शिखर तक संघर्ष (भाग 9) // प्रकाश चन्द्र पारख

SHARE:

प्रकाश चन्द्र पारख की पुस्तक - Crusader or Conspirator? by P C Parakh का हिन्दी अनुवाद अनुवादक - दिनेश माली भाग 1   //  भाग 2 // भाग 3 // ...

प्रकाश चन्द्र पारख की पुस्तक - Crusader or Conspirator? by P C Parakh का हिन्दी अनुवाद

image

अनुवादक - दिनेश माली

भाग 1  //  भाग 2 // भाग 3 // भाग 4 // भाग 5 // भाग 6 // भाग 7 // भाग 8 //


सिविल सर्विस की वर्तमान अवस्था :-

इमरजेंसी के दिनों से अभी तक सर्विस उभर नहीं पाई है। पूरे भारत में ट्रांसफर और पोस्टिंग ज्यादातर इसलिए की जाती हैं ताकि भ्रष्टाचार तथा कुशासन को छुपाने के लिए सिविल सर्विस राजनेताओं की मुट्ठी में रहे । चीफ सेक्रेटरी तथा कैबिनेट सेक्रेटरी जो राज्य और केंद्र में सिविल सर्विस का नेतृत्व करते हैं उनका भी राजनैतिक कारणों से निष्प्रयोजन स्थानांतरण कर दिया जाता हैं। इन ऊंचे ओहदों पर भी भ्रष्ट-अधिकारियों की पोस्टिंग कर दी जाती है। इस अवस्था का एक ज्वलंत उदाहरण है, उत्तरप्रदेश में चीफ सेक्रेटरी के पद पर लगातार भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपी अधिकारियों को पद-स्थापित किया जाना, जिन्हें बाद में कोर्ट के आदेश के कारण हटाना पड़ा। भारत की सिविल सर्विस की दुर्गति पर विलाप करते हुए संविधान के क्रियाकलापों पर राष्ट्रीय आयोग लिखता है:-

“राजनेताओं द्वारा नियुक्ति , प्रोन्नति और अधिकारियों के स्थानांतरण मनमाने ढंग और प्रश्नवाची तरीकों से करने के कारण सिविल सर्विस की आजादी का नैतिक आधार ही खत्म हों गया है। इसकी वजह से नौकरशाही में राजनेताओं के साथ साँठ-गांठ शुरू हो गई है ताकि स्थानांतरण की असुविधा से बच सकें और साथ ही साथ, नेताओं के साथ मिलकर अपनी जेबें भर सकें। वे नियमों के अनुपालन करने के बजाय केवल नेताओं के आदेशों का अनुसरण करेंगें । परिस्थिति और ज्यादा बिगड़ जाए, इससे पहले संविधान में ऐसे सुधार करना आवश्यक हैं जिनसे सिविल सर्विस अपने दायित्वों के पालन के लिए सक्षम हो सकें।

जब काँग्रेस पार्टी की सरकार केंद्र में और अधिकतम राज्यों में थी, तभी सिविल सेवाओं में गिरावट आना शुरू हो गई थी,लेकिन कोलिशन सरकारों के आने के बाद यह अधोपतन तीव्रगति से होने लगा । इस बारे में विमल जालान लिखते हैं :-

“नौकरशाही का राजनीतिकरण मुख्यतः कम समय चलने वाली कोलिशन सरकारें हैं,जो लोगों की भलाई के बजाए अपने निजी या पार्टी के हितों को ज्यादा महत्व देती हैं। जो भी पार्टियां शासन में आती हैं, वे लचीले नौकरशाहों को नियुक्त करती हैं। जिनसे पार्टी के नेताओं के इच्छानुसार अवैध गलत काम किए जा सकें।अगर कोई नौकरशाह बात नहीं मानता हैं तो उसका तुरंत दूसरी जगह स्थानांतरण कर दिया जाता हैं।”

एक अध्ययन के अनुसार केवल एक साल में उत्तरप्रदेश में 1,000 आईएएस तथा आईपीएस अधिकारियों के स्थानांतरण किए गए। एक सरकार के समय औसतन प्रतिदिन 7 स्थानांतरण हुए । छह महीने बाद दूसरी सरकार आने पर स्थानांतरण बढ़कर सात से प्रतिदिन सोलह हों गए। इस प्रकार आधे से ज्यादा आईएएस अधिकारियों का बारह महीने के भीतर-भीतर स्थानांतरण कर दिया गया। राजनैतिक व सिविल सर्विस सिस्टम में लगभग छः दशकों से आई गिरावट के परिणामस्वरूप आज सिविल सर्विस में तीन प्रकार के अधिकारी मिलते हैं । पहले, वे जो किसी राजनैतिक पार्टी या नेता के प्रति अपनी वफादारी रखते हैं , दूसरे, वे जो समय के अनुसार गिरगिट की तरह अपनी वफादारी बदल देते हैं और तीसरी केटेगरी में बहुत कम अधिकारी आते हैं , जो सारी विषम परिस्थितियों के बावजूद भी निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा के मानदंडों पर खरे उतरते हैं।

तीसरी केटेगरी वाले अधिकारियों को मंत्री, सांसद और विधायक पसंद नहीं करते हैं। वे उन्हें ब्लैकमेल करते हैं, परेशान करते हैं या फिर सीधे तरीके से महत्त्वहीन काम देकर हाशिए में डाल देते हैं। इस तरह के ‘हरासमेंट’ से बचने का कोई संस्थागत तरीका नहीं हैं। अगर ये अधिकारी मंत्रियों की बात नहीं मानते हैं, तो उन्हें न केवल जो कानूनन मिलना चाहिए, वह भी नहीं मिलता है बल्कि उन्हें कभी-कभी झूठे और निराधार आरोप भी झेलने पड़ते हैं।

