बड़ा हूं ना ! पति पत्नी किसी पर्यटक स्थल की सैर को रवाना हुए थे। अभी उन्हें घर से निकले दो घंटे ही हुए होंगे कि बड़े भाई ने फोन कर हा...
बड़ा हूं ना !
पति पत्नी किसी पर्यटक स्थल की सैर को रवाना हुए थे। अभी उन्हें घर से निकले दो घंटे ही हुए होंगे कि बड़े भाई ने फोन कर हाल-चाल पूछा। साथ में यह भी कहा कि फोन करते रहना।
‘‘ठीक है भाई। '' इतना कह छोटे ने फोन काट दिया।
सफर में वह पत्नी से बातें करने में इतना मशगूल हुआ कि फोन करना ही भूल गया।
बड़े भाई का ही फोन आया. कहां तक पहुंच गए...कोई परेशानी तो नहीं? अपना ख्याल रखना...''
‘‘ठीक है भाई...हम अपना ख्याल रखेंगे।' 'छोटे ने जवाब दिया।
उसके फोन बंद करते ही उसकी पत्नी ने कहा, बड़े भाई साहब तो आपको बच्चा समझते हैं........बार बार नसीहत देते हैं....सफर का सारा मजा किरकिरा कर दिया...लाओ, मुझे फोन दो। मैं स्विच ऑफ करती हूं । और उसने वैसा ही किया।
घर पर बड़ा भाई बार-बार फोन मिला रहा था। पर, फोन न मिल पाने के कारण बेचैन हुए जा रहा था। उसकी बेचैनी देख पत्नी ने कहा,‘‘ क्यों पागल हुए जा रहे हो...चिंता छोडो और आराम से सो जाओ।
कैसे सो जाउॅ। पता नहीं वे किस परिस्थिति में होंगे! फोन मिल ही नहीं रहा। भाई ने बार-बार फोन मिलाते हुए कहा।
‘‘.... सो जाओ ना...और भी है,इस घर में।'' पत्नी ने खीझ भरे शब्दों में कहा।
‘‘मैं बड़ा हूं ना...''बड़े भाई ने एक ठंडी आह भरते हुए कहा।
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टिड्डी
‘‘सर! वे किसान आमरण अनशन पर बैठे हैं, कह रहे हैं कि सरकार टिड्डी की रोकथाम के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रही।'' पी.ए ने मंत्री को बताया।
‘‘अरे! वे सब तो बाद में होता रहेगा। पहले यह बता कि वो ठेकेदार आया था कि नहीं...साले को इतना बड़ा ठेका दिलवाया......अब मनमर्जी के भाव बचेगा खाद-बीज''
‘‘हॉ साहब! वह आया था और हमारा हिस्सा दे गया हैं।''
‘‘हॉ...तो क्या कह रहे थे ...किसान?''
‘‘सर,वे किसान टिड्डी से परेशान...।''
‘‘अच्छा यह बता कि तुमने अपने पार्टी कार्यकताओं से वहॉ पहुंचने के लिए कह दिया है ना।''
‘‘हॉ साहब, सभी कार्यकर्ता दलबल के साथ वहॉ पहुंच जायेंगे।
यह सुन मंत्री जी का चेहरा फूल-सा खिल गया। और फिर पूछने लगा। ये टिड्डी क्या होती हैं?''
