संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन - प्रविष्टि क्र. 31 : जहाँ छायावाद ने आकार लिया // उर्मिला शुक्ल

SHARE:

प्रविष्टि क्र. 31 जहाँ छायावाद ने आकार लिया उर्मिला शुक्ल बालपुर छत्तीसगढ़ जैसे दूरस्थ इलाके का एक छोटा सा मगर गांव हैं। मगर इसका संबंध ...

image

प्रविष्टि क्र. 31

जहाँ छायावाद ने आकार लिया

उर्मिला शुक्ल

बालपुर छत्तीसगढ़ जैसे दूरस्थ इलाके का एक छोटा सा मगर गांव हैं। मगर इसका संबंध हिन्दी साहित्य के एक काल विशेष इस कदर जुड़ा है कि अगर ये गांव नहीं होता ;तो वो काल तो अवश्य होता ,उसके आधार स्तंभ भी वही होते जो आज हैं पर उसका नाम शायद ये नहीं होता ,जो आज है। जी हाँ मैं छायावाद की बात कर रही हूँ। आज हिन्दी जगत में शायद ही कोई होगा जो छायावाद के विषय में न जानता हो, मगर छायावाद के प्रणेता पं. मुकुटघर पान्डेय हैं, ये कम ही लोग जानते हैं । और उनके गाँव बालपुर को? उसे तो और भी कम लोग जानते होंगे। वो बालपुर जहाँ महानदी की लहरें हैं, कुररी (प्रवासी साइबेरियन पक्षी) की किल्लोलें हैं,और है छत्तीसगढ़ अंचल ही महक;मगर लग रहा था जैसे लोग ये सब भुला ही चुके थे ।नया नया बना छत्तीसगढ़ प्रदेश विकास की एक नई राह पर चल पड़ा था। ऐसे में छत्तीसगढ़ प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष ने तय किया कि हम सब बालपुर की यात्रा पर जायें । सो छत्तीसगढ़ के साहित्यकारों का एक दल बालपुर के लिये रवाना हुआ । हमारे दल में थे ललित सुरजन, श्रीमती माया सुरजन ,कहानीकार रमाकान्त श्रीवास्तव, व्यंग्यकार, प्रभाकर चौबे, रवि श्रीवास्तव, संतोष मांझी, महेन्द्र कुमार मिश्र अशोक सिंघई और मैं।

बालपुर की मेरी ये दूसरी यात्रा थी । इसके पूर्व लगभग पन्द्रह वर्ष पहले मैंने विप्र महाविद्यालय, बिलासपुर के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष श्री बाँके बिहारी शुक्ल के आयोजन में बालपुर की यात्रा की थी । उस यात्रा दल में हमारे साथ पत्रकार प्राण चड्ढा, डी.पी. विप्र महाविद्यालय के हिन्दी विभाग के प्राध्यापक, मेरे दोनों बच्चे और विप्र महाविद्यालय के हिन्दी साहित्य के विद्यार्थी भी शामिल हुए थे । उस समय हम एक छोटी बस लेकर चांपा, सक्ती और चन्द्रपुर होते हुए बालपुर पहुँचे थे । उस यात्रा का जिक्र यहाँ इसलिए जरूरी है कि उस समय मुकुटधर पान्डेय जी तो इस दुनिया में नहीं थे मगर उनका परिवार बालपुर में रहता था और हमें उनके छोटे भाई के घर मेहमान के तौर पर ठहरकर ,उनकी मेहमाननवाजी पाने की सुखद अवसर मिला था । मगर अब ? अब वहाँ उनके परिवार का कोई सदस्य नहीं रहता । और अब वहाँ ऐसा कोई प्रतीक या ऐसी कोई यादगार चीज भी नहीं है ;जिसे देखकर सहज ही जाना जा सके कि ये छायावाद के प्रणेता कवि का जन्म स्थल है । वहाँ मुकुटधर पान्डेय के जन्म का कोई नामोनिशान तक नहीं बचा है । कारण -प्रकृति की मार और गाँव में पूँजीवाद की घुसपैठ ;नदी पर कारपोरेट घराने का कब्जा और सरकार की साहित्य के प्रति उदासीनता । साहित्य से लगाव होने के कारण हमने ये महसूस किया था कि साहित्य के अपने पूर्वजों के प्रति ,हमारी कुछ जिम्मेदारी भी बनती है ।कुछ अधिक नहीं तो उस पावन भूमि का स्पर्श कर, उनके अवदानों को तो याद करना ही चाहिये । इसी सोच के चलते हमने बालपुर यात्रा की योजना बनायी थी ।हम सब सड़क मार्ग से हम बालपुर के लिए रवाना हुये। इस बार भी मंजिल तो वही थी मगर रास्ता अलग था। अबकी हम रायपुर से चलकर तुमगाँव के रास्ते अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे थे ।छत्तीसगढ़ में अब बहुत कुछ बदल गया था । कभी तुमगाँव से आगे बढ़ते ही घने जंगलों का सिलसिला शुरू हो जाता था, मगर अब ? अब वनों की अंधाधुंध कटाई के चलते ,तुमगाँव के आस-पास के वन खत्म ही हो चले हैं । यहाँ तक कि इस इलाके का प्रसिद्ध बाँध -कोडार- जो कभी वनों से इस कदर आच्छादित था कि बॉध नजर ही नहीं आता था, वो अब हमें सड़क से ही नजर आ रहा था । कुछ आगे बढ़ने पर वन कुछ सघन तो हुए थे मगर फिर भी अब पहले वाली बात नहीं थी ।

