फ्रैंज काफ़्का की कहानी - काला पानी में

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काला पानी में ‘य ह एक चमत्‍कारी मशीन है', ऑफिसर ने अन्‍वेषक से कहा और प्रशंसा के भाव से मशीन के चारों ओर नज़रें घुमाईं, जिससे वह अच्‍छी...

काला पानी में

‘यह एक चमत्‍कारी मशीन है', ऑफिसर ने अन्‍वेषक से कहा और प्रशंसा के भाव से मशीन के चारों ओर नज़रें घुमाईं, जिससे वह अच्‍छी तरह परिचित था अन्‍वेषक ने सज्‍जनता के चलते कमाण्‍डेंट के लिए सैनिक द्वारा ऑफिसर की अवज्ञा के परिणामस्‍वरूप दिए गए मृत्‍युदण्‍ड को देखने का आमंत्रण स्‍वीकार लिया था कालापानी की बस्‍ती ने इस मृत्‍युदण्‍ड को देखने में कोई रुचि नहीं दिखलाई थी। कम से कम उस छोटी रेतीली घाटी में जो एक गहरा खोखला-सा गड्ढा है जिसके चारों ओर नुकीले नंगे चट्टानों के टुकड़े हैं, वहाँ ऑफिसर, अन्‍वेषक और सजायाफ्‍ता अपराधी के अतिरिक्‍त कोई भी नहीं था- जो भूखे जानवर की तरह मुँह खोले था, उसके बाल बिखरे हुए थे और चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं और सिपाही के हाथों में भारी चेन थी जो उन छोटी-छोटी चेनों से जुड़ी थी जिनसे अपराधी की पिण्‍डलियाँ, कलाइयाँ, और गर्दन बंधी थीं। ये चेनें भी एक-दूसरे से जुड़ी थीं। फिलहाल सजायाफ्‍ता पालतू कुत्ते जैसा लग रहा था, जिसे देख कोई भी उसे आजाद छोड़ देने के बारे में सोच सकता था, जो एक सीटी बजाने पर सजा भुगतने के दौड़कर हाजिर हो जाएगा।

अन्‍वेषक ने उस मशीन में कोई विशेष रुचि नहीं दिखलाई, बल्‍कि सजायाफ्‍जा को घूम-घूमकर अनासक्‍त भाव से देखने लगा, जबकि ऑफिसर मशीन को सजा देने के लिए दुरुस्‍त करने के लिए उसके नीचे लेट कर पहुँचा जहाँ धरती में एक गहरा गड्ढा था, वहाँ से निकल सीढ़ी पर चढ़ ऊपर के हिस्‍से की जाँच

करने में व्‍यस्‍त हो गया था। वैसे तो ये सभी काम किसी मेकेनिक के लिए छोड़ दिए जाने चाहिए थे,

लेकिन ऑफिसर विशेष उत्‍साह के साथ काम में जुटा था, शायद इसलिए कि या तो वह मशीन का प्रशंसक था या फिर कुछ अन्‍य कारणों से वह इस काम को और किसी से कराने के पक्ष में नहीं था। ‘रेडी', उसने जोर से कहा और सीढि़यों से नीचे उतर आया था। वह जरूरत से ज्‍यादा लंगड़ा रहा था और मुँह खोलकर साँस ले रहा था और यूनीफार्म के कॉलर में दो लेडीज रूमाल फँसाए था। “ये यूनीफार्म उष्‍णकटिबंध के लिहाज से बहुत भारी है न”, अन्‍वेषक से कहा, हालाँकि उसने ऑफिसर की अपेक्षा के अनुकूल मशीन के बारे में प्रश्‍न न कर कहा। “आप ठीक कह रहे हैं” ऑफिसर ने वहाँ रखी बाल्‍टी में तेल-ग्रीस लगे हाथों को धोते हुए कहा, “लेकिन यह हमें घर की याद दिलाती रहती है, हम अपने घरों को भूलना नहीं चाहते। अच्‍छा, अब आइए जरा इस मशीन को देखिए”, उसने तुरन्‍त अन्‍त में जोड़ा, साथ ही अपने हाथों को तौलिए से पोंछकर मशीन की ओर इशारा किया। “इतना सब कुछ तो हाथ से ही करना पड़ता है, लेकिन अब इसके बाद सब कुछ मशीन ही करेगी”। अन्‍वेषक ने सिर हिलाकर सहमति व्‍यक्‍त की और उसके पीछे हो लिया। ऑफिसर ने अपने आपको अनहोनी से बचाने की तैयारी करते कहा, “वैसे कभी-कभार कुछ न कुछ गड़बड़ी हो ही जाती है, आप तो जानते ही हैं, वैसे मैं उम्‍मीद कर रहा हूँ कि आज कोई गड़बड़ी नहीं होगी, लेकिन सम्‍भावना के लिए तैयार तो रहना ही चाहिए। यह मशीन बारह घण्‍टों तक चल सकती है। लेकिन यदि कुछ खामी आती है तो वह कोई छोटी-मोटी ही होती है जिसे तुरन्‍त सुधारा जा सकता है।”

“आप बैठिए न” कह उसने वहाँ रखी बेंत की कुर्सियों के ढेर में से एक उठा उसे रखते हुए कहा। स्‍वाभाविक है अन्‍वेषक इन्‍कार नहीं कर सकता था। ऑफिसर खुद एक कब्र की कगार पर बैठ गया था, जिस पर उसने नजर यूँ ही डाली, कब्र ज्‍यादा गहरी न थी। उसके एक ओर वहाँ से निकाली मिट्टी का ढेर था और दूसरी ओर मशीन।

“मुझे पता नहीं” ऑफिसर ने कहा, “कि कमाण्‍डेंट ने आपको मशीन के बारे में विस्‍तार से बताया है या नहीं”। उत्तर में अन्‍वेषक ने हाथ हिला कुछ अस्‍पष्‍ट-सा इशारा किया। ऑफिसर के लिए इससे बेहतर तो हो ही नहीं सकता था क्‍योंकि अब वह मशीन के बारे में विस्‍तार से बतला सकता था। ‘इस मशीन' कहते उसने क्रैंक हैंडल को पकड़ कर उस पर झुकते हुए कहा, “का आविष्‍कार हमारे भूतपूर्व कमाण्‍डेंट ने किया था। इसके निर्माण के प्रारम्‍भ से ही मैं इससे जुड़ गया था और अन्‍त तक रहा आया था, लेकिन इसके आविष्‍कार का पूरा श्रेय केवल उन्‍हें ही है। क्‍या आपने हमारे स्‍वर्गीय कमांडर के बारे में कुछ सुना है? नहीं न? बहरहाल मेरा यह कहना बड़बोलापन तो नहीं कहा जाएगा यदि मैं आपसे यह कहूँ कि इस पूरे कालापानी का संगठन और निर्माण उन्‍हीं की देन है। हम जो उनके निकट मित्र थे, उनकी मृत्‍यु के पहले से ही जानते थे कि इस कॉलोनी का संगठन इतनी सम्‍पूर्णता के साथ किया गया है कि उनके उत्तराधिकारी भले ही उनके पास अपनी हजारों योजनाएँ हों, इसमें परिवर्तन करना असम्‍भव होगा, कम से कम आने वाले वर्षों में तो नहीं ही कर पाएँगे और हमारी भविष्‍यवाणी सच ही सि( हुई है। नए कमाण्‍डडेंट को यह स्‍वीकारना पड़ा है। कितना शर्मनाक है न कि आप हमारे पुराने कमाण्‍डेंडट से नहीं मिल सके हैं लेकिन,” ऑफिसर ने स्‍वयं को टोका, “मैं बकबकाए जा रहा हूँ, जबकि हमारे सामने है यह मशीन। इसमें जैसा आप देख रहे हैं, तीन अंग हैं। समय बीतने के साथ इनमें से प्रत्‍येक अंग का एक लोकप्रिय नाम रख दिया गया है, नीचे वाले को ‘बैड' (बिस्‍तर), ऊपर वाले को ‘डिजाइनर' और यह जो बीच में ऊपर नीचे होता है इसे ‘हेरो' (उत्‍पीड़क) कहते हैं।” ‘हैरो', अन्‍वेषक ने पूछा। यह ध्‍यान से सुन नहीं पा रहा था, उस छांहहीन घाटी में सूरज इतनी तेजी से चमक रहा था कि अपने विचारों को केन्‍द्रित करना सम्‍भव नहीं हो पा रहा था। शायद इसीलिए वह मन ही मन ऑफिसर की प्रशंसा कर रहा था जो टाइट फिटिंग की यूनीफार्म पर वजनदार बिल्‍ले लगाए होने के बावजूद पूरे उत्‍साह के साथ अपने विषय पर बोलने के साथ पेंचकस से यहाँ-वहाँ के नट भी कसता जा रहा था और जहाँ तक सैनिक का प्रश्‍न था, उसकी हालत बहुत कुछ अन्‍वेषक जैसी ही थी। कैदी की दोनों कलाइयों पर हथकड़ी बाँध अपनी राइफल पर सिर झुकाए चारों ओर से बेखबर सिर झुकाए खड़ा था। इससे अन्‍वेषक को कोई आश्‍चर्य नहीं हुआ क्‍योंकि ऑफिसर फ्रेंच में बोल रहा था और स्‍वाभाविक है न तो सैनिक और न ही कैदी फ्रेंच का एक शब्‍द भी नहीं जानते थे। बहरहाल सबसे ताज्‍जुब की बात यह थी कि कैदी पूरे ध्‍यान से ऑफिसर की बात सुनकर समझने की कोशिश कर रहा था। एक प्रकार के उनींदेपन के साथ वह अपनी आँखों को वहीं ले जा रहा था जहाँ ऑफिसर इशारा कर रहा था और अन्‍वेषक के रोकने पर ऑफिसर की ओर सिर घुमा लिया करता था।

‘हाँ, हेरो' ऑफिसर ने कहा, “इसके बिलकुल उपयुक्‍त नाम है। इसकी सुइयाँ हेरो के दाँतों की ही तरह लगाई गई हैं और पूरी मशीन ही बहुत कुछ ‘हेरो' जैसा ही काम करती है, हालाँकि इसकी क्रियाएँ एक स्‍थान पर ही सीमित हैं, साथ ही यह कुछ अधिक कलात्‍मक है। लेकिन आप जल्‍दी ही इसे समझ लेंगे। बेड पर सजायाफ्‍ता को लिटा दिया जाता है। इसे शुरू करने के पहिले मैं आपको इसके बारे में विस्‍तार से बतलाऊँगा, तभी आप इसकी विशेषताओं को अच्‍छी तरह समझ सकेंगे। इसके अलावा डिजाइनर के चक्‍के का एक कांटा कुछ ज्‍यादा ही खराब है इसलिए वह अधिक आवाज़ करता है चलाए जाने पर। उसकी आवाज़ आप सुन ही नहीं पाएँगे। दुर्भाग्‍य से स्‍पेयर पार्टस का मिलना तो यहाँ बेहद कठिन है। बहरहाल यह रहा बैड। जैसा मैंने आपसे कहा, इसकी ऊपरी सतह को सूती ऊनी कपड़े से ढाँक दिया गया है। ऐसा क्‍यों किया गया है आपको बाद में पता चल जाएगा। इसी सूती-ऊनी कपड़े पर अपराधी को लिटा दिया जाता है- उल्‍टा मुँह करके स्‍वाभाविक है उसके पूरे कपड़े उतारने के बाद। हाँ, ये रहे हाथ बाँधने के पट्टे और ये पैरों के लिए और यहाँ गर्दन के लिए। यह सब कसकर बाँधने के लिए किया जाता है। यहाँ बैड के सिरहाने जहाँ आदमी का, जैसे मैंने कहा, चेहरा रहता है, यहीं पर फेल्‍ट का बना टुकड़ा मुँह को बन्‍द करने के लिए है, जिसे आसानी से चलाने पर वो सीधे मुँह में चला जाता है। उससे आदमी की जीभ कटने से और वह चीखने से बच जाता है। अब यह तो स्‍वाभाविक ही है आदमी को फेल्‍ट जबर्दस्‍ती मुँह में रखना पड़ता है, ऐसा नहीं करने पर उसकी गर्दन पट्टे के कसाव से टूट जाएगी।” “क्‍या यह भी सूती-ऊनी है?” अन्‍वेषक ने आगे बढ़ झुककर देखते हुए पूछा। “हाँ” ऑफिसर ने मुस्‍कराते हुए कहा, “आप उसे उंगली से छूकर महसूस कर सकते हैं” और अन्‍वेषक का हाथ पकड़ उसके ऊपर रखते हुए कहा, “इसे विशेष तौर पर सूती-ऊनी बनाया गया है, इसीलिए तो यह अलग दिखता है। मैं आपको बाद में बतलाऊँगा कि ऐसा जानबूझकर क्‍यों किया गया है।” अन्‍वेषक की रुचि मशीन में जागने लगी थी। उसने अपनी आँखों पर एक हाथ से सूरज से बचने के लिए छाया की और घूर कर देखने लगा। मशीन अच्‍छी बड़ी थी। बैड और डिजाइनर एक ही साइज के थे और दो अंधेरे बॉक्‍स जैसे दिखते थे। डिजाइनर बैड से दो मीटर ऊपर लटका था, दोनों चारों कोनों में चार तांबे के रॉड से जुड़े थे जो सूरज की तेज रोशनी में चकाचौंध फेंक रहे थे। इन दोनों के बीच हैरो स्‍टील के रिबन से हिलता-डुलता था।

ऑफिसर ने अन्‍वेषक की प्रारम्‍भिक अरुचि पर कोई ध्‍यान ही नहीं दिया था लेकिन अब जागती और बढ़ती रुचि का उसे आभास हो गया था इसलिए उसने मशीन के बारे में बतलाना बन्‍द कर दिया था ताकि वह आराम से देख-समझ सके। सजायाफ्‍ता अन्‍वेषक की हरकतों की नकल कर रहा था और चूँकि अपनी आँखों को ढंकने के लिए हथेली का उपयोग नहीं कर सकता था इसलिए बिना आँखों को ढंके वो ऊपर देखे जा रहा था।

