हेमराज त्रिपाठी की बघेली कविताएं

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बघेली कविता श्री वाणी वंदना  1 .............................. हे मातु शारदे संबल दे तै निरबल छिनीमनंगा का। मोरे देस कै शान बढै औ बाढै मान...

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बघेली कविता

श्री वाणी वंदना  1


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हे मातु शारदे संबल दे
तै निरबल छिनीमनंगा का।
मोरे देस कै शान बढै
औ बाढै मान तिरंगा का॥
दिन दिन दूना होय देस मां
लोकतंत्र मजबूत।
घर घर विदुषी बिटिया हों औ,
लड़िका होंय सपूत॥
विद्वानन कै सभा सजै औ
पतन होय हेन नंगा का।
मोरे देस कै शान बढै
औ बाढै मान तिरंगा का॥
‘बसुधैव कुटुंम्‍बं' केर भावना
बसी रहै सब के मन मां।
औ परबस्‍ती कै लउलितिया,
रहै कामना जन जन मां ॥
देस प्रेम कै जोत जलै,
कहूं मिलै ठउर न दंगा॥
मोरे देस.........................
खेलै पढै बढैं बिद्यार्थी,
रोजी मिलै जबानन का।
रोटी औ सम्‍मान मिलै,
हेन घर घर बूढ़ सयानन का॥
रामेश्‍वरं मां चढत रहै जल,
गंगोतरी के गंगा का।
मोरे देस कै ......................
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मैहर धाम  2


मइहर है जहां विद्या कै देवी,
विराजी माँ शारद शक्‍ति भवानी।
पहिलय पूजा करय नित आल्‍हा,
औ देवी के वर से बना वरदानी॥
मइहर है जहा लिलजी के तट ,
मठ मह शिव हें औधड.दानी॥
ओइला मां मन केर कोइला हो उज्‍जर,
लंठव ज्ञानी बनै विज्ञानी।
मइहर है जहा संगम है ,
सुर सरगम कै झंकार सुहानी॥
अइसा पुनीत य मइहर धाम कै,
शत शत वंदन चंदन पानी॥

...........  ॥दोहा॥  3......................


अचरा मां ममता धरे, नयनन धरे सनेह।
माँ शारद आशीश दे,शक्‍ति समावे देह॥
रहिमन पनही राखिये,बिन पनही सब सून।
दिल्‍ली से हैै गांव तक,पनही का कानून॥

राखी टठिया मां धरे,बहिनी तकै दुआर।
रक्‍छाबंधन के दिना, उइं पहुचे ससुरार ॥

गोबर से कंडा बनै, औ गोबरै सेे गउर।
आपन आपन मान है,अपने अपने ठउर॥

जेखे पीठे मां बजा,बारा का धरियार।
ओहिन की दारी सुरिज,कणै खूब अबियार॥

रजधानी मां गहग़़डडृव,खूब पटाखा फूट।
बपुरे हमरे गांव के,धरी बडेरी टूट॥

हमरे लोक के तंत्र का,देखा त अंधेर।
साहब आगू भींज बिलारी,चपरासी का शेर॥

गददारी उंइ करथें,खाय खाय के नून।
लोकतंत्र के देह मां,भ्रस्‍टाचार का खून॥

बदरी जब गामै लगी,बारिस वाले छंद।
बूंदन मां आमै लगा,दोहा अस आनंन्‍द॥

गदियन मां मेहदी रची,लगा महाउर पांव।
सावन मां गामय लगा,कजरी सगला गांव॥

अस कागद के फूल मां,गमकैं लाग बसंत।
जस पियरी पहिरे छलै,पंचवटी का संत।
जुगनू जब खेलिस जुआं,लगी जोधइया दांव।
पुनमांसी पकडै.लगी,अधियारे के पांव ॥
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॥मुक्‍तक  4


पियासा परा हम, हेन नल क देख्‍यान।
उूसर मां बाइत करत,हल क देख्‍यान ॥
आगी लगाय के अब,कहथें फलाने,,
धर बरिगा ता बरिगा,हम दमकल देख्‍यान॥
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नल तरंग बजाउथें,बजबइया झांझ के।
देश भक्‍ति चढाथी,फलाने का सांझ॥
उनहीं ईमानदार कै,उपाधि दीन गै,
जे आंधर बरदा बेंच दइन काजर आंज के॥
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शांती क पाठ लड.इया से पूंछत्‍या है ।
शनीचर क पता अढ़इया से पूंछत्‍या है॥
भोपाल से चला औ,चउपाल मां हेरायगा,
विकास क पता मडइया से पुंछत्‍या है॥

करियारी अस पगहा नही भा ।
फउज मां भरती रोगहा नही भा॥
उनसे जाके कहिद्‌या भूंभर न करैं,
समय काहू का सगहा नही भा॥
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भइस अबै बिआन नही,उंइ सोठ खरीदाथें।
लिपिस्‍टिक लगामै क,ओठ खरीदाथें॥
दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र मां,
उंइ एकठे बोतल से, वोट खरीदाथें॥
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आपन सहज बघेली आय।
गांव के क्‍वारा कै खेली आय॥
विंध्‍य हबै जेखर अहिबात,
ऋषि अगस्‍त कै चेली आय॥
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फलाने कै भंइसी निकहा पल्‍हाथी।
लगथै आँगनवाड़ी कै दरिया वा खाथी॥
गभुआर बहुरिगें धांधर खलाये,
सरकारी योजना ठाढे बिदुराथी॥
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पढ़इया स्‍कूल छूरा लइके अउथें।
हम उनसे पूंच्‍छ्‌यन त कारन बताउथें॥
पढ़ाई के साथ साथ सुरक्षव त जरुरी ही,
आज काल्‍ह गुरुजी चउम्‍ही से पढ़ाउथें॥
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हम जेही मांन्‍यान कि बहुतै बिजार है।
लागथै भाई वा बरदा गरियार है ॥
जब उनसे पूंछ्‌यन त कहाथे फलाने,
दहकी त दहकी नहि दल का सिगार है॥
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फूल हमही त जरबा जनाथै।
बिन जंगला केर अरबा जनाथै॥
बहुराष्‍ट्‌ीय कंम्‍पनी क पानी भरा है,
औ देशी मांटी क तलबा जनाथै॥
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घिनहौ क नागा नही कही,
येही बड़प्‍पन मान कहा ।
फलाने कहाथें तुम हमी
महान कहा ॥
जेही बंदेमतरं गामैं मां लाज लागाथी,
उंइ कहा थें हमूं का ,
भारत कै संतान कहा ॥
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हम दयन नये साल कै बधाई।
फलाने कहिन तोहई लाज नही आई॥
पांव हें जोधइया मां हांथ मां परमानु बम
पै पेट मां बाजाथी भूंख कै शहनाई॥

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तुहूं अपने हांथ कै चिन्‍हारी देख ल्‍या।
भाई चारा काटैं बाली आरी देख ल्‍या॥
नीक काम करिहा ता वा खूंन मां रही,
गिलहरी के तन केर धारी देख ल्‍या॥
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हमरेव गांॅव मां हरिश्‍चंद हें।
दिल्‍ली तक उनखर संबंध हें॥
पुलिसवाले गें लेंय परिक्षा,
आज काल्‍ह उंइ जेल मां बन्‍द हें॥
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उंइ कहा थें हाल चाल ठीक ठाक है।
जब से भगा परोसी तब से फरांक है॥
अब रोज खुई कराथें पट्‌टीदार से,
औ कहाथें हमरिव कि निकही धाक है॥
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हम फुर कही थें ता कान उनखर बहाथै।
पता नही तन मां धौं कउन रोग रहाथै॥
तन से हें बुद्ध औै मन से बहेलिया,
कोहबर कै पीरा य लोकतंत्र सहाथै॥
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चेतना के देंह का उंइ झुन्‍न न करै।
हांथ जरै जेमा अइसा पुन्‍न न करै॥
इन्‍द्र कै बस्‍यार ही घर के नगीच मां,
‘गउतम'से जाके कहि द्‌या उच्‍छिन्‍न न करैं॥
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बलफ फियुज होइगा झालर पकड.के।
उंइ हाल चाल पूंछाथें कालर पकड.के॥
सुदामा के चाउर का उंइ का जनैं,
जे बचपन से खेलिन ही डालर पकड. के॥
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उबड़ खाबड़ अस चरित्र का
सभ्‍भ नीक बन जांय द्‌या।
औ कलिंग के छाती मां
करूणा कै लीख बन जांय द्‌या।
ओउं सीता मइया का
पलिहैंअपनें आश्रम मां,
पहिले हमरे ‘रत्‍नाकर'का
बालमीक बन जांय द्‌या॥
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उनखेे कइ शरद्‌‌ अस   पूनू
हमरे कइ्र्र अमउसा है।
रदगदग द्‌यांह फलाने कै,
हमरे तन मां खउसा है॥
उंइ गमला कै हरिअरी देख,
खेती कै गणित लगउथे,
काकू कहाथे चुप रहु दादू भउसा है॥
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हमरे ईर्मानदारी का रकवा रोज घटाथै।
सुन के समाचार कर्‌‌याजा फटाथैै॥
जब उनसे पूंछ्‌यन त कहाथें फलाने,
चरित्र का प्र्र्रमान पत्र थाने मां बठाथै॥
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बड़े ललत्‍ता हया फलाने।
ताश के पत्‍ता हया फलाने॥
हम तोहइ थान मन्‍यान तै,
पै तुम लत्‍ता हया फलाने॥
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मरजादा का उंइ दंड कहा थें।
बंदेमातरं का पखंड कहा थें॥
रोज महतारी जेही ढाढस बधाउथी
उंइ बेरोजगार का बायबंड कहा थें॥

