चेहरे पे चेहरा -- रु. 15,000 के 'रचनाकार कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन' में आप भी भाग ले सकते हैं. अथवा पुरस्कार स्वरूप आप अपनी किता...
चेहरे पे चेहरा
ऑफिस में और दोस्तों के बीच आर्कुट, ट्विट्टर और फेसबुक के बारे में इतना जिक्र चलता था कि पिछड़ जाने के भय से मैंने भी फेसबुक पर अकाउंट खोल लिया. तब बिल्कुल अहसास नहीं था कि एक अजीबोगरीब दुनिया में कदम रखने जा रही हूँ. शुरू- शुरू में मेरी फ्रेंडलिस्ट में कुछ दोस्तों, रिश्तेदारों और लेखकों के नाम ही थे. फिर धीरे- धीरे काफिला बनता गया. पहले डर- डर के कमेन्ट करती थी. फिर कुछ लेखक मित्रों की कविताओं और गद्यांश पर भी टिप्पणियां शुरू की. और यहीं से शुरू हुआ असली- नकली चेहरों से परिचय का सिलसिला. कॉलेज में प्रेम करना और कविता लिखना लगभग हर छात्र का शौक हुआ करता है.
कुछ उम्र का तकाजा और कुछ खुद को अभिव्यक्त करने की उत्कंठा. मगर यहाँ हर उम्र का व्यक्ति खुद को प्रोमोट करने में लगा मिला. बिना प्रेम के असंख्य प्रेम कवितायेँ लिखने और खोखले विमर्शों के दौर. जाने- माने या उच्च पद पर आसीन उस आदमी के चाहने वाले लोग ज्यादा थे जो किसी ना किसी रूप में फायदा पहुँचाने की हैसियत रखता हो. नारी विमर्श के तो क्या कहने. घरेलू पढ़ी लिखी, साहित्य कम पढ़ी और जो मन में आए लिख मारने वाली कवयित्रियों की तो यहाँ बाढ़ आई हुई है. उनकी शक्ल और पद के हिसाब से लाइक और कमेन्ट करने वाले भी बेशुमार. अक्सर बिना कुछ लिखे अपनी सुन्दर सी फोटो से ही चर्चा में बने रहने वाली लेखिकाओं की भी भरमार है. अगर आप किसी स्थापित लेखक से जुड़े हुए हैं तो उसके सारे फैन्स आपके खाते में आ जायेंगे. कई बड़े नामों वालों की वाल्स पर भी तल्खियाँ देखने को मिली. जगह- जगह छींटाकशी और विवादास्पद टिप्पणियां देखकर मैंने धीरे- धीरे अपना एक्टिविटी का दायरा चुनिन्दा लोगों तक सीमित कर लिया. पहले बेबाक टिप्पणियां करने के कारण भी समस्या उत्पन्न हो जाती थी. जिनसे परिचित थी वे भी खुशामद करने वालों से घिरे हुए थे. कुछ भी केजुअल कमेन्ट करते ही एक साथ कई लोग याद दिला देते कि हमेशा तारीफ भाव बनाये रखना है.
खैर, कुछेक गंभीर और अच्छे लेखकों के सिवाय बाकी की भीड भरी वाल्स से मैंने दूरी बना ली. एक कवयित्री नेहा ने बड़ी आत्मीयता से बात की और अपनी कविताओं की तरफ ध्यान दिलाया जो धारा के विपरीत अलग ख्यालों की दुनिया की लगीं. वहाँ मैंने गंभीर समीक्षक का चोला उतर कर सहज अंदाज में साहित्यिक अभिरुचि की टिप्पणियां शुरू कर दी जिन्हें पसंद किया जाने लगा. एक दिन किसी नवोदित कवि आनंद की वाल पर अपने बारे में चर्चा दिखाई दी तो बहुत हैरानी हुई. उसने मुझे उसकी कविताओं पर कुछ लिखने के लिए अनुरोध किया था. वे बहुत आम किस्म की कवितायें थीं जिनमें औरतों को रिझाने के लिए उनकी तरफदारी की गयी थी. बड़े- बड़े कवियों से बिम्ब उठाकर उन्हें तोड़- मरोड़ कर इस्तेमाल किया गया था. कुछ कवितायेँ एकदम गपशपनुमा लगी. मैंने सुधार के लिए सुझाव देते हुए कमेन्ट किया तो वह भड़क गया और मेरा मजाक उड़ाने लगा. मैंने उसे फटाफट अनफ्रेंड कर दिया.
