राइटर उसे उदास लगा। विजय को लगा कि उसकी उदासी उस पर भी तारी होती जा रही है।

और दुनिया बदल गई

इसी दिन से विजय हवा में उड़ने लगा। रातों को छत पर घूमने लगा। तारे गिनता और आसमान से बातें करता। चांदनी रात अच्छी लगने लगी और उसमें बैठकर कविताएं लिखता। गर्मी की धूप उसे गुनगनी लगने लगी। दुनिया गुलाबी हो गई तो जिंदगी गुलाब का फूल। आंखों से नींद गायब हो गई। वह ख्यालों ही ख्यालों में पैदल ही कई-कई किलोमीटर घूम आता। अपनी इस स्थिति के बारे में उसने अपने एक दोस्त को बताया तो उसने कहा -गुरु, तुम्हें प्यार हो गया है। दोस्त की बात सुनकर उसे लगा कि दोस्त ने उसके दिल की बात कह दी। उसे अच्छा लगा। वह दोस्त को देखकर मुस्कराने लगा और बड़ी देर तक मुस्कराता रहा।

अगले दिन विजय ने सरिता से कहा कि आप पर एक कविता लिखी है। चाहता हूं कि आप इसे पढें।

- यह भी खूब रही। जान न पहचान। तू मेरा मेहमान। कितना जानते हैं आप मुझे?
- जो भी जानता हूं उसी के आधार पर लिखा हूं।

सरिता उसकी लिखी कविता पढ़ने लगी

सरिता,
कल-कल करके बहने वाली जलधारा
लोगों की प्यास बुझाती
किसानों के खेतों को सींचती
राह में आती हैं बहुत बाधा
फिर भी मिलती है सागर से
उसके प्रेम में सागर
साहिल पर पटकता है सिर
उनके प्रेम की प्रगाढ़ता का प्रमाण
पूर्णमासी की रात में
उठने वाला ज्वार-भाटा
सरिता है तो सागर है
सरिता के बिना रेगिस्तान हो जाएगा सागर
सागर के प्रेम में
सरिता लांघती है पहाड़, पठार
और मानव निर्मित बाधाओं को


कविता के नीचे उसने विजय की जगह सागर लिखा था। सरिता ने उसे देखा और मुस्कराते हुए कागज विजय की तरफ बढ़ा दिया। विजय ने उसके चेहरे को देखते हुए कहा कि मैं चाहता हूं कि आप इसे टाइप कर दें। इसे छपने के लिए भेजना है। सरिता कुछ नहीं बोली। कागज को सामने रखकर टाइप करने लगी। विजय उसे देखता रहा। इस बात का आभास सरिता को भी था कि विजय उसे ही देख रहा है, लेकिन उसने कोई विरोध करने के बजाए पूछा कि आप कवि हैं?

- बनने की कोशिश कर रहा हूं।
- कवि भगोड़े होते हैं। सरिता ने उसकी ओर देखते हुए कहा। उसकी इस टिप्पणी से विजय सकपका गया।

- कवि अपने सुख के लिए कविता का सृजन करता है। रचते समय वह कविता के बारे में सोचता है। उसके बाद वह कविता को उसके हाल पर छोड देता है। कविता जब संकट में होती है तो कवि कविता के पक्ष में खड़ा नहीं होता है। वह भाग खड़ा होता है दूसरी कविता की रचना करने के लिए

- यह आप कैसे कह सकती हैं
- मैं समझती हूं कि आदमी की जिंदगी भी एक कविता है। मेरी जिंदगी एक कविता है। मेरी जिंदगी मुझे अच्छी नहीं लगती। इसलिए कविता भी मुझे अच्छी नहीं लगती।

विजय अवाक । सरिता चुप हुई तो उसने कहा-अरे वाह, आप तो कवि हैं। अभी आपने जो कहा वह तो कविता है।

- कविता नहीं, कविता का प्रलाप है, उसकी वेदना।
- कवि वेदना ही तो व्यक्त करता है।
- लेकिन यह कविता की वेदना है। जो उस कवि के कारण उपजी है, जिसने मेरी जिंदगी की रचना की। इतना कह कर सरिता केबिन से बाहर चली गई। कैसी है यह? विजय ने सरिता के टाइप राइटर को देखा। कुछ देर पहले जहां से उसे संगीत की सरिता बह रही थी, अब वहां मुर्दानी शांति पसर गई थी। लगा जैसे टाइप राइटर किसी शोक गीत की रचना में मशगूल है।

