गोवर्धन यादव की लघुकथाएँ

SHARE:

साक्षात्कार. अपनी असफ़लता का स्वाद चख चुके बाकी के प्रतियोगियों ने उसे घेर लिया. ।   वे सभी इस सफ़लता का राज जानना चाहते थे. आत्मविशवास से भ...

साक्षात्कार.

अपनी असफ़लता का स्वाद चख चुके बाकी के प्रतियोगियों ने उसे घेर लिया.   वे सभी इस सफ़लता का राज जानना चाहते थे. आत्मविशवास से भरी उस युवती ने कहा=" मित्रों...मैंने अपनी छोटी सी जिन्दगी में कई कडे इम्तहान दिए है. मैं बहुत छोटी थी,तब मेरे पिता का साया मेरे सिर पर से उठ गया. माँ ने मेरी पढाई-लिखाई का जिम्मा उठाया. उसने कड़ी मेहनत की. घरॊं-घर जाकर लोगों के जूठे बर्तन साफ़ किए. घरों में पॊंछा लगाया. रात जाग-जाग-जाग कर कपड़ों की सिलाई की .इस तरह मेरी आगे की पढाई चल निकली.लेकिन बूढी हड्डियाँ कब तक साथ देतीं. एक दिन वह भी साथ छोड़ गयी. पढने की ललक और कुछ बन दिखाने की जिद के चलते, मुझे भी घरों में जाकर काम करना पडा. इन कठिन परिस्थियों में भी मेरा आत्मविश्वास नहीं डगमगाया. जिस साक्षात्कात की बात आप लोग कर रहे हैं, वह तो एक मामूली सा साक्षात्कार था. बोलते हुए उस युवती के चेहरे पर छाया तेज देखने लायक था.

प्रतियोगिता.

चित्रकला प्रतियोगिता चल रही थी .कई चित्रों में से दस चित्रों को अलग छांटकर रख दिया गया था. इन्हीं दस में से किसी एक चित्र को पुरस्कृत दिया जाना था. इन दस चित्रों में एक चित्र ऎसा था जो सभी का ध्यान आकर्षित कर रह था. उसकी सबसे ज्यादा संभावना थी कि वही प्रथम घो‍षित किया जाएगा.

जब परिणाम घो‍‍षित हुआ तो उस प्रतियोगी का नाम लिस्ट से ही गायब था.

मरते-मरते लखपति बना गयी.

एक कांस्टेबल को किसी जुर्म में सस्पेन्ड कर दिया गया. वह दिन भर जुआं खेलता और शाम को टुन्न होकर घर लौटता. घर पहुँचते ही मियां-बीबी में तकरार होती .वह घर खर्च के लिए पैसे मांगती तो टका सा जबाब दे देता कि जेब में फ़ूटी कौडी भी नहीं है. बच्चॊं को कई बार भूखे पेट भी सोना पडता था. उसकी बीबी थी हिम्मत वाली. उसने सब्जी-भाजी की दुकान, एक पडौसन से कुछ रकम उधार लेकर शुरु की. उसका व्यवहार सभी के साथ अच्छा था. देखते-देखते उसकी दूकान चल निकली. अब वह दो जून कि रोटी कमाने लायक हो गई थी. लेकिन उसके पति मे कोई सुधार के लक्षण दिखाई नहीं दे रहे थे

उसने कुछ अतिरिक्त पैसे भी जोड लिए थे. तभी उसकी बड़ी बेटी के लिए एक रिश्ता आया और उसने धूमधाम से बेटी की शादी भी कर दी. कुछ दिन बाद वह कांस्टेबल भी बहाल हो गया. नौकरी पर बहाल हो चुकने के बाद भी उसने अपनी दूकान बंद नहीं की.

कुछ दिन बाद उसकी बेटी के घर कोई पारिवारिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. उसकॊ वहाँ जाना था. अपने पति और बच्चॊं के साथ वह रेल्वे स्टेशन पहुँची. ट्रेन के आने में विलम्ब था. ट्रेन के आगमन के साथ ही एक दूसरी ट्रेन भी आ पहुंची. दोनों ट्रेनों का वहाँ क्रासिंग़ था.जल्दबाजी में पूरा परिवार दूसरी ट्रेन में सवार हो गया,लेकिन शीघ्र ही उन्हें पता चल गया कि वे गलत दिशा की ट्रेन में सवार हो गए है. पता लगने के ठीक बाद ट्रेन चल निकली थी. ट्रेन की स्पीड अभी धीमी ही थी ,इस बीच उसके परिवार के सारे सदस्य तो उतर गए लेकिन उतरने की हड़बडी में उसका पैर उलझ गया और वह गिर पड़ी. दुर्योग से उसकी साड़ी उलझ गयी थी और वह ट्रेन के साथ काफ़ी दूर तक घिसटती चली गई.

