होली का चंदा माँगने गुप्ताजी के लकड़ीटाल से गुजरा तो दूकान का दरवाजा पूरे छः साल बाद पहली बार खुला दिखा..अन्दर झाँका तो चंदा को घर में देख ख़...
होली का चंदा माँगने गुप्ताजी के लकड़ीटाल से गुजरा तो दूकान का दरवाजा पूरे छः साल बाद पहली बार खुला दिखा..अन्दर झाँका तो चंदा को घर में देख ख़ुशी से फूला न समाया..अचानक उसे देख अचंभित रह गया.. पर चकोर को याद कर मन अवसाद से भर गया..पिछले छः सालों से होली का चंदा माँगने मित्रों के साथ मैं निकलता हूँ.. हर साल यही काम पहले चकोर किया करता था..बड़ा ही धांसू किस्म का खूबसूरत बांका जवान था चकोर..शैतानी और उद्दंडता के लिए पूरे शहर में बदनाम...लड़कियां उसे आते देख तीन गज दूर हट जाया करतीं..पर मैं जानता था कि लड़कियों के प्रति उसके मन में काफी सम्मान था..वह फ़िकराकसीं या छेड़खानी तो कभी करता ही नहीं था बल्कि जिन दोस्तों की गाडी (मुहब्बत की गाडी) अटक-भटक जाती , उसे दिशा देता..उनकी भरसक मदद करता.. उनके लिए जान की बाजी लगा देता.. मारधाड़ ..धमकी-चमकी ..गाली-गलौज..करने में उस्ताद था चकोर..और पढ़ाई-लिखाई में एकदम फिसड्डी..पर फेल कभी न होता..चंदा भी हमारे साथ ही पढ़ती थी..निहायत ही नाम के अनुरूप गोल चेहरे वाली गोरी और शोख-चंचल..थोड़ी ठिगनी और हेल्दी फिगर की..कुल मिलकर सुन्दर और हसीन..चकोर उसे देख हमेशा आहें भरता..चंदा मोहल्ले के लकड़ीटाल वाले सेठ गुप्ताजी की इकलौती बेटी थी और चकोर एक निहायत ही शरीफ मास्टरजी का इकलौता बेटा..दोनों घरों के तौर-तरीकों में जमीन-आसमान का फर्क था..पर प्यार तो अँधा होता है..उसे इन सबसे क्या लेना-देना ? चकोर इकतरफा मुहब्बत की गिरफ्त में अक्सर आहें भर मुझसे मदद की फ़रियाद करता.. चंदा उसे कभी कोई पासिटिव रिस्पांस तो नहीं देती पर उसके बहादुरी भरे कारनामों को देख मंद-मंद मुस्कुराती जरुर थी..
चकोर अक्सर अपने इकतरफे प्यार को दुतरफा बनाने मुझसे मदद मांगता..एक दिन मैंने उसे आइडिया दिया कि होली करीब है...होली का चंदा मांगने के बहाने लकड़ीवाले के यहाँ जाओ और लड़की ही मांग लाओ..चंदे में चंदा ही मांग लाओ.. लफडा ख़तम..तब वह हँसता और कहता - ‘ यार.तुम तो अच्छा-खासा पिटवाने का प्रोग्राम बता रहे हो..माना कि बुरा न मानो होली है पर मेरे विषय में इतना बुरा भी मत सोचो..’ तब मैंने उसे सीरियसली समझाया कि होली ही सटीक समय है प्रेम के इजहार का..प्रेम पीगें बढाने का..फागुन के मदमाते मौसम में ही प्रेम का पौधा धड़ल्ले से पनपता है..चहुँ ओर फिजां में भंग का नशा घुला होता है..यही वक्त होता है चोट करने का..प्रेम-विनय करने का..मोहल्ले के कुछ युवा-बांकुरों को इकठ्ठा करो और होली का चंदा माँगने निकल पड़ो..अच्छा होगा कि बोहनी टालवाले सेठ से ही करो..हाँ..एक बात का ध्यान रखना ..बदतमीजी भर मत करना..ऐसे कामों में निहायत ही शरीफाना अंदाज की जरुरत होती है..कोशिश करो और उम्मीद करो -‘ हम होंगे कामयाब..’