अमेरिका में बसी भारतीय मूल की लड़की विशाखा मेरी फ्रेंड लिस्ट में जुड गयी. एक सुबह मेसेज आया कि मुझसे बात करनी है. अपने बारे में न बता कर वह नेहा और आनंद के बारे में बात करने लगी. मैंने कहा- वह वैसे ठीक है मगर अपरिपक्व है और खुद को मुसीबत में डाल लेता है.
विशाखा- मेरी पति से अनबन चल रही है. आनंद ने मुझे बहुत भावनात्मक समर्थन दिया. एक दोस्त चाहिए था शुरू- शुरू में. एक दिन वो मुझे मिला. मुझे लगता है बहुत अलग लिख रहा है. मुझे उसकी कविताएं बहुत पसंद हैं. मैं नेहा से भी बहुत प्रभावित हूँ.
मुझे अजीब लगने लगा था- वह कभी कभी बहुत व्यक्तिगत और बेतुकी बातें भी शेयर कर देता है और लोगों का मजाक भी उडाता है.
विशाखा अपनी धुन में बोले जा रही थी- आनंद की स्प्लिट पर्सनलिटी है ... एक ही समय में एक बच्चा और एक बहुत परिपक्व व्यक्ति. वो स्त्रियों पर कितना अच्छा लिख रहा है. मैं नेहा और आनंद को पढकर पागल हो जाती हूँ. ये लोग कितना पढते हैं. कितनी अच्छी शैली में लिख रहे हैं.
मेरा धैर्य चुकने लगा था- और भी अच्छे लेखक हैं न. उन्हें पढ़ो. इसे आदर्श बनाकर क्या सीखोगी? अपने अनुभवों को लिख डालो. आसपास के जीवन को देखकर कहानियां लिखो.
विशाखा– वो बुरा नहीं है .उसी ने मुझे आपसे सम्पर्क करने को कहा है. मैं खराब शादी में फंसी हुई हूँ .शायद मेरा तलाक हो जाये. बहुत डर लग रहा है. मैं अकेली नहीं रह सकती हूँ. मेरी शारीरिक- मानसिक जरूरतों का क्या होगा?
बातचीत की दिशा बहकते देख मुझे कुछ शक हुआ और फेसबुक को बंद कर दिया. विशाखा की वाल को देखा तो पाया कि वह और आनंद एक दूसरे की कविताओं की वाह-वाही कर रहे होते थे. कविताओं का विषय और शैली भी मिलते- जुलते लगे. विशाखा की वाल पर लड़की की तरफ से समस्याओं की बात की जाती तो आनंद पुरुषों द्वारा औरतों पर किये अत्याचारों और औरत की दैहिक स्वतंत्रता पर कविता लिख देता था. मैंने दो- तीन लेखिकाओं से बात की तो माजरा साफ हुआ कि अनफ्रेंड करने के बाद आनंद इस लड़की के बहाने लोगों की गतिविधियों से परिचित रहता है. मैंने विशाखा को भी लिस्ट से हटा दिया.
आनंद एक साथ कई नावों में सवार होने की फ़िराक में रहता था. उसकी कोशिश थी कि कई नयी और स्थापित लेखिकाओं से मीठी- मीठी बातें करके उन्हें अपने ग्रुप में शामिल करे और एक दूसरे रचनाओं की तारीफ के पुल बांध कर साहित्य के क्षेत्र में कदम जमाया जाये. उसने नेहा को भी बार- बार प्रेम निवेदन भेजा था जिसे उसने कभी नरमी से तो कभी कड़े शब्दों में अस्वीकार कर दिया था. मगर आशिक इतनी जल्दी हार मानने को तैयार नहीं था और मिन्नतें करता रहा .
नेहा ने करारा जवाब दे डाला- मेरी खामोशी को मेरी कमजोरी मत समझो. मुझे आपमें कोई दिलचस्पी नहीं है. जो संदेश आपने मुझे फेसबुक में भेजे हैं उन्हें पब्लिक कर दूँ तो आपका तमाशा बन जायेगा.
