शिखर तक संघर्ष (भाग 7) // प्रकाश चन्द्र पारख

SHARE:

प्रकाश चन्द्र पारख की पुस्तक - Crusader or Conspirator? by P C Parakh का हिन्दी अनुवाद अनुवादक - दिनेश माली भाग 1   //  भाग 2 // भाग 3 // ...

प्रकाश चन्द्र पारख की पुस्तक - Crusader or Conspirator? by P C Parakh का हिन्दी अनुवाद

image

अनुवादक - दिनेश माली

भाग 1  //  भाग 2 // भाग 3 // भाग 4 // भाग 5 // भाग 6 //


17॰कोल इंडिया के सीएमडी का चयन : मंत्रियों द्वारा ब्लैकमेलिंग

जब करियामुंडा कोयला मंत्री थे तो कोल इंडिया के तत्कालीन चेयरमैन श्री एन.के. शर्मा कैपिटल इन्वेस्टमेंट तथा एक्सप्लोजिव खरीदने में बरती गई अनियमिताओं के कारण निलंबित कर दिया गया था। श्री शर्मा नौ महीने तक निलंबित थे और कोल इंडिया के निदेशक (विपणन) श्री शशि कुमार के पास चेयरमैन का अतिरिक्त प्रभार था।

देश में कोयले का प्रचुर अभाव था। देश के लगभग सारे पावर प्लांटों में कोयले की कमी थी। कुछ तो बंद होने की कगार पर आ चुके थे।नियमित फुलटाइम चेयरमैन की अनुपस्थिति के कारण कोल-इंडिया की गतिविधियाँ बुरी तरह से प्रभावित हो रही थी।

फुलटाइम चेयरमैन की नियुक्ति के लिए सीएमडी रैंक की एक सुपरनुमरी पोस्ट क्रिएट करने का एक प्रस्ताव सुश्री ममता बनर्जी के अनुमोदन के साथ डिपार्टमेन्ट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग को मेरे कोयला मंत्रालय में नियुक्ति के पहले ही भेजा जा चुका था। मगर सरकार बदलने के बाद इस प्रस्ताव का नए कोयला-मंत्री से अनुमोदन आवश्यक था। मैंने नए कोयला मंत्री श्री सोरेन को इस प्रस्ताव के बारे में संक्षिप्त में जानकारी दी और उनका अनुमोदन लेकर फिर से एक बार उसी प्रस्ताव को डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल को भेजा। (परिशिष्ट 17-1)। इस प्रस्ताव को भेजे एक हफ्ता भी नहीं हुआ होगा कि श्री सोरेन के पास श्री एन.के. शर्मा की बहाली हेतु सांसद श्री टेक लाल मेहता का पत्र प्राप्त हुआ। अब श्री सोरेन चाहते थे कि जल्दी से जल्दी श्री शर्मा को बहाल किया जाए, भले ही, उनके खिलाफ जाँच चल रही थी।मैंने उन्हें सलाह दी, "ऐसा करना उचित नहीँ है। "

हालांकि वे मेरी इस सलाह पर सहमत हो गए, मगर बाद में जब उन्होंने मेरे खिलाफ प्रधानमंत्री को पत्र लिखा तो उस शिकायती पत्र में उन्होंने मेरे ऊपर गुमराह कर हस्ताक्षर ले लेने का आरोप लगाया।

अंत में, प्रधानमंत्री द्वारा कोयला मंत्रालय का चार्ज लेने के बाद सरकार ने सीएमडी रैंक की सुपर-नुमरेरी पोस्ट को मंजूरी दी।15 सितम्बर 2004 को इस पोस्ट के लिए इंटरव्यू किया गया। पब्लिक एंटरप्राइजेज सेलेक्शन बोर्ड (पीईएसबी) ने मेरिट के आधार पर दो नामों की सिफारिश की। पहला नाम कार्यकारी चेयरमैन श्री शशि कुमार का था। श्री शशि कुमार के इंटरव्यू के पहले ही श्री सोरेन और श्री दसारी नारायण राव ने मंत्रालय ज्वाइन करते ही श्री कुमार से पहले एकमुश्त 50 लाख रुपए और फिर हर महीने 10 लाख रुपए भुगतान करने की मांग की, मगर श्री शशि कुमार ने साफ मना कर दिया।

श्री राव द्वारा श्री कुमार के खिलाफ कार्यवाही की शुरूआत:-

सेंट्रल विजिलेंस कमीशन यानि सीवीसी से क्लियरेंस मिलने के बाद मैंने श्री कुमार की नियुक्ति वाली फाइल 15 अक्टूबर को श्रीराव, राज्यमंत्री के पास सबमिट कर दी। 29 अक्टूबर को राज्य मंत्री ने कोल-इंडिया के लिए बारूद खरीदने में श्री कुमार की संदिग्ध भूमिका को लेकर फाइल वापस लौटा दी।

पीईएसबी और सीवीसी की सिफारिशों की अवमानना -

श्री कुमार की सत्यनिष्ठता पर राज्यमंत्री द्वारा संदेह प्रकट करने के कारण एक बार फिर से कोल इंडिया के मुख्य सर्तकता अधिकारी से उनके बारे में रिपोर्ट मांगी गई और फिर से उनके विजिलेंस क्लियरेंस पर सीवीसी से सलाह ली गई। जब सीवीसी ने यह विचार व्यक्त किया कि श्री शशि कुमार के खिलाफ कोई केस नहीं बनता तो मैंने उनकी नियुक्ति की फाइल को 24 दिसम्बर को फिर से कोयला मंत्री के पास अनुमोदन हेतु भेज दी। इस समय फिर से श्री सोरेन कोयला मंत्री बन चुके थे। दोनों मंत्रियों के निजी सचिवों ने श्री कुमार को मंत्रियों को एक डिनर पर बुलाया।बातचीत के दौरान उन्हें यह सुझाव दिया गया कि यदि वे स्वयं पैसे नहीं दे सकते तो कम से कम वह कोल इंडिया की अनुषंगी कंपनियों के सीएमडी लोगों से पैसे लेने में एक बिचौलिये का काम तो कर सकते है।उन्हें यह समझाया गया कि पुराने सारे चेयरमैन मंत्रियों को पैसा देते रहे हैं।

मगर श्री कुमार ने ऐसा करने से भी मना कर दिया। प्रतिक्रियास्वरूप क्रोधित होकर राज्यमंत्री ने एक लंबा चौड़ा नोट लिखा और अंत में अपना निष्कर्ष निकालते हुए यह लिख दिया कि इस मामले में उन्हें सीवीसी की सलाह पूरी तरह से अस्वीकार्य है और श्री कुमार को सीएमडी के पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता। श्री सोरेन ने राज्य मंत्री के प्रस्ताव का अनुमोदन करते हुए फाइल मुझे लौटा दी।

