लंबोधरन पिल्लै. बी. का आलेख - ‘ वापसी ’ में पारिवारिक जीवन समस्याएँ

SHARE:

  श्री मती उषा प्रियंवदा हिन्दी के नयी पीढी के ध्यान आकर्षित कहानिकारों में एक है I उनकी एक चर्चित कहानी है -' वापसी ' I पारिवारिक ...

clip_image002

 

श्रीमती उषा प्रियंवदा हिन्दी के नयी पीढी के ध्यान आकर्षित कहानिकारों में एक है I उनकी एक चर्चित कहानी है-' वापसी ' I पारिवारिक जीवन के विडम्बनाओं के कारण उठने वाले शिथिलताएँ आजकल भयानक रूपधारण कर लिया है I इसका यथास्थित् वर्णन इस कहानी में मिलता है I वर्तमान काल में कुटुम्ब जीवन संकुचित एवं स्वार्थता से भरी हुई दिखायी पडती है I इस वक्त इस कहानी का पुनः अध्ययन हमारा दायित्व बन जाता है I

clip_image004

वापसी ' ललित-कोमल भाषा एवं शैली में रचि गयी, मानव जीवन की अत्यन्त सूक्षम तथा क्षण-प्रतिक्षण की क्रिया-कलापों पर दृष्टी डालने वाली मनोरम कहानी है I जिस में लेखिका की मनोवैञानिक जानकारी प्रकट होती है I

clip_image006

विवेच्य कहानी के केन्द्र कथापात्र गजाधर बाबु है I वे अपने जीवन के अधिकाँश समय यानि सुवर्ण काल भारतीय रेलवे में नौकरी कर, अवकाश प्राप्त करके घर लौटने वाला है I गजाधर अपने पत्नि-बच्चों से अलग होकर सुदूर पर काम करते समय उनका विचार परिवार के नाना प्रकार के विषयों से बने गये विषमों पर मिल जुलकर रहते थे I वह अपने पारिवारिक जीवन के आरंभिक दिनों में पत्नी- बच्चों सहित रेलवे क्वाटर्स पर रहते थे I

रेलवे जैसे हमारे सरकार विभाग तक कभी कभी उस पर काम करने वाले कर्मचारियों के वैयक्तिक तथा पारिवारिक जीवन पर दृष्टी नहीं डालता है I गजाधर बाबु का स्थिति भी दूसरा नहीं है I बीच बीच में होने वाला तबादला कर्मचारियों के जीवन को संघर्ष निर्भर बना देता है I वापसी ' में चित्रित पहला समस्या अधिकारी वर्ग अपने कर्मचारियों पर करने वाला यह अनीतिपरक मनोभाव है I

clip_image008

गजाधर बाबु को रेलवे में कितना दायित्व है, उतना या कभी कभी उससे ज़्यादा उत्तरवादित्व पत्नी और पिता होने के नाते सपरिवार से करना आवश्यक है I किन्तु अधिकारियों के अन्धापन के कारण उन्हें अपना दायित्व निभाने को नहीं होता है I हाँ, रेलवे उन्हें वेतन देता है अवश्य, किन्तु व्यक्ति को और उनके परिवार चलाने को आज़ादी नहीं देता है I मनुष्य सामाजिक जीवि है, उन्हें समाज और परिवार से पूर्णरूप में अलग होकर जीना असाध्य है I सरकारी हो या गैर सरकारी संस्था, उन्हें ऊपर कहे गये बात तनिक भी शोभा नहीं देता है I परिवार से बिछूडने के कारण गजाधर का दिन-रात मुसीबत-भरी बन सकती है I परिवार से महीने में दो तीन दिन तक सीमित मुलाकात, पारिवारिक जीवन शिथिल होने को और क्या कारण चाहिए ?

गजाधर बाबु अच्छा खाता नहीं है, पीता नहीं है और अच्छा नहीं पहनता है I वे रात- दिन मेहनत करता है, परिवार चलाने केलिए I पैसा जुडा जुडाकर मकान बनाने को, बच्चों को पढाने को, अच्छा कपडा पहनाने को और उसे खिलाने-पिलाने को खर्च कर देता है I इस प्रकार बहुत कुछ सहने के पश्चात् अपने पत्नी-बच्चों और पुत्र वधु के साथ खुशी-मज़ाक के साथ घर पर रहने का उच्च लालसा लेकर लौटता तो उन्हें ञात होता है कि अपनी सारी मोहों का स्थान मोहभंग के हिसाब से जुडा हुआ है, सब कुछ व्यर्थ है I उनका आगमन घरवालों को तनिक भी नहीं रुचता है I सारी सदस्यों की वितृष्णा पत्नी के मुँह से प्रकट होती है I बाकी clip_image010