अब सेंतै लागै मांख फलाने ।
हा तुमहिन सबसे बांख फलाने॥
तुहिन लगाये रह्‌या अदहरा
तुहिन उचाबा राख फलाने॥
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आज काल्‍ह उंइ जादा दुखी हें।
लागथै उनखर परोसी सुखी हें॥
बड़े शीलवान उपरंगी जनाथें,
पै भितरै भीतर ज्‍वाला मुखी हें॥
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खूब सुन्‍यन हम भाषन बांझ।
आपन   दोउ  कान मांज॥
अउर बजायन बल भर तारी,
न उनही शरम न हमहीं लाज॥
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अभुआंय लगेहें परेत पुन देवार मां।
शहरन मां गांवन मां घर घर दुआर मां॥
कहिन सेंतै भगीरथ तपिस्‍या करिन तै,
हम गंगा लै आनित बइठ के नेबार मां॥
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न पाक के अतंकी चालन से ड्‌यर लगै।
देश का देशी दलालन से ड्‌्रयर लगै॥
जे लुकाये बइठ अपने घर मां मगर मच्‍छ,
उंइ अगम दहार अस तालान से ड्‌यर लगै॥
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काल्‍ह बतामैं गंगा भट्‌ट।
मचा सांझ के लठमलठ्‌ठ॥
हम होन गयन करैं समझउता,
हमरेन लगिगा हरिजन एक्‍ट॥
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फसल हुंअय होथी जहां सींच होथै।
कमल हुंअय खिली जहां कीच होथै॥
उनसे कहि द्‌या जमान सम्‍हार के बोलै,
मनई जात से नही बात से नीच होथै॥
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अपना कइती चकाचक्‍क है।
औ हमरे कइती कुतक्‍कहै॥
अब वा कबहूं ठाढ न होइ
जे नजरन से गिरा भक्‍क है॥
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व्‍यापार उइ कराथें त वहौ किस्‍त मां।
तकरार उंइ कराथे त वहौ किस्‍त मां॥
जीवन मां अर्थशास्‍त्र का येतू असर परा
प्‍यार उंइ कराथें त वहौ किस्‍त मां॥
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हम अपने संकल्‍प से नट नही सकी।
अपने गाँव के मांटी से कट नही सकी॥
हम सुरिज आह्‌यन जोधइया न समझा
डूब ता जाब पै घट नही सकी॥
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अमल्‍लक जनाथै उनखे चाल से।
हरिश्‍चंद का समझउता है नटवरलाल से॥
लवालब भरा है त आज उइ टर्राथें
सब गूलर भाग जइहै सूख ताल से॥
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खादी से कहां चूक भै चरखा बताउथें।
केतू भा अजोर य करखा बताउथें॥
जे रोज बोतल का पानी पियाथें
उइ अपने का नदियन का पुरखा बताउथें॥
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गूंज रही परभाती भइलो।
रोज बराथी बाती भइलो॥
दिन भर देंय अनूतर गारी
सांझ करै संझवाती भइलो॥
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न अकरन न लिहाज फलाने।
कहां गिरी य गाज फलाने॥
कांधा से दुपट्‌टा हेरायगा
प्रगतिशील भै लाज फलाने॥
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खूब सुन्‍यन हम भाषन बांझ।
आपन दोउ कान मांज॥
अउर बजायन बल भर तारी
न उनही शरम न हमही लाज॥
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न पाक के अतंकी चालन से डर लगै।
देस का गद्‌दार दलालन से डर लगै॥
जे लुकाये बइठ अपने पानी मां मगर
अइसा अगम दहार उंइ तालान से डर लगै॥
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अब सेंतै लागै मांख फलाने।
हा तुमहिन सबसे बांख फलाने॥
तुहिन लगाये रह्‌या अदहरा
तुहिन उचाबा राख फलाने॥
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जउन उइ कहै वहै इतिहास आय।
फलाने कहाथें लगथै बदमाश आय॥
अरे दूध से भरा चह दारू से
संसद भवन त गिलास आय॥
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अजल्‍याम कै कमाइ दवाई मां जाथी।
पउन ले अइहा सबाई मां जाथी॥
ईमानदारी के रोटी से संस्‍कार आउथें
बेइमानी कै झगड़ा लड़ाई मां जाथी।ं।
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काल्‍ह बतामै महतौ चुन्‍नी।
पसीझ पसीना कै पैसुन्‍नी॥
देंह देखाउत बागै मल्‍लिका
औ बदलाम भै बपुरी मुन्‍नी॥
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जे हांथ कटवाय लेय वोही ताज कहाथें।
जे ढोलकी फोर डारै वोही ओस्‍ताज कहाथे॥
झूरै न होय आपन भारत य  महान्‌ है
हेन पक्‍के जुआरी का धरम राज कहाथे॥
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जे मरे के बाद बचै वहै सयान आय।
पेट पलै जेसे वहै जबर ज्ञान आय॥
जे अक्षर कविता कै बोली लगाउथे
वहै निकहा कवि औ बड़ा विद्वान आय॥
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हेन अतरे दुसरे विस्‍फोट ह्‌वाथै।
उइ कहाथें लोकतंत्र मोट ह्‌वाथै॥
नाक मां रूमाल धरे बांटथें मांवजा
उनखे निता मनई बस एक वोट ह्‌वाथै॥
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अनमन अनमन सयान बइठें।
टनमन पीरा के बयान बइठें॥
दोउ जून जूड़े जिव रोटी नही मिलै
आंसू पी पी के अघान बइठें॥
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आचरन रहाथें जब नेम धेम से।
तब जीवन चलाथै कुशल क्षेम से॥
उंइ रोज चार ठे कुलांचै सुनाउतींहै
को अम्‍मा अस परसाथै टठिया प्रेम से॥
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अंतस के पीरा का भुतही बताउथे।
पुजहाई टठिया का छुतही बताउथें॥
जे तरबा चाटाथे विदेसी परिपाटी के
उंइ अपने माटी का जुठही बताउथे॥
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केतू भइलो अबै समोखी।
कब तक होइ फुरा जमोखी॥
भारत माता सिसक रही ही
कब तक खुलिहैं आंॅखी ओखी॥
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मिलब सांझ के.   5