“हूँऽऽ तो आदमी लेट जाता है” अन्‍वेषक ने कुर्सी पर पीठ टिकाते हुए एक पैर को दूसरे पर रखते हुए कहा।

“हाँ”, ऑफिसर ने अपनी कैप को कुछ पीछे सरकाते और अपने तपते चेहरे पर हाथ फेरते हुए कहा, “तो अब जरा ध्‍यान से सुनिए। बैड और डिजाइनर दोनों के साथ बिजली की बैटरी है, बैड को अपने लिए चाहिए और डिजाइनर के हेरो के लिए। जैसे ही आदमी को स्‍टे्रप से बाँध दिया जाता है और बेड को चालू कर दिया जाता है। वो एक मिनट में ही काँपने लगता है तेज गति से, एक ओर से दूसरी ओर, साथ ही ऊपर नीचे भी होने लगता है? आपने ऐसे उपकरण अस्‍पतालों में देखे होंगे, लेकिन हमारे बैड की गतियाँ एक व्‍यवस्‍था के तहत चलती हैंऋ आप समझ रहे हैं न, उसे हेरो की गति अनुसार चलना होता है और हेरो ही वह हिस्‍सा है जो सजा देने का मुख्‍य काम करता है।”

“और सजा कैसे दी जाती है?” अन्‍वेषक ने प्रश्‍न किया।

“आपको क्‍या यह भी नहीं मालूम है!” आश्‍चर्य प्रकट करते हुए ऑफिसर ने अपने होंठ काटे। “प्‍लीज़ मुझे क्षमा कर देंगे यदि आपको मेरा समझाना कुछ अटपटा-सा लगे तो। मैं आपसे क्षमा माँगता हूँ, दरअसल बात यह है कि हमेशा कमाण्‍डेंट ही समझाने का काम करते आए हैं, और हमारे नए कमाण्‍डेंट अपने इस कर्त्त्‍ाव्‍य से बचते हैं, और वह भी महत्त्‍वपूर्ण मेहमानों के सामने” -अन्‍वेषक ने इस सम्‍मान को दोनों हाथों के इशारे से उसे रोकना चाहा, लेकिन ऑफिसर ने जोर देकर कहा- “आप जैसे महत्त्‍वपूर्ण मेहमान को यह भी न बतलाया जावे कि सजा दी कैसे जाती है, यह तो पूरी तरह नई बात है जो” -कह वह कुछ कठोर शब्‍दों का उपयोग करने जा रहा था लेकिन उसने भरसक अपने को रोक केवल इतना कहा, “मुझे तो यह पता ही नहीं था, दरअसल यह मेरी ही गलती है बहरहाल मैं ही विस्‍तार से समझाने के लिए एकमात्र जानकार यहाँ उपस्‍थित हूँ, क्‍योंकि मेरे पास है”, कह उसने अपने सीने के जेब को थपथापते हुए कहा, “वह आवश्‍यक नक्‍शा जिसे हमारे पूर्व कमाण्‍डेंट ने बनाया था।”

“कमाण्‍डेंट ने डिजाइन बनाई थी?” अन्‍वेषक ने पूछा, “तो क्‍या उन्‍होंने स्‍वयं ही सब कुछ किया था? क्‍या वे सिपाही, जज, मेकेनिक केमिस्‍ट और ड्राफ्‍टसमेन सभी कुछ थे?”

“आप बिल्‍कुल ठीक कह रहे है, वे ही सब कुछ थे”, ऑफिसर ने सिर हिलाते हुए अनजाने से गर्व भरे चेहरे के साथ कहा। फिर उसने अपनी हथेलियों को अलट-पलट कर ध्‍यान से देखा, वे उसे उतने साफ नहीं लगे कि वे नक्‍शे को छूने लायक हों, इसलिए वह बाल्‍टी के पास गया और उन्‍हें एक बार फिर से धोया। इसके बाद उसने छोटा-सा चमड़े का ब्रीफकेस निकालते हुए कहा, “हमारी दण्‍ड-मशीन बहुत कष्‍टदायक नहीं दिखती। जो भी अपराध सजायाफ्‍ता ने किया होता है, उसकी देह पर हेरो द्वारा लिख दिया जाता है। जैसे इस सजायाफ्‍ता की”, ऑफिसर ने उसकी ओर इशारा करते हुए कहा, “देह पर लिखा जाएगा- अपने ऑफिसरों का उचित आदर-सम्‍मान न करना।”

अन्‍वेषक ने उस आदमी पर नज़र डाली, जो ऑफिसर के इशारा करते ही अपनी जगह पर सिर झुकाए खड़ा हो गया था। यह स्‍वाभाविक ही था कि वह पूरी ताकत लगा सब कुछ सुनने की कोशिश कर रहा था, जो वहाँ कहा जा रहा था, लेकिन उसके काँपते ओंठ, जिन्‍हें वह कस कर दबाए था, स्‍पष्‍ट कर रहे थे कि उसके पल्‍ले कुछ भी नहीं पड़ रहा है। अन्‍वेषक के मन में भी कई प्रश्‍न उठ रहे थे जिन्‍हें वह पूछना चाहता था, लेकिन सजायाफ्‍ता को देख मात्र एक प्रश्‍न किया, “क्‍या इसे अपनी सजा मालूम है?” “नहीं” ऑफिसर ने तुरन्‍त उत्तर दिया और अपनी बात आगे बढ़ाने को उत्‍सुक हो गया, लेकिन अन्‍वेषक ने हाथ के इशारे से उसे रोक दिया। “तो उसे यह खबर ही नहीं है कि इसे कौन-सी सजा दी गई है?” “नहीं”, ऑफिसर ने फिर दोहराया और एक पल इस इन्‍तजार में रुका कि शायद अन्‍वेषक अपने प्रश्‍न को विस्‍तार देगा, लेकिन उसे चुप देख कहा, “इसे बतलाने की कोई आवश्‍यकता ही नहीं है, भुगतने के बाद इसे पता चल ही जाएगा”। अन्‍वेषक की कोई इच्‍छा आगे बोलने की न थी लेकिन उसने सजायाफ्‍ता की आँखों को अपने ऊपर रुका महसूस किया, जैसे वह पूछ रहा हो कि क्‍या वह इसका समर्थक है। इसलिए वह अपनी कुर्सी पर आगे की ओर झुका, अपनी कुर्सी पर पीछे टिककर वह बहुत देर से बैठा था और दूसरा प्रश्‍न किया, “लेकिन इसे कम से कम यह तो पता होगा ही कि उसे दण्‍ड दिया गया है।” “नहीं यह भी नहीं”, अन्‍वेषक की ओर मुस्‍करा कर देखते हुए ऑफिसर ने कहा, जैसे वह इसी प्रकार के रिमार्क की अपेक्षा कर रहा था। “नहींऽऽ” अन्‍वेषक ने माथे पर चुहचुहा आए पसीने को पोंछते हुए कहा, “तब तो इसे यह भी पता नहीं होगा कि उसका बचाव पक्ष शक्‍तिशाली था या नहीं?” “उसे बचाव पक्ष रखने का कोई मौका ही नहीं दिया गया”, ऑफिसर ने आँखें नचाते हुए कुछ ऐसे अन्‍दाज में कहा जैसे स्‍वयं से कह रहा हो कि इस प्रकार उसने अन्‍वेषक को शर्मनाक बातें सुनने से बचा लिया हो। “लेकिन इसे अपने बचाव का अवसर तो दिया ही जाना चाहिए था।” अन्‍वेषक ने कहा और कुर्सी से खड़ा हो गया।

ऑफिसर को महसूस हुआ कि इस मशीन पर उसके अधिकार को अच्‍छी-खासी चुनौती मिलने की सम्‍भावना है इसलिए वह सीधे अन्‍वेषक के पास पहुँच उसका हाथ पकड़, दूसरे हाथ से सजायाफ्‍ता की ओर इशारा किया जो अब तक सीधा तन कर खड़ा हो गया था क्‍योंकि फिलहाल वही ध्‍यान का केन्‍द्र था- (सैनिक ने जंजीर को एक झटका दिया) और कहा, “मामला कुछ यों है मेरी नियुक्‍ति इस अपराधियों की कॉलोनी में न्‍यायाधीश के पद पर हुई है, क्‍योंकि मैं पूर्व कमाण्‍डेंट का सभी मामलों में सहायक हुआ करता था, साथ ही मशीन के बारे में दूसरों से अधिक जानकारी भी रखता हूँ। मेरा अटल निर्णायात्‍मक सि(ान्‍त है ः अपराध पर कभी सन्‍देह नहीं करना चाहिए। दूसरी अदालतें इस सि(ान्‍त पर नहीं चल सकतीं क्‍योंकि उनके पास बहुत सी राय उपलब्‍ध होती है साथ ही उनके ऊपर ऊँची अदालतें भी हैं उन पर निगरानी रखने के लिए। लेकिन यहाँ ऐसी स्‍थिति नहीं है, अथवा कहना चाहिए पूर्व कमाण्‍डेंट के समय में तो नही ही थीं। अब नए कमाण्‍डेंट ने मेरे निर्णयों में बाधा पहुँचाने में रुचि दिखलाई है, लेकिन अभी तक तो मैं उन्‍हें दूर रखने में सफल रहा हूँ और विश्‍वास है आगे भी सफल रहूँगा। शायद आप चाहते हैं कि इस विषय में आपको मैं विस्‍तार से समझाऊँ। दरअसल मामला बेहद सीधा-सादा है, जैसे अभी तक दूसरे रहे हैं। एक कैप्‍टन ने मुझे आज सुबह इस आदमी की शिकायत की, जिसकी ड्‌यूटी उसके यहाँ लगी हुई थी- और यह उनके दरवाजे़ के सामने पहरा देता था- इसे ड्‌यूटी के दौरान सोते हुए पाया गया- रात में सोने पर आपत्ति नहीं है लेकिन हर बार घंटा बजने पर खड़े होकर दरवाज़े को सेल्‍यूट करना इसकी ड्‌यूटी का अंग है। आप समझ रहे हैं न। अब यह कोई अधिक कठोर ड्‌यूटी तो है नहीं, बेहद साधारण-सी ड्‌यूटी है। चूँकि इसे घरेलू नौकरी के साथ संतरी की नौकरी भी करनी थी। स्‍वाभाविक है दोनों ही नौकरियों में पर्याप्‍त सावधानी की आवश्‍यकता है। पिछली रात को कैप्‍टन ने इसकी ड्‌यूटी को चैक करने का निश्‍चय किया। जैसे ही घड़ी ने दो बजाए उसने दरवाज़ा खोला तो इस आदमी को गाढ़ी नींद में सिकुड़ कर सोते हुए पाया। उसने एक हैंटर उठाया और सपाक्‌ से इसके चेहरे पर जड़ दिया। हड़बड़ाकर खड़े हो गलती की माफी माँगने की जगह इस आदमी ने अपने मालिक के पैर पकड़े और उन्‍हें जोर से झिंझोड़ते हुए चिल्‍लाया, “हैंटर को फेंक दो, नहीं तो मैं तुम्‍हें कच्‍चा चबा जाऊँगा।” तो यह रहा सबूत। एक घण्‍टे पहिले कैप्‍टन मेरे पास आया तो मैंने उसका स्‍टेटमेंट लिखा और उसके बाद मैंने सजा भी लिख दी। साथ ही इस आदमी को जंजीर से बंधवा दिया। बस, कुल जमा इतना-सा तो सीध-सादा मामला है। अब यदि मैंने इस आदमी को अपने सामने बुलवाया होता और पूछताछ की होती तो पूरा मामला ही उलझ जाता। इसने मुझसे झूठ बोला होता और यदि मैं झूठों को गलत सि( करता तो इसने और झूठ गढ़ लिए होते और बस यही बार-बार दोहराया जाता रहता। फिलहाल तो यह मेरे कब्‍जे में है और मैं इसे भागने दूँगा नहीं। मेरा ख्‍याल है अब आपको सारा मामला समझ में आ गया होगा। लेकिन क्षमा करें हम व्‍यर्थ में समय जाया कर रहे हैं, दण्‍ड प्रक्रिया की शुरुआत हमें अभी तक कर देनी थी और इधर मैंने आपको अपनी मशीन के बारे में ही पूरी जानकारी नहीं दी है।” इतना कह उसने अन्‍वेषक को हल्‍के से धक्‍का दिया और उन्‍हें कुर्सी पर बैठा दिया और स्‍वयं मशीन के पास चला गया और फिर से बोलना शुरू कर दिया, “आप यह तो देख ही रहे हैं कि हेरो की लम्‍बाई और आकार मनुष्‍य की साइज का ही है। यह जगह रही धड़ के लिए और यह पैरों के लिये, बचा सिर तो उसके लिए यह एक छोटी कील ही पर्याप्‍त है, यह तो आपकी समझ में आ गया न?” इसके बाद वह अन्‍वेषक की ओर झुका उसे विस्‍तार से समझाने के लिए।

अन्‍वेषक ने हैरो को भौंह सिकोड़ते हुए देखा। न्‍याय की ऐसी व्‍यवस्‍था से वह पर्याप्‍त अप्रसन्‍न हो गया था। उसे अपने को याद दिलाना पड़ा कि यह मामला काले पानी के अपराधियों की बस्‍ती का है जहाँ विशेष कदम उठाने की आवश्‍यकता होती है और मिलेट्री अनुशासन का अन्‍तिम क्षण तक पालन किया जाता है। इसके बावजूद उसे इस बात का भी एहसास था कि नए कमाण्‍डेंट से कुछ आशा की जा सकती है क्‍योंकि वह क्रमशः सुधार लाने का पक्षधर है, एक ऐसी व्‍यवस्‍था जिसे ऑफिसर का संकीर्ण मन-मस्‍तिष्‍क समझने में पूरी तरह असमर्थ है। विचारों की इस श्रृंखला ने उसे अगला प्रश्‍न करने को प्रेरित किया, “क्‍या कमाण्‍डेंट दण्‍ड को देखने आएँगे?” “कुछ निश्‍चित नहीं है”, ऑफिसर ने उत्तर दिया, लेकिन सीधे प्रश्‍न से वह सकपका गया और उसके चेहरे पर दोस्‍ताना भाव कुछ अधिक फैल गया। “इसीलिए तो हमें समय बर्बाद नहीं करना चाहिए, भले ही मैं इसे पसन्‍द न करूँ, मुझे अपने वर्णन को छोटा करना ही होगा। लेकिन कल जब यह मशीन धुल जाएगी- दरअसल इसमें सबसे बड़ी कमी यही है कि सजा पूरी होने के बाद बहुत गन्‍दगी फैल जाती है- तब मैं आपको विस्‍तार से सब कुछ समझा दूँगा। आज तो केवल महत्त्‍वपूर्ण बातें हीं- जब आदमी को बैड पर लिटा देते हैं और वो चलने लगता है, तो हेरो को उसकी देह तक नीचे ले जाते हैं। वह स्‍वचालित होता है, सुइयाँ बमुश्‍किल से देह को छूती हैं, जैसे ही वे देह से सटती हैं, वैसे ही कि स्‍टील रिबन सख्‍त हो जाता है। एक कड़े बेड (तख्‍त) की तरह और तब शुरू होता है नाटक। एक अपरिचित दर्शक को कोई अन्‍तर दिखलाई नहीं देगा एक सजा और दूसरी सजा में। हेरो अपने काम को नियमित ढंग से करता है। उसके काँपने के साथ उसकी सुइयों की नोंकें देह पर छेद करना शुरू कर देती हैं, जो खुद बेठ के काँपने से काँपती रहती हैं। खास बात यह है कि दण्‍ड की गति को देखा जा सकता। क्‍योंकि हैरो काँच से बना होता है। हालाँकि काँच में सुइयों का लगाना अच्‍छी खासी तकनीकी समस्‍या थी, लेकिन बहुत से असफल प्रयासों के बाद हमने इस समस्‍या का हल अन्‍त में निकाल ही लिया था। आप समझ रहे हैं न कि हम किसी भी समस्‍या को हल करने के लिए दृढ़ संकल्‍पि थे। और आज कोई भी व्‍यक्‍ति काँच में से लिखी बनती जाती इबारत को देख सकता है और साथ ही पढ़ भी सकता है। क्‍या आप कुछ पास आने का कष्‍ट उठाकर इन सुइयों को देखना पसन्‍द करेंगे?”