‘‘साहब, टिड्डी एक प्रकार का उड़ने वाला कीड़ा होता है जो दल बांधकर चलता है...पत्ती खाता है और कृषि को नुकसान पहुंचाता है, उस कृषि को जो हम सब के जीने का आधार है।'' पी.ए ने मंत्री को विस्तार से बताया।
मंत्री जी ने कुछ देर सोचने के बाद पी.ए की ओर घूरते हुए पूछा,‘‘ कहीं तू हमारा मजाक तो नहीं उड़ा रहा।''
‘‘अरे सर, भला आपका का भी कोई मजाक उड़ा सकता है।
मंत्री जी फिर काफी देर तक चिंता में पड़े रहे।
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दाग
दिलावर सिंह आज सुबह का अखबार पढ रहा था। उसकी नजर एक खबर पर अटक कर रह गई।
एक मोटरसाइकिल पर सवार तीन लड़कों में से एक ने कॉलेज के सामने से गुजर रही एक लड़की के चेहरे पर तेजाब फेंक दिया। लड़की को गम्भीर हालत में अस्पताल में दाखिल कराया गया। पुलिस लड़के की तलाश कर रही है।
दिलावर सिंह ने क्रोधित मुद्रा में,दीवार पर टंगी अपनी बंदूक की ओर देखते हुए कहा। साले हरामी के पिल्ले, न जाने खुद को क्या समझते हैं। साले , मेरे सामने आ जाए तो एक- एक को गोली से उड़ा दूं।
दो दिन बाद पुलिस ने उन लड़कों का पता लगा लिया। उनमें से एक दिलावर सिंह का लड़का भी था।
बात दिलावर सिंह के पास भी पहुँची।
लड़का बाप के कदमों में गिर पड़ा।
अब दिलावर सिंह ने अपनी पहुँच का लाभ उठाते हुए मंत्री से लेकर थानेदार तक सभी को फोन कर दिया।
लड़का अपने कमरे में बेचित पसरा पड़ा था।
श्रद्धा
दीपावली पर दीनानाथ का परिवार अपने पितरों के पूजन हेतु गाँव जा रहा था।
मीनाक्षी को खूब अंधेरे उठा देख सभी सदस्यों को अचरज -सा हुआ।
उनकी समझ में यह नहीं आ रहा था कि पिछले वर्ष देर से गाँव पहुँचने वाली मीनाक्षी आज गाँव जाने को इतनी उत्सुक क्यों है।
राजीव की जब कुछ समझ न आया तो पूछने लगा कि मीनाक्षी क्या बात है आज इतनी जल्दी?
बस यूं ही।
मीनाक्षी ने बात टालने की कोशिश की, लेकिन राजीव ने बहुत देर तक उस बात का पीछा न छोड़ा तो आखिर उसे बताना ही पड़ा।
राजीव, तुम्हें पता है पिछले वर्ष मैं और आप पूजन में सबसे देर से पहुँचे तो बाबू जी से आपने पूछा था कि बाबूजी हमें आने में देरी हो गई आप पूजन करा लेते । अब पंडित जी भी चले गए।
हाँ याद है तो....
तो बाबू जी ने क्या कहा था।
बेटे जिस पूजन में हमारे पुत्र एवं पुत्रवधू ने हो उसे पूजन का क्या लाभ। हम अब दोबारा पंडित जी से प्रार्थना करेंगे और उनके पास समय न हुआ तो हम सारा सामान पंडितजी के घर भेज देंगे। बाबूजी ने कहा था।
यह सुन मैं एक तरफ तो शर्म से मरी जा रही थी तो दूसरी ओर बाबूजी के प्रति श्रद्धानत हो रही थी। और मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से बाबूजी को किसी के सामने शर्मिंदा होना पड़े। बस , इसीलिए.......
यह सुन राजीव के पास मीनाक्षी को कहने को कोई शब्द न थे।
नमक
मिश्रा जी ने टी. वी. ऑन किया ही था कि पहली ही खबर में प्रकृति का जो तांडव देखा, अन्दर तक दहल गए।
संवाददाता बता रहा था ,‘‘..........ये जो तस्वीरें आप देख रहे हैं जिनमें बडे़-बड़़े वाहन पानी में कागज की किश्तियॉ की मांनिद उल्टे-पुल्टे पडे़ हैं ; बालू से बने घरौंदे-सी ढही ये बहुमंजिलें इमारतें और पानी का यह तेज बहाव, विनाश- लीला रचता जा रहा है.... ये तस्वीरे हैं जापान के शहर सेन्दोई की .....''
