शिखर तक संघर्ष (भाग 4) // प्रकाश चन्द्र पारख

SHARE:

प्रकाश चन्द्र पारख की पुस्तक - Crusader or Conspirator? by P C Parakh का हिन्दी अनुवाद अनुवादक - दिनेश माली भाग 1   //  भाग 2 // भाग 3 // ...

image

प्रकाश चन्द्र पारख की पुस्तक - Crusader or Conspirator? by P C Parakh का हिन्दी अनुवाद

image

अनुवादक - दिनेश माली

भाग 1  //  भाग 2 // भाग 3 //

6॰ हैदराबाद नगर निगम : पहला विद्रोह

अक्टूबर 1982, में मेरी पोस्टिंग हैदराबाद नगर निगम में स्पेशियल ऑफिसर एवं कमिश्नर के रूप में हुई ।यह पोस्टिंग मेरे जीवन की सबसे ज्यादा घटनाबहुल थी और मेरे कैरियर की सबसे ज्यादा निराशाजनक पोस्टिंग भी। वाणिज्यिक कर विभाग में काम करते समय मैंने यह अच्छी तरह जान लिया था कि व्यापारी लोग वाणिज्यिक कर का समुचित भुगतान न करके जायज सरकारी राजस्व की किस तरह चोरी करते हैं; इस बात से भी मैं पूरी तरह अभिज्ञ हो गया था कि हमारे देश की वर्तमान राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों में किसी भी व्यापारी के लिए ईमानदारी से अपना व्यापार करना असंभव है। इन सारी बातों के मुझे अच्छे-खासें अनुभव हो चुके थे, मगर इस बात से अभी भी अनभिज्ञ था कि किस प्रकार सरकारी अधिकारी अपनी पद-प्रतिष्ठा बढ़ाने और अनाप-शनाप पैसे कमाने के खातिर अपने अधिकारों और जनता के पैसों का दुरुपयोग करते हैं।

बहुत अर्से से हैदराबाद नगर निगम में चुनाव नहीं हुए थे। इसलिए कमिश्नर को स्पेशियल ऑफिसर का पदभार भी दिया गया था जो निर्वाचित निगम के अधिकार में आनेवाले सारे कार्य संपादित करने के लिए अधिकृत थे। इसलिए उन्हें कैपिटल और रेवन्यू खर्च के अनुमोदन के सारे अधिकार प्राप्त थे।

हैदराबाद नगर निगम ज्वाइन करने के बाद मैंने देखा कि बिना कैपिटल बजट और बिना उपलब्ध संसाधनों की जानकारी के बहुत सारे कैपिटल कार्य चल रहे थे। ठेकेदारों के बहुत सारे बिलों का भुगतान निलंबित था और इन बिलों के भुगतान करने के लिए निगम के पास फंड उपलब्ध नहीँ था। फंड का अधिकांश हिस्सा सड़कों के चौड़ीकरण में खर्च कर दिया गया था, मगर वे सड़कें अपना पहला मानसून तक नहीँ देख सकी। मानसून खत्म होते-होते सड़क का सारा चौड़ा भाग धुल चुका था, बचा रह गया था नीचे का कर्कश रोड मेटल। इसलिए मैंने नेशनल हाइवे डिपार्टमेन्ट के चीफ इंजीनियर को सड़क चौड़ीकरण के कार्य की जाँच करने को कहा। जब चीफ इंजीनियर ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की तो उसमें कई सारे चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। सड़क के निर्माण कार्य में जो रोड मेटल काम में लाया गया था, वह लगभग सब जगह ओवर साइज था। कंसोलिडेशन पूरी तरह अपर्याप्त था। ऊपरी सतह की मोटाई अपने आकलन स्तर की 50 प्रतिशत ही थी और बिटुमन की मात्रा सिर्फ 28 प्रतिशत ही थी। अब समझ गए होंगे कि नगर निगम की सड़कों की दुर्दशा के क्या कारण थे।

नगर निगम में ज्वाइन करने के कुछ सप्ताह बाद मुझे पुरानी सिटी में एक सड़क की मरम्मत से संबन्धित फाइल सबमिट की गई। अनेवाले मुहर्रम पर्व के कारण मरम्मत का तत्काल करना है इसलिए कांट्रैक्ट नॉमिनेशन पर देने का प्रस्ताव भी था। मुहर्रम तो हर साल आता है। अगर इस मरम्मत कार्य का संबंध मुहर्रम पर्व से है तो यह तत्काल प्रभाव वाला कार्य नहीँ हो सकता था।फिर भी परिस्थतियों को ध्यान में रखते हुए मैंने शार्ट नोटिस टेंडर के जरिए काम करने के निर्देश जारी किए। कुछ ही घंटों के पश्चात वह फाइल लौट आई, शॉर्ट नोटिस टेंडर में होने वाली कठिनाइयों के विस्तृत ब्यौरे के साथ। उसमें नॉमिनेशन पर अनुमोदन की मांग भी की गई थी। मुझे इस नॉमिनेशन के प्रस्ताव में किसी धूर्तता की भनक लग रही थी। इसलिए मैंने स्वयं इस सड़क की जाँच करने का निश्चय किया। जाँच करने पर मैं आश्चर्यचकित रह गया, जिस रास्ते से मुहर्रम का जुलूस निकलना था, उस पूरे रास्ते में कंक्रीट ढली पक्की सड़कें थी। किसी भी प्रकार के मरम्मत की कोई आवश्यकता नहीँ थी। मैं अच्छी तरह से समझ गया था कि वह एक फेक ऐस्टिमेट है, जो पैसे कमाने के लिए बनाया गया है। छानबीन करने पर चीफ इंजीनियर ने मुझे बताया, ‘‘सर, मुहर्रम के अवसर पर यह एस्टिमेट हर साल बनाया जाता है और इसमें जितने पैसे अनुमोदित होते हैं, वे स्थानीय राजनेताओं को बाँट दिये जाते है।’’

इसी तरह का एक दूसरा उदाहरण है। एक जाँच के दौरान ठेकेदारों और इंजीनियरों की मिली-भगत का मामला सामने आया। हैदराबाद के सम्पन्न रिहायशी बंजारा हिल की मुख्य सड़क के बड़े नाले पर डैक स्लैब डालने का कार्य हाल ही में खत्म हुआ था। एक साल भी पूरा नहीँ हुआ होगा कि डैक स्लैब टूट-टूटकर गिरने लगा।आपको जानकार आश्चर्य होगा कि जब अधिकारियों की एक टीम सैंपल लेने गई तो उन्हें स्लैब की पूरी मोटाई का एक भी सैंपल नहीँ मिल पाया। कंस्ट्रक्शन की क्वालिटी इतनी खराब थी कि सैंपल टूटकर बिखर जाता था और नाले में गिर जाता था। बहुत ही मुश्किल से कंक्रीट के कुछ टुकड़े इकट्ठे हुए, जिसे प्रयोगशाला में भेजा गया, जिनके परिणाम चौंकाने वाले थे। चैक मेजरमेंट में स्लैब की मोटाई निर्धारित मोटाई की केवल 60 प्रतिशत पाई गई और निर्माण में लगे सीमेंट और स्टील एस्टिमेट का केवल अंशमात्र था।

