शैलेन्द्र चौहान का आलेख - पुनर्जागरण और वर्तमान युग

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शैलेन्द्र चौहान पुनर्जागरण का अर्थ पुनर्जन्म होता है। मुख्यत: यह यूनान और रोम के प्राचीन शास्त्रीय ज्ञान की पुन:प्रतिष्ठा का भाव प्रकट करता ...

शैलेन्द्र चौहान
पुनर्जागरण का अर्थ पुनर्जन्म होता है। मुख्यत: यह यूनान और रोम के प्राचीन शास्त्रीय ज्ञान की पुन:प्रतिष्ठा का भाव प्रकट करता है। यूरोप में मध्ययुग की समाप्ति और आधुनिक युग का प्रारंभ इसी समय से माना जाता है। इटली में इसका आरंभ फ्रांसिस्को पेट्रार्क (1304-1374) जैसे लोगों के काल में हुआ, जब इन्हें यूनानी और लैटिन कृतियों में मनुष्य की शक्ति और गौरव संबंधी अपने विचारों और मान्यताओं का समर्थन दिखाई दिया। 1453 में जब कांस्टेटिनोपिल पर तुर्कों ने अधिकार कर लिया, तो वहाँ से भागनेवाले ईसाई अपने साथ प्राचीन यूनानी पांडुलिपियाँ पश्चिम लेते गए। इस प्रकार यूनानी और लैटिन साहित्य के अध्येताओं को अप्रत्याशित रूप से बाइजेंटाइन साम्राज्य की मूल्यवान् विचारसामग्री मिल गई। चाल्र्स पंचम द्वारा रोम की विजय (1527) के पश्चात् पुनर्जागरण की भावना आल्प्स के पार पूरे यूरोप में फैल गई।


इटालवी पुनर्जागरण में साहित्य की विषयवस्तु की अपेक्षा उसके रूप पर अधिक ध्यान दिया जाता था। जर्मनी में इसका अर्थ श्रम और आत्मसंयम था, इटालवियों के लिए आराम और आमोदप्रमोद ही मानवीय आदर्श था। डच और जर्मन कलाकारों, ने जिनमें हाल्वेन और एल्बर्ट ड्यूरर उल्लेखनीय हैं शास्त्रीय साहित्य की अपेक्षा अपने आसपास दैनिक जीवन में अधिक रुचि प्रदर्शित की। वैज्ञानिक उपलब्धियों के क्षेत्र में जर्मनी इटली से भी आगे निकल गया। इटली के पंडितों और कलाकारों का फ्रांसीसियों पर सीधा और प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा; किंतु उन्होंने अपनी मौलिकता को प्राचीनता के प्रेम में विलुप्त नहीं होने दिया। अंग्रेजी पुनर्जागरण जॉन कोले (1467-1519) और सर टामस मोर (1478-1535) के विचारों से प्रभावित हुआ।


मैकियावेली की पुस्तक "द प्रिंस" में राजनीतिक पुनर्जागरण की सच्ची भावना का दर्शन होता है। रॉजर बेकन ने अपनी कृति "सालामन्ज हाउस" में पुनर्जागरण की आदर्शवादी भावना को अभिव्यक्ति प्रदान की है। ज्योतिष शास्त्र में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए और गणित, भौतिकी, रसायन शास्त्र, चिकित्सा, जीवविज्ञान और सामाजिक विज्ञानों में बहुमूल्य योगदान हुए। कापनिकल ने यह सिद्धांत प्रतिपादित किया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घुमती है, और अन्य ग्रहों के साथ, जो स्वयं अपनी धुरियों पर घूमते हैं, सूर्य की परिक्रमा करती है। केप्लर ने इस सिद्धांत को अधिक स्पष्ट करते हुए कहा कि पृथ्वी तथा अन्य ग्रह सूर्य के आसपास वृत्ताकार एक की अपेक्षा दीर्घ पथ पर परिक्रमा करते हैं। पोप ग्रेगरी ने कैलेंडर में संशोधन कोपरनिकस और कोलंबस ने ज्योतिष तथा भूगोल में क्रमश: योगदान किया। प्रत्येक अक्षर के लिए अलग अलग टाइप के आविष्कार से मुद्रणकला में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ।