पति चिल्लाता -भागता दूर तक ट्रेन का पीछा करता रहा. पब्लिक का शोर सुनकर ट्रेन के परिचालक ने ट्रेन रोक तो दी लेकिन तब तक तो उसके प्राण पखेरु उड़ चुके थे..पुलिस केस दर्ज हुआ. सारी औपचारिकता पूरी करने के बाद उसका शव परिजनॊं को सौप दिया गया. वे एक खुशी के कार्यक्रम मे शामिल होने जा रहे थे,लेकिन नहीं जानते थे कि दुर्भाग्य उनका पीछा कर रहा था लगातार.

उसके मृत्यु को अभी सात-आठ माह ही बीते होंगे कि इसी बीच रेल्वे से क्लेम की राशि स्वीकृत होकर आ गई. जेब में रकम आते ही उसने दूसरी शादी कर ली और एक नय़ी इन्डिका खरीद लाया. अब वह अपनी नई बीबी के साथ कार मे सवार होकर फ़र्राटे भरने लगा था. पास-पडॊसी कहते" बीबी मर तो गई लेकिन उसे लखपति बना गई.".

बाप की कमाई.

मेरे एक मित्र है करोडीमल. जैसा नाम उसी के अनुरुप करोडॊंपति भी. उन्होंने अपनी तरफ़ से कोई बडा खर्च कभी किया हो,ऎसा देखने में नहीं आया. कपडॆ भी एकदम सीधे-सादे पहनता. कोई तडक-फ़डक नही. उनसे उलट है उनका अपना बेटा .दिल खोलकर खर्च करता. मंहगे से मंहगे कपडॆ पहनता .कार में घूमता. देश-विदेश की यात्रा में निकल जाता. जब कोई करोडी से पूछता कि वह क्यों नहीं शान से रहता? कभी दिल खोलकर खर्च नहीं करता?. बाहर घूमने-फ़िरने नहीं जाता तो हल्की सी मुस्कुराहट के साथ जवाब देता:-"भाई...उसका बाप करोड़पति है.इसीलिए वह दिल खोलकर खर्च करता है. महंगी से महंगी गाडियों में घूमता है.वह जो लुटा रहा है,उसके बाप की कमाई है. मैं ठहरा एक गरीब बाप का बेटा.अतः चाहकर भी मैं कोई खर्च नहीं कर पाता.यदि थोड़ा सा ज्यादा खर्च हो जाता है तो मुझे दुःख होता है.

समझौता एक्सप्रेस.

सत्ता का स्वाद चख चुके नेताओं को पक्का यकीन हो चुका था कि वे इस बार शायद ही चुनकर आएं ,सो उन्होंने एक नया रास्ता खोज निकला .समान विचारधारा वाली पार्टियों को साथ मिलाकर एक नया दल बनाया और उसे एक नाम दिया गया, और सभी ने मिलकर साथ चुनाव लड़ने का ऎलान कर दिया. वे जानते थे कि लोकसभा की सीढियाँ चढने के लिए दो तिहाई बहुमत का होना जरुरी है.उन्होंने यह भी तयकर रखा था कि जिस दल में सदस्यों की संख्या ज्यादा है, उसी में से कोई एक प्रधानमंत्री बनेगा.

चुनाव हुये और गठजोड़ करने वाली पार्टी, चुनाव एक्सप्रेस में सवार होकर चुनाव जीत गई. जिस दल में संख्या बल ज्यादा था उसका व्यक्ति प्रधान मंत्री की कुर्सी पर आसीन हो गया और शे‍ष सदस्यॊं ने अपने-अपने दल-बल के आधार पर मंत्री पद हथिया लिए.थे.