आनंद मिन्नतें करने में लगा था- माफ़ कर दो न... मैं अच्छा लड़का हूँ. आपके मन में मेरी गलत छवि बन गयी है. मुझे एक लास्ट चांस दो न. आपको गुस्सा भी नहीं दिलाऊंगा.’
नेहा ने उसे माफ़ करते हुए मित्र लिस्ट से हटा लिया. मगर आनंद अपनी फ्रस्ट्रेशन मेरे और नेहा के बारे में उलटी- सीधी बातें उड़ाकर निकालने लगा कि इनमें से एक नकली आई डी वाली है और दूसरी विदेशी कवियों से नक़ल करती है. साथ में बड़ी मासूमियत से कहता कि नेहा उसे बदनाम करना चाहती है जबकि उसने नेहा से सिर्फ एक गुरु की तरह मार्गदर्शन करने का अनुरोध किया था.
उसके बाद आनंद ने एक अधेड जानी- मानी लेखिका माला को आंटी कहना शुरू कर दिया और बताया की उससे लिखना सीखना चाहता है. माला ने भी सौम्यता से उसे कुछ सुझाव दिए. आनंद अपनी वाल पर डींग हांकने लगा कि इतनी बड़ी लेखिका उसकी तारीफ करती है. अपना तमाशा बनता देख माला ने भी वहाँ से कन्नी कट ली. जो व्यक्ति औरत जाति की इज्जत नहीं करता, उस्से किसी भी रिश्ते की क्या कद्र करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है.
इसी दौरान उस के ग्रुप से अलग हुई एक नयी कवियत्री वाणी, जो किसी अखबार में लिखने लग गयी थी, उसे भी आनंद परेशान करने में जुट गया. जिस लेखक मित्र पुरु ने वाणी की मदद की थी, उसे बदनाम करने के लिए फ़िल्मी स्टाइल में गुमनाम आई डी वाली औरत ने उसे बहका कर पुरु पर प्रेमजाल में फंसाने का इल्जाम लगा दिया. तमाशबीन ताली पीट रहे थे और वाणी को भी उस अखबार से किनारा करना पडा. वह अच्छी तरह जानती थी कि इस घटना के पीछे किसका हाथ है, मगर चुप्पी मार गयी.
आनंद ने गपबाजों और चमचों के चलते अपना समूह खूब बढा लिया था. एक नयी कवियत्री मीनू के साथ बातचीत में उसने किसी लेखिका का मजाक उडाया तो उसने आनंद को डपट दिया और उसे अपनी मित्र लिस्ट से हटाने की धमकी दी. आनंद बेशर्मी से कह रहा था- तुझे मेरा अहसानमंद होना चाहिये कि मैंने तेरी कविताओं को पढ़ा और कमेन्ट किया. इसके बदले तुमने मुझे एटीट्यूड दिखाना शुरू कर दिया. तुम दोस्ती कर लोगी तो क्या मैं आसमान पर चढ जाऊंगा? तुम उस पुरु की दोस्त हो न. देखा नहीं उसकी असलियत क्या है. पहले से ही 50 लेखिकायें मेरे आगे पीछे भागती हैं– निशि, आभा, विधि, नीला. पद्मिनी और प्रभा. तुम उनके सामने क्या हो?
अभी भी आनंद का बेवकूफ बनाने और लेखिकाओं से दोस्तियां बढ़ाने का सिलसिला चल रहा है. सावधान करने पर भी तारीफ के सातवें आसमान पर चढ़ी लेखिकों को ऐसे लोगों से दूर रहने वाले सलाहकार ईर्ष्या के शिकार लगते हैं, कुछेक महीने बाद असलियत जानने के बाद तमाशा बन खुद वहाँ से किनारा कर लेती हैं. चेहरे पर चेहरा लगाये छिपी हुई कुंठाओं की पूर्ति के लिए साहित्य जैसी पवित्र विधा का सहारा लेकर कुछ लोग शिकार की तलाश में बैठे हैं. मुझे अचानक बिकनी किलर चार्ल्स शोभराज की याद आ गयी. आनंद को क्या कहूँ- लेडी किलर, पोएट्री किलर, ओनर किलर या आभासी दुनिया के प्रहसन का असली खलनायक. मगर इन सब नकारात्मक चीजों से जो उभरा है वह है नीर- क्षीर का विवेक. अब लगता है जल्दी ही फेसबुक विमर्श शुरू होने वाला है. लोग रुक कर विचार करेंगे – हम किस तरफ जा रहे हैं? जो भी समय आभासी दुनिया में लगा रहे हैं, उसे किस हद तक सही ठहराया जा सकता है? हमारे जीवन में असली और आभासी जीवन में समन्वय कैसे लाया जाये? अनेक प्रश्न सिर उठाने लगे हैं और सोच तथा साहित्य का दायरा और भी व्यापक हो गया है.