चकोर ने मेरी बातों को गाँठ बाँध सात दिन पहले ही चंदा माँगने निकल गया और शुरुआत चंदा के घर से की..लकड़ीटाल पर बैठे सेठ ने चश्मा ऊंची कर चकोर की ओर देखा तो एकबारगी वह घबरा सा गया.. सेठजी के ठीक पीछे चंदा खड़ी थी..सेठ ने इशारे से पूछा- ‘ क्या ? ‘ तब घिघियाते हुए चकोर ने कहा- ‘ होली का चंदा..’
‘ होली का चंदा ? ‘ सेठ ने बडबडाते हुए कहा- ‘ अरे भई अभी तो सात दिन हैं होली को..जाओ...बाद में आना.. अभी बहुत काम है मुझे..’ तब चकोर ने हिम्मत बटोरते कहा- ‘ दे दीजिये न सेठजी..फिर कहाँ आयेंगे..’
‘ अरे कैसे दे दूँ..कहा न..बाद में आना..’ सेठ ने घुडकते हुए कहा. चकोर ने चंदा की तरफ देखा तो उसने मुस्कुराते हुए आँखों के इशारे से ‘दफा’ हो जाने की मिन्नत की..चकोर आगे बढ़ गया और सीधे वापस घर आ गया..दोस्तों ने कहा –‘ अरे वहां नहीं तो चलो.. अन्य घरों से मांगते हैं..’ तब चकोर बोला- ‘ नहीं दोस्तों..चंदे की बोहनी तो चंदा के घर से ही करेंगे..तभी अन्य घरों को जायेंगे ..तुम लोग जाओ..कल फिर निकलेंगे ..’ चकोर ने इस घटना का जिक्र किया तो मैंने इसे एक शुभ संकेत बताते हुए मोर्चे पर डटे रहने की हिदायत देते उसे शुभकामनाएं दी.
दूसरे दिन फिर उसी समय पर चकोर अपने चंद चमचों के साथ टाल पहुंचा तो सेठजी बही-खाते में व्यस्त दिखे..पास ही चंदा भी बैठी दिखी..चकोर को देख पुलक सी गई चंदा ..मानो उसी के इंतज़ार में बैठी हो..उसने अपने बाप को कोहनी मारकर बताया कि चंदा माँगने आये हैं..सेठ ने चश्मे को ऊपर कर ऊँची आवाज में बोला- ‘ अरे चकोर..तुझे कहा न कि अभी नहीं..बाद में दूंगा..अभी तो छः दिन है भई..जाओ बाद में आना..’ चकोर ने फिर मिन्नतें की पर सेठ टस से मस नहीं हुआ..कहा- ‘ तुम लोगों के पास तो सिवा चंदा माँगने के और कोई काम नहीं पर मेरे पास तो बीसों काम पड़े है..जाओ फिर कभी आना..’ इस बार चंदा ने मुस्कुराते हुए हाथ से इशारा किया कि आगे बढ़ लो..इसी में भलाई है..
तीसरे-चौथे दिन भी यही क्रम चला..पांचवे दिन तो चंदा ने खुद ही अंपने बाप से आग्रह किया कि दे दीजिये चंदा..फिर भी वो नहीं माने.. तब उसने बाप से नजरें बचा एक कागज़ का तुड़ा-मुड़ा टुकड़ा उसकी ओर फेंका ..इत्तेफाक से उसे सीधे चकोर ने ही कैच किया..आगे बढ़कर उसे पढ़ा तो ख़ुशी से पागल हो गया..दोस्त-यार समझ नहीं पाए कि क्या हुआ ? एक ने कहा- ‘यार..परसों होली है और बोहनी के चक्कर में अब तक एक रुपैया तक इकठ्ठा नहीं हुआ ..भला होली के लिए लकड़ी कैसे लायेंगे ? ‘ तब चकोर ने हंसते हुए कहा- ‘ फिकर नाट..दोस्तों..सब हो जाएगा..होली तो जलेगी ही और वो भी अन्य सालों से बेहतर..अब किसी से चंदा भी नहीं मांगेंगे..’ दोस्तों ने समवेत स्वर में पूछा-‘ लेकिन कैसे ? ‘ चकोर ने कहा- ‘ वो मुझ पर छोडो..तुम सब कल रात ग्यारह बजे मिलो..लकड़ी लूटने जायेंगे..’