वापसी का टिकिट

बरसों-बरस बाद मेरा दिल्ली जाना हो रहा है. मैं अपनी मर्जी से वहाँ नहीं जा रहा हूँ, बल्कि पिताजी के बार-बार टेंचने के बाद मैं किसी तरह वहाँ जाने के लिए राजी हो पाया हूँ.

दरअसल मेरा दम घुटता है दिल्ली में. चारों तरफ़ शोर मचाते भागते वाहन,वाहन में लटकते हुए यात्रा करते नौजवान, कार्बनमोनोआक्साइड-कार्बन्डाइआक्साइड जैसे जहरीली गैस फ़ैलाते आटॊ-रिक्शे,चारों तरह भीड़ ही भीड़ देखकर मुझे उबकाई सी होने लगती है , फ़िर घर का माहौल तो उससे भी ज्यादा दमघोंटू है.

इसी दमघोंटू वातावरण में मेरे भैया एक सरकारी महकमें में मलाईदार पोस्ट पर कार्यरत हैं. बार-बार पत्र लिखने और टेलीफ़ोन पर बातें करने के बाद भी जब कोई सकारात्मक जवाब उन्होंने नहीं दिया तो पिताजी ने फ़रमान जारी कर दिया कि मैं वहाँ जाकर आमने-सामने बात करुं .उन्हें अपनी घरेलू समस्या से अवगत करवाऊं और कोई हल निकाल लाऊं..

मैंने पिताजी से कहा कि मैं उनसे उम्र में छोटा पडता हूँ, उन्हीं के दिए पैसों से अपनी पढाई जारी रख पाया हूँ. मैं भला उनके सामने समस्याओं को लेकर मुँह कैसे खोल सकता हूँ. मैंने उनसे विनम्रतापूर्वक कहा कि यदि आप स्वयं चले जाएं तो चुटकी बजाते ही सारे समस्याओं को हल किया जा सकता है. लेकिन वे जाने के लिए राजी नहीं हुये.

अन्तोगत्वा मुझे ही जाना पडा. स्टेशन से बाहर निकलते ही मैंने एक अच्छी सी दूकान से बच्चॊं के लिए मिठाइयां और एक खारे का पैकेट खरीद लिया था.

. दरवाजे पर मुझे देखते ही सभी ने घेर लिया था. मैंने अपने झोले में पडॆ पैकेट निकालकर उन्हें दिया और वे हो-हल्ला मचाते हुए अन्दर की ओर भागे और अपनी माँ को सूचित करने लगे कि चाचाजी आए हैं. सोफ़े पर बैठते ही मेरी नजरें कमरे का मुआयना करने लगी थी. भैया के ठाठबाट देखकर मैं दंग रह गया था. काफ़ी देर तक यूंही बैठे रहने के बावजूद भाभीजी अपने कमरे से बाहर नहीं आ पायी थी. मुझे कोफ़्त सी होने लगी थी.और मेरा धैर्य चुकने लगा था. मैं अपनी सीट से उठ ही पाया था कि वे नमुदार हुईं .मैंने आगे बढकर उनके च्ररण स्पर्ष किए.और उन्होंने सोफ़े में धंसते हुए सभी के हालचाल जानने चाहे. सभी के कुशल क्षेम का समाचार मैंने कह सुनाया.अभी मेरा वाक्य पूरा भी नहीं हो पाया था कि उन्होंने पत्थर सा भारी एक प्रश्न मेरी ओर उछाल दिया" ये तो सब ठीक है लाला,,लेकिन तुम्हारा इस तरह, अचानक चले आना, समझ में नहीं आया वैसे. मैं तुम्हारे आने का मकसद अच्छी तरह जानती हूँ. तुम निश्चित ही अपने भाई से पैसे ऎंठने के लिए आए होगे.तुम यदि इसी मकसद से आए तो तुम्हें शर्म आनी चाहिए.क्या हम लोगों ने तुम लोगों का ठेका ले रखा है. तुम पढ-लिख गए हो, कोई जाब-वाब क्यों नहीं कर लेते?.