इन दो उदाहरणों ने मेरी आँखें खोल दी थी। जैसे-जैसे मैंने हैदराबाद नगर निगम के क्रियाकलापों को और बारीकी से देखना शुरू किया,वैसे-वैसे मैंने देखा कि चारों तरफ कुप्रशासन एवं भ्रष्टाचार फैला हुआ था। संपत्ति कर का आकलन और संग्रह पूरी तरह से मनमर्जी से होता था। कर निर्धारण के लिए कोई सुनिश्चित नियम नहीँ थे। कर निर्धारण की राशि कर अधिकारी की मनमर्जी पर निर्भर थी। समान भवनों पर लगाए जा रहे करों में 500 प्रतिशत से ज्यादा अंतर था। कूड़ा-कचरा उठाने का काम पूरी तरह से अवैज्ञानिक तरीके से हो रहा था और सफाई कर्मियों के लिए अस्वास्थ्यकर भी और साथ ही साथ, ईंधन की जबर्दस्त चोरी हो रही थी। वैज्ञानिक तरीकों के अभाव में ओवरलोडेड ड्रेनेज सिस्टम चोक हो रहा था। सिटी प्लानिंग तो सिर्फ बिल्डिंग रूल्स रिलेक्स करने तक ही सीमित रह गया था।

हैदराबाद नगर निगम के अलग-अलग डिवीजनों की कार्य पद्धति का विस्तृत अध्ययन कर मैंने कुछ ठोस कदम उठाए। उदाहरण के तौर पर, केन्द्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान को हमारे इंजीनियरों को सड़क निर्माण का प्रशिक्षण देने का जिम्मा दिया गया। टाटा कंसल्टेंसी सर्विस को संपत्ति-कर के आकलन एवं संग्रहण के काम को कंप्यूटरीकृत करने का ठेका दिया गया। संपत्ति कर के वैज्ञानिक ढंग से निर्धारण के लिए भवनों का वर्गीकरण स्थान,विस्तार और निर्माण के प्रकार को ध्यान में रखते हुए किया गया। एडमिनिस्ट्रेटिव स्टाफ कॉलेज ऑफ इंडिया से सफाई कर्मचारियों की प्रोडक्टिविटी बढ़ाने के तरीकों का अध्ययन करने के लिए अनुरोध किया गया। साथ ही साथ, नेशनल बिल्डिंग आर्गनाइजेशन से कम कीमत वाली तकनीकी से गंदी बस्तियों में पक्के घर बनाने के लिए संपर्क स्थापित किया गया।

जनवरी 1983, आंध्रप्रदेश विधान सभा के चुनाव संपन्न। श्री एन.टी. रामाराव ने एक नई पार्टी ‘तेलुगु देशम’ का गठन किया और दो मुद्दों पर चुनाव लड़े। पहला, तेलुगु लोगों के आत्म-स्वाभिमान की रक्षा और दूसरा, सरकार द्वारा भ्रष्टाचार का उन्मूलन। निर्वाचन में उन्हें आशातीत सफलता मिली और उनकी सरकार बनी।

मुझे नगर निगम में काम करते हुए तीन ही महीने हुए थे। ‘भ्रष्टाचार उन्मूलन’ वाले सरकार के नारे ने मेरे भीतर एक नया जोश भरा था,क्योंकि यह नारा मेरी नैसर्गिक विचारधारा से मेल खाता था। मैंने अपने स्तर पर भ्रष्टाचार नियंत्रण करने के लिए पर्याप्त होमवर्क किया और गतिविधियों पर एक समेकित प्रतिवेदन तैयार कर सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया। साथ ही साथ, मैंने अपनी जाँच के आधार पर कुछ इंजीनियरों के खिलाफ अनुशासनहीनता की कार्यवाही करने की सिफारिश भी की। नई सरकार आ जाने से मैं ज्यादा खुश था। मेरा पूर्ण विश्वास था कि नए मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार नियंत्रण में मेरा सहयोग अवश्य करेंगे। इस विश्वास का कारण भी था, भ्रष्टाचार उन्मूलन का नारा श्री एन.टी. रामाराव की चुनाव सफलता का मुख्य कारण था।

किन्तु ऐसा नहीं हुआ,जिन अधिकारियों के खिलाफ मैंने अनुशासनात्मक कार्यवाही करने के लिखा था, उन पर कार्यवाही करने के बजाए फरवरी 1983 में बिना कोई वैकल्पिक पोस्ट दिए हैदराबाद नगर निगम से मेरा स्थानांतरण कर दिया गया। मुझे असत्य की जीत होते हुए नजर आने लगी। मैंने अपने स्थानांतरण के कारणों की पृष्ठभूमि जानने के लिए नगर निगम प्रशासन के प्रिंसिपल सेक्रेटरी श्री एस.एन. अचंता से मुलाकात की। यह सारा घटनाक्रम देखकर उन्हें खुद आश्चर्य हुआ और उन्होंने मुझे कहा, ‘‘जब तक मैं मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री से इस बारे में बातचीत नहीँ कर लेता हूँ तब तक तुम अपना चार्ज किसी को मत देना। वे दोनों इस समय दिल्ली में हैं।’’

उनसे मिलकर जब मैं अपने ऑफिस लौटा तो मैंने देखा कि मेरी टेबल पर एक दूसरा आर्डर पड़ा हुआ था, जिसमें मुझे निर्देश दिए गए थे कि मैं बिना मेरी पोस्टिंग का इंतजार किए तत्काल प्रभाव से 1976 बैच के आईएएस अधिकारी श्री आर.पी. सिंह को अपना चार्ज हैंडओवर कर दूँ। यह नया परिवर्तन देख कर मैंने श्री अचंता जी से टेलीफोन पर बातचीत की,‘‘सर, मुझे तुरंत चार्ज हैड ओवर करने की इजाजत दें। मैं कभी नहीँ चाहूँगा कि ट्रांसफर आर्डर मिल जाने के बाद भी मैं इस पोस्ट को चिपका रहूँ।"‘ श्री अचंता जी ने कोई उत्तर नहीँ दिया।

हैदराबाद नगर निगम की स्पेशियल ऑफिसर एवं कमिश्नर की पोस्ट एक महत्त्वपूर्ण एवं प्रतिष्ठाजनक मानी जाती थी। इस पोस्ट को पाने के लिए कोई भी अधिकारी जल्दी से जल्दी ज्वाइन करना चाहेगा, मगर श्री आर.पी. सिंह ने ऐसा नहीँ किया। बल्कि बकायदा मुझसे मिलकर वह बोले,‘‘अगर आप चाहे तो अपना ट्रांसफर कैंसल करवा सकते हैं। मुझे ज्वाइन करने की कोई जल्दी नहीँ है। मैंने उत्तर दिया ‘‘नहीँ, धन्यवाद। मैंने पहले से ही चार्ज हैण्डओवर करने का तय कर लिया है। आप अपनी पोस्ट संभालें।’’

श्री आर.पी. सिंह जैसे पर्सनल इंटीग्रटी वाले ऑफिसर लाखों में एकाध ही मिलते हैं। ऐसे ऑफिसर हैदराबाद नगर निगम में कहाँ टिक पाते। जल्दी ही छ:-सात महीनों के अंदर-अंदर उनका भी वहाँ से तबादला हो गया। यह इस बात का प्रतीक है कि हमारा लोक प्रशासन सिद्धान्तों और मूल्यों के साथ समझौता नहीँ करने वाले अधिकारियों को सहन नहीँ कर पाता है। करता भी कैसे सहन? ऐसे अधिकारी उनके कमाने के रास्ते में अवरोध जो बन जाते हैं ।