अन्‍वेषक हौले से उठा और निहायत खरामा-खरामा चलकर हेरो के ऊपर झुक गया। “आप देख रहे हैं न?” ऑफिसर ने कहा, “कि दो प्रकार की सुइयाँ बहुत से आकारों में लगी हैं। प्रत्‍येक बड़ी सुई के पास छोटी सुई है। बड़ी सुई लिखने का काम करती है और छोटी सुई पानी का फव्‍वारा छोड़ खून धोने के काम करती जाती है ताकि इबारत स्‍पष्‍ट दिखे। खून और पानी मिलकर छोटी नालियों से हो बड़े टनल से बाहर निकल गंदे पाइप से हो कब्र में गिरता रहता है।” ऑफिसर ने उंगली के इशारे से खून पानी के निकलने के रास्‍ते को विस्‍तार से समझाया। इस पूरी क्रिया को स्‍पष्‍ट दिखलाने के लिए उसने दोनों हाथ गंदे पाइप के नीचे लगा दिए जैसे बहाव को रोक रहा हो और जब वह यह कर रहा था, तभी अन्‍वेषक ने अपना सिर पीछे खींच लिया और हाथ को पीछे कर कुर्सी को तलाशा और उस पर बैठ गया। ऑफिसर के कहने पर सजायाफ्‍ता व्‍यक्‍ति हेरो को निकट से देख और ऑफिसर के अनुसार काम करते देख आतंक से भर गया। सजायाफ्‍ता ने आलसी नींद से भरे सैनिक को आगे बढ़ाने के लिए चैन खींच ली और काँच के ऊपर झुक देखने लगा। यह तो कोई भी देख सकता था कि उसकी अस्‍थिर आँखें दोनों व्‍यक्‍ति क्‍या देख रहे हैं उसे देखने की कोशिश कर रहा था, लेकिन चूँकि उसके पल्‍ले कुछ पड़ नहीं रहा था। इसलिए वह अकबकाया सा देखकर समझने की कोशिश कर रहा था सिर झुकाए इधर-उधर बस देखे भर जा रहा था। वह काँच पर आँखें घुमा रहा था। अन्‍वेषक तो उसे वहाँ से भगा देना चाहता था क्‍योंकि वह जैसा व्‍यवहार कर रहा था, वह अवांछित था लेकिन ऑफिसर ने अन्‍वेषक का हाथ पकड़ उसे रोक दिया और दूसरे हाथ से जमीन से पत्‍थर उठा सैनिक की ओर फेंका। चोट लगने से उसने अचानक आँखें खोलीं और सजायाफ्‍ता की हरकत को देख उसने हाथ की राइफल गिरने दी और अपनी एडि़याँ ज़मीन पर गड़ा सजायाफ्‍ता को जोर से खींचा। परिणामस्‍वरूप वह लड़खड़ा कर ज़मीन पर गिर गया और फिर नीचे झुकी आँखों से देखते हुए खड़ा हो गया, जबकि सैनिक उसे गिरते सम्‍भलते, खड़े होते, जंजीरों की खनखनाहट के बीच देखे जा रहा था। “उसे अपने पैरों पर खड़ा करो”, ऑफिसर चिल्‍लाया क्‍योंकि उसने गौर किया कि अन्‍वेषक का ध्‍यान सजायाफ्‍ता की ओर था। सच भी यही था कि अन्‍वेषक हेरो के ऊपर झुका तो था लेकिन सजयाफ्‍ता को वह एकटक देखे जा रहा था। “उससे सावधान रहना”, ऑफिसर फिर चीखा और मशीन का चक्‍कर लगा दौड़कर पहुँचा और सजायाफ्‍ता को कंधे से पकड़ सैनिक की सहायता से पैरों पर उसे किसी तरह खड़ा किया जो बार-बार फिसल रहा था।

“अब मुझे सब कुछ समझ में आ गया है”, अन्‍वेषक ने लौटकर ऑफिसर से कहा। “हाँ, सब कुछ लेकिन सबसे महत्त्‍वपूर्ण को छोड़कर”, ऑफिसर ने एक हाथ से उसे पकड़कर दूसरे हाथ से इशारा करते हुए कहा, “डिजाइनर के अन्‍दर ही वे बटन और चक्‍के हैं, जो हेरो को कंट्रोल करते हैं, और यह नियंत्रित होता है उस दण्‍ड के अनुसार जो उसे लिपिब( करना होता है उसकी मात्रा के अनुसार। मैं अभी-भी पूर्व कमाण्‍डेंट की बनाई योजना के निर्देशानुसार ही चलता हूँ। वे यह रहे” - कहते हुए उसने चमड़े के ब्रीफकेस से कुछ कागज निकाले- “लेकिन मुझे क्षमा करें, मैं इन्‍हें आपको दे नहीं सकता, ये मेरे लिए सर्वाधिक मूल्‍यवान हैं। बस, यह एक कागज ही देख लीजिए, मैं इसे आपके सामने पकड़े रखूँगा, बस इतने मात्र से आपको सब कुछ स्‍पष्‍ट हो जाएगा”, यह कहते हुए उसने पहिला पन्‍ना उसके सामने खोल दिया। अन्‍वेषक ने कुछ प्रशंसात्‍मक वाक्‍य कहे होते, लेकिन वह अपने सामने मात्र पंक्‍तियों की भूलभुलैया ही देख रहा था, जो बार-बार एक दूसरे को काट रही थीं, वे इतनी बार कटी थीं और इतने निकट थीं कि उनके बीच के खाली स्‍थान को देखना सम्‍भव ही नहीं था। “पढि़ए” ऑफिसर ने कहा। “ये बहुत विशिष्‍टि है”, अन्‍वेषक ने अपने का बचाते हुए कहा, “लेकिन मैं इसे पढ़ नहीं पा रहा हूँ।” “हाँऽऽ”, ऑफिसर ने हँसते हुए कागज को अलग रखते हुए कहा, “यह लिपि स्‍कूल के बच्‍चों की लिपि की तरह नहीं है, इसे पर्याप्‍त ध्‍यान से पढ़ना होता है। लेकिन मुझे पूरा विश्‍वास है कि अन्‍त में आप भी इसे समझ जाएँगे। स्‍वाभाविक है यह लिपि सामान्‍य नहीं है। किसी को भी तत्‍काल मारने की आवश्‍यकता नहीं है। कुछ समय के बाद औसतन बारह घंटों में घूमने का समय छठवें घंटे में आना चाहिए, इसीलिए लिपि में ढेरों घुमाव आते हैं, लिपि पूरे शरीर में ही लिखी जाती है, लेकिन एक संकरे घेरे में और अधिकांश देह सुरक्षित रहती है अलंड्डत करने के लिए। अब तो आप हेरो की प्रशंसा करेंगे न, आप जरा इस पूरी मशीन को तो गौर से देखें आप,” कहते उसने सीढि़याँ चढ़ी और एक चक्‍के को घुमाने के बाद नीचे झुककर कहा, “देखिए जरा सम्‍भलिएगा और प्‍लीज़ साइड भी रहे आएँ।” पूरी मशीन चलने लगी थी, यदि चक्‍के से किर्र-किर्र की आवाज़ न आती, तो यह सब कुछ बेहद शानदार दिख रहा था। ऑफिसर ने चक्‍के की आवाज को आश्‍चर्य से सुना। मुट्ठी बाँध कर उसे दिखाई और फिर दोनों हाथ माफी माँगने के अन्‍दाज में फैला दिए। अन्‍वेषक से क्षमा माँगते वह तेजी से सीढि़यों से नीचे उतर मशीन के नीचे की कार्यप्रणाली देखने लगा। वहाँ कुछ ऐसा हो रहा था, जो दूसरे किसी को भी समझ में नहीं आ रहा था, सिवाय उसके जिसे गड़बड़ी का अन्‍दाजा था। वह फिर से ऊपर चढ़ा, डिजाइनर में हाथ डाल कुछ करता रहा और फिर एक रॉड के सहारे नीचे सरक आया, सीढि़यों से उतरने के स्‍थान पर, ताकि जल्‍दी से नीचे उतर सके। मशीन के निचले भाग को देख उसने सीने में कुछ अधिक हवा भरी और जोर से अन्‍वेषक के कान में चिल्‍लाया, ताकि दूसरी आवाज़ों के बीच उसकी आवाज़ स्‍पष्‍ट सुनाई दे, “क्‍या आपकी समझ में आ गया। हेरो लिखना शुरू करने जा रहा है, जब वह पहला ड्राफ्‍ट पूरा कर लेगा पीठ पर तब सूती-ऊनी परत धीरे-धीरे घूमना शुरू हो जाएगी और धीरे-धीरे देह पलट जाएगी, इस प्रकार हेरो को लिखने के लिए नई जगह मिल जाएगी। इस बीच जिस भाग पर लिखा जा चुका है, वह हिस्‍सा सूती-ऊनी कपडे़ पर पड़ा रहता है जो इस प्रकार का बनाया गया है कि वह रिसते खून को सोख लेता है और लिपि लिखने के लिए तैयार हो जाता है। फिर जैसे ही देह आगे घूमती है हैरो के किनारे बने दाँते सूती-ऊनी कपड़े को घावों से अलग खींचकर कब्र में फेंक देते हैं लेकिन अभी भी हेरो को करने के लिए और भी काम बचे रहते हैं। इस प्रकार देह में और गहराई में बारह घण्‍टे तक मशीन लिखती रहती है। पहले छः घण्‍टे के बाद मुँह में फँसे फेल्‍ट के पट्टे को निकाल लिया जाता है, क्‍योंकि तब तक उसमें चीखने लायक शक्‍ति बचती ही नहीं है। यहाँ पर, बिजली के गर्म बेसिन से बेड के सिरे पर कुछ गर्म मांड बहाया जाता है जिसे यदि आदमी चाहे तो अपनी मनमर्जी के अनुसार जीभ से चाट सकता है। अभी तक किसी एक ने भी इस अवसर को नहीं छोड़ा है। मुझे अच्‍छी तरह याद है एक ने भी नहीं और मेरे अनुभव विश्‍वास करें, बहुत अधिक हैं। करीब छः घण्‍टे के बाद आदमी की भूख मर जाती है। ऐसे अवसरों पर मैं घुटनों के बल बैठकर इस चमत्‍कार पूर्ण अनहोनी को देखता रहता हूँ। आदमी प्रायः अन्‍तिम घूंट को प्रायः निगलता नहीं है बस वह उसे मुँह में घुमाता रहता है और फिर कब्र में थूक देता है। ऐसे समय मुझे झटके से झुकना पड़ता है नहीं तो मेरे मुँह पर ही थूक आकर गिर जाएगा। लेकिन छठे घण्‍टे के होते-होते यह बेहद शान्‍त हो जाता है। सबसे बड़े मूर्ख को भी एहसास हो जाता है और यह शुरू होता है आँखों से वहीं से वह स्‍पष्‍ट होता है। एक ऐसा पल जब कोई भी उसके साथ हेरो में रहने को तत्‍पर हो जाएगा। बस, उसके साथ कुछ भी नहीं होता, वह उस लिपि को समझने लगता है, वह अपने मुँह को दबाकर संकुचित कर लेता है जैसे वह सुन रहा हो। आपने तो स्‍वयं देखा है उस लिपि को आँखों से पढ़ना कितना कठिन है, लेकिन हमारा आदमी इसे अपने घावों से पढ़ता है। यह तो निश्‍चित है कि यह कितना कष्‍ट साध्‍य होगा। पूरे छः घण्‍टे लगते हैं उसे समझने में। उस समय तक हेरो ने उसे पूरी तरह से छेद दिया होता है और उसे कब्र में फेंक दिया होता है, जहाँ वह खून-पानी और सूती-ऊनी कपड़े में लिथड़ा पड़ा रहता है और तब जाकर न्‍याय पूरा हो चुका होता है और फिर हम, याने सैनिक और मैं उसे दफना देते हैं।”