पूर्व कैबिनेट सेक्रेटरी श्री टी॰एस॰आर॰ सुब्रमनियन लिखते हैं :-

"अक्सर मुझे राजनेताओं और वरिष्ठ अधिकारियों के प्रतिशोध की भावना से निर्दोष अधिकारियों के खिलाफ झूठे और मिथ्या आरोप देखने को मिले हैं। राजनीति से प्रेरित विजिलेन्स जांच तो आसानी से शुरू की जा सकती है। जब एक बार जांच शुरू हो जाती है, तो कोई भी उसे बंद करना नहीं चाहता। कई कारणों से झूठे आरोपों में लगातार बढ़ोतरी हों रही है। केंद्रीय जांच एजेंसियां,जिन्हें अब तक निष्कलंक छबि वाला माना जाता था,भी आजकल इसी रुग्णता से ग्रसित हो गई हैं। केंद्रीय एजेंसियों द्वारा आजकल राजनैतिक आधार पर बहुत ज्यादा झूठे मामले दायर किए जा रहे हैं। जिससे पूरी व्यवस्था के नष्ट हो जाने की आशंका हैं।”

यद्यपि राजनैतिक वातावरण सिविल सर्विस के सदाचार (ईथोस) को पोषित और प्रोन्नत नहीं कर रहा है, मगर इस दुर्गति का कुछ दोष सिविल सर्विस का भी है। यह दुर्भाग्य की बात हैं कि राजनीतिज्ञों द्वारा उनके विरुद्ध अकारण कोई भी अनुशासनात्मक कार्रवाई से बचाने के लिए पर्याप्त संवैधानिक संरक्षण हैं,फिर भी भारत में सिविल सर्विस ईमानदारी तथा राजनैतिक निष्पक्षता के मापदंडों पर खरी नहीं उतरती है। किसी भी अधिकारी के अपने सिद्धान्त पर अडिग रहने के कारण अगर स्थानांतरण कर दिया जाता हैं तो उसकी जगह लेने के लिए आधे दर्जन से ज्यादा अधिकारी अपने स्वार्थ के खातिर अपने सिद्धांतों से समझौता करने के लिए तैयार मिलेंगे। उच्च अधिकारी सिविल सर्विस में सदाचार तथा आपसी विश्वास को प्रोत्साहन देने में असफल रहे हैं। उनकी इसी कमजोरी का फायदा उठाकर नेता लोग उन्हें निरुत्साहित व कमजोर करके उनका गलत उपयोग करते हैं।

राजनेता, नौकरशाहों ,न्यायपालिका में व्याप्त घोर-भ्रष्टाचार और निरुत्साहित सिविल सर्विस की वजह से भारत धीरे-धीरे ‘कानून-रहित समाज’ में बदलता जा रहा है। ऐसा प्रतीत होता है, देश में कानून का शासन नहीं है। साधारण जनमानस  सरकार को कमजोर, भ्रष्ट तथा अदक्ष मानने लगा है। अपराधी लोग राजनीति में पहुँच रहे हैं। अगर संसद और राज्यों की असेंबलियाँ इन तत्त्वों को रोकने के लिए अपने दरवाजे मजबूती से बंद नहीं करती हैं तो शीघ्र ही अपराधी-वर्ग हमारे ऊपर शासन करने लगेगा । मगर राजनैतिक वर्ग हमारे संसदीय-लोकतंत्र पर हो रहे इस हमले पर बिलकुल ध्यान नहीं दे रहा है। बल्कि सुप्रीम कोर्ट और सिविल सोसायटी द्वारा किए जा रहे राजनैतिक सुधारों के हर प्रयत्न में अवरोध खडे कर रहा है। हमारे विशाल एथनिक और भाषायी विभिन्नता, आर्थिक-विभेदता और पड़ोसी देशों से शत्रुता वाले इस देश, जिसका राष्ट्रीय-एकता और लोकतन्त्र का एक छोटा-सा इतिहास है, के लिए बहुत चिंता की बात है।

अच्छे भविष्य के लिए:-

अगर हमें अच्छे शासन की पुनर्स्थापना करनी है तो हमारे राजनैतिक और सिविल सर्विस प्रणाली दोनों में सुधार लाने  की आवश्यकता हैं। हमारे गवर्नेंस में आए ‘उत्क्रमण’ (aberration) को हटाने के साथ-साथ नए संस्थागत प्रबंधन बनाकर उन्हें पोषित करने की आवश्यकता है ।

राजनेताओं तथा सिविल सर्विस के अधिकारियों की निष्पक्षता, ईमानदारी तथा वस्तुनिष्ठता में कमी आने तथा उनके बीच पारस्परिक संबंध खराब होने के चार मुख्य कारण हैं:-

1. दोनों के मध्य संबंध तनावपूर्ण होने का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण हैं, राजनेता द्वारा जनहित की कीमत पर अपनी पार्टी के और अपने स्वयं के हितों को प्रमुखता देना तथा प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा निष्पक्षता और कानून के अनुसार काम करने की बाध्यता।

2. प्रशासनिक अधिकारियों के लिए आचार संहिता है,किन्तु राजनेताओं के लिए कोई आचार संहिता नहीं है। प्रशासनिक अधिकारियों अधिक से अधिक अपने विचार फाइल पर लिख सकते हैं, मगर गलत निर्णय को रोक नहीं सकते। राजनैतिक ताकत के दुरुपयोग को रोकने का  एकमात्र परिणाम चुनाव में हार है,किन्तु चुनाव पांच सालमें एक बार होता है। इसलिए चुनावी हार कभी भी प्रभावी निवारण नहीं हों सकती है ।