मैं नगर निगम में लगभग सोलह घंटे रोज काम करता था। सुबह पाँच बजे से लेकर नौ बजे तक शहर के अलग-अलग हिस्सों में सफाई कर्मचारियों के कार्यों का निरीक्षण,नौ बजे घर आकर नाश्ता और फिर साढ़े दस बजे से रात दस बजे तक ऑफिस। चार महीनों तक शायद ही मैंने अपनी बेटी को खेलते हुए देखा होगा या गले लगाया होगा। मेरी पत्नी भी इस तरह की ड्यूटी से खुश नहीँ थी, मगर वह मेरा सहयोग कर रही थी, यह सोचकर कि आखिरकार लोगों की भलाई का कार्य हो रहा है। मगर निष्ठापूर्वक ईमानदारी से कार्य करने का यह फल? मगर मेरे संस्कार थे, मेरी प्राणवायु सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की तरह। मुझे सब-कुछ मंजूर था, मगर अपने सिद्धान्तों के साथ समझौता कभी भी नहीँ।

आज भी मुझे समझ में नहीँ आ रहा है कि मेरे इस ट्रांसफर के पीछे क्या कारण रहे होंगे। श्री एन.टी. रामाराव तो राजनीति के नए खिलाड़ी थे और नगर निगम प्रशासन के मंत्री भी। उन्हें मेरे बारे में क्या पता होगा? उन्हें हैदराबाद नगर निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितताओं की भी कोई जानकारी नहीँ थी? मुझे लगता है मेरे द्वारा उठाए गए त्वरित भ्रष्टाचार उन्मूलन कदमों से अवश्य वहाँ के भ्रष्टाचारियों में खलबली मची होगी और उन्होंने मेरे ट्रांसफर की रणनीति बनाई गई होगी। बिना वैकल्पिक पोस्टिंग दिए किसी का ट्रांसफर होता है? क्या किसी को तुरंत चार्ज हैण्डओवर करने के निर्देश दिए जाते हैं? इस तबादले से मुझे बहुत बड़ा धक्का लगा था। ऐसा लग रहा था मानों मैंने कोई बहुत बड़ा गुनाह किया हो,जिसकी सजा मुझे दी गई। मैं बहुत ज्यादा निराश हो चुका था। भीतर ही भीतर पूरी तरह से टूट चुका था।आईएएस की नौकरी छोड़कर फिर से जियोलोजिस्ट की नौकरी करने की सोचने लगा था। हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड में जियोलोजिस्ट की नौकरी क्या खराब थी? आईएएस की नौकरी में मैंने ऐसा क्या विशेष पा लिया? मन के भीतर एक गहरा अन्तर्द्वन्द्व चल रहा था। मैं अपने अपमान-बोध का बदला लेना चाहता था। भारतेन्दु हरिश्चंद्र के नाटक "अंधेर नगरी" की प्रसिद्ध उक्ति 'अंधेर नगरी अनबूझ राजा। टका सेर भाजी टका सेर खाजा। ' स्मृति पटल पर तरोताजा हो गई। नाटक के लेखक ने ठीक ही तो लिखा था, जहां अनबूझ यानि चौपट राजा हो,वहाँ किसी नागरिक को नहीं रहना चाहिए।

सरकार के कार्मिक प्रबंधन की स्कीम के अंतर्गत आईएएस अधिकारियों की पोस्टिंग, ट्रांसफर और कैडर मैंनेजमेंट आदि मामलों के लिए मुख्य सचिव उत्तरदायी होते हैं। जब मेरी हैदराबाद नगर निगम में पोस्टिंग हुई थी तब श्री बी.एन॰रामन मुख्य सचिव थे और जब मेरा वहाँ से स्थानांतरण हुआ,तब भी वही मुख्य सचिव थे। चार महीनों के भीतर मेरे इस तरह असंगत स्थानांतरण के कारणों को जानने के लिए मैं उनके पास गया। मगर उन्होंने मुझे कोई संतोषजनक उत्तर नहीँ दिया, केवल इतना ही कहा, ‘‘मि. पारख, आईएएस अधिकारियों की पोस्टिंग और ट्रांसफर का अधिकार राज्य सरकार के पास है और इन मामलों में सरकार की बुद्धिमत्ता के बारे में किसी तरह का सवाल नहीँ उठाना चाहिए।’’ मैं मुख्य सचिव के ऐसे असंतोषजनक उत्तर से असंतुष्ट था। ऐसा रुक्ष उत्तर? क्यों हमें इन कारणों को जानने का भी अधिकार नहीँ है, जिसकी वजह से एक आत्म स्वाभिमानी अधिकारी के दिल को ठेस पहुँची हो! मैंने मुख्यमंत्री से मिलने का तय किया। कई बार अनुरोध करने के बाद भी मुख्यमंत्री को मुझसे मिलने का समय नहीँ मिला। रह-रहकर मुझे मेरे पहले मुख्यमंत्री श्री ब्रह्मानन्द रेड्डी के शब्द याद आने लगे, जो उन्होंने कभी हमें हमारे प्रोबेशन पीरियड के दौरान कहे थे- ‘‘जब आपके पास कोई समस्या हो तो आप बेहिचक मेरे घर आ सकते हैं। मेरे घर के दरवाजे सदैव आपके लिए खुले मिलेंगे।’’

आज मेरे पास समस्या थी, मैं मुख्यमंत्री से मिलना चाहता था। मगर उनके दरवाजे कई बार खटखटाने के बाद भी नहीँ खुल रहे थे। शायद वे मेरे लिए अपना दरवाजा खोलना ही नहीँ चाहते थे। कहाँ गए वे मुख्यमंत्री जिन्होंने अपने दरवाजे खुले रखने का आश्वासन दिया था? समय कितनी रफ्तार से बदल गया था? कितने जल्दी बदल गए थे मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और उनका व्यवहार, आचरण और देश प्रेम? ऐसे भी मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव थे, जिन्होंने मुझे अपने विश्वास में लेकर मेरा स्थानांतरण किया था और एक ऐसा भी समय, जब अनेक बार दरवाजे खटखटाने के बावजूद भी मुख्यमंत्री मुझसे मिलना नहीँ चाह रहे है और मुख्य सचिव मेरे असामयिक स्थानांतरण का कारण बताना नहीँ चाहते हैं। मेरे मन में रह-रहकर यह ख्याल मंडरा रहा था कि अगर कोई ऊपरी दबाव था तो उसे रोकना और मुख्यमंत्री को सही सलाह देना तो मुख्य सचिव का उत्तरदायित्व बनता है।मगर मुख्य सचिव ने अपना उत्तरदायित्व नहीं निभाया।या मुख्यमंत्री के सामने उनकी जुबान नहीँ खुली? मैं सरकार की कार्मिक नीतियों को कठघरे में खड़ा करना चाहता था। ऐसी कार्मिक नीतियों का क्या फायदा, जिनके कारण जनहितार्थ किए जाने वाले कार्यक्रमों की योजना, परिकल्पना और कार्यान्वयन के लिए समुचित समय भी नहीँ दिया जाता हो। "रोम वाज नॉन बिल्ट इन ए डे।" समय लगता है। हर चीज में समय लगता है।

इन्हीं विद्रोही विचारों के प्रकाश पुंज की परिकल्पना को कंपायित करते हुए मैंने इस संदर्भ में मुख्य सचिव को पत्र लिखा (परिशिष्ट 6-1) और उसकी एक कॉपी प्रेस में प्रकाशित होने के लिए दे दी (परिशिष्ट 6-2) ताकि लोगों की नजरों में आते ही इस मुद्दे पर आम-बहस शुरू हो सके। यह सरकार की नजरों में मेरा पहला विद्रोह था, मगर मेरी अपनी नजरों में महात्मा गांधी की जीवनी "सत्य के साथ मेरे प्रयोग" में वर्णित उनके प्रयोगों की तरह मैं भी सत्य और न्याय के लिए एक अभिनव प्रयोग कर रहा था।