प्यार की खुशबू
आज उन्होंने बातें अधिक कीं। उनके वार्तालाप को देखकर टाइपिंग इंस्टीटयूट चलाने वाली मैडम ने उनके पास आकर कहा -आजकल तो तुम काफी खुश हो सरिता। बदले में सरिता केवल मुस्कराई। विजय भी मुस्कराया। तो क्या मेरे प्यार की गंध इसे भी लग गई। प्यार होता ही ऐसा है। जब महकता है तो सरी सीमाएं तोड़कर पूरे परिवेश में अपनी खुशबू बिखेर देता है। विजय ने सोच

अगले दिन सरिता जब टाइपिंग इंस्टीटयूट आई तो काफी सजीधजी थी। नया गुलाबी सूट पहने थी। बालों की स्टाइल भी बदली हुई थी। विजय को सरिता का यह बदला रूप बेहद प्यारा लगा। वह अपनी भावनाओं को दबा नहीं पाया। बोला- काफी सुंदर लग रही हो। जवाब में जब सरिता ने मुस्कराते हुए थैंक्यू का फूल उसकी तरफ फेंका तो उसकी इच्छा हुई कि वह खड़ा होकर नाचने लगे और जोर-जोर से चिल्लाए कि उसे प्यार हो गया है। अपनी इस इच्छा पर उसने बड़ी ही मुश्किल से काबू पाया।

ग्रह-नक्षत्रों की चाल
आदमी जब निराश होता है या फिर लक्ष्य के प्रति उसकी स्थितियां साफ नहीं होती हैं तो वह धर्म और ज्योतिषी की शरण में चला जाता है। विजय की भी हालत कुछ ऐसी ही थी। वह सरिता को चाहने लगा था, लेकिन सरिता भी उसे चाहती है यह स्पष्ट नहीं था। वह अपनी बेरोजगारी से भी परेशान था। घर वाले शादी के लिए अलग से दबाव डाल रहे थे। लिहाजा एक दिन विजय ज्योतिषी के पास चला गया। नौकरी पाने के लिए वह ज्योतिषी से नुस्खे पूछता रहता है। उसने सोचा कि प्रेम पाने के लिए भी ग्रह-नक्षत्रों की चाल जान ली जाए। नौकरी के लिए तो ज्योतिषी कभी कहता है कि आपकी कुंडली में काल सर्प दोष है, जो आपके शुभ कार्यों में बाधक है। इसकी शांति के लिए घर में मोर पंख रखें और प्रतिदिन उन्हें दो-तीन बार अपने शरीर पर घुमाएं। सोमवार के दिन चांदी से बना सर्प का जोड़ा शिवलिंग पर चढ़ाएं। नित्य श्री गणेश जी की उपासना करें। धैर्य पूर्वक ऐसा करने पर ही रोजगार प्राप्ति की संभावना बनेगी। विजय ने अभी तक उसके बताए हर नुस्खे को आजमाया, लेकिन आज तक कोई संभावना नहीं बनी। शिकायत करने पर वह कह देता है कि आप पर भाग्येश शुक्र की महादशा चल रही है। शुक्र के बलवर्ध्दन के लिए शुक्रवार के दिन साढ़े पांच रत्ती का ओपल चांदी में जड़वाकर दाहिनी मध्यमा में धारण करें।
- पंडित जी मेरी कुंडली में प्रेम है कि नहीं।?
- है न, बहुत है। कुंडली पर सरसरी नजर डालते हुए ज्योतिषी ने कहा।
- प्रेम विवाह का योग है या अरेंज?
- दोनों का, लेकिन दोनों में छोटी-छोटी बाधाएं हैं।
- प्रेम विवाह में क्या लफड़ा है
- आप पर शुक्र की महादशा चल रही है, जो अशुभ फलप्रद है। गोचर में भी आपकी राशि पर शनि की साढ़े साती चल रही है। शनि शांति के लिए प्रत्येक शनिवार कुत्तों को सरसों के तेल से बना मीठा पराठा खिलाएं। ग्रह शांति के उपरांत ही प्रेम में सफलता की संभावना बन सकती है।
- सब ढकोसला है। इतने दिनों से आप एक अदद नौकरी के लिए मुझसे क्या- क्या नहीं करवाते रहे। मिली नौकरी? साला चपरासी भी कोई रखने को तैयार नहीं है।