3॰ कभी-कभी  सिविल सर्विस के अधिकारियों तथा उनके पॉलिटिकल मास्टरों की शिक्षा और बुद्धि के  स्तर में काफी अंतर होता हैं इसलिए कुछ अधिकारियों में ‘सुपीरियरीटी काम्प्लेक्स’ होता हैं । जबकि कुछ राजनेता अधिकारियों को नीचा दिखाने तथा उनका अपमान करने में आनंद अनुभव करते हैं ।

4. सिविल सोसायटी ग्रुप तथा मीडिया आजकल कुछ ज्यादा सक्रिय हैं तथा कुप्रबंध के खिलाफ लोगों को उत्तेजित करने में काफी सार्थक योगदान दे रहा हैं मगर वे भी चुने गए प्रतिनिधियों से अच्छे आचरण के लिए दबाव को बनाने में अधिक सफल नहीं हो पाए हैं। आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोग भी चुने जा सकते हैं और मंत्री तक बन सकते हैं ।

सिविल सर्विस के मूल्यों की पुनर्स्थापना तथा सिविल सर्विस और राजनैतिक एक्जिक्यूटिवों के बीच सौहार्द्रपूर्ण वातावरण बनाने के लिए पहला और सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण कदम है,ऐसी संस्थागत व्यवस्था बनाना,जो सिविल सर्विस की स्वायत्तता, राजनैतिक-निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा को फिर से स्थापित कर सके। ऐसा वातावरण बनाने की जरूरत है ,जहां इन गुणों को बढ़ाया जा सके तथा पोषित किया जा सके । ऐसा करने के लिए दूसरे देशों के अनुभवों का फायदा उठाया जा सकता है।

दूसरे देशों में संस्थागत व्यवस्था :-

आर्थिक तौर पर उन्नत देशों में जापान तथा सिंगापुर ऐसे देश हैं, जहां पॉलिटिकल एक्जिक्यूटिव तथा सिविल-सर्विस के बीच संबंध सबसे ज्यादा सौहार्द्रपूर्ण हैं । दूसरे विश्व-युद्ध के बाद जापान के कई प्रधानमंत्री पूर्व सिविल सर्वेंट थे। इसी तरह डायट (जापान की संसद) में बहुत सारी सीटों पर पूर्व सिविल सर्वेंट निर्वाचित होते हैं। दोनों देशों में सिविल सर्विस ने तेजी से आर्थिक विकास करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई हैं तथा उच्च मर्यादा (हाई एस्टीम) बनाए रखी है।

दूसरे विश्व-युद्ध के बाद एक तरफ जापान तथा सिंगापुर तथा दूसरी तरफ भारत में सिविल सर्विस प्रणाली के प्रादुर्भाव में घोर-विरोधाभास दिखाई देता हैं । दूसरे विश्व-युद्ध के बाद जापान में गुणवत्ता वाली नौकरशाही नहीं थी ।कोई खास संस्थागत व्यवस्था भी नहीं थी,जो सिविल सर्विस के ‘इथोस’ को आगे बढ़ाए और उन्हें पोषित करें । मगर नेशनल पर्सनल अथॉरिटी के रूप में जापन ने एक ऐसी सशक्त और स्वतंत्र संस्था बनाई, जिसने जापान को दुनिया सबसे अच्छी सिविल सर्विस दी । जापान की नेशनल पर्सनल अथॉरिटी एक स्वतंत्र निकाय है,जो राजनैतिक रूप से निष्पक्ष हैं और कर्मचारियों की शिकायतों की सुनवाई के साथ-साथ नियुक्ति,प्रोन्नति,सेवा-निवृत्ति,प्रशिक्षण,वेतन,समयावधि,कल्याण,एथिक्स आदि के लिए जबावदेह हैं। इसी तरह जब उपनिवेशवाद से सिंगापुर को आजादी मिली ,तब उसकी सिविल सर्विस अत्यंत भ्रष्ट थी। श्रेय जाता है सिंगापुर की पॉलिटिकल लीडरशिप को ,जिसने उसे दुनिया के सबसे कम भ्रष्ट देशों में से एक बना दिया । इसके विपरीत भारत जिसमें स्वतंत्रता के समय दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सिविल सर्विस थी,  अब सबसे निष्कृष्ट सर्विस हों गई है ।

स्वतंत्र-सिविल सर्विस बोर्ड की स्थापना :-

जापान की नेशनल पर्सनल अथॉरिटी की तरह हमें bhi एक सिविल सर्विस बोर्ड बनाना चाहिए , ताकि ऐसा वातावरण पैदा किया जा सके जिसमें सिविल सर्विस के सदाचार (इथोस). जैसे राजनैतिक निष्पक्षता ,ईमानदारी और दक्षता को बढ़ाया तथा पल्लवित किया जा सके । यह अत्यंत ख़ुशी की बात हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय तथा राज्य स्तरीय सिविल सर्विस बोर्ड की आवश्यकता को अपने अद्यतन जजमेंट में अनुभव किया है। इस निर्णय पर स्टेक-होल्डरों की ओर से मिश्रित प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई हैं। कुछ लोगों ने यह कहकर इसका स्वागत किया है कि यह सिविल सर्विस की प्रतिष्ठा (मोरल) को स्थापित करने की तरफ पहला कदम है। दूसरों ने इसे नौकरशाही को राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त करने और लोकतान्त्रिक-विचारधारा की हत्या के दृष्टिकोण से देखा हैं ।