लोगों के दैनाँदिन व्यवहार भी इसकी समर्थन करती है I किसी की चेहरा और वाणी उन्हें साफ एवं उपयुक्त नहीं बन सकती Iगजाधर को सोने और बैठने केलिए एक कमरा तक नहीं मिला है I जिन लोगों के जीवन की तानाबाना बुनाने केलिए आजीवन घोर से घोरतम लडाई लडे, उन्हें अपनी उपस्थिति की आवश्यकता नहीं, अनुपस्थिति की आवश्यकता होती है I यहाँ ' वापसी ' का दूसरा समस्या प्रकट होता है I हर माता-पिता हर समय, विशेषकर बुढापे में अपने सन्तानों की सामीप्य चाहते है I हर सन्तान के मन में

 clip_image012

अपने माँ-बाप को साथ लेकर रहने का उदात्त मनोभाव होना चाहिए I दुःख की बात है कि ' वापसी ' के अमर हो, कान्ती हो या अन्य लोग हो, उनके दृष्टी में गजाधर बाबु अनचाहा व्यक्ती है I बाबु के प्रति किसी के मन में आदर ही नहीं, तनिक भी प्यार तक नहीं है I अपनी आज़ादी भरी भौतिक जीवन जगत् पर बाधा डालने केलिए आया हुआ एक दुष्ट है यह, गजाधर का स्थान इससे बहत्तर नहीं है I वापसी ' में वर्तमान मनुष्य के ये व्यापारिक, व्यवसायिक और स्वार्थतापूर्ण चिन्ता एवं व्यवहारों का आविष्कार आरंभ से अंत तक पाया जाता है Iमाता-पिता को खिलाने पिलाने का एक यन्त्र समझकर, उनका आमदनी अच्छा और सूरत बुरा, मनोभाव के साथ व्यवहार करने वाला सन्तान वास्तव में भारतीय परम्परा के नहीं है, पाश्चात्य सभ्यता के संपर्क से आया हुआ है, और क्या ?

clip_image014

 भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता उदात्त और अनुकरणीय है I इसमें माता- पिता को प्रम- आदर ही नहीं, ईश्वर तुल्य समझकर अर्चना-आराधना भी करता है, ऐसा एक ज़माना था Iबच्चे, जन्मदाता को आँखों का तारा मानता था I व्यवसायिक मनोभाव और स्वार्थता ने हमारी संस्कृति की कुछ सद्वृत्तियों को जड से तोड डाला I हमारी संस्कृति एवं सभ्यता की अमूल्य वरदानों को खो कर हम आगे बढ जाते है I कहाँ की ओर ? माता-पिता संतानों के अनुपयोगी चीज़ या बध्य है- ऐसा भाव नयी पीढि में पैदा होने का अनेक कारण होंगे, इस पर विचार- विमर्श करके सीधा रास्ता दिखाने का दायित्व समाज को होता है I बुढापे में अपने पत्नि तथा सन्तानों से पूरी अपमान और अवहेलना सहने वाला 'वापसी ' का गजाधर बाबु इस प्रकार के अनेक चिन्ताओं एवं सवालों को हमारे सम्मुख उठाते है I

घर पर पहुँचते वक्त गजाधर बाबु को मालुम होता है कि पूरी पारिवारिक वातावरण पर शिथिलता है I उनकी बेटी बसंती कालेज पर पढती है I वह युवती होकर भी बूढी माँ को थोडी भी सहायता नहीं करती I यह भी नहीं, रसोई की कोई काम तक नहीं जानती है I कुछ समय मिलती तो सीधे पडोसी के घर की ओर जाती है I उधर, पडोसिन शीला के यहाँ दो नौजवान लडके है I बसन्ती की यह आज़ादी भरी हुई आना-जाना उसकी माँ रोकती तो उन्हें नहीं रुचती है I अतः वह अपनी सवारी छोड नहीं सकती है I एक दिन पिताजी गजाधर बाबु बेटी बसंती को रोकती है I उनसे भी उनकी प्रतिक्रिया दूसरी नहीं होती I यहाँ ' वापसी ' की तीसरी विस्फोटनात्मक समस्या उभर कर आती है I युवा-पीढि कभी कभी यह भूल जाती है कि बडे लोग जीवन की गति विधियों की सच्ची अनुभवी है I यहाँ भी नहीं, संसार के सब समाज पर बडे लोग छोटे के मार्गदर्शक बनकर रहता है I जिस घर या समाज पर ऐसा नहीं चलता, उस समाज का अधःपतन अवश्यंभावी है I हम यहाँ यह देखता है कि युवा-पीढि यौवन के आवेग में स्वयं अपना रास्ता खोलकर आगे जाता है I अधिकाँशतः यह निर्णय उन्हें आपत्ति पर पहूँचाती है I आजकल के युवक इस प्रकार निर्णय करता है, इसके पीछे इंटरनेट, मोबैल फोन जैसे उपकरणों की बडी प्रभाव है I हम सबों को मलुम है कि ये उपकरण हमारे बच्चों के अधिकाँश समय को काट ले जाता है I

