-- रु. 15,000 के 'रचनाकार कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन' में आप भी भाग ले सकते हैं. पुरस्कार व प्रायोजन स्वरूप आप अपनी किताबें पुरस्कृ...
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रु. 15,000 के 'रचनाकार कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन' में आप भी भाग ले सकते हैं. पुरस्कार व प्रायोजन स्वरूप आप अपनी किताबें पुरस्कृतों को भेंट दे सकते हैं. अंतिम तिथि 30 सितम्बर 2012
अधिक व अद्यतन जानकारी के लिए यह कड़ी देखें - http://www.rachanakar.org/2012/07/blog-post_07.html
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कविता वर्मा
और क्या करती ??
शोभा, अरे ये तो शोभा है. रोड के उस पार दुकान से निकलती महिला को देखते ही में चिंहुक उठी. हाथ उठा कर उसे आवाज़ देने को ही थी कि अपने आस -पास लोगों की उपस्थिति का भान होते ही रुक गयी. सिर्फ लोगों की उपस्थिति ही नहीं बल्कि शोभा का वो रुखा व्यवहार भी याद आ गया था जिसने मन कसैला कर दिया. में वहीँ ठिठक गयी. इतनी देर में शोभा भी दूर जा चुकी थी. मैंने भी घर की राह ली लेकिन पुरानी यादों ने फिर दिमाग में घर कर लिया.
शोभा,वह शोभा ही थी न? पर वह यहाँ कैसे आयी?वह भी अकेले ,इंदौर छोड़कर जयपुर कब आयी?वहां का मकान,उसके पति का बिजनेस था इसलिए तबादला होने का तो सवाल ही नहीं उठता.
घर पहुँच कर मुंह हाथ धोकर अपने लिए चाय बनाई और पेपर लेकर बाहर झूले पर बैठ गयी. शाम की चाय मैं अकेले ही पीती हूँ ,पर झूले की हिलोरें ओर दुनिया जहान की खबरें मेरे साथ होती हैं. लेकिन आज पेपर हाथ में रखा ही रह गया और मन यादों की गलियों में भटकते हुए दस साल पीछे इंदौर पहुँच गया.
इंदौर में शहर से दूर एक कालोनी में प्लाट लिया था और जैसे तैसे कर उस पर अपना एक छोटा सा आशियाना भी बना लिया. पति दो बेटियां और मैं छोटा सा खुशहाल परिवार. बहुत बड़ी कालोनी में गिनती के पंद्रह बीस मकान थे. शोभा का घर मेरे घर से बीस पच्चीस प्लाट छोड़ कर पहला मकान था .इस मायने में दूर ही सही पर हम पड़ोसी थे. पूरी कालोनी ही एक संयुक्त परिवार की तरह थी जिसमे सब एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखते थे. शोभा उसके पति ओर उसकी भी दो बेटियां. उसका मकान मेन रोड पर था इस वजह से काफी लोगों का उनके यहाँ आना जाना था. शोभा के स्वागत भाव के तो सभी कायल थे. उसके पति मुकेश का व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली था .ऊँचा कद,मजबूत काठी ,बात करते हुए हास्य का पुट देना .वह युवाओं के चहेते मुकेश भैया थे और शोभा भाभी. हर शाम घर में, मंदिर में महफ़िलें जमती जिनमें हंसी ठठ्ठा ,चाय नाश्ते का दौर चलता रहता जो देर रात तक जारी रहता. मुकेश को पीने की बुरी आदत थी जो युवा मंडली पर प्रभाव डालने की कोशिश में बहुत बढ़ गयी थी. शनिवार रात उनके यहाँ अलग ही महफ़िल जमती ,जिसमे पीने पिलाने के साथ गोसिप होती थी. मेरे पति को भी मुकेश ने कई बार आमंत्रित किया,पर उन्हें न पीने पिलाने का शौक था न गोसिप का इसलिए वे समय न मिलने का बहाना बना कर टाल देते थे.