हम सरबरिया बांम्‍हन आह्‌यन
मिलब सांझ के हउली मां।
मरजादा औ धरम क ब्‍वारब,
नदिया नरबा बउली मां॥
होन मेल जोल भाईचारा कै,
साक्षात्‌ हिबै तस्‍वीर।
मंदिर मसजिद असम समस्‍या,
नहि आय झंझटिया कश्‍मीर॥
अंगड़ा पिछड़ा आरक्षण का,
लफड़ा बाला नहि आय भेद।
जात पांत औ छुआछूत के,
उंचनीच का नहि आय खेद॥
समता मिलै हंसत बोलत होन,
पैग भजिया लपकउरी मां।
हम...................................
एक भाव एक नाव मां बइठे,
मिलिहैं राजा रंक औ फक्‍कड़।
बड़े बड़े परदूषन प्रेमी,मिलिहैं,
सुलगाये धुंआ औ धक्‍कड़॥
रक्‍शा बाले नक्‍शा बाले,
शिक्षा स्‍वास्‍थ सुरक्षा बाले।
बने पुजारी सरस्‍वती के,
अद्यी पउवा बोतल घाले॥
बड़े शान से भांसन झरिहैं,
मद्य निषेध के रइली मां।
हम...................................
भले भभिस्‍स देस का जाथै,
बस्‍ता लादे कोसन दूरी।
भला होय सरकार का भाई,
घर नेरे ब्‍यांचै अंगूरी॥
पै कुछ जने खूब हें झरहा,
देखि न सकैं हमार सुखउटा।
अंगूरी का डींठ न लागी,
शासन नेरे हय कजरउटा॥
ईं समाज सेवक पगलान हें,
आचरन चरित्र पिछउरी मां।
हम......................................
भले दये अदहन चुल्‍हबा मा,
ताकै टोरबन कै महतारी।
औ हमार य अमल सोबाबै,
राति के लड़िका बिना बिआरी॥
हमही चाही रोज सांझ के,
मुर्ग मुसल्‍लम पउआ अद्यी।
फेर नंगदांय द्‌याखा हमार,
कइ देयी ढ़ील कनून कै बद्यी॥
वा बिन सून ही नेतागीरी,
जस खरिहान कुरइली मां।
हम...........................................
महुआ रानी पानी दै दै,
हमही बनै दइस लतखोर।
कउली अपने से दूगुन का,
भले हबै अंतस कमजोर॥
बीस बेमारी चढ़ी ही तन मां,
तउ नही य छूटै ट्‌यांव।
मदिरा माने माहुर भाई,
डिग्‍गी पीटा गांॅव गांॅव॥
नही पी जइ य समाज का,
बगाइ कउरी कउरी मां।
चला करी प्रन अबहिन भाई,
कोउ जाय न हउली मां॥
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करी चेरउरी  6

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हमकरी चेरउरी चुगुलखोर तुम सुखी रहा य देश मां।
तुम बइठे नक्‍कस काटा औ सब जन रहै कलेश मां॥
हे अकरमंन्‍न हे कामचोर सब कांपै तोहरे दांव से।
कड़ी मसक्‍कत के करता तक कांपै तोहरे नाव से॥
तुमसे सब है कार बार जस धरा धरी ही ‘शेष'मां।
हम..............
हे चापलूस चउगिरदा हेन तोहरै तोहार ता धाक हिबै।
औ तोहरेन चमचागीरी से हमरे नेतन कै नाक हिबै॥
तुम कलजुग के देउता आह्‌या अब माहिल के भेष मां।
हम...............
हे महादोगला हे अकही अकहापन कै पूंजी तुम।
बड़ा मजा पउत्‍या है जब आने कै करा नमूंजी तुम॥
गद्‌गद्‌ होय तोहार आतमा जब कोउ परै कलेश मां॥
हम................
हे मनगवां के कूकुर तुम चारिव कइती छुछुआत फिरा।
मुंह देखी मां म्‍यांउॅ म्‍यांउॅ औ पीठ पीछ गुर्रात फिरा॥
सगले हार तोहार धाक ही देस हो य परदेस मां।
हम.................
केतनव होय मिठास चाह छिन भर मां माहुर घोर द्‌या।
तुम भाई हितुआ नात परोसी का आपुस मां फोर द्‌या॥
तोहरे भिरूहाये मां पति.पत्‍नी तक चढ़िगे केस मां॥
हम...................
हे मंथरा के भाई तुम जय हो हे नारद के नाती।
नाईदुआ करत बागा बेटिकस डांक कै तुम पाती॥
हे रामराज्‍य के धोबी तुम घुन लाग्‍या अबधनरेश मां।
हम करी चेरउरी चुगुलखोर तुम सुखी रहा य देश मां॥
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गदहा गदहिया संवाद  7


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एक रोज गदहा काका से कहिस गदहिया काकी।
पकिगा प्‍याट य भारा ढ़ोबत परै भाग मां चाकी॥
हमही परै अजार य  होइ जाय कउनौ अनहोनी।
इसुर य तन लइके  हमही  देय मनई कै जोनी।
यतना सुनतै  गदहा काकू  लगें  खूब अनखांय।
कहिन शनीचर तोहइ चढा है औ चटके ही बाय॥
येहिन से तुम मांगि रह्‌या है वा मनई का क्‍वारा।
जउन बरूद के गड्‌ड मां बइठे होइन भूंजै होरा॥
जे अपने स्‍वारथ मां ढड़कै मिरजापुर कस लोटिया।
पानी पी के चट्‌टय फ्‌ोरै जे पउसरा कै मेटिया॥
जे जात धरम भांषा बोली मां करबाउथें जंउहर।
जे नेम प्रेम भाईचारा से मिलैं न कबहूं जिवभर॥
जे ईटा गारा निता बहामै अपने भाई का रक्‍त।
भले पीलिया केर बेजरहा अस्‍पताल मां मरै बेसक्‍त॥
रक्‍तदान न द्‌याहै ओही भले सड़क का सींचै।
जउन बंदा भगतन से दइअव केर कर्‌याजा हीचै॥
अइसा रूक्ष दुइ गोड़ा गड़इता कै मगत्‍या तुम जोनी।
जे मजूर के खून पसीना कै भख लेय करोनी॥
मनई से नीक ता हमरै जात ही सुना गदहिया रानी।
चुहकै नही अरक्षण कोल्‍हू प्रतिभा केर जमानी॥
लख्‍यन लालू के ढंग का देखे रंझ ही तोहरे जिव का।
पै हम पशु पच्‍छिन के खातिर जीतीं अबै मेंनका॥
तुम गुलाब का सपन न द्‌याखा बना निराला केर कुकुरमुत्‍ता।
य मनई  से वफादार है  हमरे देस का कुत्‍ता॥
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अम्‍मा हमहूं करब पढाई  8


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अम्‍मा!हमहूं करब पढाई।
हम न करब घर कै गोरूआरू
औ न चराउब गइया।
कह दद्‌दा से जांय ख्‍यात
औ ताकै खुदै चिरइया॥
हम न करब खेतबाई।
अम्‍मा.........................
आज गुरूजी कहिगें हमसे
तु आपन नाव लिखा लया।
पढ लिख के हुशिआर बना
औ किस्‍मत खुदै बना ल्‍या॥
येहिन मां हिबै भलाई।
अम्‍मा..........................
गिनती पढबै पढब दूनिया
बाकी जोड़ ककहरा।
अच्‍छर अच्‍छर जोड़.जोड़ के
बांचब ठहरा ठहरा॥
औ हम सिखब इकाई दहाई।
अम्‍मा.............................
हम न खेलब आंटी डंडा
औ न चिरंगा धूर।
पढब लिखब त विद्या माई
द्‌याहैं हमी शहूर॥
करब देस केर सेवकाई।
अम्‍मा ......................
बहुटा गहन कइ अंउठा
लगा के दद्‌दा कढैं खीस।
देंय बयालिस रूपिया बेउहर
लिखै चार सौ बीस ॥
ल्‍याखा ल्‍याबै पाई पाई।
अम्‍मा हमहूं करब पढाई॥
.....................................................................

पावस कै रित 9


रिमझिम रिमझिम मेंघा बरखै
थिरकि रही पुरवाई।
धरती करै सिगार सोरहौ
पावस कै रित आई॥
भरे डवाडब ताल तलइया
कहूं चढी ही बाढ।
एकव वात न लेय किसनमां
जब से लगा अषाढ॥
बोमैं बराहैं नीदै गोड़य
करैं नीक खेतवाई।
रिमझिम.........................
भउजी बइठे कजरी गउतीं
भाई आल्‍हा बांचै।
टिहुनी भर ब्‍वादा मां
गाँवन की चउपालै नाचै॥
करय पपीहा गोइड़हरे मां
स्‍वाती केर तकाई।
रिमझिम.......................
गउचरनै सब जोतर गयीं
ही रखड़उनी मां बखरी ।
धधी सार मां गइया रोउत
खूब बमातीं बपुरी॥
‘‘मइया धेनु चरामै जइहौं''
मचले किशन कन्‍हाई॥
रिम झिम..........................
चउगानय अतिक्रमण लीलगा
लगी गली मां बारी।
मुड़हर तक जब पानी भरिगा
रोमय लाग ओसारी॥
कहिन फलाने खूब फली
पटवारी कर मिताई।
रिमझिम.................
चुंअय लाग छत स्‍कूलन कै
दइव बजाबै ढोल।
एक दउंगरै मां लागत कै
खुलि गै सगली पोल॥
विद्या के मंदिर मां टोरबा
भीजत करै पढाई।
रिमझिम.......................
जब उंइ पउलै लगें म्‍यांड़ ता
लाग खेत का सदमा।
दोउ परोसी लपटें झपटे
हीठै लाग मुकदमा॥
सरसेवाद त कुछू न निकला
करिन वकील लुटाई।
रिमझिम...........................
.................................................................