दोस्तों को विदा कर दौड़ते-दौड़ते चकोर मेरे पास आया और तुडे-मुड़े कागज़ के टूकडे को हथेली में थमा ख़ुशी-ख़ुशी बताया कि उसका प्रेम-पथ इकतरफा से दोतरफा हो गया.. चंदा ने इकरार कर लिया..उसने ये भी बताया कि चंदा ने ही अपने बाप को चंदा देने से मना कर रखा था ताकि मैं बार-बार उसके घर जाऊं और वो बार-बार मुझे देख सके..चूँकि होली परसों है इसलिए लिखी है कि कल दोपहर सेन्ट्रल लाईब्रेरी में मिलेगी..तब विस्तार से बातें होंगी.. अपनी अभिन्न सहेली कविता के साथ आएगी..मैंने चिट्ठी पढ़ी और मजाक से कहा- ‘ लो भई..इस होली में तुमने तो बोहनी कर ही ली भगवान जाने मेरी कब होगी ? ‘ तब चकोर ने चुटकी लेते कहा - ‘ अमां यार..तुम तो ऐसे मामलों के उस्ताद हो..चलो बहती गंगा में हाथ धो लो..कविता तो आ ही रही है..मैं जानता हूँ तुम्हें वो पसंद है..कल अपने दिल की बात कह ही डालो..मान गई तो ठीक वरना बुरा न मानो होली है... कहते पतली गली से सटक लो.. ’
दूसरे दिन नियत समय पर लाईब्रेरी पहुंचे तो इत्तेफाक से वहां चंदा और कविता के सिवा कोई न था..चकोर चंदा को ले एक कोने में बैठ गया और मैं कविता के साथ दूसरे कोने में..घंटे भर बाद बाहर निकले..पहले चंदा और कविता निकली फिर पांच मिनट बाद चकोर और मैं..निकलते ही चकोर ने कहा-..’ बधाई...होली की और कविता की..’ तब मैंने पूछा- ‘ तुम्हें कैसे मालूम कि बात बन गई ? ‘ तब उसने जवाब दिया- ‘ अब तो लिफाफा देख मजनून भांप लेता हूँ.. तुम्हारी शागिर्दी में यही सब तो सीखा है..बीच-बीच में तुम दोनों पर भी नजर डालता रहा..कविता की नीची निगाहें बता रही थी कि उसके भीतर होली जल रही..इसलिए...’
‘ अच्छा..तुम बताओ..चंदा ने क्या कहा ? ‘
‘ अरे यार उसने तो पांच सौ एक रूपये नगद दिए है...बतौर होली का चंदा और कहा है कि मन दो मन लकड़ी चाहिए तो लकड़ीटाल के पिछवाड़े रात बारह बजे के बाद आ जाओ..लकड़ी के साथ ये लड़की ”फ्री” मिल जायेगी.. तुम भी चलो न लकड़ी लूटने...’
‘ नहीं यार..अभी-अभी एक लड़की के प्यार में लुटा हूँ...लकड़ी लूटने का बिलकुल मन नहीं.. वैसे भी कविता तो वहां मिलेगी नहीं..तुम ही हो आओ..हाँ..कुछ मुश्टंडे जरूर ले जाना लकड़ी जो लाना है..
उस रात लकड़ीटाल के पिछवाड़े में लकड़ी और लड़की दोनों की लूट हुई..दोस्त यार तो दो मन लकड़ी चोरी से लुढ़काते सटक लिए..और इधर चकोर घुप्प अँधेरे में चंदा को बाहों में लिए प्रेम के नशे में घंटों डूबता उतराता रहा..तभी एकाएक बत्ती जली और सामने सेठजी हाथ में लाठी लिए प्रगट हुए..सेठ को देख दोनों की बत्ती गुल हो गई..चंदा चकोर की बाहों से छिटकी और थर-थर कांपने लगी..तभी फिर बत्ती गुल हो गई..इस बार बत्ती सेठ ने ही बुझाई थी.. फिर अँधेरे में आवाज उभरी- ‘चंदा..अन्दर चलो..’ इधर चकोर अँधेरे का फायदा उठा चुपचाप सरपट बाहर निकल सीधे मेरे घर का दरवाजा खटखटाया ..रात के दो बजे थे..उसने सारा वृत्तांत सुनाया तो मैंने समझाया कि इज्जत-आबरू के डर से सेठ ने हो-हल्ला नहीं किया लेकिन अब जान लो कि जल्द से जल्द वो चंदा के हाथ पीले कर देगा..बेहतर होगा कि उसके पहले ही उससे शादी कर लो..दोनों तो बालिग़ हो ही..किसी की ताकत नहीं कि तुम्हें रोक-टोक सके..अब आगे तुम्हारी मर्जी...
