भविष्य में इस दुनिया में सिर्फ दो तरह के इंसान होंगे – प्रौद्योगिकी समर्थ इंसान और प्रौद्योगिकी वंचित इंसान। श्रम और संपत्ति का बंटवारा भ...
भविष्य में इस दुनिया में सिर्फ दो तरह के इंसान होंगे – प्रौद्योगिकी समर्थ इंसान और प्रौद्योगिकी वंचित इंसान। श्रम और संपत्ति का बंटवारा भी इंसान के प्रौद्योगिकी समर्थ होने के आधार पर होगा। जैसाकि हॉलीवुड की विज्ञान फंतासी फिल्मों में दिखाया जाता है, यह प्रौद्योगिकी समर्थ इंसान किसी सुपर मानव की तरह ही होगा। उसके हाथ किसी स्कैनर की तरह काम करेंगे। उसके मस्तिष्क में चिप लगी होगी जो सैंकड़ों GB डाटा पलक झपकते ही अपलोड और डाउनलोड कर लेगी। उसकी ऑंखें रात के अंधेरे में भी आसानी से देख पायेंगी। वह कई घंटे तक बिना साँस लिए और कई दिन तक बिना कुछ खाये – पिये जीवित रह सकेगा। शायद वह कभी बीमार ही न हो या बीमार होने पर किसी एंटीवायरस स्कैनर द्वाराह उसे पलक झपकते तंदुरुस्त किया जा सकेगा। हो सकता है कि भविष्य में यह प्रौद्योगिकी समर्थ इंसान उड़ने या ओझल होने की क्षमता भी विकसित कर ले।
सुपरमानव को लेकर ऊपर कही बातें कतई कपोल कल्पना नहीं हैं। जिन पाठकों ने आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस, कॉकलियर इंप्लांट, जी.पी.एस., रोबोटिक सर्जरी, नाइट विज़न, मशीन असिस्टेट ट्रांसलेशन, ट्रांसप्लांटेशन, नैनो टैक्नोलॉजी, जीन थैरेपी, डी.एन.ए. सीक्वेंसिंग इत्यादि शब्द सुने हैं या इनके बारे में कुछ पढ़ा है, वे सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि यह प्रौद्योगिकी समर्थ मानव या सुपरमानव कपोल कल्पना नहीं है। विज्ञान पहले से ही इस दिशा में अनुसंधानरत है।
दूसरी ओर प्रौद्योगिकी वंचित इंसान होंगे जो उसी तरह अपने अस्तित्व के लिए जूझते रहेंगे जैसे आज का निर्धन मजदूर और किसान जूझ रहा है। यह वंचित इंसान प्रौद्योगिकी समर्थ इंसान का गुलाम होगा। इससे श्रम साध्य कार्य जैसे कृषि, सफाई, भवन निर्माण... इत्यादि कराये जायेंगे। यह आज ही की तरह बीमार भी पड़ता रहेगा बल्कि ज्यादा बीमार पड़ेगा क्योंकि प्रौद्योगिकी समर्थ इंसान अपने उपभोग स्तर से वातावरण में जो जहर घोलेगा, वह इन्हें जल्दी-जल्दी बीमार करेगा। ये निरीह इंसान बाढ़, भूकंप, महामारी, जाड़ा, गर्मी इत्यादि आपदाओं में सर्वाधिक एवं सहज रूप से प्रभावित होगा। कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि इस प्रौद्योगिकी वंचित इंसान की हालत किसी बधुआ मजदूर, गुलाम या पालतू जानवर की तरह होगी।
बिडंवना यह होगी कि ये निरीह इंसान अपने शोषण और नारकीय हालातों के विरोध में आवाज भी नहीं उठा पायेगा क्योंकि प्रशासन, सेना, पुलिस से लेकर मीडिया तक सभी प्रौद्योगिकी समर्थ इंसानों के अधीन होंगे। प्रौद्योगिकी समर्थ इंसान शारीरिक रूप से भी दस-बीस निरीह इंसानों पर भारी पड़ेगा। संसाधनों के बंटवारे में निरीह इंसान को सिर्फ अवशेष या जूठन ही मिलेगी। वंचितों या समर्थों के बीच की ये खाई इतनी व्यापक होगी कि अपवाद की संभावना ही नहीं होगी। फिर किसी रिक्शा चलाने वाले मजदूर का बेटा आई.ए.एस. नहीं बन पायेगा। बनना चाहेगा तब भी नहीं। परिस्थितियां ही उसे बनने नहीं देगी। पग-पग पर प्रौद्योगिकी वंचित इंसान को जिल्लत और शर्मिंदगी का सामना करना पड़ेगा।