दो दिन भी पूरे नहीँ हुए होंगे कि मेरे इस अभिनव प्रयोग ने रंग लाया। हैदराबाद से निकलने वाले सारे अखबारों में मेरा पत्र मुख्य हेड लाइन सहित छपा। जैसे ही खबर प्रकाशित हुई, वैसे ही उस पर तीव्र पब्लिक डिबेट शुरू हो गई। मगर अभी भी सरकार के कानों पर जूँ तक नहीँ रेंगी। पहले मैंने नौकरी से इस्तीफा देने के बारे में सोचा था। मगर मेरे इस्तीफा देने से क्या हो जाता? क्या सरकार द्रवित होकर अपनी कार्मिक नीतियाँ बदल देती? मुझे ऐसा परिवर्तन होता हुआ दूर-दूर तक नजर नहीँ आ रहा था। फिर मैंने सरकार से संघर्ष करने का संकल्प किया। मैंने जाने-माने कानून एवं संविधान विशेषज्ञ श्री एल.एम. सिंघवी से इस दिशा में मार्गदर्शन करने के लिए एक पत्र लिखा। (परिशिष्ट 6-3) पत्र की विषय वस्तु थी - मेरी मानसिक प्रताड़ना ओर जनहित के विरोध में काम करने वाली सरकार के खिलाफ रणभेरी बजाने का औचित्य। डॉ. सिंघवी ने मुझे सलाह दी कि जैसा तुम सोच रहे हो, वह सब ख्वाबी पुलाव है, दिवा-स्वप्न हैं, उनके साकार होने या सफलीभूत होने की संभावना नगण्य है क्योंकि भारत में ‘लॉ ऑफ टॉर्ट’ बहुत ही कमजोर है। इसके अतिरिक्त, सरकार के खिलाफ लड़ने के लिए पर्याप्त पैसों की भी जरूरत होती है जो कि तुम्हारे पास नहीँ है। उन्होंने मुझे यथार्थता का एक पारदर्शी दर्पण दिखा दिया। (परिशिष्ट 6-4)। मैंने उनकी सलाहों पर गहन मनन किया और उनकी बातों को शिरोधार्य करने से सरकार के खिलाफ संघर्ष करने की इच्छा जाती रही। मगर राज्य सरकार के साथ काम करने की इच्छा भी समाप्त हो गई थी, इसलिए मैंने सैंट्रल डेपुटेशन पर जाना ज्यादा उचित समझा। मैं उस पल का इंतजार करने लगा।

मुख्य सचिव को लिखे गए मेरे पत्र के प्रेस में रिलीज होने से सरकार काफी नाराज हुई थी। ऑल इंडिया सर्विस (कैडर) रुल्स 1968 के नियम 6 तथा 7 (1) के उल्लंघन करने के कारण मुख्य सचिव श्री बी.एन.रामन ने मुझसे स्पष्टीकरण माँगा (परिशिष्ट 6-5)। उपरोक्त नियमों के अनुसार कोई भी सरकारी अधिकारी ऐसे तथ्य को सलाह प्रेस में नहीँ दे सकते, जिनके कारण सरकार की किसी कार्यवाही या नीतियों पर विपरीत अथवा आलोचनात्मक प्रभाव पड़ रहा हो। मैंने सरकार को अपना स्पष्टीकरण देते हुए एक लंबा चौड़ा जवाब भेजा कि उसके पत्र के कारण सरकार की कहीँ भी नकारात्मक आलोचना नहीँ हुई हैं, बल्कि सकारात्मक विस्तृत विवेचना अवश्य हुई है, जिसे आप सकारात्मक आलोचना भी कह सकते हैं। मैंने यह भी लिखा कि अगर सकारात्मक आलोचना की वजह से कहीँ कंडक्ट रुल्स का उल्लंघन होता है तो मुझे लगता है कि हमें अपने नियमों को बदलने की जरूरत हैं। (परिशिष्ट 6-6)।

क्या उत्तर देती सरकार? सरकार निरुत्तर थी, उनके पास कोई जवाब नहीँ था मुझे संतुष्ट करने के लिए। सरकार की तरफ से किसी भी प्रकार का कोई प्रत्युत्तर नहीँ आने के कारण मुझे इस बात का अंदाज होने लग गया था कि मेरे खिलाफ सरकार कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही नहीँ करेगी। शायद उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया कि मुझसे स्पष्टीकरण मांगना कोई सही कदम नहीँ होगा। हिन्दी के प्रसिद्ध राजनैतिक कवि नागार्जुन की कविता ‘शासन की बंदूक’ की अंतिम पंक्तियाँ यहाँ पर एकदम सही लग रही थी:-

जली ठूंठ पर बैठकर गई कोकिला कूक

बाल न बांका कर सकी शासन की बंदूक।

कई दशक बीत गए। मैंने और ऐसे आक्रामक क्रांतिकारी पत्र नहीँ लिखें। संपूर्ण देश में परिस्थितियाँ सुधरने के बजाय खराब होती जा रही हैं। आज भी मैं आशा की उस उज्ज्वल किरण की तलाश में बैठा हूँ कि कब हमारे देश में ऐसा सूर्योदय होगा, जब सुप्रीम कोर्ट सरकार को सिविल सर्विस लॉ पारित करने तथा अपनी मानव संसाधन नीति में वांछित परिवर्तन लाकर अधिकारियों की हर पोस्ट पर न्यूनतम अवधि निश्चित करने का निर्देश दें।

7. आंध्रप्रदेश डेयरी विकास निगम : भंवर चकरी

जैसा कि पूर्व अध्याय में आप पढ़ चुके हैं कि हैदराबाद नगर निगम से अकारण आकस्मिक स्थानांतरण के कारण न केवल मेरा आईएएस की नौकरी से मोहभंग हो गया था, वरन् राज्य सरकार में काम करने से भी मन ऊब गया था। इसलिए मैंने सैंट्रल डेपुटेशन के लिए अप्लाई कर लिया। सन् 1983 की अंत में मेरी पोस्टिंग पेट्रोलियम मंत्रालय में हुई। वहाँ का कार्यकाल पूरा होने के वाद अप्रैल 1988 को मैं फिर से अपने राज्य कैडर में लौट आया।

पुनः जब मैं राज्य कैडर में लौटा तो उस समय भी मुख्यमंत्री श्री एन.टी. रामाराव ही थे। प्रोटोकाल के अनुसार मैं उनसे मिलने गया। बातचीत सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में हुई। मेरे दृष्टिकोण में वह एक अच्छे अभिनेता हो सकते हैं मगर अच्छे प्रशासक नहीँ। मगर आज मुझे वे काफी सहृदय नजर आने लगे। उन्होंने मुझे मेरे मनपसंद काम के बारे में पूछा। मेरे लिए किसी भी काम के प्रति ऐसी कोई विशिष्ट रुझान वाली बात नहीँ थी, मैंने कहा, ‘‘जो भी कार्य मुझे सरकार देगी, उसमें मैं खुश रहूँगा।’’