लोकतंत्र में पॉलिटिकल एक्जिक्यूटिव की सुप्रीमेसी के बारे में कोई दो राय नहीं हो सकती हैं । सिविल सर्विस बोर्ड का मतलब पॉलिटिकल एक्जिक्यूटिवों से सिविल सर्विस के नियंत्रण तथा सुपरविजन की शक्तियों का आहरण करना नहीं हैं। उसका मुख्य मकसद सिविल सर्विस को पॉलिटिकल एक्जिक्यूटिवों की मनमर्जी और उनकी तुनक-मिजाजी से प्रतिरोधित (इन्सुलेट) करना हैं। उत्तर प्रदेश कैडर की युवा आई॰ए॰एस॰ अधिकारी दुर्गाशक्ति नागपाल का निलंबन इस तरह की मनमर्जी और उनकी तुनक-मिजाजी का एक ज्वलंत उदाहरण हैं। चीफ सेक्रेटरी इस तरह की गलत कार्रवाई के खिलाफ मुख्यमंत्री को वस्तुनिष्ठ और ईमानदारी पूर्वक सलाह नहीं देने में असमर्थ रहे,यह सिविल सर्विस के पतन का एक उदाहरण है। इससे ज्यादा बदत्तर अवस्था तो बालू माफिया की यह डींग हांकना है कि वह एक आई॰ए॰एस॰ अधिकारी को एक चुटकी भर में निलंबित करवा सकता हैं। इस प्रकार की हरकतों को नियंत्रण में करने के लिए हमें एक स्वतंत्र तथा दृढ़ सिविल सर्विस बोर्ड की आवश्यकता हैं ।

सिविल सर्विस बोर्ड राजनीति से पूरी तरह मुक्त होना चाहिए और पर्यवेक्षण कैबिनेट द्वारा होना चाहिए। यह बोर्ड ज्वाइंट सेक्रेटरी और उससे ऊपर के अधिकारियों के नौकरी संबंधित सारे मामलों के लिए दायी होगा , जिसमें इंपेनलमेंट,प्रमोशन ,पोस्टिंग ,ट्रान्सफर तथा अनुशासनात्मक कार्रवाई समेत सीबीआई की जांच के आदेश भी शामिल होंगे ।

बोर्ड के सदस्यों का चयन एक कमेटी द्वारा होना चाहिए जिसके सदस्य प्रधानमंत्री, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया तथा लोकसभा में विपक्ष  के नेता हों। पॉलिटिकल एक्जिक्यूटिवों की सुप्रीमेसी बरकरार रखने के लिए बोर्ड को अपनी सिफारिशों के बारे में अंतिम निर्णय के लिए एसीसी (एपाइंटमेंट कमेटी ऑफ कैबिनेट) को भेजनी होगी।अगर एसीसी इन सिफारिशों से असहमत होती हैं तो उस असहमति के कारण दर्ज होने चाहिए। बोर्ड को संसद को भेजे गए अपने वार्षिक प्रतिवेदन में इन सारे केसों को शामिल करना चाहिए ।

बोर्ड को प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा उठाए गए विवेक और औचित्य से संबंधित मामलों की सुनवाई करनी चाहिए। इसमें ब्लैकमेल ,डराना-धमकाना, तंग करना और चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा की गई झूठी और दुर्भावनापूर्ण शिकायतें भी शामिल हैं । अगर जरूरत पड़े तो मानहानि(लिबेल) सूट फ़ाइल करने के लिए कानूनन सहायता भी प्रदान करनी चाहिए । ऐसे ही सिविल सर्विस बोर्ड की स्थापना राज्य सरकार के वरीय अधिकारियों के लिए भी होनी चाहिए ।

कानून के अंतर्गत सिविल सर्विस के अधिकारियों के कालावधि की सुनिश्चितता : -

प्रशासनिक अधिकारियों के लिए कम से कम कार्यावधि दो या तीन साल होनी चाहिए । इस अवधि से पहले होने वाले हर ट्रान्सफर के कारण रिकार्ड किए जाने चाहिए और उस अधिकारी को इन कारणों से अवगत किया जाना चाहिए ताकि वह ट्रान्सफर के खिलाफ अपनी बात रख सके ।

सर्विस-एक्सटेंशन और पोस्ट-रिटायरमेंट एपाइंटमेंट:-

सेवानिवृत्त होने के बाद सेवा-काल बढ़ाने अथवा यू॰पी॰एस॰सी॰,कैट ,रेगुलेटरी अथॉरिटी आदि के चैयरमैन तथा सदस्य बनने की चाह में बहुत सारे वरिष्ठ अधिकारी नौकरी के अंतिम चरण में अपनी निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता खो देते हैं।सेवा-काल बढ़ाने और सेवानिवृत्ति के बाद काम देने की प्रणाली को खत्म कर दिया जाना चाहिए।

कदाचार पर त्वरित कार्रवाई :-

अक्सर यह कहा जाता है कि अनुशासनात्मक कार्रवाई के पूरा होने में दीर्घ विलंब और जॉब सिक्यूरिटी के कारण ट्रान्सफर ही एक प्रभावी साधन है,जिससे सर्विस में अनुशासन बनाया रखा जा सकता है। यह बात भी कुछ हद तक सही है। मगर ट्रान्सफर इस समस्या का हल नहीं हैं। अदक्ष या भ्रष्ट अधिकारियों का एक जगह से दूसरी जगह ट्रान्सफर करने से समस्या का समाधान नहीं हों जाता । समस्या का केवल स्थान बदल जाता है। प्रस्तावित सिविल बोर्ड को अदक्ष और भ्रष्ट अधिकारियों के सेवा निवृत करने तथा समय सीमा के भीतर अनुशासनात्मक कार्रवाई पूरी करने की विधि-संगत शक्तियां मिलनी चाहिए ।