भन्नाया हुआ विजय ज्योतिषी के कमरे से निकल गया। घर पहुंचते ही मम्मी कहने लगीं -तुम्हारे पिता ने लड़की पसंद कर ली है। उनके दोस्त की बेटी है। बीए करके नौकरी कर रही है।

- तो मैं क्या करूं?
- शादी कर लो।
- बिना नौकरी मिले यह नहीं हो पाएगा।
- फिर तो पूरी जिंदगी कुंआरे ही रह जाओगे।
- बीवी की कमाई खाने से तो कुंआरा रहना ही अच्छा है। कहते हुए विजय अपने कमरे में चला गया।

जिदंगी आसान नहीं
एक सप्ताह तक सरिता टाइपिंग स्कूल नहीं आई। विजय रोज आता रहा और निराश होकर घर वापस जाता रहा। आठवें दिन सरिता के आते ही वह पूछ बैठा कि एक सप्ताह आई नहीं?
- जिंदगी में बहुत दिक्कतें हैं। कहते हुए सरिता अपनी सीट पर बैठ गई।
- क्या हो गया?
- मेरी बहन जो बीए कर रही है घर से किसी लड़के के साथ चली गई। दोनों बिना शादी के ही एक साथ रह रहे हैं।
- ऐसा क्यों किया?
- उसका कहना है कि यदि वह ऐसा न करती तो उसकी शादी ही नहीं हो पाती।
- मतलब?
- हमारे घर के आर्थिक हालात। इतना कहकर सरिता चुप हो गई।
- मुझे नहीं लगता कि आपकी बहन ने गलत किया है। आज की युवा पीढ़ी विद्रोही हो गई है। वह परंपराओं को तोड़कर नई नैतिकता गढ़ रही है। समय के साथ सब ठीक हो जाएगा।
- पर मां तो नहीं समझतीं।
- हां, उनके लिए समझना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन आजकल सब चलता है। हमारा समाज बदल रहा है। बिना शादी के एक साथ रहना पश्चिमी परंपरा है, लेकिन अब ऐसा हमारे यहां भी होने लगा है।
- हां, बैठकर सपनों के राजकुमार का इंतजार करने से तो बेहतर ही है न कि जो हाथ थाम ले उसके साथ चल दिया जाए। चाहे चार दिन ही सही, जिंदगी में बहार तो आ जाएगी।

विजय को लगा कि वह कह दे कि फिर तुम मेरे साथ क्यों नहीं चली चलती। हम शादी कर लेते हैं पर वह कह नहीं पाया।

- जानते हो मेरी एक बहन 12वीं में पढ़ रही है। उसका भी एक लड़केसे प्रेम चल रहा है। वे दोनों एक दूसरे से शादी करने को तैयार हैं। अगले साल बालिग होते ही शादी कर लेंगे। सरिता ने क

विजय के मन में आया कि कह दे कि अच्छा ही है। वह अपने आप वर खोज लें तो तुम्हें परेशानी नहीं होगी। वैसे भी तीन हजार रुपये प्रति माह की नौकरी में तुम कौन सा राजकुमार उन्हें दे दोगी। अच्छा है कि वह अपने-अपने प्रेमियों के साथ भाग जाएं।

बातों-बातों में एक दिन सरिता ने उसे बताया था कि उसके पिता की मौत हो चुकी है और वह तीन बहन है। उसका कोई भाई नहीं है। बहनों में वही सबसे बड़ी है। वह एक आफिस में काम करती है और उसे तीन हजार रुपये मासिक वेतन मिलते हैं। दूसरी जगह काम पाने के लिए टाइपिंग सीख रही है।