चलते- चलते आनंद का आखिरी कारनामा भी सुन लें. कुछ दिन पहले अपनी जिस नयी लेखिका को बड़ी बहन का दर्जा देकर उसकी नवगठित साहित्यिक संस्था में आने- जाने लगा, उसी के साथ चंद मुलाकातों के बाद अश्लील संवाद शुरू कर दिए. भाई भले ही कलयुगी हो, बहन ने उसे आड़े हाथों लिया और उसके भेजे अश्लील सन्देश फेसबुक पर कई दोस्तों को दिखा दिए. आनंद थोड़ा घबराया तो है पर मैदान में डटा हुआ है. खुद को भला साबित करने के लिए महान लेखकों के गुणगान कर रहा है. सार्वजानिक रूप से सबसे माफ़ी तक मांग डाली है. खैर, ब्रेक के बाद फिर वही घाघकथा का नायक बन जायेगा. साहित्य, संगीत कला या सिनेमा हर क्षेत्र में नायक खलनायक का भेद मिटता जा रहा है. चेहरों की भीड़ में पहचान बनाने की जुगत में मुखौटे ओढ़े हुए लगे चेहरे वास्तव में वीभत्स होते जा रहे हैं.
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रु. 15,000 के 'रचनाकार कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन' में आप भी भाग ले सकते हैं. अथवा पुरस्कार स्वरूप आप अपनी किताबें पुरस्कृतों को भेंट दे सकते हैं. अंतिम तिथि 30 सितम्बर 2012
अधिक जानकारी के लिए यह कड़ी देखें - http://www.rachanakar.org/2012/07/blog-post_07.html
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ऑफिस में और दोस्तों के बीच आर्कुट, ट्विट्टर और फेसबुक के बारे में इतना जिक्र चलता था कि पिछड़ जाने के भय से मैंने भी फेसबुक पर अकाउंट खोल लिया. तब बिल्कुल अहसास नहीं था कि एक अजीबोगरीब दुनिया में कदम रखने जा रही हूँ. शुरू- शुरू में मेरी फ्रेंडलिस्ट में कुछ दोस्तों, रिश्तेदारों और लेखकों के नाम ही थे. फिर धीरे- धीरे काफिला बनता गया. पहले डर- डर के कमेन्ट करती थी. फिर कुछ लेखक मित्रों की कविताओं और गद्यांश पर भी टिप्पणियां शुरू की. और यहीं से शुरू हुआ असली- नकली चेहरों से परिचय का सिलसिला. कॉलेज में प्रेम करना और कविता लिखना लगभग हर छात्र का शौक हुआ करता है.