आचार-संहिता

सिविल सर्विस की आचार संहिता :-

भारत में सिविल सर्वेन्ट का आचरण सेंट्रल सिविल सर्विसेस कंडक्ट रूल्स तथा ऑल इंडिया सर्विसेस तथा स्टेट सिविल सर्विसेस के द्वारा बनाए नियमों के अंतर्गत निर्देशित होता है। भारत में कंडक्ट रूल्स में विशेषकर ‘प्रशासनिक अधिकारियों को क्या नहीं करना चाहिए की लिस्ट है, जबकि इसके ठीक विपरीत ब्रिटिश सिविल सर्विस की आचार-संहिता में सिविल सर्विस की “कोर-वैल्यू” पर प्रकाश डाला गया है। ब्रिटिश सिविल सर्विस की आचार संहिता के कुछ प्रावधान उद्धरणीय हैं:-

  “ एक निष्पक्ष और खुली प्रतिस्पर्धा और गुणवत्ता के आधार पर आपकी नियुक्ति हुई है और आपसे आशा की जाती है कि आप  समर्पण तथा प्रतिबद्धता (कमिटमेंट)  के साथ सिविल सर्विस की ‘कोर-वैल्यूज ’ सत्यनिष्ठा,ईमानदारी,वस्तुनिष्ठता  और निष्पक्षता के साथ अपनी भूमिका निभाएँगें।”

इस कोड में :-

-सत्यनिष्ठता (INTEGRITY) का अर्थ लोगों की सेवा के आभार अपने व्यक्तिगत हितों से ऊपर होने चाहिए।

- ईमानदारी का अर्थ सत्यता और खुलापन है।

-वस्तुनिष्ठता (OBJECTTIVITY) का अर्थ आपकी सलाह और निर्णय प्रमाणों के ठोस विश्लेषण पर आधारित होना चाहिए।

-निष्पक्षता का अर्थ हर निर्णय गुणवत्ता के आधार पर तथा अलग-अलग विचारधाराओं वाली सरकार की समान रूप से सेवा।

गुड गवर्नेंस के लिए इन ‘कोर-वैल्यूज’ को प्रोत्साहन देना आवश्यक है।ये कोर वैल्यूज हमारी सिविल सर्विस को ऊंचे मुकाम तक पहुँचने में सहायक सिद्ध हो सकती है। इसके द्वारा ही सिविल सर्विस मंत्रियों, सांसदों तथा जनता का आदर और विश्वास पा सकती है।

जहां तक मंत्रियों से संबन्धों का सवाल है, कोड बतलाता है:-

आपको :-

  • : मंत्री को तथ्यों की सही-सही सूचना देना तथा सबूतों के आधार पर विकल्प बताने के साथ-साथ उचित सलाह देनी चाहिए।
  • : केस पर मेरिट के आधार पर निर्णय लेना चाहिए और विशेषज्ञों एवं प्रोफेशनलों की सलाह पर पूरा ध्यान देना चाहिए।
  • : सलाह देते या निर्णय लेते समय असुविधाजनक तथ्यों या संबन्धित विचारों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
  • : एक बार निर्णय ली गई पॉलिसी के कार्यान्वयन में अपनी अनिच्छा के कारण कुंठित करने का व्यर्थ प्रयास नहीं करना चाहिए ।
  • : अपने सामर्थ्य के अनुसार राजनैतिक निष्पक्षता को बरकरार रखते हुए सरकार की सेवा करना , भले ही वह ,किसी भी पॉलिटिकल धारणा वाली क्यों न हों और कोड की जरूरी आवश्यकताओं का अनुपालन करना , भले ही, आपकी अपनी पॉलिटिकल विचारधारा या आस्था अलग क्यों न हों।
  • : इस तरह कार्य करें ताकि मंत्री आप पर विश्वास कर सकें और साथ ही साथ यह भी सुनिश्चित करें कि ऐसे ही रिश्ते भविष्य में आने वाले किसी भी सरकार के साथ निभा सकें।
  • ऐसे कोई कार्य न करें जो पार्टी के राजनैतिक उद्देश्यों के लिए हो या जिससे कार्यालयीन संसाधनों का पार्टी के राजनैतिक फायदे के लिए उपयोग हो।

“अगर आपको अपने काम में कोई परेशानी है, तो आपको अपने लाइन मैनेजर से बात करनी चाहिए। अगर किसी कारणवश आपको इस बारे में कुछ कठिनाई होती है, तो आपके विभाग के नामित अधिकारी, जिन्हें कोड के बारे में स्टाफ को सलाह देने के लिए नियुक्त किया गया है, उनसे संपर्क करें।अगर इसके बाद भी आपको उचित उत्तर नहीं मिलता है तो आप सिविल सर्विस कमिश्नर को लिख सकते हैं। कमिश्नर सीधी शिकायत सुन सकते हैं। “

ये प्रावधान सिविल सर्विस की ‘कोर-वैल्यूज’ को दृढ़ बनाते हैं और हर स्तर पर अपने उच्च अधिकारियों द्वारा दिए गए अवैध आदेशों को रोकने के लिए अधिकारियों को एक संस्थागत क्रियाविधि प्रदान करते हैं। भारत में सिविल सर्विस कोड में ऐसे ही कुछ सुझाव जोड़ने लायक हैं।

पॉलिटिकल एक्जिक्यूटिव तथा जन प्रतिनिधियों के लिए आचार संहिता :-

सांसदों तथा विधायकों से सदन के भीतर और बाहर अनुकरणीय आचरण व व्यवहार करने की अपेक्षा की जाती है ताकि संसदीय जीवन के उच्चतम आदर्शों को अक्षुण्ण रखा जा सकें और साथ ही साथ, सदन और उसके सदस्यों की मर्यादा बनी रह सके। उन्हें सामान्य  नागरिकों के अनुकरण के लिए अनुशासित आचरण रखना चाहिए तथा कानून का सम्मान करना चाहिए।