विजय को अपने एक दोस्त के साथ घटी ऐसी ही घटना की याद आ गई। उसके दोस्त की एक बहन अपनी बड़ी बहन के अधेड़ से ब्याह देने के बाद अपने प्रेमी के साथ भाग गई। इसके बाद उसका दोस्त गुस्से में उबल रहा था। कह रहा था कि दोनों को काट डालूंगा। तब विजय ने कहा था कि शांत रहो यार। वे दोनों जहां हों कुशल से रहें। उसने जो किया अच्छा ही किया। तुम कौन सा उसे राजकुमार से Žयाह देते। किसी अधेड़ के पल्ले बांधते, इससे तो अच्छा ही है कि वह अपने पसंद के लड़के के साथ जीवन गुजारे। आखिकार जिंदगी उसकी है। जीना उसे है इसलिए निर्णय भी उसे ही लेना चाहिए। तुझे तो उसके निर्णय का स्वागत करना चाहिए। दोस्त के बड़े भाई ने भी विजय की बात का समर्थन किया था। लेकिन थोड़ा दार्शनिक अंदाज में कहा था कि होनी को यही मंजूर था। उसकी कुंडली में भी यही लिखा है।

- मैं भी सोचती हूं कि एक बहन ने जो किया ठीक ही है। दूसरी जो करेगी वह भी अच्छा ही है। जीवन यदि संघर्ष है तो संघर्ष करो। प्रेमी से पति बना व्यि क्त भी धोखा दे सकता है। जीवन नरक बना सकता है और माता-पिता का खोजा राजकुमार भी यही करता है। लेकिन मां नहीं मानतीं। सोचती बहुत हैं और तबीयत खराब कर लेती हैं।
- पुराने जमाने की हैं न।
- हद तो यह हो गई कि वह मुझसे कहने लगी हैं कि तू भी किसी के साथ भाग जा। मैं उन्हें इस हाल में छोड़कर किसके साथ...रो पड़ी सरिता। उस केबिन में तीन-चार लड़के और टाइप सीख रहे थे। वह पहले ही उनकी बातों से तंग थे। सरिता के रोने से वह भौचक्क रह गए और उसकी तरफ देखने लगे। विजय की समझ में नहीं आया कि क्या कहे और क्या करे। स्थिति को सरिता समझ गई तो खुद पर काबू किया और फिर से टाइप करने लगी। उसके बाद सभी टाइप करने लगे। केबिन में टाइप राइटर के की बोर्ड की आवाज गूंजने लगी। इसके दस मिनट बाद सरिता उठी और बिना बोले ही चली गई। विजय की इच्छा हुई कि वह उसके पीछे-पीछे चला जाए, लेकिन वह बैठा रहा और उसे जाते देखता रहा। उसके जाने के बाद उसका मन टाइप करने में नहीं लगा और दस मिनट बाद ही वह भी चला गया।

मूसलाधार बारिश में बिजली का गिरना

आसमान में काले बादल घिर आए थे। इस कारण परिवेश में अंधेरा पसर गया था।
रह-रह कर आसमान में बिजली चमकती और बादल गरजते। ऐसे मौसम में भी विजय टाइपिंग स्कूल जाने के लिए तैयार था। वह सरिता से मिलना चाहता था। एक बार तो उसे लगा कि ऐसे मौसम में सरिता नहीं आएगी। लेकिन फिर उसे लगा कि नहीं, सरिता जरूर आएगी। यदि मैं मौसम से डर कर नहीं गया तो वह क्या सोचेगी। कहेगी कि जरा सा मौसम क्या खराब हुआ साहब डर गए। यही है प्यार। उसने तय किया कि वह जरूर जाएगा।
जब वह घर से बाहर निकला तो बूंदा-बांदी शुरू हो चुकी थी। फिर भी वह तेज कदमों से टाइपिंग स्कूल की तरफ बढ़ने लगा। कुछ ही दूर गया होगा कि बारिश तेज हो गई। सड़क पर चल रहे लोग भाग कर किसी छांव में खड़े हो गए पर वह अपनी मस्ती में भींगता हुआ चलता रहा। उसे भींगने में मजा आ रहा था...। वह आनंदित था कि वह सरिता से मिलने केलिए जा रहा है। टाइप स्कूल पहुंचा तो मैडम उसे देखकर मुस्कराई। वह भी मुस्कराया। उसने इधर-उधर नजर दौड़ाई कहीं कोई नहीं था। सरिता नहीं आई। उसने अपने आप से सवाल किया।
- इतनी बारिश में आने की क्या जरूरत थी? मैडम ने विजय से कहा।
- आप नहीं समझेंगी।
- सब समझती हूं, लेकिन अब सरिता यहां कभी नहीं आएगी।
- क्यों? आपको कैसे पता? अचानक मिली इस सूचना से वह अनियंत्रि सा हो गया।
- उसका फोन आया था। उसने कहा कि यदि आप आओ तो बता दूं।
- वह कभी नहीं आएगी? विजय की आवाज किसी कुएं में से आती लगी। उसकी हालत उस दीपक के समान हो गई थी जिसका तेल खत्म हो गया हो और लौ बुझने वाली हो...।