मई 1988, इस महीने में मेरी पोस्टिंग आंध्रप्रदेश डेयरी विकास निगम के प्रबंध निदेशक के रूप में हुई। यह निगम, अमूल के बाद डेयरी क्षेत्र में हमारे देश की दूसरी बड़ी ईकाई थी और अच्छा काम कर रही थी। अभी तक मैं इस निगम के क्रियाकलापों से पूरी तरह अभिज्ञ भी नहीँ हुआ था, तभी मुख्यमंत्री के सचिव श्री पी.एल. संजीव रेड्डी ने मेरे पास एक उदद्योगपति को भेजा, जिनके पास नियंत्रित वातावरण में चारा बनाने के उपकरण यानि इनडोर फॉडर मशीन तथा उसकी तकनीकी बेचने का प्रस्ताव था। वे चाहते थे कि डेयरी विकास निगम उनके ये उपकरण खरीदे तथा चारा और दूध बेचने वाले किसानों को बेचे। उन्होंने एक प्रजेंटेशन भी दिया, जिसमें यह दर्शाया गया था कि उस तकनीकी से हरा चारा एक रुपये प्रति किलो के भाव से पैदा किया जा सकता था।

मैंने उन्हें समझाया कि हमारे राज्य के छोटे किसान हरा चारा नहीँ खरीदते हैं। फसल काटने के बाद जो भूसा बच जाता है, वे अपने मवेशियों को वही खिलाते हैं और मुख्य फसल काटने के बाद अपने खेतों में जो हरा-भरा चारा उगता है, उसे वे खिलाते हैं। इसलिए मुझे नहीँ लगता हैं कि आपके उपकरणों द्वारा बना हरा चारा ये लोग खरीदेंगे। निगम के लिए इस कीमत पर चारे को बेचना मुश्किल होगा। मैंने उन्हें वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर नॉमिनल लीज पर हमारे कुछ चिंलिग सेंटर पर जमीन देने की पेशकश की। बेहतर यह रहेगा कि पहले आप अपने खर्च पर हमारे दो-तीन चिलिंग प्लांट पर ऐसे संयंत्र लगाएँ और उसकी कॉमर्शियल वायबिलिटी तथा मार्केट पोटेन्शियल सिद्ध करें। उसके बाद निगम यह तकनीकी और उपकरण खरीद सकता है। मगर वे मेरी बात कहाँ मानने वाले थे? उनका प्रस्ताव स्वीकार करने के लिए मुख्यमंत्री कार्यालय से दो-तीन बार फोन आया, मगर मैं अपनी बात पर अड़ा रहा। मैंने मुख्यमंत्री के सचिव को सूचित कर दिया कि प्रत्यक्षतः यह प्रोजेक्ट व्यावसायिक रूप से वायबल नहीँ है और मैंने अपनी वैकल्पिक व्यवस्था के बारे में भी उन्हें बता दिया।

जुलाई 1988, अंतिम सप्ताह। डेयरी विकास निगम में चार महीने भी पूरे नहीँ हुए थे कि मेरे स्थानांतरण के आदेश आ गए। मैं आज तक नहीँ समझ पाया, क्या उस चारा मशीन और मेरे स्थानांतरण के बीच कोई गहरा संबंध था?

8. गोदावरी फर्टिलाइजर्स एवं केमिकल लिमिटेड: एक चतुर सियार बड़ा होशियार

1990, अगस्त महीना। मैं इस कंपनी का मैंनेजिंग डायरेक्टर बना। सरकार ने इस कंपनी को इफको के साथ प्रमोट किया था, काकीनाड़ा में एक उर्वरक संयंत्र बैठाने के लिए। यह संयंत्र डाई अमोनियम फास्फेट का था। इसमें आंध्रप्रदेश सरकार की भागीदारी 26 प्रतिशत, इफको की भागीदारी 25 प्रतिशत तथा 49 प्रतिशत पब्लिक की भागीदारी थी। दूसरी सरकारी उपक्रमों के निदेशक सामान्यतया राजनैतिक पेट्रोनेज से नियुक्त होते हैं,किन्तु जीएफ़सीएल में ऐसा नहीँ था। इसके सभी डायरेक्टर बहुत ही सम्माननीय प्रोफेसर थे। डॉ. एन. भानुप्रसाद (ओएनजीसी के पूर्व चेयरमैन), श्री के.के. पिल्लई (वीएसटी कंपनी के पूर्व मैंनेजिंग डायरेक्टर) आदि। एक अत्यन्त ही उत्कृष्ट अधिकारी श्री एम. गोपाल कृष्ण इस कंपनी के पहले मैंनेजिंग डायरेक्टर बने, इस प्रोजेक्ट के शुरू होने से लेकर चालू होने तक। इफको और राज्य सरकार दोनों मिलकर मैंनेजिंग डायरेक्टर समेत सारे बोर्ड की नियुक्तियाँ करते थे। हमेशा यह ध्यान रखा गया कि कंपनी का संचालन किसी सक्षम बोर्ड द्वारा हो।

श्री गोपाल कृष्णन ने प्लांट लगाने के साथ अच्छे अधिकारियों और अच्छे कामगारों की नियुक्ति का श्रेष्ठ कार्य किया। उन्होंने उत्पाद के ब्रांड का एक सुन्दर नाम भी रखा - ‘गोदावरी’।अत्याधुनिक संयंत्र तो लग गया, मगर कुछ ही समय बाद उसे किसी की नजर लग गई और वह कंपनी एक गंभीर संकट में पद गई। पता नहीँ क्यों, मोरक्को के साथ हमारे देश के संबंध खराब हो गए, इस वजह से डाई अमोनियम फास्फेट यानी डीएपी उर्वरक बनाने के लिए आवश्यक कच्चा माल फास्फोरिक एसिड का आयात अचानक बंद हो गया। मोरक्को की भारत में फॉस्फोरस एसिड वितरण करने की करीब-करीब मोनोपोली थी। ऐसे समय मैंने यह कंपनी ज्वाइन की। आयातित कच्चे माल की कमी के कारण बहुत कम मात्रा में डीएपी यानि उर्वरक बनाया जा रहा था। इस अवस्था में मैंने अपना सारा ध्यान आयातित फर्टिलाइजर्स की मार्केटिंग की तरफ लगाया। आयात किए गए उर्वरक की मात्रा का निर्धारण बीओएल अर्थात् बिल ऑफ लैंडिंग और सर्वे के आधार पर होती है। भुगतान करने लगे, भले ही, उर्वरक की वास्तविक मात्रा अनलोडिंग के समय थोड़ी-बहुत कम या ज्यादा हो सकती है। अगर वास्तविक मात्रा बीओएल मात्रा से कम निकलती तो हम इंश्योरेंस कंपनी से क्लैम कर सकते हैं और अगर माल ज्यादा निकल जाता है तो वह हमारे लिए बोनस हो जाता और स्वतः ही कंपनी के लाभ में जुड़ जाता है।

कहते हैं कि जो ऊपरी कमाई कमाना चाहे तो वह समुद्री लहरों को गिनकर भी कमा सकता है।ऐसा अकबर-बीरबल के किस्सों में आता है कि एक भ्रष्टाचारी सुरक्षा प्रहरी को अकबर ने हटाकर समुद्र किनारे लहरों को गिनने के लिए लगा दिया। जब कोई जहाज उधर से गुजरता, वहाँ लंगर डालता तो बादशाह का नाम लेकर उनसे घूस कमाने लगा। ऐसा ही कुछ यहाँ भी हुआ।