मगर व्यवहार में, संसद और विधानसभा के भीतर और बाहर सदस्यों का आचरण आशा के अनुरूप बिलकुल नहीं है  हमारे प्रतिदिन के संसदीय क्रिया-कलाप ज़्यादातर अराजक, धक्का-मुक्की ,फेंका-फेंकी जैसे गलत व्यवहारों से भरे हुए है। संसद के बाहर भी ज्यादा कुछ लिखने लायक नहीं है। भ्रष्टाचार,हॉर्स-ट्रेडिंग,हफ़्ता-वसूली (extortion), ब्लैकमेल और डराने-धमकाने के आरोप सांसदों तथा अन्य चुने गए प्रतिनिधियों पर लगते रहते हैं।सदन को अपने सदस्यों को कदाचार के लिए सजा देने का अधिकार है, जिसमें चेतावनी, फटकार, निलंबन, निष्कासन और यहाँ तक कि जेल की सजा भी शामिल है। किन्तु भारत की संसद और विधानसभाओं में सदस्यों के अनुशासन और अच्छे आचरण को अपनाने के लिए कई गई कार्रवाइयों के नगण्य मात्र हैं। संथानम समिति की सिफ़ारिशों के अनुसार केंद्रीय तथा राज्य मंत्रियों के लिए प्रथम आचार संहिता बनाई गई थी। सन 1967 में गृह-मंत्रालय ने विधायकों के लिए एक आचार संहिता तैयार की। इस संहिता में उन सिद्धांतों तथा कन्वेन्शनों को एक जगह लाने का प्रयास किया गया,जिनके द्वारा एक ओर एम॰पी॰ तथा एम॰एल॰ए॰ तथा दूसरी ओर प्रशासनिक अधिकारियों के सम्बन्धों को नियंत्रित करते हैं। संहिता में सभी प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा विधायकों की संविधान के अनुरूप उनके काम करने की हर जरूरत पर सहायता करने का उल्लेख हैं। कोड विधायकों पर  भी कुछ आबन्ध (ओबलीगेशन) लगाता है। उन्हें चाहिए कि वे जनहित या राष्ट्रहित के लिए सूचनाएँ मांगे और व्यक्तिगत केसों जैसे ग्रांट या लाइसेन्स का अनुमोदन, नियुक्ति, प्रोन्नति, ट्रांसफर तथा अनुशासनात्मक कार्रवाई से बचे रहें। उन्हें निजी स्वार्थों या कुछ लोगों को नाजायज फायदा देने के लिए सूचनाएँ नहीं मांगनी चाहिए।

अगस्त 1995 में भारत सरकार को सौंपी गई बोहरा कमिटी की रिपोर्ट ने अपराधी गैंग, पुलिस, नौकरशाहों तथा राजनेताओं की मिली-भगत को उजागर किया है। इस रिपोर्ट पर संसद में बहस हुई और फलस्वरूप सभी पार्टियों की एक मीटिंग गृहमंत्री श्री चव्हाण की अध्यक्षता में बुलाई गई, जिसमें यह निर्णय लिया गया कि विशेषाधिकार (priviledge)  कमेटी से अलग एथिक्स पर एक संसदीय समिति बनाई जाए। मार्च 1997 में राज्य सभा के चैयरमेन द्वारा एथिक्स पर कमेटी बनाई गई। यू॰के॰, फ्रांस, फ़िनलेंड तथा इटली के संसदों के लिए बनाई गई आचार संहिता के अध्ययन करने के बाद कमेटी ने राज्य सभा के सदस्यों के लिए कोड ऑफ कंडक्ट का एक फ्रेम वर्क तैयार किया. मगर सिवाय संसदीय कन्वेन्शन के कोई भी आचार-संहिता भारत में पॉलिटिकल एक्जिक्यूटिव पर आजतक लागू नहीं हुई है।

संसद सदस्यों की आचार संहिता पर कुछ सालों से कई देशों में ध्यान दिया जा रहा है, संस्था तथा इसके प्रतिनिधियों की सार्वजनिक प्रतिष्ठा घोटालों व स्कैंडलों की वजह से कलंकित हों रही है। संहिता प्रतिदिन के कामकाज में उचित व्यवहार का मार्गदर्शन करती है। संहिता में ज्यादा  विस्तार से मानक व्यवहारों का उल्लेख किया जा सकता है ताकि सांसदों की इस विषय में अनिश्चितता को कम किया जा सके। ऐसा करने से जवाबदेही तथा एथिकल निर्णय लेने की नींव रखी जा सकती है। उल्लंघन की अवस्था में अनुशासनात्मक कार्यवाही का ठोस आधार भी बनाया जा सकता है। संहिता जनता को भी उनके प्रतिनिधियों से अपेक्षित मानक व्यवहार के प्रति सचेत कर सकती है, जिससे संसद तथा सांसदों के प्रति लोगों की आस्था बढ़ेगी तथा विधायकों का मार्गदर्शन करने वाले मापदण्डों और प्रतिमानों (नॉर्म्स) का सार्वजनिक प्रदर्शन किया जा सकेगा। ‘कोड ऑफ एथिक्स’ की तुलना में ‘कोड ऑफ कंडक्ट ‘ कानूनी और गैर कानूनी गतिविधियों के बारे में ज्यादा सुस्पष्ट होते हैं। किसी आर्गनाइजेशन के मुख्य कार्यों के लिए सामान्य एथिकल आदर्शों की बजाए आचार संहिता ज्यादा स्पष्ट होती है।