वह पैर घसीटता टाइपिंग स्कूल से बाहर आया। बाहर मूसलाधार बारिश हो रही थी। जैसे ही उसने जीने से नीचे कदम रखा जोर से बिजली चमकी और बादल गरजने लगे...। लगा कहीं बिजली गिर गई...। विजय संज्ञाशून्य सा भींगता हुआ घर की तरफ चल पड़ा।

वह सरिता के घर जाएगा। यह ख्याल आते ही उसे याद आया कि वह तो सरिता के घर का पता ही नहीं जानता। वह फिर टाइपिंग स्कूल की तरफ भागा। वहां पहुंचा तो दरवाजे पर ताला लगा था। वह गिरते-गिरते बचा। उसके कदम उठ नहीं रहे थे। उसे ठंड लगने लगी थी। उसे लगा कि वह बीमार हो गया है।

भीगते हुए घर पहुंचा। तब तक उसका शरीर बुखार में तपने लगा। लगभग पंद्रह दिन वह चारपाई पर पड़ा रहा। जब कुछ ठीक हुआ तो लगा की उसके शरीर में जान ही नहीं है। बीसवें दिन वह टाइपिंग स्कूल गया। मैडम नहीं मिली। यह सिलसिला 15 दिन तक चलता रहा। 16वें दिन उसे मैडम मिली। उसे देखते ही बोल पड़ीं कि काफी कमजोर हो गए हो?

- उस दिन बारिश में भीगा तो बीमार हो गया।

विजय ने मैडम से सरिता के घर का पता मांगा तो उसने एक कागज पर सरिता का पता लिखा और विजय को थमा दिया। विजय उसे पढ़ता रहा। फिर मैडम को धन्यवाद बोलकर चल पड़ा। उसने तय किया कि वह आज ही सरिता से मिलेगा।

जब वह मैडम के बताए पते पर पहुंचा तो उस मकान में ताला लगा हुआ था। पड़ोसियों से पूछने पर पता चला कि सरिता यहीं रहती थी, लेकिन अब मकान बेचकर चली गई है। कई लोगों से पूछने के बाद भी विजय को उसका नया पता नहीं मिला। निराश होकर वह घर लौट आया। सरिता के इस व्यवहार से उसे काफी धक्का लगा। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि सरिता ने ऐसा क्यों किया?

वह सरिता की याद में कविताएं लिखने लगा। एक दिन उसने एक सपना देखा और उसके भावों को कविता के रूप में कागज पर लिखा...।