शोभा और मेरा एक दूसरे के यहाँ आना जाना होता रहता था. हम दोनों की बेटियां भी हम उम्र थी. मुकेश ने मुझसे कई बार कालोनी की महिलाओं की किटी शुरू करने को कहा, उनका कहना था कि आप लोगों का मेलजोल बढ़ेगा तो कालोनी बढ़ने के साथ होने वाली समस्याओं से निपटने में आसानी होगी. इस तरह कालोनी में किटी शुरू हो गयी. नवरात्र में गरबे की शुरुआत मुकेश और उसकी मंडली ने ही की .मुझे गरबे करने का बहुत शौक था. शुरू शुरू में मेरे सिवाय और कोई महिला गरबे नहीं करती थी लेकिन धीरे धीरे प्रोत्साहित करने पर और महिलाएं इसमें जुड़ गयीं. गरबे में मुकेश और उसकी मंडली कई बार शराब पी कर आते. चंदे के पैसों के हिसाब में भी गड़बड़ होती ,उसका हिसाब भी उन्होंने कभी नहीं बताया. लोगों को आपत्ति होती लेकिन मुकेश की ख्याति के चलते कोई कुछ नहीं बोलता था.
फिर मैंने शोभा के व्यव्हार में परिवर्तन होते देखा. वह सब से बहुत घुलमिल कर बात करती थी पर न जाने क्यों मुझसे कन्नी काट लेती खुद होकर मुझसे कभी बात न करती और मेरे बात करने पर या तो जवाब नहीं देती या सिर्फ मुस्करा कर बात टाल देती. किटी पार्टी में हर महीने मिलना जरूर होता था ,लेकिन जहाँ पहले किटी की गतिविधियाँ हम दोनों मिल कर तय करते थे अब शोभा ने मेरी राय लेना बिलकुल बंद कर दिया था. एक दो बार जब में ही उसके यहाँ गयी तो ऐसा लगा कि उसके पास समय ही नहीं है. मेरा चाय नाश्ते से भरपूर स्वागत हुआ पर आधे घंटे में से बमुश्किल पांच मिनिट वह मेरे पास बैठी. उस दिन कुछ भी न समझते हुए में बहुत अपमानित सी वापस लौटी मन बहुत खिन्न था. मैंने क्या गलत किया ? उसने ऐसा व्यव्हार क्यों किया? यही सोचती रह गयी में. उस दिन के बाद हमारी कभी बात नहीं हुई.
टेलिफोन की घंटी ने मुझे वर्तमान में लौटा दिया. अँधेरा हो गया था,अख़बार मेरी गोद से उड़कर बालकनी के कोने में पड़ा था. पतिदेव का फ़ोन था. आज मेरे साथ खाने पर कोई और भी आ रहा है खाना बना लेना.
अरे पर तुम्हें थोड़ा पहले बताना था ना, कौन है? इतनी जल्दी कैसे तय्यारी होगी? मैंने हडबडाते हुए कहा .
परेशान होने की जरूरत नहीं है .हमारी कम्पनी के नए मैनेजर आज ही आये हैं . तुम तो बस दाल चावल सब्जी रोटी बना लेना और दही और सलाद तो रहेगा ही,बस हो जायेगा.
बस हो जायेगा कहने से ही हो जाता तो हॉउस वाइफ होना दुनिया का सबसे आसान काम होता.बालकनी में जाकर पेपर समेटे चाय का खाली मग उठाया और खाने की तय्यारी में जुट गयी, और शोभा मेरे दिमाग से निकल गयी.
हफ्ते भर बाद सुपर मार्केट में किसी ने पीछे से मेरे कंधे पर हाथ रख कर पुकारा छवि . चौंक गयी मै मुड़ कर देखा शोभा खडी थी.हलके पीले रंग की कोटन साड़ी में मुस्कुराती हुई. नहीं पहचाना? मैं शोभा हूँ याद है इंदौर में वीणा नगर ?