और साहित्य पुरातत्वेदी प्राचीन ग्रीक और लैटिन लेखकों की कर रहे थे, दूसरी ओर कलाकार, प्राचीन कला के अध्येता प्रयोगों में रुचि ले रहे थे, और नई पद्धतियों का निर्माण कर कुछ सुप्रसिद्ध कलाकार जैसे ल्योनंद द विंसी और माइकेल नवोदित युग का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। द विंसी मूर्तिकार, वैज्ञानिक आविष्कारक, वास्तुकार, इंजीनियर, बैले (Ballet) नृत्य का आविष्कारक और प्रख्यात शास्त्री था। इतालवियों ने चित्रकला में विशेष उत्कर्ष प्रदर्शित पद्यति प्रयुक्त सामग्री बहुत सुंदर नहीं थी, तथापि उन चित्रकारों यथार्थता, प्रकाश, छाया और दृश्य-भूमिका की दृष्टि से पूर्ण हैं। द विंसी और माइकेल एंजेलो के अतिरिक्त राफेल और इटली के श्रेष्ठ चित्रकार हुए हैं। ङयूरेस और हालवेन महान् उत्कीर्णक हुए हैं। मूर्तिकला, यूनानी और रोमनी का अनुसरण कर रही थी। लारेंजों गिवर्टी, जो चित्रशिल्पी पुनर्जागरणकालीन शिल्पकला का प्रथम महान अग्रदूत था। रोबिया अपनी चमकीली मीनाकारी के लिए विख्यात एंजेलो अपने को शिल्पकला में महानतम व्यक्ति यद्यपि वह अन्य कलाओं में भी महान् था।

इतालवी कालीन ललित कलाओं में वास्तुकला के उत्थान का न्यूनतम था। फिर भी मध्ययुगीन और प्राचीन रूपों के एक विशेष पुनर्जागरण शैली का आविर्भाव हुआ। वास्तुकला अधिक विलक्षण उपलब्धि, जिसमें दो शताब्दियों के शिल्पियों कलाकारों के प्रयास मिलेजुले थे, रोम के सेंट पीटर्स चर्च के यूनानी और रोमनी साहित्य का अनुशीलन, पुनर्जागरण का मुख्य प्रत्येक शिक्षित यूरोपवासी के लिए यूनानी और लैटिन की जानकारी अपेक्षित थी और यदि कोई स्थानीय भाषा करता भी था, तो वह उसे क्लैसिकल रूप के सदृश क्लैसिकल नामों, संदर्भों और उक्तियों को जोड़ता और होमर, मैगस्थनीज़, वरजिल या सिसरो के अलंकारों, उदाहरणों से करता था। क्लेसिसिज्म के पुनरुत्थान के साथ मानववाद की भी पनपी। मानववाद का सिद्धांत था कि लौकिक मानव के ऊपर अलौकिकता, धर्म और वैराग्य को महत्व नहीं चाहिए।

मानवबाद ने स्वानुभूति और पर्यावरण के विकास अंत में व्यक्तिवाद को जन्म दिया। 15वीं शती में एक मानववादी लारजो वैला ने तीक्ष्ण ऐतिहासिक द्वारा यह सिद्ध किया कि सम्राट् कांस्टैटाइन का चर्च को वाकथित जालसाजी था। मानववाद ने आचार को भी किया। पोप समुदाय पर भी पुनर्जागरण के अंधविश्वास का पुनर्जागरण सचमुच वर्तमान युग के आरंभ का प्रधान विषय है। साइमों (Symonds) के अनुसार यह मनुष्यों के मस्तिष्क में परिवर्तन से उत्पन्न हुआ। अब यह व्यापक रूप से मान्य है कि सामाजिक और आर्थिक मूल्यों न व्यक्ति की जीवनधारा को मोड़ इटली और जर्मनी में एक नए और शक्तिशाली मध्यवृत्तवर्ग को जन्म दिया और इस प्रकार बौद्धिक जीवन में एक क्रांति पैदा की। पुनर्जागरण और सुधार आंदोलन के विषय में चर्चा करते हुए साइमों ने इन दोनों के बीच घनिष्ठ संबंध सिद्ध किया; किंतु लार्ड ऐक्टन ने साइमों की आलोचना करते हुए दोनों की मूल भावना के बीच अंतर की ओर संकेत किया। दोनों आंदोलन प्राचीन पंरपराओं से प्रेरणा करते थे, और नए सांस्कृतिक मूल्यों का निर्माण करते थे