कुछ उम्र का तकाजा और कुछ खुद को अभिव्यक्त करने की उत्कंठा. मगर यहाँ हर उम्र का व्यक्ति खुद को प्रोमोट करने में लगा मिला. बिना प्रेम के असंख्य प्रेम कवितायेँ लिखने और खोखले विमर्शों के दौर. जाने- माने या उच्च पद पर आसीन उस आदमी के चाहने वाले लोग ज्यादा थे जो किसी ना किसी रूप में फायदा पहुँचाने की हैसियत रखता हो. नारी विमर्श के तो क्या कहने. घरेलू पढ़ी लिखी, साहित्य कम पढ़ी और जो मन में आए लिख मारने वाली कवयित्रियों की तो यहाँ बाढ़ आई हुई है. उनकी शक्ल और पद के हिसाब से लाइक और कमेन्ट करने वाले भी बेशुमार. अक्सर बिना कुछ लिखे अपनी सुन्दर सी फोटो से ही चर्चा में बने रहने वाली लेखिकाओं की भी भरमार है. अगर आप किसी स्थापित लेखक से जुड़े हुए हैं तो उसके सारे फैन्स आपके खाते में आ जायेंगे. कई बड़े नामों वालों की वाल्स पर भी तल्खियाँ देखने को मिली. जगह- जगह छींटाकशी और विवादास्पद टिप्पणियां देखकर मैंने धीरे- धीरे अपना एक्टिविटी का दायरा चुनिन्दा लोगों तक सीमित कर लिया. पहले बेबाक टिप्पणियां करने के कारण भी समस्या उत्पन्न हो जाती थी. जिनसे परिचित थी वे भी खुशामद करने वालों से घिरे हुए थे. कुछ भी केजुअल कमेन्ट करते ही एक साथ कई लोग याद दिला देते कि हमेशा तारीफ भाव बनाये रखना है.
खैर, कुछेक गंभीर और अच्छे लेखकों के सिवाय बाकी की भीड भरी वाल्स से मैंने दूरी बना ली. एक कवयित्री नेहा ने बड़ी आत्मीयता से बात की और अपनी कविताओं की तरफ ध्यान दिलाया जो धारा के विपरीत अलग ख्यालों की दुनिया की लगीं. वहाँ मैंने गंभीर समीक्षक का चोला उतर कर सहज अंदाज में साहित्यिक अभिरुचि की टिप्पणियां शुरू कर दी जिन्हें पसंद किया जाने लगा. एक दिन किसी नवोदित कवि आनंद की वाल पर अपने बारे में चर्चा दिखाई दी तो बहुत हैरानी हुई. उसने मुझे उसकी कविताओं पर कुछ लिखने के लिए अनुरोध किया था. वे बहुत आम किस्म की कवितायें थीं जिनमें औरतों को रिझाने के लिए उनकी तरफदारी की गयी थी. बड़े- बड़े कवियों से बिम्ब उठाकर उन्हें तोड़- मरोड़ कर इस्तेमाल किया गया था. कुछ कवितायेँ एकदम गपशपनुमा लगी. मैंने सुधार के लिए सुझाव देते हुए कमेन्ट किया तो वह भड़क गया और मेरा मजाक उड़ाने लगा. मैंने उसे फटाफट अनफ्रेंड कर दिया.
अमेरिका में बसी भारतीय मूल की लड़की विशाखा मेरी फ्रेंड लिस्ट में जुड गयी. एक सुबह मेसेज आया कि मुझसे बात करनी है. अपने बारे में न बता कर वह नेहा और आनंद के बारे में बात करने लगी. मैंने कहा- वह वैसे ठीक है मगर अपरिपक्व है और खुद को मुसीबत में डाल लेता है.
विशाखा- मेरी पति से अनबन चल रही है. आनंद ने मुझे बहुत भावनात्मक समर्थन दिया. एक दोस्त चाहिए था शुरू- शुरू में. एक दिन वो मुझे मिला. मुझे लगता है बहुत अलग लिख रहा है. मुझे उसकी कविताएं बहुत पसंद हैं. मैं नेहा से भी बहुत प्रभावित हूँ.
मुझे अजीब लगने लगा था- वह कभी कभी बहुत व्यक्तिगत और बेतुकी बातें भी शेयर कर देता है और लोगों का मजाक भी उडाता है.
विशाखा अपनी धुन में बोले जा रही थी- आनंद की स्प्लिट पर्सनलिटी है ... एक ही समय में एक बच्चा और एक बहुत परिपक्व व्यक्ति. वो स्त्रियों पर कितना अच्छा लिख रहा है. मैं नेहा और आनंद को पढकर पागल हो जाती हूँ. ये लोग कितना पढते हैं. कितनी अच्छी शैली में लिख रहे हैं.
मेरा धैर्य चुकने लगा था- और भी अच्छे लेखक हैं न. उन्हें पढ़ो. इसे आदर्श बनाकर क्या सीखोगी? अपने अनुभवों को लिख डालो. आसपास के जीवन को देखकर कहानियां लिखो.