मंत्रियों द्वारा उठाए गए सारे मुद्दों का मैंने सटीक जबाब दिया और वह फाइल फिर से सबमिट की। उसमें मैंने यह लिखा कि पीईएसबी एक स्वतंत्र संस्थान है, जो सरकारी उपक्रमों के डायरेक्टर और चेयरमैन का चयन करती है। इसी तरह लोक सेवकों के विजिलेंस मामलों की जाँच करने वाली सबसे ऊँची संस्था है -सीवीसी। अत: पीईएसबी और सीवीसी की सिफारिशों के आधार पर चयनित श्री कुमार की नियुक्ति निरस्त नहीँ की जा सकती, इसलिए इस मामले पर पुनर्विचार किया जाए। राज्यमंत्री ने फिर से श्री कुमार की नियुक्ति को निरस्त करने के बारे में अपने विचार दोहराए और श्री सोरेन ने उन विचारों के साथ सहमति जताते हुए फाइल लौटा दी।

मैं मंत्रियों को अपनी बात समझाने में विफल रहा। मैंने मंत्रियों के मंतव्यों पर अपने विचार लिखकर फाइल डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग को एपांइटमेट कमेटी ऑफ कैबिनेट (एसीसी) के निर्णय के लिए भेज दी।

मेरे एसीसी में केस भेज देने से नाराज दोनों मंत्रियों ने इस मामले को गंभीरता से मेरा स्पष्टीकरण मांगा और पूछा गया, ‘‘पैनल में दिए गए दूसरे नाम पर विचार के बिना ही सीधे शशिकुमार का प्रस्ताव डीओपीटी को क्यों भेज दिया गया?’’

शायद मंत्रीलोगों ने दूसरे नंबर के केंडीडेट से सौदेबाजी शुरू कर दी थी। मुझे उन्हें भारत सरकार के बिजनेस रुल्स के प्रावधान दिखाते हुए समझाना पड़ा, ‘‘पीईएसबी की सिफारिशों के निरस्त करने का अधिकार केवल एसीसी को है, कोयला मंत्री को नहीँ। कोयला मंत्री इस कमेटी में केवल एक सदस्य है। दूसरे सदस्य गृहमंत्री और प्रधानमंत्री होते है। सेक्रेटरी की हैसियत से मेरा यह दायित्व बनता है कि मैं बिजनेस रुल्स का अनुपालन करूँ। इसलिए मैंने अपने बिजनेस रुल्स का पालन करते हुए सारे रिकॉर्ड एसीसी के दूसरे सदस्यों के पास विचारार्थ भेज दिए हैं।’’

मेरा स्पष्टीकरण सुनने के बाद में दोनों मंत्री निरुत्तर हो गए।

श्री कुमार की नियुक्ति पर एसीसी की स्वीकृति -

कुछ ही दिनों बाद श्री सोरेन ने झारखंड का मुख्यमंत्री बनने के लिए कोयला मंत्रालय से इस्तीफा दे दिया था। फिर से प्रधानमंत्री ने कोयला मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार संभाला। प्रधानमंत्री ने श्री राव और श्री सोरेन की सलाह को अनदेखी करते हुए कोल इंडिया के चेयरमैन के लिए श्री शशि कुमार के नाम पर अपनी सहमति प्रकट कर दी। प्रधानमंत्री ऐसा इसलिए कर सके, क्योंकि सोरेन ने त्यागपत्र दे दिया था। अगर सोरेन कोयला मंत्री रहते तो प्रधानमंत्री शायद ही ऐसा कर पाते।

कोयला मंत्री श्री शशि कुमार पर अनुचित दबाव डालने लगे। उनकी माँगें नहीँ मानने के कारण समय-समय उन्हें या तो प्रताड़ित करते या डराते-धमकाते। इतना होने के बावजूद भी श्री कुमार ने अपने अदम्य साहस का परिचय दिया। कोल इंडिया के अधिकांश अधिकारियों में ऐसा साहस नहीँ होता है। मंत्रियों की अवैध मांगों को मानने से इंकार करना हर किसी के वश में नहीँ होता है। सरकारी उपक्रमों में बोर्ड लेवल के अधिकारियों की नियुक्ति पर मंत्रियों द्वारा पैसों मांगने का यह कोई इकलौता उदाहरण नहीँ है। बहुत सारे ऐसे अधिकारी हैं, जो मंत्रियों के संरक्षण में गलत काम करते हैं और दोनों की मिलीभगत से भ्रष्टाचार पनपता हैं। मैं समझता हूँ कि सरकारी उपक्रमों एवं सरकारी विभागों में यह प्रायः आम बात है। इसलिए मुझे इस बात पर कोई खास आश्चर्य नहीँ हुआ, तब तत्कालीन रेलवे मंत्री पवन कुमार बंसल का भतीजा रेलवे बोर्ड में श्री महेश कुमार की सदस्य के तौर पर नियुक्ति के लिए रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़े गए थे। इतना ही नहीँ, हमारे देश के औद्योगिक घरानों की बहुत सारी ऐसी पब्लिक रिलेशन एजेंसिया है, जो नियुक्ति पाने वाले अधिकारियों की ओर से रकम भुगतान करने को इच्छुक रहती है और बदले में उनकी नियुक्ति हो जाने के बाद अपना काम निकालती है। जिनकी नियुक्ति ही भ्रष्टाचार के आधार पर हुई हो, उन उपक्रमों और विभागों के मुखिया अपने संस्थान में क्या भ्रष्टाचार मिटा सकते हैं? वे तो आते ही अपने दोनों हाथों से माल बटोरने में लगेंगे।

शिखर पर राजनेताओं की संडाधता के कारण आज पूरे देश में भ्रष्टाचार संस्थागत हो गया है। वे किस हद तक नीचे गिर चुके हैं, जिसकी आप कल्पना भी नहीँ कर सकते। आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री किरण कुमार रेड्डी को ऑल इंडिया सिविल सर्विस के प्रशिक्षुओं यह कहते हुए शर्म नहीँ आई कि आप लोगों को राजनैतिक भ्रष्टाचार पर चिंता करने की कोई जरूरत नहीँ हैं, क्योंकि राजनेता अपना धन चुनाव के दौरान जनता को वापस लौटा देते हैं। हमारे देश में राजनैतिक मापदंडों में इससे ज्यादा गिरावट की आखिरी हद और क्या हो सकती हैं?