हाँ हाँ पहचाना क्यों नहीं, मैंने तुम्हें हफ्ते भर पहले भी देखा था पर आवाज़ लगाती इससे पहले ही तुम दूर चली गयीं. कैसी हो?यहाँ कैसे?मैंने पूछा. उसकी पहल पर मुझे आश्चर्य हो रहा था.
में ठीक हूँ सोनम यहीं है ना उसके पास आयी हूँ बहुत पीछे पड़ी थी वह, अब इंदौर मै अकेले रह कर भी क्या करती?उसकी आवाज़ बुझ गयी.
मेरा ध्यान उसके माथे पर गया,छोटी सी काली बिंदी ,शोभा तो बहुत बड़ी लाल बिंदी लगाती थी. कुछ समझी कुछ नहीं जो समझी वह पूछने की हिम्मत नहीं हुई.
अगर जल्दी मैं नहीं हो तो चलो ना कहीं बैठते है मुझे तुमसे बहुत सारी बातें करनी हैं. उसका स्वर गंभीर हो गया.
कहीं क्यों मेरा घर पास ही है चलो ना वहीँ चलते हैं. इस बहाने मेरा घर भी देख लोगी.
ठीक है में सोनम को फोन करती हूँ तब तक तुम अपनी शोपिंग पूरी कर लो.
शोपिंग तो फिर आकर कर लूंगी जो हो गयी है उसका बिल बनवाने में काउंटर की ओर बढ़ गयी.
कितनी दूर है तुम्हारा घर?उसने पूछा.
बस पांच मिनिट का रास्ता है.
तुम्हारा सामान? मुझे खाली हाथ देख कर उसने पूछा .
होम डिलीवरी है घर पहुँच जायेगा .सोनम यहाँ है क्या करती है?सोनम शोभा की बड़ी बेटी है .साथ चलते चलते मैंने पूछा.
एक कम्पनी में एच आर है.उसके पति भी यहीं बैंक में हैं.
और सुप्रिया, छोटी बेटी?
वह दिल्ली में इंजीनियर है उसकी भी शादी हो गयी. तुम्हारी दोनों बेटियां कहाँ है क्या कर रहीं है शादी हो गयी जैसी तमाम बातें करते हुए हम घर पहुँच गए .
बालकनी में झूला देख कर वह खुश हो गयी. इंदौर में भी तुम्हारे यहाँ झूला था ना?
हाँ तुम्हें याद है?
हाँ याद क्यों नहीं? मुझे सब याद है कहते हुए उसकी आवाज़ बुझ सी गयी.
में असमंजस मै पड़ गयी. पूछना तो बहुत कुछ चाहती थी लेकिन पूछ नहीं पा रही थी. चाय पियोगी मैंने खुद को उलझन से निकालते हुए पूछा.
हाँ हाँ जरूर.
ठीक है तुम झूले का आनंद लो में अभी आती हूँ.
चाय पीते हुए उस समय के साथियों की बातें होती रहीं. कौन कौन वहां है कौन बाहर चला गया वगैरह वगैरह .पर बात करते करते कई बार मुझे ऐसा लगा जैसे शोभा किसी उलझन में है. कुछ कहना चाह रही है लेकिन कह नहीं पा रही है. उसने बताया मुकेश का छ महीने पहले हृदयगति रुकने से देहावसान हो गया. पंद्रह पंद्रह दिन सोनम और सुप्रिया उसके साथ इंदौर में रहीं फिर सुप्रिया उन्हें लेकर दिल्ली चली गयी. पिछले महीने इंदौर का मकान भी किराये पर दे दिया और अब वह यहाँ सोनम के पास आ गयी.
वहां अकेले रह कर भी क्या करती?फिर दोनों को मेरी चिंता लगी रहती है. दो कमरों में सामान रख दिया है कभी कभी वहां भी रहूंगी.
अचानक उसने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया और बोली छवि मुझे माफ़ कर दो. उसकी आवाज़ रुंध गयी.