"मानवतावाद (ह्यूमनिज्म)" शब्द के अनेक अर्थ हैं. 1806 के आसपास जर्मन स्कूलों द्वारा पेश किये गए पारंपरिक पाठ्यक्रमों की व्याख्या के लिए ह्युमानिस्मस का इस्तेमाल किया गया था और 1836 में "ह्यूमनिज्म " को इस अर्थ में अंग्रेजी को प्रदान किया गया था. 1856 में महान जर्मन इतिहासकार और भाषाविद जॉर्ज वोइट ने ह्यूमनिज्म का इस्तेमाल पुनर्जागरण संबंधी मानवतावाद की व्याख्या के लिए किया था, यह आंदोलन पारंपरिक शिक्षा को पुनर्जीवित करने के लिए इतालवी पुनर्जागरण के दौरान खूब फला-फूला था, जिसमें इसके इस्तेमाल को कई देशों, विशेषकर इटली में इतिहासकारों के बीच व्यापक स्वीकृति मिली थी. "ह्युमनिस्ट" शब्द का ऐतिहासिक और साहित्यिक प्रयोग 15वीं सदी के इतालवी शब्द युमनिस्ता से निकला है जिसका अर्थ पारंपरिक ग्रीक और इतालवी साहित्य का एक शिक्षक या विद्वान और इसके पीछे का नैतिक दर्शन है.


लेकिन 18वीं सदी के मध्य में इस शब्द का एक अलग तरह का उपयोग होना शुरू हो गया था. 1765 में एक फ्रेंच एनलाइटमेंट पत्रिका में छपे एक गुमनाम आलेख में कहा गया था "मानवतावाद के प्रति एक सामान्य प्रेम... एक सदाचार जो अभी तक हमारे बीच बेनाम है और एक ऐसी सुंदर और आवश्यक चीज के लिए एक शब्द तैयार करने का समय आ गया है, जिसे हम "ह्यूमनिज्म" कहना पसंद करेंगे." 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध और 19वीं सदी की शुरुआत में मानव भलाई और ज्ञान के प्रसार के लिए समर्पित (कुछ ईसाई, कुछ नहीं) अनेकों जमीनी "परोपकारी" और उदार समाजों का निर्माण होता देखा गया. फ्रांस की क्रांति के बाद यह विचार कि मानव सदाचार का निर्माण परंपरागत धार्मिक संस्थानों से अलग स्वतंत्र रूप से केवल मानवीय हितों के जरिये किया जा सकता है, ज्ञानोदय के सिद्धांत की क्रांति के विरोध के लिए जिम्मेदार रूसो जैसे इंसान को देवता के सामान या मूर्ति के रूप में माने जाने पर एडमंड बर्क और जोसेफ डी मैस्ट्रे जैसे प्रभावशाली धार्मिक और राजनीतिक परंपरावादियों द्वारा हिंसक हमले किये गए. मानवतावाद के लिए एक नकारात्मक अर्थ के अधिग्रहण शुरू किया. ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी में "ह्यूमनिज्म" शब्द का इस्तेमाल 1812 में एक अंग्रेज पादरी द्वारा उन लोगों के बारे में बताने के लिए दर्ज है जो ईसा मसीह (क्राइस्ट) "सिर्फ मानवता" (ईश्वरीय प्रकृति के विपरीत) में विश्वास करते हैं यानी एकेश्वरवादी और प्रकृतिवादी. इस ध्रुवीकृत माहौल में जहाँ सुव्यवस्थित चर्च संबंधी निकायों ने वैगनों को घेरने की कोशिश की और राजनीतिक एवं सामाजिक सुधारों का विरोध करने के लिए बाध्य किया जैसे कि फ्रैंचाइजी, सार्वभौमिक शिक्षा और इसी तरह की चीजों का विस्तार करना, इस तरह उदार सुधारकों और प्रजातंत्रवादियों ने मानवतावाद के विचार को मानवता के एक वैकल्पिक धर्म के रूप में अपना लिया. अराजकतावादी प्रौढ़ों (जिन्हें इस घोषणा के लिए जाना जाता है कि "संपत्ति का मतलब है चोरी") ने "ह्युमानिस्म" शब्द का इस्तेमाल एक "कल्ट, डाइफिकेशन डी ला'ह्युमेनाइट " ("सम्प्रदाय, मानवता का ईश्वरवाद") की व्याख्या के लिए किया और ला'अवेनिर डी ला साइंस: पेन्सीज डी 1848 ("द फ्यूचर ऑफ नॉलेज: थॉट्स ऑन 1848 ")(1848-49) में अर्नेस्ट रेनान कहते हैं: "इसमें मेरी गहरी आस्था है कि विशुद्ध मानवतावाद भविष्य का धर्म होगा जो मनुष्य — के जीवन भर में, पवित्रिकृत और नैतिक मूल्य के स्तर तक उन्नत की गयी हर चीज का एक संप्रदाय है."
तकरीबन उसी दौरान "मानवतावाद (ह्यूमनिज्म)" शब्द मानव मात्र के आसपास (संस्थागत धर्म के खिलाफ) एक दर्शन के रूप में केंद्रित हुआ जिसका इस्तेमाल जर्मनी में तथाकथित लेफ्ट हेजेलियंस, अर्नोल्ड रयूज और कार्ल मार्क्स द्वारा भी किया जा रहा था जो दमनकारी जर्मन सरकार में चर्च की नजदीकी भागीदारी के आलोचक थे. इन शब्दों के कई उपयोगों के बीच लगातार एक भ्रम की स्थिति बनी हुई है. दार्शनिक मानवतावादी यूनानी दार्शनिकों और पुनर्जागरण संबंधी इतिहास के महान शख्सियतों में से मानव-केन्द्रित पूर्ववर्तियों की और अक्सर कुछ हद तक यह मानते हुए देखते हैं कि प्रसिद्ध ऐतिहासिक मानवतावादियों और मानवीय हितों के चैम्पियनों ने अपने -विरोधी रुख को समान रूप से साझा किया था.