पिथौरा आने वाला था । यहीं से होकर बारनवापारा (अभ्यारण) का रास्ता है । यहाँ विश्राम गृह में हमारे चाच-पानी की व्यवस्था थी । सो हम सब पिथौरा विश्राम गृह पहुँचे । पिथौरा एक छोटा सा कस्बाई शहर है, जो सघन वनों से घिरा है । यहाँ से सड़क मार्ग दो हिस्सों में बँट जाता है । एक खल्लारी की पहाड़ियों से होता हुआ बागबहरा महासमुन्द की ओर जाता है और दूसरा साँकरा नाले से होकर, सरायपाली के रास्ते उड़ीसा होता हुआ कलकत्ता तक चला जाता है । हमें सरायपाली तक इसी रोड से जाना था । चाय के बाद हमारा सफर फिर शुरू हुआ । अब गाँवों का स्वरूप और उसकी बसाहट के साथ-साथ भाषा भी बदलने लगी थी । इधर की भाषा पर ओडिया का प्रभाव है और छत्तीसगढ़ी से कुछ कुछ अलग है। ये लरिया कहलाती है । मैं देख रही थी; गाँव से सड़क पर आकर मिलती पगडंडियों पर, सिर पर टोकरी रखे स्त्रियाँ और कँधे पर काँवर लिये पुरूष तेजी से बढ़े जा रहे थे । उनकी टोकरियों का आकार भी छत्तीसगढ़ से एकदम अलग, उडीसा की चलन का था । बाँस के चौड़े-चौड़े पट्टों से बनी ये चौकोर टोकरियाँ उड़ीसा की हस्त कला सुन्दर नमूना थीं। दिसंबर का महीना था। धान की फसल कट चुकी थी । सो अधिकाँश खेत खाली थे और उनकी ठूंठ निकालने के लिये उन्हें जला दिया गया था । अब ये एक नया चलन चल पड़ा है, जिसके तहत खेत की कटाई के बाद बची हुई ठूँठ को निकालने के लिए, किसान खेतों में आग लगा देते हैं । इससे ठूँठ निकालने की मेहनत बच जाती है । मगर खेतों में रहने वाले जीव-जन्तु भी तो जल कर खाक हो जाते हैं ।आज के जैव पर्यावरण के असंतुलन में इस आग का भी बड़ा हाथ है । फिर ये इलाका तो जंगलों से सटा हुआ है । सो यहाँ लगी आग जंगल को भी नुकसान पहुँचाती है ।आये दिन जंगलों में आग लगने की खबर आती है, मगर हम कितने स्वार्थी हो चुके है कि अपने फायदे के अलावा हमें कुछ नजर ही नहीं आता । 'मेरी सोच का सिलसिला थमा, राईस मिल के सायरन से।ये राईस मिलों का इलाका था। पांच बज गये थे ।सो मजदूरों की छुट्टी का सायरन बज रहा था।