अरे पर किस बात के लिए?में चौंक गयी. मुझे कुछ समझ नहीं आया .
मेरे व्यवहार के लिए जो मैंने तुम्हारे साथ किया.
अब में अपने को रोक नहीं पाई. पर मुझे बिलकुल भी समझ नहीं आया की तुम अचानक इतनी बदल कैसे गयीं. मुझसे ऐसी क्या गलती हुई? तुमने कभी कोई बात ही नहीं की. पुरानी तल्ख़ यादों ने मेरे स्वर को कुछ कसैला बना दिया.
नहीं नहीं तुमसे कोई गलती नहीं हुई और मैंने जानबूझ कर तुमसे दूरियां बनाई पर इसके पीछे भी एक कारण था.
कैसा कारण?मैंने उत्सुकता से पूछा.
तुम कालोनी की सबसे एक्टिव महिला थी. हर कार्यक्रम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने वाली,खुल कर बोलने वाली. सभी तुमसे प्रभावित थे. तुम्हारी बहुत तारीफ करते थे. जब भी कोई मेरे घर आता तुम्हारी बात जरूर होती. पर फिर मुझे मुकेश का तुम्हारे बारे में बात करने का नजरिया बदलता हुआ लगा. तुमने शायद ध्यान नहीं दिया पर जब तुम गरबे करतीं थीं मुकेश तुम्हारे आस पास ही गरबे करते. जब वह गरबे नहीं करते तब भी लगातार तुम्हें ही देखते रहते. तुम इन सब बातों से बेखबर रहतीं पर मुकेश का तुम्हारे प्रति आकर्षण दूसरे लोगों के लिए भी चर्चा का विषय बनने लगा. तुम्हें मालूम है ना मेरे यहाँ शनिवार की रात पीने पिलाने की महफ़िल जमती थी, उसमे भी तुम्हारे बारे में बातें होने लगी थीं ओर जैसी बातें होती थीं मुझे तो तुम्हें बताते हुए भी शर्म आती है.
में अवाक् रह गयी. इतना सब हो गया और मुझे पता भी नहीं चला. मेरे आंसू बह निकले.
शोभा यकीन मानों मेरे दिल में ऐसा कुछ नहीं था.
मुझे मालूम है. तुम्हारा मेरे घर में आना जाना स्वाभाविक रूप से होता था, और मुझे भी तुमसे बात करना बहुत अच्छा लगता था. पर जब तुम्हारे बारे में गलत तरीके से बातें की जातीं तो मुझे अच्छा नहीं लगता था.
पर तुमने कभी बताया नहीं?
क्या बताती? कि मेरा पति तुम पर गलत नज़र रखता है. और अगर बताती भी तो क्या तुम इसे सामान्य तरीके से ले पातीं? क्या तुम्हें नहीं लगता कि में तुम पर लांछन लगा रही हूँ? आज जब मुकेश इस दुनिया में नहीं हैं तब ये कहना ओर उस समय कहने में जमीन आसमान का अंतर है. मैंने कई बार भाई साहब को भी मुकेश की वजह से असहज होते देखा था. मैं डरती थी कि नशे में मुकेश कहीं कोई ऐसी हरकत ना कर बैठे की तुम्हारी बदनामी हो. तुम्हारे और भाईसाहब के रिश्ते में कोई खटास पड़े और तुम्हारी बेटियों को शर्मिंदा होना पड़े. इसलिए जो सबसे आसान उपाय मुझे समझ आया वो यही था की तुमसे दूरियां बढाई जाएँ तुम्हे अपने घर आने से रोका जाये. मुझे पता था की तुम स्वाभिमानी हो और ऐसे व्यव्हार के बाद खुद ही मुझ से कट जाओगी ना ही अपनी बेटियों को मेरे घर आने दोगी. जब कोई संपर्क ही नहीं रहेगा तो कोई बात ही नहीं होगी. इसलिए मैंने तुम्हारे घर आना जाना बंद कर दिया यहाँ तक की जब तुम मेरे घर आती तो तुम्हे समय ना दे कर तुम्हारी अवहेलना की. और ऐसा करते हुए मुझे बहुत दुःख भी हुआ पर में और क्या करती?