सुन इसलामाबाद  10


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अब दिल्‍ली ललकार उची,सुन रे इस्‍लामाबाद।
कोलिया के झगड़ा मां आपन,बेंच न डारे बांध॥
नीक के आखर आंखर पढ,इतिहास पोथन्‍ना खोल।
हमहिन आह्‌यन वहै वंश,जे बदल दइस भूंगोल॥
बंग्‍लादेश के बदला बाली, पूर न होई साध।
अब दिल्‍ली...............................................
हम तोही मउसी अस लड़िका,अपने जिव मां चाही।
हमरेन घर मां सेंध मार तैं, करते हये तबाही॥
बे कसूर के हत्‍या का तै,कहते हये ‘जेहाद'॥
अब दिल्‍ली.......................................................
हमरे देस मां करै उपद्रव, तोर गुप्‍तचर खुपिया।
हांथ मिलामैं का रचते हे,तै नाटक बहुरूपिया॥
एक कइ उत्‍पात कराउते,एक कइ संवाद॥
अब दिल्‍ली..........................................
हमरे देस कै पोल बतामै,मीरजफर के नाती।
तोरे भिरूहाये मां बनिगें महतारी के घाती॥
महावीर अब्‍दुल हमीद कै हमी न बिसरै याद।
अब दिल्‍ली..........................................
खूनी आतंकवादीन का तै अपने घरे लुकाउते।
औ उपर से हमहीं सोला दूनी आठ पढाउते॥
भारत के हर गाँव गली मां उूधम सिंह कै मांद।
अब दिल्‍ली ललकार उची सुन रे इस्‍लामा बाद॥
कोलिया के झगड़ा मां अबकी बिक जइ सगला बांध।
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ओ पापी लुच्‍चा तैं पाक।  11


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ओ पापी लुच्‍चा तैं पाक तोही नही आबै लाज,
जउन साज साज घुसपइठ तैं करउते हे।
लगथै कि भूलि गये गिनती हिजड़ी सेना केर,
पुनि के तै वाखर जन संख्‍या गिनबउते हे॥
तोरे इतिहास माही नही कुछु रास भांस ,
हमरे भूंगोल माही पीठ तैं दतउते हे।
अइहे जो तैं कश्‍मीर सेना डारी सीना चीर,
दुइ दारी त देखि चुके पुनि अजमउते हे॥

भारत के मांटी केर वीरता कै परिपाटी,
बांच ले पुरान चाह नये इतिहास का।
भारत के मांटी माही हें जवान वीर शेर,
हेर हेर बीन ल्‍याहैं धरती अक्‍काश का॥
मुंह देखी मेलजोल पीठ पीछ बैर मोल,
तोर दोगली य चाल दुअरा विनाश का।
अरे दीदी जो पिआये दूध करदे एलान जुद्व,
जिंदय मां बनबा ले कब्र अपने लहास का॥

हिमालय से ज्‍वालामुखी फूट के निकर परी,
सह पइहे आंच तै न हिन्‍दुस्‍तानी वीर के।
वा दारी त दुर्गा रहीं य दारी हें महाकाल,
भुट्‌टो अस होइ हाल तोरव त अखीर के॥
रे ढीठ नीच मान बात कर न तै उत्‍पात,
भारतीय भूंगोल मांही सरहद तीर के।
जब तक सुरिज औ चन्‍दा हें अकास मांही,
धरती मां लहरइ तिरंगा कश्‍मीर के ॥
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आई शरद्‌ रित ॥12॥


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गइल सूखि गै गलिहारन कै
कांदौ कुछू टठांन।
नदिया नरबा ताल का पानी
निकहा हबै थिरान॥
जमगै घाट घाट मां काई।
आई शरद.............
हरूहन धानै खरिहानन कै
बन आई मेहमान।
बोई हड़हन बाली अरसी
अकुरी औ हरिआन॥
खेतन मां लगी जोताई।
आई..........................
सुदिन साख के सुने संदेशा
उनखे मन मां दुःख भा।
पिया मिलन के गइल मां गोई
साम्‍हूं ठाढ है सुकवा॥
कब अइहैं पंडित नाई।
आई ..........................
कहैं परोसिन पिया से अपने
अब न खेला ताश।
तोहरे आल्‍हा बांचत कढिगा
य सगला चउमास॥
परा सगली ही ख्‍ेातवाई।
आई...............................
दओ पोलका भउजाई का
हार हार से फट गा।
मेंहदी महाउर काजर टिकुली
सेंदुर तक ता घट गा॥
अब ता कहु करा कमाई।
आई.............................
नीक लाग जब गया बिआहैं
बांध झापि अस मउर।
मोरव करम फूटगे साजन
तोहरे डेहरी ठउर॥
कइसां निबही अउर निभाई।
आई शरद रित आई॥
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तोर बिदुरखी देखी थे ॥13॥


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तुम हमार आंसू द्‌याखा,
हम तोर बिदुरखी देखी थे।
हाथे मां रिमोट लये हम,
आपन कुरकी देखी थे॥
तालेवर कै सांटीफिकिट,
उंइ देथे छब्‍बिस रूपिया मां,
एतर गरीबी कै तउहीनी,
फुरहिन फुर की देखी थे॥
नये थाल मां बासी रोटी,
परसी गै सब दिन एतरै,
मुलुर मुलुर हम रजधानी कै,
धमकी घुड़की देखी थे॥
देवी फिरै बिपत कै मारी,
पंडा कहै मोही कला बताव,
गांव गांव मां करतूतै हम,
भंइसासुर की देखी थे॥
कोउ नहि दूध का ध्‍वाबा
राजनीत के धंधा मां,
सांझ सकारे चाह पियत हम,
खबर कै सुरखी देखी थे॥
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आंगुर आंगुर   ॥14॥


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आंगुर आंगुर नाप नाप के,जे पालिस लै कइंया।
महतारी औ बाप का मानै ,  दादू अंगा अंइया॥
बारूदन का पानी से ,  माचिस मां बड़ा भरोसा,
पता नही धौ कउन बात मां,को मिल जाय किरइया॥
बसुधैव कुटुम्‍बं केर भावना, देखा केतू सकिली,
अब आपन संसार कहाबै ,लड़िका सजनी सइंया॥
बड़े अपनपौ  के  विज्ञापन,  अस रोज छलै,
ओहिन का जुग सांझ सकारे,रोज पराथै पइंया॥
भीतर से हें अनमन अनमन,औ गद्‌गद्‌ बहिरे,
चीन्‍हे तक नही पावै बपुरे, को आपन अनगइंया॥
खूब तिपै सूरज ता देखा, हीठत हबै अकेले,
शीतल हिबै जोधइया ता रहतीं हैं साथ तरइया॥
महतारी के तेरही मां, लड़िकन मां रार ठनी,
केखर केतू लगा है खरचा,हीसा केर रूपइया॥
पीरा का अनुवाद करा थें,टप टप आंॅखिन अंसुआ,
आज के सरमन मात पिता कै कराथे दइया मइया॥
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बंदेमातरं  ॥15॥


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सरग से नीक मोरे देस कै य धरती ही,
जिव से है अधिक पियार बंदेमातरं।
रूपसी के देंह से ही स्‍वारा आना सुंदर य,
आपन माटी देश कै सिंगार बंदेमातरं॥
बहै नदी कलकल पानी करै छलछल,
टेराथें पहार औ कछार बंदेमातरं।
जहां बीर बलिदानी भारत का बचामै पानी,
सूली माही टगिगे पुकार बंदेमातरं॥
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रात रात भर   ॥16॥


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रात रात भर किहन तरोगा हम जेखे अगुवानी मां।
बड़े सकारे मरे मिले उंइ एक चुल्‍लू भर पानी मां॥
कोउ नही सुनइया दादू  चह  जेतू  नरिआत रहा,
सगला देस सुनिस ‘अन्‍ना' का जब बोलिन रजधानी मां॥
नंच नंच  आँखिन  से  झांकै  बड्‌डे  जबर सपन,
बोली  बड़ी  पिआर  लगाथी  तोतली  बानी मां॥
शक के नजर से देखे जाथें जब साधू संन्‍नासी तक,
कइसा उनही रिस न चढी आतंकिन के मेहमानी मां॥
भला पेटागन रहि के कउनौ महाशक्‍ति का देस बनी,
जेखर  जनता  भूंखी  नंगी  टुटही छान्‍ही  मां॥
खूब पैलगी होथी जेखर औ समाज मां मान हबै,
उनही सांझ के हम देखे हन गिरत भंजत रसदानी मां॥
जिअत अगाधैं मरे सराधैं हमरे हेन अनरीत हिबै,
‘सरमन' सब दिन मारे गे हें सत्‍ता के मनमानी मां॥
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पीर जानाथें  ॥17॥