अन्‍वेषक के कान ऑफिसर की ओर लगे थे, उसके हाथ जैकेट के पॉकेट में थे और वह मशीन को काम करते देखे जा रहा था। देखने को तो सजायाफ्‍ता भी देख रहा था लेकिन बिना समझे। वह घूमती सुइयों को देखने कुछ आगे झुका, तभी सैनिक ने ऑफिसर के इशारे पर चाकू से उसकी शर्ट और पेन्‍ट को चीर दिया। वे नीचे गिरने लगे तो सजायाफ्‍ता ने अपने कपड़ों को पकड़ अपने नंगेपन को छिपाने की कोशिश की, लेकिन सैनिक ने कपड़ों को हवा में उठा लिया और उसे हिला-डुलाकर उसकी देह के अन्‍तिम कपड़े के टुकड़े को गिरा दिया। ऑफिसर ने मशीन बन्‍द की और एकाएक उपजी खामोशी में सजायाफ्‍ता को हैरो के नीचे लिटा दिया। उसकी जंजीरों को ढीला कर उन्‍हें खोल उनकी जगह पट्टे बाँध दिए गए। उन कुछ शुरुआती क्षणों में सजायाफ्‍ता को यह पर्याप्‍त आरामदायक लगा। इसके बाद हैरो को कुछ नीचे किया गया क्‍योंकि वह आदमी दुबला-पतला मरियल-सा था। जैसे ही उसकी देह को सुइयों की नोकों ने छुआ उसकी पूरी देह में कंपकपी की लहर दौड़ गई जबकि सैनिक उसके दाहिने हाथ को पट्टे से बाँधने में व्‍यस्‍त था, उसने अपना बायां हाथ अंधों की तरह पटका, लेकिन वह उस दिशा में था जहाँ अन्‍वेषक खड़ा था। ऑफिसर आँखों के कोने से अन्‍वेषक की ओर देखे जा रहा था, जैसे उसके चेहरे के भावों से दण्‍ड के प्रभाव को समझना चाहता हो जिन्‍हें उसने उसे समझाया था।

अचानक कलाई बंधी पट्टी टूट गई, शायद सैनिक ने उसे बहुत कसकर बाँध दिया था ऑफीसर को उसे रोकना पड़ा। सैनिक ने उसे टूटे-पट्टे के टुकड़े दिखाए। ऑफिसर उसके निकट चला गया लेकिन उसका चेहरा अभी भी अन्‍वेषक की ओर ही था। “यह एक निहायत उलझी हुई मशीन है, इसमें कुछ न कुछ टूटता ही रहता है या फिर काम करना बन्‍द कर देता है, लेकिन अपने निर्णय पर तो आदमी को अडिग रहना चाहिए न, भटकना तो गलत ही माना जाएगा, अब इस पट्‌टी को ही लीजिये यह तो अभी भी काम करने लायक बन जायेगी नहीं तो मैं जंजीर का उपयोग कर लूँगा बस दाहिने हाथ की कम्‍पन पर ही उसका कुछ प्रभाव पड़ेगा।” कहते उसने जंजीर को बाँधते आगे कहा, “इस मशीन के पार्ट्‌स पर्याप्‍त सीमित ही हैं। भूतपूर्व कमाण्‍डेंट के समय में मेरे पास इसके लिए पर्याप्‍त राशि अलग से रहा करती थी। वैसे यहाँ के एक स्‍टोर्स में इसके रिपेयरिंग के लिए अतिरिक्‍त पाट्‌र्स रहते हैं। यह मैं स्‍वीकारता हूँ कि मैं उनको ले पर्याप्‍त उदार रहा आया हूँ, मेरा मतलब है पिछले समय में, आजकल नहीं, क्‍योंकि नया कमाण्‍डेंट हमेशा पुराने तरीकों पर हमला करने के लिए बहाने की तलाश में ही रहा आता है। फिलहाल तो इस मशीन के हिस्‍से की रकम वे अपने अधिकार में ही रखे हैं। अब यदि मैं नए पट्टे के लिए उनसे कहूँगा, तो वे मुझसे पुराने टूटे पट्‌टे के टुकड़े सबूत में माँगेंगे और फिर पूरे दस दिन लगेंगे नए पट्टे के आने में और जो आएगा वह बेकार से मटेरियल से बना और अच्‍छी क्‍वालिटी का भी नहीं होगा। लेकिन मशीन को मैं बिना पट्टे के कैसे चलाऊँगा, इस बारे में और कोई चिन्‍ता करना ही नहीं चाहता।”

अन्‍वेषक ने अपने मन में सोचा ः दूसरों के कामों में निर्णयात्‍मक रूप से दखल देना हमेशा परेशानी भरा होता है। वह न तो बंदियों की इस काला पानी की कॉलोनी का न तो सदस्‍य ही है, न ही उस राज्‍य का नागरिक ही जो इस भूभाग का स्‍वामी है। क्‍या उसे इस दण्‍ड की अवमानना करनी चाहिए, या फिर इसे बन्‍द करने के प्रयास करने चाहिए। ये लोग उससे यह भी तो कह सकते हैं- “आप परदेसी हैं, अपने काम से काम रखिए” बस उसके पास इसका कोई उत्तर नहीं होगा- जब तक वह यह न आगे जोड़े कि यह तो चकित है इस सब को देखकर, क्‍योंकि वह तो यहाँ मात्र निरीक्षण कर्ता (आब्‍जर्वर) के रूप में ही यात्रा कर रहा है। दूसरों की न्‍याय व्‍यवस्‍था में परिवर्तन की उसकी कोई मंशा नहीं है। लेकिन सब कुछ देखकर वह अपने को रोक पाने में असमर्थ हैं इस अन्‍यायपूर्ण व्‍यवस्‍था और उसके परिपालन की अमानवीयता तो निर्विवादित तथ्‍य के साथ उसकी आँखों के सामने है। कोई यहतो कह नहीं सकता कि इसमें उसका कोई स्‍वार्थ है, क्‍योंकि सजायाफ्‍ता व्‍यक्‍ति उसके लिए पूर्णतः अपरिचित है। वह उसका देशवासी भी नहीं है, न ही मेरी उसके प्रति कोई सहानुभूति ही है। उसकी सिफारिश बहुत उच्‍च स्‍तर से की गई थी। यही नहीं उसका स्‍वागत पर्याप्‍त आदर और उत्‍साह के साथ किया गया था और यह तथ्‍य कि उसे इस सजा को देखने के लिए विशेष रूप से आमन्‍त्रित किया गया था- इस सबसे तो यही निष्‍कर्ष निकलता है कि उसकी राय महत्त्‍वपूर्ण होगी और वे उसका स्‍वागत करेंगे और इसके साथ ही, जैसा उसने बार-बार सुना है कि कमाण्‍डेंट स्‍वयं इस दण्‍ड विधान का पक्षधर नहीं है, साथ ही इस ऑफिसर के प्रति उसका रवैया भी विरोध पूर्ण है।

इसी क्षण अन्‍वेषक ने ऑफिसर के मुँह से क्रोध भरी चीख सुनी। उसने अभी-अभी अच्‍छी खासी मेहनत के बाद सजायाफ्‍ता के मुँह में फेल्‍ट गेग लगाया ही था कि तभी उस आदमी को असह्‌य मितली उठी, उसने आँखें बन्‍द कीं और वमन कर दिया। ऑफिसर ने फटाक्‌ से उसके मुँह में फंसे गेग को अलग कर दिया और उसका सिर कब्र की ओर घुमा दिया, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी, मशीन में वमना भर गई। “यह सब कमाण्‍डेंट के कारण हो रहा है”, ऑफिसर रॉड को पकड़ उसे हिलाते हुए चिल्‍लाया, “उसी के कारण मशीन सुअर-बाड़े जैसी हो रही है।” काँपते हाथों से उसने अन्‍वेषक को इशारा करते आगे कहा, “कई घण्‍टों मैंने कमाण्‍डेंट को समझाया कि सजायाफ्‍ता को एक दिन का उपवास कराया जाना चाहिए सजा देने से पहले, लेकिन हमारे आधुनिक सिद्धान्‍तवादी का विचार कुछ दूसरा ही है। उनकी औरतों जैसी आदतों के चलते पिछली बार सजायाफ्‍ता को सजा के पहिले कैंडी खिलाई थी उन्‍होंने। अब सोचिए जिस आदमी ने पूरी जिन्‍दगी बदबूदार मछलियों पर काटी हो, उसे शक्‍कर की कैंडी? लेकिन इसके विरोध में मुझे कुछ नहीं कहना है, क्‍योंकि सजा तो अभी दी जा सकती है, लेकिन वे मुझे नया फेल्‍ट गेग क्‍यों नहीं दे रहे जिसकी माँग मैं पिछले तीन माहों से विधिवत्‌ कर रहा हूँ। किसी को भी मितली आ जाएगी, जब वह अपने मुँह में ऐसा गंदा फेल्‍ट गेग रखेगा जिसे सौ से अधिक मुँह में रखा जा चुका हो, उस पर दाँतों के निशान हैं, जो सूखे थूक से लिथड़ चुका है।”

सजायाफ्‍ता ने अपना सिर वापिस रख दिया था और निढाल हो शान्‍त हो गया था, उधर सजायाफ्‍ता की शर्ट से सैनिक मशीन की सफाई में जुटा हुआ था। ऑफिसर अन्‍वेषक की ओर बढ़ा जो इस घटना से घबराकर दो कदम पीछे हट गया था। ऑफिसर ने उसका हाथ पकड़ा और उसे एक ओर ले गया। “मैं आपसे कुछ निवेदन करना चाहता हूँ आपको अपना समझ कर,” उसने कहा, “क्‍या मैं कह सकता हूँ?” “अवश्‍य अवश्‍य!” अन्‍वेषक ने कहा और धरती पर आँखें गड़ाकर सुनने लगा।

“दण्‍ड विधान की इस कार्यप्रणाली को जिसे आपको देखने और प्रशंसा करने का सुअवसर मिला है, फिलहाल हमारी कॉलोनी में समर्थकों का घोर अभाव है। अभूतपूर्व कमाण्‍डेंट की परम्‍परा में एकमात्र समर्थक मैं ही हूँ। इस दण्‍ड प्रणाली में सुधार कर आगे बढ़ाने की बात तो दूर मेरी पूरी शक्‍ति इसे बनाए रखने में ही समाप्‍त हो रही है। पूर्व कमाण्‍डेंट के जीवित रहते इस कॉलोनी में इसके समर्थक बहुत बड़ी संख्‍या में थे, उनके विश्‍वास की दृढ़ता मेरे अन्‍दर कुछ मात्रा में अभी भी शेष है, लेकिन उनकी अधिकार शक्‍ति का एक अंश भी मेरे पास नहीं है, इसका परिणाम यह हुआ है कि सभी समर्थक आँखों के सामने से ओझल हो गए हैं, हालाँकि अभी भी उनकी बड़ी संख्‍या यहाँ है लेकिन स्‍वीकारेगा एक भी नहीं। यदि आप आज सजा के बिन चायघर जावें तो आपको अस्‍पष्‍ट से रिमार्क ही सुनने मिलेंगे। वे सभी इस विधि के समर्थकों की राय होगी, लेकिन इस नए कमाण्‍डेंट के राज्‍य में उसकी वर्तमान कार्यप्रणाली और रीति-नीति के चलते, उन रायों का हमारे लिए कोई महत्त्‍व ही नहीं रह गया है और अब आपसे मेरा प्रश्‍न है कि क्‍या कमाण्‍डेंट और वे स्‍त्रियाँ जिनसे वह प्रभावित है, ऐसे कार्य को जो एक मनुष्‍य के जीवन भर के श्रम का परिणाम है”, कहते उसने मशीन की ओर इशारा किया, “उसे व्‍यर्थ मानकर फेंक देना चाहिए। क्‍या किसी को यह करना चाहिए? भले ही कोई अजनबी हमारे काले पानी के टापू में कुछ दिनों के लिए ही आया हो? हमारे पास समय का अभाव है, क्‍योंकि एक जज के रूप में मेरे ऊपर आक्रमण कभी भी किया जा सकता है। यही नहीं, अभी इस वक्‍त कमाण्‍डेंट के ऑफिस में कॉन्‍फ्रेंस चल रही है, जिससे मुझे जानबूझकर बाहर रखा गया है, यही नहीं आपका यहाँ उपस्‍थित होना भी पर्याप्‍त महत्त्‍वपूर्ण कदम है। वे कायर हैं, और वे ढाल के रूप में वे आपका उपयोग करना चाहते हैं। आप एक अजनबी परदेशी जो ठहरे। आपको क्‍या बतलाऊँ पुराने दिनों में यह मृत्‍युदण्‍ड कितना मनोरंजक हुआ करता था। इस कार्यक्रम के एक दिन पहिले से ही पूरी घाटी दर्शकों से भर जाया करती थी। सभी मात्र देखने के लिए आया करते थे और फिर अल्‌-सुबह कमाण्‍डेंट महिलाओं के साथ आते थेऋ तुरहियों से पूरी कालोनी ही जाग जाया करती थी। फिर मैं जाकर उन्‍हें पूरी रिपोर्ट दिया करता था कि सभी तैयारियाँ पूरी की जा चुकी हैं, उन दिनों एक भी उच्‍चाधिकारी अनुपस्‍थित रहने की हिम्‍मत नहीं कर सकता था- ये सभी कुर्सियाँ मशीन के चारों ओर विधिवत्‌ जमाई जाती थीं, ये बेंत की कुर्सियों का ढेर उस युग के खण्‍डहर की तरह आज पड़ी हैं, यह जमाना आया है अब। उन दिनों मशीन की अच्‍छी तरह सफाई की जाती थी ऐसी कि सदैव चमकती रहती थी। प्रत्‍येक सज़ा के बाद मै। नए पुर्जे मँगा लिया करता था। चारों ओर दर्शक पंजों के बल उन ढालों पर बैठ देखा करते थे और उधर बड़ी संख्‍या में लोग ऊपर खड़े हो देखते थे- सजायाफ्‍ता को स्‍वयं कमाण्‍डेंट ही हैरो पर लिटाया करते थे। और आज जो काम एक साधारण सैनिक कर रहा है, उन दिनों में मेरी जिम्‍मेदारी हुआ करती थी। वह पीठासीन न्‍यायाधीश का कर्त्त्‍ाव्‍य था और मेरे लिए सम्‍मान की बात थी और तब जाकर सजा प्रारम्‍भ होती थी। उन दिनों मशीन की एक भी बेसुरी आवाज़ नहीं निकला करती थी। यह सच है कि अधिकांश लोग सजा को आँखों से देखना पसन्‍द नहीं करते थे और वे धरती पर आँखें गड़ाए या आँखें बन्‍द किए रहते थे- सभी को पता होता था कि अब न्‍याय होने वाला है। चारों तरफ फैली पसरी खामोशी में केवल सुनाई पड़ा करती थी सजायाफ्‍ता के फेल्‍ट से बन्‍द मुँह से निकली आधी-अधूरी चीखें और आहें। आज तो हालत यह है कि फेल्‍ट रखे मुँह से कहीं बड़ी चीखें मशीन से निकलने लगी हैं। उन दिनों तो लिखने वाली सुई के साथ एक एसिड भी छोड़ी जाती थी, जिसके उपयोग की फिलहाल हमें अनुमति ही नहीं है। बहरहाल फिर आया करता था छठवां घण्‍टा। उन दिनों पास से देखने की अच्‍छा व्‍यक्‍त करने वाले सभी आवेदकों को अनुमति देना ही सम्‍भव नहीं हुआ करता था। क्‍या दिन थे वे! उन दिनों कमाण्‍डेंट ने अपने विवेक से बच्‍चों को प्राथमिकता देने का आदेश निकाला हुआ था। जहाँ तक मेरा प्रश्‍न था अपने अधिकारों के चलते मुझे वह सुविधा प्राप्‍त थी कि मैं सदैव मशीन के पास ही रहा करता था। प्रायः मैं किसी बच्‍चे को अपने हाथों से पकड़े जांघों पर बैठाए रहता था। उन दिनों हम सभी सजायाफ्‍ता की पीड़ा की मात्रा से क्षण-क्षण बदलते चेहरे को देखने में मग्‍न रहे आते थे, कैसे हमारे चेहरे न्‍याय की कांति से चमका करते थे- सजा के अन्‍त होने पर और फिर क्रमशः धुंधली होती जाती थी! क्‍या दिन थे वे प्‍यारे कामरेड!” स्‍वाभाविक था ऑफिसर अपनी रौ में यह भूल ही चुका था कि वह किससे बात कर रहा है। उसने अन्‍वेषक को बाँहों में भर लिया था और अपना सिर उसके कंधे पर रख दिया था। उसकी इस हरकत से अन्‍वेषक को शर्म आ रही थी, उत्‍सुकता के साथ ऑफिसर के सिर के ऊपर से देखने लगा। सैनिक ने सफाई पूरी कर ली थी और फिलहाल एक बर्तन में राइस पेप (चावल पानी) को बेसिन में डाल रहा था। जैसे ही सजायाफ्‍ता ने, जिसे पर्याप्‍त होश आ गया था- सैनिक को यह करते देखा वो अपनी जीभ इस ओर बढ़ाने की कोशिश करने लगा। सैनिक उसे धकिया कर दूर रखने की कोशिश करने लगा क्‍योंकि राइस-पेप बाद के घण्‍टे के लिए तैयार किया गया था, हालाँकि यह भी उचित तो नहीं माना जा सकता कि सैनिक अपने गन्‍दे हाथों को बेसिन में डालकर खाए, और वह भी एक भूखे चेहरे के सामने।