विशाखा– वो बुरा नहीं है .उसी ने मुझे आपसे सम्पर्क करने को कहा है. मैं खराब शादी में फंसी हुई हूँ .शायद मेरा तलाक हो जाये. बहुत डर लग रहा है. मैं अकेली नहीं रह सकती हूँ. मेरी शारीरिक- मानसिक जरूरतों का क्या होगा?
बातचीत की दिशा बहकते देख मुझे कुछ शक हुआ और फेसबुक को बंद कर दिया. विशाखा की वाल को देखा तो पाया कि वह और आनंद एक दूसरे की कविताओं की वाह-वाही कर रहे होते थे. कविताओं का विषय और शैली भी मिलते- जुलते लगे. विशाखा की वाल पर लड़की की तरफ से समस्याओं की बात की जाती तो आनंद पुरुषों द्वारा औरतों पर किये अत्याचारों और औरत की दैहिक स्वतंत्रता पर कविता लिख देता था. मैंने दो- तीन लेखिकाओं से बात की तो माजरा साफ हुआ कि अनफ्रेंड करने के बाद आनंद इस लड़की के बहाने लोगों की गतिविधियों से परिचित रहता है. मैंने विशाखा को भी लिस्ट से हटा दिया.
आनंद एक साथ कई नावों में सवार होने की फ़िराक में रहता था. उसकी कोशिश थी कि कई नयी और स्थापित लेखिकाओं से मीठी- मीठी बातें करके उन्हें अपने ग्रुप में शामिल करे और एक दूसरे रचनाओं की तारीफ के पुल बांध कर साहित्य के क्षेत्र में कदम जमाया जाये. उसने नेहा को भी बार- बार प्रेम निवेदन भेजा था जिसे उसने कभी नरमी से तो कभी कड़े शब्दों में अस्वीकार कर दिया था. मगर आशिक इतनी जल्दी हार मानने को तैयार नहीं था और मिन्नतें करता रहा .
नेहा ने करारा जवाब दे डाला- मेरी खामोशी को मेरी कमजोरी मत समझो. मुझे आपमें कोई दिलचस्पी नहीं है. जो संदेश आपने मुझे फेसबुक में भेजे हैं उन्हें पब्लिक कर दूँ तो आपका तमाशा बन जायेगा.
आनंद मिन्नतें करने में लगा था- माफ़ कर दो न... मैं अच्छा लड़का हूँ. आपके मन में मेरी गलत छवि बन गयी है. मुझे एक लास्ट चांस दो न. आपको गुस्सा भी नहीं दिलाऊंगा.’
नेहा ने उसे माफ़ करते हुए मित्र लिस्ट से हटा लिया. मगर आनंद अपनी फ्रस्ट्रेशन मेरे और नेहा के बारे में उलटी- सीधी बातें उड़ाकर निकालने लगा कि इनमें से एक नकली आई डी वाली है और दूसरी विदेशी कवियों से नक़ल करती है. साथ में बड़ी मासूमियत से कहता कि नेहा उसे बदनाम करना चाहती है जबकि उसने नेहा से सिर्फ एक गुरु की तरह मार्गदर्शन करने का अनुरोध किया था.
उसके बाद आनंद ने एक अधेड जानी- मानी लेखिका माला को आंटी कहना शुरू कर दिया और बताया की उससे लिखना सीखना चाहता है. माला ने भी सौम्यता से उसे कुछ सुझाव दिए. आनंद अपनी वाल पर डींग हांकने लगा कि इतनी बड़ी लेखिका उसकी तारीफ करती है. अपना तमाशा बनता देख माला ने भी वहाँ से कन्नी कट ली. जो व्यक्ति औरत जाति की इज्जत नहीं करता, उस्से किसी भी रिश्ते की क्या कद्र करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है.
इसी दौरान उस के ग्रुप से अलग हुई एक नयी कवियत्री वाणी, जो किसी अखबार में लिखने लग गयी थी, उसे भी आनंद परेशान करने में जुट गया. जिस लेखक मित्र पुरु ने वाणी की मदद की थी, उसे बदनाम करने के लिए फ़िल्मी स्टाइल में गुमनाम आई डी वाली औरत ने उसे बहका कर पुरु पर प्रेमजाल में फंसाने का इल्जाम लगा दिया. तमाशबीन ताली पीट रहे थे और वाणी को भी उस अखबार से किनारा करना पडा. वह अच्छी तरह जानती थी कि इस घटना के पीछे किसका हाथ है, मगर चुप्पी मार गयी.