भाभी की बातें सुनकर तन-बदन में आग सी लग गई थी. जवाब में मैं काफ़ी कुछ कह सकता था,लेकिन कुछ भी न कह पाना मेरी अपनी मजबूरी थी. मैं जानता था कि बात अनावश्यक रुप से तूल पकड लेगी. इससे बेहतर था कि मैं चुप रहूं. उन्हें टालने की गरज से मैंने कहा कि काफ़ी दिनों से मैं आप लोगों के दर्शन नहीं कर पाया था, सो दर्शन करने चला आया था. उसी क्रम को जारी रखते हुए मैंने भैया के बारे में जानना चाहा कि वे दिखलाई नहीं दे रहे हैं..तो पता चला कि वे किसी आवश्यक काम से बाहर गए है और बस थोडी ही देर में वापस आ जाएंगें.

काफ़ी इन्तजार के बाद भैयाजी से मिलना हुआ. मुझे देखते ही उन्होंने भी वह प्रश्न दागा जिसकी मुझे उम्मीद नहीं थी" रवि...अचानक कैसे आना हुआ? घर में सब ठीक-ठाक तो है न ?

मैंने उनसे कहा "भैया..सब ठीक ही होता तो मैं यहाँ आता ही क्यों .मुझे आपसे बहुत सारी बातें करनी है.

" ठीक है, तो हम लोग ऐसा करते हैं कि किसी होटल में चलकर भॊजन करते हैं और

बैठकर बातें भी कर लेंगे. मैं समझ गया कि भैया भाभी की उपस्थिति में कोई भी बात करना नहीं चाहेगें.,

स्टेशन के पास ही एक होटल थी. उन्होंने एक थाली का आर्डर दिया और मुझसे मुखातिब होकर मेरे आने का कारण जानना चाहा. मैंने विस्तार से घर के हालात कह सुनाया और कहा कि जो रकम आप भेज रहे हैं,उसमें घर का गुजारा चल नहीं पा रहा है. मेरी बात सुनकर वे देर तक खामोश बैठे रहे फ़िर उन्होंने कहा:"-रवि..इस समय कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है.जबसे अन्नाजी ने जंतर-मंतर पर बैठकर अनशन शुरु किया था,उसके बाद से किसी में इतनी हिम्मत नहीं बची है कि वह किसी से दो पैसे भी ले सके. अब तुमसे क्या छिपाना,मेरे अपने घर का हाल भी बुरा है. बिना मेहनत किए अलग से जो रकम मिला करती थी उसने सभी की आदतें बिगाड़ दी है.पत्नी भी अनाप-शनाप खर्च करने की आदि हो गयी है. शायद ही कोई ऎसा दिन नहीं जाता कि उसने अपनी ओर से किटी पार्टी में जाने से इन्कार किया हो. उसे अपने स्टेटस सिंबल की चिन्ता ज्यादा रहती है. रही बच्चॊं की बात तो वे भी अपनी माँ पर गए है. रोज एक नयी फ़रमाइश उनकी ओर से बनी ही रहती है. कमाई दो पैसे की नहीं है और खर्चा हजारों का है. अब तुम्हीं बताओ रवि कि मैं ज्यादा पैसे कैसे भेज सकता हूँ.? भवि‍ष्य में अब शायद ही भेज पाऊँगा. यही कारण था कि मैं पिताजी को फ़ोन पर यह सब बता नहीं पा रहा था.और बतलाता भी तो किस मुँह से.? ये तो अच्छा हुआ कि तुम चले आए.और तुमसे मैं अपनी मन की बात कह पाया. शायद पिताजी से कहता तो वे शायद ही इसे बर्दाश्त कर पाते.

भोजन बडा ही सुस्वादु बना था लेकिन भैया की बातें सुनकर स्वाद अब कडवा सा लगने लगा था ,जैसे-तैसे मैंने खाना खाया और भैया से कहा " अच्छा मैया, अब मैं चलता हूँ..

उन्होनें जेब में हाथ डाला और पर्स में से एक सौ का नोट पकडाते हुए मुझसे कहा कि

अपने लिए टिकिट कटवाले. मैंने बडी ही विनम्रता से कहा:- भाईसाहब मैंने वापसी की टिकिट पहले से ही बुक करवा लिया था..वे कुछ और कह पाते, ट्रेन अपनी जगह से चल निकली थी.मैंने दौड लगा दी और फ़ुर्ती से कम्पार्ट्मेन्ट में जा चढा था.ट्रेन ने अब स्पीड पकड ली थी.