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जेखे बहिनी बिटिया ही ओइन पीर जानाथें।
दरबार का बेउहार द्रोपदी के चीर  जानाथें॥
तसलीमा नसरीन  फिफिआत  बागा थी,
हमरे सभ्‍भ समाज के वजीर  जानाथें॥
कटाउतीं हैंकइसा नाक प्रगतिशील सुपनखा,
मरजाद के रखइया रघुवीर जानाथें॥
उंइ दुइ मुहा सिद्धांत जिअय केर आदी हें,
य पोल   पट्‌टी  कबीर  जानाथें॥
वा काने मां काटा ठोक के बिदुरात चला गा,
य  पीर अहिंसा के महावीर जानाथें॥
फलाने के मढइया तक पहुंचा नही अजोर,
लाल किला के कलश प्रचीर जानाथें॥
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॥बिटिया॥ 18


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ठुम्‍मुक ठुम्‍मुक जाथी स्‍कूलै, डे्रस पहिरके बइया रे।
टांगे बस्‍ता पोथी पुस्‍तक ,बिटिया बनी पढइया रे॥
खेलै  चंदा  लगड़ी  गिप्‍पी , गोटी  पुत्‍ता पुत्‍ती।
छिन भर मां मनुहाय जाय,औ छिनभर माही कुट्‌टी॥
लल्‍ला  बिट्‌टी  का  खिस बाबै , लोलबटइया रे।
ठुम्‍मुक...............................................................
ठउर  लगाबै  अंउजै  परसै ,करै चार ठे त्‍वारा।
कहूं चढी बब्‍बा के कइंया, कहु अम्‍मा के क्‍वारा॥
जब रिसाय  ता पापा दांकैं, पकड़ झोटइया रे।
ठुम्‍मुक ठुम्‍मुक................................................
बिन बिटिया के अनमन अंॅगना घर बेसुर कै बंसी।
बिटिया दुइ दुइ कुल कै होथी मरजादा बड़मंसी॥
हमरे  टोरिअन  कांही,  खाये  जाथै  दइया रे।
ठुम्‍मुक ठुम्‍मुक...................................................
भले नही भंई भये मां सोहर, पै न माना अभारू।
लड़िका से ही जादा बिटिया, ममता भरी मयारू॥
पढी लिखी त बन जइ टोरिआ, खुदै सहइंया रे।
ठुम्‍मुक ठुम्‍मुक..................................................
कन्‍यन कै होइ रही ही हत्‍या,बिगड़ि रहा अनुपात।
यहै  पतन  जो रही फलाने, कइसन सजी बरात॥
मुरही  कोंख  से टेर  लगाबै, बचा ले मइया रे !
ठुम्‍मुक ठुम्‍मुक ..................................................

करा खूस  19


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उंइ कहिन आज हमसे घर मां,
अब तुमहूं त कुछ करा खूस।
देखत्‍या है उनही तिपैं ज्‍याठ,
तुम हया जड़ाने मांघ पूस॥
अरे कहूं रोप एकठे बिरबा,
आपन फोटो खिंचवा लेत्‍या।
औ पर्यावरणी प्रेमिन मां,
अपनौ नाव लिखवा लेत्‍या॥
पुन रेंजर से कइ सांठ गांठ,
ठेका लइ लेत्‍या जंगल का।
जब अपनौ टाल खदान चलत,
परसाद चढत हर मंगल का॥
गलिहारव हेरत रहै छांह,
औ गोरूआ हेरैं घास फूस।
अब तुमहूं...........................
विद्युत मंडल बालेन से ,
तुमहूं हितुआरथ कइ लेत्‍या।
पुन चलत ठ्‌यसर मोटर चक्‍की,
लुग्‍गी से स्‍वारथ कर लेत्‍या॥
कुछ लइनमैन का दइ दीन्‍या,
त व बिजुली अस गोल रही।
औ अपनेव बिजली चोरी कै,
दबी मुदी सब पोल रही॥
जब अधिकारी दउरा करिहैं,
त वहै बनी आपन जसूस।
अब तुमहूं......................
बन जात्‍या कोटेदार तुहूं
कइ जोर तुगुत कउनौ ओठरी।
करत्‍या पुन कालाबाजारी
तुम उचित मूल्‍य के बोर्ड तरी॥
तेल चिनी औ चाउर से,
जब चकाचक्‍क आनंद रहत।
औ सहबौ का थक्‍की भेजत्‍या,
ता उनहूं का मुंह बंद रहत॥
सब बनगें कोटेदारी से,
का तोंहरेन दारी परा उूंस।
अब तुमहूं.......................
तुमहूं ता तन से हया उजर,
मन भले हबै सांमरपानी।
अपनेन ख्‍वांपा से शुरू करा,
उतिना पहिले अपनै छान्‍ही॥
‘सरमन'कै भगती छ्‌वाड़ा,
सह पइहा न कमरी का भार।
भाईन का हीसा हड़प हड़प,
होइ चला चली पहिले निनार॥
जरजात लिखा ल्‍या नामे मां
पटवारी का लै दै के घूंस।
अब तुमहूं त कुछ करा खूस॥
गीता कुरान औ बाइबिल का,
चल कउनौ चाल लड़ा देत्‍या।
देस भक्‍त के पोथी मां तुम
अपनौं नाव चढा लेत्‍या॥
भाईचारा  का बिख दइके,
दुध पिअउत्‍या दंगन का।
पर्दा का पल्‍ला छाड़ा,
है नओ जमाना नंगन का॥
तुष्‍टीकरण के पुस्‍टी माही,
कौमी एकता का जलुस।
अब तुमहूं.......................
तोहरव बिचार घिनहे सांकर,
औ कपट नीत मां द्‌वहगर हा।
तुम राजनीत के नेतन कस,
भितरघात मां प्‍वहगर हा॥
तुम दंदी भंदी फउरेबी,
औ चुगुलखोर के सांचा हा।
मुंह देखी भांषन गीत पढै मा,
तुम चमचन के चाचा हा॥
च्‍वार हया तुम कवियन अस,
औ पत्रकार कस चापलूस।
अब तुमहूं त कुछ खूस॥
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शहीदन कै बंदना  20


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धन्‍न !धन्‍न !!सौ बेर धन्‍न, य विध्‍य कै पावन मांटी।
हमरे पुरखन का प्रताप औ,    भारत कै परिपाटी॥
मनकहरी हरषाय उची,औ जिव रनमत सिंह बाबा का।
देस प्रेम कै जोत जुगी ,   पाके सपूत रनधावा का॥
कह उची टमस जीवन रेखा,धन्‍न बहिनी डोर कलाई का।
जे सीमा मां संगीन लये,दइन जीवन ! देस भलाई का॥
धन्‍न! कोख महतारी कै , जे पूत दान दइन मूंठी मां।
मात्रृ भूमि के देस  प्रेम का,  दूध पिआइन घूंटी मां॥
धन्‍न धन्‍न वा छाती का, जेही एकव है संताप नही।
बलिदान पूत भा सीमा मां, धन्‍न धन्‍न वा बाप कही॥
धन्‍न !धन्‍न!! वा येंगूर काहीं वा सेंदुर कै मांग धन्‍न।
जेखर भा अहिवात अमर, वा नारी केर सोहाग धन्‍न॥
उंइ भाईन कै बांह धन्‍न,!मारिन सुवाहुं  मरीची अस।
बइरी वृत्‍तासुर मारैं का, जे बन गें बज्र दधीची अस॥
अपने  अपने  रक्‍तन  से ,  बंदेमातरं  उरेह  दइन ।
जब भारत माता मांगिस ता उंइ हंसत निछावर देंह दइन॥
बोली हर हर महादेव  कै ,  बोल  उचें सरहद्‌दी मां।
औ बैरिन  का  मार भगाइन, खेलै खेल कबड्‌डी मां॥
धन्‍न!उंइ अमर जवानन का, जेहि कप्‍फन मिला तिरंगा का।
जब राख फूल पहुंची प्रयाग,  ता झूंम उचा मन गंगा का॥
ताल  भैरवी  देस  राग  तब ,  गूंजी  घाटी   घाटी।
धन्‍न! धन्‍न!!सौ  बेर धन्‍न, या विन्‍ध्‍य कै पावन मांटी॥
गरजै  लगे  सफेद  शेर , औ  बांधवगढ के हिरना।
फूली नही समातीं  वीहर,  औ क्‍वोटी  के झिरना ॥
बीर विन्‍ध्‍य कै सुनै कहानी , नानी मुन्‍ना मुन्‍नी।
गद्‌गद्‌ होइगें चित्रकूट, औ, धारकुड़ी पैसुन्‍नी॥
बीर सपूतन के उराव  मां,   डूबी गइया बछिया॥
बीर ‘पदमधर'के बलिदानव,का खुब सुमरिस बिछिया॥
अमरकंटक मां विहबल रेवा,सुनके अमर कहानी।
बिंध पूत सीमा मां जाके, बने अमर बलिदानी॥
कलकल करत चली पच्‍छिम का,दुश्‍मन कइदहाड़ीं॥
सीना तानै  नरो  पनपथा,  औ कइमोर पहाड़ी॥
तबहिन हिंदमहासागर मां,बड़बड़वानल धंधका।
दुश्‍मन के भें ढील सटन्‍ना,हिन्‍दू कुश तक दंदका॥
गोपद बनास टठिया साजै, औ सोन करै पूजापाती।
औ रेवा खुद धन्‍न होइ गयीं,कइके उनखर संझवाती॥
मइहर मांही बइठ शारदा,  उनखर  गांथा गउतीं।
आमैं बाली  पीढिन कांही, उइ इतिहास बतउतीं॥
जिनखे देसभक्‍ति का बाना, सब दिन रहा हैधरम करम।
बोली हर हर महादेव कै ,    बंदे मातरं  बंदेमातरं॥
हे!उनखे तरबा का धूधुर,हमरे लिलार का चंदन बन।
ओ!हेमराज दे खूंन तहूं तबहिन होइ उनखर बंदन॥
देसभक्‍ति जन सेवा बाली ही ज्‍याखर परिपाटी।
धन्‍न धन्‍न सौ बेर धन्‍न, य विन्‍ध्‍य कैपावन माटी॥
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मजूर  21