ऑफिसर ने कुछ ही देर में अपने को सामान्‍य कर लिया था। “आप परेशान हों, मैं यह कतई नहीं चाहता,” उसने कहा, “मैं जानता हूँ कि उन दिनों की विश्‍वसनीय प्रस्‍तुति आज असम्‍भव है। फिलहाल तो मशीन अपना काम कर ही रही है और उतनी ही बेहतर है। अपने आप में यह प्रभावशाली है, हालाँकि पूरी घाटी में एकमात्र है। लाश अभी भी आराम से कब्र में गिरती है, वैसे उन दिनों की तरह हजारों आदमी मक्‍खियों की तरह यहाँ एकत्रित नहीं होते। आप विश्‍वास करेंगे क्‍या, कि उन दिनों हमें कब्र के चारों ओर घनी बाड़ लगानी पड़ती थी, उसे तो बहुत दिनों पहिले ही गिराया जा चुका है।”

अन्‍वेषक ऑफिसर के पास से अपना चेहरा हटा कर चारों ओर नज़र डालना चाहता था। ऑफिसर को महसूस हुआ कि शायद वह घाटी की वीरानगी को देखना चाहता है, यह सोच उसका हाथ पकड़ उसकी आँखों में झाँक कर पूछा, “क्‍या आप इसकी शर्मिन्‍दगी को देख रहे हैं?”

लेकिन अन्‍वेषक ने कोई उत्तर नहीं दिया। ऑफिसर उसे कुछ देर के लिए अकेला छोड़ कमर पर हाथ रख पैर फैलाकर जमीन को घूरता खड़ा रहा। कुछ देर बाद अन्‍वेषक की ओर उत्‍साह भरी मुस्‍कराहट फेंकते हुए कहा, “कल, जब कमाण्‍डेंट ने आपको आमन्‍त्रित किया था, तब मैं आपके निकट ही तो खड़ा था। मैंने अपने कानों से उसे आपसे कहते सुना था। कमाण्‍डेंट जितना जमीन के अन्‍दर है उससे चौगुना भीतर है, यह मैं अच्‍छी तरह जानता हूँ। मुझे तभी अन्‍दाज हो गया था कि उसका वास्‍तविक इरादा है क्‍या! हालाँकि वे सर्वोच्‍च अधिकारी हैं और मेरे विरुद्ध कोई भी निर्णय ले सकते हैं। यह सच है कि उन्‍होंने अभी यह साहस दिखाया नहीं है, लेकिन वे आपकी राय का मेरे विरुद्ध उपयोग करेंगे, यह मुझे भलीभाँति पता है- आखिर आप एक प्रसिद्ध विदेशी हैं, जिसकी राय पर्याप्‍त वजन रखती है। उन्‍होंने पूरी योजना बना ली है। आपका कालापानी के इस द्वीप में आज दूसरा दिन ही है। आप न तो पुराने कमाण्‍डेंट से परिचित हैं, न ही उसकी कार्यप्रणाली से ही परिचित हैं। आप यूरोपीय विचाराधारा के, स्‍वाभाविक है, समर्थक होंगे ही, इसकी भी पूरी सम्‍भावना है कि आप सिद्धान्‍ततः फाँसी विरोधी होंगे और विशेषकर ऐसी यातना पूर्ण मशीनी हत्‍या के तो हो ही जाएँगे जब इसे अपनी आँखों से देख लेंगे। एक गन्‍दगी से भरी मशीनी विधि जिसे यहाँ के निवासियों का कोई समर्थन प्राप्‍त नहीं है और वह भी एक आवाज़ करती सी पुरानी मशीन द्वारा।- इस सबका लब्‍बोलुबाब यह होगा, और इसकी पूरी सम्‍भावना है (कमाण्‍डेंट की सोच यही है कि आप इस विधि पर असहमति प्रकट करेंगे ही? और अपनी इस सोच को छिपाते नहीं है मैं अभी भी कमाण्‍डेंट के मन में उठते विचार आपको बतला रहा हूँ) क्‍योंकि आप उन व्‍यक्‍तियों में हैं जो अपने निष्‍कर्षों पर दृढ़ रहते हैं। यह सच है कि आपने अलग-अलग समाज के रीति-रिवाजों, मान्‍यताओं और विशेषताओं को देखा है, इसलिए आप हमारी कार्यप्रणाली पर उतना सख्‍त रुख नहीं अपनाऐंगे, जितना आप अपने देश में निश्‍चित रूप से लेते, लेकिन कमाण्‍डेंट को इससे कुछ लेना-देना नहीं है, जबकि इनके द्वारा उनके उद्देश्‍य की पूर्ति हो जाने वाली है। वे चतुराई से निहायत धूर्ततापूर्ण प्रश्‍नों से आपको प्रेरित करेंगे, यह मैं निश्‍चित रूप से जानता हूँ। यही नहीं उसकी साथ की महिलाओं का झुंड आपको घेरकर आपकी बातों को तन्‍मयता से सुनता रहेगा। हो सकता है उस समय आप ऐसा कुछ कहें, ‘हमारे अपने देश में तो न्‍याय की अलग प्रणाली है' अथवा ‘हमारे देश में अपराधी को दण्‍ड देने के पहिले अपने बचाव का पूरा अवसर दिया जाता है', या फिर ‘मध्‍यकाल के बाद से ही हमने सजा के रूप में प्राणदण्‍ड देने का प्रावधान ही समाप्‍त कर दिया है।' ये सभी कथन जो आपके अपने हैं और जो आपके लिए सामान्‍य हैं, और मेरी इस व्‍यवस्‍था पर कोई निर्णयात्‍मक प्रभाव नहीं डालते। लेकिन प्रश्‍न यह है कि कमाण्‍डेंट इन वाक्‍यों पर कैसी प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त करते हैं? मैं तो उसे स्‍पष्‍ट रूप से देख रहा हूँ। हमारे सुसंस्‍ड्डत कमाण्‍डेंट अपनी कुर्सी को जोर से धक्‍का दे आवाज करे सरकाएंगे और तेजी से बाल्‍कनी की ओर बढ़ेंगे, मैं उनकी महिला मित्रों को उनके पीछे तेजी से बढ़ते देख रहा हूँ और मैं उनकी आवाज़ को भी सुन रहा हूँ जिसे वे महिलाएँ गरजती आवाज़ मानती है- और वे उसकी आवाज़ में यह कहते हैं, ‘एक सुप्रसिद्ध पश्‍चिमी अन्‍वेषक, जो संसार के सभी देशों दण्‍ड-व्‍यवस्‍था के अध्‍ययन के लिए भेजा गया है, उसने, ऐसे व्‍यक्‍ति ने अभी-अभी कहा है कि हमारी पारम्‍परिक मृत्‍यु-दण्‍ड व्‍यवस्‍था पूर्णतः अमानवीय है। अब ऐसा निर्णय और वह भी इतने महत्त्‍वपूर्ण व्‍यक्‍ति के मुँह से सुनने के बाद इस विधि को आगे चलाए रखना, मेरे लिए तो अब असम्‍भव है। अतः आज से नहीं वरन्‌ अभी से मैं इस दण्‍ड व्‍यवस्‍था को․․․ आदि आदि।' यह सुन आप विरोध में कहना चाहेंगे कि आपकी मंतव्‍य यह कतई नहीं था और आपने ऐसा कुछ भी नहीं कहा है कि मेरी प्रणाली अमानवीय है, वरन्‌ इसके विपरीत अपने गहन अनुभवों के उपरान्‍त आप तो यह विश्‍वास करते हैं कि यह विधि तो पूरी तरह मानवीय गरिमा के अनुकूल है और आप इस मशीन के प्रशंसकों में से है- लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी, आप बाल्‍कनी तक भी नहीं पहुँच पाएंगे क्‍योंकि वहाँ महिलाओं का जमघट आपको आगे बढ़ने ही नहीं देगा, आप अपनी ओर ध्‍यान खींचना चाहेंगे, आप चीखना चाहेंगे लेकिन किसी महिला का हाथ आपके ओंठों को बन्‍द कर देगा- और बस मेरी और हमारे कमाण्‍डेंट की छुट्‌टी हो जाएगी।”

अन्‍वेषक को अपनी मुस्‍कराहट को रोकने के लिए पर्याप्‍त शक्‍ति लगानी पड़ी। अरे, यह तो बहुत ही सहज-सरल था जिसे उसने इतना कठिन मान रखा था। उसने टालते हुए कहा, “आप मेरे प्रभाव को अतिरंजित करके देख रहे हैं, कमाण्‍डेंट ने मेरे सन्‍दर्भ पत्रों को पढ़ रखा है, वे अच्‍छी तरह जानते हैं कि मैं दण्‍ड विधान का कोई विशेषज्ञ नहीं हूँ। यदि मैं राय दूँगा भी तो वह मात्र मेरी व्‍यक्‍तिगत राय होगी एक ऐसी राय जो किसी भी सामान्‍य नागरिक की राय से अधिक प्रभावशाली नहीं होगी और कमाण्‍डेंट की राय से तो कम ही प्रभावी होगी, जिनके विषय में मेरी सोच यही है कि वे इस काला पानी की कालोनी में सर्वाधिक अधिकार सम्‍पन्‍न हैं। यदि तुम्‍हारी दण्‍ड-प्रणाली के सम्‍बन्‍ध में जैसा आपका विश्‍वास है, इतनी विपरीत सोच वे रखते हैं तो क्षमा करें, मेरा विश्‍वास है कि आपकी इस दण्‍ड परम्‍परा का अन्‍त निकट है, मेरी किसी भी प्रकार की सहायता के बिना भी।”