1857 की क्रान्ति ने भारतीयों में एक प्रबल राष्ट्रीय चेतना को जन्म दिया तथा यह चेतना उत्तरोत्तर बलवती होती गई और सामाजिक तथा धार्मिक सुधारों मे नियोजित हो गई। उस काल में अनेक ऐसे सुधारक तथा उपदेशक हुए जिन्होंने समाज सुधार तथा धार्मिक कुरीतियों के उत्पाटन का कार्य बड़े उत्साह के साथ आरम्भ किया। इन समाज सुधारकों में ‘राजाराममोहन राय’ का नाम अग्रगण्य है, जिन्होंने 1828 ई. में ‘ब्रह्मसमाज’ की स्थापना की, तथा ब्रह्मसमाज के प्रभाव से 1837 ई. में महाराष्ट्र में ‘प्रार्थना समाज’ की स्थापना हुई, जिसका प्रधान लक्ष्य था - जाति प्रथा का अन्त करना, विधवाओं के पुनर्विवाह, स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहन देना तथा बालविवाह को रोकना। ‘स्वामी दयानन्द सरस्वती’ ने ‘आर्य समाज’ की स्थापना कर छुआछूत और जाति प्रथा का विरोध कर हिन्दू समाज की एकता को सुदृढ़ बनाने का प्रयत्न किया। ‘स्वामी विवेकानन्द’ ने अपने गुरु ‘रामकृष्ण परमहंस’ की शिक्षाओं के प्रचार हेतु ‘रामकृष्णमिशन’ की स्थापना करी थी, जिसने समाजसुधार और सामाजिक प्रगति के बहुत ही श्लाघनीय कार्य किए। इसके अतिरिक्त भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद एक ऐसे प्रगतिशील समाज के निर्माण का उद्देश्य सामने रखा गया, जिससे भारतीय समाज में पनपी समस्याओं, अन्धविश्वासों, कुरीतियों का निराकरण हो जाए। अतएव इस उद्देश्य पूर्ति के लिए ‘योजना आयोग’ की नियुक्ति की गई, जिसने पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा देश की जाति प्रथा में परिवर्तन, अस्पृश्यवर्ग की स्थिति में सुधार, स्त्रियों की दशा में सुधार, वैवाहिक संस्था में सुधार व धार्मिक दशा में सराहनीय सुधार किए। फलतः कृषि मे विकास, शिक्षा में प्रगति, स्वास्थ्य व पोषण में विकास, जनसंख्या पर नियन्त्रण, पिछड़े वर्गों का कल्याण आदि जैसे महत्वपूर्ण कार्य हुए। 19वीं शताब्दी में देश में जो सामाजिक और धार्मिक सुधार के आन्दोलन चलाए गए थे, तभी भारतीय समाज में नवजागरण का सूत्रपात हो गया था। धार्मिक परिशोधन, राजनैतिक सुधार, शिक्षा का प्रसार, राष्ट्रीय भावना का विकास, सामाजिक कुरीतियों का विनाश व भारतीय सभ्यता और संस्कृति का पुनर्जागरण प्रारम्भ हो गया था।

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. akhileshchandra srivastava8:31 am

    Lekh bahut khoj evm gyan ko darshaat a hai avam harek ke liye pathan yogya hai
    Lekhak ko badhaiee

    जवाब देंहटाएं
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रचनाकार: शैलेन्द्र चौहान का आलेख - पुनर्जागरण और वर्तमान युग
शैलेन्द्र चौहान का आलेख - पुनर्जागरण और वर्तमान युग
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