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हम मजूर बनिहार- बरेदी, आह्‌यन लेबर लगुआ।
करी मसक्‍कत तनमन से हम, गरमीं जाड़े कदुआ॥
मांघ पूस कै ठाही हो चह,  नौतपा कै दुपहरिया।
सामन भादौं के कांदौ मां, बे पनही बे छतरिया॥
मिलब कहूं हम पाथर फोरत, करत कहूं हरबाही।
खटत खेत खरिहान खदानै,  कबहूं ताके पाही॥
हम काहू का काम निकारी,औ काहू के बंधुआ।
हम मजूर......................................................
हमिन बनायन लालकिला ,खजुराहो ताजमहल।
हमिन बनायन दमदम पालम,सुधर जहाजमहल॥
हमिन बनायन धमनी चिमनी,लखनउॅ भूलभुलइया॥
हमहिन बाध्‍यन नदिया नरबा,तलबा अउर तलइया॥
हम सिसकत सीत ओसरिया माही धइ के सोइ तरूआ।
हम मजूर...........................................................
हम पसीना से देस का सींच्‍यन,हमरै किस्‍मत सूखी।
देस कोष मां भर्‌यन लक्ष्‍मी, घर कै लछमीं भूंखी॥
घूंट घूंट अपमान पिअत हम,गढी़ प्रगति कै सीढी।
मन तक गहन है बेउहर के हेन,ऋण मां चढ गयीं पीढी॥
फूंका परा है हमरे घर मां, तउ हम गायी फगुआ।
हम मजूर.............................................................
कहै का त गंगा जल अस है,पबरित हमार पसीना।
तउ करम नाशा अस तन है, पीरा  पाले   सीना॥
बड़े लगन  से देश  बनाई ,  मेहनत करी अकूत।
मेहनत आय गीता रामायन, हम हन तउ   अछूत॥
छुआ छूत का हइआ दाबे,  देस  समाज  टेटुआ।
हम मजूर.............................................................
‘‘कर्म प्रधान विश्‍व करि राखा''कहि गें तुलसीदास।
कर्म देव के हम बिसकर्मा,  देस मां  पाई  त्रास॥
शोषक चूसि  रहे  हें  हमहीं, अमरबेल की नाई।
अउर चूसि के करै फरांके,   गन्‍ना चीहुल घाई॥
दुधिआ दांतन मां बुढाय गा, हमरे गांॅव का गगुआ।
हम मजूर......................................................
बिन खाये के गंडाही का, है  छप्‍पन  जेउनार।
कनबहिरे भोपाल औ दिल्‍ली,को अब सुनै गोहार॥
जब जब मांग्‍यन बनी मजूरी,तब तब निथरा खूंन।
पूंजी पति के पांय तरी है,  देस का श्रम कानून॥
न्‍याय मांगे मां काल्‍ह मारेगें,दत्‍ता,नियोगी, रघुआ।
हम मजूर...............................................
भले ठ्‌यास ठ्‌यांठा कराह से,हांकी आपन अटाला।
पै हम करब न घात देस मां ,भ्रष्‍टाचार घोटाला॥
जे खूंन पसीना अंउट के मांड़ै,रोटी केर पिसान।
हमी गर्व है वा महतारी कै, आह्‌यन  संतान॥
हमरे कुल मां पइदा नहि होंय,डांकू गुंडा ठगुआ।
हम मजूर...........................................................

गरीबी औ नेता जी  22


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उंइ कहाथें देस से गरीबी हम भगाय देब,
गरीबी य देस कै  लोगाई आय नेता जी।
गरीबी भगाय के का खुदै तुम पेटागन मरिहा,
वा तोहइ पालैं निता बाप माई आय नेता जी॥
गरीबी के पेंड़ का मंहगाई से तुम सींचे रहा,
तोहरे  निता कल्‍प वृक्ष  नाई आय नेता जी।
भांषन के अबीर से अस्‍वासन के कबीर से,
तोहरे बोलिआंय का  भउजाई आय नेता जी॥

योजना के तलबा मां घूंस का उबटन लगाये,
भ्रष्‍टाचार  पानी  मां  नहाये  रहा  नेता जी।
चमचागीरी के टठिया मां बेइमानी का व्‍यंजन धरे,
मानवता का मूंरी  अस  खाये रहा नेता जी॥
गरीबन के खूंन कांही पानी अस बहाये रहा,
टेटुआ  लोक तंत्र  का  दबाये  नेता ली ।
कोजानी भभिस्‍स माही बोट पउत्‍या है धौं बूट,
लूट लूट  बखरी  बनाये  रहा  नेता जी॥
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भारत देश महान्‌   23


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भारत देस महान  भाई  जानै सकल जहान।
इतिहासन कै सोन चिरइया होइगै लहूलुहान॥
कृषि परधान देस मां भाई मनई मरै बिन दाना।
जनता काहीं मिलै न कुटकी,नेता खांय मखाना॥
भारत माता के  क्‍वारा मां  नदिया बहै हजार।
मरै पिआसन हेन कै जनता सुखि गै बपुरी तार॥
राजनीत हेन गाय रही ही मेंघ मल्‍हार कै तान ।
भारत देस...........................................................

हथकरघा का  वरगा देथी रेशम नगरी दिल्‍ली।
फटी फतोही तइन के फारै करै मजाक निठल्‍ली॥
गरीब गुजर करै कथरिन मां लगाये ठेगरी टांका।
कली दार कुरथा नेतन का पहिरे मलमल ढांका॥
भारत माता  के देहें  मा  धोतिया  वहै पुरान।
भारत देस..........................................................

कोठी  माही  रहै इंडिया  निगडउरे  मां भारत।
कउन कलम से लिखिहा भाई उन्‍नत केर इबारत॥
रपड़ा  तरसै  बूंद बूंद  जिलहन मां बरखै बदरी।
भारत देस हमारै आय रह्‌य का नहि आय बखरी॥
फाइल माही  बना  ठाढ  है हितग्राही का मकान।
भारत देस........................................................