हम सरायपाली पहुँच चुके थे । यहाँ से हमें दूसरी दिशा में जाती सड़क पर मुड़ना था, जो सारंगढ़ को जाती है । अब सरायपाली से होकर सारंगढ़ तक सघन वनों का सिलसिला शुरू हो चुका था । बीच-बीच में छोटे-छोटे गाँव, कस्बे आते रहे,मगर जंगल का सिलसिला चलता ही रहा । जंगल का भी अपना एक सौन्दर्य होता है । उस सौन्दर्य में डूबते उतराते हम सारंगढ़ जा पहुँचे थे। यहाँ हमारे और मित्र मिले, जो अम्बिकापुर और रायगढ़ से हमसे पहले ही आ चुके थे । वहाँ की सांसद पुष्पा देवी सिंह ने हमारे ठहरने की व्यवस्था की थी । उनकी व्यवस्था में ही छत्तीसगढ़ प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन की बैठक हुई ;जिसमें सारंगढ़ और आस-पास के गाँवों के साहित्यकार मित्र भी शामिल हुये ।

रात्रि के भोजन पर हम पुष्पा देवी सिंह के आतिथ्य में राजमहल में आमंत्रित थे । भोजन जितना सुस्वादु था ,उससे कहीं अधिक प्रेम था उनके आतिथ्य में । उनका सभी को आग्रह पूर्वक भोजन कराना ,हमें अभिभूत कर गया था । लग ही नहीं रहा था कि हम किसी राज घराने में भोजन कर रहे हैं । ऐसी विनम्रता बहुत कम देखने में आती है । मुझसे तो उनका एक रिश्ता और भी निकल आया था, उनकी फुफेरी बहन गढ़फुलझर की राजकुमारी सुश्री पुखराज सिंह मेरी सहकर्मी रह चुकी थीं । जब ये ज्ञात हुआ, तो पुष्पा देवी ने उन्हें तुरन्त फोन लगाकर मेरी बात करवायी और मुझसे दोबारा आने का वादा भी लिया । रात को रूथानीय विद्यालय परिसर में कवि गोष्ठी आयोजित थी ।वहीं उसी विद्यालय परिसर में मैंने पहली बार उस पेड़ को देखा; जिसे महानीम कहते हैं । जिसके मैंने चर्चे सुने थे । मैंने सुना था कि प्रत्येक पन्द्रह साल बाद महानीम से ही जगन्नाथपुरी में कृष्ण, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियाँ बनायी जाती हैं । वो भी साधारण महानीम से नहीं । उस महानीम से, जो बहुत ही पुराना हो और जिसके पास साँप की बाँबी भी हो । मैंने देखा उस नीम को वास्तव में वो अपने नाम के अनुरूप वो महानीम ही था । इतना मोटा तना कि चार छः लोगों की बाहों का घेरा भी उसे अपने में समेट न पाये । एक बुजुर्ग अध्यापक ने मुझे बताया कि '' ये नीम चार सौ साल पुराना है ।'' मैंने देखा ,देखने में वो बिल्कुल नीम जैसा ही था । उसका तना, उसकी शाखायें, सब वैसी ही थीं ;मगर उसकी पत्तियाँ कुछ अलग थीं और उसकी सघनता इतनी अधिक थी कि मेरी नजरें देर तक उसकी शाखाओं और उपशाखाओं में ही उलझती रहीं । दूसरे दिन हमें सुबह सबेरे ही बालपुर के लिए निकलना था । सो हम सब अपने विश्राम स्थल की ओर रवााना हुये ।

अगले दिन अलसुबह हमारा काफिला बालपुर की ओर रवाना हुआ । हाँ । इसे काफिला ही कहना उचित होगा । पाँच, छः गाड़ियाँ एक के पीछे एक चली जा रही थीं । अब चंद्रपुर आ गया था । यूँ तो ये बहुत छोटा सा कस्बा है, मगर ख्यात बहुत है । इसकी ख्याति के दो कारण हैं । एक तो धार्मिक और दूसरा आर्थिक । यहाँ चन्द्रहासिनी देवी का मंदिर है । महानदी के किनारे स्थित ये मंदिर एक शक्तिपीठ है । हममें से बहुतों की इच्छा मंदिर के पुरातात्विक दर्शन की थी । मगर हमारी मंजिल तो बालपुर थी। सो हम महानदी के किनारे-किनारे बालपुर की ओर बढ़ चले । अब हमारा काफिला नदी के किनारे की पतली सी सड़क से होकर गुजर रहा था । राह में जब भी कोई गाँव आता, लोग अपने घरों से बाहर निकल निकल कर हमें देखने लगते । वे चकित थे कि अभी तो चुनाव का मौसम भी नहीं है ;फिर सुबह-सुबह इतनी सारी गाड़ियाँ, वो भी इस उपेक्षित राह पर ?