कंपनी द्वारा मंगाए गए अधिकांश शिपमेंटों की मात्रा बीओएलक्यू के आसपास थी। एक शिपमेंट में हमें एक प्रतिशत से भी ज्यादा मात्रा मिली, हमारे चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। मैंने सोचा, आखिरकार कुछ तो कंपनी को अतिरिक्त लाभ होगा। एक प्रतिशत लाभ भी क्या कम होता है ? मगर ऐसा हुआ नहीँ। कंपनी का मार्केटिंग डिपार्टमेन्ट एक जनरल मैनेजर मैनेजर के अधीन था और, उनके सहयोग के लिए एक चीफ मार्केटिंग मैनेजर नियुक्त किया हुआ था। चीफ मार्केटिंग मैंनेजर बहुत ही बुद्धिमान था,मगर यह मुझे पता न था। कंपनी के मार्केट शेयर बढ़ाने के लिए मैं उस पर बहुत ज्यादा निर्भर करता था कि वह बहुत धूर्त भी था।

जैसे ही उसे शिपमेंट में ज्यादा मात्रा आने की खबर मिली, समुद्र की लहरें गिनने वाले प्रहरी की तरह वह भी अपने ताने-बाने बुनने लगा। उसने कंपनी के बड़े मार्केट उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के हमारे बड़े विक्रेताओं से साँठ-गाँठ करना शुरू कर दिया। लखनऊ और भोपाल के हमारे मैनेजरों को अपने षड्यंत्र में शामिल किया। और उनसे मिलकर झूठी रिपोर्ट मंगाना शुरू किया कि आयातित उर्वरक के बोरे में 2 से 3 किलोग्राम कम माल मिल रहा है और उन बोरों का मानकीकरण के लिए अर्थात् 50 किलोग्राम करने के लिए कुछ माल मिलाना पड़ेगा। उसने मेरे पास एक नोट भेजा,जिसमें उसने लिखा कि रवि फसल की बुवाई का काम करीब-करीब खत्म होने जा रहा है। और अगर मानकीकरण के बाद सारा स्टॉक तुरंत खत्म नहीँ किया गया तो हमारे पास अनबिके माल की अगले साल भर के लिए पर्याप्त इंवेंटरी बच जाएगी।

श्री पी. बालासुबह्मण्यम,हमारी कंपनी में महाप्रबंधक (वितरण) थे।उन्हें काकीनाड़ा बंदरगाह पर अनलोडिंग और बैग भरने का काम दिया गया था। वे बहुत ही काबिल और ईमानदार अधिकारी थे। इसके अतिरिक्त,वहाँ काम कर रहे हमारी कंपनी के स्वीडोर एजेंट की रेपुटेशन ही बहुत अच्छी थी, इस वजह से वहाँ गड़बड़ घोटाला होने की आशंका बहुत ही कम थी।मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसी परिस्थिति बनी कैसे? फिर भी मैंने समय की मांग देखते हुए मानकीकरण के आदेश दिए और सारी प्रक्रिया की जाँच करने हेतु हैदराबाद से कुछ अधिकारी उतरप्रदेश और मध्यप्रदेश भेजे।

मैंने खुद दो हमारे बड़े विक्रय केन्द्र इलाहाबाद और वाराणसी जाने का तय किया। जब मैं वाराणसी पहुँचा तो चीफ मार्केटिंग मैनेजर मुझे एयरपोर्ट पर मिले। वाराणसी धार्मिक स्थान है। मुझे पहले वहाँ विश्वनाथ मंदिर ले जाया गया, जहाँ आधा दिन तो पूजा-पाठ में ही बीत गया। उसके बाद हम दो डीलरों के गोदामों के निरीक्षण के लिए गए। मेरे सामने कुछ बोरों को तोला गया। सबमें दो-तीन किलोग्राम माल कम निकला। शाम की फ्लाइट से हम लोग इलाहाबाद पहुंचे।अगले दिन सुबह वहाँ के एक डीलर के गोदाम का निरीक्षण किया गया। वहाँ भी तोले गए थैलों में माल दो-तीन किलोग्राम माल कम था। मन कुछ शंकित लग रहा था। मैं चाहता था कि एक डीलर के गोदाम का निरीक्षण बिना पूर्व सूचना के किया जाए। यहाँ भी सियार की चतुराई रंग लाई। उसने मुझसे कहा,‘‘दूसरा डीलर नदी के उस पार रहता है। उधर जाने के लिए हमें एक तंग-पुल से होकर गुजरना पड़ेगा। तंग-पुल पर अधिकांश समय ट्रैफिक जाम रहता है। अगर हम वहाँ चले भी गए तो आपके फ्लाइट छूटने की संभावना बनी रहेगी।’’

जैसे ही मैं हैदराबाद पहुँचा, वैसे ही श्री सुब्रमण्यम, महाप्रबंधक (वित्त) मुझसे मिले और कहा ,‘‘मेरे एक अधिकारी ने खबर दी है कि आपका दौरा मेनिपुलेट किया गया है। वहाँ न तो बोरों में किसी प्रकार की कमी पाई गई हैं और न ही वहाँ किसी भी प्रकार का मानकीकरण किया जा रहा है। यह एक महज “षड्यंत्र" है। चीफ मार्केटिंग मैंनेजर ने अपने एजेंटों और फील्ड स्टॉफ वालों के साथ मिलकर यह योजना बनाई थी।’’

महाप्रबंधक (वित्त) से सारी कहानी सुनने के बाद मेरी आँखों के सामने वाराणसी और इलाहाबाद के सारे दृश्य याद आने लगे। विश्वनाथ मंदिर, पूजापाठ, तंगपुल, पहली पंक्ति में कम वजन वाले बोरे.......सब-कुछ एक-एककर मेरे मानस पटल पर ज्यों के त्यों गुजरने लगे। अब समझ में आया कि मुझे इलाहाबाद के दूसरे डीलरों के निरीक्षण को फ्लाइट छूटने के बहाने रोका गया। अप्रत्यक्ष मुझे गुमराह किया जा रहा था। मन ही मन मुझे अपने आप पर गुस्सा आ रहा था। अपने आपको ठगा हुआ महसूस कर रहा था।

तुरंत मैंने चीफ मार्केटिंग मैनेजर को वापस हैदराबाद बुलाया और उसके बाद मार्केटिंग, डिस्ट्रीब्यूशन और फाइनेंस के महाप्रबंधकों की एक टीम उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश भेजी, सही तथ्यों की खोज करने के लिए। इस टीम ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि उत्तर भारत के बाजार में उर्वरक के सारे बोरों में मात्रा एकदम ठीक थी। किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीँ पाई गई। उन्होंने यह भी लिखा कि चीफ मार्केटिंग मैंनेजर ने दिल्ली के रीजनल मैनेजर, लखनऊ और भोपालऔर के मैनेजर उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के कंपनी के एजेंटों की मिली भगत से यह साजिश रची गई थी।

साजिश का पर्दाफाश होने के बाद मैंने तुरंत चीफ मार्केटिंग मैंनेजर और दिल्ली,भोपाल और लखनऊ के मैनेजरों को उनके उत्तरदायित्वों से अलग करके उनका हैदराबाद ट्रांसफर कर दिया। मैंने इस कमेटी को सारी संक्रियाओं की जाँच करने के आदेश दिए, शिप से उतारने से लेकर नार्थ इंडिया के मार्केट में डीलरों तक उर्वरक पहुँचाने तक की।