हम दोनों एक दूसरे का हाथ थामे बहुत देर तक चुपचाप बैठे रहे. दोनों के दिलों का बोझ उतर गया था. मैं भी सारी घटनाओं को नए नज़रिए से देख रही थी. एक तरफ पति का मान था तो दूसरी तरफ निर्दोष सहेली का सम्मान भी बनाये रखना था. सही तो था ऐसे में शोभा "और क्या करती?"
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परिचय:
कविता वर्मा
पोस्ट ग्रेजुएट, शिक्षिका ,पढ़ने का शौक बचपन से ही था. लिखना करीब १२ साल पहले किया. लेकिन ज्यादातर लेखन स्वान्त सुखाय ही रहा. ब्लॉग से लेखन को गति मिली. अपने आस पास की घटनाओ को देखते उसके पीछे छिपे कारण को तलाशना ओर लोगों के व्यव्हार को कहानियों के पात्रों में उतारना ही शौक है इसलिए ज्यादातर कहानियां बिलकुल अपने आस पास कि घटनायों सी होती है.
जीवन का नजरिया है "बड़ी बड़ी खुशियाँ है छोटी छोटी बातों में."
श्रीमती कविता वर्मा
५४२ a तुलसी नगर
बोम्बे हॉस्पिटल के पास
इंदौर ४५२०१०
कहानी के भाव दिल को छू गये...कभी कभी हम किसी व्यक्ति को कितना गलत समझ लेते हैं...कहानी के पात्रों का बहुत सुन्दर चित्रण...अंत तक बांधे रखने में समर्थ रोचक कहानी...बधाई
जवाब देंहटाएंbahut bahut dhanyvad kailash sharmaji...
हटाएंपात्रो का बढ़िया चित्रण,अन्त तक पाठक को बांधें रखने समर्थ रोचक कहानी,,,,,
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस बहुत२ बधाई,एवं शुभकामनाए,,,,,
RECENT POST ...: पांच सौ के नोट में.....
dheerendra ji bahut bahut aabhar..
हटाएंमार्मिक एवं शिक्षाप्रद कहानी।
जवाब देंहटाएंdhanyavad vijay raj ji..
हटाएंसच मे और क्या करती वो …यही तो सच्ची दोस्ती होती है।
जवाब देंहटाएंvandana ji shukriya.
हटाएंबहुत सुंदर.. ऐसी कहानी कभी कभी ही पढने को मिलती है।
जवाब देंहटाएंहो सकता है कि ये शोभा का शक हो, क्योंकि महिलाएं चीजों को अपने नजरिए से देखतीं है और आदमी अपने नजरिए से। कहीं ऐसा तो नहीं शोभा की ये चिढ हो कि आप इतना एक्टिव हैं और सब आपकी तारीफ करते हैं..
बहरहाल एक घटनाक्रम को शब्दों में जिस तरह आपने बांधा है, वह कहानीकारों के लिए अनुकरणीय है। बहुत सुंदर
शुभकामनाएं
bahut bahut aabhar mahendraji
हटाएंअच्छे लोग अच्छी बातें सोचते हैं , जो लोग खुबसूरत होते हैं उनकी सीरत भी उतनी खुबसूरत होती है ,.आपने कहानी कहूँ या जीवन की घटना को खुबसूरत कहानी का जामा पहनाया है बेहद प्रभावशाली .......
जवाब देंहटाएंdhanyvad ramakant ji ..
हटाएंनितांत नई अनुभूति की कहानी है.....बहुत सुन्दर शब्द-विन्यास, संवाद और कथ्य के तो क्या कहने ....वाह !
जवाब देंहटाएंbahut bahut dhanyvad alaknanda ji...
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