अब महानदी कुछ और करीब आ गयी थी और दूर से उसका दूसरा किनारा नजर आने लगा था । हम कुछ और आगे बढ़े, तो सड़क के किनारे-किनारे दलदली सी जलकुम्भी भरी जमीन नजर आने लगी थी और उस जलकुम्भी में कुछ बगुले अपना आहार तलाश रहे थे । मैंने मुकुटधर पान्डेय की 'कुररी' के प्रति' कविता पढ़ी थी । जिसमें वे एक भटके हुए कुररी (प्रवासी पक्षी) से सवाल करते हैं - '' बता मुझे ऐ विहग विदेशी, अपने जी की बात । बिछड़ा था तू कहाँ, आ रहा जो कर इतनी रात ।''

छत्तीसगढ़ का अद्भुत सौन्दर्य किसी माया जाल से कम नहीं है । इसे ही लक्ष्य करते हुए वे उससे फिर पूछते हैं- ''देख किसी माया प्रांतर का चित्रित चारू दुकूल । क्या तेरा मन मोहजाल में गया कहीं था भूल ़ ़ ़ यह ज्योरना रजनी हर सकती क्या तेरा न विषाद । या तुझको निज जन्मभूमि की सता रही है याद ।'' उनकी इन पक्तियों ने कुररी को देखने की ललक तो बहुत पहले जगा दी थी, अब वो ललक और भी बढ़ गयी थी । मेरी नजरें अब कुररी को तलाश रही थीं । वहाँ बहुत से जाने पहचाने और अनपहचाने जल पाखी नजर आये, हमें लगा इनमें कुररी भी होंगे । मगर कुछ स्थानीय लोगों ने बताया कि ये कुररी नहीं है । वे इस मौसम में ही मिलते हैं मगर इस वर्ष अभी तक नजर नहीं आये हैं? हम दिसंबर में वहाँ गये थे। वो सर्दी का मौसम था। इसी मौसम में यहाँ प्रवासी पक्षी आते रहे हैं;मगर इधर छत्तीसगढ़ में गर्मी इस कदर बढ़ गयी है,कि कई बार तो सारी सर्दी बीत जाती है पर सर्दी का अहसास तक नहीं होता है। इस वर्ष भी दिसंबर आ चुका था;मगर सर्दी का नामोनिशान भी नहीं था।ऐसे में साइबेरियन पक्षियों का टिक पाना मुमकिन ही नहीं था । फिर भी मैं देर तक उन जल पक्षियों में कुररी को तलाशती रही । फिर गाँव से बहुत से लोग हमें लिवाने आ गये थे और हम उनके साथ गाँव की ओर चल पड़े थे ।

बालपुर की यात्रा पर आने से पहले सम्मेलन के अध्यक्ष ने मुकुटधर पान्डेय जी के परिवार से सम्पर्क किया था । सो वे अपने वादे के मुताबिक वहाँ पहले से मौजूद थे । मुकुटधर पान्डेय के अलावा उनके भाई लोचन प्रसाद पान्डेय, बंशीधर पान्डेय और विद्याधर पान्डेय के परिवार के सदस्य भी हमसे मिलने आये हुए थे । मुकुटधर पान्डेय के अन्य भाई भी साहित्य के चितेरे रहे हैं । मुकुटधर पान्डेय को जहाँ हिन्दी और छत्तीसगढ़ी दोनों भाषाओं पर अधिकार प्राप्त था । वहीं लोचन प्रसाद पान्डेय और बंशीधर पान्डेय ने छत्तीसगढ़ी साहित्य में कई उपलब्धियाँ पायी थीं । बंशीधर पान्डेय तो छत्तीसगढ़ी के प्रथम उपन्यासकार माने जाते हैं । मुकुटधर पान्डेय के बच्चों में से अब उनके सुपुत्र दिेनेश प्रसाद पान्डेय ही जीवित बचे हैं । मगर अपनी अस्वस्थता के चलते वे नहीं आ पाये थे । लोचन प्रसाद पान्डेय के नाती सदाशिव पान्डेय और विद्याधर पान्डेय के नाती शिव कुमार पान्डेय और उनके बेटे खास हम लोगों से मिलने के लिए ही बालपुर आये थे । उन सबके साथ हम लोग उनके पुराने घर को देखने गये, जो अब जीर्णावस्था में है । मुकुटधर पान्डेय का जन्म जिस घर में हुआ था, वो तो बहुत पहले ही महानदी के भीतर समा गया था । दरअसल महानदी कटाव के कारण निरन्तर बालपुर की ओर सरकती चली आ रही है । इसके चलते कुछ वर्षो के अन्तराल में तट से सटे घर नदी में समा जाते हैं । नदी के इस कटाव को रोका जा सकता है, मगर अब तक इसकी कोई कोशिश नहीं की गयी है । यही कारण है कि बालपुर गाँव जो कभी बहुत बड़ा गांव हुआ करता था, अब लगातार सिमटता चला जा रहा है । और अब तो महानदी भी अब सिमटती चली जा रही है । उसके यूँ सिमटने का एक कारण है यहाँ कारपोरेट जगत की घुसपैठ । महानदी के पानी पर अब 'जिंदल' का कब्जा है । उसके प्लाँट के लिए महानदी से सीधी सप्लाई होती है । मोटे-मोटे पाईप नदी का सारा पानी सोखे ले रहे हैं । मैंने देखा कि महानदी में जगह-जगह टीले से उभर आये थे, उसे देखकर लग ही नहीं रहा था कि ये वही नदी है जिसके तांडव को देखकर मुकुटधर पान्डेय ने ये पंक्तियाँ लिखी थीं -