अपना घर पराया लगना एक व्यक्ति के जीवन की कितनी दयनीय अवस्था है ? गजाधर बाबु का यह मन बदलाव अपनी पत्नी के कारण तीव्र होता है I क्योंकि उनकी पत्नी वर्षों पूर्व उसे प्यार-स्नेह से अभिषेक कर दिया था, आज भी वैसा एक उपस्थिति गजाधर चाहता, किन्तु पत्नी

 clip_image016

आज उनके प्रति अजनबीपन का रूखा व्यवहार करती है I यह ध्यान देना योग्य है कि गजाधर किसी के भी अनुचित कार्य कलापों पर दखल नहीं दे सकते, फिर भी घर का नौकर तक उनका शत्रु बन सकता है I हर वेला में घर का अपरिचितत्व गजाधर को पीछा कर रहा है I अपमान और अकेलापन सह सहकर ज्वलते समय उन्हें दूर की रामजीलाल की चीनि मिल की याद आता है, जो रेलवे के नौकरी से छूटते समय गजाधर बाबु अपने मिल पर काम करने का आग्रह रामजी लाल ने प्रकट किया था I

clip_image018

 वापसी ' का चौथा समस्या अर्थाभाव से बनी हुई समस्या है I गजाधर बाबु रेलवे पर काम करते समय उन्हें अच्छ वेतन मिलता था I घर के सदस्य किसी प्रकार का आर्थिक संकट नहीं झेलता था I किन्तु अवकाश पा जाने के करण अब उनकी आमदनी में भारी कमी होती है I घर की खर्च पहले के जैसे अनयंत्रित रूप में बढ जाती तो सब काम संभालने में गजाधर असर्थ बन सकता है I वे यह बात अपनी पत्नी को समझाने का प्रयास करता है I किन्तू पत्नी इस सत्य को उसी अर्थ में स्वीकार करने केलिए तैयार नहीं होती है Iगजाधर के घर पर घटित होने वाली यह स्थिति हमारे यहाँ के अवकाश पाप्त कर गये अधिकाँश लोग सामना करता है I यह भी सब समझ लेना चाहिए कि नौकरी करते वक्त कितना वेतन मिलता, उतना पेंशन नहीं मिलता है I इसलिए आगे के खर्च में सावधानी और रोक-टोक आवश्यक है I इधर गजाधर को करने को दूसरा उपाय नहीं है I घर पर नौकर है, उनका स्वभाव है कि सामान केलिए बाज़ार की ओर ले जाने वाले पैसे से चोरी करना I एक ओर चोरी, दूसरी ओर नौकरी में उदासीनता और तीसरी ओर मालिक का धनाभाव, हाँ, सब घरवालों के समान गजाधर ने उसे निकलवा देता है I उस दिन संध्या में गजाधर का बेटा अमर आकर नौकर का आवाज़ लगाता तो बहु ने बताया कि आपका पिता उसका नाता तोड डाला I अमर क्रुद्ध हो जाता है I यहाँ ' वापसी ' का एक और समस्या उठ खडा होता है I अमर अपने कमरे में पत्नी के साथ बैठकर कुछ निश्चय-निर्णय लेता है I अगले दिन बेटा एवं पतेहु घर छोडकर किराये के मकान लेकर रहने का निर्णय प्रस्तावित किया I गजाधर को मन पर तीर पडने समान लगा I मानसिक संघर्ष के कारण वह हताश हो जाता है I जिस मोह लेकर लौटाया, वह मोह मिट्टी के बर्तन के समान धरती पर गिरकर टूट पडा I परिवार की एकता, उस एकता से उपजने वाली प्यार-दुलार, सुख-दुःख आदि सब उनके आँखों के आगे घूमने लगे I परिवार की ऐक्य के जगह अनेक्य व्याप्त हुआ I गजाधर बाबु यह निष्कर्ष पर पहुँचते है कि इसका कारण और कोई नहीं, स्वयं ही है I