पूरे परिवार को इस बात का इन्तजार था कि भैया कब आते हैं. वे गर्मी में पडने वाली छुट्टियों में परिवार सहित आते रहे हैं. वे जब-जब भी आए हैं,सभी के लिए कोई न कोई सौगात साथ लेकर जरुर आते हैं. इन बार न जाने क्यो उन्हें आने में देरी हो गई थी.

काफ़ी इन्तजारी के बाद उनका आगमन हुआ. आश्चर्य इस बात पर सभी को हुआ कि इस बार वे अकेले ही आए थे. उनके हाथ में एक बड़ा सा सूटकेस था. अब पूरे परिवार की नजर उस सूटकेस पर थी कि वह कब खुलता है.

बारिश.

बाहर मूसलाधार बारिश हो रही थी.

बारिश से बचने के लिए एक लड़के ने दरवाजा खटखटाया

मकान मालिक ने दरवाजे पर जड़े शीशे में से झांक कर देखा और उसे वहाँ से भाग जाने का इशारा किया.

. थोडी देर बाद बारिश में भींगती एक नवयुवती ने दरवाजा खटखटाया. मकान मालिक ने झांककर देखा. फ़ौरन दरवाजा खोला और युवती को खींचकर अन्दर किया और झट से दरवाजा लगा लिया.

खजाना

" तुम पर मैं कई दिनों से नजर रख रहा हूँ. बड़ी सुबह ही तुम समुद्र- तट पर आ जाते और देर शाम को घर लौटते हो ?

" मुझे अच्छा लगता है, यहां आकर."

" कभी समुद्र की गहराई में उतरे भी हो कि नहीं?"

" नहीं ..एक बार भी नहीं ?"

"फ़िर समझ लो तुम्हारी पूरी जिन्दगी बेकार में गई. यदि तुम एक बार भी समुद्र में उतरते तो तुम्हारे हाथ नायाब खजाना लग सकता था. क्या तुम्हारा ध्यान इस ओर कभी नहीं गया .?"आखिर तुम करते क्या हो इतनी सुबह-सुबह आकर?"

" बडी सुबह मैं इसी इरादे आता हूँ, लेकिन आसपास पडा कूडा-कचरा देख कर सोचने लगता हूँ कि पहले इसे साफ़ कर दूं ,फ़िर इतमीनान पानी में उतरूंगा. बस इसी में शाम हो जाती है."

" आखिर यह सब करने से तुम्हें मिलता क्या है?.

" कुछ नहीं, बस मन की शांति. मन की शान्ति मिलती है मुझे.".

" बकवास...बकवास.मैं खजाने की बात कर रहा हूँ और तुम..शांति की"

" क्या शांति से बढ़कर और कोई खजाना भी हो सकता है ?"उसने पलटकर जवाब दिया था.

न्याय.

"द्रौपदी इस साम्राज्य की महारानी है और एक महारानी को यह अधिकार नहीं है कि वह अपनी ही प्रजा की झोपडियों में आग लगाए. उन्होंने एक अक्ष्म्य अपराध किया है. उन्हें इसके लिए कडी से कडी सजा दी जानी चाहिए. मैं महाराज युधि‍ष्टर, कानुन को धर्मसम्मत मानते हुए उन्हें एक साल की सजा दिए जाने की घो‍षणा करता हूँ."

महाराज का फ़ैसला सुनते ही राजदरबार में सन्नाटा सा छा गया था.चारों तरफ़ इस फ़ैसले पर कानाफ़ूसी होने लगी थी,लेकिन उनके खिलाफ़ बोलने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पा रहा था.

फ़ैसला सुन चुकने के बाद भीम से रहा नहीं गया.अपनी जगह से उठकर उन्होंने आपत्ति दर्ज की"-महाराज फ़ैसला देने के पूर्व आपको यह तो सोचना चाहिए था कि वे एक महारानी होने के साथ-साथ, आपकी- हमारी धर्मपत्नि भी है. यदि उन्होंने ऎसा किया है तो जरुर उसके पीछे कोई बड़ा कारण रहा होगा.उन्होंने जानबूझ कर तो ये सब नहीं किया होगा. अगर झोपडियां जल भी गयी है तो इससे क्या फ़र्क पडता है.हम उन्हें नयी झोपड़ियां बनाने के लिए बांस-बल्लियां मुहैया कर सकते हैं. वे दूसरी झोपड़ी बना लेगें."