18.सांसदों के खेल

मंत्रालय के सचिव का दायित्व संभालते ही मेरे सामने बड़ी चुनौती थी, देश में कोयले की कमी को पूरा करना। तापीय संयंत्रों में कोयले के अभाव ही वजह से हाहाकार मचा हुआ था। इस समस्या का समाधान करने के लिए मैंने सभी कोल कंपनियों के अध्यक्षों की एक बैठक बुलाई,ताकि कोयले की आपूर्ति हेतु कोई ठोस रणनीति बनाई जा सके।बीसीसीएल और सीसीएल में बहुत सारे छोटे और छिछले डिपोजिट थे। बैठक में एक सुझाव यह आया कि अगर इन छोटे-छोटे डिपोजिटों को खुली बोली के माध्यम प्राइवेट ठेकेदारों को दे दिया जाता है तो कोल इंडिया को छोटे-छोटे उपकरणों की खरीददारी में निवेश नहीँ करना पड़ेगा और प्राइवेट ठेकेदार कम समय में यह कोयला निकालकर सीआईएल को दे देंगे। दो डिपॉजिट के लिए खुली बोली द्वारा ठेकेदार निश्चित किए गए। एक सुबह इन खदानों का काम शुरू होने के बाद धनबाद के कांग्रेस के सांसद श्री चन्द्रशेखर दूबे का मेरे पास फोन आया। श्री दूबे कोयला मंत्री संसदीय समिति के सदस्य थे। हमारी फोन पर जो बातचीत हुई वह इस प्रकार से थी -

दूबे - सेक्रेटरी जी, मेरी इजाजत के बिना अपने बीसीसीएल मे आऊटसोर्सिंग के आदेश कैसे दे दिए?

मैं- दूबे जी, यह कंपनी के हित में बोर्ड ऑफ डायरेक्टर का फैसला है। मंत्रालय की इसमें कोई भूमिका नहीँ है।

दूबे - नहीँ, मुझे बताया गया है कि यह आपका निर्णय है।

मैं - यह सीआईएल का निर्णय है, जिससे मैं सहमत हूँ।

दूबे - मगर मेरी जानकारी के बिना सीआईएल यह निर्णय कैसे ले सकती है? मैं इस क्षेत्र का सांसद हूँ।

मैं - दूबे जी, यह कंपनी के प्रबंधन का निर्णय है। वे एरिया के सांसद को क्यों पूछेंगे? मैंने भी स्टेट लेवल की कई कंपनियों को संभाला है। मैंने कभी भी एम.एल.ए. और एस.पी. से नहीँ पूछा कि कंपनी कैसे चलाई जाए?

दूबे - ऐसा आपके आंध्रप्रदेश में हो सकता है। हमारे झारखंड में ऐसा नहीँ होता है। यहाँ का पत्ता भी हिलता है तो हमारी मर्जी से। मैं चाहता हूँ कि तुरंत आऊट सोर्सिंग बंद करें, अन्यथा मैं बंद कर दूँगा।

यह थी कोयला मंत्रालय के सेक्रेटरी यानि मेरी धनबाद के सांसद चंद्र शेखर दूबे की टेलीफोनिक बातचीत। कितने अहंकार और धमकी भरे शब्द थे दूबे के! क्या प्रशासन इतना निकम्मा हो चुका था कि ऐसे धमकी देने वाले सांसदों के खिलाफ कोई कारवाई नहीं की जा सकती? बात एकदम सही थी। अपनी जुबान के अनुसार दूबे के समर्थकों ने दूसरे दिन खदान का काम बंद करवा दिया। बीसीसीएल के सीएमडी भट्टाचार्य ने मुझे बताया कि दूबे के समर्थक ठेकेदारों के कामगारों को भीतर नहीँ जाने दे रहे हैं।

मैंने झारखंड के मुख्य सचिव श्री शर्मा से बातचीत की और कहा कि जिलाधीश को आप निर्देश दें कि ठेकेदार के आदमी काम कर सकें। मगर मुख्य सचिव से बातचीत करने का कोई फायदा नहीँ हुआ। खदान का काम ऐसे ही बंद रहा, जिलाधीश भी कुछ नहीँ करवा पाए। उल्टा, धमकी भरे लहजे में श्री दूबे ने मुझे फोन किया और बोले, ‘‘सेक्रेटरी जी, मैंने काम बंद करवा दिया है। मुख्य सचिव को बोलने से कोई फायदा नहीँ है। झारखंड में न तो मुख्य सचिव की चलती है और न ही जिला मजिस्ट्रेट मेरे आदमियों का वहाँ से हटा सकता है।’’

आप समझ गए होंगे कितने खूँखार गुण्डे पाल रखे होंगे दूबे जी ने। जब जिला-प्रशासन और राज्य-प्रशासन ही असक्षम हैं उन्हें संभालने में तो सीआईएल प्रबंधन क्या कर सकता था? मैंने पहली बार अनुभव किया कि झारखंड में सिविल सर्विस का कोई भी अधिकारी, चाहे वह कितना भी सीनियर क्यों न हो, कोयला माफियाओं से टक्कर नहीँ ले सकता।

दूबे जी कि जिद्द के आगे किसी की नहीँ चली। दो-तीन हफ्तों तक खदानें बंद रही। बहुत सारा कोकिंग कोल जल कर बर्बाद हो गया। मुझे रह-रहकर अपने कलेक्टर वाले दिन याद आने लगे। क्या आंध्रप्रदेश में ऐसा कभी हो सकता था? ऐसे मामलों को निपटने के लिए कलेक्टर की शक्तियाँ ही पर्याप्त होती थी। जबकि झारखंड में एक अड़ियल सांसद और उसकी इतनी हिम्मत? राज्य का मुख्य सचिव भी उसके सामने बौना पड़ रहा था।

बहुत समय से बीसीसीएल में अवैध कब्जेदारों ने मकान दबाए हुए थे। न केवल अवैध कब्जा, बल्कि बीसीसीएल के कर्मचारियों की तरह उन्हें सारी सुविधाएँ मिलती थी जैसे फ्री बिजली, पानी आदि। कोयला माफियाओं और राजनैतिक संरक्षण मिलने के कारण कंपनी उन्हें खाली नहीँ करवा पा रही थी। दूबे जी को भी बीसीसीएल का एक मकान चाहिए था। दूबे जी सांसद थे, यह क्या कम था मकान पाने के लिए? मगर श्री भट्टाचार्य ने उनका यह अनुरोध अस्वीकार कर दिया।

बुरी तरह से खफा हो गए दूबे जी। भट्टाचार्य को बेइज्जत करना और उनके खिलाफ झूठे आरोप लगाना शुरू कर दिया उन्होंने। देखते-देखते दूबे अवैध कब्जेदारों का संरक्षक बन गया। सीएमडी भट्टाचार्य ने मुझे दूबे की सारी गतिविधियों एवं उनकी अवैध मांगों के बारे में पत्र लिखा (परिशिष्ट 18-1)। यह पत्र पढ़कर आप आराम से इस निष्कर्ष पर पहुँच जाएँगे कि किस तरह एक सांसद अपने आपको कानून के ऊपर समझने लगता है।

दूबे जी का ही नहीँ, भारत के हर कोने में यही हाल है।सरकार लाचार है, असमर्थ है कानून व्यवस्था लागू करने में।