clip_image020

गजाधर बाबु सोचता है कि क्या बुढापा पाप है ? क्या दूर- विदूर के नौकरी से अवकाश ग्रहण कर अपने घर पर लौटना पाप है ? क्या आधुनिक काल में बेटा, बेटियों और पतेहु के दृष्टिकोण में हर पिता पापी है ? उनके मन पर इस प्रकार के अनेक सवाल उठते है I यह उनका ही नहीं, अनेक लोगों के समस्या का रूप धारण कर हमरे पारिवारिक जीवन समस्या बनकर चारों ओर फैलते है I

कहानी के अंत में रामजीलाल के चीनि मिल की ओर जाते समय गजाधरबाबु फिर एक बार अपने पसीने से बनाये गये घर को देखता है I अपने लोगों के बीच पराया बनकर रहने की पीडा उनकी चेहरे पर प्रतिफलित होती है I पूरे संसार में अजनबी आदमी होकर गजाधर, मन पर भरी हुई मामलों पर जूझते हुए लौटते वक्त, पाठकों के ह्रदय में एक हमदर्दी पैदा होती तो उसे मनुष्य सहज स्वभाविक प्रक्रिया समझना चाहिए clip_image022I

कहानी के अंत में उनकी पत्नि, बेटा नरेन्द्र से कहती है - ' अरे नरेन्द्र, बाबुजी का चारपाई कमरे से निकल दे I उसमें चलने की जगह नहीं... ' यह वाक्य इस कहानी की मुख्य समस्या और संवेदना को पूर्ण रूप में उद्घाटित करने केलिए पर्याप्त है I बाकी सब सौर मंडल में मुख्य ग्रह के चारों ओर अन्य ग्रह घूमन के जैसा है I

Written by LEMBODHARAN PILLAI.B ,

RESEARCH SCHOLOR, UNDER THE GUIDANCE OF

PROF.(Dr.) K.P. PADMAVATHI AMMA,

KARPAGAM UNIVERSITY, COIMBATORE, TAMILNADU, INDIA.

लम्बोधरन पिल्लै. बी, तमिलनाडु कॉयम्बत्तूर करपगम विश्वविद्यालय में

प्रो.(डा.) के.पी.पद्मावती अम्मा के मार्गदर्शन में पी.एच.डी. केलिए शोधरत

लंबोधरन पिल्लै.बी का जन्म 20 मई 1965 को कोट्टारकरा, कोल्लम, केरल में हुआ। पिता- कृष्ण पिल्लै एवं माता- भगीरथि अम्म । पत्नि : श्रीलेखा नायर , घनश्याम नायर पुत्र , नक्षत्र नायर पुत्री शिक्षा: एम.ए. हिन्दी, एम.फिल एवं करपगम विश्वविद्यालय (कोयम्बटूर) से पी.एच.डी (शोधरत) । सम्प्रति: प्रोफसर (हिंदी), एम.ए.एस. कालेज, मलप्पुरम, केरल पिछले 15 वर्षों से हिन्दी और मलयालम में कहानी, उपन्यास, आलेख और कविता लिखकर साहित्य क्षेत्र में सक्रिय । मलयालम और हिन्दी के साप्ताहिकों में रचनाएँ प्रकाशित । मनीषि,तपस्या आदि पुरस्कारों से पुरस्कृत ई-मेल: blpillai987@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: लंबोधरन पिल्लै. बी. का आलेख - ‘ वापसी ’ में पारिवारिक जीवन समस्याएँ
लंबोधरन पिल्लै. बी. का आलेख - ‘ वापसी ’ में पारिवारिक जीवन समस्याएँ
http://lh3.ggpht.com/-1hV-FBXrjdo/UqXxao37ICI/AAAAAAAAW_k/jjVRLzBDZ18/clip_image002%25255B3%25255D.jpg?imgmax=800
http://lh3.ggpht.com/-1hV-FBXrjdo/UqXxao37ICI/AAAAAAAAW_k/jjVRLzBDZ18/s72-c/clip_image002%25255B3%25255D.jpg?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2013/12/blog-post_9.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2013/12/blog-post_9.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content