अस्‍पताल का हाल क पूंछा वहै बेजार ही आज।
मुंह मांगी रकम डांक्‍टर ल्‍याहै होइ तबै इलाज॥
नही ता पुन वाखर मालिक है ईश्‍वर अल्‍ला ईसा।
वा गरीब कै अलहिन आ ही ज्‍याखर छूंछ है खीसा॥
चीर घर मां मांटी गंधाथी जमराज महकैं लै प्रान।
भारत देस.............
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विद्या  के  मंदिर  मां बरती हैं लछमीं कै बाती।
कइसा देस य साक्षर होइ  सरस्‍वतिव सकुचातीं॥
संस्‍कार  कै हाट  लगी ही  पै ही मंहग बजार।
यहौ सदी मां एकलव्‍य के पढै कै  नहि आय तार॥
ठाढे  म्‍वाल  चरित्र बिकाथै  शिक्षा केर दुकान।
भारत देश.........................................................
थानन माही  बोर्ड लगे हें  ‘‘देश भक्‍ति जन सेवा''।
होन अबला की बड़मंसी लुटतीं निरदोषन के क्‍यावा॥
झूंठ  मूंठ  का गढै  मुकदमा  करैं  बहस  कै चोट।
जे हत्‍या  कइ  दे सत्‍य कै  निकहा  करिया कोट॥
जांघन  जांघन   लोकल  गुंडा  बागैं  सीना तान।
भारत देस.............................
राम  अउर  रहिमान हें बंदी  धरम  चढा फाँसी मां।
कबौ  अजोध्‍या  मथुरा मां  कहूं खूंन बहै काशी मां॥
धरम के नाम मां चंदा लइके भइ लइन आपन खीसा।
बकुला  भगत  पिअरिया ओढे़ पढै़ हनुमान चलीसा॥
लूट  लइन देवी  देउतन का  उनहिन के जजमान।
भारत देश..........................................................
राष्‍ट्‌ भांषा हेन  बनी  तमासा  पाय  रही ही त्रास।
रामायन  की  होरी  बरतीं सिसकैं  तुलसी  दास॥
गांॅधी जी के लउलितियन कै देस मां चिंदी चिंदी होइगै।
बिना बिआही महतारी अस भांषा रानी हिन्‍दी होइगै॥
अजुअव  तक  ता बनैं न  बोलत बउरा हिन्‍दुस्‍तान।
भारत देस महान्‌............................................

शरद्‌ पू‍र्णिमा 24


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चितवाथी चरिउ कइ चरकी चमक चंद,
चपल चोचाल अस चोंख चोंख चांॅदनी।
काहू केर जिव करै पपीहा अस पिउ पिउ,
नेह स्‍वाति बूंद का लगाबै दोख चांॅदनी॥
सुकवा जो अस्‍त भा ता उआ है अगस्‍त जी मां,
प्रेम पंथ पानी काही सोख सोख चांॅदनी॥
चकई  के  ओरहन  राहू  केर  गिरहन,
रहि  रहि जाय  मन का मसोस चांॅदनी॥

पोखरी का पानी जब से थिराय दरपन भा,
तब से जोंधइया रूप राग का सराहा थी।
ठुमुक  ठुमुक  चलै लहर  जो  रसे रसे,
देख देख के तलइया भाग का सराहा थी॥
चांॅदनी से रीझ रीझ पत्‍ता पानी मां पसीझ,
पुरइन  पावन  अनुराग  का  सराहा थी।
जे निहारै एक टक सांझ से सकार तक,
जोंधइया चकोर के वा त्‍याग का सराहाथी॥

झेंगुर कै तान सुन नाचै लाग जुगनूं ता,
अस लाग जना दीप राग तान सेन का।
भितिया मां चढि के शिकार करै घिनघोरी,
जइसन ‘लदेन'  कांही मारा थै अमेरका॥
ओस  कै बूंद  जस  गिरत देखाय नही,
सनकी से  बात करैं जइसा पे्रमी प्रेमका॥
तन केर मन से जो ताल मेल टूटिगा है,
तब से चरित्र होइगा विश्‍वामित्र मेनका॥
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श्रंगार गीत 25


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जब से य मन मोहित होइगा,
तोहरे निरछल रूप मां।
एकव अंतर नही जनातै,
चलनी मां औ सूप मां॥
रात रात भर लिहन कराउंटा,
नीद न आई आंॅखिन का।
औ मन बाउर बइकल बागै,
ओ!गोरी तोरे उूब मां॥
सनकिन सनकी बातैं होइ गईं,
लखे न पाइस पलकौ तक।
मन निकार के उंइ धइ दीन्‍हन,
हमरे दोनिया दूब मां॥
ओंठ पिआसे से न कउनौं,
एक आंखर पनघट बोलिस।
पता नही धौं केतू वाठर,
निकराथें नलकूप मां॥
सातक्षात्‌ तुम पे्रम कै मुरत,
होइ के निठमोहिल न बना।
द्‌याखा केतू करूना होथी,
ईंटा के ‘स्‍तूप' मां॥
जब से फुरा जमोखी होइगै,
तन औ मन के ओरहन कै,
तब से फलाने महकै ंलागें,
जइसा मंदिर धूप मां॥
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गुरूबाबा 26


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गुरूबाबा हें दिया ग्‍यान कै,
औ विज्ञान त्रिवेनी आंय।
गोबिन्‍द तक पहुंचामै बाले,
गुरूअय सहज नसेनी॥
गुरू ज्ञान के परम खजाना,
औ गुरू करूणा के निधान हें।
ईं विद्या के बगिया मांही,
भारत देस के महाप्रान हें॥
ज्ञान देंय मां नही भेद,
को हिन्‍दू मुसलिम जैनी आय।
गुरूबाबा हें.............................
माता दीन्‍हिस सुंदर काया,
गुरू शिक्षा के संस्‍कार।
सभ्‍भ बनामै कांही गुरू जी,
कीन्‍हिन शब्‍दन से सिंगार॥
भारत माही गुरू कै पदवी,
गीता शबद रमैनी आय।
गुरूबाबा हें...................
गुरू शब्‍द कै शक्‍ति देथें,
गुरूअय भाग्‍य विधाता।
निरच्‍छर का ब्रम्‍हाक्षर से,
जोड़ जोड़ के नाता॥
गुरू अजोध्‍या के बशिष्‍ट,
औ संदीपनी उज्‍जैनी आंय॥
गोबिन्‍द तक पहुंचामै  बाले
गुरूअय सहज नसेनी आंय॥
.............................................

मोवाइल  27


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सरासरीहन लबरी हिबै मोबाइल मां।
सुंदर कानी कुबरी हिबै मोबाइल मां॥
अब ता दंडकबन से बातै होतीं है,
राम कहिन कि शबरी हिबै मोबाइल मां॥
केसे केखी प्‍यार की बातै होतीं हैं
दबी मुदी औ तबरी हिबै मोबाइल मां॥
कोउ हल्‍लो कहिस कि आंॅखी भींज गयीं,
काहू कै खुश खबरी हिबै मोबाइल मां॥
विश्‍वामित्र मिस काल देखि बिदुरांय लाग,
अहा! मेनका परी हिबै मोबाइल मां॥
नई सदी के हमूं पांच अपराधी हन,
जात गीध कै मरी हिबै मोबाइल मां॥
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दरबारन मां चर्चा ही  28


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दरबारन  मां  चर्चा  ही  कंपूटर  इंटरनेट कै।
खरिहाने मां मरैं किसनमां फन्‍दा गरे लपेट के॥
करब टंटपाली औ टोरइली कब का उंइ ता भूल चुकें।
बपुरे ध्रुब प्रहलाद हे दूरी पोथी अउर सलेंट के॥
केत्‍तौ निकहा बीज होय पै पनपै नही छह्‌याला मां।
उनही दइ द्‌या ठ्‌याव सुरिज का दउरैं न सरसेंट के॥
अइसा घिनही आंॅधी आयी बिथरिगा सब भाई चारा।
पुरखा जेही बड़े जतन से सउंपिन रहा सहेज के॥
मंदिर मसजिद से समाज के मिल्‍लस कै न आस करा।
धरम के ठेकेदारन का ईं आहीं साधन पेटके॥
प्रेमचंद के होरी का उंइ उंगरी धरे बताउथें।
द्‌याखा भइलो ताजमहल औ चित्र इंडिया गेट के॥
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उूपरबाला   29


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गिनै रोज हर सांस फलाने,बही मां लेय उतार।
बड़ा  हिसाबी है  य उूपर  बाला  साहूकार ॥
कुछ दिन आबा संचता बहुरा दइ उराव का घाव।
बपुरा दुखिया दुक्‍ख के नेरे बइठ करै उपचार॥
जेतू  सांसै  लइके  आयन  ओतुन  कमी परी।
अधिक ब्‍याज के लालच मां लइ आयन अउर उधार॥
चाहे जउन गइल से हींठा सब मरघट तक जातीं है।
धौं कउन गली मां हबै फलाने सरग नरक का दुआर॥
चंदा  के मंदिर  मां बइठे हें  आसरिक  पुजारी के।
दुनिया  ठाढ  ही जेखे  आंगू  दोउ  हांथ  पसार ॥
बड़ा  हिसाबी  है  य  उपर  बाला    साहूकार॥
चाहे जेखे भाग मां भइलो जउन जउन लिख देय।
धौं को दइस बिधाता  काहीं  य सगले अधिकार॥
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आजादी कै स्‍वर्ण जयंती  30