हर स्तर पर निर्वाचित प्रतिनिधि कांट्रेक्ट मैनेजमेन्ट में दखलंदाजी करने लगे हैं। सरकार के कामों में ही नहीँ, सरकारी उपक्रमों में ही नहीँ, वरन् प्राइवेट कंपनियों में भी अनवरत हस्तक्षेप करने लगे हैं। ये प्रतिनिधिगण सब हफ्ता वसूल करने वाले बन गए हैं। अपराध और समानांतर इकोनोमी में उनकी अहम भूमिका रहती है।

धनबाद में कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को भी अपना अस्तित्व बचाने के लिए कोयला माफियाओं और उनके राजनैतिक संरक्षकों से समझौता करना पड़ता है।

रिटायर होने के बाद मुझे एक अंडर ग्राउंड खान में हुई दुर्घटना की इंक्वारी के सिलसिले में धनबाद जाना पड़ा था। पता चला कि कलेक्टर का दूबे जी के साथ युद्ध चल रहा था। एक दिन दूबे जी ने कलेक्टर के ऑफिस पर ताला लगा दिया। कलेक्टर के ऑफिस पर ताला? कितनी बड़ी बात थी? यह तो साफ-साफ कानून का उल्लंघन था। उन्हें तुरंत गिरफ्तार किया जाना चाहिए था। मगर हुआ क्या? उसकी गिरफ्तारी के बदले में कलेक्टर का तबादला कर दिया गया। अब सोचिए, यह है हमारा जिला प्रशासन, जो खुद ही सुरक्षित नहीँ रह पाता है तो दूसरों को क्या सुरक्षा प्रदान करेगा? वे दिन अब लद गए, जब पुराने जमाने में मुख्यमंत्री अपने अधिकारियों का बचाव करते थे। मधु कोड़ा जैसे मुख्यमंत्री से कोई कलेक्टर या पुलिस अधीक्षक यह आशा लगाए कि कोयला माफियाओं से टक्कर लेने में वह उसे बचाएगा तो यह सोचना निरर्थक है।

बीसीसीएल में ई-ऑक्शन की सफलता ने कोयला माफियाओं को पूरी तरह परेशान कर दिया था। अगर ई-ऑक्शन कोल इंडिया की सारी कंपनियों में फैल गया तो माफियाओं और उनके राजनैतिक संरक्षकों के लिए अवैध आय वसूलना मुश्किल हो जाएगा। कोयला माफियाओं में मची खलबली के कारण मुझे मंत्रालय से हटाने की कोशिश की जाने लगी। दूबे जी मुझसे खफा थे क्योंकि बीसीसीएल के सीएमडी को मैं कंपनी के कामों में स्वच्छता लाने के लिए भरपूर सहयोग कर रहा था। दूबे जी ने नवंबर की शुरूआत में प्रधानमंत्री को पत्र लिखा कि स्विस बैंक में मेरा एकांउट है और बीच-बीच में मैं स्विट्जरलैंड जाता रहता हूँ (परिशिष्ट 18-2)। सीबीआई या संसदीय समिति मेरे संदिग्ध कारनामों की जाँच करे। ये हैं हमारे सांसद, कुछ अच्छा काम करने जाओ तो आपके पीछे ऐसे लगते हैं जैसे किसी अरण्य में विक्रमादित्य के पीछे वेताल। (परिशिष्ट 18-3) ।

दूबे जी के पत्र के जवाब में कैबिनेट सचिव को स्पष्ट शब्दों में मैंने लिखा कि आप सीबीआई या अन्य एजेंसी द्वारा जाँच करवाएँ, किन्तु यदि आरोप सत्य नहीँ पाए जाते हैं तो दूबे को कानूनन खामियाजा भुगतना होगा,क्योंकि भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी की इज्जत का सवाल है। मैंने उनसे यह भी गुजारिश की कि दूबे के अनुचित व्यवहार को उचित कार्यवाही के लिए लोकसभा के स्पीकर के ध्यान में भी लाया जाए।

दूबे का पत्र अभी थमा ही नहीँ था कि एक सांसद गिरधारी यादव ने भी ऐसा ही एक पत्र लिखा। केवल दूबे और गिरधारी लाल ही ऐसे सांसद नहीँ हैं, वरन् बहुत सारे ऐसे सांसद है जो अपनी अवैध मांगों की पूर्ति न होने पर सरकारी उपक्रमों एवं प्रशासनिक अधिकारियों को परेशान करते रहते हैं।

दूसरा उदाहरण लीजिए, सांसद फुरकन अंसारी का, (परिशिष्ट 18-7) जो सीसीसल के सीमएडी श्री आर.पी. रितौलिया के पीछे लगे हुए थे। उनकी मांग थी कि जामतारा क्षेत्र के सौ मुसलमानों को सीसीएल में नौकरी देने की। जब सीएमडी ने ऐसा करने से मना कर दिया तो उनके विरुद्ध झूठी शिकायत दूबे व अंसारी ने मिलकर प्रधानमंत्री से की। प्रधानमंत्री कार्यालय ने आवश्यक जाँचकर असत्य पाया और मुझे सलाह दी गई कि अंसारी को उचित तरीके से सूचित कर दिया जाए।

बात यहीं खत्म नहीँ होती है। बात चल रही थी सांसदों की, सांसदों के खेल के बारे में। सांसदों से ऊपर वाले लोग भी क्या अच्छे होते हैं?

वे लोग भी जब चाहे अपनी गंदी जुबान का प्रयोग करते हैं। उदाहरण के तौर पर श्री अनंत कुमार कोयला और स्टील की स्टैडिंग कमेटी के चेयरमैन थे। अपने किसी सगे संबंधी अधिकारी का सीआईएल में कहीँ ट्रांसफर करवाना चाहते थे। काम नहीँ करने पर सीआईएल चेयरमैन के लिए जिस बदजुबान का उन्होंने प्रयोग किया, वह आपकी सोच से भी परे होगा -

‘‘सीआईएल चेयरमैन और एमसीएल सीएमडी का ऐसा व्यवहार बर्दाश्त नहीँ किया जाएगा, मेरी पार्टी बीजेपी देखेगी कि वे अपनी भूल स्वीकार करें और राजनेताओं का महत्त्व समझें। अगर साहा का अनुरोध नहीँ माना गया तो एक दिन चेयरमैन को पछताना पड़ेगा। शशि कुमार को मैं उनके अंतिम दस महीनों में ऐसा सबक सिखाऊंगा कि छठी का दूध याद आ जाएगा।’’