कुछ अच्छी बातें भी हो सकती हैं। हो सकता है कि जाति-पाति, धर्म-संप्रदायों का अस्तित्व समाप्त हो जाये। और अंतत: दो ही वर्ग रह जायें – समर्थ (Those who have) और वंचित (Those who don’t have)। शायद भ्रष्टाचार भी समाप्त हो जाये क्योंकि इंसान की हर हरकत पर सैकड़ों पहरे होंगे। वह चाहकर भी भ्रष्टाचार नहीं कर पायेगा।
ये भी जान लीजिए कि ये दिन अब ज्यादा दूर नहीं हैं। जो व्यक्ति जरा सी भी वैज्ञानिक सोच और दुरुस्त स्मृति रखते हैं, वे आसानी से तुलना कर सकते हैं कि आज से सिर्फ 10 वर्ष पहले के जीवन और आज के जीवन में कितना बदलाव आया है। विकास की ये दर अब और तेज़ हो गयी है। विज्ञान की रफ़्तार का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रत्येक 05 वर्ष में मनुष्य मात्र के पास एकत्र समस्त जानकारी दोगुनी हो जाती है। सरल शब्दों में कहें तो जितना ज्ञान और जानकारी मनुष्य ने 5000 वर्षों के अपने ज्ञात इतिहास में हासिल किया है, उतना अगले पांच साल में इसमें जुड़ जाएगा।
लेकिन विज्ञान की खोजों को लेकर सकारात्मक धारणा न रखने वाले एवं “ओल्ड इज़ गोल्ड” के सूत्रवाक्य को थामकर सभी तरह के परिवर्तनों को स्वीकार न कर पाने लोगों पर कहा गया अकबर इलाहाबादी का शे'र बेहद मौजूं है -
“मज़हब कभी साइंस को सिज़दा न करेगा,
इंसान उड़ भी लें तो ख़ुदा नहीं हो सकते।”
हमारे समाज में ऐसे इंसानों की कोई कमी नहीं है जो यह मानते हैं इंसान विज्ञान की कितनी भी ऊंची छलांग लगा ले, पुरातन विचार या मान्यतायें यथावत बनी रहेंगी। ऐसे लोग प्राय: यह भी मानते हैं कि किसी भी तरह के आमूलचूल बदलाव में कुछ सौ साल का समय तो लगता ही है और उनके जीवनकाल में ऐसा बदलाव नहीं होने जा रहा। ऐसे लोगों की संख्या भी बहुतायत में है जो प्रौद्योगिकीय विकास को केवल विनाश का पर्याय मानते हैं। किसी भी तरह के परिवर्तन को लेकर ये लोग प्राय: असहिष्णु ही होते हैं। प्रौद्योगिकी वंचित इंसान बनने के सबसे अधिक सुपात्र यहीं लोग हैं।
आज के दौर में जो व्यक्ति कंप्यूटर या टचस्क्रीन मोबाइल के प्रयोग से परहेज करते हैं या डरते हैं, वे समझ लें कि आने वाले दिनों में ये दुनिया उन्हें हाशिये पर ढकेल देने वाली है। और ये भी तय है कि आपमें से कोई भी प्रौद्योगिकी वंचित इंसान की श्रेणी में नहीं जाना चाहेगा। अब ये समय की आवश्यकता है कि विज्ञान के प्रयोगों और आविष्कारों के प्रति हम सकारात्मक धारणा रखें तथा अपने ज्ञान और कौशल को बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयासरत रहें। अब भी समय है, कहीं ऐसा न हो कि आप सोलह सोमवार का व्रत ही करते रह जायें.............
(डॉ. परितोष मालवीय)
सत्य आंकलन मालवीयजी....हिंदी वालों को भी विज्ञान एवं तकनीक से जोडने की जरुरत है..और करने दो कुछ लोगों को ब्रत, मित्र कुछ तो अन्न बचता है।..
जवाब देंहटाएंसादर
डॉ राजीव रावत
समर्थ और वंचित को शायद अंगरेजी के बगैर लेखक के लिए समझाना मुश्किल था|
जवाब देंहटाएं