संन्दोई ....यह सुनते ही मिश्राजी के मुख से चीख निकली, .‘‘कल्पना की माँ ...अपनी कल्पना .....''
पति की ये चीख सुनकर पत्नी के पैरों तले से मानो जमीन खिसक गई ‘‘....क्या हुआ...मेरी कल्पना को''
‘‘जापान में सुनामी ....भूकम्प ...सब खत्म ''
‘‘हाय..... मेरी बेटी ...हाय राम ये क्या किया तूने ...''.
उनकी चीत्कार सुनकर पड़ोसी एकत्रित हो गए और उन्हें सम्भालते हुए कहने लगे, ‘‘फोन करके देख लीजिए ?''
‘‘फोन कहॉ मिलेगा .... सब कुछ तो अस्त- व्यस्त हुआ पड़़ा है।
ऐसे कहते हुए फिर भी फोन की ओर बढ़े और नम्बर डायल करने लगे।
उधर से टु...टु......की आवाज आ रही थी। मिश्रा जीने कहा मैं कह रहा था कि फोन नहीं मिलेगा।
घर में मातम-सा छा गया।
शाम को फोन आया। मिश्रा ने एक पल गंवाए फोन का रिसीवर उठाया और कहा, ‘‘हैलो ....''
मिश्राजी कुछ बोलते उससे पहले ही उधर से आवाज आई ‘‘पापा...''
‘‘बेटी ,तू कैसी है.....''
मिश्रा जी ने इतना ही पूछा था कि उनकी पत्नी ने रिसीवर छीनते हुए कहा ‘‘बेटी ...मेरी कल्पना.... तू कैसी है... ये सब कैसे हुआ...तू कहॉ है ..... बेटी बोल.... मेरी बेटी बोल.........?''
‘‘मम्मा ...आप शांत होइए ... सब बताऊगी। ''
‘‘मेरी बेटी मेरी तो जान ही निकल गई थी।''
‘‘मम्मा परमात्मा का थैंक करो.... हम बच गए...अन्यथा हालत आप देख रहे होंगे''
‘‘बेटी, अमन कैसा है?''
‘‘वे भी ठीक हैं।''
‘‘मकान ?''
‘‘जर्जर ... शुक्र है हम आफिस में थे नहीं तो...''
‘‘ना बेटी ऐसा ना बोल .... अब कहाँ रहते हो।''
‘‘अस्थायी ठिकाना है। पर, सब ठीक हो जायेगा।''
‘‘कुछ ठीक नहीं होगा; तेरे पापा कह रहे थे कि रेडियम का खतरा अभी भी बना हुआ है.... बेटी! अमन को लेकर इण्डिया आ जा ....''
‘‘मम्मा, कैसी बातें करती हो ...हम ठीक हैं और कुछ दिनों में सब ठीक हो जायेगा....गॉड में फैथ रखिए..''
‘‘मॉँ बनेगी तब पता चलेगा ...माँ क्या होती है। मैं कहती हूं जितना जल्दी हो सके यहॉ आ जाओ....''
‘‘नहीं मम्मा ..यहाँ आने के बारे में तो हम सोच भी नहीं सकते ...इस देश को़ हमारी आवश्यकता है। मैं डॉक्टर होने के फर्ज को अदा करूँगी। यहॉँ के पीड़़ित व्यक्तियों की सहायता करूँगी और अमन यहॉँ आपदाओं से नष्ट हुए पुलों, सड़कों और इमारतों के पुनः निर्माण में अपना योगदान देगा। मम्मा हमने इस देश का नमक खाया है.....हम नमक हरामी नहीं करेंगे। ये हमारा आखिरी फैसला है... बाए मम्मा।'' कल्पना ने अपनी आवाज को दृढ़ करते हुए कहा और फोन काट दिया।
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राधेश्याम ‘भारतीय'
नसीब विहार कालोनी
घरौंड़ा करनाल 132114
Email-rbhartiya74@gmail.com
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