शशि कुमार का यह पत्र (परिशिष्ट 18-8) साफ दर्शाता है कि राजनेता किस तरह अपना काम निकलवाना चाहते है? दादागिरी के बल पर पीएसयू के अधिकारियों के साथ दुर्व्यवहार कर? श्री अनंत कुमार कभी मंत्री रह चुके थे। वह यह बात शायद भूल गए कि सरकारी उपक्रमों और प्रशासनिक अधिकारियों की अपनी सेवाओं के विषय में राजनैतिक प्रभाव डालना आचार संहिता का उल्लंघन होता है। श्री साहा का कोलकाता से स्थानांतरण रुकवाने के लिए वह कदाचार को बढ़ावा दे रहे थे। वह तो यह भी भूल गए कि वह संसदीय स्थायी समिति के चेयरमैन है। उनसे कम से कम सच्चे और उदार व्यवहार की उम्मीद की जा सकती थी। शायद उनकी यह सोच थी कि इस समिति के चेयरमैन होने के नाते वह सीआईएल चेयरमैन को आदेश दे सकते है और अगर वह उनके आदेश को नहीँ मानता है तो उसे बुरे परिणामों के लिए धमकाया जा सकता है। मैंने राज्यमंत्री (कोयला) के द्वारा श्री अनंत कुमार के खिलाफ उचित कार्यवाही करने के लिए प्रधानमंत्री को एक नोट भेजा (परिशिष्ट 18-9)। यह मुझे मालूम नहीँ, उन्होंने वह नोट प्रधानमंत्री को भेजा अथवा नहीँ।

जब सोरेन ने दूसरी बार कोयला मंत्री के पद से इस्तीफा दिया तो मैंने मौके का फायदा उठाकर प्रधानमंत्री की सहमति से सारी कोयला कंपनियों में ई-ऑक्शन लागू करवा दिया। एमसीएल में ई-ऑक्शन का नोटिफिकेशन निकलने के बाद तालचेर कोयलांचल के बीजेपी सांसद धर्मेन्द्र प्रधान कुछ नॉन-कोर ग्राहकों को नोटिफाइड मूल्य पर कोयला दिलवाने हेतु मेरे पास आए। मैंने उन्हें समझाया कि आक्शन का नोटिफिकेशन जारी होने के बाद किसी को भी नोटिफ़ाइड मूल्य पर कोयला नहीं दिया जा सकता।श्री प्रधान नाखुश हो गए। ई-ऑक्शन ने कोल बेल्ट में कालेधन के प्रवाह को काफी हद तक रोक दिया था। अपना गुस्सा उतारने के लिए श्री प्रधान ने मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समिति का सहारा लिया। अगस्त की शुरूआत में जब इस बैठक का आयोजन किया गया, तब धर्मेन्द्र प्रधान अपना आपा खो बैठे। उन्होंने मेरे ऊपर कुछ भद्दे कमेंट किए। राज्यमंत्री इस बैठक की अध्यक्षता कर रहे थे, उन्हें टोकने के अपना विष-वमन जारी रखने दिया।

कोल सेक्टर में सुधार करने हेतु लगातार भीतर-बाहर से विरोध झेलने के बाद भी मैं लगातार काम में लगा रहा। इसके के बावजूद जब एक सांसद मेरे ऊपर घटिया कमेंट करते है और कोयला राज्यमंत्री मूकदर्शक बन कर बैठे रहते है तो मेरे लिए इससे बड़ी निराशा और क्या हो सकती थी। दूसरे ही दिन मैंने तत्काल प्रभाव से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए कैबिनेट सेक्रेटरी बी.के. चतुर्वेदी को एक पत्र लिखा,जिसके मुख्य अंश निम्न है(परिशिष्ट 18-10) :-

‘‘5 अगस्त 2005 शुक्रवार को कोयला मंत्रालय की सलाहकार समिति की बैठक में ओड़िशा के सांसद धर्मेन्द्र प्रधान के व्यवहार से मुझे ऐसा लगता है कि किसी भी सिविल सर्विस के अधिकारी के लिए अपने आत्म-सम्मान, गरिमा और सत्यनिष्ठा के साथ काम करना बहुत मुश्किल हो गया है। मेरे लिए ऐसे कष्टदायक वातावरण में काम करना पूरी तरह से असंभव है और मैं कोयला मंत्रालय के सचिव के उत्तरदायित्व से तुरंत मुक्त होना चाहता हूँ। मेरे इस पत्र को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए मेरा प्रार्थना पत्र समझा जाए। इसकी स्वीकृति होने तक मैं 9 अगस्त 2005 से अर्जित अवकाश पर जा रहा हूँ।’’

सांसदों का रवैया दिन-प्रतिदिन बिगड़ता चला जा रहा है और वे अपने सामने सरकारी उपक्रमों अथवा प्रशासनिक अधिकारियों को कुछ भी तवज्जह नहीँ देते। अपने क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति नहीँ होने पर अपना प्रतिशोध निकालने के लिए घटिया भाषा का इस्तेमाल करते है अथवा उन्हें ब्लैकमेल करते हैं।

17 अगस्त 2005 को मैं प्रधानमंत्री से मिला। मैंने उन्हें सांसदों द्वारा सरकारी उपक्रमों के वरिष्ठ अधिकारियों एवं प्रशासनिक अधिकारियों के अपमान और प्रताड़ना के बारे में मैंने विनम्रता पूर्वक प्रधानमंत्री से पूछा, "अगर सांसद भारत सरकार के सचिवों के साथ ऐसा बर्ताव कर सकते है तो युवा जिला अधिकारियों के साथ कैसा व्यवहार करते होंगे? अगर निर्वाचित जन प्रतिनिधि ब्लैकमेल और डराने-धमकाने का काम करेंगे तो जिला अधिकारी किस तरह से निष्पक्ष और सही ढंग से काम कर पाएंगे।’’

दुखी मन से प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘मुझे तो हर दिन ऐसी ही समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अगर मैं हर ऐसे मुद्दे पर त्याग-पत्र दे दूँ तो इससे क्या राष्ट्रहित होगा?’’

मैंने प्रधानमंत्री की बात को बड़े ध्यान से सुना। उनके चेहरे पर विवशता की रेखाएँ साफ नजर आ रही थी। हालांकि उनकी व्यक्तिगत सत्यनिष्ठा पर कभी भी कोई उंगली नहीँ उठा सकता।किन्तु फिर भी 2 जी और कोलगेट के घोटालों से उनकी छबि को काफी धक्का लगा। यदि वे अपने अधिकारों का दृढ़तापूर्वक प्रयोग करते तो इस घोटाले में नहीं होते।

प्रधानमंत्री ने मेरे प्रश्न का कोई भी समाधान तो नहीँ दिया, मगर मुझे पूरी तरह से सहयोग करने का आश्वासन दिया और मुझ पर अपना भरोसा जताया। उन्होंने मुझे सेवानिवृत्ति की याचिका वापस लेने की सलाह दी और अपनी तरफ से मेरे सेवानिवृत होने तक पूरा-पूरा सहयोग देने का आश्वासन दिया।

प्रधानमंत्री का आश्वासन पाकर मैंने उनकी सलाह मानते हुए 22 अगस्त 2005 को फिर से ऑफिस संभाला (परिशिष्ट 18-11)। मगर मुझे साफ-साफ लगने लगा था कि कोल सेक्टर में सुधार लाना आसान नहीँ है, क्योंकि प्रधानमंत्री की भी अपनी सीमाएं हैं।