मेरे लिए फिर से आत्मावलोकन का पल था। मैं सोच रहा था, जिस तरह से एक चुंबक लोहे के कणों को अपनी तरफ खींचता है ठीक इसी तरह से सीनियर रैंक का एक भ्रष्ट अधिकारी अपने अधीनस्थ सारे अधिकारियों को भ्रष्टाचार की तरफ आकर्षित करता है। यही नहीँ, बहुत ही कम समय में वह किसी संस्थान की सारी सोपानिकी को गलत कार्यों के लिए प्रेरित कर भ्रष्टाचार के सेसपूल की ओर खींच ले जाता है।

मेरा अंतर्द्वन्द्व अभी तक खत्म नहीँ हुआ था। कितने अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही करता, चीफ मार्केटिंग मैनेजर का साथ निभाने के लिए? मेरे इस कदम से कहीँ कंपनी पंगु न हो जाए, इस बात का भी मुझे डर था। क्या करूँ या क्या न करूँ? एक विकल्प यह था कि कंडक्ट रुल्स के तहत औपचारिक जाँच कर दोषी व्यक्तियों को नौकरी से बर्खास्त किया जाए। मगर जाँच की यह प्रक्रिया भी इतनी छोटी नहीँ है। कम से कम छः-सात महीने लग जाएंगे। तब तक क्या मार्केटिंग जैसे महत्त्वपूर्ण पोस्ट को खाली रखा जा सकता है? नहीँ, कदापि नहीँ। तब क्या किया जा सकता था?

दूसरा विकल्प यह था कि- कदाचार में लिप्त अधिकारियों को नोटिस की एवज में तीन महीने की तनख्वाह देकर सीधे नौकरी से हटा दिया जाए। मगर इस विकल्प की भी अपनी सीमाएँ थी। कहीँ वे लोग कानून की शरण न ले लें। कहीँ हाईकोर्ट इस आदेश पर स्टे-आर्डर जारी न कर दें। अगर मामला कोर्ट में चला गया तो बहुत सालों के लिए खीँचा जाएगा। हमें और ज्यादा दिक्कतें होंगी। कुछ भी ठोस निर्णय पर मैं नहीँ पहुँच पा रहा था। अभी तक इस उलझन से उभर भी नहीँ पाया था कि हैदराबाद के अखबारों में मेरे और महाप्रबंधक (वितरण) के खिलाफ आयातित उर्वरक में एक करोड़ की धाँधली करने के आरोप वाली खबर छपी। इस खबर में दो विधायकों ने मुख्यमंत्री से हमारे खिलाफ सीबीआई जाँच करवाने की माँग की थी।

यह खबर पढ़कर मैं सन्न रह गया। ऐसे घिनौने आरोप, वे भी विधायकों द्वारा! इन विधायकों को न तो मैं जानता था और न ही महाप्रबंधक (वितरण)।कमापनी का काम समझने के लिए न वे कभी मुझसे मिले और न ही कभी किसी ऑफिसर से।चतुर सियार ने अवश्य यह चाल खेली है। जरूर चीफ मार्केटिंग मैंनेजर ने उन्हें भड़काया होगा, इसलिए सही तथ्यों को जाने बिना उन्होंने यह कदम उठाया है।चीफ मार्केटिंग मैनेजर ने अपनी तरफ से ध्यान हटाने के लिए अपनी कुबुद्धि का प्रयोग किया था। बहुत जल्दी ही यह बात भी समझ में आ गई कि विधायक भी भ्रष्ट आदमियों के हाथों की कठपुतली हो सकते हैं। मैंने कदाचारी अधिकारियों के साथ-साथ विधायकों के खिलाफ कार्यवाही करने का निश्चय किया।

मैंने बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में एक नोट प्रस्तुत किया जिसमें निम्न बिन्दु थे -

1- उन विधायकों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के अनुरूप कंपनी और उसके अधिकारियों की प्रतिष्ठा पर आँच लगाने के लिए आपराधिक मुकदमा दायर किया जाए।

2- उन विधायकों के खिलाफ कचहरी में दस लाख रुपये की मानहानि का दावा ठोका जाए।

इस प्रस्ताव पर बोर्ड पूरी तरह सहमत हो गया, मगर जब कार्यवृत को मुख्य सचिव श्री के.वी.नटराजन ( जो कि कंपनी के एक्स-ऑफिसियो चेयरमैन थे) थे के पास अनुमोदन के लिए भेजा गया तो वे इससे सहमत नहीं हुए। उन्होंने मुझे निर्देश दिया कि इस बैठक के कार्यवृत्त को श्री विलियम की सलाह लेकर फिर से तैयार किया जाए, क्योंकि वे सरकार की तरफ से बोर्ड का नामित सदस्य है। श्री विलियम ने एक नया कार्यवृत बनाया, जिसमें लिखा गया कि विधायकों के विरुद्ध कार्यवाही चेयरमैन की अनुमति से की जाए। मैं इस कार्यवृत से सहमत नहीं था। इसलिए मैंने सलाह दी कि दोनों कार्यवृत अगले बोर्ड की मीटिंग में रखे जाए ताकि बोर्ड सही निर्णय ले सकें, किंतु श्री नटराजन मेरी सलाह पर भी सहमत नहीँ हुए।

मेरी समझ में नहीं आया कि श्री नटराजन जिन्हें मैं तेज-तर्रार और साहसी अधिकारी के रूप में मानता आया था, आज वह मेरा साथ क्यों नहीँ दे रहे हैं? क्या उन्हें मेरी सत्यनिष्ठा पर किसी प्रकार का संदेह है? मुझे तो आशा थी कि वह उन विधायकों के खिलाफ कार्यवाही करने में मेरी मदद करेंगे, जिन्होंने मेरे ऊपर झूठे और निराधार आरोप लगाए थे। जबकि उन्होंने विलियम को काकीनाड़ा भेजकर स्वतंत्र जाँच करने के आदेश दिए।

श्री विलियम जांच के लिए काकीनाडा गए और उन्होंने मेरे और बालासुब्रमण्यम के खिलाफ कुछ सबूत खोजने की बहुत कोशिश की। मगर उन्हें ऐसा कुछ भी हाथ नहीँ लगा।

नटराजन के आचरण से मैं स्तब्ध था। संशोधित बोर्ड नोट में मुझे चेयरमैन की सलाह पर कानूनी कार्यवाही के लिए अधिकृत किया गया था, मगर जब मैंने उनके अनुमोदन के लिए नोट भेजा तो श्री नटराजन ने उसे अनुमोदित करने की बजाय सरकार की सहमति हेतु आगे प्रेषित कर दिया। उनसे सहयोग की ओर उम्मीद ? शायद वह अपने ऊपर सत्तारूढ़ पार्टी के विधायकों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दायर करने का दायित्व नहीँ लेना चाहते थे। कंपनी में मेरी कार्यावधि 31 जुलाई 1991 को समाप्त होने जा रही थी, उसके कुछ ही दिन पहले नटराजन सेवानिवृत्त हो गए। उनके कार्यकाल में विधायकों के खिलाफ कार्रवाई करने की अनुमति नहीं मिली।

इसी बीच मैं ने निर्णय लिया कि जो तीन अधिकारी मानकीकरण के घोटाले में संलिप्त थे। उन्हें तीन अधिकारियों को तीन महीनों के नोटिस देने की एवज में तीन महीने की तनख्वाह देकर टर्मिनेट किया जाए। जैसे ही टर्मिनेशन आर्डर उन दोषी अधिकारियों को दिया गया,वैसे ही उन्होंने स्वयं त्यागपत्र देने की इच्छा व्यक्त की।