क्‍या ऑफिसर को इसका एहसास हो गया है? नहीं, वह अभी भी इसे समझने को तैयार नहीं। उसने जोर से सिर हिलाया और घूमकर सजायाफ्‍ता और सैनिक पर नज़र डाली, वे दोनों ही चावल से मुँह मोड़े हुए थे, यह देख वह अन्‍वेषक के पास आया और बिना उसके चेहरे को देखे, उसके कोट पर दृष्‍टि गड़ा पहिले से और धीमी आवाज़ में कहा, “आप दरअसल कमाण्‍डेंट को नहीं जानते, आपकी यह सोच है- कृपया मेरी बात को अन्‍यथा न लें, कि आप हमारी तुलना में आउटसाइडर हैं, किन्‍तु मेरा विश्‍वास करें, आपके विचार अधिक प्रभावशाली नहीं होंगे। मैं स्‍वतः भी यह सुनकर बहुत प्रसन्‍न हो गया था कि आप सजा के समय उपस्‍थित रहेंगे। सच यह है कि कमाण्‍डेंट ने निशाना मेरी ओर ही लगाया था। लेकिन मैं इसे अपने पक्ष में करके ही रहूँगा। चारों ओर फैली फुसफुसाहटों और तिरस्‍कार करती निगाहों से अविचलित हुए बिना-जिससे आप बच ही नहीं सकते थे यदि यहाँ दण्‍ड देखने भीड़ एकत्र होती तो- आपने तो मेरे विचार सुन लिए हैं, मशीन को देख लिया है और अब आप अपनी आँखों से सजा को देख भी लेंगे। अब, इसमें तो कोई सन्‍देह ही नहीं है कि अपने-अपने निष्‍कर्ष निकाल लिये होंगे जो कुछ संदेह आपके मन में अभी भी होंगे उनका निराकरण दण्‍ड के पूरे होने के साथ ही हो जाएगा और इसलिए अब मैं आपसे एक प्रार्थना और निवेदन कर रहा हूँ, प्‍लीज मेरी सहायता करें, मेरा तात्‍पर्य है कमाण्‍डेंट के विरुद्ध सहायता करें।” अन्‍वेषक उसे आगे कहने नहीं देना चाहता था। “यह मैं कैसे कर सकता हूँ भला?” यह चीख पड़ा, “असम्‍भव, मैं न तो तुम्‍हारी सहायता कर सकता हूँ और न ही तुम्‍हें रोक ही सकता हूँ।” “नहीं, आप कर सकते हैं,” ऑफिसर ने पर्याप्‍त विश्‍वास के साथ कहा। आशंकाओं के बीच अन्‍वेषक ने देखा कि ऑफिसर ने अपनी मुट्ठियाँ कस कर भींच ली हैं। “नहीं, आप अवश्‍य ही कर सकते हैं”, ऑफिसर ने अपनी बात दोहराई और जोर देते हुए कहा, “मेरे पास एक योजना है जो निश्‍चित रूप से सफल होगी। आपके विचार से आपका प्रभाव अपर्याप्‍त है, लेकिन मैं जानता हूँ वह पर्याप्‍त है। एक मिनट को मान लीजिए कि आपकी सोच सही है, तो भी इस परम्‍परा की रक्षा के प्रयास करने में उसके उपयोग करने में क्‍या आपत्ति हो सकती है? आप मेरी योजना को तो सुन लीजिए। इसकी सफलता के लिए आवश्‍यक है कि आप अपनी राय निष्‍कर्षों के सम्‍बन्‍ध में जितना सम्‍भव हो कुछ भी न बोलें। आप खामोश रहें, जब तक आपसे सीधे प्रश्‍न न किया जावे तब तक आप एक शब्‍द भी न कहें। जो कुछ भी कहें, वह सामान्‍य राय हो और संक्षिप्‍त हो। यह मान कर चला जावे कि इस सम्‍बन्‍ध में आप कुछ भी कहना उचित नहीं समझते कि इस सम्‍बन्‍ध में आप चुप रहना ही पसन्‍द करते हैं और यदि आपको इस सम्‍बन्‍ध में बाध्‍य किया ही गया तो आप बेहद कटु भाषा का उपयोग करेंगे। इसका यह अर्थ नहीं कि मैं आपको झूठ बोलने के लिए कह रहा हूँ, कतई नहीं, आप केवल संक्षिप्‍त उत्तर ही देंगे जैसे, ‘हाँ, मैंने दण्‍ड देते देखा है' अथवा, ‘हाँ मुझे विस्‍तार से समझा दिया गया था' बस इतना ही कहें और कुछ भी हालाँकि आपके धैर्य की परीक्षा के लिए गुंजाइश है, लेकिन उनके सम्‍बन्‍ध में कमाण्‍डेंट सोच ही नहीं पाएँगे। हालाँकि इसकी पर्याप्‍त सम्‍भावना है कि वे आपके शब्‍दों के मनमाने अर्थ अपनी रुचि के अनुसार निकाल लें बस, इसी पर मेरी योजना निर्भर करती है। कल कमाण्‍डेंट के ऑफिस में सभी उच्‍चधिकारियों की कॉन्‍फ्रेंस आयोजित की गई है और स्‍वयं कमाण्‍डेंट उसकी अध्‍यक्षता करेंगे। हालाँकि वे उन लोगों में से हैं जो कॉन्‍फ्रेंस को जनता के सामने तमाशे के रूप में प्रस्‍तुत करना पसन्‍द करते हैं। इसी सोच के चलते उन्‍होंने एक गैलरी का निर्माण कराया है जो हमेशा दर्शनार्थियों से भरी रहती है। इन कॉन्‍फ्रेंसों में भागीदारी मेरी विवशता है, जबकि वहाँ मुझे चक्‍कर आने लगते हैं। बहरहाल जो होना होगा सो तो होकर रहेगा, लेकिन इस कॉन्‍फ्रेंस में आपको निश्‍चित तौर पर आमन्‍त्रित किया जाएगा। यदि आप मेरे सुझावों पर अपनी सहमति देते हैं तो ऐसी स्‍थिति में आपका आमन्‍त्रण विशेष अनुरोध में परिवर्तित हो जावेगा। लेकिन मान लीजिए किन्‍हीं गुह्य कारणों से आपको आमन्‍त्रित नहीं किया जाता है तो आप स्‍वयं वहाँ उपस्‍थित रहने की इच्‍छा व्‍यक्‍त करेंगे और तब आपके निमन्‍त्रण में कोई सन्‍देह नहीं रहेगा। अतः आप हर हाल में कल कमाण्‍डेंट के बॉक्‍स में महिलाओं के साथ निश्‍चित रूप से रहेंगे। यह सुनिश्‍चित करने के लिए कि आप वहाँ हैं या नहीं बार-बार चारों ओर देखते रहेंगे। बहुत से छोटे-मोटे महत्त्‍वहीन विषयों के बाद जो मात्र दर्शकों को प्रभावित करने के लिए रखे जावेंगे-जिनमें अधिकांश बन्‍दरगाह के विषय में होंगे।- उनके बाद हमारी न्‍यायप्रणाली का विषय चर्चा के लिए रखा जावेगा। यदि कमाण्‍डेंट ने उसे पेश नहीं किया वह भी शीघ्र ही, तो मैं देखूँगा कि वह रखा जावे। मैं खड़े होकर यह रिपोर्ट प्रस्‍तुत करूँगा कि दिया जाने वाला दण्‍ड पूरा किया जा चुका है। सब कुछ संक्षेप में, एक वक्‍तव्‍य जैसा। इस प्रकार के वक्‍तव्‍य देने की सामान्‍यतः परम्‍परा है नहीं लेकिन फिर भी मैं दूँगा। हमेशा की तरह मुस्‍कराहट के साथ कमाण्‍डेंट मुझे धन्‍यवाद देंगे और फिर वे स्‍वयं को रोक नहीं पाएँगे। अपने हाथ आए इस सुनहरे अवसर को वे कतई नहीं जाने देंगे। ‘अभी-अभी रिपोर्ट दी गई है', वे कहेंगे, या फिर इसी अर्थ को व्‍यक्‍त करने वाले अन्‍य शब्‍दों में, ‘कि आज एक व्‍यक्‍ति को दण्‍ड दिया गया है। मैं यहाँ इस बात पर विशेष बल देना चाहूँगा कि हमारी कॉलोनी का दण्‍ड-विधान एक प्रसि( अन्‍वेषक की आँखों के सामने दिया गया था, जिन्‍होंने हमारी इस काला पानी कालोनी में आकर हमें सम्‍मान दिया है। आज की कॉन्‍फ्रेंस में उनकी उपस्‍थिति हमारी इस बैठक को भी महत्त्‍वपूर्ण बना रही है। क्‍या हमें प्रसिद्ध अन्‍वेष अतिथि से हमारी पारम्‍परिक मृत्‍यु दण्‍ड विधि के विषय में उनकी राय नहीं जाननी चाहिए?' -स्‍वाभाविक है उनके इस प्रस्‍ताव पर उपस्‍थित जन समूह तालियाँ बजाकर सहमति प्रकट करेंगे और मैं स्‍वयं उनके इस प्रस्‍ताव का पूरी ताकत से समर्थन करूँगा और तब कमाण्‍डेंट आपके सम्‍मान में सिर झुका कर आपसे कहेंगे, ‘अब मैं उपस्‍थित सदस्‍यों की ओर से आपके सामने प्रश्‍न रखता हूँ' और तब आप अपनी सीट से उठ बॉक्‍स के सामने आएंगे और हाथ सामने रखेंगे ताकि सभी उन्‍हें देख सकें, या फिर यह भी हो सकता है कि महिलाएँ आपका हाथ पकड़ लें और आपकी उंगलियों को हौले से दबावें और फिर आप अपनी राय व्‍यक्‍त करेंगे। विश्‍वास कीजिए मेरे पास शब्‍द ही नहीं हैं कि आपके बोलने के क्षण की प्रतीक्षा मैं कितने टेंशन में करता रहूँगा। आप किसी भी प्रकार के बंधन को नहीं स्‍वीकारेंगे जब आप बोलने के लिए प्रस्‍तुत होंगे। आप बोलेंगे और जोर से बोलेंगे और सच बोलेंगे। आप बॉक्‍स के सामने झुकें, चिल्‍लाएँ, अपनी राय पर्याप्‍त जोर से बोलें, पूर्ण विश्‍वास के साथ पर्याप्‍त निडरता के साथ कमाण्‍डेंट से कहें। यह सम्‍भव है कि आपको इस तरह की प्रस्‍तुति पसन्‍द न हो। वैसे भी यह आपके स्‍वभाव के अनुकूल भी तो नहीं है, शायद आपके देश में लोग अपनी बात दूसरे ढंग से प्रस्‍तुत करने के आदी हों। यदि ऐसा है तो भी कोई अन्‍तर पड़ने वाला नहीं है। वैसा करना भी पर्याप्‍त प्रभावशाली होगा। आप चाहें तो खड़े भी न होंवे, बस कुछ शब्‍द मात्र कह दें यहाँ तक कि फुसफुसाकर इतने धीमे कि मात्र आपके नीचे बैठे अधिकारी ही सुन सकें- ऐसा हुआ तब भी पर्याप्‍त होगा, आपको यह कहने की आवश्‍यकता नहीं कि मृत्‍युदण्‍ड को जनता का समर्थन प्राप्‍त नहीं है, आवाज़ करता व्‍हील, टूटा पट्टा, गंदे फेल्‍ट की कोई चर्चा करने की आवश्‍यकता नहीं, इन सब समस्‍याओं को तो मैं स्‍वयं ही उठाऊँगा और विश्‍वास रखें कि मेरे आरोप कमाण्‍डेंट को हाल छोड़ देने को विवश नहीं भी कर पाए तो उन्‍हें घुटने टेक कर, ‘पूर्व कमाण्‍डेंट के सामने मैं नतशिर हूँ, कहने के लिए बाध्‍य कर दूँगा। यह है मेरी योजना। क्‍या आप इसे पूरा करने में मेरी सहायता करेंगे? मैं भी कैसी बात कर रहा हूँ। अरे आप तो सहायता कर ही रहे हैं” - इतना कह ऑफिसर ने अन्‍वेषक की दोनों बाँहें पकड़ उसे एकटक देख अपनी भारी साँसें छोडी। अन्‍तिम वाक्‍य उसने इतने जोर से कहा था कि सैनिक और सजायाफ्‍ता भौंचक हो उसे देखने लगे थे हालाँकि उनके पल्‍ले कुछ पड़ा नहीं था, लेकिन उन्‍होंने खाना रोक दिया था और मुँह के कौर को चबाते अन्‍वेषक को देखने लगे थे।

अन्‍वेषक के मन में अपने उत्तर को ले प्रारम्‍भ से ही कोई सन्‍देह नहीं था, उसे जीवन में इतने अनुभव हो चुके थे कि किसी भी प्रकार की अनिश्‍चितता का कोई प्रश्‍न ही उठता था, वह सज्‍जन और निडर था। इसके बावजूद सैनिक और सजायाफ्‍ता के सामने वह उतनी देर तक रुका रहा जब तक उसने एक लम्‍बी साँस भीतर लेकर छोड़ नहीं दी। अन्‍त में उसने कहा, जो उसे कहना था, “नहीं।” ऑफिसर ने सुन कई बार जल्‍दी-जल्‍दी आँखें झपकाईं, लेकिन उन्‍हें हठाया नहीं। “क्‍या आप चाहते हैं कि मैं अपनी बात विस्‍तार से आपके सामने रखूँ।” अन्‍वेषक ने प्रश्‍न किया। ऑफिसर ने बिना कुछ कहे सिर हिला दिया। “मैं आपके इस दण्‍ड-विधान से कतई सहमत नहीं हूँ”, अन्‍वेषक ने अपनी बात शुरू की, “प्रारम्‍भ से ही जब आपने मुझे विश्‍वास में लेना प्रारम्‍भ किया उसके पहले से यह तो स्‍वाभाविक ही है कि मैं विश्‍वासघात नहीं करूँगा- मैं तो प्रारम्‍भ से ही यह सोचकर हैरान था कि इसे रोकना तो मेरा कर्त्त्‍ाव्‍य बनता ही है और क्‍या मेरे प्रयासों से मुझे कुछ सफलता मिलेगी भी। मुझे यह तो ज्ञात है कि इस सम्‍बन्‍ध में किससे बात की जानी चाहिए। स्‍वाभाविक है कमाण्‍डेंट से। आपने इस तथ्‍य को और स्‍पष्‍ट कर दिया है, मेरा अपना निर्णय जहाँ का तहाँ है लेकिन मेरे प्रति व्‍यक्‍त किए गए आपके विश्‍वास से मैं अभिभूत हूँ, लेकिन मेरा निर्णय उससे कतई प्रभावित नहीं हुआ है।”

खामोश खड़ा ऑफिसर मशीन की ओर घूमा और एक राड को पकड़ झुककर डिजाइनर को कुछ इस अन्‍दाज में देखने लगा, जैसे परख रहा हो, कि सब कुछ ठीक है या नहीं। उधर सैनिक और सजायाफ्‍ता के बीच कुछ तालमेल बैठ गया था और सजायाफ्‍ता सैनिक को कुछ इशारा कर रहा था, हालाँकि पट्टे के कारण उसका हिलना-डुलना पर्याप्‍त कठिन था। सैनिक उसके सिर के पास झुका और सजायाफ्‍ता ने फुसफुसाकर उससे कुछ कहा तो सैनिक ने सुनकर उत्तर में सिर हिला दिया।