सरिता, जो निकली
अपने उद्गम स्थल से
सागर की चाह में चली
द्रुतगति से
सामने आ गया पहाड़
टकराने के बाद बदल
अपना मार्ग।
मार्ग था लंबा
पहाड़ों की श्रृंखला थी
पठार और पथरीली जमीन भी
आदमी भी खडा था
फावड़ा लिए
बांध बनाने को तत्पर
खेत सींचने के लिए
चाहिए उसे पानी
पीने के लिए भी
बिजली भी तो चाहिए
घर रोशन करने के लिए
कारखाने चलाने के लिए
कारखानों के कचरे को बहाने
के लिए भी चाहिए उसे नदी।
प्रकृति से लड़ते नहीं थकी वह
बहती रही अविरल
दिल में सागर से मिलने
की चाह लिए।
भारी पड़ा प्यार
अवरोधों पर
पहुंच गई वह साहिल पर
लेकिन मानव ने बना बांध
रोक दी उसकी धारा
कारखानों की गंदगी उड़ेल
सड़ा दिया उसकी आत्मा को।
अपने आंसुओं से
धोती रही वह अपना बदन
निर्मलता से मिलना चाहती थी सागर से
विकास उन्मादी मानव ने
रौंद दिया उसकी आत्मा को
जिंदा लाश हो गई वह।
उसके लिए तड़पता है साग
साहिल पर पटकता है अपने सिर को
उसने तो दम तोड़ दिया
मानव के विकास मे
सागर भेजता है बादलों को
उसे पुनर्जीवित करने के लि
वह जानता है बेवफा नहीं है वह
सच्चा है उसका प्यार
कैद है वह मानव के विकास में
बरसते हैं बादल
उफनती है नदी
मानव को दिखाती है अपना विकराल रूप
मिलते ही प्यार की ताकत
तबाह कर देना चाहती है वह
मानव सृष्टि को
बदला लेना उसकी प्रकृति नहीं
भागती है तेज गति से
सागर की ओर
बांहें फैलाए स्वागत करता है सागर
बताना चाहती है अपने कष्टों को वह
लेकिन कुछ भी नहीं जानना चाहता सागर
जानता है वह मानव स्वभाव को
उसका भी तो पाला पडा है
इस स्वार्थी प्राणी से...।

विजय की इस कविता को पत्रिका में छपे एक माह से अधिक हो गया है, लेकिन उसके पास इस बार भी अब तक सरिता का कोई पत्र या फोन नहीं आया है। उसे उम्मीद है कि एक-न-एक दिन सरिता उससे संपर्क जरूर करेगी। जब से यह कविता प्रकाशित हुई है तब से वह फोन की प्रत्येक घंटी पर चौंक जाता है। यही नहीं हर रोज पोस्टमैन का बेसब्री से इंतजार करता है और जब उसके आने का समय खत्म हो जाता है तो वह उदासी के गहरे समुद्र में डूब जाता है...

----समाप्त----

संपर्क : ओमप्रकाश तिवारी,
अमर उजाला,
ए-5, स्पोर्ट्स एंड सर्जिकल कांप्लेक्स,
कपूरथला रोड, जालंधर-21, पंजाब।

मोबाइल : 09417532782

COMMENTS

BLOGGER: 4
  1. पढ़ कर दुःख हो रहा है है कि विजय के साथ ऐसा क्यों हुआ? लेकिन एक साथ इतनी लम्बी पोस्ट क्यों लिखते है?

    जवाब देंहटाएं
  2. बाल किशन जी
    नया साल मुबारक हॊ। ढेर सारी शुभकामनाएं।
    आपने मेरी कहानी पढी अचछा लगा। राय जाहिर की यह और सुंदर लगा। दरअशल पोस्ट लम्बी नहीं है। बात सझने की है...।

    जवाब देंहटाएं
  3. कहानी पड़कर आँखो मे आंशु आ गये... वैसे यदि सरिता विजय ड्स बहुत करीब आ गई थी, विजय से कह देती तो शायद कुछ रास्ता निकलता, लड़कियो मे वैसे भी कम हिम्मत होती है सच का सामना करने के... मैं अपनी क्या कहानी बताऊ...

    जवाब देंहटाएं
  4. haan ek bat our 2-3 kavitaayen to mai bhi likh chuka hu...

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कहानी - एक लड़की पहेली सी
कहानी - एक लड़की पहेली सी
http://bp1.blogger.com/_t-eJZb6SGWU/R1ZpiwFeZmI/AAAAAAAACM0/A5ypUO7No1I/s400/ladki+ek+paheli+si.JPG
http://bp1.blogger.com/_t-eJZb6SGWU/R1ZpiwFeZmI/AAAAAAAACM0/A5ypUO7No1I/s72-c/ladki+ek+paheli+si.JPG
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2007/12/blog-post_05.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2007/12/blog-post_05.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content