मैं भी यही तो चाहता था। तुरंत उनकी बात पर सहमत हो गया। उसके साथ ही इस विषय पर कोई लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने की आशंका ही समाप्त हो गई। नटराजन ने सेवानिवृत्त होने के बाद दलजीत अरोड़ा मुख्य सचिव बने और जीएफ़सीएल बोर्ड के चेयरमैन भी।इसके साथ ही आंध्र प्रदेश सरकार ने मुझे विधायकों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दायर करने की अनुमति दे दी।

मैं कोर्ट में केस फाइल करने वाला ही था कि तत्कालीन मुख्य सचिव श्री दलजीत अरोड़ा ने मुझे सलाह दी, इस विधायक के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज करने से कोई खास फायदा नहीँ होने वाला है। फैसला आने में सालों साल लग जाएंगे और ऐसे भी कुछ भी नहीँ कहा जा सकता है कि ऊँट किस करवट बैठेगा। समय और ऊर्जा लगेगी वह अलग से, फिर यह कोई जरूरी नहीँ कि परिणाम मन मुताबिक आएँगे। उनकी सलाह को ध्यान में रखते हुए मैंने विधायकों के विरुद्ध आपराधिक मुकदमा दर्ज करने का विचार छोड़ दिया।

जिस समय मैंने कंपनी छोड़ी, उस समय उसका टर्न अराउंड हो रहा था। उसके सारे संचित नुकसान समाप्त हो चुके थे।कंपनी नुकसान से निकलकर लाभ में आ चुकी थी।सारा संचित नुकसान समाप्त हो गया और पहली बार कंपनी ने लाभांश देने की घोषणा की।कंपनी के लाभ में आने से वेतनमान पुनरावृत्ति के लिए श्रमिकों की आशाएँ बढ़ रही थी। मैनेजमेंट के ऊपर दबाव डालने के लिए श्रमिक संगठन ने हड़ताल की घोषणा कर दी। मैनेजमेंट और यूनियन की कई बैठकों के बाद करीब-करीब सारे मुद्दों पर सहमति हो गई थी। एक मुद्दा जिस पर कोई सहमति नहीं बन पा रही थी,वह कंपनी में अनुशासन के संबंध में था। मारपीट और अनुशासन भंग करने के कारण दो श्रमिकों को,जो यूनियन के पदाधिकारी थे,पूर्व मैनेजिंग डायरेक्टर श्री गोपाल कृष्णन ने बर्खास्त कर दिया था।यूनियन उनकी बहाली पर अड़ी हुई थी।मैं अनुशासन के मामले में कोई समझौता नहीं करना चाहता था

इस संदर्भ में दो बैठकें तत्कालीन श्रममंत्री श्री पी.जर्नादन रेड्डी के साथ हुई। श्री जर्नादन रेड्डी भी कभी श्रमिक नेता हुआ करते थे। वह स्वयं बर्खास्त कामगारों की बहाली पर जोर देने लगे। मैंने उन्हें उनके गंभीर आरोपों के बारे में बताया। मैंने उनसे पूछा, ‘‘ यह जानते हुए भी कि उन पर गंभीर प्रकृति के आरोप हैं, फिर भी आप उनकी बहाली पर क्यों आमादा है?’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैं जानता हूँ, मगर यह मेरी प्रेस्टीज का सवाल है। अगर राज्य श्रममंत्री होकर दो बर्खास्त कामगारों की बहाली नहीँ करवा सकता हूँ तो श्रमिक लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे कि मेरा श्रममंत्री बनने से उनका फायदा क्या है?’’

प्रत्युत्तर में मैंने कहा, ‘‘श्रममंत्री होने के कारण आपका यह भी दायित्व बनता है कि औद्योगिक इकाइयों में अनुशासन और स्वस्थ कार्य संस्कृति बनी रहे।’’

मगर वह मानने वाले कहाँ थे मेरी बात? वह टस से मस नहीँ हुए। आखिरकार मैंने मुख्यमंत्री को जाकर सारी बात समझाई, तब जाकर वह अपनी जिद्द से हटे। मैंने उन्हें कहा कि मैं श्रमिकों के वेतन में और इजाफा करने के लिए तैयार हूं किंतु अनुशासन के विषय में कोई समझौता करना कंपनी के दूरगामी हित में नहीं होगा।मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप के बाद यूनियन ने यह मांग छोड़ दी।श्रमिकों की हड़ताल समाप्त हो गई। हड़ताल के तत्कालीन मैनेजमेंट और यूनियन के बीच के कटु संबंध समाप्त हो गए। वेज सेटलमेंट हो गया। आपसी सम्मान और विश्वास लौट आया। यह विश्वास जीतने में एक बाबू से आईएएस बने श्री बालासुब्रह्मण्यम की महत्ती भूमिका रही। वे मानव संसाधन विभाग के महाप्रबंधक थे। मेरे सेवाकाल में जितने अधिकारियों ने मेरे साथ काम किया, उनमें यही एक मात्र ऐसे इंसान थे जिनकी सत्यनिष्ठा पर पूरी तरह से विश्वास किया जा सकता था। सही अर्थों में, वह एक दुर्लभ इंसान थे, जो ईमानदार होने के साथ-साथ दक्ष और कारगर अधिकारी भी थे। मुझे उनकी सत्यनिष्ठता पर पूरा भरोसा था और जब विधायकों ने उनके खिलाफ मुख्यमंत्री से शिकायत की थी तो मैंने सरकार को लिखा था कि उनकी सत्यनिष्ठता पूरी तरह से विश्वसनीय है और अगर उनके कार्य संपादन में किसी की कमी रह गई है तो उसकी सारी जिम्मेदारी मैं अपने ऊपर लेता हूँ।

साँच को आँच कहाँ! यूनियनों ने अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार के खिलाफ उठाए गए मेरे कठोर कदमों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। कामगारों व अधिकारियों के हौसलें बुलंद हुए। यूनियन और मैनेजमेंट के बीच मधुर संबंध बनने लगे।काकीनाड़ा और हैदराबाद में दिया गया मेरा फेयरवेल अत्यन्त भावुक और हृदयस्पर्शी रहा। हड़ताल से पहले वाला विद्वेष बिलकुल नहीँ था। बड़े सम्मान के साथ अधिकारियों,स्टॉफ ओर यूनियन वालों ने मुझे ‘‘रोल ऑफ ऑनर’’ प्रदान किया था। क्या वह दिन कभी भूला जा सकता!

अनेक खट्टी-मीठी यादों के साथ गोदावरी फर्टिलाइजर्स एवं केमिकल लिमिटेड में मेरी कार्यावधि एक सुकून के साथ पूरी हुई।

(क्रमशः अगले अंकों में जारी....)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: शिखर तक संघर्ष (भाग 4) // प्रकाश चन्द्र पारख
शिखर तक संघर्ष (भाग 4) // प्रकाश चन्द्र पारख
https://lh3.googleusercontent.com/-LZTvAs87JhE/WXberKbmjiI/AAAAAAAA5rA/qx7AU_I_1socR1WdRvlF4RLtt9CScm4LgCHMYCw/image_thumb?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-LZTvAs87JhE/WXberKbmjiI/AAAAAAAA5rA/qx7AU_I_1socR1WdRvlF4RLtt9CScm4LgCHMYCw/s72-c/image_thumb?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/07/crusader-or-conspirator-p-c-parakh-4.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/07/crusader-or-conspirator-p-c-parakh-4.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content