मेरी बातों को उसने गंभीरता से सुना और उदास सा चेहरा लिए चला गया..छः-सात दिनों तक जब चकोर नहीं आया तो चिंता हुई..उसके घर गया तो मालूम हुआ कई दिनों से घर ही नहीं आया.. गुप्ता सेठ के दूकान और मकान में ताला लटकते दिखा...चंदा की जानकारी लेने कविता के पास गया तो उसने अनभिज्ञता जाहिर की....समझ ही न सका कि एकाएक क्या हुआ और दोनों कहाँ गायब हो गए..अपने सूत्रों से सबको खंगालता रहा पर नाकाम रहा ..फिर छः साल बीत गए..न कोई चिट्ठी न पत्री न कोई खोज-खबर..
आज अचानक चंदा को देख मन प्रसन्न हो गया..उसे निहार ही रहा था कि पीछे से चकोर प्रगट हुआ..उसे देख मेरी तो बांछे खिल गई..लपक कर दूकान में घुस उसे गले लगा लिया..चंदा हम दोनों को यूं मिलते देख फफक पड़ी..झुक कर पाँव छूने लगी..तभी सेठजी भी आ गए ..देखते ही बोले- ‘ बेटा चकोर...होली का चंदा तो ले ही लो पर एक काम और करो..पूरे मोहल्ले को होली के लिए मेरे घर आमंत्रित कर दो..भांग का कार्यक्रम इस साल मेरे घर.. वैसे मैं भी सबको न्यौतने जा ही रहा था .. तुम दोनों भी साथ चलो...कल चंदा-चकोर की शादी की छठवीं सालगिरह है..उसका भी निमंत्रण देना है.. बाकी बातें बाद में..’
रास्ते में चकोर ने शार्टकट में बताया कि उस रात जब दोनों पकडे गए उसके दूसरे ही दिन( होली के दिन) सेठजी हम दोनों को अपने पैत्रिक गाँव ले गये और बिना किसी ताम-झाम के मंदिर में दोनों की शादी करवा दी..फिर उन्होंने पटना के एक प्राइवेट मेडिकल कालेज में मेरा दाखिला करवा दिया.. उन्होने ही मना किया कि अब पांच साल तक न किसी से मिलना-जुलना..न ही किसी को कोई चिट्ठी-पत्री..कल ही ये मियाद पूरी हुई और हम लौट आये.. आज मैं डाक्टर बन गया हूँ.. अब हमें यहीं रहना है..तुम सबके साथ.. मेरे बाबूजी को इस बात की जानकारी थी पर उसे भी सेठजी ने मना कर रखा था.. शायद मेरी ही भलाई के लिए..
चकोर की बातें पूरी भी न हो पाई थी कि रास्ते में दोस्तों की टोली अबीर-गुलाल उड़ाते आई और दोनों को होली का हुडदंग करते लाल-पीले रंगों से सराबोर कर दिया...चकोर के घर पहुंचा तो दरवाजे में डा. चकोर ..एम.बी.बी. एस. का नेम-प्लेट देख बहुत सुकून मिला.. कविता (मेरी पत्नी) चंदा-चकोर की वापसी के बारे में सुनेगी तो ख़ुशी से पागल हो जायेगी... होली के चंदे ने चकोर की तकदीर ही बदल दी...
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx\
प्रमोद यादव
गया नगर , दुर्ग, छत्तीसगढ़
जबरदस्त कहानी ....वाकई अभी भी आप जैसे साहित्यकारों की जमात मौजूद है विश्वास नहीं होता
जवाब देंहटाएंअति सुंदर.
जवाब देंहटाएं