संसदीय सलाहकार समिति की बैठक में हुई दुर्भाग्य-पूर्ण घटना के तुरंत पश्चात श्री धर्मेन्द्र प्रधान ने अपने कदाचार को न्यायसंगत ठहराते हुए प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा (परिशिष्ट 18-12)। जिसका कोयला मंत्रालय के मेमोरेण्डम द्वारा प्रधानमंत्री को सटीक जवाब भेजा गया (परिशिष्ट 18-13)। श्री प्रधान का यह पार्ट इस बात की झलक दिखाता है कि हमारे चुने हुए नेता कितने अनभिज्ञ, असंयमित एवं प्रतिशोध लेने वाले हो सकते है? श्री प्रधान ने मुझे सीआईएल चेयरमैन के प्रेजेंटेशन को सेंसर नहीँ करने का दोषी ठहराया। क्या उन्हें मालूम नहीँ था संसदीय सलाहकार समिति उन्मुक्त रूप से विचार विमर्श के लिए होती है और उसमें हर अधिकारी को अपनी बात रखने की आजादी होनी चाहिए। मंत्री या सचिव को उन्हें अपने विचार रखने से रोकना नहीँ चाहिए। श्री प्रधान ने अपने बचाव में पंडित नेहरू के लोकतांत्रिक समाजवाद का सहारा लिया, जिससे ना तो उनका, ना ही उनकी पार्टी बीजेपी का उससे कोई संबंध था। कितना मानते है बीजेपी के नेता जवाहरलाल नेहरू को? मगर कांग्रेस का प्रधानमंत्री देख कर उसे प्रभावित करने के लिए श्री प्रधान ने यह कदम उठाया। पुनर्स्थापन एवं पुनर्वास नीति के मुद्दे पर अपने गुस्से को जायज ठहराने के लिए उन्होंने मेरे वक्तव्य को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया। उन्होंने सोचा शायद यही एक बहाना है,जिसके कारण वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी को अपमानित किया। सांसदों और विधायकों को यह समझना चाहिए कि संविधान उन्हें विशेषाधिकार सदन की गरिमा देखते हुए देता है। इसका मतलब यह नहीँ है कि वे किसी के भी साथ दुर्व्यवहार करें या उन्हें अपमानित करें। उनके दुर्व्यवहार और कदाचार से ना केवल उनकी छबि खराब होती है बल्कि सदन की छबि पर भी आँच आती हैं।

19.श्री शिबू सोरेन :पर्सनल एजेंडा वाले मंत्री

जब श्री सोरेन ने कोयला मंत्रालय का भार संभाला तो भारत सरकार के प्रचलित चलन के अनुसार उन्होंने राज्यमंत्री श्री दसारी नारायण राव को कोई विशेष काम नहीँ दिया, इस वजह से श्री राव बहुत नाखुश थे। यह बात उन्होंने मुझे भी बताई। मैंने उन्हें सलाह दी कि वे या तो प्रधानमंत्री या फिर कांग्रेस अध्यक्ष से इस बारे में बातचीत करे।

श्री सोरेन की राजनैतिक कर्मस्थली झारखंड रही है। इसलिए उन्हें कोल इंडिया में फैले भ्रष्टाचार की अच्छी तरह जानकारी थी।

किन्तु श्री सोरेन इतने चतुर नहीँ थे कि कोयला मंत्री के सामर्थ्य का पूरा पूरा लाभ उठा सकते। उनके ऑफिसर ऑन स्पेशियल डयूटी (ओएसडी) श्री दीक्षित को भी सरकारी कामकाज का कोई अनुभव नहीँ था। इसलिए उन्हें मंत्रालय के सामर्थ्य का उपयोग अपने व्यक्तिगत लाभ के कोयला सचिव और कोल इंडिया के अध्यक्ष के सहयोग की आवश्यकता थी। किन्तु दुर्भाग्यवश दोनों ही उनका इस विषय में सहयोग करने के अनिच्छुक थे। शुरू-शुरू में सीआईएल के मुखिया श्री शशि कुमार को उन्होंने दबाने का प्रयास किया। मगर वह बिलकुल दबे नहीँ। तब उन्होंने हर छोटे-मोटे कामों में उनकी मीन-मेख निकालना शुरू किया। यहाँ तक कि एक प्रेस संबोधन करने के सिलसिले में अपनी गंभीर आपत्ति प्रकट करते हुए उन्होंने पूछा, ‘‘आपने मेरी आज्ञा के बिना कोयले की कीमत के रिविजन पर प्रेस को संबोधित कैसे किया?’’

क्या उत्तर देते श्री कुमार? प्रेस संबोधन को अपनी आज्ञा का उल्लंघन मानकर वह श्री कुमार को निलंबित करना चाहते थे।मैंने उन्हें समझाया, ‘‘सीआईएल चेयरमैन को प्रेस का संबोधित करने के लिए आपकी अनुमति की आवश्यकता नहीँ है। यह वजह उनके निलंबन का कारण नहीँ बन सकती है।"

मगर कुछ दिनों के बाद मंत्रालय के कार्य-वितरण आदेश में संशोधन किया गया। सारी फाइलें राज्यमंत्री श्रीराव से होकर कैबिनेट मंत्री को भेजी जाएँ। मुझे नहीं पता कि सोरेनजी के अचानक हृदय परिवर्तन का क्या कारण था। मगर श्री राव ने कोयला मंत्रालय में पारदर्शिता लाने के मेरे हर प्रयास को निष्फल करने में श्री सोरेन का भरपूर सहयोग दिया।

सीआईएल की अनुषंगी कंपनियों के डायरेक्टरों का स्थानांतरण :-

सीआईएल की अनुषंगी कंपनियों में पैसा बनाने का विभव हर जगह बराबर नहीँ है। लुकरेटिव पोस्टिंग पाने के लिए कई डायरेक्टर मुँह माँगे पैसे देने के लिए तैयार रहते हैं। कोयला मंत्रियों को और क्या चाहिए? इससे अच्छा-खासा व्यवसाय क्या हो सकता है। इस गोरखधंधे पर अंकुश लगाने के लिए एनडीए सरकार के समय मंत्रियों द्वारा डायरेक्टरों के स्थानांतरण करने पर रोक लगा दी थी। ऐसे सारे प्रस्तावों की स्वीकृति एसीसी द्वारा जरूरी कर दी गई।

श्री सोरेन ने डायरेक्टरों का इंटर कंपनी ट्रान्सफर करने के लिए मुझे मौखिक आदेश दिये। गंभीरतापूर्वक मैंने उनसे कहा,"मंत्री महोदय! डायरेक्टरों का चयन 5 साल के लिए होता है। इस बीह उनका स्थानांतरण न तो कंपनी के हित में है और न ही उन अधिकारियों के, जब तक कि कोई विशेष कारण नहीँ हो।"