अन्‍वेषक ने ऑफिसर के पास जाकर कहा, “अभी आपको इसका ज्ञान नहीं है कि मैं क्‍या करने वाला हूँ। इस दण्‍ड-प्रक्रिया के बारे में निश्‍चित रूप से मैं कमाण्‍डेंट को अपनी राय दूँगा लेकिन कान्‍फ्रेंस में नहीं, वरन्‌ एकान्‍त में, कान्‍फ्रेंस होने तक मैं रुकने वाला भी नहीं हूँ, मैं तो कल सुबह ही चला जाऊँगा, कम से कम अपने जहाज पर तो पहुँच ही जाऊँगा।”

ऑफिसर को देखकर ऐसा लग नहीं रहा था कि उसने एक शब्‍द भी सुना है। “तो आपको यह विधि विश्‍वसनीय नहीं लगती”, उसने अपने आप से कहा और मुस्‍करा दिया जैसे बूढ़े बच्‍चों की बातों पर मुस्‍करा कर अपना काम करते रहते हैं।

“तो वह समय आ ही गया”, उसने लम्‍बी-सी साँस लेते हुए कहा और एकाएक अन्‍वेषक को चमकती आँखों के साथ देखा, जिनसे चैलेन्‍ज के साथ सहयोग की आकाँक्षा स्‍पष्‍ट झाँक रही थी। “किस बात का समय?” अन्‍वेषक ने असहज हो पूछा, लेकिन उसे कोई उत्तर नहीं मिला।

“तुम आजाद हो”, ऑफिसर ने सजायाफ्‍ता से स्‍थानीय बोली में कहा। उस आदमी को अपने कानों पर विश्‍वास ही नहीं हुआ। “हाँ, मैंने यही कहा है, तुम आजाद हो”, ऑफिसर ने दोबारा कहा। सजायाफ्‍ता का चेहरा पहली बार अचानक चमक उठा। क्‍या यह सच है? क्‍या यह ऑफिसर की कहीं कोई सनक मात्र तो नहीं है, जो किसी भी पल बदल भी तो सकती है? क्‍या विदेशी अन्‍वेषक ने उसे क्षमा दिलवा दी है? आखिर हुआ क्‍या है? उसके चेहरे पर लिखे प्रश्‍न कोई भी पढ़ सकता था। लेकिन अधिक समय तक वे वहाँ नहीं रहे। बहरहाल हुआ कुछ भी हो, वह आजाद होना चाहता था अतः छूटने की कोशिश करने लगा, जितना भी हेरो उसे छूट दे रहा था।

“तुम तो मेरे पट्टों को ही फाड़ डालोगे”, ऑफिसर चिल्‍लाया, “आराम से लेटे रहो! हम जल्‍दी ही उन्‍हें ढीला कर देंगे”, और सैनिक को सहायता करने के लिए इशारा कर स्‍वतः खोलने में जुट गया। सजायाफ्‍ता मन ही मन में हँसते हुए सिर हिलाते हुए कभी ऑफिसर को, फिर दाहिनी ओर सिर घुमाकर सैनिक को और अन्‍वेषक की ओर देखे जा रहा था।

“इसे बाहर खींचो”, ऑफिसर ने आर्डर दिया। हेरो के कारण यह बेहद सावधानी से करने की आवश्‍यकता थी। सजायाफ्‍ता ने छूटने की जल्‍दबाजी में अपनी पीठ छिलवा ली थी।

इसके बाद ऑफिसर ने उसकी ओर ध्‍यान देना बन्‍द कर दिया। अन्‍वेषक के पास पहुँच उसने चमड़े के ब्रीफकेस को खोला, उसमें रखे कागजों को पलट कर देखा और जिस कागज को ढूँढ़कर उसे अन्‍वेषक को दिखाया। “लीजिए, पढ़ लीजिए”, उसने कहा। “नहीं”, अन्‍वेषक ने कहा। “मैंने तो पहले ही बतला दिया था कि मैं इस लिपि को नहीं पढ़ सकता”। “कम से कम इसे पास से देखिए तो”, कहते वह अन्‍वेषक के इतने निकट पहुँच गया ताकि दोनों मिलकर पढ़ सकें। लेकिन जब इससे भी सम्‍भव नहीं दिखा तो उसने लिपि पर उँगली रख बतलाना शुरू किया। वह कागज को सावधानी से कुछ दूरी पर रखे था जैसे उसे छूने से ही वह खराब हो जाएगा, लेकिन वह यह भी चाहता था कि अन्‍वेषक उसे पढ़ जरूर ले। अन्‍वेषक ने ऑफिसर को प्रसन्‍न करने के विचार से पढ़ने की कोशिश तो की, लेकिन पल्‍ले कुछ पड़ नहीं रहा था। यह देख ऑफिसर ने प्रत्‍येक शब्‍द के अक्षरों को बोलकर समझाने की कोशिश की। “यहाँ ‘बी जस्‍ट' लिखा है”, ऑफिसर ने एक बार फिर कोशिश की, “अब तो आप पढ़ ही सकते हैं।” अन्‍वेषक कागज के इतने निकट चला गया कि ऑफिसर को यह आशँका होने लगी कि कहीं वह कागज को छू न दे, इसलिए उसने कागज और दूर कर लिया! अन्‍वेषक ने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की, लेकिन यह स्‍पष्‍ट था कि वह अभी भी सफल नहीं हो पा रहा था। “यहाँ बी जस्‍ट लिखा है”, ऑफिसर ने एक बार फिर दोहराया। “हो सकता है”, अन्‍वेषक ने कहा, “मैं तुम्‍हारा विश्‍वास करने को तैयार हूँ।” “फिर ठीक है”, ऑफिसर ने कुछ सन्‍तुष्‍टि के साथ कहा और कागज लिए सीढि़यों पर चढ़ने लगा और ऊपर पहुँच उसने कागज को डिजाइनर में रख दिया और व्‍हील के नटों को घुमाने लगा। यह खासा परेशानी भरा काम था, शायद छोटे-छोटे व्‍हील उसमें एक-दूसरे से जुड़े होंगे, डिजाइनर के बीच में उसका सिर कभी-कभार पूरी तरह छिप जाता था, इतना तकनीकी काम था वह।

उधर नीचे खड़ा अन्‍वेषक इस तकनीकी श्रम को एकटक देखे जा रहा था, लगातार गर्दन ऊपर करे रहने से अकड़ रही थी और ऊपर आकाश से आती तेज रोशनी से आँखें चौंधियाँ रही थीं। उधर सैनिक और सजायाफ्‍ता भी जुटे हुए थे। उस आदमी की शर्ट और पेन्‍ट जो कब्र में डाल दिए गए थे, उन्‍हें सैनिक ने बैनेट से फँसाकर निकाल लिया था। शर्ट बेहद गन्‍दी हो गई थी अतः उसके मालिक ने उसे बाल्‍टी के पानी से धो लिया। जब उसने शर्ट और ट्राउजर पहन लिया तो वह और सैनिक ठहाका लगाकर हँसने लगे क्‍योंकि कपड़े पीठ की ओर पूरी तरह से फट चुके थे। शायद सजायाफ्‍ता को लगा कि उसे सैनिक को हँसाना चाहिए इसलिए वह चीथड़े हुए कपड़ों में गोले-गोल घूमने लगा, जो जमीन पर बैठा जोर-जोर से हँसते हुए घुटनों पर हाथ मार रहा था। लेकिन साथ में खड़े सम्‍मानीय व्‍यक्‍ति के विषय में सोच उन्‍होंने हँसी को किसी तरह जल्‍दी रोक लिया।

जब ऑफिसर ने ऊपर के सभी काम व्‍यवस्‍थित ढंग से कर लिए तब मुस्‍करा कर मशीन को एक बार पूरी तरह से चैक किया ओर डिजाइनर के ढक्‍कन को बन्‍द कर दिया, जो अभी तक लगातार खुला रहा आया था, इसके बाद आराम से उतर पहले खुदी हुई कब्र को और फिर सजायाफ्‍ता के फटे कपड़ों की ओर सन्‍तुष्‍टि के साथ देख बाल्‍टी में हाथ डाल दिए धोने के लिए, लेकिन जब उसने पानी के गन्‍दलेपन को देखा तो वह निराशा से भर गया क्‍योंकि हाथ धोना उसके वश में नहीं था, अन्‍त में जब कुछ समझ में नहीं आया तो दोनों हाथ रेत के अन्‍दर डाल दिए- लेकिन उसे इससे सन्‍तुष्‍टि तो नहीं हुई, लेकिन मजबूरी में उसने इतने से ही तसल्‍ली कर ली और सीधे तन कर खड़े हो अपने यूनीफार्म की जैकेट के बटन खोल दिए। जब वह यह कर रहा था तभी दो लेडीज़ रुमाल जिन्‍हें उसने कालर में खोंस रखा था, उसके हाथों पर गिर गए। “ये रहे तुम्‍हारे रुमाल”, कहते उसने उन्‍हें सजायाफ्‍ता की ओर फेंक अन्‍वेषक की ओर देख कहा, “महिलाओं की भेंट।”

हालाँकि वह तेजी से यूनीफार्म, जैकेट और सभी कपड़े एक-एक कर उतार रहा था, लेकिन साथ ही प्रत्‍येक वस्‍त्र को प्‍यार से सहलाता भी जा रहा था, यहाँ तक कि उसने जैकेट पर लगी चाँदी की लेस पर प्‍यार से ऊँगली फेरी और एक मुड़े भाग को सीधा भी किया। लेकिन जितने प्‍यार से वह यह कर रहा था उसके बाद जितनी बेदर्दी से उन्‍हें कब्र के गड्‌ढे में फेंक भी रहा था- वह उसकी पहली हरकत से मेल नहीं खाता था। अन्‍त में उसकी देह पर बची रही थी तलवार की बेल्‍ट और उसमें रखी तलवार। उसने तलवार म्‍यान से बाहर निकाली, उसे तोड़ा और सभी टुकड़े, म्‍यान और बेल्‍ट इतनी जोर से कब्र में फेंके कि वे देर तक झनझनाते रहे।

और अब वह मादरजाद नंगा खड़ा था। अन्‍वेषक ने अपने ओंठ काटे लेकिन कहा कुछ भी नहीं। वह अच्‍छी तरह समझ रहा था कि क्‍या होने वाला है। उसे ऑफिसर को रोकने का कोई अधिकार नहीं है। यदि दण्‍ड-व्‍यवस्‍था, जिससे ऑफिसर इतने निकट से जुड़ा रहा है और जिससे वह प्‍यार करता रहा है, यदि उसका अन्‍त होना है- और सम्‍भवतः अन्‍वेषक के विरोध के परिणामस्‍वरूप- और जिस विधि के लिए ऑफिसर वचनब( और समर्पित रहा है, तो ऑफिसर का उठाया जाने वाला कदम पूर्णतः उचित है, यदि वह स्‍वयं उसकी जगह होता तो उसने भी यही किया होता।

उधर शुरुआत में तो सैनिक और सजायाफ्‍ता के सामने जो कुछ हो रहा था, उससे उनके पल्‍ले कुछ पड़ा ही नहीं, सच तो यह है कि उनका ध्‍यान इस तरफ था ही नहीं। सजायाफ्‍ता उन रुमालों को पाकर प्रसन्‍न हो रहा था, लेकिन यह खुशी उसके साथ अधिक देर तक नहीं रह पाई, क्‍योंकि सैनिक ने एकाएक उन्‍हें उसके हाथ से छीन लिया था, इसलिए सजायाफ्‍ता उन्‍हें उसके बेल्‍ट के नीचे से खींचने के चक्‍कर में था, जहाँ सैनिक ने उन्‍हें फँसा लिया था, लेकिन सैनिक बेखबर न था। अतः दोनों ही छीना-झपटी के इस खेल में मस्‍त थे। और जब ऑफिसर उनके सामने कपड़े उतार पूरी तरह नंगा हो गया तब जाकर उनका ध्‍यान उसकी ओर गया। विशेषकर सजायाफ्‍ता अपने भाग्‍य के इस परिवर्तन को देख हक्‍का-बक्‍का-सा मुँह फाड़े देखने लगा। जो कुछ उसके साथ हुआ था अब वही सब ऑफिसर के साथ होने वाला था। शायद उसकी अन्‍तिम परिणित तक। उसके विचार से यह आदेश विदेशी अन्‍वेषक ने ही दिया होगा। तो यह प्रतिशोध था। हालाँकि उसने अंत तक पीड़ा नहीं भोगी थी लेकिन उसका प्रतिशोध तो अन्‍त तक लिया जाएगा। एक चौड़ी मौन मुस्‍कराहट उसके ओठों पर फैल गई जो अन्‍त तक वैसी ही रही आई।

बहरहाल इस बीच ऑफिसर मशीन की ओर मुड़ चुका था। यह तो पहले ही स्‍पष्‍ट हो चुका था कि वह मशीन की कार्यप्रणाली को अच्‍छी तरह समझता है, लेकिन यह समझ के बाहर था कि वह कैसे उसे संचालित करेगा और मशीन उसकी बात मान चलेगी। ऑफिसर के हाथ को केवल हैरो तक पहुँचना भर था और उसे उठना था और नीचे उसके शरीर के अनुसार व्‍यवस्‍थित होना था, उसने बेड के किनारे को छुआ भर और मशीन ने थरथराना शुरू कर दिया, फेल्‍ट गेग उसके मुँह की ओर बढ़ गया। कोई भी देख सकता था कि ऑफिसर उसे मुँह में रखने का इच्‍छुक नहीं था, एक पल को उसने मुँह बिपकाया और फिर उसे मुँह में रखने को तैयार हो गया और मुँह खोल रख लिया। सब कुछ ठीक था लेकिन दोनों ओर अभी भी पट्टे बाहर लटके हुए थे, स्‍वाभाविक है उनकी आवश्‍यकता ही नहीं थी, ऑफिसर को बाँधने की जरूरत ही क्‍या थी। तभी सजायाफ्‍ता की नज़र पट्टों पर पड़ी, उसकी राय में सजा तब तक पूरी नहीं होती जब तक पट्टे बाँध न दिए जाएँ। उसने सैनिक को इशारा किया और दोनों ही ऑफिसर को बाँधने तेजी से लपके। उधर ऑफिसर ने पैर को खींचकर डिजाइनर के लीवर को दबाने की कोशिश शुरू कर दी थी, जैसे ही उसने दोनों व्‍यक्‍तियों को आते देखा तो उसने अपना पैर वापिस खींच लिया और उन दोनों को बाँधने के लिए अपने को पूरी तरह छोड़ दिया। लेकिन बँध जाने के कारण वह लीवर तक नहीं पहुँच पा रहा था और ना ही सैनिक और सजायाफ्‍ता उसे खोज पाने में सफल हो रहे थे और अन्‍वेषक अपने मन में उँगली तक न उठाने का निश्‍चय कर चुका था। लेकिन इस सबकी आवश्‍यकता ही नहीं पड़ी, जैसे ही पट्टे बँधे, मशीन ने चलना शुरू कर दिया, बेड काँपने लगा, सुइयाँ देह में चुभने लगीं, हैरो ऊपर-नीचे होने लगा। अन्‍वेषक बहुत देर तक देखता रहा और अचानक उसे याद आया कि डिजाइनर का एक व्‍हील किर्र-किर्र पहले कर रहा था, लेकिन फिलहाल मशीन से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी, यहाँ तक कि हल्‍की भनभनाहट भी सुनाई नहीं पड़ रही थी।