आनंद ने गपबाजों और चमचों के चलते अपना समूह खूब बढा लिया था. एक नयी कवियत्री मीनू के साथ बातचीत में उसने किसी लेखिका का मजाक उडाया तो उसने आनंद को डपट दिया और उसे अपनी मित्र लिस्ट से हटाने की धमकी दी. आनंद बेशर्मी से कह रहा था- तुझे मेरा अहसानमंद होना चाहिये कि मैंने तेरी कविताओं को पढ़ा और कमेन्ट किया. इसके बदले तुमने मुझे एटीट्यूड दिखाना शुरू कर दिया. तुम दोस्ती कर लोगी तो क्या मैं आसमान पर चढ जाऊंगा? तुम उस पुरु की दोस्त हो न. देखा नहीं उसकी असलियत क्या है. पहले से ही 50 लेखिकायें मेरे आगे पीछे भागती हैं– निशि, आभा, विधि, नीला. पद्मिनी और प्रभा. तुम उनके सामने क्या हो?
अभी भी आनंद का बेवकूफ बनाने और लेखिकाओं से दोस्तियां बढ़ाने का सिलसिला चल रहा है. सावधान करने पर भी तारीफ के सातवें आसमान पर चढ़ी लेखिकों को ऐसे लोगों से दूर रहने वाले सलाहकार ईर्ष्या के शिकार लगते हैं, कुछेक महीने बाद असलियत जानने के बाद तमाशा बन खुद वहाँ से किनारा कर लेती हैं. चेहरे पर चेहरा लगाये छिपी हुई कुंठाओं की पूर्ति के लिए साहित्य जैसी पवित्र विधा का सहारा लेकर कुछ लोग शिकार की तलाश में बैठे हैं. मुझे अचानक बिकनी किलर चार्ल्स शोभराज की याद आ गयी. आनंद को क्या कहूँ- लेडी किलर, पोएट्री किलर, ओनर किलर या आभासी दुनिया के प्रहसन का असली खलनायक. मगर इन सब नकारात्मक चीजों से जो उभरा है वह है नीर- क्षीर का विवेक. अब लगता है जल्दी ही फेसबुक विमर्श शुरू होने वाला है. लोग रुक कर विचार करेंगे – हम किस तरफ जा रहे हैं? जो भी समय आभासी दुनिया में लगा रहे हैं, उसे किस हद तक सही ठहराया जा सकता है? हमारे जीवन में असली और आभासी जीवन में समन्वय कैसे लाया जाये? अनेक प्रश्न सिर उठाने लगे हैं और सोच तथा साहित्य का दायरा और भी व्यापक हो गया है.
चलते- चलते आनंद का आखिरी कारनामा भी सुन लें. कुछ दिन पहले अपनी जिस नयी लेखिका को बड़ी बहन का दर्जा देकर उसकी नवगठित साहित्यिक संस्था में आने- जाने लगा, उसी के साथ चंद मुलाकातों के बाद अश्लील संवाद शुरू कर दिए. भाई भले ही कलयुगी हो, बहन ने उसे आड़े हाथों लिया और उसके भेजे अश्लील सन्देश फेसबुक पर कई दोस्तों को दिखा दिए. आनंद थोड़ा घबराया तो है पर मैदान में डटा हुआ है. खुद को भला साबित करने के लिए महान लेखकों के गुणगान कर रहा है. सार्वजानिक रूप से सबसे माफ़ी तक मांग डाली है. खैर, ब्रेक के बाद फिर वही घाघकथा का नायक बन जायेगा. साहित्य, संगीत कला या सिनेमा हर क्षेत्र में नायक खलनायक का भेद मिटता जा रहा है. चेहरों की भीड़ में पहचान बनाने की जुगत में मुखौटे ओढ़े हुए लगे चेहरे वास्तव में वीभत्स होते जा रहे हैं.
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