मेरी यह सलाह श्री सोरेन को पसंद नहीँ आई। जब मैंने कोयला मंत्री के मौखिक आदेश नहीँ माने तो श्री सोरेन सीएमपीडीआईएल के एक डायरेक्टर का बीसीसीएल में स्थानांतरण करने के लिए एक नोट भेजा। मैंने उन्हें समझाया कि यह उनके अधिकार क्षेत्र में नहीँ है इसलिए इस प्रस्ताव अंतिम निर्णय के लिए एसीसी को भेजना होगा।मेरा आप से अनुरोध है कि आप एक बार अनौपचारिक रूप से प्रधानमंत्री से बातचीत कर लें। क्योंकि कैबिनेट मंत्री के प्रस्ताव को अगर एसीसी रिजेक्ट कर देगा तो आपके लिए यह एक शर्मिंदगी की बात होगी।" -

मगर श्री सोरेन ने मेरी बात नहीँ मानी।प्रस्ताव एसीसी को भेज दिया गया। जैसा मैंने कहा था- हुआ भी वैसा ही। श्री सोरेन के इस्तीफा देने के बाद एसीसी ने उस प्रस्ताव को रिजेक्ट कर दिया।

मेरा स्थानांतरण करने का प्रयत्न :-

कोयला मंत्रियों को मैं पूरी तरह से असहयोगी लग रहा था। वे दोनों मिलकर मुझे मंत्रालय से बाहर का रास्ता दिखलाना चाहते थे। सांसदों को मेरे और श्री कुमार के खिलाफ झूठी शिकायतें करने के लिए उकसा रहे थे। धनबाद के सांसद चंद्रशेखर दूबे मेरे ऊपर स्विस बैंक में काला धन रखने का आरोप लगा चुके थे। एक बार वह दो कंपनियों को कोल-ब्लॉक दिलवाने के लिये मेरे ऑफिस आये, तो मैंने उनसे पूछा, "दूबे जी! आपने मेरे खिलाफ प्रधानमंत्री को झूठी शिकायत क्यों की?"

उन्होंने बिना किसी झिझक के कहा, "यह शिकायत मैंने तैयार नहीँ की थी। यह राज्यमंत्री के ऑफिस में बनाई गई थी और मुझे उस पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया था। बीसीसीएल में आउटसोर्सिंग और हाउसिंग के मसले को लेकर मैं आपसे नाराज था, इसलिए उस शिकायत पर मैंने अपने हस्ताक्षर कर दिए।"

जहाँ दूसरे सांसद अपना काम निकलवाने के लिए अनुरोध करते थे, वही दूबे किसी बॉस की तरह आदेश देते थे। उन्होंने अपने दो नामित लोगों को कोल-ब्लॉक आवंटित करने के लिए मुझे कहा। मैंने उन्हें समझाया कि सरकार की प्रचलित गाइड-लाइनों के अनुरूप उन्हें कोल ब्लॉक आवंटित नहीँ किए जा सकते।दूबे जी नाराज हो गए और क्रोध भरे स्वर में कहने लगे, "क्या मुझे पता नहीँ है, इससे पहले आवंटन कैसे हुए थे? अगर तुमने मेरी बात नहीँ मानी तो तुम्हारा मंत्रालय रहना मुश्किल हो जाएगा। मैंने उत्तर दिया, "आपकी जो इच्छा हो, कीजिए।" दोनों कोयला मंत्री मुझसे नाखुश थे।कोल-ब्लॉक आवंटन की प्रक्रिया, ई-ऑक्शन से कोल मार्केटिंग, सीआईएल चेयरमैन की नियुक्ति और दीर्घ अवधि से लंबित लिंकेज मामले ऐसे कई मुद्दे थे जिन पर मेरे और श्री सोरेन और श्री राव के विचार एकदम विपरीत थे। दूसरी बार कोयलामंत्री बनने के बाद श्री सोरेन ने मुझे आमने-सामने “फेस टू फेस” बातचीत करने के लिये बुलाया।हमारी बातचीत का सारांश इस प्रकार है :-

सोरेन- सेक्रेटरी साहब, अगर हम दोनों के बीच एकदम तालमेल नहीँ हुआ तो कोयला मंत्रालय कैसे चलेगा? बाहर लोग यह सोचते है आप मंत्रालय चला रहे हैं, मैं नहीँ।

मैं- सर, भारत सरकार के बिजनेस रुल्स के अनुसार सेक्रेटरी और मंत्री का काम बँटा हुआ है। मेरा दायित्व आपको सभी विषयों पर जनहित में सलाह देना है और मंत्री होने के नाते आपका यह अधिकार है आप मेरी सलाह मानें या न मानें। मैं आपके लिखित आदेश को पूरी तरह से मानूँगा और उसका पूरी तरह से क्रियान्वयन करूँगा, भले ही, वह आदेश मेरी सलाह के विपरीत क्यों न हो।

सोरेन- आपकी शह के कारण सीआईएल चेयरमैन मेरे आदेशों को नहीँ मानता है।

मैं:- मंत्री होने के नाते आपको सीआईएल के दैनिक कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। सीआईएल बोर्ड कंपनी के रोज़मर्रा प्रबंधन के लिए उत्तरदायी है, न कि सरकार।सरकार को सीआईएल प्रबंधन को नीतिगत मसलों पर निर्देश देने का अधिकार है और सीआईएल बोर्ड और चेयरमैन सरकार के लिखित आदेशों को मानने के लिए बाध्य है।

सोरेन:- सारे आदेश तो लिखित में नहीं दिए जा सकते हैं।

मैं:- सरकारी अधिकारी या सीआईएल के अधिकारी यदि सोचते है कि वे मौखिक आदेश जनहित में नहीं हैं तो वे ऐसे मौखिक आदेशों को मानने के लिए बाध्य नहीं हैं।

सोरेन:- अगर ऐसा ही रवैया रहेगा तो आपके साथ काम करना बहुत मुश्किल हैं।

मैं- सर, मैंने तो सारे जीवन ऐसे ही काम किया है और मैं अब अपना काम करने की पद्धति तो नहीँ बदल सकता। मगर मैं आपको इस बात का विश्वास दिलाता हूँ कि आपको कभी भी गलत सलाह नहीँ दूँगा। आपके लिखित आदेशों का पूर्णतया पालन करूँगा।