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आजादी कै स्‍वर्ण जयंती टी बी मां अकबारन मां।
आजादी कै स्‍वर्ण जयंती दुपहर के अंघिआरन मां॥
हमरे देस मां स्‍वर्ण जयंती सुरसा अस मंहगाई कै।
वन्‍हा अस जे दल का बदलै वा दलबदलू भाईकै॥
आजादी कै स्‍वर्ण जयंती भै दिल्‍ली भोपाल मां ।
आजौ हरिया है गुलाम हेन गांॅवन के चउपाल मां॥
आजादी कै स्‍वर्ण जयंती पूंजी बाद कछारन मां।

आजादी कै स्‍वर्ण जयंती भै अलगू के बखरी मां।
सरकारी योजना बंधी हैं जेखे खूंटा सकरी मां॥
चमचागीरी अभिनंदन के गाये ठुमरी ददरी मां।
झूर झार जे खासा गरजै उजर उजर वा बदरी मां॥
लमही बाली मउसी रोबै पंच के अत्‍याचारन मां।

स्‍वर्ण जयंती  बापू  के भुंइ  मां  भै नाथू राम कै।
स्‍वर्ण जयंती जयललिता के साथ साथ सुखराम कै॥
स्‍वर्ण जयंती वोट के खातिर तुस्‍टी करण मुकाम कै॥
स्‍वर्ण जयंती रथ  यात्रा औ  नारा  जै श्री राम कै॥
गांॅधी बाद समाज बाद   लग बाये लबरी नारन मां।

आजादी कै स्‍वर्ण जयंती हमरे देस के कांव मां।
केसर मां कस्‍तूरी मांही  कश्‍मीरी के घाव मां॥
महतारी जह अरथी ढोबै छाती पीटत गांव मां।
दिल्‍ली बइठ तमासा देखै श्री नगर बाव मां॥
स्‍वर्ण जयंती हिबै अमल्‍लक घाती के गद्‌दारन मां।

आजादी कै स्‍वर्ण जयंती कानूनी व्‍यापारिन कै।
चोर उचक्‍का डांकू  लुच्‍चा गुंडा अत्‍याचारिन कै॥
आजादी कै स्‍वर्ण जयंती करफू गोली गारिन कै।
जे बिश्‍वकर्मा का पिअंय पसीना खूनी पूंजीधारिन कै॥
जे मजूर के खून से पउधा पालै गमला जारन मां।

आजौ हमरे देस के सैनिक पाकिस्‍तानी जेल मां।
लगथै दिल्‍ली भूल गै उनही छुआछुअल्‍ला खेल मां॥
हमरे हांथे कुछू न आबा वा शिमला के मेल मां।
औ उंइ आपन सउंज उतारथें सरदार पटेल मां॥
हमी गर्व है महावीर अब्‍दुल हमीद बलिदानिन मां।

जिधना हम गद्‌दारन कांही धरती मां गड़बा द्‌याबै।
जिधना मानसरोबर माही हम तिरंगा फहरा द्‌याबै॥
बोली हर हर महादेव कै बोलब रावल पिण्‍डी तक।
उधनै होई स्‍वर्ण जयंती  संसद से पगडंडी तक॥
विजयी विश्‍व तिरंगा प्‍यारा नीक लगी तब नारान मां।
आजादी कै स्‍वर्ण जयंती टीबी मां अखवारन मां॥
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भारत के रणचंण्‍डी का  31


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डट के खूंन पिआया बीरव भारत के रनचंडी का।
लाहौर पेशावर मां गाड़्‌या अब जाय तिरंगी झंडी का॥
कहि दिहा हिमालय से संदेश कि वा है अबै अनाथ नही।
सागर का बड़वानल उत्‍कल द्रविण विन्‍ध्‍य है साथ महीं॥
बीर शिवा जी केर  जोश  औ  टेई  धरी  भवानी ही।
दुश्‍मन का खून पिअय खातिर हेन तड़पत खड़ी जबानी ही॥
छिन मां तहस नहस कइ द्‌याहै आतंकबादी मंडी का।
डट के खूंन ............................................................
पुनि के खउलै लाग खून अब राजस्‍थनी माटी का।
जाट गोरखा तामिल तेलगू बलिदानी परिपाटी का॥
प्‍लासी बक्‍सर असम कोहिमा संन्‍नासी कालिंग का।
देसभक्‍त पंजाब का पानी औ गढवाली सिंह का॥
सगला देस साथ मां तोहरे राजमार्ग पगडंडी का।
डट का खून......................................................
रूण्‍ड मुंण्‍ड कै माला पहिरे काली रन मां निकर परी।
औ महाकाल कै तीसर आंखी प्रलय भयंकर उघर परी॥
अब की दारी द्‌याव ठीक से द्‌याब पाक अउठेरी का।
आर  पार तक रार ठनी अब बजैं द्‌या रनभेरी का॥
ओ बीर जबानव सबक सिखाबा कालनेमि पाखण्‍डी।
वा भूल चुका इंदिरा जी का दुर्गा कै पदवी पाइन तै।
नब्‍बे हजार पकिस्‍तानिन से कनबुड्‌डी तनबाइन तै॥
भूंगोल बदल गै दुनिया कै तब मुंह से कढी अबाज नही।
पुनि भडुअन कै फउज जुरी नकटन का आबै लाज नही॥
हम राणा प्रथ्‍वी के बंसज वा गोरी कू्रर शिखंडी का।
डट के खूंन पिआया बीरव    भारत के रनचंडी का॥
..........................................................................

भइलो चलें करामय जांच 32


....................................
जब उंइ खाइन मिला न आरव।
हमरे  दारी  झारव  झारव  ॥
कूटत रहें रोज उंइ लाटा।
हमरे दारी लागैं टांडा॥
पांच साल खुब किहिन तरक्‍की।
बोर ठ्‌यसर औ लगिगै चक्‍की॥
दिहिन न हमही ध्‍याला झंझी।
अब हिसाब कै मांगै पंजी॥
अब य ओसरी आय हमार।
अब तुम सेंतै करत्‍या झार॥
भयन संच मां जब हम पांच।
भइलो चलें करामय जांच॥
जादा तुम न करा कनून।
चुहकैं द्‌या जनता का खूंन॥
मुलुर मुलुर द्‌याखा चउआन।
हम कूदी तुम ल्‍या बइठान॥
होइगे भइलो छांछठ साल।
हमूं बनाउब ढर्रा ताल॥
जब आंगना मां होइगै नाच।
त भइलो चलें करमय जांच॥

--

हेमराज त्रिपाठी

भेड़ा मैहर (मप्र)

COMMENTS

BLOGGER: 5
  1. बेनामी2:11 pm

    maja aay ga hemraji

    जवाब देंहटाएं
  2. काफी दिनों से खोज रहा था अपनी बघेली कविताओ और लोक गीतों के संग्रह को
    इसकी सभी कविताये तो नि पढ़ी पर जो भी पढ़ी है बहुत सुन्दर और है |
    इसे पढने के बाद बड़ा ही आनंद आया |
    इसमें एक प्रश्न किया गया है की लोग फेसबुक में इसे पसंद क्यों नही करते --
    इसका प्रमुख कारण ये भी हो सकता है की अपने बघेली जानने वाले इस साईट तक पहुच नही पाए है या की लोग बगेहली से दुरी बना रहे है |
    लेकिन अपनी बघेली तो अपने में खुद ही लाजवाब है इसे तो बोलेन का अलग ही मजा है
    जो मित्र इस साईट के माध्यम से बघेली को अपने दोस्तों तक पहुचना चाहते है वो जरुर थोडा सा प्रयाश करे ...

    इस साईट को बनाने वाले को साभार और बहुत -बहुत धन्यबाद ...जिससे अभी कई और लोग इससे जुड़ेंगे |

    जवाब देंहटाएं
  3. H C Shukla Rewa/Satna2:15 pm

    bahut achha prayas hai. Aur likhte rahe bgheli taki ginda rahe. Dhanyawad

    जवाब देंहटाएं
  4. धीरेन्द्र सिंह बंशीपुर मैहर11:40 pm

    बहुत बढ़िया लेख
    धीरेन्द्र सिंह बंशीपुर मैहर

    जवाब देंहटाएं
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नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद 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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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रचनाकार: हेमराज त्रिपाठी की बघेली कविताएं
हेमराज त्रिपाठी की बघेली कविताएं
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