''बहा देती थी कोसो कभी ,मत्त नागों को भी तू जीत ।

रोक सकती है तुझको आज, क्षुद्र तम यह बालू की भीत ।''

सचमुच दोहरी मार झेल रहा है बालपुर । एक ओर तो गाँव से सटकर बहती नदी का गाँव की ओर सरकते चले आना और दूसरी ओर नदी के पानी पर कारपोरेट जगत का इस तरह कब्जा कि गांव वालों को पानी तक नहीं मिलता है । सो किसानों के हिस्से में तो दोहरा दंश है न । यही कारण है कि गाँव से लोग लगातार पलायन कर रहे हैं । पान्डेय जी का परिवार भी अब गाँव से बाहर दूर शहरों में जा बसा है । सदाशिव पान्डेय और शिवकुमार पान्डेय जी ने एक छोटी बैठक भी आयोजित की थी । हम सब उसमें शामिल हुए । यह देखकर हमें बहुत अच्छा लगा कि उन्होंने हिन्दी और छत्तीसगढ़ी साहित्य की अमूल्य धरोहर को सहेज कर रखा है । उनके सौजन्य से हमने मुकुटधर पान्डेय की उन दुर्लभ जीर्ण होती कृतियों को देखा, स्पर्श किया और महसूस किया कि अब इनके संरक्षण की आवश्यकता है । इस बात को लेकर सदाशिव पान्डेय भी चिंतित थे । उन्होंने बताया कि उन्होंने इस सिलसिले में लगातार कोशिशें की हैं । वे मंत्रियों से भी मिल चुके हैं पर उन्हें आश्वासन तो मिला, मगर बात बनी नहीं ।

हम बालपुर से लौट रहे थे । उस बालपुर से जो छायावाद का नामकरण करने वाले मुकुटधर पाँन्डेय का जन्म स्थान है मगर वहाँ उनके नाम पर कुछ भी नहीं है। मुझे याद हो आया था शेक्सपियर का गाँव । उनका वो घर जो ,अब अंग्रेजी साहित्य जगत की अमूल्य धरोहर है । वे लोग कितने गर्व से बताते हैं कि ये वो घर है जहाँ शेक्सपियर रहते थे । ये वो कुर्सी है जिस पर वे बैठते थे । यहाँ तक कि उनकी वो कलम भी संरक्षित की गयी है जिससे वे लिखते थे । और हम ? हम तो अपने पूर्वज साहित्यकारों के गाँव तक को नहीं बचा पा रहे हैं । ये सोचकर मन खिन्न सा हो उठा था ।

---

ए-21, स्टील सिटी,

अवंति विहार, रायपुर (छ.ग.)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन - प्रविष्टि क्र. 31 : जहाँ छायावाद ने आकार लिया // उर्मिला शुक्ल
संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन - प्रविष्टि क्र. 31 : जहाँ छायावाद ने आकार लिया // उर्मिला शुक्ल
https://lh3.googleusercontent.com/--1SBaBN_Y68/WoRdglIEFrI/AAAAAAAA-_Y/GYkzxBB-UX457Kqfsrf9NsPwFyPeGj7LgCHMYCw/image_thumb?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/--1SBaBN_Y68/WoRdglIEFrI/AAAAAAAA-_Y/GYkzxBB-UX457Kqfsrf9NsPwFyPeGj7LgCHMYCw/s72-c/image_thumb?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/02/31.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/02/31.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content