बहुत सारे देश जैसे यू॰एस॰,यू॰के॰,कनाडा,आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड ने सांसदों तथा मंत्रियों  के लिए आचार संहिता अपनाई है। इन संहिताओं में मूलभूत सिद्धान्त निम्न है:-

नि:स्वार्थ :- जन कार्यालय धारक अपने निर्णय जन हित के लिए लेंगे। उन्हें अपने , अपने  परिवार तथा अपने मित्रों को वित्तीय या किसी भी तरह की सामग्री का लाभ हों ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए।

सत्यनिष्ठता :- पब्लिक ऑफिस होल्डर को किसी बाहरी व्यक्ति या आर्गनाइजेशन से वित्तीय या और किसी भी तरह का आभार नहीं लेना चाहिए, जो उनकी ऑफिशियल ड्यूटी के निर्वहन को प्रभावित करती हों।

वस्तुनिष्ठता (ओब्जेक्टिविटी) :- पब्लिक ऑफिस होल्डर को सरकारी कामकाज चलाने के लिए हर काम जैसे कि सरकारी अधिकारियों की नियुक्तियाँ, ठेके अथवा अनुदान देना आदि, मेरिट के आधार पर चयन करना चाहिए

उत्तरदायित्व (Accountability) :- पब्लिक ऑफिस होल्डर अपने निर्णयों तथा गतिविधियों के लिए पब्लिक के प्रति जवाबदेह है और अपने आपको ऑफिस से संबंधित किसी भी प्रकार की जांच के लिए प्रस्तुत रखना चाहिए।

पारदर्शिता (ओपननेस) :- पब्लिक ऑफिस होल्डर को अपने सारे निर्णयों तथा अपने कार्य के लिए जितना हों सके,पारदर्शी  रहना चाहिए। उनके सभी निर्णय ऐसे होने होने चाहिए जो जनता को तर्कसंगत लगें।

ईमानदारी:- पब्लिक ऑफिस होल्डरों की ड्यूटी बनती है कि वे अपने निजी सरोकार, जिनका उनकी पब्लिक ड्यूटी से किसी भी प्रकार का हो सकता है,सार्वजनिक रूप से अनवरत करें और हर काम पब्लिक के हितों की रक्षा को ध्यान में रख कर करें।

लीडरशिप :- पब्लिक ऑफिस होल्डर को अपने नेतृत्व तथा स्वयं उदाहरणस्वरूप बनकर इन सिद्धांतों को आगे बढ़ाना चाहिए तथा उन्हें संबल करना चाहिए।

ब्रिटिश संसद ने हाऊस ऑफ कॉमन्स के सदस्यों के आचार-संहिता की विस्तृत रूपरेखा तैयार की है। उसमें आचार-संहिता  के लागू होने के लिए एक विशेष प्रभावी व्यवस्था भी है।हमें भी शासन प्रणाली के अलग-अलग स्तर पर चुने गए प्रतिनिधियों के लिए ऐसी ही आचार संहिता तैयार करनी चाहिए।

मंत्रियों के लिए आचार संहिता:-

कुछ देश, विशेष कर यू॰के॰ में मंत्रियों की भी विस्तृत आचार-संहिता है। प्रक्रिया संबंधी मार्गदर्शी सिद्धान्त से अलग संहिता में पार्टी के हित, निजी-हित, फंड-कलेक्शन तथा मंत्रियों के प्रशासनिक अधिकारियों के साथ संबंधों का भी उल्लेख है। ब्रिटिश मिनिस्ट्रियल कोड के प्रशासनिक अधिकारियों व मंत्रियों के सम्बन्धों के बारे में एक अध्याय से लिया गया उदाहरण दृष्टव्य है:-

“ मंत्रियों का यह कर्तव्य है कि कोई भी निर्णय लेने के पहले प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा दी गई निष्पक्ष सलाह तथा सूचना का उचित मूल्यांकन करें। सिविल सर्विस की राजनैतिक निष्पक्षता को बरकरार रखने हेतु प्रशासनिक अधिकारियों को सिविल सर्विस कोड के विरुद्ध या किसी पक्षपातपूर्ण काम के आदेश ना दें। प्रशासनिक अधिकारियों को उन गतिविधियों में शामिल होने के लिए नहीं कहा जाए जिससे उनकी राजनैतिक निष्पक्षता पर उंगली उठे या जनता को ऐसा लगे कि राजनैतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पब्लिक फंड का दुरुपयोग किया जा रहे है।”

मंत्रियों को प्रशासनिक अधिकारियों को ऐसे कोई भी निर्देश देने से विवर्जित (debar) किया गया है जिसकी वजह से सिविल सर्विस कोड का उल्लंघन होने की संभावना हो। यह सिविल सर्विस की निष्पक्षता तथा सत्यनिष्ठा बनाए रखने के लिए एक मुफीद प्रावधान है।ऐसी ही आचार संहिता भारत में मंत्रियों के लिए लागू की जानी चाहिए।

आचार संहिता को लागू करना :-

यदि उचित तरीके से आचार सहिंता लागू की जाती है तो काफी हद तक व्यावहारिक मानकों में सुधार और सिविल सर्विस के अधिकारियों एवं चुने हुए प्रतिनिधियों में निर्धारित मापदंडों पर खरे उतरने की आशा की जा सकती है। किन्तु गलत तरीके से लागू की गई आचार संहिता से नागरिकों में निराशावाद (cynicism) और अविश्वास के सिवाय कुछ नहीं मिलेगा।