जाहीर है इस वार्तालाप से श्री सोरेन खुश नहीं थे। श्री सोरेन ने मेरे खिलाफ प्रधानमंत्री को एक लबा पत्र लिखा (परिशिष्ट-1) और मेरे मंत्रालय से स्थानांतरण की मांग की। मेरे ऊपर उन्होंने बिजनेस रुल्स के अनुपालन में विफल होने तथा अवज्ञा करने के लिये अनुशासनात्मक करवाई करने की भी गुजारिश की। उन्होंने अपनी चाणक्य बुद्धि का भी इस्तेमाल किया, प्रधानमंत्री को यह सूचित करते हुए कि मैं एनडीए सरकार मैं चंद्रबाबू नायडु का आदमी हूँ और यूपीए सरकार में दरार डालने का काम कर रहा हूँ। इतने से ही वह संतुष्ट नहीँ हुए और यह भी लिखा कि वह एक आदिवासी नेता हैं, इसलिए मैं उनके प्रति भेदभाव पूर्ण व्यवहार करता हूँ। उनके पत्र पर सरकार ने मेरी टिप्पणी माँगी।

मैंने 22 मार्च 2005 को कैबिनेट सेक्रेटरी को एक पत्र लिखा (परिशिष्ट 19-2) जो इस प्रकार से था :-

"इस बात में कोई संशय नहीँ है कि प्रशासन ओर नीतिगत मुद्दों पर मेरा कैबिनेट मंत्री और राज्यमंत्री से वैचारिक मतभेद रहा है। मेरी समझ में सिविल सर्विस का सदस्य होने के नाते जिस तरीके से मुझे अपनी ड्यूटी निभानी चाहिए, मैंने निभाई है। सरकार का सचिव होने के नाते मुझे इस बात का एहसास है कि मैं अपने मंत्रियों के समर्थन के बिना मेरे उत्तरदायित्वों का निर्वहन ढंग से नहीँ कर पाऊँगा।किन्तु मुझे नहीं पता कि इस समस्या का क्या समाधान हैं।

2 मार्च 2005 को सिविल सर्विस ग्रुप की एक वेबसाइट whisperinthecorridor.com पर एक टिप्पणी आई :-

क्या कोयला सचिव अपने पैरेंट कैडर को भेजे जाएँगे? ब्यूरोक्रेसी सर्कल में इस बात की चर्चा होने लगी है कि कोयला सचिव प्रकाश चंद्र पारख को अपने पैरेंट कैडर आंध्रप्रदेश भेजा जा रहा है। सन 1969 बैच के आंध्रप्रदेश के आईएएस श्री पारख एक ईमानदार और सत्यनिष्ठ अधिकारी माने जाते हैं।

1 मार्च 2005 को श्री सोरेन ने झारखंड का मुख्यमंत्री बनने के लिए अपने पद से इस्तीफा दिया। मैं अपने पैरेंट कैडर में नहीँ भेजा गया। अगर श्री सोरेन कोयेला मंत्री बने रहते तो प्रधानमंत्री के पास मुझे वहाँ से हटाने के सिवाय और कोई विकल्प नहीँ रहता। उनके लिए अपनी यू॰पी॰ए सरकार के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए सोरेन के झारखंड मुक्ति मोर्चा के पाँच सदस्य बहुत मायने रखते थे।हमारे देश की साझा राजनीति में प्रधानमंत्री के पास बहुत ही सीमित विकल्प होते हैं क्योंकि सरकार का अस्तित्व बहुत-सी छोटी-छोटी पार्टियों पर निर्भर करता है।

कोयला मंत्री के पत्र और कैबिनेट सेक्रेटरी को लिखे गए मेरे जवाब से हमारे लोकतन्त्र में सिविल सर्विस की भूमिका पर मौलिक सवाल उठते हैं। लोकतंत्र 'चेक' और ‘बैलेन्स’ के सिद्धान्त पर चलता है। इसलिए हमारे देश के संविधान निर्माताओं ने सोचा होगा कि हमारे देश में संवैधानिक दायित्वों के भली प्रकार से निर्वहन हेतु एक स्थायी और निष्पक्ष सिविल सर्विस का प्रावधान रखा, ताकि राजनेता अपनी मनमानी न करें। लोकतंत्र में राजनेताओं की मुख्यता पर तो सवाल ही नहीँ उठता है। किन्तु राजनेताओं के द्वारा अपनी शक्तियों के मनमाने ढंग से प्रयोग न हो इसमें सिविल सर्विस की प्रमुख भूमिका होती है।

यह बात सभी को समझनी होगी और इसकी इज्जत भी करनी होगी। मगर इसके लिए हमें करना क्या होगा? कुछ ऐसे संस्थागत ठोस कदम उठाने होंगे,जिनके माध्यम से राजनेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों की पृथक–पृथक भूमिका के बारे में किसी को भी संदेह न हो और वे एक दूसरे को सम्मान की निगाहों से देखें।

मेरे ऊपर विश्वास करने के लिए मैं प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। श्री सोरेन, श्रीराव और कोयलांचल के सांसदों का उनके ऊपर इतना दबाव होने के बावजूद भी उन्होंने मुझे अपना पूर्ण समर्थन दिया।

इस बात का मुझे अवश्य दुःख है कि मैं प्रतिस्पर्धात्मक बोली वाली प्रणाली कोल ब्लॉक आवंटन के लिए लागू न कर सका, मगर कोयला मंत्रियों के घोर विरोध के बावजूद भी मैं कोयला बिक्री के लिए इंटरनेट पर आधारित ई-मार्केटिंग की मजबूत नीँव डालने में अवश्य कामयाब हुआ। मुझे संतोष है कि जब मैंने कोयला मंत्रालय छोड़ा,तब सीआईएल की प्रत्येक अनुषंगी कंपनी लाभ दर्ज कर रही थी। यहाँ तक कि बीसीसीएल जैसी लगातार हानि में रहने वाली कंपनी ने भी पहली बार ऑपरेटिंग प्रॉफिट दर्ज किया। जब मैंने दिसम्बर 2005 में अपना कार्यभार छोड़ा, हमारे देश के सारे पॉवर प्लांटो में कोयले का पर्याप्त स्टॉक था। एक भी पॉवर प्लांट ऐसा नहीँ बचा था, जिसमे स्टॉक की पोजीशन क्रिटिकल हो। मैंने ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन किया, जिसने मुझे सारी विषम परिस्थतियों में भी स्थितप्रज्ञ रहने की प्रेरणा दी और मेरे सारे कार्यों को सत्यनिष्ठा के साथ पूरा करने के लिए अटूट दृढ़ संकल्प की शक्ति प्रदान की।

(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: शिखर तक संघर्ष (भाग 7) // प्रकाश चन्द्र पारख
शिखर तक संघर्ष (भाग 7) // प्रकाश चन्द्र पारख
https://lh3.googleusercontent.com/-LZTvAs87JhE/WXberKbmjiI/AAAAAAAA5rA/qx7AU_I_1socR1WdRvlF4RLtt9CScm4LgCHMYCw/image_thumb?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-LZTvAs87JhE/WXberKbmjiI/AAAAAAAA5rA/qx7AU_I_1socR1WdRvlF4RLtt9CScm4LgCHMYCw/s72-c/image_thumb?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/07/crusader-or-conspirator-p-c-parakh-7.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/07/crusader-or-conspirator-p-c-parakh-7.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content