चूँकि मशीन शान्‍ति से चल रही थी इसलिए उस पर किसी का भी ध्‍यान ही नहीं था। अन्‍वेषक ने सैनिक और सजायाफ्‍ता की ओर देखा। दोनों में से सजायाफ्‍ता ही अधिक रुचि ले रहा था लेकिन उसका ध्‍यान मशीन पर ही अधिक था, पंजों के बल खड़े हो वह उँगली से सैनिक को विस्‍तार से समझा रहा था। यह हरकत अन्‍वेषक को नागवार लग रही थी। उसने वहाँ अन्‍त तक रहने का मन बना लिया था, लेकिन इन दोनों की हरकतों को वह बर्दाश्‍त नहीं कर पा रहा था। “जाओ, अपने घर भागो”, उसने दोनों से कहा। यह सुन सैनिक तो जाने के लिए तैयार हो गया, लेकिन सजायाफ्‍ता ने इस आदेश को सजा के रूप में लिया। उसने हाथ जोड़कर रुके रहने की प्रार्थना की, लेकिन जब अन्‍वेषक ने सिर हिला दिया तो घुटनों पर बैठ गिड़गिड़ाने लगा। अन्‍वेषक की समझ में आ गया कि मात्र शब्‍दों से काम चलने वाला नहीं है अतः उन्‍हें भगाने के उद्देश्‍य से वह आगे बढ़ने वाला ही था कि तभी उसने डिजाइनर से निकलती अजीब-सी आवाज़ सुनी तो सिर उठाकर देखा। क्‍या कॉग व्‍हील कुछ परेशानी पैदा करने वाला है? लेकिन गड़बड़ी और कहीं थी, डिजाइनर का ढक्‍कन धीरे-धीरे खुलना शुरू हुआ और फिर पूरी तरह खुल गया। एक कॉगा व्‍हील के दाँते दिखे, ऊपर उठे और कुछ ही देर में पूरा व्‍हील ही दिखने लगा, जैसे कोई अनजानी शक्‍ति डिजाइनर को निचोड़ रही हो, व्‍हील क्रमशः डिजाइनर की कगार तक निकल आया और फटाक्‌ से जमीन पर गिर कुछ दूर तक लुढ़ककर चला गया। उधर वहाँ दूसरा व्‍हील उठने लगा था, जिसके पीछे बड़े और छोटे व्‍हील उठने लगे और बाहर निकल गिरते गए, हर पल यही लगता था कि शायद डिजाइनर खाली हो गया है लेकिन तभी एक और व्‍हील उठते हुए दिखने लगता था और लुढ़क कर जमीन पर खन्‌ से गिर जाता था। इस अनहोनी को देख सजायाफ्‍ता अन्‍वेषक के आदेश को पूरी तरह भूल चुका था। कॉग व्‍हील उसे बाँधे हुए थे, वह हर बार लपकने में सैनिक को उकसाता था, लेकिन हर बार डरकर हाथ अलग कर लेता था क्‍योंकि तभी दूसरा व्‍हील कूद पड़ता था और वह सहम कर हाथ पीछे खींच लेता था।

दूसरी ओर अन्‍वेषक यह सब देख परेशान हो रहा था, मशीन के टुकड़े-टुकड़े हो रहे थे। उसका खामोशी से चलना एक भ्रम था। वह महसूस कर रहा था कि उसे ऑफिसर की सहायता करनी चाहिए क्‍योंकि ऑफिसर तो कुछ भी करने में असमर्थ था। चूँकि कॉग व्‍हील उसका पूरा ध्‍यान खींचे हुए थे इसलिए मशीन के दूसरे भागों की ओर उसका ध्‍यान जा ही नहीं पा रहा था। लेकिन अब चूँकि अन्‍तिम कॉग व्‍हील डिजाइनर से बाहर निकल चुका था, वह हैरो की ओर झुका तो उसके सामने एक नया लेकिन दुःखद आश्‍चर्य सामने था, हैरो ने लिखना बन्‍द कर दिया था, बस छेद किए जा रहा था और बेड देह को घुमा नहीं रहा था, केवल सुइयों के सामने काँप भर रहा था। अन्‍वेषक सम्‍भव हस्‍तक्षेप करना चाह रहा था अर्थात्‌ मशीन को बन्‍द करना चाह रहा था, क्‍योंकि जो कुछ हो रहा था, वह पीड़ा न थी, जो मशीन का उद्देश्‍य था, वरन्‌ हत्‍या थी। उसने हाथ बढ़ाए लेकिन तभी हैरो उठा और उसके साथ देह भी एक और झुक गई, जैसा उसे बारहवें घण्‍टे में करना चाहिए था। देह से खून हजारों झरनों की तरह बह रहा था, पानी के जेटों के काम बन्‍द कर देने से उसमें पानी नहीं मिल रहा था। साथ ही मशीन ने अपना अन्‍तिम काम भी नहीं किया था, देह लम्‍बी सुइयों से बाहर नहीं फिंकी थी वरन्‌ रक्‍तरंजित देह कब्र में गिरने की जगह ऊपर लटकी हुई थी। हैरो अपनी पुरानी स्‍थिति में आना चाहता था, लेकिन जैसे उसे इस बात का अहसास हो कि अभी वह बोझ मुक्‍त नहीं हुआ है इसलिए वह कब्र के ऊपर रुका हुआ था। “देख क्‍या रहे हो आओ मेरी सहायता करो”, अन्‍वेषक ने उन दोनों से चिल्‍लाकर कहा और आगे बढ़ ऑफिसर के पैर पकड़ लिए। वह पैरों को पकड़ धक्‍का देना चाहता था, साथ ही चाहता था कि दोनों दूसरी ओर जा सिर को पकड़ लें, केवल इसी प्रकार ऑफिसर को धीरे-धीरे सुइयों से मुक्‍ति मिल सकती थी। लेकिन वे दोनों कुछ भी निश्‍चित नहीं कर पा रहे थे, बल्‍कि सजायाफ्‍ता तो मुड़ भी चुका था। अन्‍वेषक ने उनको यों ही खड़ा देखा तो वह उनके पास पहुँचा और दोनों को सिर की ओर धकेल दिया। लाख न चाहने के बावजूद उसकी नज़र लाश के चेहरे पर चली गई, वह वैसा ही दिख रहा था जैसे जीवित रहते था, वहाँ मुक्‍ति का कोई भाव न था जो मशीन से दूसरों को प्राप्‍त हुआ था, ऑफिसर के भाग्‍य में वह नहीं बदा था, उसके दोनों ओंठ कसकर बन्‍द थे, खुली आँखों में वही भाव था जो उसके जीवित रहने पर था, उनमें शान्‍ति और आत्‍मविश्‍वास था और माथे के बीचों-बीच बड़ी कील बाहर निकली हुई थी।

जब अन्‍वेषक और सैनिक तथा पीछे चलता सजायाफ्‍ता काला पानी की बस्‍ती के पास पहुँचे तो सैनिक ने एक मकान की ओर हाथ से इशारा करते हुए कहा, “वो रहा टी-हाउस।”

टी-हाउस का ग्राउण्‍ड-फ्‍लोर गहरा, नीचा और कन्‍दरा जैसा था, दीवारें और सीलिंग धुएँ से काली थीं। वह सड़क की लम्‍बाई में बना था और कॉलोनी में बने दूसरे मकानों से उसमें कोई खास अन्‍तर न था। सभी जर्जर और खण्‍डहरनुमा मकान कमाण्‍डेंट के राजकीय महल के पास तक फैले थे। उन्‍हें देख अन्‍वेषक को ऐतिहासिक परम्‍परा की अचानक याद आ गई और उस युग की शक्‍ति का उसमें अहसास जाग गया। वह टी-हाउस के भीतरी हाल के भीतर चला गया जहाँ खाली टेबलें रखी थीं और जो सड़क के ठीक सामने था, उसके साथी उसके साथ थे, भीतर पहुँच उसने अन्‍दर से आती सर्द हवाओं को महसूस किया। “बूढ़े को यहीं दफनाया गया है”, सैनिक ने उसे बतलाया, “पादरी उसे चर्च में जगह देने को तैयार ही न था। इधर लोग परेशान थे कि उसे आखिर कहाँ दफनाया जाए, अन्‍त में उसे यहीं पर दफना दिया था। यह बात ऑफिसर ने आपको नहीं बतलाई होगी- यह मैं जानता हूँ क्‍योंकि इसको ले वह बेहद शर्मिन्‍दगी महसूस किया करता था। हालाँकि उसने कई बार रातों में उसे यहाँ से निकालने की कोशिशें की थीं लेकिन हर बार उसे यहाँ से भगा दिया गया था।” “कब्र कहाँ है।” अन्‍वेषक ने प्रश्‍न किया क्‍योंकि उसे सैनिक की बात पर विश्‍वास ही नहीं हो रहा था। प्रश्‍न सुनते ही सैनिक और सजायाफ्‍ता हाथ से इशारा करते उसके आगे तेजी से बढ़ गए जहाँ कब्र थी। वे अन्‍वेषक को पिछली दीवार तक ले गए जहाँ टेबलों पर यहाँ-वहाँ कुछ मेहमान बैठे थे। स्‍पष्‍ट लग रहा था कि वे सभी बंदरगाह के कर्मचारी थे, क्‍योंकि वे तन्‍दुरुस्‍त और चमकती दाढि़यों वाले थे। उनमें से एक भी जैकेट नहीं पहने था उनकी कमीजें फटी हुई थीं, वे गरीब सीधे-सादे लोग थे। जैसे ही अन्‍वेषक उनके पास पहुँचा उनमें से कुछ कुर्सियाँ छोड़ दीवार से सटकर खड़े हो उसे घूरने लगे। “कोई अजनबी है”, उनके बीच फुसफुसाहट फैलने लगी, “वो कब्र देखना चाहता है।” उन्‍होंने बिना कहे एक टेबल सरका दी और वहाँ वास्‍तव में कब्र का पत्‍थर लगा था। वो साधारण पत्‍थर था और इतना नीचे था कि आसानी से टेबल से ढक जाता था, उस पर बेहद छोटे अक्षरों में लिखा था। अन्‍वेषक ने घुटनों के बल बैठ उन्‍हें पढ़ा। उस पर लिखा था, “यहाँ आराम कर रहे हैं पुराने कमाण्‍डेंट। उसके अनुयायी जो नाम रहित रहना पसन्‍द करते हैं, उन्‍होंने यह कब्र खोदी थी और यह पत्‍थर लगाया था। एक भविष्‍यवाणी के अनुसार तयशुदा समय बीत जाने के बाद कमाण्‍डेंट एक बार पुनः जीवित होगा और अपने अनुयायियों का नेतृत्‍व करेगा और यहीं से काला पानी की इस कॉलोनी पर विजय प्राप्‍त करेगा। विश्‍वास रखो और इन्‍ताजार करो।” जब अन्‍वेषक ने इसे पढ़ लिया और खड़ा हो गया तो उसने पास खड़े लोगों को मुस्‍कराते देखा, उन सभी ने उसे पढ़ रखा था और उसे बकवास मानते थे और उम्‍मीद कर रहे थे कि वह भी उनकी राय पर सहमति व्‍यक्‍त करेगा। अन्‍वेषक ने इस सब पर कोई ध्‍यान नहीं दिया, अपने जेब से उसने कुछ सिक्‍के निकाले और वहाँ खड़े लोगों को बाँट दिए और तब तक अपने स्‍थान पर खड़ा रहा जब तक टेबल को दोबारा कब्र पर रख नहीं दिया गया और उसके बाद टी हाउस से बाहर निकल वह सीधे बन्‍दरगाह की ओर चल दिया।

सैनिक और सजायाफ्‍ता को टी-हाउस में कुछ परिचित मिल गए थे, जिन्‍होंने उन्‍हें रोक लिया था, लेकिन उन्‍होंने जल्‍दी ही उनसे छुटकारा पा लिया होगा क्‍योंकि अभी अन्‍वेषक नावों की ओर उतरती सीढि़यों पर आधी दूरी पर ही पहुँचा था कि वे तेजी से चल उसके पास पहुँच गए। शायद वे उम्‍मीद कर रहे थे कि वे उन दोनों को अपने साथ ले जाने के लिए मना लेंगे। जब अन्‍वेषक नाव वाले से स्‍टीमर तक जाने के किराए को तय कर रहा था, तब वे तेजी से सीढि़याँ उतर रहे थे। चूँकि वे चिल्‍लाने का दुस्‍साहस नहीं कर सकते थे, इसलिए वे खामोशी से उतरते गए। लेकिन इसके पहले कि वे सीढि़याँ उतर उसके पास पहुँचे अन्‍वेषक बोट में बैठ चुका था और नाव वाला किनारे को छोड़ रहा था। वे आराम से बोट में कूद सकते थे लेकिन अन्‍वेषक ने एक गठान लगी रस्‍सी नीचे से उठाई और उन्‍हें धमकाकर कूदने से रोक दिया।

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अनुवाद - इन्द्रमणि उपाध्याय

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रचनाकार: फ्रैंज काफ़्का की कहानी - काला पानी में
फ्रैंज काफ़्का की कहानी - काला पानी में
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