" भीम...ये तुम कह रहे हो. एक जवाबदार आदमी इस तरह की बात कैसे कर सकता है .मैंने उन्हें सजा देने का आदेश जारी कर दिया है. अब उन्हें एक साल तक कारावास में रहना होगा. इस फ़ैसले में अब कोई सुधार की गुंजाइश नहीं है."

" महाराज...यदि महारानी ने अपराध किया ही है तो उसकी सजा आप हम भाइयों को कैसे दे सकते हैं ?."

" भीम ...आखिर तुम कहना क्या चाहते हो ?".

" महाराज..एक वर्ष में तीन सौ पैंसठ दिन होते हैं. यदि इसमें पांच का भाग दिया जाये तो तिहत्तर दिन आते है. जैसा कि माँ का आदेश है कि उस पर सभी भाइयों का समान अधिकार रहेगा .मतलब साफ़ है कि वे बारी-बारी से तिहत्तर दिन हम प्रत्येक के बीच गुजारेगीं. एक वर्ष की सजा का मतलब है कि हमारे तिहत्तर दिन भी उसमें शामिल होंगे और हमें यह मंजूर नहीं कि हम उस अवधि की सजा अकारण ही पाएं. यह कैसा न्याय है आपका ?".

भीम की बातों में दम था और वे जो कुछ भी कह रहे थे उसे झुठलाया नहीं जा सकता था. अब सोचने की बारी महाराज युधि‍ष्ठिर की थी. काफ़ी गंभीरता से सोचते हुए उन्होंने इस समस्या का हल खोज निकाला था. उन्होंने कहा:-" चूंकि महारानी ने एक अक्ष्म्य अपराध किया है,और उन्हें इसकी सजा अवश्य ही मिलेगी. उन्हें एक साल का सश्रम कारावास दिया जाता है. सजा की अवधि उनके अपने स्वयं की अवधि-

नौकर

“दादाजी....आप छॊटॆ-बडॆ हर काम श्याम से ही क्यॊं करवाते हैं?.कभी मुझे भी कोई काम करने का मौका तो दिया करें.” “ सुनो राजु...मैंने तुम्हें कितनी बार बतलाया है कि वह हमारा नौकर है. क्या इतनी सी बात तुम्हारे भेजे में नहीं उतरती.अरे हम ठहरे खानादानी रईस..हमारे हर काम को बजा लाना हमारे नौकरों का फ़र्ज बनता है. फ़िर हम उन्हें इस बात की तन्खाह भी तो देते हैं.” “ दादाजी..ठीक है,वह हमारा नौकर है. पर अभी उसकी उम्र ही कितनी है.? दादाजी कुछ बोल पाते इसके पूर्व श्याम ने कहा:- भाईजी, इतनी छोटी सी बात के लिए दादाजी से शिकायत नहीं करते. वे जो भी आदेश देते हैं, मुझे उसे पूरा करने में गर्व ही महसूस होता है. फ़िर हम ठहरे नौकर...नौकर का काम ही है कि वह अपने मालिक की मर्जी के अनुसार काम करे. काम के बदले वे मुझे रुपये भी तो देते है. यदि मैं कोई काम नहीं करुंगा,तो घर का खर्च चलाना मुश्किल हो जाएगा. श्याम दिन भर वहां रहकर कड़ी मेहनत करता और घर आकर अपनी किताबों की दुनियां में खो जाता.प्रायवेट परीक्षा देकर उसने मेट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास किया. उसके बाद उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा और एम.काम.की परीक्षा उत्तीर्ण कर उसने यू.पी.पी.एस.सी की परीक्षा प्राप्त कर एक काबिल अफ़सर बन गया था. आज वह अपनी मेहनत और लगन के बल पर अच्छा सुखी जीवन जी रहा है.

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: गोवर्धन यादव की लघुकथाएँ
गोवर्धन यादव की लघुकथाएँ
http://lh6.ggpht.com/-hgOh6Yh1NXc/T-l7rRwrIeI/AAAAAAAAMrU/wM9HztlRh7U/clip_image002%25255B3%25255D.png?imgmax=800
http://lh6.ggpht.com/-hgOh6Yh1NXc/T-l7rRwrIeI/AAAAAAAAMrU/wM9HztlRh7U/s72-c/clip_image002%25255B3%25255D.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2012/11/blog-post_29.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2012/11/blog-post_29.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content