भारत में सिविल सर्विस के अधिकारियों के लिए विस्तारित आचार-संहिता हैं ,मगर उसका कार्यान्वयन असंतोषजनक हैं। संहिता सिविल सर्विस के अधिकारियों को सर्विस के मामलों में बाहरी प्रभाव को लाने से रोकती हैं, मगर यह सर्वविदित हैं कि सारे स्तरों पर बहुत सारे अधिकारी, सीनियर आई॰ए॰एस॰ और आई॰पी॰एस अधिकारियों समेत लुभावनी पोस्टों को पाने के लिए राजनैतिक प्रभाव का दुरुपयोग करते हैं। नौकरी से संबन्धित  मामलों में सांसदों और विधायकों के सैंकड़ों पत्र मंत्रियों के पास आते हैं किन्तु किसी भी अधिकारी या संबंधित राजनेता के ऊपर कोई कार्रवाई नहीं होती है।

सिविल सर्विस के अधिकारियों की आचार संहिता प्रभावी ढंग से और निष्पक्ष रूप से लागू की जा सकती है, अगर उसके कार्यान्वयन का दायित्व एक स्वतंत्र सिविल सर्विस बोर्ड को सौंप दिया जाए। मंत्रियों तथा चुने गए प्रतिनिधियों के लिए आचार संहिता लागू करने के तरीकों पर हम विदेशों में अपनाए गए तरीकों से कुछ सीख सकते हैं। अलग-अलग देशों में तीन विकल्प प्रयोग में लाए गए हैं :-

1. एक विशेष कानून बनाकर संसद और विधानसभा से अलग एक बाहरी कार्यान्वयन एजेंसी बनाई जाए। यह एजेंसी सासदों और विधायकों पर आचार-संहिता लागू करेगी,उनके विरुद्ध होने वाली शिकायतों की जांच करके संसद या विधानसभा को अपनी रिपोर्ट देगी। यह विकल्प कनाडा के कुछ राज्यों में लागू है।

2.  एक प्रस्ताव पारित कर सदस्यों के आचरण देखने के लिए संसद और विधानसभा के भीतर ही एक निकाय (बॉडी )का निर्माण किया जाए। संसद या विधान सभा एक कमिश्नर को नियुक्त कर सकती हैं ,जो शिकायतों की जांच करेगा और संसद द्वारा गठित एक समिति को अपनी रिपोर्ट देगा। यह विकल्प यू॰के॰ ने अपनाया है।

3.  आचार-संहिता के कार्यान्वयन का उत्तरदायित्व संसद की ‘एथिक्स कमेटी’ को दिया जाए। यू॰एस॰ए॰ ने यह विकल्प अपनाया है।

भारत के लिए यह वांछित हैं कि मंत्रियों, सांसदों ,विधायकों और अन्य चुने गए प्रतिनिधियों के लिए आचार-संहिता का क्रियान्वयन करने के लिए उचित कानून पारित कर एक स्वतंत्र कमिश्नर की  नियुक्ति की जाए, जो  इस आचार संहिता को सख्ती से लागू कर सके। इससे नागरिकों में सांसदों और विधायकों के प्रति विश्वसनीयता बढ़ेगी ।

सौहार्द्रपूर्ण संबंधों की ओर :-

अगर पॉलिटिकल एक्जिक्यूटिव और प्रशासनिक अधिकारी अपने-अपने अधिकारों तथा उत्तरदायित्वों को समझें तथा अपनी सीमाओं का सम्मान करें और अपनी उन सीमाओं के भीतर काम करें तो उनके बीच सौहार्द्रपूर्ण संबंध स्वतः बन जाएंगे। यदि आचार-संहिता प्रभावी ढंग से लागू की जाती हैं, तो एकाउंण्टेबिलिटी बढ़ेगी। इससे सिविल सर्विस तथा पॉलिटिकल एक्जिक्यूटिव में वांछित व्यावहारिक सुधार लाए जा सकते हैं तथा आपसी विश्वास व सम्मान का वातावरण पैदा किया जा सकता है। अच्छे प्रशासन के लिए यह आवश्यक है।

कर्णधार कौन ? :-

कोई भी संस्थागत प्रबंध अपेक्षित परिणाम नहीं दे सकते हैं ,जब तक उस संस्था में काम करने वाले लोग विश्वसनीय, योग्य एवं सत्यनिष्ठ न हों। यहां डॉ॰राजेन्द्र प्रसाद की उस टिप्पणी पर ध्यान देना उचित होगा, जिसे उन्होंने संविधान सभा द्वारा भारतीय संविधान एडॉप्ट करते समय की थी,

“ जो कुछ भी संविधान देता है या नहीं देता है, देश का कल्याण इस पर निर्भर करेगा कि किस तरह देश में प्रशासन चलाया जाता है। यह उन व्यक्तियों पर निर्भर करेगा, जो प्रशासन चलाएँगे। अगर चुने हुए प्रतिनिधि योग्य तथा चरित्रवान होंगे तो वे दोषपूर्ण संविधान के बावजूद सुशासन दे सकेंगे। अगर उनमें इन चीजों की कमी है तो संविधान देश की कुछ भी मदद नहीं कर सकता ।”

(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: शिखर तक संघर्ष (भाग 9) // प्रकाश चन्द्र पारख
शिखर तक संघर्ष (भाग 9) // प्रकाश चन्द्र पारख
https://lh3.googleusercontent.com/-LZTvAs87JhE/WXberKbmjiI/AAAAAAAA5rA/qx7AU_I_1socR1WdRvlF4RLtt9CScm4LgCHMYCw/image_thumb?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-LZTvAs87JhE/WXberKbmjiI/AAAAAAAA5rA/qx7AU_I_1socR1WdRvlF4RLtt9CScm4LgCHMYCw/s72-c/image_thumb?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/07/crusader-or-conspirator-p-c-parakh-9.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/07/crusader-or-conspirator-p-c-parakh-9.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content